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मंगलवार, 31 मई 2011

आस्था और तर्क

विश्व के सभी धर्मों का अस्तित्व आस्था पर टिका होता है. आस्था सिर्फ अंधश्रद्धा का ही एक रूप है, जहाँ सारे तर्क अमान्य ठहरा दिए जाते हैं.यदि धर्म सिर्फ आस्था का प्रश्न न होकर तर्क का विषय होता ,अर्थात ईश्वरीय धारणा सिद्ध हो पाती तो पूरे विश्व में धर्म के नाम पर सैंकड़ो भिन्न भिन्न सम्प्रदायों का उदय नहीं होता. इतने महत्वपूर्ण विषय पर विचार भिन्नता नहीं होती.धार्मिक उपद्रव नहीं होते,विश्व में धर्म के नाम पर आतंकवाद नहीं पनपता. प्रत्येक धर्म अपनी आस्था, अपने धार्मिक विश्वास को सर्वश्रेष्ठ सिद्ध करने की जिद्दोजहद नहीं करता.
पृथ्वी गोल है सब जानते हैं,पृथ्वी सूर्य की परिक्रमा करती है विश्व मान्य तथ्य है,सौर मंडल में ग्रहों के अस्तित्व और संख्या के बारे में कोई मतभेद नहीं है.आर्कीमिडिज का सिद्धांत,गलीलियो के सिद्धांत से पूरा विश्व सहमत है अर्थात विभिन्न वैज्ञानिक सिद्धांत पूरे विश्व में मान्य हैं चाहे वह सिद्धांत दुनिया के किसी भी हिस्से में प्रतिपादित किया गया हो . फिर ईश्वर जैसे सर्वाधिक महत्वपूर्ण विषय के बारे में इतनी सारी धारणाएं, मान्यताएं क्यों?सबके धर्म ग्रन्थ प्रथक प्रथक क्यों? सभी के सिद्धांत,धारणाएं अलगअलग क्यों?सभी धर्म अपने धर्म ग्रन्थ,अपनी आस्था को ही सत्य एवं सर्वश्रेष्ठ एवं अन्य आस्थाओं को मिथ्या क्यों सिद्ध करना चाहते हैं?क्यों मुस्लिम धर्म न मानने वाला काफ़िर हो जाता है,हिन्दू धर्म का पालन न करने वाला नास्तिक कहलाता है?क्यों कोई भी संत,महात्मा तर्क वितर्क में असफल होने पर तर्क-करता की क्लास लेने पर उतारू हो जाता है?और उसे पहले तपस्या करने और ,विश्वास करने की घुट्टी पिलाता है, और फिर आकर तर्क वितर्क करने के लिय कहता है.
ईश्वर की आस्था के अनुसार ,ईश्वर की बिना इच्छा के पत्ता भी नहीं हिल सकता तो फिर संसार व्यापी अत्याचार,व्यभिचार, हिंसा, हत्या का तांडव क्यों? धार्मिक आस्था के अनुसार मनुष्य का जन्म बड़े भाग्य से मिलता है, वर्तमान में जनसँख्या विस्फित को क्या कहा जाय? शायद अब सभी जीव सौभाग्यशाली हो रहे हैं?
मनुष्य के वर्तमान दुखों का कारण पूर्वजन्मों के दुष्कर्मों का परिणाम बताया जाता है. जब इन्सान को पता ही नहीं की उसने पूर्व जन्म में क्या गलत किया था? तो फिर सजा कैसी. यह कैसी अदालत है जो मुलजिम को उसके अपराध की जानकारी दिए बिना ही सजा दे देती है? फिर दुष्कर्मी को मनुष्य योनी में जन्म कैसे मिल गया?
मनुष्य में विद्यमान आत्मा को परमात्मा का अंश माना जाता है तो फिर वह दुष्कर्मी कैसे हो गयी? परमात्मा के अंश को जीवन चक्र में फंसने के क्या मकसद हो सकता है?
इस प्रकार के अनगिनत प्रश्न हैं जो धार्मिक आस्थाओं पर प्रश्न चिन्ह लगते हैं . इस सौर मंडल, सौर गंगा के अस्तित्व, विश्व के अस्तित्व के प्रश्न पर अभी विज्ञानं किसी नतीजे पर नहीं पहुँच सका है, इसीलिए अलग अलग आस्थाएँ अपनी जड़ें जमाये बैठी हैं.
सभी धर्मों का मूल मकसद है दुनिया में सुख शांति, अहिंसा, सभ्यता एवं इंसानियत का परचम लहराना.अतः धर्म कोई भी अपनाया जाय परन्तु उसके असली मकसद यानि इंसानियत को अपनाये बिना धार्मिक होने का कोई लाभ नहीं है. फिर धर्म के लिए हिंसा का सहारा लेना धर्म की मूल धारणा से विचलित होना है.
मेरी पुस्तक "बागड़ी बाबा और इन्सनिअत का धर्म" पढेंगे तो अवश्य ही आप मेरी धारणा पर विश्वास करेंगे

गुरुवार, 26 मई 2011

क्यों बन जाता है समस्या हमारा बुढ़ापा

यूँ तो हमेशा ही यौवनावस्था से वृद्धावस्था के बीच आए परिवर्तन हमेशा ही बुढ़ापे में परेशानी का कारण बनते आए हैं। क्योँ की नए परिवर्तनों को हम स्वीकार नहीं कर पाते,या स्वीकार नहीं करना चाहते अथवा हमारी परवरिश नए परिवर्तनों को स्वीकार नहीं करने देती और हमारी समस्या का कारण बन जाती है । पृकृति का नियम है ,दुनिया में परिवर्तन तो होते रहने हैं अब वे चाहे भौतिक हों अथवा सामाजिक। नयी नयी खोजों के कारण भौतिक परिवर्तन आते है और मनुष्यों की बदलती आवश्यकताओं के अनुरूप मान्यताएं बदलती हैं। और फिर सामाजिक परिवेश में बदलाव आता है.हमारी मुख्य समस्या नए परिवेश में अपने को न ढल पाने के कारण बनती है। और हम नए ज़माने , नई पीढ़ी को भरपूर कोसते हैं उन्हें संस्कारहीन बता कर उनका अपमान करने से भी नहीं चूकते और अपनी परेशानिया बढ़ा लेते है ।
अतः अपने शेष जीवन को शांति पूर्वक बिताने के लिए नई पीढ़ी एवं नए परिवेश के साथ सामंजस्य बैठना आवश्यक है।
भारतीय बुजुर्ग की प्रमुख समस्याएँ ;
१.शरीरअशक्त हो जाना।
२.जीवन साथी से बिछुड़ जाने का गम अर्थात एकाकी पन।
३.धनाभाव के रहते गंभीर बीमारी का इलाज असंभव ।
४ .अनेको बार शरीर विकलांग हो जाना जैसे अंधापन,बहरापन,या हड्डियों की विकृति हो जाना अदि ।
५.अकेले रह रहे बुजुर्ग दम्पति की सुरक्षा की समस्या ।
६ .संतान सम्बन्धी समस्याओं से तनाव ग्रस्त हो जाना ।
७ .मौत का भय सताना ।
८ .नई पीढ़ी से सामंजस्य न बैठा पाना ।
९ .आधुनिक युग के परिवर्तनों को सहन न कर पाना।

