Powered By Blogger

गुरुवार, 31 मार्च 2011

इन्सानिअत का धेर्म -1-4 2011

1 जीवित बुजुर्ग को बीते वेर्ष का केलेंडर समझ केर उसकी मौत की प्रतीक्षा करना ,परन्तु मरणोपरांत अश्रुपूरित नेत्रों से श्राद्ध का आयोजन करना ,महेज एक नाटक नहीं तो और क्या है ?
२,जीवन में एक हज यात्रा कर लेने से जेन्नत का रास्ता मिल जाता है ,गंगा में स्नान करने अथवा राम का जप करने से पापों से यानि दुष्कर्मों से मुक्ति मिल जाती है । क्या इस प्रकार की धार्मिक मान्यतायं अपरोक्ष रूप से इन्सान की दुष्कर्मों के लिए प्रेरणा स्रोत नही बन जाती ?
३,मुस्लिम धेर्म में रमजान के माह में सयंमित भोजन धारण कर शरीर को नई ऊर्जा से स्फूर्त किया है साथ ही अलग अलग मौसम में भूखे प्यासे रहकर सहन शक्ति की वृधि होती है ।
४,किसी नदी में स्नान करने का अर्थ है ,प्रकृति की गोद में स्नान करना । जहाँ पर मानव शरीर एक साथ पांचों तत्त्व अर्थात अग्नि, प्रथ्वी, जल, वायु अवं आकाश के सम्पर्क में आता है । यदि प्रदूषित जल स्वास्थ्य का दुश्मन बन कर न खड़ा हो।
५,इतिहास गवाह है धार्मिक वर्चस्व के लिए बड़े बड़े युद्घ लेर्हे गए ,आज भी विश्व व्याप्त आतंकवाद के रूप में धार्मिक छद्म युद्घ जारी है।
६वेश्विकरन के इस युग में कोई भी देश अपने दम पर विकास की सीर्ही नहीं चढ़ सकता । अतः धार्मिकता के स्थान पर इन्सानिअत को महत्त्व देना समय की आवश्यकता बन गई ह

कोई टिप्पणी नहीं: