Powered By Blogger

सोमवार, 29 अगस्त 2011

अन्ना जी और गाँधी जी.


अन्ना जी के भ्रष्टाचार के विरुद्ध आन्दोलन की सफलता के पश्चात्, एक बहस छिड़ गयी है की क्या अन्नाजी को गाँधी जी के समकक्ष रखना उचित होगा.अन्ना जी की तुलना गाँधी जी से करना न्याय संगत है क्या? क्या अन्ना जी का कद गाँधी जी से भी बड़ा हो गया है?
मैं अपने विचार से अन्ना जी के कद को गाँधी जी कद से बड़ा मानता हूँ और अपने विचार के समर्थन में अपने निम्न लिखित तर्क प्रस्तुत करता हूँ. ताकि प्रत्येक विचार शील व्यक्ति मेरी बात को समर्थन दे सके
गाँधी जी के स्वतंत्रता आन्दोलन के समय अनेक स्वतंत्रता सेनानी आन्दोलन का नेतृत्व कर रहे थे. अर्थात नेता जी सुभाष चन्द्र बोस ,स्वामी विवेकानंद,लाला लाजपत राय,बाबा साहेब अम्बेडकर,जवाहर लाल नेहरु जैसे अनेको नमी गिरामी नेता स्वतंत्रता आन्दोलन को चला रहे थे. परन्तु वर्तमान आन्दोलन के मात्र एक ही सूत्रधार हैं,श्री अन्ना हजारे, जो अपनी टीम के सदस्यों के साहसिक सहयोग के साथ आगे बढ़ रहे थे.अन्य कोई पार्टी,कोई नेता इस आन्दोलन को नहीं चला रहा था. स्वामी रामदेव के आन्दोलन को अवश्य सहयोगी नेतृत्व कहा जा सकता है परन्तु रणनीतिकारों के अभाव में वे प्रभावशाली नेतृत्व नहीं कर पाए.
गाँधी जी सुविधा संपन्न पारिवारिक प्रष्ट भूमि से आए थे, अतः शिक्षा प्राप्त करने का पर्याप्त अवसर मिला,जो आन्दोलन को चलाने के लिए महत्वपूर्ण मार्ग दर्शन उपलब्ध कराता है.परन्तु श्री अन्ना हजारे एक बेहद गरीब एवं पिछड़े माहौल से आए थे, इसी कारण शिक्षा भी ग्रहण नहीं कर पाए मात्र प्राइमरी शिक्षा तक अध्ययन कर सके. फिर भी इतने बड़े आन्दोलन का नेतृत्व कर पाने में सफल हुए.
अन्ना जी की लोकप्रियता को गाँधी जी की लोकप्रियता से किसी भी प्रकार से कम नहीं आंका जा सकता. उनका देश के लिए संघर्ष रत जीवन, जो करीब चालीस वर्ष है कम नहीं माना जा सकता. जिसमे उन्होंने जनता को अनेकों समस्याओं से निजात दिलाई है.राष्ट्रिय स्तर पर यह उनकी पहली सफलता है. इनकी लड़ाई को आजादी की लड़ाई से कम नहीं माना जा सकता बल्कि यह संघर्ष अधिक जटिल संघर्ष है. क्योंकि विदेशी सरकार से लड़ना आसान होता बनिस्वत अपनी सरकार के अर्थात अपनों से लड़ना अधिक चुनौती पूर्ण होता है.
अन्ना जी का आन्दोलन गाँधी दर्शन पर आधारित था ,अतः यदि अन्ना जी को गाँधी जी का अनुयायी कहने में कोई परहेज नहीं होना चाहिए उनके सिद्धांतों के कारण ही आन्दोलन को अहिंसक तरीका अपना कर सफल बनाया जा सका. परन्तु गाँधी जी के सिद्धांतों पर चल कर यदि कोई व्यक्ति गाँधी जी के कद से ऊपर कद बना लेता तो यह स्वयं गाँधी जी के सम्मान से कम नहीं है.
सत्य शील अग्रवाल

