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रविवार, 29 जनवरी 2012

नारी स्वयं नारी के लिए संवेदनहीन क्यों?

यह तो सभी जानते हैं हमारे देश में महिला समाज को सदियों से प्रताड़ित किया जाता रहा है . उसे सदैव पुरुष के हाथों की कठपुतली बनाया गया.उसे अपने पैरों की जूती समझा गया.उसके अस्तित्व को पुरुष वर्ग की सेवा के लिए माना गया . परन्तु आधुनिक परिवर्तन के युग में समाज के शिक्षित होने के कारण महिला समाज में भी अपने अधिकारों के प्रति जागरूकता का संचार हुआ और महिला समाज को उठाने ,उसके शोषण को रोकने एवं समानता के अधिकार को पाने के लिए अनेक आन्दोलन चलाये गए अनेक महि
ला संगठनों का निर्माण हुआ महिला समाज ने अपने शोषण के विरुद्ध आवाज उठाई , और समानता के अधिकार पाने के लिए संघर्ष प्रारंभ किया . यद्यपि महिलाओं की स्तिथि में बहुत कुछ परिवर्तन आया है ,पुरुष वर्ग की सोच बदली है .परन्तु मंजिल अभी काफी दूर प्रतीत होती है.अभी भी सामाजिक सोच में काफी बदलाव लाने की आवश्यकता है . शिक्षा के व्यापक प्रचार प्रसार के बावजूद आज भी महिलाओं की स्वयं की सोच में काफी परिवर्तन लाने की आवश्यकता है .उनकी निरंकुश सोच महिलाओं को सम्मान दिला पाने में बाधक बनी हुई है .नारी स्वयं नारी का सर्वाधिक अपमान एवं शोषण करते हुए दिखाई देती है .
कुछ ठोस प्रमाण नीचे प्रस्तुत हैं जो संकेत देते हैं की महिला अपने तुच्छ स्वार्थ के लिए अपने महिला समाज का कितना अहित करती रहती हैं ?
उदहारण संख्या एक
हमारे समाज में मान्यता है “पति परमेश्वर होता है ,अतः उसकी सभी गलत या सही बातों का समर्थन करना पत्नी का कर्त्तव्य है ” इस मान्यता को पोषित करने वाली महिला , जो ऑंखें मूँद कर अपने पति का समर्थन करती है .उसे यह नहीं पता की वह स्वयं अपने पैरों पर कुल्हाड़ी मार रही है . क्योंकि ऐसी महिलाएं अपरोक्ष रूप से पुरुष को चरित्रहीन बनाने एवं महिलाओं के शोषण का मार्ग प्रशस्त कर रही होती हैं .
बहु चर्चित सिने जगत से जुड़े शाईनी आहूजा कांड से सभी परिचित हैं .जिस पर अपनी पत्नी की अनुपस्थिति में अपनी नौकरानी के साथ बलात्कार करने का आरोप सिद्ध हो चुका है .और सात वर्ष की कारावास की सजा भी सुनाई जा चुकी है .उसकी ही पत्नी ने बिना ठोस जानकारी प्राप्त किये या तथ्यों का पता लगाय, अपने पति को सार्वजानिक रूप से अनेकों बार निर्दोष बताती रही बल्कि उसने इसे एक षड्यंत्र का परिणाम बताया .क्या उसे नौकरानी के रूप में एक महिला का दर्द नहीं समझ आया .बिना सच्चाई जाने महिला का विरोध एवं पति का समर्थन क्यों ?क्या यह अपने तुच्छ स्वार्थ के लिए पति के व्यभिचार पर पर्दा डालना उचित था ?क्या इस प्रकार से नारी समाज को शोषण से मुक्ति मिल सकेगी ?क्या पुरुष वर्ग अपनी सोच में बदलाव लाने को मजबूर हो पायेगा ?
उदाहरण संख्या दो ;
