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शनिवार, 29 जनवरी 2011

शायद हमारे भी कुछ कर्तब्य होते हैं

मेरे नवीनतम लेख अब वेबसाइट WWW.JARASOCHIYE.COM पर भी उपलब्ध हैं,साईट पर आपका स्वागत है.-----------FROM APRIL 2016

 १.घर को साफ करके कूड़ा सड़क पर डालना अपनी शान समझते हैं. क्योंकि गली की सफाई की जिम्मेदारी नगर पालिका की है.
२.समारोह परिवार का हो या मोहल्ले का शामियाने लगाने के लिय सड़क तोडना या उसमे गड्ढे करना हमारा अधिकार है,क्योंकि सड़क हमारे द्वारा दिए गए टैक्स से ही तो बनती है.
३.विशेष अवसरों पर रौशनी करने के लिय सीधे लाइन से बिजली तो लेनी ही पड़ती है.बिजली विभाग की लम्बी प्रक्रिया से गुजरने के लिय समय किसके पास है.फिर क्यों न लाइन मेन को पैसे देकर आसानी से कम चला लिया जाय.वैसे तो हम घर पर भी बिजली उपयोग के लाइन पर कटिया डाल कर काम चलाना कोई गलत नहीं मानते. आखिर देश हमारा है,बिजली विभाग हमारा है,तो बिजली भी हमारी ही हुई न?
.यदि हमें विरोध प्रदर्शन करना है,धरना देना,अपनी आवाज सरकार तक पहुंचानी है सरकारी संपत्ति यानि पुब्लिक ट्रांसपोर्ट, और सरकारी इमारतें सबसे अच्छा निशाना हैं.हमारे बाप का क्या जाता है?
५.मोहल्ले में देवी का जागरण करना है, रामायण का पाठ करना है,कावड़ियों की सेवा करनी है या फिर बेटी का व्याह करना है,सड़क जाम करने से हमें कोई परहेज नहीं है.सडक पर दुकान लगाना,कहीं भी गाड़ी को खड़ी कर सड़क को संकरा कर देना हमारी फितरत है.
६.सड़क पर थूकना हमारा जन्म सिद्ध अधिकार है.क्या फर्क पड़ता है,सड़क तो गन्दी ही होती है,यदि थोड़े बहुत कत्थे के लाल निशान पड़ भी जाएँ तो क्या?हम आजाद देश के आजाद नागरिक हैं कहीं भी मूत्र विसर्जन करना हमारा अधिकार है,जब लिखा मिलता है ‘देखो गधा मूत रहा है’तो हमें बहुत बुरा लगता है.
७.बिजली की आवक न होने की स्तिथि में जेनेरटर चलाना हमारी मजबूरी है, उससे बीमार पडोसी को ध्वनी प्रदूषण अथवा वायु प्रदूषण दो चार होना पड़ता है तो क्या कर सकते हैं?
८.पानी की आवक नियमित नहीं होती अतः जब पानी आता है तो हम टोंटी बंद न कर नगर पालिका से बदला लेते हैं.अब ऐसी स्तिथि में सब मर्सिब्ल पम्प न लगवायं तो क्या पानी पीना छोड़ दें.
९अगर हम सम्रिध्शाली हैं और हमारे पास खाने पीने की कोई कमी नहीं है तो कुछ भोजन बचा देना ,फेंक देना हमारी शान का हिस्सा है.हमें इस बात से क्या मतलब की हमारे देश में आज भी करोड़ों लोगों को एक समय का भोजन ही उपलब्ध हो पाता है.
10.बिजली का बिल पूरी ईमानदारी से भरते हैं यदि हम अधिक बिजली उपभोग करते हैं तो कौन सा गुनाह करते हैं.देश बिजली की कमी है.तो हमारी क्या गलती है.

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बुधवार, 26 जनवरी 2011

जरा सोचिये (नारी उत्थान अभियान )






  • वर्तमान युग में हम को कितने भी विकसित एवं शिक्षित समाज का हिस्सा मानते हो परन्तु हमारी मानसिकता अभी भी महिलाओं के प्रति पख्श पात पूर्ण है आखिर नारी को समानता का दर्जा देने में झिझक क्यों?





