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शनिवार, 19 मार्च 2011

सोचना तो पड़ेगा

*भारत में सेकुलरवाद के नाम पर कट्टरपंथी तत्वों को संरक्षण और प्रोत्साहन दिया जाता है,जबकि खुद सकुलर्वाद के लिए इस्लाम में कोई जगह नहीं है.
*एक ही देश में धर्मनिरपेक्षता का उदाहरण है, हिन्दू विवाह अधिनियम और मुस्लिन पर्सनल ला . आखिर धर्म के नाम पर अलग अलग कानून क्यों ? मुस्लिम ला एवं शरियत कानून के अनुसार १५ वर्ष में मुस्लिम लड़की को व्यस्क माना जाता है.
*धर्म के ठेकेदार नहीं चाहते की जनता में शिक्षा का प्रचार प्रसार हो क्योंकि अशिक्षित जनता ही उनके धर्म का पालन आसानी से कर लेती है,और उनका वर्चस्व बना रहता है.
*हमारे धर्माधिकारी कहते हैं की हमारे धर्म शास्त्रों का अस्तित्व आदिकाल से है, जब इन्सान बोलना, लिखना, पढना भी नहीं जनता था फिर उपरोक्त कथन कितना सत्य है?.
*ज्ञात स्रोतों से सिद्ध हो चुका है, लोहे का अविष्कार तीन हजार वर्ष पूर्व हुआ था, तो क्या रामायण के समय में बिना लोहे के पुष्पक विमान बन गया था.और अन्य हथियार भी बिना लोहे के बनते थे? .महाभारत का युद्ध बिना लोहे के हथियरों से लड़ा गया होगा, क्या ऐसा संभव है?. इससे तो यही सिद्ध होता है रामायण एवं महाभारत की कथाएं काल्पनिक हैं.
*हम इस संसार को ईश्वर ,खुदा या गोड की रचना मानते हैं, परन्तु उस ईश्वर,खुदा,गोड का अस्तित्व कैसे हुआ, क्यों हुआ, क्या कम रहस्य्कारी है?
*आज के वैज्ञानिक युग में जब जनता को नियंत्रित करने के लिए पर्याप्त साधन उपलब्ध हैं तो धर्माधिकारियों को मानव जीवन में दखलंदाजी करना कितना तर्कसंगत है?

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