अनेक लोगों के दांपत्य जीवन में ऐसी स्तिथि बन जाती है की उनके संतान नहीं होती क्योंकि किसी कारण पति या पत्नी संतान सुख पाने में असमर्थ होते हैं. इसका कारण पति या पत्नी कोई भी हो सकता है. परन्तु हमारे समाज में दोषी सिर्फ महिला को ठहराया जाता है .परिवार की महिलाएं ही जैसे जिठानी ,सास या फिर ननद , उसे बाँझ कहकर अपमानित करती हैं .ये महिलाएं अपने घर की महिला सदस्य के साथ अन्याय एवं अमानवीय व्यव्हार करने में जरा भी नहीं हिचकिचाती .और तो और वे पोता या पोती की चाह में पुत्र वधु से पिंड छुड़ाने के अनेकों उपक्रम करती हैं .उस पर झूंठे आरोप लगाकर समस्त परिवार की नज़रों में गिराने का प्रयास करती हैं .यदि सास कुछ ज्यादा ही दुष्ट प्रकृति की हुई , तो उसकी हत्या करने की योजना बनाती है , या उसे आत्महत्या करने के लिए करने उकसाती है .ताकि वह अपने बेटे का दूसरा विवाह करा सके . यही है एक महिला की महिला के प्रति बर्बरता का व्यव्हार ..
अगर वह मानवीय आधार पर सोचकर समाधान निकलना चाहे तो अनाथ आश्रम से या किसी गरीब दंपत्ति से बच्चा गोद लेकर अपनी उदारता का परिचय दे सकती है .इस प्रकार से किसी गरीब का भी भला हो सकता है , और परिवार में बच्चे की किलकारियां भी गूंजने लगेंगी . साथ ही महिला सशक्तिकरण का मार्ग भी पुष्ट होगा, और मानवता की जीत .
उदाहरण संख्या तीन
परिवार में लड़का हो लड़की , माता या पिता के हाथ में नहीं होता .परन्तु यदि परिवार में पुत्री ने जन्म लिया है तो जन्म देने वाली मां को ही जिम्मेदार माना जाता है .अर्थात एक महिला ही दोषी मानी जाती है ..यदि किसी महिला के लगातार अनेक पुत्रियाँ हो जाती हैं तो उसका अपमान भी शुरू हो जाता है .एक प्रकार पुत्री के रूपमें महिला के आने पर एक मां के रूप में महिला को शिकार बनाया जाता है . मजेदार बात यह है ,उस मां के रूप में महिला का अपमान करने वालों में परिवार की महिलाएं यानि सास ,ननद ,जेठानी इत्यादि ही सबसे आगे होती हैं . यदि घर की वृद्ध महिला चाहे तो परिवार में आयी बेटी का स्वागत कर सकती है .एक महिला के आगमन पर जश्न मना सकती है .और पुरुष वर्ग को कड़ी चुनौती दे सकती है .जब एक महिला ही एक महिला के दुनिया में आगमन पर स्वागत नहीं कर सकती तो पुरुष वर्ग कैसे उसे सम्मान देगा?.
कन्या भ्रूण हत्या भी महिला समाज का खुला अपमान है ,जो बिना नारी (जन्म देने वाली मां )की सहमति के संभव नहीं है .भ्रूण हत्या में सर्वाधिक पीड़ित महिला ही होती है . अतः परिवार की सभी महिलाएं यदि भ्रूण हत्या के खिलाफ आवाज उठायें तो पुरुष वर्ग कुछ नहीं कर पायेगा . उसे पुत्री के रूप में संतान को स्वीकारना ही पड़ेगा . महिला के आगमन (बेटी ) का स्वागत सम्पूर्ण महिला वर्ग का सम्मान होगा .
उदाहरण संख्या चार ;
