Powered By Blogger

शनिवार, 31 दिसंबर 2011

पाश्चात्य देशों का अनुसरण कितना उचित?


WITH BEST WISHES OF NEW YEAR 2012 TO ALL MY FRIENDS, NEARS, DEARS
हमारे देश का युवा वर्ग पश्चिमी देशों की चमक दमक से इतना अधिक प्रभावित है,की उसे वहां की प्रत्येक जीवन चर्या को अपनाना ही विकास का,उन्नति का द्योतक लगने लगा है.उन देशों का खान पान,रहन सहन,फैशन को बिना उचित अनुचित का विचार किये ही अपना लेना,अपना उद्देश्य बना लिया है.उन देशों का अनुसरण करना ही आधुनिकता की निशानी माना जाने लगा है. उन देशों के खान पान,रहन सहन आदि को ,उन देशों की प्राकृतिक स्तिथि ,सामाजिक संरचना,इतिहास के बारे में जाने बिना,अपनाते जाना भारतीय परिवेश के लिए घातक सिद्ध हो रहा है.
पश्चिमी देशों की जलवायु हाड़ कंपा देने वाली ठंडी होने के कारण रम व्हिस्की अर्थात अल्कोहलिक पदार्थों का सेवन करना वहां के निवासियों की आवश्यकता है,यह कोई शौक या फैशन नहीं है,परन्तु जब भारत जैसे गर्म देशों में आधुनिकता के नाम पर शराब का सेवन किया जाता है तो शारीरिक एवं आर्थिक दृष्टि से हानि कारक है,क्योंकि शराब हमारे देश में मजबूरी नहीं बल्कि शौक है, फैशन है,आधुनिक दिखने का ढकोसला है
इसी प्रकार पश्चिमी देश जिन्हें विकसित देश भी माना जाता है,उनकी सामाजिक संरचना हमारे देश से बिलकुल भिन्न है.वहां पर हमारे देश की भांति अपनी संतान को उसकी पढाई लिखी,उसके रोजगार ,उसके शादी -विवाह तक अपना सहयोग देते है,जिसके कारण उसका बच्चा करीब पच्चीस वर्ष तक माता पिता एवं परिवार का प्यार दुलार प्राप्त करता है.युवा बालक भावनात्मक रूप से अपने माता पिता से अधिक सम्बद्ध रहता है, जबकि पश्चिमी देशों में अनेक बार युवाओं को यह भी पता नहीं होता की उसकी माता कौन है और उसका पिता कौन है?उसकी माँ ने अपने जीवन में कितनी शादियाँ की थीं, और बाप ने कितनी बार मां बदली थीं.दूसरी बात माता पिता अपने बच्चे की जिम्मेवारी सिर्फ दस बारह वर्ष तक ही उठाते हैं, तत्पश्चात
बच्चा या तो स्वयं अपना खर्च उठता है या फिर सरकारी योगदान से उसका भरण पोषण होता है पढाई लिखाई करता है, होटल आदि में पढाई लिखाई की व्यवस्था होती है. अतः वहां पर संतान का माता पिता के प्रति ,या माता-पिता का बच्चे के प्रति संवेदनात्मक रिश्ता समाप्त प्रायः हो जाता है यदि भारतीय युवा भी पश्चिमी देशों की नक़ल कर अपने बुजुर्गों की उपेक्षा करता है तो यह न तो उसके स्वयं के लिए जिसे कल बुजुर्गों की श्रेणी में भी आना है,और न ही वर्तमान बुजुर्गों के हित में है,क्योंकि विकसित देशों की सरकारें इतनी सक्षम हैं की वे अपने देश के सभी बुजुर्गों का भरण पोषण राजकोष से कर सकती हैं.जबकि हमारे देश की सरकार अपेक्षाकृत गरीब है, जो देश की विशाल जनसँख्या के कारण, सबका खर्च वहनकर पाने में सक्षम नहीं है. अतः उसे परिवार पर निर्भर रहना भारतीय सन्दर्भ में मजबूरी है.
पश्चिमी देशों के इतिहास पर नजर डालें तो हम देखते हैं,इन देशों ने सैकड़ों वर्षों तक एशियाई देशों को अपना गुलाम बनाय रखा है.अतः उन्होंने एशियाई देशों की धन सम्पदा को लूट खसोट कर अपने देशों को संपन्न कर लिया और आज विकसित देशों की श्रेणी में आ गए, अर्थात उनका जीवन संघर्ष लगभग समाप्त हो चुका है.जबकि भारत जैसे एशियाई देश अपने विकास के लिए संघर्ष रत हैं, गुलामी ने उन्हें उपलब्ध संसाधनों का अपने विकास के लिए उपयोग नहीं करने दिया. यही कारण है, ,की अपार प्राकृतिक सम्पदा के होते हुए भी की हमारे देश की सरकार इतनी सक्षम नहीं हैं कि अपने देश के सभी नागरिको की न्यूनतम आवश्यकताओं की पूर्ती अपने खजाने से कर पाये.
पश्चिमी देशों की कठोर जलवायु के कारण वहां की जनसँख्या एशियाई देशों के मुकाबले कम ही रहती है. सिमित जनसँख्या के कारण भी उन देशों की सरकारें अपने सभी नागरिकों का ध्यान रख पाने में सक्षम रहती हैं.हमारे देश की विस्फोटक जनसँख्या भी देश के शीघ्र विकास में रोड़ा बनती है.यद्यपि युवा श्रमशक्ति की यदि सदुपयोग हो तो विकास शीघ्रता से किया जा सकता है. अतः हमें पश्चिमी देशों की नक़ल करते समय उन दशों की स्तिथि,एवं उनकी सामाजिक संरचना का भी आंकलन करना आवश्यक है.
उनकी सभ्यता में इंसानियत एवं आत्मीयता का सर्वथा अभाव है,सिर्फ सम्पन्नता ही देखने को मिलती है,जबकि हमरे देश में प्यार,मान सम्मान,मानवीयता आज भी बाकी है,जिसका मूल्य सिर्फ यहाँ का निवासी ही समझ सकता है.संपन्न देशो के नागरिक अपनी मानसिक शांति प्राप्त करने के लिए भारत आते हैं.जो उनकी मानसिक स्तिथि का द्योतक है.

--


सत्य शील अग्रवाल

शनिवार, 24 दिसंबर 2011

तंत्र मंत्र के रूप में अपराध

आए दिन समाचार पत्रों में पढने को मिलता है ,बस्ती का कोई बालक कई दिनों से लापता है,किसी बालक की बलि चढ़ा दी गयी है,अथवा तंत्र मन्त्र की आड में व्यभिचार किया गया.उपरोक्त सभी अपराध तांत्रिकों द्वारा आयोजित किये गए होते हैं,अथवा उनके द्वारा प्रोत्साहित किये जाने का परिणाम होते हैं. इस प्रकार के कारनामों,अपराधों के लिए जितना हमारा शासन, प्रशासन एवं देश का लचीला कानून दोषी है उससे भी अधिक हमारे समाज की गली सड़ी मानसिकता,दकियानूसी सोच जिम्मेदार है
पिछड़े क्षेत्रों,,देहाती क्षेत्रों विशेष कर जहाँ शिक्षा का प्रचार प्रसार सिमित अवस्था में है,परिवार में किसी मानसिक रोगी का उपचार कराना हो ,किसी विपदा का निवारण करना हो ,किसी लम्बी बीमारी का इलाज न हो पा रहा हो ,व्यापार में घाटा हो रहा हो इत्यादि सभी कष्टों का इलाज तांत्रिकों के यहाँ ढूंढा जाता है.इनका अन्धविश्वास ही तांत्रिकों को प्रोत्साहित करता है,और अपराधों का जन्म होता है,जो हमारे समाज के लिए कोढ़ साबित हो रहे हैं.
कुछ तांत्रिक किसी महिला को पुत्र प्राप्ति के लिए किसी अन्य महिला के पुत्र को बलि चढाने के लिए उकसाते हैं,जो हत्या के अपराध के रूप में सामने आता है,किसी बालक पर भूत का साया बता कर उसे रोग मुक्त करने के लिए झाड़ फूंक का विकल्प सुझाते हैं,और सभी परिजनों के सामने अनेक प्रकार के अत्याचार करते हैं यथा कभी उन पर आग से सुर्ख लाल सलाखें दागी जाती हैं.कभी छोटे छोटे बच्चों को सिर्फ चेहरे को छोड़ कर समस्त शरीर को जमीन में गाड दिया जाता है,और कभी कभी मरीज को काँटों पर चलने को मजबूर किया जाता है.अनेक बार मानसिक रूप से पीड़ित महिला को विभिन्न प्रकार से प्रताड़ित किया जाता है.उपरोक्त सभी कर्म कंडों में कहीं न कहीं परिजनों की सहमती रहती है और उनकी उपस्थिति में ही मरीज अथवा पीड़ित व्यक्ति चीखता चिल्लाता है परन्तु परिजन अन्धविश्वास के वशीभूत हो कर अपने प्रिय को तड़पता देखते रहते हैं,कडुवे घूँट पीते रहते हैं.कितना दर्दनाक मंजर होता है,जब कोई तांत्रिक सबके सामने उनके प्रियजन को आघात करता है और सब मूक दर्शक बन कर देखते रहते हैं. .
तंत्र मन्त्र,भूत प्रेत ,पड़िया पंडित,तांत्रिकों पर विश्वास करना हमारे तथाकथित विकसित एवं सभ्य समाज पर कलंक है. वर्तमान समय में सभी रोगों की उन्नत चिकत्सा सुविधाओं के होते हुए भी जनता का अवैज्ञानिक उपचारों की तरफ भागना गुलामी का प्रतीक हैं.हमारे देश में धार्मिक कर्म कंडों के लिए मिली स्वतंत्रता का लाभ उठाते हुए तांत्रिक अपनी दुकानदारी चलाते हैं और अपराधों,व्यभिचारों को बढ़ावा देते हैं. जब कोई बड़ा अपराध होता है तो स्थानीय प्रशासन तांत्रिकों की पकड़ धकड़ करता है,उसके बाद फिर सब कुछ सामान्य हो जाता है.अतः तांत्रिकों का वर्चस्व समाप्त करने के लिए जहाँ जनता को जागरूक होना आवश्यक है वहीँ प्रशासन को सभी तंत्र मन्त्र के कर्म कांडों को प्रतिबंधित कर सख्ती से पेश आना चाहिए..