शनिवार, 21 मई 2011

साधू और संत समाज

चमत्कारी बाबा और तांत्रिक अपनी वैज्ञानिक युक्तियों की जानकारी रखने के कारण अल्प शिक्षित या अशिक्षित व्यक्तियों को आसानी से प्रभावित कर लेते हैं और अपनी कमी का साधन बना लेते हैं. शिक्षा के प्रचार प्रसार के साथ ही जनता की अग्यनता दूर होती जाएगी और इनका प्रभुत्व भी ख़त्म हो जायेगा
वर्त्तमान में, साधू संतों की लम्बी फौज में अधिकांश ढोंगी एवं नाटकबाज सिद्ध हो रहे हैं,जो दुनिया को ,कुटिलता का आवरण ओढ़ कर ठग रहे हैं. नित्य हो रहे पर्दाफाश के कारण योग्य एवं समाजसेवी साधू संत भी संदेह के घेरे में आ रहे है.उनके लिए स्थिति असहज होती जा रही है.
भुत-प्रेत का अस्तित्व सिर्फ वहम है, हमारा मानसिक विकार है, जब हम मानसिक रूप से कमजोर होते हैं, उनका काल्पनिक अस्तित्व हमें परेशान करने लगता है.
अब समय आ गया है की , हम अपनी परम्पराओं, रीती रिवाजों, मान्यताओं का गहन विश्लेषण करें, और तार्किक कसौटी पर खरा उतरने पर ही उन्हें अपनाएं, उनको मान्यता दें. क्योंकि आज प्रत्येक व्यक्ति तर्कपूर्ण सोच पाने में सक्षम है.
यदि हम अपने व्यव्हार में शालीनता एवं इन्सनिअत ला सकें तो धर्म के अनुसरण की आवश्यकता नहीं है. सभी धर्मों की स्थापना इन्सान को समाज में मानवता के दायरे में रखने के लिय हुई है.
हम आज के भौतिक युग में सुविधाओं के सैलाब को तो शीघ्र अपना लेना चाहते हैं, परन्तु जीवन शैली में आ रहे परिवर्तन को हजम नहीं कर पाते.सामजिक परिवर्तनों को देख कर दुखी होते हैं .जब विकास के लाभ उठाने को तैयार है हैं तो कुछ अनैच्छिक परिवर्तनों को भी सहन करने की आदत डालनी चाहिए.

बुधवार, 18 मई 2011

कुछ अनसुलझे प्रश्न

[मेरे नवीनतम लेख अब वेबसाइट WWW.JARASOCHIYE.COM पर भी उपलब्ध हैं,साईट पर आपका स्वागत है.-----------FROM APRIL 2016]



* हम इस संसार में पैदा होते, बढ़ते हैं, जवान होते हैं. फिर वृद्ध हो जाते हैं, अंत में मौत को प्राप्त होते हैं उसके बाद सब कुछ ख़त्म. प्रत्येक जीव के साथ यही होता है, परन्तु क्यों? कोई जीव क्यों पैदा होता है और क्यों मर जाता है? यानि मिटटी से उत्पन्न हो कर मिटटी में ही मिल जाता है.

**प्रत्येक जीव पैदा होता है तो मौत भी निश्चित है. परन्तु कोई भी जीव कभी भी मरना नहीं चाहता. यह भी एक विडंबना है.

***प्रत्येक जीव सूक्ष्म रूप में उत्पन्न होकर स्वतः अपने निश्चित आकार तक विकसित होता है. क्यों और कैसे समझ परे है.

****प्रथ्वी पर मौजूद खनिज भंडार जैसे लोहा,सोना,चांदी,ताम्बा, खानों में कैसे आया और क्यों? कोई तर्क संगत उत्तर उपलब्ध नहीं है.

*****पूरे ब्रह्मांड में जीवधारियों के उपयुक्त वातावरण सिर्फ पृथ्वी पर ही मौजूद होना रहस्य का विषय है. मौसम का स्वतः संतुलन आवश्यकतानुसार गर्मी, सर्दी, बरसात सिर्फ पृथ्वी पर ही है

******ब्रह्माण्ड में मौजूद तमाम गृह-उपगृह कैसे अस्तित्व में आए, आज तक कोई नहीं बता पाया.

*******हमारे सभी धर्मों में ईश्वर की कल्पना की गयी है, परन्तु यह सोच पाने में सफलता नहीं मिल पाई की उस तथाकथित ईश्वरीय शक्ति का उद्भव कैसे हुआ और क्यों?


     {वरिष्ठ नागरिकों की समस्याओं पर आधारित पुस्तक “जीवन संध्या”  अब ऑनलाइन फ्री में उपलब्ध है.अतः सभी पाठकों से अनुरोध है www.jeevansandhya.wordpress.com पर विजिट करें और अपने मित्रों सम्बन्धियों बुजुर्गों को पढने के लिए प्रेरित करें और इस विषय पर अपने विचार एवं सुझाव भी भेजें.}
   

मेरा   इमेल पता है ----satyasheel129@gmail.com

सोमवार, 16 मई 2011

परिवार में पिता और पुत्र संबंधों का महत्त्व

एक ओर पिता जहाँ परिवार का अतीत का आर्थिक रीढ़ था ,तो बेटा, परिवार का आर्थिक आर्थिक आधार होता है.आर्थिक स्रोत के बिना परिवार का अस्तित्व ही खतरे में पड़ जाता है.अतः पिता .पुत्र के संबंधों में सामंजस्य होना अत्यंत आवश्यक है .जो पूरे परिवार के सदस्यों को प्रभावित करते हैं.इसलिए इनके संबंधों में मधुरता बनी रहना भी परिवार के स्वास्थ्य के लिए आवश्यक है।
कभी कभी पिता अपने पुत्र के व्यस्क हो जाने पर भी बच्चे की भांति व्यव्हार करता है.जैसे बात बात पर डांटना,उपदेश देना, और उसके प्रत्येक कार्य में हस्तक्षेप करना इत्यादि। यदि पुत्र उनकी बातों से असहमति व्यक्त करता है, तो उनके अहम् को ठेस पहुँच जाती है.जिसे पिता को सहन नहीं होती .प्रतिक्रिया स्वरूप अपने पुत्र का अपमान करने नहीं चूकता.कहावत है,की जब बेटे के पैर में बाप का जूता फिट आने लगे तो उससे पुत्रवत नहीं मित्रवत व्यव्हार करना चाहिए। पिता इस उसूल को अपना ले तो निरर्थक विवाद से बच सकता है।
पिता को अपना बद्दप्पन दिखाते हुए पुत्र की कुछ गलत बातों को क्षमा करने की भी आदत बनानी चाहिए ।
और बेटे को अपने पिता का सम्मान करते हुए उसकी भावनाओं की कद्र करनी चाहिए.पिता की बात से असहमत होने पर क्रोध न करते हुए विनम्रता पूर्वक से अपना पक्ष रखना चाहिय। अभद्रता, अशिष्टता एवं उपेक्षित व्यव्हार पुत्र के लिए अशोभनीय है.पुत्र को सोचना होगा आज उसके पिता बुजुर्ग के रूप में उसके समक्ष हैं तो कल वह भी अपनी संतान के समक्ष इसी अवस्था में होगा.पिता को दिया गया सम्मान भविष्य में संतान द्वारा प्रदर्शित होगा।
परिवार के सुखद भविष्य के लिए पिता पुत्र को अपने व्यव्हार में शालीनता लाना आवश्यक है।
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सोमवार, 9 मई 2011