किसी परिवार में जब कोई उच्च शिक्षा प्राप्त बहु आती है तो परिवार की वृद्ध महिलाओं को अपने वर्चस्व के समाप्त होने का खतरा लगने लगता है , उन्हें अपने आत्मसम्मान को नुकसान पहुँचने की सम्भावना लगने लगती है . अतः परिवार की महिलाएं ही सर्वाधिक इर्ष्या , उस नवागत महिला से करने लगती हैं .और समय समय पर नीचा दिखाने के उपाए सोचने लगती हैं .उस नवआगंतुक महिला को अपना प्रतिद्वंदी मानकर उसके खिलाफ मोर्चा खोल देती हैं . उसकी प्रत्येक गतिविधि पर परम्पराओं की आड में अंकुश लगाकर अपना बर्चस्व कायम करने का प्रयास करती हैं .ऐसे माहौल में नारी समाज का उद्धार कैसे होगा ?कैसे महिला समाज को सम्मान एवं समानता का अधिकार प्राप्त हो सकेगा ?
यदि परिवार की सभी महिलाएं नवागत उच्च शिक्षा प्राप्त बहु का स्वागत करें ,उससे विचारों का आदान प्रदान करें ,समय समय पर उससे सुझाव लें , तो अवश्य ही अपना और अपने परिवार का और कालांतर में सम्पूर्ण नारी समाज के कल्याण का मार्ग प्रशस्त हो सकता है .शिक्षित महिला; महिला उत्थान अभियान मेंअधिक प्रभावीतरीके से योगदान दे सकती है .एवं समपूर्ण महिला समाज को शोषण मुक्त कर सकती है . अतः नवागंतुक शिक्षित महिला का स्वागत करना , नारी समाज के लिए हितकारी साबित हो सकता है .
उदहारण संख्या पांच ;
प्रत्येक वर्ष आठ मार्च को महिला दिवस मनाया जाता है ,परन्तु उसी दिन एक गुंडा सारे बाजार एक महिला के सीने में गोलियां दाग देता है ,उपस्थित भीड़ सम्पूर्ण नारी समाज एवं पुरुष समाज मौन खड़ा देखता रह जाता है .और हत्यारा बिना किसी विरोध के निकाल भाग जाता है .
घटना आठ मार्च 2011 की है . सम्पुर्ण विश्व महिला दिवस मना रहा था .और दिल्ली में राधा तंवर नाम की लड़की जो दिल्ली विश्व विद्यालय की छात्र थी, को एक गुंडा अपना लक्ष्य बनता है और सारे आम हत्या करके चला जाता है .उस छात्र का कुसूर यह था की वह अपने तथाकथित प्रेमी गुंडे से प्यार नहीं करती थी अर्थात उसका प्रेम प्रस्ताव उसे स्वीकार नहीं था .जब वह बार बार उसके द्वारा परेशान किये जाने की शिकार होती है तो उसने अपनी दिलेरी दिखाते हुए थप्पड़ जड़ दिया . बस उसी के प्रतिशोध में उसने उसकी हत्या कर दी . इससे स्पष्ट है आज भी किसी महिला को अपने जीवन साथी के रूप में लड़का पसंद या नापसंद करने का अधिकार नहीं है,किसी के प्रेम प्रस्ताव को ठुकराने का हक़ नहीं है .यही कारण था की उसकी दिलेरी (थप्पड़ मरना ) का जवाब मौत के रूप में मिला . पुलिस को सब कुछ मालूम होते हुए भी हत्यारे को पकड़ने में कै दिन लग गए . महिला समाज चुप चाप तमाशा देखता रहा.बल्कि अनेक महिलाओं ने छात्रा को ही चरित्रहीन होने का संदेह व्यक्त कर एक महिला का अपमान किया .
उदहारण संख्या छः ;
