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मंगलवार, 29 नवंबर 2011

कितने भाग्यशाली हैं आज के किशोर

           वर्तमान युग के किशोर वास्तव में बहुत भाग्यशाली हैं,जिन्होंने मानव विकास के उच्च स्तरीय दौर में जन्म लिया है.और जो शीघ्र ही मानव जीवन की श्रेष्ठतम पायदान अर्थात युवावस्था में प्रवेश करने वाले हैं.गत पचास वर्षों में मानव विकास में जो क्रन्तिकारी परिवर्तन आया है,वह पिछले हजार वर्षों में भी नहीं आया था . आज जो लोग अपनी वृद्धावस्था में हैं उन्होंने यह तीव्र परिवर्तन अपने जीवन काल में ही देखा है. कहीं न कहीं उन्हें मन में टीस देता है,क्यों न हम इस समय युवावस्था में होते? जीवन को जीने का वास्तविक आनंद पा सकते. जीवन संध्या में तो सारी खुशियाँ ,सारे सुख महत्वहीन हो जाते हैं.वे अपनी अभावग्रस्त जीवन शैली को सोचते हुए आज के किशोरों से इर्ष्या का अनुभव करते हैं.परन्तु एक अहसास उन्हें आत्मसंतोष भी प्रदान करता है की वर्तमान सुख सुविधाओं की उन्नति एवं विकास लाने के लिए उनकी पीढ़ी का ही विशेष योगदान है.भले ही वे स्वयं आनंद ले पाएंगे परन्तु बच्चों के लिए विशाल खुशियाँ छोड़ कर जायेंगे .इस प्रकार उनके जीवन का उद्देश्य तो पूरा हो रहा है.
वर्तमान बुजुर्ग पीढ़ी के व्यक्ति अपने अतीत को याद करते हुए अपने अनुभवों एवं अपने बचपन की जीवन शैली का वर्णन करते हुए बताते हैं,की किस प्रकार उनका जीवन यातायात के मुख्य साधन साईकिल के साथ शुरू हुआ था?.घर पर भोजन पकाने के लिए चूल्हे व् अंगीठी का प्रयोग किया जाता था .मनोरंजन के नाम पर नुक्कड़ नाटक या कहीं कहीं इक्का दुक्का फ़िल्मी परदे हुआ करते थे,वह भी काली सफ़ेद तस्वीरों के साथ.यही कारण था. जब रामलीला के दिन हुआ करते थे , उनको देखने के लिए लोगों में असीम उत्साह होता था, अपार भीड़ एकत्र होती थी और मेले लगा करते थे. समाचार या सन्देश भेजने के लिए डाक या फिर लैंड लाइन फोन का ही सहारा हुआ करता था.इसलिए यदि किसी दूसरे शहर में अपने प्रिय से बात करनी होती थी, तो घंटों ट्रंक कोल का नंबर लगने के लिए प्रतीक्षा रत रहना पड़ता था.उन दिनों शहरों में सवेरा शुरू होता था शुष्क शोचालय की कष्टसाध्य,गन्दगी और बदबू से,जो स्वास्थ्य की द्रष्टि से भी खतरनाक थीं.आवागमन के लिए मंथर गति से चलने वाली ट्रेनें ही उपलब्ध थीं,सडको के अभाव में कार और बसों का उपयोग सिमित ही हो पाता था.वैसे भी कारें चंद लोगों की सामर्थ्य में आती थीं.मोबाईल,इंटरनेट,टी.वी.,कम्प्यूटर आदि से कोई भी परिचित नहीं था. अतः छात्रो को शिक्षा प्राप्त करना ,ज्ञान अर्जित करना आसान नहीं था.(जानकारी उपलब्ध कराने के माध्यमों के अभाव में) .छात्रों को पढ़ते समय मौसम के थपेड़े सहने के लिए ऐ.सी.,हीट कन्वेक्टर,फ्रिज जैसे साधन नहीं थे.यहाँ तक की पंखे भी सीमित रूप से उपलब्ध थे क्योंकि विद्युत् उपलब्धता कुछ बड़े शहरों तक ही थी.स्वास्थ्य सेवाओं विशेष कर सर्जरी का विकास अपनी प्रारंभिक अवस्था में था और कुछ अमीर लोग ही स्वास्थ्य सेवाओं का लाभ ले पाते थे.आम आदमी को अनेक संक्रामक रोगों एवं गंभीर बीमारियों से जूझना पड़ता था.यही कारण था जब संक्रामक रोगों की चपेट में आकर गाँव के गाँव साफ हो जाया करते थे .सैंकड़ो हजारों लोग असमय मौत के शिकार हो जाते थे. उन दिनों वृद्धावस्था तो नरकतुल्य ही हो जाती थी ,क्योंकि गंभीर रोगों की चपेट में आ जाना इस अवस्था की नियति है .प्रयाप्त इलाज के अभाव में शेष जीवन कष्टों के साथ ही बिताने को मजबूर होना पड़ता था.