परिवार नियोजन कुछ ऐसे भी

हमारे देश में बढती आबादी का बोझ देश के विकास में अवरोध उत्पन्न कर रहा है. विकसित देश के लिए शायद अधिक आबादी की समस्या से भी अधिक जनता की गरीबी की समस्या अधिक है.अक्सर गरीबों के यहाँ संतान अधिक होती है, जो आगे बढ़ कर अशिक्षित अवं गरीबों की संख्या बढ़ाते हैं और देश पर बोझ बनते जाते हैं. यदि इस वर्ग को परिवार नियोजन को इनकी समृद्धि के सन्देश के रूप में प्रेरित किया जाय तो आमिर और गरीब के बीच खाई को कम करने में सहायता मिल सकती है.
इस सन्दर्भ में कुछ सुझाव मेरे भी हैं जो निचे दिए जा रहे हैं.
**सरकार अनेक कार्यक्रम गरीब परिवारों एवं गरीबी की रेखा से नीचे के परिवारों के लिए चलाती रहती है यदि जिस परिवार में एक विशेष दिनांक के पश्चात् परिवार में दो बच्चों से अधिक बच्चे जन्म लेते हैं तो उस परिवार की सभी सरकारी सुवधाएँ ख़त्म कर देनी चाहिए .
***सरकारी कर्मी के परिवार में दो से अधिक संतान होती है तो उसकी दो के अतिरिक्त संतान के लिए जुरमाना लगाया जाय या विभागीय दंडात्मक कार्यवाही की जाय
***किसी भी कौम को एक से अधिक औरत रखने की इजाजत न हो और इसका सख्ती से पालन किया जाय
***जिस गरीब परिवार में मात्र एक संतान हो उसे सरकार की ओर से अतिरिक्त लाभ दिए जाएँ
***बंगला देश से अथवा किसी अन्य देश से आये अवैध व्यक्तियों की पहचान कर देश बहार किया जाय.
***हमारे समाज में परिवार नियोजन को लेकर अनेक भ्रांतियां व्याप्त है, जैसे संतान इश्वर की देन है, या औलाद अल्लाह का वरदान है, परिवार नियोजन अपनाना इश्वर के विरुद्ध है. आदि आदि.इन भ्रांतियों को शिक्षा के द्वारा दूर किया जाना चाहिए.
*** निःसंतान दम्पतियों को कोई बच्चा गोद लेने के लिए प्रेरित किया जाय न की किराये की कोख का साधन

रविवार, 1 मई 2011

क्या हम देश के सभ्य नागरिक हैं.

#हमारी मिल बाँट कर खाने की प्रवृति ख़त्म होती जा रही है, चाहे वह व्यापार हो, नौकरी हो, या फिर नाते रिश्तेदार और भाई बंद. आज प्रत्येक व्यक्ति सिर्फ अपने लिए सोच रहा है, सिर्फ अपने लिए जी रहा है.
#दावतों, पार्टियों में बुफे पद्धति होने के बावजूद अपनी प्लेट में आवश्यकता से अधिक खाना ले लेते हैं और फिर बचाकर फेंक देते हैं, बेकार कर देते हैं.जबकि हमारे देश में ही नहीं दुनिया में करोड़ों लोगों को दोनों समय का भोजन नसीब नहीं होता.
#दुर्घटना वश पड़े घायल व्यक्ति को सिर्फ अपने को कानूनी फंदे से बचाय रखने के कारण सड़क पर छोड़ कर आगे बढ़ जाते हैं. मानवीय मूल्यों को भूल जाते हैं. हमारे देश के कानून एवं पुलिस के व्यव्हार का कमाल है जो आम नागरिक को खौफजदा किये रहता है और मानवीय कार्यों के लिए भी कटघरे में खड़ा कर अपमानित करता है,व्यथित करता है.
#हम अपने स्वार्थ, अपने आर्थिक हितों के लिए हरे भरे पेड़ों को काटने से तनिक भी नहीं हिचकिचाते और पर्यावरण असंतुलन के लिए चुनौती कर देते हैं.
#बिना कानूनी डंडे के हम अपने हित की बात समझने को तय्यार नहीं होते,चाहे वह कार में सीट बैल्ट बांधने की बात हो या फिर मादक पदार्थों के सेवन की,या फिर पब्लिक में खुलेआम धुम्रपान करने की.
# टेलेफोन से लम्बी वार्ता करना ही हमारी शान बन गयी है,जिससे एक तरफ तो आगंतुक कोलर के लिए समस्या बनती है तो दूसरी तरफ अतिरिक्त बिल देकर फिजूल खर्ची होती है. संक्षिप्त वार्ता से भी काम चलाया जा सकता है.
#हम सरकार से अपनी मांगें मनवाने के लिए कभी सड़क जाम कर देते हैं, तो कभी रेलवे ट्रेक पर बैठ कर धरना देते हैं और आम जन जीवन को अस्त व्यस्त करने में जरा भी नहीं हिचकिचाते और तो और अनेकों बार अपने उग्र प्रदर्शनों द्वारा हिंसक वारदातों को अंजाम देते हैं,सरकारी एवं निजी संपत्ति को भरपूर नुकसान पहुंचाते हैं. अपनी मांगों को मनवाने के लिए अहिंसक एवं शांतिपूर्ण लोकतान्त्रिक तरीके भी अपनाये जा सकते हैं.
# त्योहारों को विकृत ढंग से मनाते हैं, जैसे दीवाली पर पटाखे अत्यधिक रूप में चलाना, होली पर होलिका दहन के अवसर पर अंधाधुंध लकड़ी फूंकना, दीवाली पर बिजली का दुरपयोग करना, होली पर हानिकारक रंगों का उपयोग करना, मादक पदार्थों का सेवन करना आदि. जिसके कारण अपने धन के दुरूपयोग के साथ साथ पर्यावरण प्रदूषण के भी हम जिम्मेदार बनते हैं.
#हम अपने बच्चों के साथ अपनी जिम्मेदारी का निर्वहन न करते हुए बच्चों के भविष्य के साथ खिलवाड़ कर रहे हैं. हाल ही हुए सर्वे के अनुसार बड़े शहरों में पच्चीस प्रतिशत किशोर छात्राएं अपनी मर्यादाये तोड़ कर शारीरिक सम्बन्ध बना रहें हैं. टी वी एवं इंटरनेट के चलन एवं अभिभावकों की लापरवाही का नतीजा सामने है.