जब कोई दुष्कर्मी किसी महिला का बलात्कार करता है तो बलात्कारी को सजा मिले या न मिले वह दरिंदा पकड़ा जाये या न पकड़ा जाये ,परन्तु बलात्कार की शिकार ,महिला को अवमानना का शिकार होना तय है .उस पीडिता को सर्वाधिक अपमानित उसके अपने परिवार की एवं समाज की महिलाएं हि करती हैं . उसे चरित्रहीन का ख़िताब भी दे दिया जाता है . वह समाज के ताने सुन सुन कर आत्मग्लानी का अनुभव करती रहती है ,उसे अपना जीवन दूभर लगने लगता है .जबकि उसने कोई अपराध नहीं किया है.अपने परिवार की बदनामी के डर से पति सहित सम्पूर्ण महिला समाज ,बलात्कारी को दंड देने के लिए कानूनी प्रक्रिया का सहारा लेने से भी घबराते हैं .इसी कारण बलात्कार के आधे से अधिक केस अदालतों तक भी नहीं पहुँच पाते और बलाताकरी के हौसले बढ़ जाते हैं .इस प्रकार से पुरुषों को दुराचार करने को बढ़ावा मिलता है. क्यों महिला समाज , पीडिता के साथ सहानुभूति रखते हुए उसे कानूनी इंसाफ की लडाई के लिए तैयार करता ,उसे हिम्मत दिलाता ?
पीडिता यदि अविवाहित है तो उसे विवाह करने को कोई पुरुष आगे नहीं आता , क्योंकि उसे जूठन मनाता है .परन्तु किसी पुरुष को अपनी पड़ोसन , जो की शादी शुदा है अर्थात विवाहित महिला , से प्रेम की पींगे बढ़ाने में कोई हिचक नहीं होती, क्यों ?.क्या विवाहित प्रेमिका जूठन नहीं हुई? ऐसे दोहरे मापदंड क्यों ?
उदहारण संख्या सात ;
एक महिला दूसरी महिला के लिए कितनी संवेदनहीन होती है इसके अनेको उदाहरण विद्यमान हैं .अनेक युवतियां अपना विवाह न हो पाने की स्तिथि में अथवा अपनी मनपसंद का लड़का न मिलने पर किसी विवाहित युवक से प्रेम प्रसंग करती है और बात आगे बढ़ने पर उससे विवाह रचा लेती है .उसके क्रिया कलाप से सर्वाधिक नुकसान एक महिला का ही होता है .एक विवाहिता का परिवार बिखर जाता है उसके बच्चे अनाथ हो जाते हैं .जिसकी जिम्मेदार भी एक महिला ही होती है .फ़िल्मी हस्तियों के प्रसंग तो सबके सामने ही हैं .जहाँ अक्सर फ़िल्मी तारिकाएँ शादी शुदा व्यक्ति से ही विवाह करती देखी जा सकती हैं. ऐसी महिलाये सिर्फ अपना स्वार्थ देखती हैं जिसका लाभ पुरुष वर्ग उठता है .महिला समाज कोयदि समानता का अधिकार दिलाना है, तो अपने महत्वपूर्ण फैसले लेने से पहले सोचना चाहिए की उसके निर्णय से किसी अन्य महिला पर अत्याचार तो नहीं होगा ,उसका अहित तो नहीं हो रहा.
.उदहारण संख्या आठ ;
त्रियाचरित्र ,महिलाओं में व्याप्त ऐसा अवगुण है जो पूरे महिला समाज को संदेह के कठघरे में खड़ा करता है ,कुछ शातिर महिलाएं त्रियाचरित्र से पुरुषों को अपने माया जाल में फंसा लेती हैं और अपना स्वार्थ सिद्ध करती रहती हैं ,शायद अपनी इस आडम्बर बाजी की कला को अपनी योग्यता मानती हैं . परन्तु उनके इस प्रकार के व्यव्हार से पूरे महिला समाज का कितना अहित होता है उन्हें शायद आभास भी नहीं होता .उनके इस नाटकीय व्यव्हार से पूरे महिला समाज के प्रति अविश्वास की दीवार खड़ी हो जाती है . जिसका खामियाजा एक मानसिक रूप से पीड़ित महिला को भुगतना पड़ता है . परिश्रमी ,कर्मठ ,सत्चरित्र परन्तु मानसिक व्याधियों की शिकार महिलाएं अपने पतियों एवं उनके परिवार द्वारा शोषित होती रहती हैं .क्योंकि पूरा परिवार उसके क्रियाकलाप को मानसिक विकार का प्रभाव न मान कर उस की त्रियाचरित्र वाली आदतों को मानता रहता है .इसी भ्रम जाल में फंस कर कभी कभी बीमारी इतनी बढ़ जाती है की वह मौत का शिकार हो जाती है .