--


सत्य शील अग्रवाल

शुक्रवार, 16 दिसंबर 2011

महिलाओं को दायित्व भी समान रूप से सौंपे जाएँ

यदि महिलाओं को समानता की बातें की जाती हैं,आन्दोलन चलाये जाते हैं,तो बेटियों एवं महिलाओं को परिवार के बेटे के समान दायित्वों का भार भी समान रूप से दिया जाना चाहिए. अन्यथा भाई बहन के रिश्तों में खटास आनी स्वाभाविक है, आपसी द्वेष भाव बढ़ने की पूरी सम्भावना है. महिलाओं के आन्दोलन को भी सफल और सार्थक मुकाम नहीं मिल पायेगा. यहाँ पर कुछ उदाहरण प्रस्तुत हैं जो महिलाओं के समानता के अधिकार को बेमाने कर रहे हैं.

#बेटियों को माता या पिता का अंतिम संस्कार की इजाजत, आज भी समाज नहीं देता यहाँ तक यदि मृतक के कोई पुत्र नहीं है तो भी बेटी को अंतिम संस्कार नहीं करने दिया जाता.क्यों? क्योंकि वह एक लड़की है ,एक महिला है.

#सरकारी कानूनों के अनुसार माता पिता की जायदाद पर बेटे और बेटियों को बराबर अधिकार मिला हुआ है,परन्तु माता पिता के भरण पोषण, सेवा सुश्रुसा की जिम्मेदारी,कानूनी या सामाजिक रूप से बेटी और दामाद की क्यों नहीं है?
#आज भी माता पिता,दादी बाबा के पैर छूने का अधिकार सिर्फ बेटे एवं पोते का होता है, बेटी और नातिन को क्यों नहीं?क्या वे उनकी संतान नहीं?यदि हम दकियानूसी एवं पारंपरिक सोच में फंसे रहेंगे तो महिला को समानता का अधिक्र कैसे उपलब्ध होगा?

#भावनात्मक रूप से बेटियों को मां से अधिक लगाव होता है. यही कारण है है जिस घर में बेटियां होती हैं,मां की आयु कम से कम दस वर्ष बढ़ जाती है.क्योंकि विवाह होने तक वे मां को उसके गृह कार्यों में काफी योगदान करती हैं.फिर भी बेटी के पैदा होने पर सबसे अधिक आत्मग्लानी का शिकार मां ही होती है जैसे उसने कोई अपराध किया हो. मां को एक महिला होने के नाते एक महिला का स्वागत नहीं करना चाहिए?बेटी के पैदा होने पर समाज के सामने सबसे पहले उसे ही खड़े होना चाहिए.समाज से उसके लिए संघर्ष करना चाहिए.

#महिलाओं को अपने दायित्व को समझते हुए दुनिया में निरंतर हो रहे बदलावों को समझने की इच्छा भी रखनी चाहिए यह सिर्फ पुरुषों तक ही क्यों सिमित रहे.वैसे भी जब तक महिलाये अनजान एवं नादान बनी रहेंगी शोषण भी होता ही रहेगा.

--

शनिवार, 3 दिसंबर 2011

राज्यों का विभाजन क्यों ?

हाल ही में उत्तरप्रदेश की मुख्यमंत्री मायावती ने आनन फानन में प्रदेश को चार राज्यों में विभाजित करने सम्बन्धी विधेयक को विधानसभा में पास कराकर सनसनी फैला दी.राज्यों के विभाजन की प्रासंगिकता को लेकर राष्ट्रीय स्तर पर बहस का मुद्दा बन गया है. छोटे राज्यों के पक्षकार क्षेत्र के विकास के लिए विभाजन को आवश्यक मानते हैं उनके अनुसार छोटे राज्यों के होने से राज्य के प्रत्येक क्षेत्र पर नियंत्रण अधिक प्रभावी रहता है,और क्षेत्र का विकास तीव्रता से हो सकता है. जबकि विरोध में खड़े लोगों का मानना है की छोटे छोटे राज्य बनाने से प्रशासनिक खर्चे बढ़ने का बोझ जनता पर पड़ता है. छोटे राज्यों को बढ़ावा देने से जनता में क्षेत्र वाद की भावना को बढ़ावा मिलता है. जो देश की एकता और अखंडता के लिए खतरा बनता है.
यह तो सभी जानते हैं, चुनावों से ठीक पहले इस प्रकार से अचानक विभाजन का विधेयक पास कराकर ,गेंद केंद्र के पाले में डालना महज मायावती का चुनावी स्टंट है.अन्यथा पिछले पांच वर्षों से ऐसी योजना क्यों नहीं बनायीं गयी.पश्चिमी उत्तर प्रदेश वासियों की राज्य विभाजन की मांग कोई नयी नहीं है.अब सभी पार्टियों की राजनैतिक मजबूरी बन गयी है की वे मायावती के प्रस्ताव का विरोध करें.उसके अवगुण गिनाएं. जबकि वास्तविकता कुछ और ही है. देश का सबसे बड़ा राज्य होने के कारण उत्तर प्रदेश की जनता के साथ न्याय नहीं हो पाया. प्रदेश का समुचित विकास नहीं हो सका, प्रशासनिक अक्षमता के कारण प्रदेश को देश के सर्वाधिक पिछड़े राज्यों में गिना जाता है. प्रदेश को जातिगत राजनीति ने जकड रखा है,अतः विकास को कभी भी महत्वपूर्ण नहीं माना गया.
छोटे राज्यों के पक्षकारों का विचार अधिक वजन दार लगता है क्योंकि यह तो निश्चित है छोटे राज्य होने पर शासन की पकड़ मजबूत हो जाती है,उच्च प्रशासनिक अफसरों के लिए नियंत्रण करना आसान होता है. गत कुछ वर्षों पूर्व नए उभरे राज्य हरियाणा,उत्तराखंड जैसे राज्य विकास का पर्याय बन गए हैं जिससे साबित होता है छोटे राज्य अपेक्षाकृत अधिक तेजी से विकास कर सकते हैं. छोटे राज्यों का विरोध करने वालों की दलील प्रशासनिक खर्चों की बढ़ोतरी,जनता को मिलने वाले न्याय,एवं तीव्र विकास के आगे बेमाने हैं. अच्छी गुणवत्ता के शासन के लिए जनता अतिरिक्त खर्च का बोझ सहन कर लेगी. साथ ही छोटे राज्यों की मांग करना कोई देशद्रोह नहीं है,जिसको हेय दृष्टि से देखा जाय. प्रत्येक व्यक्ति को अपने क्षेत्र के विकास की मांग करने का पूर्ण अधिकार है.
स्वतंत्रता के पश्चात् जब राज्यों का गठन किया गया था तो विभाजन का मुख्य आधार भाषा को रखा गया. परन्तु बड़े राज्यों की विकास में अनेक बाधाएं आयी. और क्षेत्रीय जनता की मांग को स्वीकार कर अनेक बार नए राज्यों का गठन किया गया. परन्तु अब पिछड़े और बड़े राज्यों का विभाजन किया जाना प्रासंगिक हो चुका है,वही विकास के लिए पहली सीढ़ी बन सकता है.सभी राज्यों का पुनर्गठन किया जाय तो देश के सभी क्षेत्रों का विकास समान तौर पर हो सकेगा.
परन्तु यह तथ्य भी कम रोचक नहीं है आखिर देश को कितने राज्यों में विभाजित करना होगा. इस प्रकार के विभाजन की मांग कब तक न्याय संगत होंगी. अतः इस विवाद को निपटने के लिए देश व्यापी कुछ नियम बनाय जाने चाहिए. जिसके अंतर्गत देश के प्रत्येक राज्य के गठन से पूर्व न्यूनतम एवं अधिकतम क्षेत्रफल की सीमा तय करनी होगी,इसी प्रकार प्रत्येक राज्य के लिए पूरे देश की आबादी के प्रतिशत के आधार पर निम्नतम एवं अधिकतम जनसँख्या की सीमा निश्चित करनी होगी. इस प्रकार की सीमाएं बांधकर इस विवाद को हमेशा के लिए समाप्त किया जा सकता है. परन्तु इन नियमो को बनाने एवं लागू करने के सभी राजनैतिक पार्टियों को वोट की राजनीति से हटकर दृढ इच्छाशक्ति का परिचय देना होगा.
सत्य शील अग्रवाल