शुक्रवार, 26 अगस्त 2011

भ्रष्टाचार किस हद तक



हमारे देश में आजादी के पश्चात् भ्रष्टाचार ने जो गति पकड़ी वह बढ़ते बढ़ते बेलगाम हो गयी है .आम जनता ने भ्रष्टाचार को शिष्टाचार या सुविधाशुल्क मान कर अपना लिया.भ्रष्टाचार रुपी गंगा का उद्गम स्थान मंत्री और प्रथम पंक्ति के नौकर शाह हैं उन्होंने सारी हदें पार कर बलगम भ्रष्टाचार में लिप्त हो गए .अब तो भ्रष्टाचारियों की खाल इतनी मोटी हो गयी है, की उन्हें कोई वार या कोई कानूनी शिकंजा प्रभावित नहीं कर पाता. जिससे सपष्ट है, की हमारे कानून भ्रष्टाचार को रोक पाने में सक्षम नहीं है. .
भारत के वर्तमान विकास में सरकारी सहयोग का योगदान नगण्य ही माना जायेगा . पिछली अर्द्ध शताब्दी में देश के विकास में देशवासियों की अपनी श्रमसाध्य्ता को ही श्रेय जाता है. सरकारी अमले ने प्रत्येक व्यापारी या उद्योगपति के कार्यों में व्यवधान ही पैदा किया है. सरकार से सहयोग मिलने की बात तो बेमानी है
अब तो भ्रष्टाचार की सीमा करोड़ों से उछल कर लाखों करोड़ तक पहुँच गयी है. जनता की गाढ़ी कमाई से प्राप्त राजस्व भ्रष्टाचार की भेंट चढ़ जाता है.अन्ना हजारे का आन्दोलन भी इसी भ्रष्टाचर रुपी राक्षस को ख़त्म करने के लिए किया जा रहा है यदि कानून में पारदर्शिता आ जाय तो भ्रष्टाचार की गुंजाईश भी कम हो जाएगी .जो मजबूत जन लोकपाल बिल से ही संभव है.अतः हमें श्री अन्ना हजरे के आन्दोलन में भागीदारी दे कर अपने कर्तव्य को निभाना होगा. इस में ही हमारा और पूरे देश का भला है.अन्ना जी समर्थन में उठे जन सैलाब ने स्पष्ट कर दिया है की भ्रष्टाचार को लेकर.जनता में कितना आक्रोश है.
अन्ना तुम संघर्ष करो देश तुम्हारे साथ है --


बुधवार, 24 अगस्त 2011

इंसानियत


हमारे देश में प्रत्येक नागरिक को अपने धर्म अपने विचारों को प्रसारित एवं प्रचारित करने की पूरी स्वतंत्रता है,विभिन्न धर्मों के व्यापक प्रचार एवं प्रसार के बावजूद इमानदारी,सच्चाई,शालीनता,अहिंसा,सहिष्णुता,जैसे गुणों का सर्वथा अभाव है। जिसने अपने देश में अराजकता ,अत्याचार,चोरी,डकैती,हत्या जैसे अपराधों का ग्राफ बढा दिया है.दिन प्रतिदिन नैतिक पतन हो रहा है.उसका कारण यह है की हम धर्म को तो अपनाते
हैं परन्तु धर्मो द्वारा बताये गए आदर्शों को अपने व्यव्हार में नहीं अपनाते। सभी धर्मों के मूल तत्व इन्सनिअत को भूल जाते हैं,और अवांछनीय व्यव्हार को अपना लेते हैं।
यदि हम किसी धर्म का अनुसरण भी करें और इन्सनिअत को अपना लें ,इन्सनिअत को अपने दैनिक व्यव्हार में ले आए तो सिर्फ अपने समाज,अपने देश, बल्कि पूरे विश्व में सुख समृधि एवं विकास की लहर पैदा कर सकते हैं.



.

