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रविवार, 16 नवंबर 2014

देश के वरिष्ठ नागरिकों के लिए भी सोचें मोदी जी

       
अपने देश में करीब दस करोड़ ऐसे नागरिक हैं जो वरिष्ठ नागरिक की श्रेणी में आते हैं.   यह संख्या तेजी से बढ़ रही है. इस वर्ग के नागरिकों को अनुत्पादक नागरिक माना जाता है क्योंकि अधिकतर वरिष्ठ नागरिकों के स्वयं के आय स्रोत नहीं होते,इसलिए उनकी जिम्मेदारी परिवार या समाज उठाता है.आज सरकारी सेवाओं से निवृत सरकारी कर्मियों को सरकार पेंशन उपलब्ध कराकर उनके भविष्य को सुरक्षित कर चुकी है.परन्तु शेष वरिष्ठ नागरिकों के लिए सरकार की ओर से कोई आर्थिक सुरक्षा का प्रावधान नहीं है. 2010 में प्राप्त आंकड़ों के अनुसार लगभग 55%बुजुर्ग अपनी आर्थिक आवश्यकताओं के लिए अपनी संतान पर निर्भर हैं.जो उन्हें संतान पर बोझ बने रहने का अहसास कराता है. परन्तु यदि संतान लापरवाह और संवेदनहीन है तो स्थिति और भी भयावह हो जाती है.आज के बढ़ते भौतिक वाद के कारण भी बुढ़ापा एक समस्या बनता जा रहा है.यद्यपि हमारे देश की सरकार के लिए विकसित देशों की भांति सभी बुजुर्गो (विशाल संख्या)के भरण पोषण के लिए राजकोष से व्यवस्था कर पाना संभव नहीं है.परन्तु यदि हमारी सरकार कुछ छोटे कदम उठाकर बुजुर्गों को निम्न रूपों में सहायता दे सके तो शायद हमारे देश का बुढ़ापा, आर्थिक रूप से अधिक सुरक्षित हो सकेगा.
        अनेक  बुजुर्ग  ऐसे  भी  हैं  जिनकी  संतान  महत्वपूर्ण  पदों  पर  आसीन  है ,उद्योगपति  हैं ,व्यापारी  हैं और  आयकर  विभाग  को  टैक्स  के  रूप  में  भारी  भरकम  रकम  भी  चुकाते  हैं ,तथा  अपने  बुजुर्गों  को  जीवन  यापन  के  लिए अपने कर्तव्यों का निर्वहन करते हुए, अपने  आए  के  स्रोतों  से धन उपलब्ध  कराते  हैं,उनकी सभी आवश्यकताओं को पूर्ण करते हैं, या  उनके  बुजुर्ग  उन  पर  निर्भर  रहते  हुए  उनके  साथ  रहते  हैं . यदि उन्हें उनके द्वारा अदा किये जा रहे आयकर  में  इतनी  छूट  दी  जाये  जो  बुजुर्ग  के  भरण  पोषण  के  लिए  उसके  जीवन  स्तर  के  अनुसार  आवश्यक  हो ,.यह छूट उसके दवारा बुजुर्ग के खाते में स्थानांतरित रकम के अनुरूप प्रदान करने की व्यवस्था हो तो अवश्य ही हमारे देश के बुजुर्ग सम्माननीय जीवन जी सकेंगे और उन्हें संतान पर बोझ बन कर जीने का अहसास भी नहीं रहेगा.संतान के लिए भी उनका जीवन बोझ नहीं लगेगा क्योंकि उनके जीवन के कारण ही उन्हें उनके भरण पोषण के लिए आवश्यक राशि की आय कर में छूट मिल रही है.
     जैसा की हमारे देश में सभी वरिष्ठ नागरिकों को बेंकों में फिक्स डिपाजिट पर आधा प्रतिशत ब्याज अधिक दिया जाता है, जो बुजुर्गों के लिए विशेष लाभकारी सिद्ध नहीं होता.यदि यह अंतर दो प्रतिशत का दिया जाय तो अनेक बुजुर्गों का भरण पोषण अपेक्षाकृत आसान हो जाएगा.
     अनेक व्यापारी,या निजी कारोबारी भाई जो अपने अक्षम शरीर के कारण  व्यापार/कारोबार  चला पाने में अक्षम हैं,या वे अपने व्यापार/कारोबार  को अपनी संतान को स्थानातरित कर चुके हैं,अथवा किसी मजबूरी के कारण अपने व्यापार/कारोबार  को बंद कर चुके हैं.उन्हें भी सरकार भरण पोषण के लिए कोई योजना बनाये. जो उनके द्वारा अपने कार्यकाल में कुल जमा कराये सरकारी राजस्व के अनुपात में निश्चित की जाय तो इससे दो लाभ होंगे एक तो सरकार की बुजुर्गों के प्रति अपनी जिम्मेदारी पूरी हो सकेगी, दूसरी ओर एक आम व्यापारी या निजी कारोबारी सरकार द्वारा निर्धारित टेक्स को ईमानदारी से  अधिक से अधिक चुकाने में दिलचस्पी ले सकेगा जिसका लाभ सीधे तौर पर राजकोष पर पड़ेगा.
       प्रत्येक शहर में कम से कम एक वृद्ध आश्रम का सञ्चालन सुनिश्चित किया जाय,जो उक्त शहर के सभी इच्छुक वरिष्ठ नागरिकों को प्रवेश दे सके उनकी मूल आवश्यकताओं को पूरा किया जा सके ताकि अकेले रहने को मजबूर या आर्थिक रूप से अक्षम वरिष्ठ नागरिक आश्रय प्राप्त कर सकें.प्रत्येक आश्रम का आर्थिक भार प्रदेश और केंद्र सरकार मिल कर वहन करें,परन्तु आश्रम का प्रबंधन निजी हाथों को सौंपा जाय.
      उपरोक्त कदम उठा कर सरकारी राजकोष पर बहुत अधिक प्रभाव नहीं पड़ेगा और कुछ वरिष्ठ नागरिकों का जीवन आसान हो जायेगा

     वरिष्ठ नागरिकों की समस्याओं पर आधारित पुस्तक “जीवन संध्या”  अब ऑनलाइन फ्री में उपलब्ध है.अतः सभी पाठकों से अनुरोध है www.jeevansandhya.wordpress.com पर विजिट करें और अपने मित्रों सम्बन्धियों बुजुर्गों को पढने के लिए प्रेरित करें और इस विषय पर अपने विचार एवं सुझाव भी भेजें.   


मेरा   इमेल पता है ----satyasheel129@gmail.com






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