अतः प्रत्येक महिला को अपने व्यव्हार में पारदर्शिता लाने की आवश्यकता है. साथ ही पूरे नारी समाज को तर्क संगत एवं न्यायपूर्ण व्यव्हार के लिए प्रेरित करना चाहिए,तब ही नारी सशक्तिकरण अभियान को सफलता मिल सकेगी .
उदहारण संख्या नौ;
हमारे समाज में महिलाएं परम्पराओं के निभाने में विशेष रूचि रखती हैं .परम्पराओं के नाम पर न्याय ,अन्याय , शोषण ,मानवता सब कुछ भूल जाती हैं .परंपरा के नाम पर प्रत्येक महिला अपनी सास द्वारा किये गए ,दुर्व्यवहार ,असंगत व्यव्हार को ही अपनी पुत्र वधु पर थोप देती है .शायद उसके मन में दबी भड़ास को निकालने का यह उचित अवसर मानती है .और शोषण का सिलसिला जारी रहता है .इसी प्रकार ननद द्वारा किये जा रहे असंगत व्यव्हार को अपने मायेके में जाकर अपनी भावज पर लागू करती है और आत्म संतुष्टि का अहसास करती है.परन्तु . उसका जीना हराम करदेती है . यदि इन असंगत परम्पराओं को तोड़ कर नारी समाज बाहर नहीं आयेगा ,अपने व्यव्हार में मानवता को प्रमुखता नहीं देगा तो नारी उत्थान कैसे संभव हो पायेगा ?
उदहारण संख्या दस ;
परिवार में वृद्ध महिलाओं की रूचि नारी समाज को शोषण मुक्त करने में नहीं होती . वे चाहती हैं की परिवार में उनका बर्चस्व बना रहे .यही वजह है नवविवाहित दुल्हन को सास द्वारा सख्त निर्देश जारी किये जाते हैं , की महिलाओं की बातें सिर्फ महिलाओं तक ही सिमित रहनी चाहिए . किसी भी रूप में परिवार के पुरुषों तक घरेलु घटनाक्रम की जानकारी नहीं पहुंचनी चाहिए जब भी बात बतानी है उसे घर की सबसे बड़ीमहिला अर्थात सास ही बताएगी .क्योंकि वे भी जानती हैं की बहुत सी तर्कहीन बातों को पुरुष वर्ग सहन नहीं करेगा और उसकी प्रतिक्रिया से महिला के बर्चस्व पर आघात हो सकता है.नवागंतुक महिला के शोषण की योजना घर की बड़ी महिला द्वारा ही रची जाती है .यदि यह सही मान भी लिया जाय की घर की बड़ी महिला को अपना अधिपत्य ज़माने का पूर्ण अधिकार है , परन्तु तर्क हीन बातों से मुक्त होना भी आवश्यक है . ताकि कोई भी महिला शोषण का शिकार न हो पाए . महिलाओं में आपसी एक जुटता रहेगी , तो पुरुष वर्ग से अपने संघर्ष को जल्द मुकाम मिल सकेगा . महिला वर्ग को शोषण से मुक्ति एवं समानता का अधिकार ,सम्मान का अधिकार मिल पायेगा.
अंत में मेरा कहने का तात्पर्य यह है की, नारी स्वयं नारी वर्ग के लिए सोचना शुरू कर दे, तो महिलाओं को शीघ्र ही अपना आत्म सम्मान मिल सकेगा.



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शनिवार, 21 जनवरी 2012

भ्रष्टाचार क्यों बन गया शिष्टाचार ( नेताओं की सोची समझी साजिश का परिणाम)

(प्रथम भाग)
सैंकड़ों वर्षों के संघर्ष के पश्चात् हमारे देश को विदेशी दस्ता से मुक्ति मिली और स्वदेशी नेताओं ने सत्ता की बागडोर अपने हाथ में संभाली.आजादी के पश्चात् जब संविधान तैयार किया गया तो देश में गणतंत्र की घोषणा की गयी अर्थात जनता की सरकार, जनता द्वारा चुनी गयी सरकार, ,जनता के हितों के लिए कार्य करेगी.प्रत्येक पांच वर्ष पश्चात् जनता अपनी राय से नयी सरकार चुनेगी. अतः तत्कालीन सरकार को अपने भविष्य की चिंता सताने लगी. तत्कालीन सत्तारूढ़ पार्टी सदैव के लिए सत्ता में बने रहने के उपाय सोचने लगी,जिसमे चुनावों को जीतने के लिए भी धन की व्यवस्था करना आवश्यक था. साथ ही सत्ता में न रह पाने की स्तिथि में अपनी संतान और अगली पीढ़ी के लिए धन कुबेर भी एकत्र करना था. इन्ही सब कारणों के चलते सत्तारूढ़ पार्टी ने कानूनों की इस प्रकार संरचना की ताकि नेताओं की जेबें भरने के प्रयाप्त अवसर प्राप्त होते रहें. बहुसंख्यक अशिक्षित जनता को लुभावने नारे देते हुए जटिल एवं अव्यवहारिक कानून का निर्माण किया गया. उन्होंने ऐसी व्यवस्था का निर्माण किया जिसमें बेईमान नौकर शाह पारितोषिक और नेताओं का आशीर्वाद प्राप्त करते रहें, इमानदार कर्मी हतोत्साहित किये जाते रहें ताकि नेताओं को अपना कमीशन आसानी से प्राप्त होता रहे.कुछ समय पूर्व स्विस बैंक में जमा भारतीयों की जमा राशी विश्व में सर्वाधिक बताई गयी है. और साथ ही उजागर किया है की 1456 अरब डालर अर्थात करीब साठ हजार अरब रुपये स्विस बैंक में भारतीयों का काला धन जमा है. इन जमा कर्ताओं में बड़े बड़े उद्योगपति,बड़े बड़े नौकर शाह, फ़िल्मी एक्टर,क्रिकेटर,के साथ बड़े बड़े नेता शामिल हैं अब क्योंकि सभी राजनेता इस पवित्र कार्य में संलिप्त हैं, इसीलिए विदेशों में जमा धन की जानकारी मिलने के पश्चात् भी सत्तारूढ़ या विपक्षी पार्टी का कोई भी नेता धन वापस लाने में रूचि नहीं दिखा रहा.हमाम में सब नंगे हैं तो कैसे उजागर हों सबके नाम और कैसे वापस आए काला धन वापस.
एक मोटे अनुमान के अनुसार विदेशों में कुल जमा धन देश पर कुल कर्ज का तेरह गुना है ,अर्थात यदि उस राशी को वापस लाया जा सके तो अपना देश कर्ज मुक्त तो हो ही जायेगा ,बाकी धनराशी का ब्याज ही हमारी पूरी अर्थव्यवस्था को चला पाने में सक्षम होगा और सरकार को कोई टेक्स लगाने की आवश्यकता नहीं रह जाएगी. इस बकाया राशी को दूसरे शब्दों में भी आंका जा सकता है,यथा यह राशी देश की आधी आबादी को लखपति बनाने में सक्षम है.
यहाँ पर अब मैं आपको बताने का प्रयास करूंगा इस भ्रष्टाचार एवं काले धन को पैदा करने के लिए हमारे नेताओं ने किस प्रकार षणयंत्र रच कर देश को लूटा. उन्होंने अपने हितों की रक्षा के लिए भ्रष्टाचार को किस प्रकार पुष्पित पल्लवित किया .किसी ने ठीक ही कहा है ----:अगर जनता सही रस्ते पर जाये तो उसे गलत रस्ते पर ले जाना नेता का काम है
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स्वतंत्र देश के नेताओं द्वारा रचा गया षणयंत्र का खुलासा


आए कर की उच्चतम दरें;---हमारे नेताओं ने अपने स्वार्थ के लिए किस प्रकार भ्रष्टाचार को आमंत्रित किया और प्रत्येक व्यक्ति को उस भ्रष्टाचार में भागीदार बनाया,उसका सबसे बड़ा उदाहरण है, पचास से सत्तर के दशक तक आए कर की उच्चतम दरें, अर्थात उच्चतम स्लेब , नब्बे प्रतिशत तक रखा गया था. इतनी ऊँची दर रखने के पीछे लोकतान्त्रिक सरकार द्वारा चंद लोगों के हाथ में धन संग्रह को रोकने का उद्देश्य बताया गया.और कहा गया सरकार चाहती है,जनता को संसाधनों का बटवारा समान रूप से एवं न्यायपूर्वक हो. आम व्यक्तियों के लिए देखने में मन लुभावन उद्देश्य प्रतीत होता है,परन्तु वास्तविकता कुछ और ही थी. कोई भी उद्योगपति,व्यापारी,कारोबारी तमाम प्रकार के जोखिम लेकर एवं दिनरात एक कर कमाने का प्रयास करता है,और जब वह किसी प्रकार कमा लेता है तो नब्बे प्रतिशत आयेकर के रूप में सरकार की झोली में डाल दे ,तो कमाने के प्रति उसकी इच्छा कितनी बाकी रह जाएगी.क्या यह टैक्स वह सहन कर पायेगा. जाहिर है वह ऐसे उपाय ढूँढेगा जिससे कम से कम आयेकर देकर अपनी मेहनत की कमाई को बचा सके. यही हमारे नेताओं का उद्देश्य था आयेकर पूरा न देने की स्थिति में सरकारी प्रतारणा से बचने के लिए आयेकर अधिकारियों और नेताओं की पूजा करना आवश्यक हो जायेगा.इस प्रकार प्रत्येक कारोबारी को करापवंचन करने को मजबूर किया गया ,फ़िलहाल वही आयेकर की अधिकतम दर तीस प्रतिशत कर दी गयी है.क्यों? क्योंकि अब उनकी योजना की आधार शिला रखी जा चुकी थी..