वर्तमान विकास की चरम अवस्था ने अनेक प्रकार की सुविधाओं के साथ साथ अनेक प्रकार की समस्याओं को भी जन्म दिया है.विश्व की आबादी पिछले पचास वर्षों इमं तीन अरब से बढ़ कर सात अरब हो गयी है .क्योंकि बढती स्वास्थ्य सेवाओं के कारण मृत्यु दर में आश्चर्य जनक रूप से गिरावट आयी है.आम व्यक्ति की औसत आयु तेजी से बढ़ी है. कठिन से कठिन रोग जो कभी लाइलाज हुआ करते थे आज उनका इलाज सफलता पूर्वक किया जाता है.बढती आबादी के कारण खाद्य समस्या,आवास समस्या,प्रदूषण समस्या,रोजगार की समस्या आदि अनेक समस्याओं ने भयंकर रूप ले लिया है.आवागमन एवं दूसंचार के माध्यमों के कारण पूरे विश्व ने एक गाँव का रूप ले लिया है.अब प्रतिस्पर्द्धा अपने शहर ,प्रदेश,या देश तक सिमित न रह कर विश्व स्तर पर हो गयी है.और यह प्रतिस्पर्द्धा गलाकाट प्रतिस्पर्द्धा में बदल चुकी है.अतः आधुनिक सुविधाओं को जुटाने के लिए,अपने जीवन को सम्मानजनक बनाने के लिए,एवं विश्व पटल पर अपने अस्तित्व को बनाये रखने के लिए,सिर्फ योग्यता प्राप्त कर लेने से आज का विद्यार्थी जीवन की ऊँचाइयों को नहीं पा सकता.आज उसे अपने अच्छे केरीयर के लिए विशेष योग्यता प्राप्त करना आवश्यक हो गया है
वर्तमान लेख का मेरा मकसद ,जो किशोर आज हाई स्कूल ,इंटर ,या फिर स्नातक के छात्र हैं और अपनी युवावस्था की दहलीज पर खड़े हैं,से आग्रह करना है "";यदि उनकी इच्छा अपने जीवन की समस्त खुशियों को पा लेना हैं,जो प्रत्येक छात्र का सपना होता है और प्रत्येक युवक को महत्वकांक्षी होना भी चाहिए "".परन्तु अपनी महत्वाकांक्षा को पूर्ण करने के लिए सार्थक प्रयास करना भी आवश्यक है.सिर्फ सपने बुनने से काम नहीं चल सकता .शिक्षा ही एक मात्र विकल्प है जो आपको जीवन की सभी खुशियाँ दिला पाने में मदगार बन सकता है.आपका वर्तमान छात्र जीवन भविष्य सुधारने का सुनहरा अवसर है.यह सुनहरी अवसर जीवन में दोबारा नहीं आता .अतः इस अवसर का लाभ उठाते हुए एक ऋषि की भांति मेहनत एवं लगन से अध्ययन करते हुए,एकलव्य की भांति अपने लक्ष्य को एकाग्रचित्त होकर भेदना होगा. दुनिया की चकाचौंध आपको लगातार विचलित करती रहेगी,आपको पथभ्रष्ट करने का प्रयास करेगी,परन्तु छात्र जीवन के चंद वर्षों के संयम से पूरे जीवन के लिए आनंद और खुशियों को अपना दास बनाया जा सकता है. अतः इस अमूल्य छात्र जीवन को जीवन संवारने के लिए समर्पित करना होगा.
आज कुछ अराजक तत्व अपने व्यापारिक हितों के लिए किशोरों,युवाओं को नशे का शिकार बनाकर उनके जीवन से खिलवाड़ कर रहे हैं.नशा बीडी,सिगरेट ,शराब का हो या अफीम,चरस, गंजा हेरोइन जैसे मादक द्रव्यों का हो,मानव को छणिक तौर पर झूठे आनंद के सागर में पहुंचा कर उनका पूरा जीवन कलुषित कर देता है ,.उन्हें मानसिक,आर्थिक,शारीरिक हानि पहुंचा कर भिखारी बना देते हैं.उनकी जिन्दगी जानवरों जैसी बना देते हैं.अपराधी किस्म के लोग अपने तुच्छ लाभ के लिए युवाओं को तथाकथित छणिक आनंद का लालच दे कर अपने जाल में फंसाते हैं और उनकी जीवन भर की खुशियों को ग्रहण लगा देते हैं और समाज के लिए भी परेशानियाँ खड़ी करते हैं.
यदि आज का छात्र अपने सयंमित जीवन के साथ अपने लक्ष्य की और बढेगा तो अवश्य ही अपने जीवन के लिए,परिवार के लिए,देश के लिए योग्य नागरिक बन सकेगा.अपना जीवन तो सवारेगा ही अपने परिवार, समाज और देश का भी हित करेगा .
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सत्य शील अग्रवाल

