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गुरुवार, 29 अक्तूबर 2015

अपना बर्चस्व बनाने की घातक प्रवृति

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  हमारे देश में गत कुछ दशकों में शिक्षा का प्रचार और प्रसार तीव्र गति से बढ़ा है. इस कारण आम व्यक्ति का व्यक्तित्व विकास भी तेजी से हुआ है,उसकी महत्वाकांक्षाएं भी उसी गति से बढ़ी हैं.आज प्रत्येक व्यक्ति अपने जीवन को सुविधा संपन्न होकर जीना चाहता है.प्रत्येक वर्ग का व्यक्ति उच्च जीवन शैली को अपनाने को उत्सुक है,फिर चाहे उसके पास दो समय के लिए रोटी जुटाना भी उसकी सामर्थ्य से परे हो.परन्तु उसके सपने बहुत ऊंचे हो रहे हैं. इसी प्रकार प्रत्येक व्यक्ति अपने परिजनों,संगी साथियों को अपने विचारों ,अपनी इच्छाओं के अनुसार चलाने के लिए उतावला रहता है.अपने बर्चस्व को बनाने के लिए वह अनेक प्रकार के उचित अनुचित उपाय करता है. अपने विचारों को दूसरों पर थोपने के लिए हिंसा से भी परहेज नहीं किया जाता, धार्मिक दंगे इसका जीता जगता उदहारण है.जो अपने धर्म के अतिरिक्त किसी अन्य धर्म के प्रति असहिष्णुता दर्शाती है.आज भी खाड़ी के देशों में उभर रही आतंकवादी शक्ति आईएस का उद्देश्य भी यही है की पूरी दुनिया में इस्लाम धर्म का ही बर्चस्व रहे बाकि सभी धर्मों का अस्तित्व समाप्त हो जाय. ऐतिहासिक रूप में अंतर्राष्ट्रीय पटल पर अनेक ऐसे अनेक उदहारण भरे पड़े है, जब एक शक्तिशाली व्यक्ति (हिटलर,सिकंदर) ने पूरी दुनिया को अपने कब्जे में करने का प्रयास किया, उस प्रयास में उसने भयंकर रूप से कत्लेआम मचाया लोगो को अनेक यातनाएं दी उन्हें गाजर मूली की भांति काट डाला या मार डाला. यदि कोई अधिक धनवान है तो वह अपने धन के बल पर सभी को अपने विचारों के अनुरूप चलने की इच्छा रखता है,यदि कोई उच्च पद पर आसीन है तो वह आम जनता को अपने पैरों की जूती समझता है, यह बात अलग है यदि उससे बड़ा पदाधिकारी उसके समक्ष हो तो उसका व्यव्हार एक दम याचक वाला हो जाता है और बड़ा अधिकारी उसे भी अपने इशारों पर नचाता है. अर्थात सब खेल ताकत का रह गया है.तर्क वितर्क,उचित अनुचित सब पीछे छूट गए लगते हैं.जिसकी लाठी उसकी भैंस वाली कहानी चरितार्थ हो रही है.बिलकुल वही स्थिति होती जा रही है जैसे कभी अपराधी प्रवृति के लोगों में ही देखने को मिलता था,जहाँ प्रत्येक बदमाश अपने से अधिक ताकतवर बदमाश के समक्ष नतमस्तक रहता है.परन्तु अपने से कमजोर बदमाश के लिए मौत बना रहता है. बर्चस्व की बढती प्रवृति कही न कही उसकी घटती सहन शक्ति परिलक्षित करती है.