  • भारतीय समाज में कामकाजी महिलाओं की स्तिथि भी सुखद नहीं है क्योंकि कामकाजी महिलाओं को अपने कामकाज के अतिरिक्त घरेलू कार्यों के लिय भी पूरी मशक्कत करनी पड़ती है। क्योंकि पुरुष प्रधान समाज होने के कारण पुरुष घरेलु कार्यों को करने से परहेज करता है।





  • संसार में जितने भी जीव जंतु हैं उनमें सिर्फ मानव जाति की मादा (नारी) बच्चों की देख रेख के अतिरिक्त (जो अन्य जीव भी करते हैं) पूरे परिवार एवं पति की स्वास्थ्य सम्बन्धी आवश्यकताओं के साथ साथ अन्य सभी घरलू कार्यों में भी सहयोग करती है।





  • नारी समाज के उत्थान से तात्पर्य है सामाजिक पक्षपात से मुक्ति। नारी उत्थान का अर्थ यह कदापि नहीं है की समाज नारी प्रधान हो जय और नारी समाज पुरुषों का शोषण करने लगे,या प्रताड़ित करने लगे.नारी समाज के उत्थान का तात्पर्य है उसे उसके प्रति निरंकुशता,क्रूरता,अमानवीय व्यव्हार से मुक्ति मिले.लिंग भेद से छुटकारा मिले।





  • यह कटु सत्य है नारी कल्याण के लिय बनाय गए कानूनों का दुरूपयोग भी हो रहा है,जो पुरुषों के शोषण का कारण बन रहा है.शायद हमारे कानूनों में कुछ कमियां रह गयी है,जिनका लाभ निम्न मानसिकता वाले लोग लाभ उठाते हैं





सोमवार, 24 जनवरी 2011

जरा सोचिये (भौतिक वाद और इन्सनिअत)




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१ डॉक्टर अपना मेडिकल कोर्स पूर्ण कर उपाधि लेते समय मानवता के प्रति कर्तव्य निभाने की शपथ लेता है.परन्तु जब वह अपना व्यवसाय करता है तो अपनी भौतिक अवश्यक्ताओ के वशीभूत हो कर अपनी शपथ भूल जाता है.और मरीजों से अपनी योग्यता की पूरी कीमत वसूलता है.और मानवीय मूल्यों को नकार देता है.
२ कुछ दुकान दार उद्यमी, व्यापारी खाद्य पदार्थों दवाइयों में मिलावट कर अथवा नकली माल उत्पादित कर जनता के जीवन से खिलवाड़ करते हैं. धन पिपासा ने उन्हें इन्सान से जानवर बनने को मजबूर कर दिया है.
३ शिक्षको को समाज के निर्माण करता के रूप में जाना जाता है,इसलिय उनके व्यवसाय को सम्मान की दृष्टि से देखा जाता है.परन्तु बच्चों के भविष्य निर्माण के जिम्मेवार स्कूल कालेज के प्रबंधक अभिभावकों से असीमित धनराशी वसूल कर शोषण करते हैं.और अपनी तिजोरियां भरते हैं.शिक्षक भी पढाई में उचित ध्यान न देकर ट्यूशन द्वारा कमाई करना अपना अधिकार समझते हैं. और शिक्षा को दौलतमंदों की बपोती बना कर रख दिया है.गरीब परन्तु मेधावी छात्र उच्च गुणवत्ता वाली शिक्षा से वंचित रह जाता है
४ राजनैतिक नेता जो देश के कर्णधार हैं, जिन पर जनता के कल्याण की जिम्मेदारी होती है,अपने आर्थिक लाभ के बिना कुछ भी करने को तय्यार नहीं होते. और अब तो धन लोलुपता की कोई सीमा भी नहीं रह गयी है.
५ बड़े बड़े पदों पर विराजमान अधिकारी धन के लिय देश की गुप्त जानकारियां भी बेच देने में संकोच नहीं करते.
६। न्याय की सीट पर बठे महानुभाव भी अनियमित आचरण के शक के दायरे में आने लगे हैं.
आम सरकारी कर्मी जिसका वेतनमान आम जनता की आमदनी से कही अधिक है फिर भी अतिरिक्त आमदनी पर नजर बनाय रहते हैं.
७. आम पुलिस कर्मी स्वयं को सुपरमेन समझता है अतः अधिक से अधिक भौतिक सुविधायं जुटाने के लिय आम आदमी की खाल का सौदा करता रहता है.
यही है हमारे देश की महानता

सोमवार, 17 जनवरी 2011

जरा सोचिये १७जनवरी (नेताओं के विवादस्पद बयान)



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प्रारंभ अप्रैल 2016


हमारे देश के कर्णधार अर्थात नेताओं की अक्ल का दिवाला निकल चुका है। यही कारण है है की निरंतर गैर जिम्मेदार बयान बजी करते रहते हैं।जब फंस जाते हैं तो सफाई देने का प्रयास करते हैं देखते हैं कुछ विवादस्पद बयानों के अंश;


मुंबई मराठियों की है, अन्य प्रदेशों से आए नागरिकों की नहीं.....................(राज ठाकरे।ऍम एन एस)

देश को खतरा इस्लाम से भी अधिक कट्टर हिन्दू आतंकवाद से है...............(राहुल गाँधी कांग्रेस )

दिल्ली में अन्य प्रदेशों से आए लोग अपराध करते हैं.................................(पी चिदंबरम गृह मंत्री )