गुरुवार, 24 नवंबर 2011

व्यंग (भाग छः)


नागरिक;अब तो अन्ना टीम के प्रत्येक सदस्य के कच्चे चिट्ठे खुलते जा रहे हैं.
पत्रकार:आज हमारे देश में ऐसा माहौल बन चुका है, प्रत्येक व्यक्ति कहीं न कहीं कोई न कोई अनियमितता का दोषी पाया जा सकता है.यदि किसी व्यक्ति या टीम की गलतियों को ढूँढने में सरकार अपनी पूरी ताकत झोंक दे, तो कुछ न कुछ तो मिल ही जायेगा.
नागरिक; क्या यह उचित है,किरण बेदी ने अवैध रूप से कम्पनी से अधिक पैसे वसूल कर गरीबों को दान दे दिया.क्या समाज सेवा के लिए ही सही अवैध धन वसूलना अपराध की श्रेणी में नहीं माना जायेगा?
पत्रकार; आपकी बात बिलकुल सही है,नियम विरुद्ध किया गया कोई भी कार्य अवैध माना जायेगा, उसका उद्देश्य कुछ भी हो.
नागरिक; प्रख्यात वकील होते हुए भी प्रशांत भूषण जैसे प्रबुद्ध नागरिक, कश्मीर मुद्दे पर अपने विवादस्पद बयान जारी करें, क्या यह उचित है?अन्ना कोर कमिटी के सदस्य होने के नाते कितना सही था उनका बयान?
पत्रकार; व्यक्तिगत राय होना अलग बात है,परन्तु उसे सार्वजानिक मंच पर बोल देना, वह भी जब आप स्वयं एक संवेदनशील एवं राष्ट्रिय हित के मुद्दे से जुड़े हों,समझदारी का कदम नहीं माना जा सकता.
नागरिक;कुमार विश्वास को अपनी कक्षाएं मिस करने एवं छात्रों के जीवन से खिलवाड़ करने का दोषी पाया गया है,क्या यह आरोप भी गलत है?
पत्रकार;जब किसी को बदनाम करने की नियत से बाल की खाल निकालनी है तो कहीं न कहीं सभी दोषी सबित किये जा सकते हैं.
नागरिक;केजरीवाल पर लाखों बाकी का नोटिस थमा दिया गया अर्थात उन्हें भी दोषी करार दिया जा चुका है.
पत्रकार; केजरीवाल स्वयं सरकारी नौकरी में थे अतः सरकार उनको आसानी से कही भी फंसा सकती है.
नागरिक;परन्तु अन्ना टीम और उनके आन्दोलन का क्या होगा ? क्या जनता की सारी उम्मीदों पर पानी फिर जायेगा? उसे फिर किसी इमानदार अन्ना टीम का इंतजार करना होगा?
पत्रकार; किसी भी टीम या व्यक्ति पर लगे आरोपों का, उनके द्वारा चलाया जा रहा आन्दोलन क्यों प्रभावित होगा?वे स्वयं भ्रष्टाचार के विरुद्ध कानून बनाने की मांग कर रहे हैं,न की स्वयं को निर्दोष साबित करने की मुहिम चला रहे हैं. जन लोकपाल बिल बनने के बाद यदि उनकी टीम के सदस्य पर आरोप सिद्ध होता है, तो वे भी सजा के बराबर के हक़दार होंगे. किसी को चोर सिद्ध कर देने से डकैत का अपना गुनाह तो काम नहीं हो जाता.परन्तु शायद सरकार यह भ्रम पाले हुए है अन्ना टीम पर आरोप लगा कर उन्हें और जनता को दिग्भ्रमित कर दिया जाये और उनकी भ्रष्टाचर की गाड़ी यथावत चलती रहे.

