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शुक्रवार, 9 नवंबर 2012

संवेदन हीन होता हमारा समाज

           मानव सभ्यता अपने उद्भव काल के पश्चात् उन्नति के चरमोत्कर्ष पर पहुँच गयी है .उसकी विकास की गति भी तीव्रतम हो गयी है .आज मानव द्वारा किये जाने वाले श्रम -साध्य कार्य मशीनों से कराया जाना संभव हो गया है .दूसरी तरफ उसके मानसिक कार्यों को अधिक तीव्रता से करने के लिए कम्पूटर आ चुका है .विकास के इस उच्च पड़ाव पर जहाँ मानव को अनेक सुख सुविधाएँ प्राप्त हुई हैं .तो अनेको समस्याओं को भी बल मिला है .जैसे बढती बेरोजगारी ,घटते रोजगार के अवसर ,बढती भौतिकवादी मानसिकता ,गलाकाट प्रतिस्पर्द्धा ,प्रत्येक स्तर पर बढ़ रहे प्रदूषण के कारण व्याधियों का बढ़ता ग्राफ ,अमीर गरीब के मध्य बढती खाई ,साथ ही समाज में निरंतर बढ़ रही मानवता के प्रति सम्वेदनहीनता . विकास की भागम भाग में मनाविये संवेदनाएं ,भावनाए विलुप्त होती जा रही हैं ,जो एक भयानक और भावी कष्टकारी जीवन की ओर संकेत कर रही है .यदि मानव समाज से सहानुभूति ,संवेदनाएं ,भावनाए निकाल दी जाएँ तो मानव समाज और अन्य वन्य जीवों में कोई अंतर नहीं रह जायेगा .आज मानव स्वयं एक रोबोट की भांति होता जा रहा है . जिसमे कार्य करने की तो अदभुत क्षमता होती है ,परन्तु भावनाओं से उसका कोई लेना देना नहीं होता .अतः मानव सभ्यता को बचाने के लिए मनाविये संवेदनहीनता के कारणों पर चिंतन करना आवश्यक हो गया है .कहीं ऐसा न हो भौतिक उन्नति करते करते हम सामजिक पतन को न्योता दे दें .जो हमारी भौतिक उपलब्धियों को निरर्थक कर दे . मानव समाज में बढ़ रही संवेदन हीनता के कारणों को समझने का प्रयास इस लेख के मध्यम से किया जा रहा है .---------
 वर्तमान में इन्सान इतना व्यस्त हो गया है यदि यात्रा करते समय ट्रेन ,बस या किसी अन्य वाहन से कोई दुर्घटनाग्रस्त दिखाई देता है तो उस घायल व्यक्ति या व्यक्तियों को आवश्यक सहायता देने या चिकित्सालय तक ले जाने का समय हमारे पास नहीं होता .अनेको बार दुर्घटनाग्रस्त व्यक्ति की समय पर इलाज न मिल पाने के कारण मौत हो जाती है .जो हमारी संवेदन हीनता का प्रतीक है .
      अपने स्वार्थ के कारण (आर्थिक स्वार्थ )समाज के साथ साथ अपने परिजनों के प्रति भी संवेदन हीन होते जा रहे हैं .प्रथम श्रेणी के रिश्तो अर्थात भाई भाई ,भाई बहन ,पिता पुत्र में भी अपनापन समाप्त होता जा रहा है .वह अपने जीवन स्तर के आधार पर ही रिश्तेदारों या परिजनों से सम्बन्ध रखना चाहता है .इस प्रकार से परिवारों में बिखराव आ रहा है . इस दुनिया में व्यक्ति अकेला होता जा रहा है , और मानसिक रूप से असुरक्षित हो गया है .क्योंकि प्रत्येक ख़ुशी भी बिना परिजनों के अधूरी होती है .और दुःख में परिजनों से ही मानसिक शक्ति प्राप्त होती है .शायद भौतिक सुखों की प्राप्ति पर ध्यान केन्द्रित करते करते हम मानसिक असंतोष को न्योता दे रहे हैं .
      समाज की प्रथम इकाई परिवार में पति और पत्नी परिवार रुपी गाड़ी के दो पहिये होते हैं .यदि दोनों पहिये आपस में सामंजस्य बना कर नहीं चल सकते , तो परिवार के अस्तित्व पर प्रश्न चिन्ह लगना स्वाभाविक है .परन्तु आज उनमे भी मानसिक लगाव का अभाव हो रहा है .उनमे आपसी संबंधों में स्वार्थ और दौलत का नशा झलकने लगा है .अतः तलाक की संख्या में निरंतर वृद्धि होती जा रही है .पत्नी को गंभीर बीमारी से ग्रस्त पा कर पति कही और घर बसा लेता है ,या पति की विपन्नता से तंग आ कर पत्नी धनवान प्रेमी के साथ भागने में नहीं हिचकिचाती
      .आज छोटे छोटे स्वार्थ के टकराव तलाक के कारण बन रहे हैं .जो कभी सिर्फ पाश्चात्य देशों में ही होता था .दूरदर्शन के धारावाहिकों में प्रदर्शित होने वाले , व्यभिचार और सांस्कृतिक मूल्यों की अवहेलना कहीं न कहीं हमारे समाज की वर्तमान स्थिति को परिलक्षित करते हैं .यह तो निश्चित है पारिवारिक सुख शांति के अभाव में सभी भौतिक उपलब्धियां महत्वहीन हैं .