मंगलवार, 29 नवंबर 2011

कितने भाग्यशाली हैं आज के किशोर

           वर्तमान युग के किशोर वास्तव में बहुत भाग्यशाली हैं,जिन्होंने मानव विकास के उच्च स्तरीय दौर में जन्म लिया है.और जो शीघ्र ही मानव जीवन की श्रेष्ठतम पायदान अर्थात युवावस्था में प्रवेश करने वाले हैं.गत पचास वर्षों में मानव विकास में जो क्रन्तिकारी परिवर्तन आया है,वह पिछले हजार वर्षों में भी नहीं आया था . आज जो लोग अपनी वृद्धावस्था में हैं उन्होंने यह तीव्र परिवर्तन अपने जीवन काल में ही देखा है. कहीं न कहीं उन्हें मन में टीस देता है,क्यों न हम इस समय युवावस्था में होते? जीवन को जीने का वास्तविक आनंद पा सकते. जीवन संध्या में तो सारी खुशियाँ ,सारे सुख महत्वहीन हो जाते हैं.वे अपनी अभावग्रस्त जीवन शैली को सोचते हुए आज के किशोरों से इर्ष्या का अनुभव करते हैं.परन्तु एक अहसास उन्हें आत्मसंतोष भी प्रदान करता है की वर्तमान सुख सुविधाओं की उन्नति एवं विकास लाने के लिए उनकी पीढ़ी का ही विशेष योगदान है.भले ही वे स्वयं आनंद ले पाएंगे परन्तु बच्चों के लिए विशाल खुशियाँ छोड़ कर जायेंगे .इस प्रकार उनके जीवन का उद्देश्य तो पूरा हो रहा है.
वर्तमान बुजुर्ग पीढ़ी के व्यक्ति अपने अतीत को याद करते हुए अपने अनुभवों एवं अपने बचपन की जीवन शैली का वर्णन करते हुए बताते हैं,की किस प्रकार उनका जीवन यातायात के मुख्य साधन साईकिल के साथ शुरू हुआ था?.घर पर भोजन पकाने के लिए चूल्हे व् अंगीठी का प्रयोग किया जाता था .मनोरंजन के नाम पर नुक्कड़ नाटक या कहीं कहीं इक्का दुक्का फ़िल्मी परदे हुआ करते थे,वह भी काली सफ़ेद तस्वीरों के साथ.यही कारण था. जब रामलीला के दिन हुआ करते थे , उनको देखने के लिए लोगों में असीम उत्साह होता था, अपार भीड़ एकत्र होती थी और मेले लगा करते थे. समाचार या सन्देश भेजने के लिए डाक या फिर लैंड लाइन फोन का ही सहारा हुआ करता था.इसलिए यदि किसी दूसरे शहर में अपने प्रिय से बात करनी होती थी, तो घंटों ट्रंक कोल का नंबर लगने के लिए प्रतीक्षा रत रहना पड़ता था.उन दिनों शहरों में सवेरा शुरू होता था शुष्क शोचालय की कष्टसाध्य,गन्दगी और बदबू से,जो स्वास्थ्य की द्रष्टि से भी खतरनाक थीं.आवागमन के लिए मंथर गति से चलने वाली ट्रेनें ही उपलब्ध थीं,सडको के अभाव में कार और बसों का उपयोग सिमित ही हो पाता था.वैसे भी कारें चंद लोगों की सामर्थ्य में आती थीं.मोबाईल,इंटरनेट,टी.वी.,कम्प्यूटर आदि से कोई भी परिचित नहीं था. अतः छात्रो को शिक्षा प्राप्त करना ,ज्ञान अर्जित करना आसान नहीं था.(जानकारी उपलब्ध कराने के माध्यमों के अभाव में) .छात्रों को पढ़ते समय मौसम के थपेड़े सहने के लिए ऐ.सी.,हीट कन्वेक्टर,फ्रिज जैसे साधन नहीं थे.यहाँ तक की पंखे भी सीमित रूप से उपलब्ध थे क्योंकि विद्युत् उपलब्धता कुछ बड़े शहरों तक ही थी.स्वास्थ्य सेवाओं विशेष कर सर्जरी का विकास अपनी प्रारंभिक अवस्था में था और कुछ अमीर लोग ही स्वास्थ्य सेवाओं का लाभ ले पाते थे.आम आदमी को अनेक संक्रामक रोगों एवं गंभीर बीमारियों से जूझना पड़ता था.यही कारण था जब संक्रामक रोगों की चपेट में आकर गाँव के गाँव साफ हो जाया करते थे .सैंकड़ो हजारों लोग असमय मौत के शिकार हो जाते थे. उन दिनों वृद्धावस्था तो नरकतुल्य ही हो जाती थी ,क्योंकि गंभीर रोगों की चपेट में आ जाना इस अवस्था की नियति है .प्रयाप्त इलाज के अभाव में शेष जीवन कष्टों के साथ ही बिताने को मजबूर होना पड़ता था.
वर्तमान विकास की चरम अवस्था ने अनेक प्रकार की सुविधाओं के साथ साथ अनेक प्रकार की समस्याओं को भी जन्म दिया है.विश्व की आबादी पिछले पचास वर्षों इमं तीन अरब से बढ़ कर सात अरब हो गयी है .क्योंकि बढती स्वास्थ्य सेवाओं के कारण मृत्यु दर में आश्चर्य जनक रूप से गिरावट आयी है.आम व्यक्ति की औसत आयु तेजी से बढ़ी है. कठिन से कठिन रोग जो कभी लाइलाज हुआ करते थे आज उनका इलाज सफलता पूर्वक किया जाता है.बढती आबादी के कारण खाद्य समस्या,आवास समस्या,प्रदूषण समस्या,रोजगार की समस्या आदि अनेक समस्याओं ने भयंकर रूप ले लिया है.आवागमन एवं दूसंचार के माध्यमों के कारण पूरे विश्व ने एक गाँव का रूप ले लिया है.अब प्रतिस्पर्द्धा अपने शहर ,प्रदेश,या देश तक सिमित न रह कर विश्व स्तर पर हो गयी है.और यह प्रतिस्पर्द्धा गलाकाट प्रतिस्पर्द्धा में बदल चुकी है.अतः आधुनिक सुविधाओं को जुटाने के लिए,अपने जीवन को सम्मानजनक बनाने के लिए,एवं विश्व पटल पर अपने अस्तित्व को बनाये रखने के लिए,सिर्फ योग्यता प्राप्त कर लेने से आज का विद्यार्थी जीवन की ऊँचाइयों को नहीं पा सकता.आज उसे अपने अच्छे केरीयर के लिए विशेष योग्यता प्राप्त करना आवश्यक हो गया है
वर्तमान लेख का मेरा मकसद ,जो किशोर आज हाई स्कूल ,इंटर ,या फिर स्नातक के छात्र हैं और अपनी युवावस्था की दहलीज पर खड़े हैं,से आग्रह करना है "";यदि उनकी इच्छा अपने जीवन की समस्त खुशियों को पा लेना हैं,जो प्रत्येक छात्र का सपना होता है और प्रत्येक युवक को महत्वकांक्षी होना भी चाहिए "".परन्तु अपनी महत्वाकांक्षा को पूर्ण करने के लिए सार्थक प्रयास करना भी आवश्यक है.सिर्फ सपने बुनने से काम नहीं चल सकता .शिक्षा ही एक मात्र विकल्प है जो आपको जीवन की सभी खुशियाँ दिला पाने में मदगार बन सकता है.आपका वर्तमान छात्र जीवन भविष्य सुधारने का सुनहरा अवसर है.यह सुनहरी अवसर जीवन में दोबारा नहीं आता .अतः इस अवसर का लाभ उठाते हुए एक ऋषि की भांति मेहनत एवं लगन से अध्ययन करते हुए,एकलव्य की भांति अपने लक्ष्य को एकाग्रचित्त होकर भेदना होगा. दुनिया की चकाचौंध आपको लगातार विचलित करती रहेगी,आपको पथभ्रष्ट करने का प्रयास करेगी,परन्तु छात्र जीवन के चंद वर्षों के संयम से पूरे जीवन के लिए आनंद और खुशियों को अपना दास बनाया जा सकता है. अतः इस अमूल्य छात्र जीवन को जीवन संवारने के लिए समर्पित करना होगा.
आज कुछ अराजक तत्व अपने व्यापारिक हितों के लिए किशोरों,युवाओं को नशे का शिकार बनाकर उनके जीवन से खिलवाड़ कर रहे हैं.नशा बीडी,सिगरेट ,शराब का हो या अफीम,चरस, गंजा हेरोइन जैसे मादक द्रव्यों का हो,मानव को छणिक तौर पर झूठे आनंद के सागर में पहुंचा कर उनका पूरा जीवन कलुषित कर देता है ,.उन्हें मानसिक,आर्थिक,शारीरिक हानि पहुंचा कर भिखारी बना देते हैं.उनकी जिन्दगी जानवरों जैसी बना देते हैं.अपराधी किस्म के लोग अपने तुच्छ लाभ के लिए युवाओं को तथाकथित छणिक आनंद का लालच दे कर अपने जाल में फंसाते हैं और उनकी जीवन भर की खुशियों को ग्रहण लगा देते हैं और समाज के लिए भी परेशानियाँ खड़ी करते हैं.
यदि आज का छात्र अपने सयंमित जीवन के साथ अपने लक्ष्य की और बढेगा तो अवश्य ही अपने जीवन के लिए,परिवार के लिए,देश के लिए योग्य नागरिक बन सकेगा.अपना जीवन तो सवारेगा ही अपने परिवार, समाज और देश का भी हित करेगा .
<script async src="//pagead2.googlesyndication.com/pagead/js/adsbygoogle.js"></script>
<!-- s.s.agrawal -->
<ins class="adsbygoogle"
     style="display:block"
     data-ad-client="ca-pub-1156871373620726"
     data-ad-slot="2252193298"
     data-ad-format="auto"></ins>
<scrip