शनिवार, 19 नवंबर 2011

व्यंग (पांच)

एक नागरिक.;मुझे बहुत अफ़सोस है,बयालीस वर्ष तक एक छात्र राज करने वाले लीबिया के शासक का अंत कितना दर्दनाक हुआ. कितनी अपमानजनक मौत का शिकार हुआ.
पत्रकार;यही मुख्य अंतर होता है,लोकतंत्र और राजतन्त्र में. हमारे यहाँ प्रत्येक उच्च पदाधिकारी जीवन पर्यंत ससम्मान रहता है. सरकार की तरफ से सारी सुविधाएँ उपलब्ध करायी जाती हैं.
नागरिक;परन्तु हमारे यहाँ तो लोकतंत्र,ठोकतंत्र बन चुका है. जनता की आवाज को सत्ताधारी नेता कुचल देना चाहते हैं, अपने को राजा और जनता को अपना गुलाम मानते हैं.जनता की आवाज बुलंद करने वालों को हैरान,परेशान करते हैं.
पत्रकार;सत्ता का नशा ही कुछ ऐसा होता है.
नागरिक;जहाँ जनता का राज नहीं होता वहां भी यदि जनता जब सड़कों पर आ जाती है,तो तानाशाह का अंत भी कितना भयानक होता है,फिर लोकतंत्र में यदि कोई नेता मनमानी करता है तो अपने पैरों पर स्वयं कुल्हाड़ी मारता है.कपिल सिब्बल,मनीष तिवारी,दिग्विजय सिंह जैसे नेताओं को लीबिया से सबक लेना चाहिए. जनता की ताकत को झुठलाना नहीं चाहिए.
पत्रकार;ये नेता अपना मानसिक संतुलन खो चुके हैं,उन्हें मतिभ्रम हो गया है. शायद सत्ता में आकर वे जनता को बेवकूफ और स्वयं को महाविद्वान समझने लगे हैं.
नागरिक;सो तो है.

सोमवार, 14 नवंबर 2011

मराठी बनाम उत्तर भारतीय

गत अनेक वर्षों से शिव सेना प्रमुख श्री बालठाकरे एवं महाराष्ट्र नवनिर्माण सेना के प्रमुख श्री राज ठाकरे,महाराष्ट्र में कार्यरत उत्तर भारतीयों के विरुद्ध जहर उगलते रहते हैं,उनकी पार्टी कार्यकर्ताओं द्वारा उन्हें अनेक प्रकार से परेशान किया जाता है,अवैध वसूली की जाती है,आटो चालकों को विशेष रूप से प्रताड़ित किया जाता है,उन पर अनेक प्रकार के अंकुश लगाये जाते हैं.इस प्रकार उत्तर भारतीयों के साथ किया गया व्यव्हार,क्षेत्रवाद,भाषावाद को बढ़ावा देता है.अपनी महत्वाकांक्षाओं की पूर्ती के लिए की गयी तुच्छ राजनीति का हिस्सा है.अपनी राजनैतिक पैठ बढ़ने के लिए किया गया गैर जिम्मेदाराना कार्य है. इस प्रकार का व्यव्हार सम्विधान की मूल भावना"पूरे देश के प्रत्येक नागरिक को कहीं भी रोजगार पाने,निवास करने,और भ्रमण करने का पूर्ण अधिकार है." के विरुद्ध है.अतः भाषा के आधार पर वैमनस्य फैलाना ,क्षेत्र वाद को बढ़ाना कोरी स्वार्थपरता है.अब चाहे वह पी चिदम्बरम के गैर दिल्ली वासियों के लिए किया गया बयान हो या फिर राहुल गाँधी द्वारा भीख मांगने जैसा अपमानजनक भाषण हो.
आधुनिक वैश्वीकरण के युग में पूरे विश्व को एक गाँव के रूप में परिवर्तित किया जा रहा है,समस्त विश्व के देश आपसी सहयोग द्वारा श्रमशक्ति एवं तकनिकी का आदान प्रदान कर रहे हैं.ऐसे समय में यदि हम भाषावाद एवं क्षेत्रवाद जैसे मुद्दों में उलझे रहेंगे तो देश को पीछे धकेलने का ही काम करेंगे, जो पूर्णतया अप्रासंगिक है.जब विश्व के सभी देशों के नागरिक एक दूसरे देश में जाकर रोजगार कर सकते हैं,नौकरी कर सकते हैं,तो अपने देश के नागरिक अपने देश में ही पराये क्यों?क्या महाराष्ट्र के लोग शेष देश में रोजगार नहीं करते ,नौकरी नहीं करते?या फिर महाराष्ट्र के लोगों को देश के अन्य हिस्सों में जाने की आवश्यकता नही पड़ती?
यह बात सही है की "किसी भी क्षेत्र की जनता का वहां के उपलब्ध संसाधनों पर पहला अधिकार होता है".परन्तु जब यही अधिकार अन्याय का कारण बनने लगे तो देश एवं समाज के लिए घातक हो जाता है.अतः यह तो उचित है की किसी व्यक्ति को सरकारी या गैरसरकारी नौकरी देते समय या रोजगार के अन्य अवसर उपलब्ध कराते समय क्षेत्रवासियों को वरीयता दी जाय.उन्हें प्रतिस्पर्द्धा में कामयाब होने के लिए आवश्यक साधन उपलब्ध कराएँ जाएँ. परन्तु गुणवत्ता के आधार पर पक्षपात किया जाना सर्वथा विकास के विरुद्ध है. गुणवत्ता में कहीं कोई समझौता नहीं होना चाहिए. बैसाखी के सहारे से कभी क्षेत्र का विकास संभव नहीं है.
भाषा एवं क्षेत्र के आधार पर पक्षपात करना,अपमान करना अपने क्षेत्र को द्वेषभाव एवं अशांति के गर्त में डालना है.देश के प्रत्येक हिस्से से योग्य व्यक्तियों को अपने यहाँ आमंत्रित करना ,उन्हें हर प्रकार की सुविधाएँ देकर प्रोत्साहित करना, वर्तमान युग की मांग है.क्षेत्र के विकास के लिए आवश्यक है. क्षेत्र के समुचित विकास द्वारा ही क्षेत्रीय नेताओं का भविष्य भी सुरक्षित बन सकेगा.


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*SATYA SHEEL AGRAWAL*
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शनिवार, 12 नवंबर 2011

व्यंग ( भाग चार)

