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शुक्रवार, 26 अक्तूबर 2012

निश्छल और पारदर्शी व्यक्तित्व का महत्त्व

निश्छल और पारदर्शी व्यक्तित्व का महत्त्व शिक्षा के प्रचार –प्रसार के साथ साथ इन्सान की तर्कशक्ति भी बढती जा रही है .जिसने इन्सान की उन्नति के अनेकों नए आयाम खोले हैं ,वहीँ पर बढती प्रतिस्पर्द्धा एवं बढ़ते भौतिकवाद ने उसे कपटी ,बेईमान ,स्वार्थी जैसे गुणों से अलंकृत भी किया है . आज सिद्धांतों पर आधारित जीवन जीने की चाह रखने वाला व्यक्ति भयाक्रांत रहता है . कहीं उसे इस अनैतिकता भरे समाज में हाशिये पर न धकेल दिया जाय . उसे लगता है आज एक व्यक्ति की उन्नति की राह उसकी शैक्षिक योग्यता से भी अधिक चतुर , चालक ,कपटी ,स्वार्थी जैसी योग्यता में निहित हो गयी है .अर्थात सिद्धांत वादी व्यक्तित्व योग्यता का मापदंड बनता जा रहा है . आज भी बुजुर्ग समाज में अनेक व्यक्ति ऐसे मौजूद हैं जिन्होंने अपना जीवन इमानदारी ,निष्कपट एवं पारदर्शिता के आधार पर व्यतीत किया है .शायद इसी कारण वे अपने जीवन में ऊंचाइयों को नहीं छू सके . शायद उनकी संतान उन्हें दुनिया में जीने के लिए योग्य भी करार दे ,क्योंकि उसके लिए सिद्धांतों के आधार पर जीना असंभव हो चुका है .या यह कहा जाय आज की बढती महत्वाकांक्षाओं के कारण सिद्धांतो पर डटे रहना बीते दिनों की बातें लगने लगी हैं . ऐसा नहीं है की सभी लोग सिद्धान्तहीन हो गए हैं ,या पहले सभी लोग सिद्धांतवादी होते थे .अंतर यह है की पहले सिद्धांतवादी अधिकतर लोग होते थे और सिद्धांत हीन कम लोग होते थे परन्तु आज सिद्धान्तहीन लोगों की बहुतायत हो गयी है और सिद्धांतवादी लोग उँगलियों पर गिने जा सकते हैं . यह एक कडुवा सच है की इन्सान का और मानवता का विकास इमानदारी ,पारदर्शिता ,सच्चाई के बिना संभव नहीं है .हमारा समाज कितना भी अनैतिक हो जाय आदर्श और सिद्धांतों का महत्त्व काम नहीं हो सकता . सिद्धांत हमेशा ही प्रेरणा का स्रोत बने रहेंगे .बिना इमानदारी और सच्चाई के आज भी आम जीवन संभव नहीं है .क्योंकि प्रत्येक सिद्धान्तहीन व्यक्ति को भी कहीं न कहीं इमानदारी का साथ निभाना पड़ता है .इस सन्दर्भ को कुछ उदाहरणों से स्पष्ट किया जा सकता है . जैसे रिश्वत लेना एक सामाजिक अपराध है ,और गैरकानूनी भी है परन्तु हर रिश्वत खोर व्यक्ति या भ्रष्टाचारी जिससे रिश्वत का लाभ प्राप्त करता है उसके कार्य को इमानदारी से पूर्ण करता है यदि किसी कारण वह कार्य पूर्ण नहीं कर पता तो वह पूरी इमानदारी से रिश्वत की रकम को लौटा देता है .अर्थात रिश्वत प्रदाता के साथ बफदारी और ईमानदारी निभाता है .इसी प्रकार से कानून की निगाह में अवैध कार्य करने वाले व्यापारी अपने लेन देन में पूरी इमानदारी रखते हैं .एक डकैत जो पेशे से खूंखार और हिंसक होता है वह भी अपने कुछ सिद्धांतों का पालन करता है ,हर परिस्थिति में निभाता है .व्यापार ,या उद्योग चलाने वाला कितना भी दुष्ट या अपराधी क्यों न हो अपने ग्राहकों के लिए पूर्णतयः ईमानदार ,बफादार और पारदर्शी रहता है या रहने को मजबूर होता है .अन्यथा उसका कारोबार चल पाना संभव नहीं होता .उसे आम आदमी के समक्ष अपनी छवि को उज्जवल ही रखना होता है .क्योंकि गुंडागर्दी , बेइमानी और दुष्टता के बाल पर कोई भी कारोबार संभव नहीं है .नेता लोग कितने भी भ्रष्ट क्यों न हो जाएँ ,जनता के समक्ष उन्हें बेहद बफादार और ईमानदार होने का ढोंग ही करना पड़ता है .जनता से वोट प्राप्त करने के लिए ईमानदार दिखना आवश्यक है .बिना सड़क के नियमों ,कानूनों का इमानदारी से पालन किया , अपने को सड़क पर सुरक्षित रहा पाना संभव नहीं है . उपरोक्त सभी बातों से स्पष्ट है की सिद्धांतों के बिना कुछ भी संभव नहीं है .छल ,कपट ,बेइमानी क्षणिक लाभ तो दे सकते है परन्तु दीर्घावधि तक इसी व्यव्हार से जीवन चला पाना आसान नहीं होता .जो व्यापरी इमानदारी और उच्च आदर्शों के सहारे अपना व्यापार चलते हैं वे ही व्यापार में सर्वाधिक ऊंचाइयों पर पहुँच पाते हैं .जो नेता देश भक्ति और ईमानदारी ,पारदर्शिता को अपनाते हुए देश का नेत्रित्व करते हैं वे ही देश को उत्थान की ओर अग्रसर कर सकते हैं . वर्तमान समय में किसी भी हिंसक ,बेईमान ,धोखेबाज को अधिक साधन संपन्न देखा जा सकता है परन्तु वे हमेशा कानूनी भय ,या सामाजिक अपराध बोध से त्रस्त रहते हैं .मानसिक तनाव हमेश बना रहता है .जबकि निष्कपट ,इम्मंदर ,सच्चा व्यक्ति आत्म संतोष की पूँजी के साथ सुखी रहता है .यह भी कडुवा सत्य है वर्तमान परिस्थिति में किसी व्यक्ति को अपने सिद्धांतों पर अडिग रहा कर जीवन चलाना आसान नहीं होता ,उसका जीवन एक तपस्या बन जाता है .परन्तु जो आत्म संतोष उसे प्राप्त होता है वह सबसे बड़ा धन है . अतः निश्छल , ईमानदारी ,पारदर्शिता का महत्त्व कभी ख़त्म नहीं होने वाला.

गुरुवार, 11 अक्तूबर 2012

विश्व में आर्थिक असमानता क्यों ?


पृथ्वी पर समय के साथ सिर्फ मानव ही ऐसा जीव है जो अपनी बुद्धि के बल पर विकास कर सका, और दुनिया के हर क्षेत्र पर अपना अधिपत्य जमा लिया. विकास यात्रा में वह लौह युग से चल कर जेट युग और फिर कंप्यूटर युग में प्रवेश कर गया.अफ़सोस यह है की आज भी अनेक देशों के करोडो लोग ऐसे हैं जिन्हें जीवन की सभी आवश्यकताओं की पूर्ती के लिए साधन उपलब्ध नहीं हैं. कुछ लोगों को तो दो वक्त की रोटी भी नसीब नहीं हो पाती, जबकि एक वर्ग ऐसा भी है जो आवश्यकताओं से अधिक साधनों से संपन्न है.इसी प्रकार विश्व में अनेक देश कहीं अधिक संपन्न है जो अपने नागरिकों की सभी आवश्यकताओं को पूरा कर पाने में सक्षम हैं.और कुछ देश बहुत गरीब हैं.जहाँ हर वर्ष भूख से अनेकों जानें चली जाती हैं.
उन देशों के प्रत्येक नागरिकों का जीवन स्तर एवं देश का बुनियादी ढांचा अन्य गरीब या अविकसित देशों के मुकाबले जमीन असमान के अंतर लिए हुए है.ये देश विकसित दशों की श्रेणी में आते हैं और अन्य देशों को गरीब मुल्क कहा जाता है.
आखिर विकसित देशों और अविकसित देशों में ऐसा क्या है जो इतना बड़ा अंत दिखाई देता है, क्यों कुछ देश पहले विकसित हो गए और अन्य देश अपने नागरिकों के लिय भोजन की व्यवस्था भी नहीं कर पाए . इतनी बड़ी खाई (असमानता) का कारण क्या है. क्या गरीब मुल्कों के पास प्राकृतिक संसाधनों का अभाव है ?क्या गरीब मुल्कों के लोग महनत नहीं करना चाहते?क्या गरीब मुल्क में बुद्धिमान लोग पैदा नहीं होते. आखिर क्यों विकसित देशों के मुकाबले में विकसित नहीं हो पाए.क्या वे अनुसन्धान कर पाने में अक्षम हैं? क्या उन देशों की बढती आबादी देश को विकसित होने में रूकावट बन रही है? क्या उन देशों की जलवायु या प्राकृतिक वातावरण उन्हें पनपने नहीं देता?
उपरोक्त सभी प्रश्नों का उत्तर सिर्फ है. मानवीय विकास में असमानता क्यों? कारण है जो विकसित देश हैं वे या तो धनवानों द्वारा बसाये गए वे मुल्क हैं, जो स्थानीय जाति को नष्ट कर स्वयं काबिज हो गए, दूसरे वे देश हैं जिन्होंने सैंकड़ों वर्षों तक विश्व के अनेक देशो को गुलाम बनाकर रखा और उनकी धन दौलत से अपने देशों को मालामाल कर दिया अर्थात गुलाम देशों के वाशिंदों द्वारा की गयी कमाई ने इन देशों को आमिर बना दिया.वर्तमान सन्दर्भ में जब विश्व में लगभग सभी देश स्वतन्त्र हो गए हैं तो भी विकसित देश अनेक अड़ंगे लगा कर उनको विकसित होने से रोकते हैं या वे अपनी धन दौलत का रोब जमा कर कुछ विकास शील देशो को उभरने से रोकते रहते है, दो विकास शील देशों को आपस में लडवा कर अपना उल्लू सीशा करते हैं..अब कई देश, अपने दम पर विकास की ओर धीरे धीरे लौटने लगे हैं और अब ऐसा लगता है की विश्व में समानता परचम शीघ्र ही लहराएगा.परन्तु विश्व में असामनता का मुख्य कारण कुछ देशों द्वारा अपनाये जा रहे अमानवीय कार्य हैं.जो मानवता के अभिशाप बने हुए हैं.विकसित देशों को मानवता के दायरे में सोच कर पूरी मानव सभ्यता के कल्याण के लिए कार्य करना चाहिए.