(adsbygoogle = window.adsbygoogle || []).push({});
</script>






सत्य शील अग्रवाल

गुरुवार, 24 नवंबर 2011

व्यंग (भाग छः)


नागरिक;अब तो अन्ना टीम के प्रत्येक सदस्य के कच्चे चिट्ठे खुलते जा रहे हैं.
पत्रकार:आज हमारे देश में ऐसा माहौल बन चुका है, प्रत्येक व्यक्ति कहीं न कहीं कोई न कोई अनियमितता का दोषी पाया जा सकता है.यदि किसी व्यक्ति या टीम की गलतियों को ढूँढने में सरकार अपनी पूरी ताकत झोंक दे, तो कुछ न कुछ तो मिल ही जायेगा.
नागरिक; क्या यह उचित है,किरण बेदी ने अवैध रूप से कम्पनी से अधिक पैसे वसूल कर गरीबों को दान दे दिया.क्या समाज सेवा के लिए ही सही अवैध धन वसूलना अपराध की श्रेणी में नहीं माना जायेगा?
पत्रकार; आपकी बात बिलकुल सही है,नियम विरुद्ध किया गया कोई भी कार्य अवैध माना जायेगा, उसका उद्देश्य कुछ भी हो.
नागरिक; प्रख्यात वकील होते हुए भी प्रशांत भूषण जैसे प्रबुद्ध नागरिक, कश्मीर मुद्दे पर अपने विवादस्पद बयान जारी करें, क्या यह उचित है?अन्ना कोर कमिटी के सदस्य होने के नाते कितना सही था उनका बयान?
पत्रकार; व्यक्तिगत राय होना अलग बात है,परन्तु उसे सार्वजानिक मंच पर बोल देना, वह भी जब आप स्वयं एक संवेदनशील एवं राष्ट्रिय हित के मुद्दे से जुड़े हों,समझदारी का कदम नहीं माना जा सकता.
नागरिक;कुमार विश्वास को अपनी कक्षाएं मिस करने एवं छात्रों के जीवन से खिलवाड़ करने का दोषी पाया गया है,क्या यह आरोप भी गलत है?
पत्रकार;जब किसी को बदनाम करने की नियत से बाल की खाल निकालनी है तो कहीं न कहीं सभी दोषी सबित किये जा सकते हैं.
नागरिक;केजरीवाल पर लाखों बाकी का नोटिस थमा दिया गया अर्थात उन्हें भी दोषी करार दिया जा चुका है.
पत्रकार; केजरीवाल स्वयं सरकारी नौकरी में थे अतः सरकार उनको आसानी से कही भी फंसा सकती है.
नागरिक;परन्तु अन्ना टीम और उनके आन्दोलन का क्या होगा ? क्या जनता की सारी उम्मीदों पर पानी फिर जायेगा? उसे फिर किसी इमानदार अन्ना टीम का इंतजार करना होगा?
पत्रकार; किसी भी टीम या व्यक्ति पर लगे आरोपों का, उनके द्वारा चलाया जा रहा आन्दोलन क्यों प्रभावित होगा?वे स्वयं भ्रष्टाचार के विरुद्ध कानून बनाने की मांग कर रहे हैं,न की स्वयं को निर्दोष साबित करने की मुहिम चला रहे हैं. जन लोकपाल बिल बनने के बाद यदि उनकी टीम के सदस्य पर आरोप सिद्ध होता है, तो वे भी सजा के बराबर के हक़दार होंगे. किसी को चोर सिद्ध कर देने से डकैत का अपना गुनाह तो काम नहीं हो जाता.परन्तु शायद सरकार यह भ्रम पाले हुए है अन्ना टीम पर आरोप लगा कर उन्हें और जनता को दिग्भ्रमित कर दिया जाये और उनकी भ्रष्टाचर की गाड़ी यथावत चलती रहे.

शनिवार, 19 नवंबर 2011

व्यंग (पांच)

एक नागरिक.;मुझे बहुत अफ़सोस है,बयालीस वर्ष तक एक छात्र राज करने वाले लीबिया के शासक का अंत कितना दर्दनाक हुआ. कितनी अपमानजनक मौत का शिकार हुआ.
पत्रकार;यही मुख्य अंतर होता है,लोकतंत्र और राजतन्त्र में. हमारे यहाँ प्रत्येक उच्च पदाधिकारी जीवन पर्यंत ससम्मान रहता है. सरकार की तरफ से सारी सुविधाएँ उपलब्ध करायी जाती हैं.
नागरिक;परन्तु हमारे यहाँ तो लोकतंत्र,ठोकतंत्र बन चुका है. जनता की आवाज को सत्ताधारी नेता कुचल देना चाहते हैं, अपने को राजा और जनता को अपना गुलाम मानते हैं.जनता की आवाज बुलंद करने वालों को हैरान,परेशान करते हैं.
पत्रकार;सत्ता का नशा ही कुछ ऐसा होता है.
नागरिक;जहाँ जनता का राज नहीं होता वहां भी यदि जनता जब सड़कों पर आ जाती है,तो तानाशाह का अंत भी कितना भयानक होता है,फिर लोकतंत्र में यदि कोई नेता मनमानी करता है तो अपने पैरों पर स्वयं कुल्हाड़ी मारता है.कपिल सिब्बल,मनीष तिवारी,दिग्विजय सिंह जैसे नेताओं को लीबिया से सबक लेना चाहिए. जनता की ताकत को झुठलाना नहीं चाहिए.
पत्रकार;ये नेता अपना मानसिक संतुलन खो चुके हैं,उन्हें मतिभ्रम हो गया है. शायद सत्ता में आकर वे जनता को बेवकूफ और स्वयं को महाविद्वान समझने लगे हैं.
नागरिक;सो तो है.