संता ;बंता भाई,क्या तुम्हे लगता है,अन्ना साहेब के पास जन्लोकपाल का कोई जादुई चिराग है,जो देश से भ्रष्टाचार को समाप्त कर देगा.अर्थात सभी नेता और नौकर शाह ईमानदार हो जायेंगे और भ्रष्ट आचरण छोड़ देंगे .
बंता;संता,तुम वाकई नादान हो ,क्या आप अपने खजाने को चोराहे पर रख कर ,कमजोर पहरेदार बैठाकर उसकी सुरक्षा की खैर मना सकते हैं? हमरे यहाँ तो लुटेरों को भी संरक्षण मिलता है फिर खजाना क्यों न लूटेगा?हमारे देश का वर्तमान कानून उसको रोक पाने में सक्षम नहीं है इसीलिए घोटाले पर घोटाले होते चले जाते हैं.
संता; आपके कहने का तात्पर्य है की जन्लोकपाल बिल इतना मजबूत कानून देगा जो किसी को भी भ्रष्ट आचरण नहीं करने देगा.
बंता; हाँ,साथ ही भ्रष्टाचार में लिप्त पाए गए व्यक्ति को सख्त से सख्त सजा भी मिलेगी जिससे से कोई भ्रष्ट आचरण करने से पहले दस बार सोचेगा.इस प्रकार जनता के साथ न्याय हो सकेगा .
संता ;फिर सत्ताधारी नेताओं को क्या आपत्ति है,मजबूत लोकपाल बिल लाने में और उसको पास कराने में?
बंता ;यह तो स्पष्ट है,वे भ्रष्टाचार में लिप्त हैं और भयभीत हैं कहीं उनके द्वारा बनाया कानून ही उन्हें जेल की सलाखों के पीछे न पहुंचा दे .

रविवार, 6 नवंबर 2011

व्यंग(तृतीय)

एक तर्कशास्त्री ;क्या कोई व्यक्ति दावा कर सकता है की वह शुद्ध शाकाहारी है?

अध्यापक ; हाँ,हाँ , उत्तर भारत में काफी लोग शुद्ध शाकाहारी हैं. और वह भी बहुत बड़ी संख्या में.

तर्क शास्त्री;अच्छा बताओ शुद्ध शाकाहारी किसे कहते हो ?

अध्यापक ; साधारण सी बात है,जो व्यक्ति पेड़ पौधों से प्राप्त फल फूल,इत्यादि का सेवन करता है उनसे बने व्यंजनों को ग्रहण करता है,मास मछली का उपयोग नहीं करता
.
तर्क शास्त्री; अच्छा बताओ कौन सा शाकाहारी ऐसा है जो दूध,दही,सिरका, शहद का सेवन न करता हो?

अध्यापक ;तुम्हें मालूम होना चाहिए जिनके नाम तुमने लिए हैं सभी शाकाहारी भोजन माने जाते हैं

तर्क शास्त्री; आप ही तो पढ़ाते हो दूध से दही,गन्ने के रस से सिरका अनेक बेक्टीरिया के कारण बनता है.अर्थात अनेक बेक्टीरिया उनमे विद्यमान होते हैं.और फिर दूध कौन से पेड़ से निकलता है, .शहद भी मधुमखियों द्वारा एकत्र किया हुआ उनका भोजन होता है,.फिर दूध दही शहद शाकाहारी में कैसे हो गए?

अध्यापक; तर्कशास्त्री जी ,बस करिए आप से कभी कोई जीता है.हम हार गए आप जीते..


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*SATYA SHEEL AGRAWAL*
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बुधवार, 2 नवंबर 2011

व्यंग (भाग दो)

मोहन लाल ;बहुत शर्म की बात है हमारे समाज में नारियों को हजारो वर्षों से प्रताड़ित किये रखा गया है उसे कभी पुरुषों के बराबर का स्थान नहीं दिया गया .
राजेश ;इसी समाज की यह भी खासियत है ,किसी भी पुरुष के लिए उसकी पत्नी (पत्नी के रूप में नारी) उसका चरित्र प्रमाण पत्र भी होती है.
मोहन लाल;परन्तु वह कैसे ?
राजेश; बिना पत्नी के पुरुष को मकान किराये पर नहीं मिलता,परिवार में विवाह के पश्चात् किसी भी पुरुष का सम्मान बढ़ जाता हैउसकी विश्वसनीयता बढ़ जाती है .बिना पत्नी के पुरुष को किसी परिवार बेरोकटोक प्रवेश की अनुमति नहीं मिलती. अकेला पुरुष (पत्नी के बिना)समाज में संदेह के घेरे में रहता है. यहाँ तक की पत्नी के साथ जाने वाले व्यक्ति को पुलिस वाला भी आसानी (बिना ठोस सबूत के )हाथ नहीं डालता
मोहन लाल; बात तो पाते की है.
राजेश ; अब बताइए सम्माननीय नारी है या आप ? .

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*SATYA SHEEL AGRAWAL*
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