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रविवार, 1 जुलाई 2012

नरेन्द्र मोदी संभावित भावी प्रधान मंत्री.


नरेन्द्र मोदी संभावित भावी प्रधान मंत्री.
     वर्तमान समय में जिस प्रकार से सत्तारूढ़ कांग्रेस नेतृत्व वाली यू.पी.ए सरकार भ्रष्टाचारों, घोटालों के चक्रव्यूह में घिर चुकी है,नित नए घोटाले जनता के समक्ष आ रहे है,देश की अर्थव्यवस्था रसातल में जा रही है,महंगाई जनता की कमर तोड़ रही है,रूपए का मूल्य निम्नतम स्तर पर आ चुका है,जनता का कांग्रेस सरकार के प्रति मोह भंग हो चुका है.ऐसे समय में जनता को किसी अच्छे  विकल्प की तलाश होगी, जो कांग्रेस से बहतर ,भ्रष्टाचार मुक्त शासन दे सके.क्योंकि देश में भारतीय जनता पार्टी ही मुख्य एवं सबसे बड़ी राष्ट्रिय विपक्ष पार्टी है.स्वाभाविक है सभी की आकांक्षाएं इसी पार्टी से बन रही हैं.२०१४ के आम चुनाव में भारतीय जनता पार्टी को सत्ता मिलने की सम्भावना बनती नजर आ रही है.जो पार्टी के सभी दिग्गज नेताओं के लिए कोतुहल पैदा कर रही है.लाल कृष्ण अडवाणी ,सुषमा स्वराज ,नितीश कुमार ,नितिन गडकरी जैसे अनेको नेता प्रधान मंत्री के सपने देखते रहे हैं. .हर बड़ा नेता स्वयं को प्रधान मंत्री की दौड़ में शामिल करने को उत्सुक है.प्रत्येक कद्दावर नेता अपने  भाग्य को चमकाने का अवसर समझ रहा है.बार बार ऐसे आशावादी नेताओं के मन में प्रश्न उठ रहा है,क्या वह प्रधान मंत्री की कुर्सी तक पहुँच पायेगा ?दशकों से राजनीती में अपनी  बिसात बिछाए बैठे बड़े बड़े नेता इस मौके को अपने  पक्ष में करने को उतावले हैं.
      प्रधान मंत्री पद की  इस दौड़ में गुजरात के वर्तमान मुख्य मंत्री का नाम प्रमुख रूप से उभर कर आ रहा है.कारण है, उनका गुजरात प्रदेश में अपने कामकाज,और कार्य शैली के कारण देश भर में उनकी बढती लोकप्रियता. उनके कार्यकाल में गुजरात प्रदेश को  देश के सर्वाधिक उन्नत प्रदेशों में गिना जाना. इसी लोकप्रियता के कारण वे भा.ज.पा.के प्रणेता बन गए हैं.परन्तु पार्टी के अन्य महत्वकांक्षी नेताओं को उनका नाम रास नहीं आ रहा,क्योंकि वे स्वयं अपने  नाम को प्रधान मंत्री के दावेदारों में शामिल करना चाहते हैं.इसलिय ये नेता नरन्द्र मोदी की उभरती छवि से परेशान हैं,हैरान हैं.और विरोधी पार्टियों के साथ उनको साम्प्रदायिक बता कर अपने लक्ष्य को साधना चाहते हैं.अब कुछ नेताओं ने उन्हें हठी,निरंकुश नेता बता कर प्रधानमंत्री पद के अयोग्य बताने का प्रयास कर रहे हैं.इस प्रकार नेताओं की आपसी लड़ाई ने महत्वपूर्ण मोड ले लिया है जो जनता के समक्ष अनेक ज्वलंत प्रश्न खड़े कर रहा है ;
१,क्या नरेन्द्र मोदी को साम्प्रदायिक नेता कहाँ उचित है?
२. क्या नरेन्द्र मोदी को विकास पुरुष के साथ साथ तानाशाह भी कहना चाहिए?
३,जिस प्रकार से मोदी जी ने अपने कार्यकाल में गुजरात को देश के अग्रणी राज्यों में ला खड़ा किया,क्या किसी साम्प्रदायिक नेता के लिए संभव था?
४,क्या मोदी जी में तथाकथित सहन शक्ति का अभाव उन्हें प्रधान मंत्री के अयोग्य ठहराता है?क्या देश को मनमोहन सिंह जैसा चुपचाप बैठे रहने वाला,असीमित धैर्य और सहन शक्ति वाला  प्रधान मंत्री चाहिए.जो देश को रसातल में जाता देखता रहे और कुछ न बोले?
५,क्या मोदी के गुजरात में मुस्लमान भयभीत जीवन जी रहे हैं,क्या उन्हें वहाँ पर नागरिक अधिकारों से वंचित किया जा चुका है ?क्या वे इस राज्य में उन्नति नहीं कर रहे हैं?क्या राज्य की उन्नति का लाभ उन्हें नहीं मिल रहा?
६, क्या गुजरात में २००२ में मोदी के शासन में हुए दंगों के कारण उनको सांप्रदायिक करार  देना उचित होगा? क्या गोधरा कांड की स्वाभाविक जन प्रतिक्रिया, गुजरात दंगों का कारण नहीं थी?
७,काग्रेस के शासन काल में १९८४ के सिक्ख विरोधी  दंगो का जिम्मेदार कौन था? इस प्रकार से क्या कांग्रेस साम्प्रदायिक पार्टी नहीं मानी जानी चाहिए?
८,१९९१ में जब बाबरी ढांचा गिराया गया तब केंद्र में किसकी सरकार थी? क्या तत्कालीन कांग्रेस सरकार की कोई जिम्मेदारी नहीं थी,फिर वह साम्प्रदायिक पार्टी क्यों नहीं?
९.आजादी के पैसंठ वर्षों में अधिक तर देश के शासन की बागडोर कांग्रेस के हाथों में रही फिर क्यों रह रह कर  देश में अनेक शहर साम्प्रदायिकता की आग में झुलसते रहे?
१०.क्या इस देश में हिंदू हित की बात करना साम्प्रदायिकता है और मुस्लिम तुष्टिकरण की बात करना धर्मनिरपेक्षता है?
       उपरोक्त सभी साक्ष्यों से स्पष्ट है की हमारे देश में यदि किसी  की छवि धूमिल करनी हो तो उसे साम्प्रदायिक करार दे दो.इसी षड्यंत्र के अंतर्गत मोदी साहेब के विरुद्ध माहौल तैयार किया जा रहा है.यदि उनके इरादे सफल होते है,तो देश का दुर्भाग्य होगा जो उसे एक योग्य, कर्मठ, ईमानदार, विकासशील, प्रधान मंत्री से वंचित कर देगा. (SA-72C)
   सत्य शील अग्रवाल,  532/6, शास्त्री नगर मेरठ