सोमवार, 14 नवंबर 2011

मराठी बनाम उत्तर भारतीय

गत अनेक वर्षों से शिव सेना प्रमुख श्री बालठाकरे एवं महाराष्ट्र नवनिर्माण सेना के प्रमुख श्री राज ठाकरे,महाराष्ट्र में कार्यरत उत्तर भारतीयों के विरुद्ध जहर उगलते रहते हैं,उनकी पार्टी कार्यकर्ताओं द्वारा उन्हें अनेक प्रकार से परेशान किया जाता है,अवैध वसूली की जाती है,आटो चालकों को विशेष रूप से प्रताड़ित किया जाता है,उन पर अनेक प्रकार के अंकुश लगाये जाते हैं.इस प्रकार उत्तर भारतीयों के साथ किया गया व्यव्हार,क्षेत्रवाद,भाषावाद को बढ़ावा देता है.अपनी महत्वाकांक्षाओं की पूर्ती के लिए की गयी तुच्छ राजनीति का हिस्सा है.अपनी राजनैतिक पैठ बढ़ने के लिए किया गया गैर जिम्मेदाराना कार्य है. इस प्रकार का व्यव्हार सम्विधान की मूल भावना"पूरे देश के प्रत्येक नागरिक को कहीं भी रोजगार पाने,निवास करने,और भ्रमण करने का पूर्ण अधिकार है." के विरुद्ध है.अतः भाषा के आधार पर वैमनस्य फैलाना ,क्षेत्र वाद को बढ़ाना कोरी स्वार्थपरता है.अब चाहे वह पी चिदम्बरम के गैर दिल्ली वासियों के लिए किया गया बयान हो या फिर राहुल गाँधी द्वारा भीख मांगने जैसा अपमानजनक भाषण हो.
आधुनिक वैश्वीकरण के युग में पूरे विश्व को एक गाँव के रूप में परिवर्तित किया जा रहा है,समस्त विश्व के देश आपसी सहयोग द्वारा श्रमशक्ति एवं तकनिकी का आदान प्रदान कर रहे हैं.ऐसे समय में यदि हम भाषावाद एवं क्षेत्रवाद जैसे मुद्दों में उलझे रहेंगे तो देश को पीछे धकेलने का ही काम करेंगे, जो पूर्णतया अप्रासंगिक है.जब विश्व के सभी देशों के नागरिक एक दूसरे देश में जाकर रोजगार कर सकते हैं,नौकरी कर सकते हैं,तो अपने देश के नागरिक अपने देश में ही पराये क्यों?क्या महाराष्ट्र के लोग शेष देश में रोजगार नहीं करते ,नौकरी नहीं करते?या फिर महाराष्ट्र के लोगों को देश के अन्य हिस्सों में जाने की आवश्यकता नही पड़ती?
यह बात सही है की "किसी भी क्षेत्र की जनता का वहां के उपलब्ध संसाधनों पर पहला अधिकार होता है".परन्तु जब यही अधिकार अन्याय का कारण बनने लगे तो देश एवं समाज के लिए घातक हो जाता है.अतः यह तो उचित है की किसी व्यक्ति को सरकारी या गैरसरकारी नौकरी देते समय या रोजगार के अन्य अवसर उपलब्ध कराते समय क्षेत्रवासियों को वरीयता दी जाय.उन्हें प्रतिस्पर्द्धा में कामयाब होने के लिए आवश्यक साधन उपलब्ध कराएँ जाएँ. परन्तु गुणवत्ता के आधार पर पक्षपात किया जाना सर्वथा विकास के विरुद्ध है. गुणवत्ता में कहीं कोई समझौता नहीं होना चाहिए. बैसाखी के सहारे से कभी क्षेत्र का विकास संभव नहीं है.
भाषा एवं क्षेत्र के आधार पर पक्षपात करना,अपमान करना अपने क्षेत्र को द्वेषभाव एवं अशांति के गर्त में डालना है.देश के प्रत्येक हिस्से से योग्य व्यक्तियों को अपने यहाँ आमंत्रित करना ,उन्हें हर प्रकार की सुविधाएँ देकर प्रोत्साहित करना, वर्तमान युग की मांग है.क्षेत्र के विकास के लिए आवश्यक है. क्षेत्र के समुचित विकास द्वारा ही क्षेत्रीय नेताओं का भविष्य भी सुरक्षित बन सकेगा.


--

*SATYA SHEEL AGRAWAL*
(blogger)*
BLOG SITE NAME*

*jara sochiye satyasheelagrawal.jagranjunction.com

शनिवार, 12 नवंबर 2011

व्यंग ( भाग चार)

संता ;बंता भाई,क्या तुम्हे लगता है,अन्ना साहेब के पास जन्लोकपाल का कोई जादुई चिराग है,जो देश से भ्रष्टाचार को समाप्त कर देगा.अर्थात सभी नेता और नौकर शाह ईमानदार हो जायेंगे और भ्रष्ट आचरण छोड़ देंगे .
बंता;संता,तुम वाकई नादान हो ,क्या आप अपने खजाने को चोराहे पर रख कर ,कमजोर पहरेदार बैठाकर उसकी सुरक्षा की खैर मना सकते हैं? हमरे यहाँ तो लुटेरों को भी संरक्षण मिलता है फिर खजाना क्यों न लूटेगा?हमारे देश का वर्तमान कानून उसको रोक पाने में सक्षम नहीं है इसीलिए घोटाले पर घोटाले होते चले जाते हैं.
संता; आपके कहने का तात्पर्य है की जन्लोकपाल बिल इतना मजबूत कानून देगा जो किसी को भी भ्रष्ट आचरण नहीं करने देगा.
बंता; हाँ,साथ ही भ्रष्टाचार में लिप्त पाए गए व्यक्ति को सख्त से सख्त सजा भी मिलेगी जिससे से कोई भ्रष्ट आचरण करने से पहले दस बार सोचेगा.इस प्रकार जनता के साथ न्याय हो सकेगा .
संता ;फिर सत्ताधारी नेताओं को क्या आपत्ति है,मजबूत लोकपाल बिल लाने में और उसको पास कराने में?
बंता ;यह तो स्पष्ट है,वे भ्रष्टाचार में लिप्त हैं और भयभीत हैं कहीं उनके द्वारा बनाया कानून ही उन्हें जेल की सलाखों के पीछे न पहुंचा दे .

रविवार, 6 नवंबर 2011

व्यंग(तृतीय)

एक तर्कशास्त्री ;क्या कोई व्यक्ति दावा कर सकता है की वह शुद्ध शाकाहारी है?

अध्यापक ; हाँ,हाँ , उत्तर भारत में काफी लोग शुद्ध शाकाहारी हैं. और वह भी बहुत बड़ी संख्या में.

तर्क शास्त्री;अच्छा बताओ शुद्ध शाकाहारी किसे कहते हो ?

अध्यापक ; साधारण सी बात है,जो व्यक्ति पेड़ पौधों से प्राप्त फल फूल,इत्यादि का सेवन करता है उनसे बने व्यंजनों को ग्रहण करता है,मास मछली का उपयोग नहीं करता
.
तर्क शास्त्री; अच्छा बताओ कौन सा शाकाहारी ऐसा है जो दूध,दही,सिरका, शहद का सेवन न करता हो?

अध्यापक ;तुम्हें मालूम होना चाहिए जिनके नाम तुमने लिए हैं सभी शाकाहारी भोजन माने जाते हैं

तर्क शास्त्री; आप ही तो पढ़ाते हो दूध से दही,गन्ने के रस से सिरका अनेक बेक्टीरिया के कारण बनता है.अर्थात अनेक बेक्टीरिया उनमे विद्यमान होते हैं.और फिर दूध कौन से पेड़ से निकलता है, .शहद भी मधुमखियों द्वारा एकत्र किया हुआ उनका भोजन होता है,.फिर दूध दही शहद शाकाहारी में कैसे हो गए?

अध्यापक; तर्कशास्त्री जी ,बस करिए आप से कभी कोई जीता है.हम हार गए आप जीते..


--

*SATYA SHEEL AGRAWAL*
(blogger)*
BLOG SITE NAME*
*JARA SOCHIYE satyasheel.blogspot.com*

बुधवार, 2 नवंबर 2011

व्यंग (भाग दो)

मोहन लाल ;बहुत शर्म की बात है हमारे समाज में नारियों को हजारो वर्षों से प्रताड़ित किये रखा गया है उसे कभी पुरुषों के बराबर का स्थान नहीं दिया गया .
राजेश ;इसी समाज की यह भी खासियत है ,किसी भी पुरुष के लिए उसकी पत्नी (पत्नी के रूप में नारी) उसका चरित्र प्रमाण पत्र भी होती है.
मोहन लाल;परन्तु वह कैसे ?
राजेश; बिना पत्नी के पुरुष को मकान किराये पर नहीं मिलता,परिवार में विवाह के पश्चात् किसी भी पुरुष का सम्मान बढ़ जाता हैउसकी विश्वसनीयता बढ़ जाती है .बिना पत्नी के पुरुष को किसी परिवार बेरोकटोक प्रवेश की अनुमति नहीं मिलती. अकेला पुरुष (पत्नी के बिना)समाज में संदेह के घेरे में रहता है. यहाँ तक की पत्नी के साथ जाने वाले व्यक्ति को पुलिस वाला भी आसानी (बिना ठोस सबूत के )हाथ नहीं डालता
मोहन लाल; बात तो पाते की है.
राजेश ; अब बताइए सम्माननीय नारी है या आप ? .

--


*SATYA SHEEL AGRAWAL*
(blogger)*
*

गुरुवार, 27 अक्तूबर 2011

व्यंग--OCT2011


एक बुजुर्ग;क्या जमाना आ गया है,नव युवाओ के बदन पर कपडे,घटते जा रहे हैं. फैशन के नाम पर अश्लीलता बढती जा रही है सब बेशर्म होते जा रहे हैं.
नवयुवक;अंकल क्या इन्सान कपडे पहन कर पैदा होता है, अब यदि कोई प्राकृतिक अवस्था में रहना चाहता है तो गलत क्या हुआ?
बुजुर्ग; परन्तु बेटा समाज की भी अपनी मर्यादा होती है, अतः समाज में रहने के लिए बदन को ढकना ही चाहिए.
नवयुवक;अंकल ,मुझे तो याद नहीं आता कभी किसी लड़के या लड़की को बिना कपडे पहने घूमते देखा हो .फिर आप ऐसा क्यों कह रहे हैं?मुझे तो ऐसा लगता है हमारी सोच में ही कुछ खोट है. हमारे आत्म संयम में ही कमी है. आत्मनियंत्रण के अभाव में हम नई पीढ़ी को दोष देते हैं. उसके पहनावे पर ऊँगली उठाते हैं. कभी किसी कुत्ते,बिल्ली,गाय भैंस के निर्वस्त्र घुमने में हमें कोई अश्लीलता नहीं दिखाई देती , क्यों? फिर जैन मुनि भी निर्वस्त्र रहते हैं?परन्तु उनके शिष्यों कोई आपत्ति नहीं होती.
बुजुर्ग; बेटा तुम्हारी सोच सही दिशा में जा रही है. धन्य हो तुम्हारा आधुनिकतावाद.