शुक्रवार, 19 अगस्त 2011

सरकारी कर्मियों से विनम्र निवेदन


आज जो आन्दोलन अन्ना हजारे द्वारा चलाया जा रहा है, यह एक अनुशासन पर्व की भांति है ,सभी को आत्मशुद्धि का मौका मिल रहा है. अतः अन्ना जी के आन्दोलन में सहयोग देने के लिए हम सभी को कुछ संकल्प लेने की आवश्यकता है .एक तरफ जहाँ आम जनता को घूस देने से बचने की कोशिश करनी है, तो दूसरी तरफ सभी सरकारी कर्मचारियों को भी संकल्प लेना चाहिए --न तो वे स्वयं रिश्वत लेंगे और न ही लेने देंगे-- और अपने इस संकल्प को ईमानदारी से निभाएंगे. यही हमारा प्रायश्चित भी होगा. क्योंकि सारे भ्रष्ट कार्य की पहली जिम्मेदरी सरकारी कर्मियों की है यदि वे चाहें तो नेता भी घोटाले नहीं कर सकते, क्योंकि एकता में बहुत शक्ति है.
एक प्रश्न भी आपके मन में कोंध रहा होगा. आज जनता भी बिना रिश्वत दिए भरोसा नहीं करती की उसका काम वास्तव में हो जायेगा. ऐसे लोग जबरन रिश्वत देने की कोशिश करते रहेंगे उसका समाधान भी है, सभी सरकारी वेतन भोगी अपने संकल्प पर अडिग रहते हुए जबरन दी गयी राशी को ईमानदारी से अन्ना हजारे के मिशन पर खर्च कर दें. यह हजारे साहेब के आन्दोलन को बल प्रदान करेगा .हमारे देश और हमारी संतान का भविष्य सुरक्षित हो सकेगा

--

सोमवार, 15 अगस्त 2011

अन्ना हजारे और उनका आन्दोलन


आज अन्ना जी की गिरफ़्तारी से पूरा देश आक्रोशित हो उठा है .अन्ना के आन्दोलन को जिस प्रकार से कुचलने का प्रयास किया जा रहा है, सरकार में फैली घबराहट को प्रदर्शित करता है.सभी सरकार में बैठे नेताओं और नौकर शाहों को अपना भविष्य अंधकार में दिखने लगा है.उसी प्रकार जनता में भी अनेक ऐसे व्यक्ति विद्यमान हैं,जो जाने अनजाने या फिर मजबूरी वश भ्रष्ट कार्यों का हिस्सा बने हुए हैं अथवा कभी हिस्सा रहे हैं,वे भी परेशान हैं,हैरान हैं. ये लोग आन्दोलन का समर्थन देने इच्छा रखते हुए भी अपने को जकड़ा हुआ पाते हैं. यही कारण है अन्ना जी को जो समर्थन मिलना चाहिए था उतना समर्थन नहीं मिल पा रहा है, यही वजह है की सरकारी अधिकारी आन्दोलन को कुचल देने का स्वप्न देख रहे हैं .जबकि यह उनकी भयानक भूल है अब तो प्रायश्चित स्वरूप उन्हें आन्दोलन का एवं जन लोकपाल बिल का समर्थन करना चाहिए ,यही उनके हित में हो सकता है.
मजबूरी वश या परिस्थिति वश भ्रष्टाचार में लिप्त रहे लोगों के लिए पश्चाताप का यह सुनहरी अवसर है और यदि प्रायश्चित में सजा भी भुगतनी पड़ती है तो भी अपने एवं अपने बच्चों के सुखद भविष्य के लिए त्याग मान कर तैयार रहने चाहिए. और भ्रष्टाचार के विरुद्ध लड़ाई में अन्ना जी का साथ देना चाहिए.उन्हें आज से ही भ्रष्ट कार्यों से स्वयं को अलग कर लेने के लिए संकल्पाबद्ध हो जाना चाहिए.आपके इस प्रायश्चित से अन्ना जी के आन्दोलन को ताकत मिलेगी.

