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रविवार, 1 मई 2011

क्या हम देश के सभ्य नागरिक हैं.

#हमारी मिल बाँट कर खाने की प्रवृति ख़त्म होती जा रही है, चाहे वह व्यापार हो, नौकरी हो, या फिर नाते रिश्तेदार और भाई बंद. आज प्रत्येक व्यक्ति सिर्फ अपने लिए सोच रहा है, सिर्फ अपने लिए जी रहा है.
#दावतों, पार्टियों में बुफे पद्धति होने के बावजूद अपनी प्लेट में आवश्यकता से अधिक खाना ले लेते हैं और फिर बचाकर फेंक देते हैं, बेकार कर देते हैं.जबकि हमारे देश में ही नहीं दुनिया में करोड़ों लोगों को दोनों समय का भोजन नसीब नहीं होता.
#दुर्घटना वश पड़े घायल व्यक्ति को सिर्फ अपने को कानूनी फंदे से बचाय रखने के कारण सड़क पर छोड़ कर आगे बढ़ जाते हैं. मानवीय मूल्यों को भूल जाते हैं. हमारे देश के कानून एवं पुलिस के व्यव्हार का कमाल है जो आम नागरिक को खौफजदा किये रहता है और मानवीय कार्यों के लिए भी कटघरे में खड़ा कर अपमानित करता है,व्यथित करता है.
#हम अपने स्वार्थ, अपने आर्थिक हितों के लिए हरे भरे पेड़ों को काटने से तनिक भी नहीं हिचकिचाते और पर्यावरण असंतुलन के लिए चुनौती कर देते हैं.
#बिना कानूनी डंडे के हम अपने हित की बात समझने को तय्यार नहीं होते,चाहे वह कार में सीट बैल्ट बांधने की बात हो या फिर मादक पदार्थों के सेवन की,या फिर पब्लिक में खुलेआम धुम्रपान करने की.
# टेलेफोन से लम्बी वार्ता करना ही हमारी शान बन गयी है,जिससे एक तरफ तो आगंतुक कोलर के लिए समस्या बनती है तो दूसरी तरफ अतिरिक्त बिल देकर फिजूल खर्ची होती है. संक्षिप्त वार्ता से भी काम चलाया जा सकता है.
#हम सरकार से अपनी मांगें मनवाने के लिए कभी सड़क जाम कर देते हैं, तो कभी रेलवे ट्रेक पर बैठ कर धरना देते हैं और आम जन जीवन को अस्त व्यस्त करने में जरा भी नहीं हिचकिचाते और तो और अनेकों बार अपने उग्र प्रदर्शनों द्वारा हिंसक वारदातों को अंजाम देते हैं,सरकारी एवं निजी संपत्ति को भरपूर नुकसान पहुंचाते हैं. अपनी मांगों को मनवाने के लिए अहिंसक एवं शांतिपूर्ण लोकतान्त्रिक तरीके भी अपनाये जा सकते हैं.
# त्योहारों को विकृत ढंग से मनाते हैं, जैसे दीवाली पर पटाखे अत्यधिक रूप में चलाना, होली पर होलिका दहन के अवसर पर अंधाधुंध लकड़ी फूंकना, दीवाली पर बिजली का दुरपयोग करना, होली पर हानिकारक रंगों का उपयोग करना, मादक पदार्थों का सेवन करना आदि. जिसके कारण अपने धन के दुरूपयोग के साथ साथ पर्यावरण प्रदूषण के भी हम जिम्मेदार बनते हैं.
#हम अपने बच्चों के साथ अपनी जिम्मेदारी का निर्वहन न करते हुए बच्चों के भविष्य के साथ खिलवाड़ कर रहे हैं. हाल ही हुए सर्वे के अनुसार बड़े शहरों में पच्चीस प्रतिशत किशोर छात्राएं अपनी मर्यादाये तोड़ कर शारीरिक सम्बन्ध बना रहें हैं. टी वी एवं इंटरनेट के चलन एवं अभिभावकों की लापरवाही का नतीजा सामने है.

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