वह अपने से कमजोर व्यक्ति के अस्तित्व को स्वीकार नहीं कर पाता जब तक वह उसके बर्चस्व को स्वीकार न कर ले. कोई भी शक्तिशाली(तन, मन, धन किसी भी रूप में)व्यक्ति अपने मित्रों रिश्तेदारों,परिजनों को भी अपनी इच्छानुसार चलाने की इच्छा रखता है.इसी कारण संयुक्त परिवार एकाकी परिवारों में विभक्त होते जा रहे हैं.परिवार में मिल बाँट कर खाने की प्रवृति समाप्त हो रही है.आज प्रत्येक इन्सान अपने स्वार्थ, अपने हितों की बात सोचता है. यदि वह किसी के लिए कुछ कर भी देता है तो उसे अपने कर्तव्य न मान कर उस पर अहसान मान कर उसे अपने इशारों पर चलाने की इच्छा पाल लेता है.यदि वह व्यक्ति उसके इच्छानुसार उसके लिए कार्य नहीं करता तो उसे अहसान फरामोश करार देता है अहसान फरामोश करार देता है. आज इन्सान अपना अधिपत्य ज़माने के लिए प्रतिस्पर्द्धा में जुट गया है.प्रतिस्पर्द्धा किसी प्रकार से हो सकती है.वह शिक्षा के क्षेत्र में हो,या खेल कूद में अथवा अपने कारोबार में.अपने प्रतिस्पर्द्धी को नीचा दिखाने के लिए वह अपने जीवन का महत्वपूर्ण समय भी लगा देता है.यानि भले ही उसके जीवन के सुनहरी क्षण चले जाएँ(गुणवत्ता पूर्ण जीवन) परन्तु उसका प्रतिद्वंद्वी नहीं जीतना चाहिए.यदि फिर भी जीत पक्की दिखाई नहीं देती तो हिंसा, बेईमानी, धोखाधडी, करने से भी परहेज नहीं होता. कार्य क्षेत्र कोई भी हो सकता है जैसे दुकानदारी अर्थात व्यापार, कारखाने में उत्पादन कार्य हो या कोई अन्य व्यवसाय हो अथवा राजनीति हो. और यह भी आवश्यक नहीं की व्यक्ति व्यावसायिक प्रतिद्वंद्वी ही हो आज भाई बहन एवं नजदीकी सम्बन्धी के अपने क्षेत्र में आगे बढ़ते हुए भी देखना गवारा नहीं होता सिर्फ अपनी उन्नति ही रास आती है क्योंकि उसकी उन्नति से अपना बर्चस्व घट जाता है. जीवन में आगे निकलने की होड़ या अपने बर्चस्व कायम करने की इच्छा इन्सान को अपना स्वाभाविक जीवन(QUALITY LIFE) जीने से वंचित कर देती है.आधुनिक युग में इन्सान ने अपना दिन और रात इसी उधेड़ बुन(प्रतिस्पर्द्धा) में लगा दिया है, जो उसे पहले तनाव देती हैं और फिर अनेक शारीरिक बीमारियाँ लग जाती हैं और अंत में जीवन समाप्त हो जाता है.उसका रॉब,उसका बर्चस्व,उसका अधिपत्य सब कुछ यहीं रह जाता है. यहाँ पर यह बताना भी प्रासंगिक होगा की यदि कोई व्यक्ति नहीं चाहता की वह अपने से छोटे या अपने संपर्क में आने वाले किसी व्यक्ति को अपने दबाब में रखे,अपने विचार उस पर थोपे,उस स्थिति में उसके अंतर्गत आने वाले लोग उस पर हावी होना प्रारंभ कर देते हैं.उससे छोटे स्तर के लोग या परिजन उसको अपने विचारों से प्रभावित करने का प्रयास करते हैं.यानि की यदि कोई अपना डंडा नहीं चलाना चाहता तो लोग उसे डंडा लेकर खड़े हो जाते हैं.अजीब दस्तूर है दुनिया का.(SA-174B)