           विकास के इस दौर में आ रही सामाजिक और आर्थिक असमानता के कारण प्रत्येक व्यक्ति के मन में इर्ष्या ने जन्म ले लिया भाई हो या बहन या कोई अन्य सम्बन्धी , मित्र ,पडोसी या जानकार, इर्ष्या के अनेक कारण हो सकते हैं ,जैसे रहन सहन या जीवन शैली में भारी अंतर ,पारिवारिक स्थिति में अंतर यानि किसी के पुत्र के रूप में संतान अधिक या कम होने का ,शिक्षा स्तर या पद में अंतर ,इत्यादि अर्थात इर्ष्या का कारण कोई भी,किसी भी प्रकार की आपसी तुलना हो सकती है.अब यदि कोई परिचित,रिश्तेदार या मित्र किसी बीमारी से ग्रस्त हो जाता है , दुर्घटना का शिकार हो जाता है ,अथवा किसी मुसीबत में फंस जाता है तो हम उससे सहानुभूति कम इर्श्या वश खुश अधिक होते हैं,.कभी कभी तो सोचते हैं अच्छा हुआ इसके साथ तो ऐसा ही होना चाहिए था,बड़ा घमंड था या बहुत अकड़ता फिरता था.जब इस प्रकार की मानसिकता हो गयी हो तो अपनापन का का अहसास कैसे हो पायेगा ? सबके मन में प्रतिद्वंद्विता और इर्ष्या ने घर बना लिया हैऔर सिर्फ अपनी उन्नति के लिए स्वार्थी हो चुके हैं. अपने आर्थिक हितों के लिए अपने प्रियतम व्यक्ति से भी दूर रहने में कोई झिझक नहीं रह गयी है.और अपने प्रिय व्यक्ति भी अपने अपने दुखों से कम उसके सुखों से दुखी अधिक होते हैं. परिवार और समाज का सुख समाप्त होता जा रहा है.इस प्रकार इर्ष्या ने हमें संवेदनहीन और रूखा बना दिया है .
       सम्वेदनहीनता के कारण मानव द्वारा मानव का ही शोषण किया जा रहा है , जैसे बाल मजदूरी द्वारा , महिला के साथ दुर्व्यवहार ,उच्च वर्ग द्वारा निम्न वर्ग का शोषण ,पुत्र के पिता का उसकी पत्नी के पिता का शोषण ,(बेटे के बाप द्वारा बेटी के बाप का शोषण )धर्म के नाम पर आतंक द्वारा मानव जाति का शोषण इत्यादि ,घटते जीवन मूल्यों के प्रतीक हैं . नए से नए हथियारों के उत्पादन कर बड़े बड़े भंडार बनाये जा रहे हैं . एक देश दूसरे देश का शोषण करने के उपाए ढूंढता है ,हथियारों के बल पर अपने स्वार्थ सिद्ध करता है ,उन्नति और विकास के नाम पर मानव अपनी कब्र स्वयं खोद रहा है .
          हमारे देश के सन्दर्भ में ;
 विकसित देशों की तर्ज पर हमारे देश के लोग भी सम्वेदनहीन होते जा रहे हैं ,स्वयं को तटस्थ (reserve)करते जा रहे हैं
        क्या हमारे देश की शासन व्यवस्था विकसित देशों की भांति कर्तव्य परायण है ?जहाँ पर प्रत्येक दुर्घटनाग्रस्त व्यक्ति की जिम्मेदारी स्वयं प्रशासन सम्भालता है .उसको सही समय पर सही इलाज कराने को तत्पर रहता है.
          जहाँ पर कानून और न्याय की सेवाएं कम से कम समय में बिना किसी पक्षपात के उपलब्ध होती हैं .जहाँ आम आदमी कानून की अवहेलना करने या अपराध करने का साहस नहीं जुटा पता .
           जहाँ सरकारी हो या निजी अस्पताल मरीज के इलाज के लिए प्रशासन स्तर पर पूर्ण जिम्मेदारी उठाते हैं उसे तीमार दारों   की या सिफारिश की आवश्यकता नहीं होती ,निजी अस्पताल मरीज के साथ लूटने की मंशा से बिल नहीं बनाते .
        क्योंकि हमारे नौकर शाही तंत्र भ्रष्ट है कोई भी व्यक्ति अपने कार्य के प्रति ईमानदार नहीं है हर क्षेत्र में दबाव या शक्ति प्रदर्शन आवश्यक होता है . यदि कोई व्यक्क्ति समाज से कट कर अपने धन संग्रह में लिप्त रहता है तो जहाँ विदेशों में उसको भले ही अपने लोगों की कमी न खले , परन्तु अपने देश के नागरिक के लिए अभिशाप बन जाता है .हम अभी ऐसे विकसित देश की व्यवस्था नहीं बना पाए हैं जहाँ व्यक्ति अपने आप में पूर्णतयःआत्मनिर्भर हो गया है ,उसकी संवेदनहीनता उसे अधिक परेशान नहीं करती . क्योंकि वह अपने कर्तव्यों को ठीक प्रकार से निर्वहन करता है . अतः हमारे देश के लिए संवेदन हीनता के व्यव्हार हमें शीघ्र ही ले डूबेगा .जहाँ व्यक्ति असुरक्षित हो उसे संगठित होकर रहना ही उसके हित में है. अतः इन्सान को विकास की आधुनिक भागदौड के साथ साथ भावनाओं और संवेदनाओं की रक्षा करने के उपाए भी करने होंगे तन मन धन से अपने संबंधो को सींचना होगा .सभी भौतिक उपलब्धियों का उद्देश्य मानव कल्याण और सुख शांती को बनाना होगा मानव जाति का भविष्य जब ही सुखद हो सकता है जब हम आत्मीयता ,मेल जोल , भाई चारा ,और संवेदनाओं को साथ लेकर चलें.(SA-G4-79)
 सत्य शील अग्रवाल,शास्त्री नगर मेरठ

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