मंगलवार, 26 अप्रैल 2011

भ्रष्टाचार बनाम सुविधाशुल्क

जैसे ही हमारा देश आजाद हुआ, भ्रष्टाचार भी आजादी पूर्वक अपने पंख फ़ैलाने लगा और धीरे धीरे भ्रष्टाचार ने शिष्टाचार का रूप ले लिया.पता ही न चला कब इस भ्रष्टाचार रुपी शिष्टाचार ने सुविधा शुल्क का रूप ले लिया.और इसे सामाजिक मान्यता मिल गयी. जिसे सरकारी कार्यालयों में अपना काम कराना होता , उन्होंने घूस को सुविधा शुल्क मान कर देना शुरू कर दिया ,तो लेने वाले अधिकारी अपने अधिकार समझ कर घूस लेने लगे. बेचारे दोनों मजबूर थे , घूस देने वाला भी और घूस लेने वाला भी. क्योंकि देने वाले की मजबूरी थी अपने काम को शीघ्र करवाने की , अपने कार्य को अपनी इच्छानुसार कराने की, उसकी मजबूरी थी अपने गलत कार्यों से सजा से बचने की. इसी प्रकार लेने वाले की मजबूरी होती है अपने बच्चों को अच्छे से पालने की, अपने बच्चों को, परिवार को दुनिया की अधिकाधिक सुविधाएँ उपलब्ध कराने की , उसकी मजबूरी होती है अपनी नौकरी बचाने की , उसकी मजबूरी है अफसरों की निगाहों में ऊँचा उठकर अपने भविष्य को सुरक्षित करने की अथवा अपना प्रोमोशन करवाने की, यदि वह घूस नहीं लेगा,तो अफसर को बड़ी रकम दे कर कैसे खुश कर पायेगा, और फिर वह भी तो नौकरी पाने के लिए, पोस्टिंग कराने के लिए मोटी रकम बड़े अधिकारीयों को दे कर आया था. वह खर्च बसूल करना उसकी मजबूरी है.अब क्योंकि की अफसरों तक उसका अंश पहुँचता है तो खौफ कैसा.मिल बाँट कर खाने वे हमेशा सुरक्षित जो रहते हैं.यदि दुर्भाग्यवश किसी सिरफिरे ने घूस लेते हुए पकड़ भी लिया तो भी घूस दे कर छूटने की पूरी सुविधा भी तो है.परन्तु यह भी एक विचारणीय प्रश्न है की अधिकतर लोग भ्रष्टाचार के जाल में मजबूरी में फंसे हुए हैं, यदि उन्हें नौकरी करनी है अपने परिवार पालने हैं तो भ्रष्टाचार से हाथ मिला कर चलना पड़ेगा.
भ्रष्टाचार अब कोई समस्या नहीं रह गयी है, अपरोक्ष रूप से ही सही जनता ने, नौकरशाहों ने और स्वयं सरकार ने इसको मान्यता दे दी है. प्रत्येक कार्य के लिए उचित दर निर्धारित की जा चुकी है और कोई विवादित विषय नहीं रह गया है. परन्तु एक और जिन्ह ने जन्म ले लिया है जिससे सब डर गए हैं, वह जिन्ह जो पूरे के पूरे सरकारी राजस्व को डकारने के लिए मुंह बाये खड़ा है. अर्थात नित खुल रहे मन्त्रीयों द्वारा प्रायोजित घोटाले.पहले जो घोटाले करोड़ों के होते थे धीरे धीरे बढ़ कर हजारों करोड़ तक पहुँच गए हैं,अब तो यह रेकोर्ड भी तोडा जा चुका है घोटालों की रकम लाखों करोड़ हो चुकी है. जिसके सामने सभी पूर्ववर्ती घोटाले बौने लगने लगे है. इन बड़े घोटालेबाजों का पेट इतना बड़ा हो गया है पूरे राजस्व के संग्रह को कुछ ही झटकों में डकारने में समर्थ हैं. आम आदमी की समस्या को हल करने की , उसको समर्थवान बनाने की न तो पहले किसी को चिंता थी और न अब है. अब तो जो देश का विकास होता है उसका लाभ धनवानों को या घोटाले बाजों को ही होता है, वह और अमीर होता जाता है ,गरीब व्यक्ति और भी गरीब होता जा रहा है.भ्रष्टाचार बनाम सुविधा शुल्क ने घोटाले बाज देशों की श्रेणी में सम्मानजनक स्थान प्राप्त कर लिया है.जय भ्रष्टाचार. जय शिष्टाचार जय हिंद

शनिवार, 23 अप्रैल 2011

विश्व में आर्थिक असमानता क्यों ?

पृथ्वी पर समय के साथ सिर्फ मानव ही ऐसा जीव है जो अपनी बुद्धि के बल पर विकास कर सका, और दुनिया के हर क्षेत्र पर अपना अधिपत्य जमा लिया. विकास यात्रा में वह लौह युग से चल कर जेट युग और फिर कंप्यूटर युग में प्रवेश कर गया.अफ़सोस यह है की आज भी अनेक देशों के करोडो लोग ऐसे हैं जिन्हें जीवन की सभी आवश्यकताओं की पूर्ती के लिए साधन उपलब्ध नहीं हैं. कुछ लोगों को तो दो वक्त की रोटी भी नसीब नहीं हो पाती, जबकि एक वर्ग ऐसा भी है जो आवश्यकताओं से अधिक साधनों से संपन्न है.इसी प्रकार विश्व में अनेक देश कहीं अधिक संपन्न है जो अपने नागरिकों की सभी आवश्यकताओं को पूरा कर पाने में सक्षम हैं.और कुछ देश बहुत गरीब हैं.जहाँ हर वर्ष भूख से अनेकों जानें चली जाती हैं.
उन देशों के प्रत्येक नागरिकों का जीवन स्तर एवं देश का बुनियादी ढांचा अन्य गरीब या अविकसित देशों के मुकाबले जमीन असमान के अंतर लिए हुए है.ये देश विकसित दशों की श्रेणी में आते हैं और अन्य देशों को गरीब मुल्क कहा जाता है.
आखिर विकसित देशों और अविकसित देशों में ऐसा क्या है जो इतना बड़ा अंत दिखाई देता है, क्यों कुछ देश पहले विकसित हो गए और अन्य देश अपने नागरिकों के लिय भोजन की व्यवस्था भी नहीं कर पाए . इतनी बड़ी खाई (असमानता) का कारण क्या है. क्या गरीब मुल्कों के पास प्राकृतिक संसाधनों का अभाव है ?क्या गरीब मुल्कों के लोग महनत नहीं करना चाहते?क्या गरीब मुल्क में बुद्धिमान लोग पैदा नहीं होते. आखिर क्यों विकसित देशों के मुकाबले में विकसित नहीं हो पाए.क्या वे अनुसन्धान कर पाने में अक्षम हैं? क्या उन देशों की बढती आबादी देश को विकसित होने में रूकावट बन रही है? क्या उन देशों की जलवायु या प्राकृतिक वातावरण उन्हें पनपने नहीं देता?
उपरोक्त सभी प्रश्नों का उत्तर सिर्फ न है. मानवीय विकास में असमानता क्यों? कारण है जो विकसित देश हैं वे या तो धनवानों द्वारा बसाये गए वे मुल्क हैं, जो स्थानीय जाति को नष्ट कर स्वयं काबिज हो गए, दूसरे वे देश हैं जिन्होंने सैंकड़ों वर्षों तक विश्व के अनेक देशो को गुलाम बनाकर रखा और उनकी धन दौलत से अपने देशों को मालामाल कर दिया अर्थात गुलाम देशों के वाशिंदों द्वारा की गयी कमाई ने इन देशों को आमिर बना दिया.वर्तमान सन्दर्भ में जब विश्व में लगभग सभी देश स्वतन्त्र हो गए हैं तो भी विकसित देश अनेक अड़ंगे लगा कर उनको विकसित होने से रोकते हैं या वे अपनी धन दौलत का रोब जमा कर कुछ विकास शील देशो को उभरने से रोकते रहते है, दो विकास शील देशों को आपस में लडवा कर अपना उल्लू सीशा करते हैं..अब कई देश, अपने दम पर विकास की ओर धीरे धीरे लौटने लगे हैं और अब ऐसा लगता है की विश्व में समानता परचम शीघ्र ही लहराएगा.परन्तु विश्व में असामनता का मुख्य कारण कुछ देशों द्वारा अपनाये जा रहे अमानवीय कार्य हैं.जो मानवता के अभिशाप बने हुए हैं.विकसित देशों को मानवता के दायरे में सोच कर पूरी मानव सभ्यता के कल्याण के लिए कार्य करना चाहिए.