--


*SATYA SHEEL AGRAWAL*
(blogger)*

शुक्रवार, 21 अक्तूबर 2011

विकसित देश और मानवता .

.

आज विश्व में जो भी अविकसित देश हैं ,या गरीब देश हैं , उनके पिछड़े पन के लिए विकसित देश अपनी जिम्मेदारी से नहीं बच सकते .विश्व में कुल उत्पादन के अस्सी प्रतिशत का उपभोग विकसित देशों द्वारा कियां जाता है ,जो विश्व की जनसँख्या का सिर्फ बीस प्रतिशत आबादी का प्रतिनिधित्व करते हैं .विश्व की शेष अस्सी प्रतिशत आबादी मात्र बीस प्रतिशत उत्पादन का उपभोग कर पाती है .

जो आज विकसित देश हैं अधिकांश ने ,वर्तमान के अविकसित देशों को गुलाम BANAKAR सैंकड़ों वर्ष शासन किया ओर इन देशों की धन सम्पदा को लूट कर अपने देश को समृद्ध कर लिया जो आज विकसित देशों की श्रेणी में गिने जाते हैं .तथाकथित विकसित देश आज भी गरीब देशों को आपस में लड़ा कर अपने हथियार बेचते हैं एवं अपने आर्थिक हितों का पोषण करते हैं .साथ ही गरीब देशों को विकसित देशों की श्रेणी में आने से रोकते हैं .

बिना किसी वजह के इराक को कुचल डालना ,अफगानिस्तान पर कब्ज़ा कर लेना विकसित देशों के प्रतिनिधि अमेरिका की चल थी , जो खड़ी के देशों में अपना दवाब बनाये रखना ओर अपनी भौतिक आवश्यकताओं की पूर्ती की कवायद थी .

आज भारत ओर चीन की उन्नति विकसित देशों की आँखों में चुभ रही है .क्योंकि वे कभी पूरी मानवता के हित में न सोच कर सिर्फ अपने देश के लिए सोचते हैं जो सरासर मानवता के प्रति अपराध है..

बुधवार, 12 अक्तूबर 2011

लिव इन रेलाशन्शिप

भारतीय समाज में आज भी विवाह से पूर्व किसी भी लड़के एवं लड़की का घुलना मिलना या शरीरिक संपर्क बनाना अमान्य है .इसी प्रकार विवाह पश्चात् जीवन साथी के अतिरिक्त किसी अन्य के साथ शारीरिक संसर्ग की इजाजत नहीं है .परन्तु आधुनिक चलन में पुय्रुष महिला बिना विवाह किये अर्थात कानूनी या सामाजिक मान्यता प्राप्त किये बिना साथ साथ रहने लगते हैं .जिसे लिव इन रेलाशन्शिप का नाम दिया जाता है .लिव इन रेलाशन्शिप अल्प अवधि का हो अथवा दीर्घावधि का या आजीवन , सामाजिक रूप से मान्य नहीं है .बिना कोर्ट मेरिज पंजीयन के साथ साथ रहना कानूनन भी मान्य नहीं है .परन्तु इस प्रकार के केसों में जब कोई धोके का शिकार होता है तो लिव इन रेलाशन्शिप को कानूनी मान्यता दिए जाने की मांग की जाती है .

लिव इन रेलाशन्शिप को दो प्रकार से देखा जा सकता है
,

प्रथम ; जब युवक युवती बिना विवाह किये साथ साथ रहने लगते हैं ,और अपना परिवार बढ़ाते हैं एवं घ्राहस्थी की जिम्मेदारियों को निभाते हैं .

द्वितीय ; जब अपने जीवन के अंतिम पड़ाव में कोई स्त्री या पुरुष अपने जीवन साथी से बिछुड़ जाता है ,तो अपने शेष जीवन को किसी के साथ निभने के लिए विपरीत लिंगी के साथ बिना विवाह किये साथ रहने का निश्चय करते हैं .ऐसे युगल अपनी सामाजिक जिम्मेदारियों से पहले ही मुक्त हो चुके होते हैं .अतः कोई सामाजिक या कानूनी आक्षेप नहीं आता . उनकी लिव इन रेलाशंशैप शारीरिक आकर्षण के कारण या शारीरिक संबंधों के लिए नहीं होती .उनका मकसद सिर्फ आपसी सहयोग करना होता है .इस प्रकार के सम्न्धों की कानूनी मान्यता के न होते हुए भी सामाजिक रूप से अनैतिक नहीं माना जाता .बल्कि ऐसे संबंधों के कारण बुजुर्ग के चेहरे पर संतोष के भाव देख कर परिवार और समाज को ख़ुशी का अनुभव होता है .

प्रस्तुत लेख में हमारा मुख्य उद्देश्य युवावस्था में ’ लिव इन रेलाशन्शिप’ है .जब एक युवक एवं युवती एक दूसरे को पसंद करते हैं और बिना कानूनी या सामाजिक प्रक्रिया अपनाये साथ साथ रहने लगते हैं .आधुनिक युग में जब महिलाएं शिक्षित एवं आर्थिक रूप से आत्मनिर्भर हो गयी हैं , लिव इन रेलाशन्शिप का चलन बढ़ने लगा है . परिवार नियोजन सम्बन्धी सुविधाएँ हो जाने के कारण महिलाएं अधिक निर्भय हो गयी हैं ,उन्हें किसी प्रकार की स्वच्छंदता से कोई सामाजिक प्रताड़ना का भय नहीं रह गया है .आज विवाह पूर्व एवं विवाहेत्तर संबंधों से सामाजिक बंधन घटते जा रहे हैं .जिसने हमारी संस्कृति पर करारी चोट की है . इसी प्रकार के अवैध संबधों का नया संस्करण है ,”लिव इन रेलाशन्शिप .”इस नए संस्करण में युवक युवती एक दूसरे पर पूर्णतया समर्पित हैं ,गृहस्थी की सभी जिम्मदारियां भी निभाते हैं ,परन्तु सामाजिक या कानूनी बंधन में बंधने से कतराते हैं ,क्यों ?आधुनिक चलन की आड में आधुनिकता कम धोखेबाजी की संभावना अधिक रहती है .आखिर सब कुछ समर्पण के पश्चात् बंधन से परहेज क्यों ? कहीं कोई पार्टनर अपने गलत इरादे तो नहीं पाले हुए है ?हो सकता है कोई युवक किसी युवती के साथ आधुनिकता का झांसा देकर साथ रहे ,सम्बन्ध बनाये और फिर कभी भी छोड़ कर किसी अन्य युवती के साथ रहने लगे ऐसी अवस्था में युवती एवं उसके बच्चों को कोई कानूनी एवं सामाजिक संरक्षण प्राप्त नहीं होता . इसी प्रकार इस सम्भावना से भी इंकार नहीं किया जा सकता कोई चालक युवती किसी धनवान या हाई प्रोफाईल युवक को अपने प्रेमजाल में फंसकर लिव इन रेलाशन्शिप में कुछ समय बिताने के पश्चात् उसका समस्त धन -दौलत लूटकर ले जाय या अवैध संबंधों की दुहाई देते हुए लड़के के सम्मान को चोट पहुंचाए ,उसे ब्लेकमेल करे ,अनेक आरोप लगा कर कानूनी प्रक्रिया में घसीटे और उसका जीवन कलुषित कर दे .
कहने का तात्पर्य यह है लिव इन रेलाशन्शिप के अवैध चलन में काफी खतरे मौजूद हैं .यह भी विचारणीय विषय है की जब दोनों एक दूसरे पर समर्पित हैं तो कानूनी या सामाजिक बंधनों को अपनाने से परहेज क्यों ?क्या यह उनकी ईमानदारी ,बफदारी के ऊपर प्रश्न चिन्ह नहीं है ? संभव है किसी युगल के रिश्ते को अपनाने में सामाजिक अड़चन हो तो भी कोर्ट मेरिज कर कानूनी संरक्षण तो प्राप्त किया जा सकता है .इस प्रकार से दोनों पार्टनर को अपने सुरक्षित भवष्य की सुनिश्चितता तो प्राप्त होती है . यदि उन्हें सम्भावना लगती है की वे आजीवन साथ नहीं रह पाएंगे तो भी तलाक का विकल्प मौजूद रहेगा .