अन्य अनेक प्रकार के भारी टैक्स ;---आयेकर की भांति ,कस्टम ड्यूटी, एक्साईस ड्यूटी ,बिक्री कर, सभी टैक्स की दरें बहुत ही ऊँची रखी गयीं जो सर्वथा अव्यवहारिक थीं,असंगत थीं. व्यापारी के पास कर अपवंचना के उपाय सोचने के अतिरिक्त कोई चारा नहीं था.कस्टम ड्यूटी दो सौ प्रतिशत और कभी कभी इससे भी अधिक रखी गयी थीं. जिसके कारण तस्करी को बढ़ावा मिला और बड़े बड़े तस्कर खड़े हो गए जो नेताओं के आशीर्वाद से फलते फूलते रहे. इसी प्रकार एक्साईस ड्यूटी व्यापारी के कुल लाभ से भी अधिक वसूली जाती थी और उद्योगपति को कर बचाने के लिए नए नए उपाय बताये जाते थे.जो नेताओं और नौकरशाहों की जेबें भरने में सहायक होते थे. बिक्री कर विशेष तौर पर छोटे दुकानदार को परेशान करने का हथियार रहा है.छोटा दुकानदार अक्सर बिना ब्रांड का स्थानीय निर्मित समान बेचता है जिस पर टैक्स देने की जिम्मेवारी दुकानदार पर होती है और प्रतिद्वंदिता के कारण ग्राहक से टैक्स वसूल पाना संभव नहीं होता. अतः उसे काले धंधे को मजबूर होना पड़ता है और बिक्री कर विभाग के अधिकारियों की जेबे भर कर अपनी जान बचानी पड़ती है.बिक्री कर की दरें भी बारह प्रतिशत या इससे भी अधिक हुआ करती थीं .जो फिलहाल घट कर पांच प्रतिशत तक सिमित रह गयी हैं.परन्तु सरकारी विभागों को इतना खून मुंह लग चुका है, यदि कोई व्यापारी आज सब काम कानूनी तरीके से करे तो भी उसके खाते पास नहीं हो सकते .अधिकारी अपनी कलम की ताकत का प्रयोग कर व्यापारी को परेशान करते हैं. व्यवस्था को इस प्रकार से बिगाड़ा गया, की व्यापारी, उद्योगपति,कारोबारी अपने कार्यों को गैर कानूनी तरीके से करें और नेताओं की जेबें भरते रहें .( अगले ब्लॉग में पढ़ें--किस प्रकार से इन्स्पेक्टर राज चलाया गया,कानूनों को जटिल बना कर आम आदमी के लिए मुसीबतें खड़ी की गयीं एवं सरकारी कर्मियों के वेतन अप्रयाप्त रख कर उन्हें भ्रष्टाचार की गलियों में जाने को प्रेरित किया गया ) सत्य शील अग्रवाल


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सोमवार, 16 जनवरी 2012

रिटेल व्यापारियों का भविष्य ?

सदियों से वस्तु वितरण का कार्य छोटे एवं मझोले व्यापारियों द्वारा किया जाता रहा है .पूरी वितरण प्रणाली व्यापारी अपनी रोजी रोटी का साधन बना कर सम्हालते रहे हैं .पीढ़ियों से उनके वारिस इसी कार्य को अपनी जीविका का साधन बनाते रहे हैं .परन्तु आज स्तिथि बदल चुकी है ,छोटे व्यापारियों एवं उनके व्यापार पर निरंतर आघात हो रहे हैं ,उनके व्यापार को, निरंतर बढ़ रही बेरोजगारी के कारण बढती प्रतिद्वंद्विता ,नित्य उभरते जा रहे मल्टी नेशनल कम्पनियों के बर्चस्व ने बहुत नुकसान पहुँचाया है .दूसरी तरफ बढ़ते भौतिकवाद ने आम इन्सान की आवश्यकतायें बहुत बढा दी हैं ,अतः वर्तमान समय में छोटे व्यापार से परिवार की सभी आवश्यकताएं पूरी करना असंभव होता जा रहा है . यही कारण है नयी पीढ़ी परम्परागत (पैत्रिक ) व्यापार में रूचि नहीं ले रही .यदि कोई युवा मेधावी है तो अच्छी शैक्षिक डिग्री लेकर अच्छी हैसियत की नौकरियां ढूंढ लेता है .