केंद्रीय मंत्री मंडल में सिर्फ एक मुस्लमान मंत्री गुलाम नवी आजाद हैं और वह भी कश्मीर के हैं (आजम खान स।पा।)

मुख्य मंत्री जम्मू कश्मीर कहते हैं कश्मीर का भारत में पूर्ण विलय नहीं हुआ है।(उमर अब्दुल्ला )

पूर्व केन्द्रीय मंत्री शशि थरूर के अनुसार वायु यान में इकोनोमी क्लास में केत्तल(पशु) सफ़र करते हैं।(शशि थरूर )

उपरोक्त बयानों से स्पष्ट है,हमारे देश की बागडोर कैसे नेताओं के हाथ में है जो आपने विवादित बयान देकर देश को संकट में डालते रहते हैं।शायद ऐसे नेताओं को चुनकर भेजने में कहीं न कहीं हम यानि आम जनता भी जिम्मेवार है।

प्रिय पाठकों
प्रबुद्ध नागरिक होने के नाते हम सबका कर्तव्य है,की समाज में व्याप्त विकृतियों को संज्ञान में लें और यथाशक्ति उनको दूर करने का प्रयास करें.मेरे ब्लॉग लिखने का मकसद भी यही है.आपके द्वारा भेजे गए सुझाव आलोचनाएँ, विचार मेरे लिए प्रेरणा स्रोत साबित हो सकते हैं.धन्यवाद.

गुरुवार, 13 जनवरी 2011

JARA SOCHIYE: जरा सोचिये ....१० जनवरी २०११

JARA SOCHIYE: जरा सोचिये ....१० जनवरी २०११: "इन्सान इतना फितरती है उसे जितना अधिक धन मिल जाता है उसकी भूख भी उसी हिसाब से बढती जाती है, उसका लालच बढ़ता जाता है। यही लालच उसे कदाचार,..."

बुधवार, 5 जनवरी 2011

जरा सोचिये ५ जनवरी .2011


हम अपनी खून पसीने की कमाई से की गयी बचत को मुख्यतया दो अवसरों पर खर्च करते हैं। एक तो अपने निवास स्थान बनाने और उसकी साज सज्जा पर,दूसरे अपनी संतानों के विवाह समारोहों के अवसरों पर। गृह एवं उसकी सज्जा पर किया गया खर्च कालांतर में हमें लाभान्वित करता है परन्तु विवाह आयोजन पर किये गए खर्च में अधिकांश भाग किसी तीसरे पेशेवर व्यक्तिके हाथों में चला जाता है,जैसे मंडप मालिक,प्रोविजन स्टोर मालिक, सजावट वाला गाजे बजे वाला इत्यादि। क्योकि हम पंडितों द्वारा सुझाई गयी तारीखों पर ही विवाह संपन्न करते हैं,अतः उन चंद तारीखों पर व्यस्तता होने के कारण प्रत्येक वस्तु ,प्रत्येक पेशेवर महंगा मिलता है.जो हमारा बजट कम से कम २५% बढा देता है।

परम्पराओं के अनुसार विवाह करने के लिय अपने समाज में अपना रुतबा ज़माने के लिए भारी कीमत चुकाते हैं.यदि हम किसी भी अव्यस्त दिनांक को एवं सूक्ष्म रूप से समारोह आयोजित करे और बचाए गए पैसे को अपने बच्चों के भावी जीवन के लिए सुरक्षित कर दें तो अपने बच्चों के भविष्य के लिए लाभकारी हो सकता है.यह देखा गया है विवाह समारोह में आम आगंतुक की कोई दिलचस्पी नहीं होती वे सिर्फ अपनी उपस्थिति दर्ज कराकर चल देते हैं फिर इतना तम झाम किसलिए?क्यों न हम खास लोगों को बुला कर विवाह संपन्न करें?
 
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प्रारंभ अप्रैल 2016

सोमवार, 3 जनवरी 2011

जरा सोचिये 7 जनवरी २०११


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प्रारंभ अप्रैल 2016

  • मुसलमान ऐसा मानते हैं की मुस्लिम मत के आलावा दुनिया में जो कुछ है वह ख़राब है,इसलिए तुरंत ही उसका नाश जरूरी है


  • जो कोई स्त्री या पुरुष इस्लाम मत को न मानता हो,उसे पहले से सावधान किये बिना ही मौत के घाट उतार देना चाहिए।


  • मुसलमानों के इबादत के स्थान यानि मस्जिद के आलावा किसी भी दूसरे धेर्म की पूजा,प्रार्थना का स्थान हो तो उसको तोड़ डालना चाहिए।


  • यदि कोई पुस्तक कुरान के आलावा आदेश देती हो तो, ऐसी हर एक पुस्तक को जला डालना चाहिए।

कुरान से प्राप्त उपरोक्त सन्देश ही दुनिया में सारे फसादों की जड़ बनी हुई है.




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