बेनामी रिश्ते देश की संस्कृति पर आघात करते हैं ,देश में सामाजिक विकृतियाँ उत्पन्न करते हैं .सामाजिक ताने बने को छिन्न भिन्न करते हैं .ऐसी स्तिथि में परिवार का अस्तित्व लग - भाग समाप्त हो जाता है . किसी असहज स्तिथि में उसे कानूनी या सामाजिक संरक्षण नहीं मिल पाता . यदि समाज बेनामी रिश्तों को मान्यता देने लगे तो मानव सभ्यता और जंगलराज में कोई अंतर नहीं रह जायेगा .

मानव समाज को निरंतर विकास करते रहने के लिए , समाज को सभ्यता के दायरे में रखने के लिए कानूनी नियंत्रण आवश्यक है .अतः प्रत्येक सम्बन्ध को विधिवत मान्यता देना आवश्यक है .प्रत्येक इन्सान के सुरक्षित भविष्य की गारंटी है . मानवीय विकास के लिए आवश्यक भी है . जब हमें अधिकार ,सुविधाएँ ,संसाधन चाहिए तो कर्त्तव्य एवं बंधन भी निभाने पड़ेंगे .

यदि “लिव इन रेलाशन्शिप ”को मान्यता दे दी जाय तो सामाजिक अपराध को छूट दे देने के समान होगा , जो स्वास्थ्य एवं सभ्य समाज के लिए उचित नहीं हो सकता .

Satya sheel agrawal

रविवार, 9 अक्तूबर 2011

insaniyat aur dharm-----इंसानियत का धर्म


मेरे नवीनतम लेख अब वेबसाइट WWW.JARASOCHIYE.COM पर भी उपलब्ध हैं,साईट पर आपका स्वागत है. अप्रेल २०१६ से प्रारंभ
हमारे देश में प्रत्येक नागरिक को अपने धर्म अपने विचारों को प्रसारित एवं प्रचारित करने की पूरी स्वतंत्रता है,विभिन्न धर्मों के व्यापक प्रचार एवं प्रसार के बावजूद इमानदारी,सच्चाई,शालीनता,अहिंसा,सहिष्णुता,जैसे गुणों का सर्वथा अभाव है। जिसने अपने देश में अराजकता ,अत्याचार,चोरी,डकैती,हत्या जैसे अपराधों का ग्राफ बढा दिया है.दिन प्रतिदिन नैतिक पतन हो रहा है.उसका कारण यह है की हम धर्म को तो अपनाते
हैं परन्तु धर्मो द्वारा बताये गए आदर्शों को अपने व्यव्हार में नहीं अपनाते। सभी धर्मों के मूल तत्व इन्सनिअत को भूल जाते हैं,और अवांछनीय व्यव्हार को अपना लेते हैं।
यदि हम किसी धर्म का अनुसरण न भी करें और इन्सनिअत को अपना लें ,इन्सनिअत को अपने दैनिक व्यव्हार में ले आए तो न सिर्फ अपने समाज,अपने देश, बल्कि पूरे विश्व में सुख समृधि एवं विकास की लहर पैदा कर सकते हैं.

गुरुवार, 6 अक्तूबर 2011

भ्रष्टाचार बिन सब सून (व्यंग)

पूरा देश श्री अन्ना हजारे जी के नेतृत्व में भ्रष्टाचार के विरोध में खड़ा हो चुका है.जिससे स्पष्ट है आज देश का प्रत्येक नागरिक भ्रष्टाचार रुपी राक्षस से त्रस्त हो चुका है.आजादी के पश्चात् भ्रष्टाचार को समाप्त करने के अनेक प्रयास हुए,परन्तु सभी प्रयास कागजी शेर साबित हुए. भ्रष्टाचार सुरसा की भांति बढ़ता ही चला गया .आज भ्रष्टाचार की जड़ें इतनी गहरी हो चुकी हैं की
भ्रष्टाचार के बिना सोचना भी हास्यास्पद लगता है.हमें कल्पना करना भी मुश्किल लगता है .कुछ व्यंगात्मक कल्पनाएँ प्रस्तुत हैं.;
यदि हम कल्पना करें की देश के सभी सरकारी कार्यालयों में भ्रष्टाचार ख़त्म हो चुका है .कैसी स्तिथि होगी सरकारी कार्यालयों की .
आज प्रत्येक सरकारी कर्मी रुपी इंजन रिश्वत रुपी इंधन से चलता है .परन्तु जब भ्रष्टाचार द्वारा आमदनी का स्रोत समाप्त हो चुका होगा तो सरकारी कर्मी काम ही क्यों करेगा? जब कर्मी की कार्यालय में उपस्थिति दर्ज हो गयी तो उसका वेतन पक्का हो गया .वह काम करे या न करे नौकरी से तो निकाला नहीं जा सकता ,अधिक से अधिक उसका स्थानांतरण किया जा सकता है.उसकी भी उसे चिंता क्यों होगी जब कोई भी पोस्ट मलाईदार होगी ही नहीं. उसे तो वेतन मात्र से काम चलाना है वो तो कहीं भी चला लेगा.ऐसी निष्क्रियता की स्तिथि में आपके सरकारी कार्य कैसे निपट पाएंगे ?भ्रष्टाचार हटाने के पश्चात् यदि हम सरकारी कर्मी की कार्य के प्रति उदासीनता,निष्क्रियता,लापरवाही को नियंत्रित नहीं कर पाते हैं तो जनता को क्या भुगतना पड़ेगा ? कुछ व्यंगात्मक कल्पनाएँ प्रस्तुत हैं.;
  1. यदि आपको घर,दुकान,या कारखाने के लिए विद्युत् कनेक्शन लेना है,रिश्वत के अभाव में अगर एक वर्ष में आपका काम हो जाय तो विभाग की बहुत बड़ी मेहरबानी समझिये.
  2. यदि आपके पास कोई VIP सिफारिश नहीं है और RTO ऑफिस में कोई आपका रिश्तेदार काम नहीं करता .आपको गाड़ी के कागजात पूरे करने के लिए कम से कम छः माह तो लग ही जायेंगे.यदि ड्राइविंग लाइसेंस लेना है तो कोई समय सीमा निर्धारित किया जाना मुश्किल है. गाड़ी के नवीकरण करने के लिए यदि लाइन में चार पांच घंटे लगा कर,और धक्के खाकर, हो जाये तो अपने नसीब को सराहियेगा.
  3. यदि आप अपनी फेक्टरी या कारखाना लगाने का मन बना रहे हैं,तो आपके कार्य से जुड़े विभागों से अनुमति प्राप्त करने के लिए इस जन्म में उम्मीद करना तो व्यर्थ ही होगा. देश के विकास ओर समृद्धि की बात सोचना तो लोहे चबाने जैसा ही कठिन होगा.
  4. आपको मकान या दुकान ,प्लाट खरीदने के लिए बैंक से लोन लेने की आवश्यकता है तो निजी बैंक से तो लोन मिल सकेगा,परन्तु सरकारी बैंकों से ही लोन लेना है तो आपकी रिश्तेदारी भी बैंक वालों से होनी चाहिए.अब बताइए बैंक मेनेजर लोन क्यों बांटे पहले लोन दे और फिर उगाही न होने पर विभाग से झाड़ खाय और मिलना कुछ है नहीं. अतः वह तो सुरक्षित कार्य करेगा अर्थात सिर्फ जमा के लक्ष्य को पूरा करने में रूचि लेगा.
  5. आए कर,सर्विस टैक्स,सेल टैक्स विभाग के नियमों के अनुसार आप अपना टैक्स रिटर्न जमा तो कर देंगे परन्तु अपना रिफंड वापिस लेने ,व्यापार के लिए आवश्यक फार्म चाहिए तो समय पर मिलने की उम्मीद करना बेमानी है. आपके पास कोई विकल्प नहीं बचेगा.
  6. बिजली चोरी करने वाले बेचारे परेशान हो जायेंगे उन्हें उपभोग की गयी समस्त विद्युत् का भुगतान जो करना पड़ेगा.बेचारे आर्थिक संकट में आ जायेंगे उनके घर के बजट बिगड़ जायेंगे .कारखाने चलाने वाले तो मार्केट की प्रतिस्पर्द्धा में टिक ही नहीं पाएंगे बेचारों को काम बंद करना पड़ेगा ,आखिर विद्युत् बिल की बचत ही तो उनकी कमाई का साधन बनी हुई थी.
  7. चोर,डकैत को अपने काम करने की पूरी आजादी होगी,आखिर कोई उसे क्यों पकड़ेगा?(कुछ मिलना तो है नहीं) अगर पकड़ा भी गया तो आराम से जेल की रोटी खायेगा क्योंकि उसे पुलिस को उसका हिस्सा देने की कोई चिंता नहीं होगी.
  8. क़त्ल जैसे अपराध करना आसान हो जायेगा क्योंकि यदि किसी बफादार पुलिस वाले की भेंट चढ़ गया और पकड़ा गया तो भी उसकी सजा तय होने में ही उसकी जिन्दगी ख़त्म हो जाएगी. अतः फांसी की चिंता क्यों करे?
  9. चुनाव लड़ने का लिए नेताओं का अभाव दिखेगा आखिर कोई चंद मासिक वेतन के लिए इतने बड़े क्षेत्र की जनता का समर्थन पाने के लिए बेतहाशा परिश्रम क्यों करेगा?बेशुमार धन क्यों खर्च करेगा?
  10. सरकारी ठेकेदार ठेकेदारी करना छोड़ देंगे, क्योंकि खुली प्रतिस्पर्द्धा में मार्जिन मिलेगा नहीं,घूस के अभाव में हल्का मॉल लगाना संभव नहीं होगा. अपनी पूँजी को ईमानदारी के दल दल के क्यों फँसाएगा?.
  11. आप अवैध निर्माण कर मनचाही सुविधाएँ नहीं जुटा पाएंगे ,अपने व्यापार के लिए अतिरिक्त प्रयास नहीं कर पाएंगे क्योंकि फिर आपको सरकारी कोप से कौन बचाएगा,और आपका अवैध निर्माण कैसे बचेगा?
  12. यदि न्यायालय में आपका कोई केस चल रहा है तो यकीन मानिये पैसे के बल पर,सबूत नष्ट कर या गवाहों को फुसला कर केस अपने पक्ष में करा लेने का सपना छोड़ना होगा.
१३. भ्रष्टाचार का खात्मा,समाचार एजेंसियों,न्यूज़ चेनलों,समाचार पत्रों के लिए मौत का पैगाम लेकर आयेगा. जब घोटाले एवं हेरा फेरी के मामले होंगे ही नहीं, तो वे जनता के समक्ष क्या पेश करेंगे ?उस समय समाचारों का मुख्य स्रोत ही ख़त्म हो जायेगा .
अब जरा सोचिये भ्रष्टाचार के बिना पूरी व्यवस्था पंगु नहीं हो जाएगी?, आखिर देश का विकास कैसे हो पायेगा? सोचना होगा भ्रष्टाचार के विरुद्ध अभियान आत्मघाती तो न हो जायेगा? आखिर भ्रष्टाचार के बिन सब सून लगेगा. अतः भ्रष्टाचार को बनाये रखिये इसको हटाने की गलती न करें, अनर्थ हो जायेगा..मेरा प्रस्ताव मानने के लिए धन्यवाद .