आजकल सरकार भी विदेशी एवं बड़ी कम्पनियों को अनेको सुविधाएँ दे कर आमंत्रित कर रही है जिसके कारण मॉल संस्कृति विकसित होती जा रही है .धीरे धीरे यही मल्टी नेशनल एवं बड़ी कम्पनियां देर सवेर सारे रिटेल कारोबार को हजम कर जाएँगी .और छोटे एवं मझोले व्यापारी बेरोजगार हो जायेंगे .

तेजी से बदल रहे हालातों को भांपते हुए अनेक दूरदर्शी व्यापारियों ने पहले से ही अपनी संतान को अपने व्यापार में न लगा कर किसी अन्य कार्य से सम्बद्ध करने का इरादा बना लिया .और उनकी संतान ने अपनी रोजी के अन्य साधन ढूंढ लिए .अन्य व्यापारियों की नयी पीढ़ी भी अपनी कार्य क्षमता के अनुसार अन्य रोजगार तलाश लेंगे .परन्तु जिन व्यापारियों ने अपना पूरा जीवन अपने छोटे से व्यापार पर निर्भर कर दिया था और वर्तमान में जीवन के अंतिम पड़ाव पर आ चुके हैं ,क्या उनके लिए संभव होगा की वे अपने लिए अन्य कार्य की तलाश करें? .जिन्होंने जीवन भर अपने व्यापार के माध्यम से सरकार के राजकोष की पूर्ती की,क्योंकि बड़े उद्योगों एवं बड़े व्यापार के अभाव में राजस्व एकत्र करने का साधन छोटे छोटे व्यापारी और किसान ही थे ,आज वे व्यापारी ही बेरोजगार होने की दहलीज पर खड़े हैं .उनके पास कोई सरकारी पेंशन की व्यवस्था नहीं है ,(जो हमारे देश में सिर्फ सरकारी सेवा से निवृत कर्मियों को ही उपलब्द्ध है ).उनके भविष्य में भरण पोषण के लिए कोई सरकारी योजना भी नहीं है .यह आवश्यक नहीं होता , सब की संतान आर्थिक रूप से इतनी सक्षम हो की वे अपने बूढ़े माता पिता का भरण पोषण कर पायें ,या सक्षम होते हुए भी सभी पुत्र या पुत्री इतने वफादार हों की अपने माता पिता का भी ख्याल रखते हों और उनके भरण पोषण की जिम्मेदारी स्वयं उठाना चाहते हों .

क्या छोटे व्यापारी ने अपने व्यापार द्वारा जनता की सेवा कर कुछ गलत किया ?क्या छोटे व्यापारियों ने देश के विकास में में योगदान नहीं किया ?क्या उन्होंने अपने व्यापार से सरकारी राजकोष को भरने में अपनी भूमिका नहीं निभाई ? देश के नागरिक होने के नाते क्या उन्हें अपने निष्क्रिय कल में भरण पोषण का अधिकार नहीं है ?क्या हमारी सरकार की जिम्मेदारी सिर्फ सरकारी कर्मियों के बारे में सोचने तक ही है ?क्या सरकार का कर्त्तव्य नहीं है की बड़ी कम्पनियों या विदेशी निवेश को आमंत्रित करने से पहले बेरोजगार होने वाले व्यापारियों के कल्याण के बारे में भी कुछ सोचे ?

सबसे दुर्भाग्य की बात यह है ,देश में मौजूद अनगिनत व्यापारिक संगठन भी बड़े व्यापरियों के हित की बात तो सोचते हैं , अपने छोटे व्यापारी भाईयों के भविष्य के लिए आवाज बुलंद नहीं करते .व्यापरियों का प्रतिनिधित्व करने वाले संगठनों द्वारा अपने छोटे और मझोले सदस्यों के कल्याण के लिए कोई अजेंडा क्यों नहीं बनाते , कोई आन्दोलन क्यों नहीं चलाते?व्यापारी संगठन कम से कम अपने छोटे भाइयों के लिए मांग कर सकते हैं, की आने वाली विदेशी रिटेल कम्पनियों से टैक्स बसूल कर से बेरोजगार होने वाले कारोबारियों के कल्याण के लिए फंड एकत्र करे और व्यापारियों के हित में योजनायें बना कर उन पर खर्च करे .



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सत्य शील अग्रवाल
SATYA SHEEL AGRAWAL