रविवार, 17 अप्रैल 2011

हर शाख पर उल्लू बैठा है.

हर शाख पर उल्लू बैठा है. देश को गुलामी से निजात मिलने के पश्चात् हमारे नेताओं का इतना अधिक नैतिक पतन हो गया है, की अब हमारा देश दुनिया में घोटालों का देश के नाम से प्रसिद्द हो रहा है. जनता का आक्रोश उभर कर आया, श्री अन्ना.जी के आमरण अनशन के रूप में.और फिर अपार जान समूह अन्ना जी के समर्थन में भ्रष्टाचार की लड़ाई के लिए उठ खड़ा हुआ. अन्ना जी ने देश को एक दिशा प्रदान कर उम्मीद की किरण दिखाई है. उन्होंने बताया किस प्रकार देश व्यापी भ्रष्टाचार से मुक्ति मिल सकती है. देश को कैसे न्यायप्रिय,इमानदार शासन, प्रशासन उपलब्ध कराया जा सकता है. आज देश का प्रत्येक नागरिक नित ने खुल रहे करोडो रुपयों के घोटालों से सकते में है, व्यथित हैं,निराश है.परन्तु हमारे नेता हमारे नौकर शाह जनता से बेखबर अपनी तिजोरियां भरने में व्यस्त हैं. वे व्यस्त हैं अपने दश की अपार सम्पदा को विदेशी बैंकों में जमा कराने में, अपनी आगे आने वाली सात पीढ़ियों का भविष्य सुरक्षित करने में. परन्तु क्या सिर्फ नौकरशाहों एवं राजनेताओं को ही भ्रष्ट कहना उचित होगा ?आम जनता भी अनैतिकता के गर्त में डूब चुकी है. आज स्थिति यह बन गयी है जहाँ जिसका जिस प्रकार भी दांव लगता है छोड़ना नहीं चाहता .प्रत्येक व्यक्ति धन का उपासक बन चुका है,अब उसके लिए चाहे हिंसा का सहारा लेना पड़े या फिर किसी का शोषण करना पड़े ,सब कुछ जायज हो चुका है. देश के लिए, समाज के लिए, कानून पालन के लिय कोई भी सोचने को तैयार नहीं है. एक फैक्ट्री मालिक हो या दुकानदार, नकली,मिलावटी वस्तुएं बनाने एवं बचने से नहीं हिचकता,फिर चाहे मिलावट की वस्तु या नकली वस्तु के कारण किसी की जान भी चली जाय तो क्या? एक मिस्त्री किसी भी उपकरण की रिपेयर करता है,तो मजदूरी के अतिरिक्त झूंठे बिल द्वारा ग्राहक की जेब काटना अपने व्यवसाय का हिस्सा मानता है, एक डॉक्टर अपनी आमदनी के लालच में मरीज को अनावश्यक पथोलोजी टेस्ट की सलाह देकर कमीशन बटोरता है,या फिर मरीज को बेवजह ओप्रशन की टेबल तक ले जाता है.,एक वकील अपनी ऊंची फीस पाने के लिए बेगुनाह को सजा दिला कर गर्व का अनुभव करता है,छोटे से छोटे से स्तर का व्यक्ति भी सरकारी कार्यालयों में अपना काम जल्दी कराने के लिए सरकारी कर्मचारी को लालच देता है,उसे घूस देने की पेशकश करता है ,मतदाता अपने मत की कीमत वसूल कर किसी को भी चुनाव जीता देता है. कुल मिला कर भ्रष्टाचार,लूट,चोरी,अनैतिकता हर जगह पर मोजूद है. सिर्फ नेताओं एवं भ्रष्ट नौकरशाहों को सुधारने से ही काम चलने वाला नहीं है.आवश्यकता है,सुधार ऊपर से लेकर निचले स्तर तक हो, आम आदमी की मानसिकता में बदलाव हो,उसे अपने व्यवसाय में इन्सनिअत को जोड़ना होगा,उसे देश के कानून, देश के सम्मान की रक्षा करनी होगी. बिजली चोरी,मुफ्त रेल यात्रा टैक्स अपवंचन जैसे नैतिक अपराधों से स्वयं को मुक्त करना होगा. तब ही देश खुशहाल एवं विकसित देशों की श्रेणी में आ सकेगा.