रविवार, 4 अक्तूबर 2015

हम सभी भ्रष्टाचारमय हो चुके हैं

अक्सर भ्रष्टाचार को हम सरकारी कामकाज में व्याप्त, नौकरशाहों और राजनैतिक नेताओं द्वारा लिए जाने वाले घूस या कमीशन को ही भ्रष्टाचार मानते हैं.जबकि भ्रष्टाचार एक व्यापक रूप में हमारी रग रग में समां चुका है.बड़े बड़े व्यापारी भी सरकारी स्तर पर अपने कार्य कराने के लिए सक्षम अधिकारी को अनेक प्रलोभन और रिश्वत देते हैं और अपने इच्छानुसार कार्य कराकर अपने आर्थिक हितों को साधते हैं,और कार्य को तुरत फुरत करवा कर अपना समय भी बचा लेते हैं.यदि कोई अधिकारी ईमानदार है और उनके कार्य में अड़चन डालता है तो उसे अनेक प्रकार से धमकाया जाता है. कभी कभी तो उसे मरवा देने की धमकी भी देते है.अनेक बार ऐसे अनेक अफसर घूस खोरी का विरोध करने पर शहीद हो चुके हैं.जो यह सिद्ध करता है की सरकारी विभागों में रिश्वत खोरी के विरुद्ध आवाज उठाने वाले और अपने कार्य को कानून सम्मत करने वालों को अनेक प्रकार की यातनाये सहनी पड़ती हैं.ऐसे ईमानदार अफसरों को सरकार की ओर से कोई संरक्षण नहीं मिलता.इसी कारण भ्रष्टाचार नित्य प्रतिदिन बढाता जाता है और जनता त्रस्त होती रहती है.भ्रष्ट अफसर अपने बॉस का चहेता भी बना रहता है, क्योंकि उसे भी उसकी अवैध कमाई में हिस्सा मिलता है. ऐसे कर्मियों की पदोन्नति भी शीघ्र होती है.जबकि ईमानदार कर्मी को उसकी ईमानदारी की सजा के रूप में बॉस की प्रताड़ना मिलती है,उसे बार बार स्थानान्तरण(ट्रांसफर) के रूप में कष्ट सहना पड़ता है,भ्रष्टाचार के आरोप लगते रहते हैं इस प्रकार उसका शोषण किया जाता है. आज हमें आदत पड़ चुकी है की किसी भी सरकारी कार्यालय में अपने कार्य के लिए जाते हैं, तो सरकारी कर्मी की पूरी चापलूसी करते है और उससे अपेक्षा करते है की वह अपने चाय पानी के पैसे लेकर कार्य को फ़ौरन कर दे और कायदे कानूनों को धता बताकर हमारी मन मुताविक कार्य कर दे. हमें अपने स्वार्थ के आगे कानून या नियम के प्रति प्रतिबद्धता कोई मायने नहीं रखती. और इस प्रकार से हम (आम आदमी)स्वयं भ्रष्टाचार को बढ़ावा देते है,अर्थात भ्रष्ट आचरण के हम आदि हो गए हैं.अब तो हम वोट भी उसे ही देते हैं जो हमें किसी आर्थिक लाभ का वायदा करता है, अथवा शराब या धन से हमारे वोट की कीमत अदा कर देता है.जब हम रिश्वत लेकर अर्थात धन के लालच से अपना प्रतिनिधि चुनेंगे तो उससे कैसे उम्मीद कर सकते हैं की वह हमें ईमानदार और स्वच्छ प्रशासन देगा? हमारी एक आम धारणा बन गयी है की हमें कानून सम्मत तो कोई कार्य करना ही नहीं है हमें कानून का कोई डर नहीं है. अतः कानून तोडना हमारी फितरत में बस चुका है.हमें पता है यदि कोई सरकारी कार्यवाही होती है तो डीलिंग अफसर को रिश्वत दे कर शांत कर देंगे.यानि हमें सरकारी अफसर को तो रिश्वत देना मंजूर है परन्तु कानून सम्मत कार्य करने में आने वाले खर्च को वहन करना स्वीकार्य नहीं है iऔर खर्च न भी होता हो तो भी कानून के अनुसार कार्य क्यों करें? अधिक कमाई करने के लिए एक दूसरे को धोखा देना,जालसाजी करना,सब्जबाग दिखाना,मिलावट खोरी करना,नकली माल तैयार करना अथवा व्यापार करना परोक्ष रूप से लूट मार के ही रूप हैं और भ्रष्टाचार का ही स्वरूप है. आम जनता में व्याप्त भ्रष्टाचार के उदाहरण के निम्न रूप सर्वविदित हैं, मोटी कमाई के लिए एक डॉक्टर मरीज का अपेन्डिक्स के ओपरेशन का बहाना कर उसकी किडनी,लीवर इत्यादि महत्त्व पूर्ण अंग निकाल कर बेच देता है. एक इन्जिनियर कमीशन के लिए ठेकेदार को ऊंचे रेट पर टेंडर कर देता है और काम की गुणवत्ता को नजर अंदाज करता है. वकील मोटी फीस के लालच में अपने गुनाहगार मुवक्किल को बेगुनाह साबित करने के लिए सारे हथकंडे अपनाता है(सबूत गायब कर या गवाह को तोड़ कर या धमका कर) और मुक़दमे में सच्चाई का गला घोंट देता है,कभी कभी तो बेगुनाह को सजा भी करवा देता है. हम अपना घर तो स्वच्छ रखना चाहते हैं परन्तु सडक पर कचरा डाल कर उसे गन्दा करते रहते हैं,या चुपके से पडोसी के मकान के सामने डाल देते हैं.बस या ट्रेन में सफ़र करते समय साफ सफाई ध्यान रखना अपना फर्ज नहीं समझते. बिजली के बड़े बिल से बचने के लिए सरकारी कर्मचारी मिल कर मीटर में हेरा फेरी करते हैं और धड़ल्ले से बिना बिल चुकाए बिजली का लापरवाही से उपयोग करते हैं.क्योंकि हमें देश में बिजली की कमी से कोई सरोकार नहीं है.इसी प्रकार से पानी का फिजूल खर्च भी हमें नागवार नहीं करता.पानी हो या बिजली उसका उपयोग(सदुपयोग या दुरूपयोग) करना हमारा जन्म सिद्ध अधिकार है क्योंकि हम देश के बफादार नागरिक हैं हमारे अंतर्मन में बैठी भ्रष्टाचार की धारणा इतनी गहरा चुकी है की जब सोचते है की मोदी सरकार देश को भ्रष्टाचार मुक्त करेगी तो आम प्रश्न हमारे मस्तिष्क में उठता है क्या हम भ्रष्टाचार मुक्त होकर अपने जीवन को सुचारू रूप से चला पाएंगे.अपने सरकारी कार्यों को करा पाने में सक्षम होंगे? क्या व्यापार और उद्योग चला पाना संभव होगा अथवा कानूनी दांव पेंच में ही फंस कर रह जायेंगे? (SA-173C)