--

*SATYA SHEEL AGRAWAL*

शनिवार, 1 अक्तूबर 2011

ओर भी रूप हैं भ्रष्टाचार के

आज जब भी हम भ्रष्टाचार की बात करते हैं,तो अक्सर सरकारी कर्मचारियों द्वारा ली जाने वाली रिश्वत को ही लक्ष्य मानते हैं या समझते है. वास्तव में भ्रष्टाचार का रूप काफी व्यापक है. भ्रष्टाचार के मूल अर्थ है भ्रष्ट आचार अर्थात कोई भी अनैतिक व्यव्हार, गैरकानूनी व्यव्हार भ्रष्टाचार ही होता है. अतः सिर्फ नौकरशाही में व्याप्त भ्रष्टाचार पर अंकुश लगाकर वांछित परिणाम प्राप्त नहीं किये जा सकते .आम जनता को भी अपने व्यव्हार में ईमानदारी,पारदर्शिता,शुचिता,मानवता जैसे गुणों को अपनाना होगा. आईये देखते हैं कैसे;

1. उचित मार्ग अर्थात नैतिकता और आदर्शों पर चलने वाले व्यक्ति को साधारणतया हम मूर्ख कहते है, अव्यवहारिक कहते हैं,कभी कभी बेचारा भी कहते हैं.
2. कोई भी सरकारी या गैरसरकारी कर्मचारी अपने कार्य के प्रति उदासीन रहता है ,जनता की समस्या को सुनने,समझने समाधान करने में कोई रूचि नहीं रखता.
3. दुकानदार नकली वस्तुओं को असली बता कर बेचता है,और अप्रत्याशित कमाई करता है.
4. उत्पादक नकली वस्तुओं या मिलावटी वस्तुओं का निर्माण करता है,उन्हें असली ब्रांड नाम से पैक करता है.
5. कोई भी जब दहेज़ की मांग पूरी न होने पर बहू को प्रताड़ित करता है उसके साथ हिंसक व्यव्हार करता है.
6. जब कोई व्यक्ति किसी महिला के साथ छेड़खानी करता है, तानाकशी करता है.या दुर्व्यवहार करता है.
7. ऑफिस में,व्यवसाय में,कारोबार में कार्यरत मातहत महिला की विवशता का लाभ उठाते हुए उसका शारीरिक या मानसिक शोषण किया जाता है.
8. समाज में किसी के भी साथ अन्याय,दुराचार,अत्याचार किया जाता है.
9. चापलूसी कर कोई नौकरी हड़पना,या फिर अपने प्रोमोशन का मार्ग प्रशस्त करना भी भ्रष्टाचार का ही एक रूप है.
10. यदि कोई व्यक्ति योग्य है ,सक्षमहै ,कर्मठ है,बफादार है अर्थात सर्वगुन्संपन्न है परन्तु चापलूस नहीं है, इस कारण उसे प्रताड़ित किया जाना,दण्डित करना,अपमानित करना भी क्या भ्रष्टाचार का हिस्सा नहीं है?
11. अपने छोटे से लाभ की खातिर किसी दलाल,कमीशन एजेंट,व्यापारी द्वारा ग्राहक को दिग्भ्रमित करना और ग्राहक की बड़ी पूँजी को दांव पर लगा देना क्या भ्रष्टाचार का ही रूप नहीं है?
12. डाक्टर,इंजीनयर ,मिस्त्री,अपने लाभ के लिए अनाप शनाप बिल बना कर ग्राहक के साथ अन्याय करते हैं.
13. असंयमित आहार विहार अथवा असंतुलित खान पान द्वारा विभिन्न बिमारियों को आमंत्रित कर लेना भी भ्रष्टाचार का ही रूप है स्वयं अपने साथ अन्याय है .मदिरा पान,बीडी सिगरेट व अन्य नशीले पदार्थों का सेवन अपने शरीर पर अत्याचार है, भ्रष्टाचार है.


--

*SATYA SHEEL AGRAWAL*

शुक्रवार, 23 सितंबर 2011

क्यों उजागर हो जाते हैं घोटाले?

यद्यपि 'सूचना का अधिकार' के अंतर्गत घोटाले खुलने के पूरे आसार बन गए हैं.आज कल घोटले खुलना कोई आश्चर्यजनक बात नहीं है.परन्तु घोटाले तो आजादी के बाद से ही खुलते रहे हैं .परन्तु जब पूरा सिस्टम भ्रष्टाचार की गिरफ्त में है ,आखिर इन घोटालों को जनता के सामने लाता कौन है क्यों उजागर हो जाते हैं घोटाले?
दरअसल घोटाले तो नित्य होते ही रहते हैं सब कुछ शांत रहता है, जब तक बन्दर बाँट उचित ढंग से होती रहती है. जब भ्रष्टाचार से प्राप्त रकम की बंदरबांट में कहीं घोटाला हो जाता है अर्थात घोटाले में घोटाला हो जाता है,किसी अधिकारी या मंत्री को उसकी हैसियत अनुसार उसका हक़ नहीं दिया जाता तो असंतुष्ट व्यक्ति सारा का सारा रायता बिखेर देता है.और जनता के समक्ष घोटाला आ जाता है.
तत्पश्चात एक नया खेल शुरू होता है,शासन की ओर से जाँच अजेंसी को केस सोंप दिया जाता है. फिर अपने प्रभाव से रिपोर्ट को लाने में देरी की जाती है, बार बार रपोर्ट पेश करने के लिए समय बढ़ाने का नाटक किया जाता है. उसके पश्चात् मुकदमें में वर्षों लगा दिया जाते है. इस बीच केस को कमजोर करने के लिए सारे हथकंडे अपनाये जाते है. सबूतों को नष्ट किया जाता है.आखिर में आरोपी निर्दोष साबित हो जाता है. केस रफा दफा हो जाता है. यदि केस में कोई अनियमितता के तथ्य थे ही नहीं तो जाँच एजेंसियों ने केस दर्ज ही क्यों किया?क्यों बड़े बड़े अधिकारीयों मंत्रियों पर अनेक केस चलने के बाद भी कोई दोषी सिद्ध नहीं हो सका ?
क्या इस वास्तविकता में कोई संदेह रह जाता है की- भ्रष्टाचार करते पकडे गए और भ्रष्टाचार द्वारा ही साफ बच गए?और जनता देखती ही रह गयी.
<script async src="//pagead2.googlesyndication.com/pagead/js/adsbygoogle.js"></script>
<!-- s.s.agrawal -->
<ins class="adsbygoogle"
     style="display:block"
     data-ad-client="ca-pub-1156871373620726"
     data-ad-slot="2252193298"
     data-ad-format="auto"></ins>
<script>
(adsbygoogle = window.adsbygoogle || []).push({});
</script>