सोमवार, 11 अप्रैल 2011

यह शमा बुझनी नहीं चाहिए

यह हमारे देश वासियों का सौभाग्य है,की बहुत समय पश्चात् देश को निःस्वार्थ सेवक के रूप में अन्ना हजारे का सहयोग मिला.उनके आमरण अनशन के आन्दोलन को जिस तीव्रता से देश को करोडो लोगों का समर्थन मिला,उतनी ही तीव्रता से सरकार डोलने लगी. परिणाम स्वरूप जन लोक पाल बिल लाने की घोषणा करनी पड़ी. अन्ना जी की सभी मांगों को मानने को विवश होना पड़ा.परन्तु अभी हमें बहुत अधिक खुश नहीं होना चाहिए हमें सावधान होना होगा,वर्तमान कुटिल नेताओं की चालों से. हमें सावधान रहना होगा, रणनीति निर्माताओं के झूठे मनलुभावन वायदों से.हमें सतर्क रहना होगा घोटालेबाजों के दांव पेंचों से .क्योंकि अपने आर्थिक हितों को कोई भी आसानी से छोड़ना नहीं चाहेगा. कोई नेता,मंत्री स्वयं अपने पैरों पर कुल्हाड़ी क्यों मारना चाहेगा,जो वे ऐसे कानून बना लें जिससे उन्हें जेल की हवा खानी पड़े. अतः उन पर दवाब बनाय रखना पड़ेगा. आज जिस शमा को अन्नाजी ने जलाया है उसे लगातार संघर्ष के द्वारा जलाय रखना होगा .इसके साथ ही अपने समाज में व्याप्त अनैनिकता,हिंसा अत्याचार बलात्कार जैसे भ्रष्ट आचरणों को निकल फैंकना होगा .तब ही भ्रष्ट तंत्र से छुटकारा मिल पायेगा. और एक सभ्य प्रगतिशील समाज का उदय हो पायेगा.मानवता की रक्षा हो सकेगी

शुक्रवार, 8 अप्रैल 2011

अन्ना हजारे का आन्दोलन या विचार क्रांति

अन्ना जी के आमरण अनशन के बाद जो देश भर में उनके समर्थन में जान सैलाब उम्ड़ा है वह जनता के आक्रोश एवं असन्तोष का प्रतीक है.देश का प्रत्येक नागरिक नेताओं के नित् नय खुलते घोटालों से खुद को ठगा स अनुभव कर रहा है,परन्तु उसे अवश्यकता थी एक ऐसे प्रतिनिधित्व की जो जनता को साथ लेकर चल सके,आन्दोलन की दिशा तय कर सके. सत्ता पर कबिज नेताओं की फौज इस प्रकार कुण्डली मारे बैठी है , उनके विरोध खडे होने वाले व्यक्ति की जुबान को येन केन प्रकारेण दबाते आए हैं परन्तु अन्ना हजारे एक एसी शक्सियत हैं जिनकी अवाज को नजर अन्दाज कर पाना आसान नही है.आपने पहले भी अपने गांव के विकास से लेकर सुचना अधिकार कानून लागू करने तक लम्बा संघर्ष किया है,और सफलता पूर्वक अपना उद्देश्य पूरा किया है. आज एक बार फिर अन्ना साहेब ने जन लोकपल बिल लाने के लिए आमरण अनशन प्रारम्भ कर जनता को आशा की किरण दिखायी है,जनता को दिशा दी है संघर्ष करने की. लोकतन्त्र में जनता ही देश की मालिक होती है अतः यदि मालिक ही निष्क्रिय रहेगा तो पहरेदार तो मलाई चाट्ते रहेंगे. आम आदमी यही सोचता रहेगा की मेरे करने से क्या हों जयगा, मेरे आगे बढ्ने से मेरा क्या भला होगा, सिर्फ संकीर्ण सोच की निशानी है.जब देश उन्नति करेगा तो लाभ सभी को मिलेगा. जीवन स्तर सभी का उठेगा. वर्तमान में नेताओं द्वारा विदेशों किया रहा जमा पैसा जनता की जागरुकता के अभाव की देन है. अब प्रत्येक नागरिक का कर्तव्य बनता है की हजारे साहेब द्वारा शुरु की विचार क्रान्ति एवं आन्दोलन की ज्वाला को बुझने न दें.जब तक की भ्रष्ट नेता जेलों में नहीं पहुँच जाते और देश को साफ सुथरी व्यवस्था नही मिल जाती. यह लडाई हम सबकी लडाई है,यह लडाई हम सबके भले की लडाई है. --

मंगलवार, 5 अप्रैल 2011

अन्ना हजारे तुम जियो हजारो साल

अन्ना हजारे के आमरण अनशन एवं उनके नेक कार्य के समर्थन मे उठने वाले जन सैलाब् से आभास होने लगा है,देश की एक सौ इक्कीस करोड जनता के दिन बहुरने वाले हैं। शीघ्र ही जनता को भ्रष्ट नेता एवं भ्रष्ट तन्त्र से निजात मिलने की संभावना बन गयी है। अब तो हमे अपनी सोच मे बदलाव लाना होगा जैसे हमारी धारणा बन गयी है नैतिक पतन की पराकाष्ठा के युग मे वही व्यक्ति ईमान दार है जिसे बेइमानी का अवसर प्राप्त नही हुआ ।आज भी देश मे अनेकों ईमानदार, देश भक्त लोग मौजूद् है जो सिर्फ़ अपना नही सबका कल्याण चाहते हैं, सबके लिये लड्ते लड्ते अपनी जान देने से भी पीछे नही हटते ।हमारे अन्ना जी के प्रयास ,उनका संघर्ष, उनकी कार्य शैली एक ज्वलन्त उदहारण के रूप मे हमारे सामने है।जो समाज की दिशा बदलने में सक्षम हैं. --

रविवार, 3 अप्रैल 2011

लघु उद्योग और महा उद्योग

               स्वतंत्रता प्राप्ति के पश्चात् हमारे देश में गाँधी जी के सिधान्तों से प्रभावित हो कर ,कुटीर उद्योग अवं छोटे उद्योग तथा मझोले उद्योगों को विकसित करने का बीड़ा उठाया गया.विदेशी माल के आयात को प्रतिबंधित कर दिया गया.ताकि देसी उत्पादन देसी मार्केट में बिक सके और कुटी उद्योग पनप सके.परन्तु तेजी से बढती मशीनीकरण की प्रोद्योगिकी के कारण,हमारे देश के उत्पादन की गुणवत्ता एवं कीमत के अनुसार अंतर्राष्ट्रीय मंच पर निर्यात में पिछड़ने लगा. धीरे धीरे हमारी अर्थ व्यवस्था उन्नति के स्थान पर अवनति करने लगी और विदेशी कर्ज का बोझ बढ़ने लगा. १९९० में यह हालत हो गयी की देश की तेल उत्पादित वस्तुओं की आपूर्ति के लिए रिजर्व बैंक को टनों सोना गिरवी रखना पड़ा. जो किसी भी देश और सरकार के लिय शर्मनाक स्तिथि थी.इस स्तिथि ने हमारे रणनीतिकारों को अपनी ओद्योगिक निति पर पुनर्विचार करने के लिय मजबूर कर दिया और उदारीकरण की निति की घोषणा करनी पड़ी. इस उदारीकरण ने जहाँ विश्व के बड़े बड़े कारखानों को अपने देश में लगाने के लिए आमंत्रित किया, दूसरी और देश को रोजगार के अवसर प्राप्त हुए. और देश के उत्पादों को निर्यात करने के मौके मिले,विदेशी मुद्रा भंडार में बढ़ोतरी होनी प्रारम्भ हो सकी. देश के परंपरागत उद्योगों को उच्च गुणवत्ता बनाये रखने के लिय प्रतिस्पर्धा का वातावरण बन पाया. उदारीकरण नीति के अंतर्गत श्रम कानूनों को अंतर्राष्ट्रीय स्तर के अनुसार संशोधन किया गया. बड़े कारखानों ने जहाँ कुटी उदुओगों को नुकसान पहुँचाया, दूसरी ओर बेरोजगारों को रोजगार के अवसर उपलब्ध कराय.साथ ही उच्च वेतनमान देकर आम व्यक्ति को उच्च जीवन शैली अपनाने को प्रेरित किया. आम आदमी को उच्च गुणवत्ता वाली वस्तुएं उपलब्ध हो सकीं तस्करी को विराम लग सका वर्तमान में आधुनिक विकास ने कुटीर उद्योगों एवं लघु उद्योग का सिद्धांत अप्रासंगिक कर दिया है.
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शनिवार, 2 अप्रैल 2011

*नारी उत्थान अभियान * April 2011

#प्रत्येक जीव की भांति मानव भी दो अवस्थाओं में पैदा होता है। अर्थात नर एवं मादा। परन्तु सभी जीवों को छोड़कर सिर्फ मानव समाज ही महिलाओं के साथ पक्षपातपूर्ण व्यव्हार करता है। उसे दोयम दर्जे का स्थान देता है।आखिर क्यों?क्योंकिनारी पुरुष के मुकाबले कम बलवान है, माना कुछ हद तक वह कम शक्तिशाली है, परन्तुमातृत्व शक्ति का वरदान जो उसे मिला हुआ है क्या वह पुरुष के पास है?फिर उसे क्यों समय समय पर अपमानितकिया जाता है, उसे प्रताड़ित किया जाता है, उसे अबला माना जाता है?

#दहेज़ की चिंता के वशीभूत होकर माता-पिता आज भी अपनी बेटी को उसकी योग्यता के अनुसार उच्च शिक्षादिलाने से कतराते हैं। क्योंकि अधिक शिक्षित लड़की के लिए उच्च शिक्षित वर्ग का लड़का चाहिए, जिसके लिएअधिक दहेज़ की आवश्यकता होगी।

#हिन्दू एवं मुस्लिम समाज में आज भी महिलाओं के साथ पक्षपातपूर्ण व्यव्हार किया जाता है,क्यों?

#नारी के उत्थान में सबसे बड़ी बाधा स्वयं नारी (सास-ननद,जेठानी-देवरानी,इत्यादि) ही बनी हुई है.जब महिलाही महिला के प्रति संवेदनशील नहीं होगी तो नारी उत्थान कैसे संभव होगा। उसे समानता का अधिकार कैसेमिलेगा?

#क्या हम दावे के साथ कह सकते हैं की महिला को आजादी के तरेसठ वर्ष पश्चात् समानता के अधिकार प्राप्त होगए हैं,नारी शोषण समाप्त हो चुका है,सही अर्थों में महिला को सम्मान मिलने लगा है। मेट्रो शहरों में चलने वालीपब्लिक ट्रांसपोर्ट में महिलाओं का सफ़र करना आज भी सुरक्षित हो पाया है?

#क्या महिला को आज भी खेलने की वस्तु या छेड़ने का सामान नहीं समझा जाता? उसे उपभोग की चीज मान करविज्ञापनों में प्रदर्शित नहीं किया जाता?प्रत्येक बड़ी कंपनी या छोटी सभी में आगंतुकों के आदर सत्कार के लिए रिसेप्निष्ट के तौर पर महिला को ही भरती किया जाता है क्यों ?एयर होस्टेस के पद पर महिला ही क्यों ?
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गुरुवार, 31 मार्च 2011

इन्सानिअत का धेर्म -1-4 2011

1 जीवित बुजुर्ग को बीते वेर्ष का केलेंडर समझ केर उसकी मौत की प्रतीक्षा करना ,परन्तु मरणोपरांत अश्रुपूरित नेत्रों से श्राद्ध का आयोजन करना ,महेज एक नाटक नहीं तो और क्या है ?
२,जीवन में एक हज यात्रा कर लेने से जेन्नत का रास्ता मिल जाता है ,गंगा में स्नान करने अथवा राम का जप करने से पापों से यानि दुष्कर्मों से मुक्ति मिल जाती है । क्या इस प्रकार की धार्मिक मान्यतायं अपरोक्ष रूप से इन्सान की दुष्कर्मों के लिए प्रेरणा स्रोत नही बन जाती ?
३,मुस्लिम धेर्म में रमजान के माह में सयंमित भोजन धारण कर शरीर को नई ऊर्जा से स्फूर्त किया है साथ ही अलग अलग मौसम में भूखे प्यासे रहकर सहन शक्ति की वृधि होती है ।
४,किसी नदी में स्नान करने का अर्थ है ,प्रकृति की गोद में स्नान करना । जहाँ पर मानव शरीर एक साथ पांचों तत्त्व अर्थात अग्नि, प्रथ्वी, जल, वायु अवं आकाश के सम्पर्क में आता है । यदि प्रदूषित जल स्वास्थ्य का दुश्मन बन कर न खड़ा हो।
५,इतिहास गवाह है धार्मिक वर्चस्व के लिए बड़े बड़े युद्घ लेर्हे गए ,आज भी विश्व व्याप्त आतंकवाद के रूप में धार्मिक छद्म युद्घ जारी है।
६वेश्विकरन के इस युग में कोई भी देश अपने दम पर विकास की सीर्ही नहीं चढ़ सकता । अतः धार्मिकता के स्थान पर इन्सानिअत को महत्त्व देना समय की आवश्यकता बन गई ह

शुक्रवार, 25 मार्च 2011

गौरक्षा कैसे हो ?

धार्मिक ग्रंथो में वर्णित संदर्भो का हवाला देते हुये,गाय को माता का स्थान दिया जाता है और उसकी समय समय पर पूजा की जाती है.समाज कि इसी मनोवृत्ती के कारण गौरक्षा के अनेक आंदोलन चलाये जाते रहे है .परंतु इन आंदोलनो को कभी भी सार्थक रूप नहीं दिया गया. कुछ स्वार्थी लोग समाज कि धार्मिक भावना का लाभ अपने धनार्जन के लिये उठाते रहे हैं..
धर्म ग्रंथो में गाय को माता के रूप में पूजने का एक उद्देश्य था . क्योंकी गाय के दूध,गोबर,मूत्र सभी मानव स्वास्थ्य के लिये लाभदायक हैं .सभी वस्तुये दवा में भी प्रयोग कि जाती हैं . अतः आम जनता को गाय के पूजने का कारण बताना, उनका उपयोग करने के लिये प्रेरित करना आवश्यक है. सिर्फ गाय को माता मानकर पूज लेने से कोई भला नहीं होने वाला. सिर्फ आस्था के नाम पर धन बटोरना जनता के साथ धोका है.
यदि वास्तव में गौरक्षक गौरक्षा के हितैषी हैं.,तो जहाँ हजारों गाय रोजाना मीट के लिय काट दी जाती हैं, ,उनके खिलाफ आंदोलन क्यो नही चलाये जाते.गलियों में घुमती गायो के कल्याण के लिय तथाकथित गौरक्षक क्या करते हैं .गायो के दूध से समाज को लाभ पहुँचाने के लिये गाय कि नस्ल को सुधारने के प्रयास क्यों नहीं किये जाते ,ताकी गाय पालकों के लिये गाय का दूध बेचना लाभप्रद हो सके और जनता को गाय के दूध का लाभ प्राप्त हो सके.
सिर्फ गौशाला एवं गौरक्षा के नाम पर धार्मिक भावना को नक्दीकरण करना अन्याय है, धोखा है,जनता को भ्रमित करना है. जनता को गाय पूजने से लाभ होने वाला नही है.बल्की उसके दूध के सेवन से स्वास्थ्य लाभ मिल सकता है. अतः तथाकथित गौराक्षकों को नाटक बंद करना होगा और समाज के हित में कार्य करना होगा.


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रविवार, 20 मार्च 2011

रेडियशन की चुनौती

जिस प्रकार जापान में रेडियो एक्टिव धर्मिता यानि रेडियेशन ने मानव जीवन के लिए खतरा उत्पन्न कर दिया है। जहाँ पानी एवं दूध के साथ साथ सभी खाद्यपदार्थ रेडियशन से प्रदूषित हो चुके हैं। करोड़ों इंसानों के वर्तमान एवं भावी जीवन पर प्रश्नचिन्ह लग गए हैं, एक गंभीर विषय बन गया है। आधुनिकता की दौड़ में हमने स्वयं अपने लिए कितने जोखिम उत्पन्न कर लिए है।
आज अनेक देशों के पास एटम बमों का जखीरा भरा पड़ा है, कभी भी कोई सनकी उनका प्रयोग कर मानवता के साथ खिलवाड़ कर सकता है। इसके अतिरिक्त सभी देशों में एटोमिक पावर प्लांट चल रहें हैं। अतः जापान जैसी विपदा से कोई भी देश कभी भी जूझने को मजबूर हो सकता है। यद्यपि वैज्ञनिकों ने एटोमिक प्लांट कर्मियों के लिए रेडियशन से बचने और उनके खाद्य सामग्री को प्रदूषित होने से बचाने के उपाय कर रखे होंगे. परन्तु अब आवश्यकता है आम जनता के लिए रेडियशन मुक्त खाद्य पदार्थों की पेक्किंग की व्यवस्था की जाये ताकि भविष्य में कभी भी कोई जापान जैसी गंभीर स्तिथि आए तो जनता को असहज स्तिथि से न जूझना पड़े। और खाने पीने की व्यवस्था बनी रहे,दूध मुहे बच्चे काल के गाल में जाने से बच सकें। अन्य बचाव साधन भी पहले से उपलब्ध कराए जायं, और जनता को प्रशिक्षण देकर जागरूक किया जाये.

शनिवार, 19 मार्च 2011

सोचना तो पड़ेगा

*भारत में सेकुलरवाद के नाम पर कट्टरपंथी तत्वों को संरक्षण और प्रोत्साहन दिया जाता है,जबकि खुद सकुलर्वाद के लिए इस्लाम में कोई जगह नहीं है.
*एक ही देश में धर्मनिरपेक्षता का उदाहरण है, हिन्दू विवाह अधिनियम और मुस्लिन पर्सनल ला . आखिर धर्म के नाम पर अलग अलग कानून क्यों ? मुस्लिम ला एवं शरियत कानून के अनुसार १५ वर्ष में मुस्लिम लड़की को व्यस्क माना जाता है.
*धर्म के ठेकेदार नहीं चाहते की जनता में शिक्षा का प्रचार प्रसार हो क्योंकि अशिक्षित जनता ही उनके धर्म का पालन आसानी से कर लेती है,और उनका वर्चस्व बना रहता है.
*हमारे धर्माधिकारी कहते हैं की हमारे धर्म शास्त्रों का अस्तित्व आदिकाल से है, जब इन्सान बोलना, लिखना, पढना भी नहीं जनता था फिर उपरोक्त कथन कितना सत्य है?.
*ज्ञात स्रोतों से सिद्ध हो चुका है, लोहे का अविष्कार तीन हजार वर्ष पूर्व हुआ था, तो क्या रामायण के समय में बिना लोहे के पुष्पक विमान बन गया था.और अन्य हथियार भी बिना लोहे के बनते थे? .महाभारत का युद्ध बिना लोहे के हथियरों से लड़ा गया होगा, क्या ऐसा संभव है?. इससे तो यही सिद्ध होता है रामायण एवं महाभारत की कथाएं काल्पनिक हैं.
*हम इस संसार को ईश्वर ,खुदा या गोड की रचना मानते हैं, परन्तु उस ईश्वर,खुदा,गोड का अस्तित्व कैसे हुआ, क्यों हुआ, क्या कम रहस्य्कारी है?
*आज के वैज्ञानिक युग में जब जनता को नियंत्रित करने के लिए पर्याप्त साधन उपलब्ध हैं तो धर्माधिकारियों को मानव जीवन में दखलंदाजी करना कितना तर्कसंगत है?

गुरुवार, 17 मार्च 2011

इन्सानिअत का महत्त्व क्यों

१.जीवित बुजुर्ग को बीते वेर्ष का केलेंडर समझ कर उसकी मौत की प्रतीक्षा करना ,परन्तु मरणोपरांत अश्रुपूरित नेत्रों से श्राद्ध का आयोजन करना ,महज एक नाटक नहीं तो और क्या है ?
२,जीवन में एक हज यात्रा कर लेने से जन्नत का रास्ता मिल जाता है ,गंगा में स्नान करने अथवा राम का जप करने से पापों से यानि दुष्कर्मों से मुक्ति मिल जाती है । क्या इस प्रकार की धार्मिक मान्यताएं अपरोक्ष रूप से इन्सान की दुष्कर्मों के लिए प्रेरणा स्रोत नही बन जाती ?
३,मुस्लिम धेर्म में रमजान के माह में सयंमित भोजन धारण कर शरीर को नई ऊर्जा से स्फूर्त किया है साथ ही अलग अलग मौसम में भूखे प्यासे रहकर सहन शक्ति की वृद्धि होती है ।
४,किसी नदी में स्नान करने का अर्थ है ,प्रकृति की गोद में स्नान करना । जहाँ पर मानव शरीर एक साथ पांचों तत्त्व अर्थात अग्नि, प्रथ्वी, जल, वायु अवं आकाश के सम्पर्क में आता है । यदि प्रदूषित जल स्वास्थ्य का दुश्मन बन कर न खड़ा हो।
५,इतिहास गवाह है धार्मिक वर्चस्व के लिए बड़े बड़े युद्घ लड़े गए ,आज भी विश्व व्यापी आतंकवाद के रूप में धार्मिक छद्म युद्घ जारी है।
६वेश्विकरन के इस युग में कोई भी देश अपने दम पर विकास की सीढ़ी नहीं चढ़ सकता । अतः धार्मिकता के स्थान पर इन्सानिअत को महत्त्व देना समय की आवश्यकता बन गई है।