--

*सत्य शील अग्रवाल *
(blogger)*

रविवार, 14 अगस्त 2011

सभी मित्रों को स्वतंत्रता दिवस की शुभ कामनाएं


सभी मित्रों को स्वतंत्रता दिवस की शुभ कामनाएं
राष्ट्रिय पर्व की इस पावन बेला पर यदि हम सब कुछ महत्वपूर्ण संकल्प ले सकें तो यह राष्ट्र के प्रति हमारे नैतिक दायित्व को सार्थक करेगा
*हम अपने स्वार्थ से अधिक राष्ट्र हित को महत्त्व देंगे
**राष्ट्र की संपत्ति की यथा शक्ति रक्षा करेंगे.
*भ्रष्टाचार के विरुद्ध एक जुट हो कर आन्दोलन रत रहेंगे .
*देशद्रोहियों,आतंकियों के इरादों को कभी कामयाब नहीं होने देंगे उन्हें नेस्तनाबूद करने के यथा संभव प्रयास करेंगे.
*समाज सेवकों,देशसेवकों को प्रोत्साहित करने के साथ भरपूर सहयोग भी करेंगे.
*शिक्षा के प्रसार प्रचार में यथाशक्ति सहयोग करेंगे.
*महिलाओं को सम्मान एवं समानता का अधिकार दिलाने के लिए प्रयासरत रहेंगे.
*बच्चों को चरित्रवान ,सभ्य,एवं समाज के लिए उपयोगी नागरिक बनायेंगे.
*इंसानियत अपनाएंगे,इंसानियत की रक्षा करेंगे .
*देश में सुख शांति और न्याय का परचम लहरायेंगे.

जय हिंद

*सत्य शील अग्रवाल *


शनिवार, 6 अगस्त 2011

विचार मंथन भाग छः

क्या यह सभी भ्रष्टाचार के साइड एफ्फेक्ट नहीं?
#स्पीक एशिया जैसी फर्में अपनी असंगत योजनाओं के साथ वर्षों तक चलती रहती हैं, जब लाखों लोग उनकी ठगी के शिकार हो जाते हैं तब शासन,प्रशासन की नींद खुलती है. फिर पकड़ धकड़ चलती है,संसद में उसकी गूंज सुनाई पड़ती है. आखिर ऐसी फर्में इतने समय तक अस्तित्व में क्यों बनी रहीं? और जनता को ठगती रहीं, सरकारी विभाग क्या कर रहे थे?
##विक्टोरिया पार्क मेरठ अग्नि कांड होते हैं, सैंकड़ो व्यक्ति काल के गाल में समां जाते हैं. तब अग्निशमन विभाग ,विद्युत् विभाग, स्थानीय प्रशासन सब अपने अपने नियमों के उल्लंघन होने का शोर मचाते है .आयोजकों पर आरोप मढ़ते हैं तथा स्वयं को पाक साफ होने का नाटक करते हैं. क्या नियमों का पालन करने की जिम्मेवारी किसी विभाग की नहीं है सिर्फ आरोप लगा कर अपन रोब गांठना ही उनका काम है?
###उपहार सिनेमा दिल्ली अग्निकांड होता है, अनेकों बेगुनाह मनोरंजन करता करता मौत के आगोश में समां जाते हैं,तब सरकारी विभाग अपने कायदे कानून याद आते हैं ,सिनेमा घर के मालिकों पर सारे आरोप सिद्ध करने की होड़ लग जाति है परन्तु इस लापरवाही में निरीह जनता पिस जाति है. क्यों?
####शहर में नकली दवाओं,नकली खाद्य पदार्थों ,जैसे घी,मावा,सिंथेटिक दूध,नकली सोस,इत्यादि के बड़े बड़े कारोबार चलते रहते हैं.स्थानीय प्रशासन को भनक तक नहीं लगती. क्या संभव है बिना स्थानीय प्रशासन की जानकारी के कोई इतना बड़ा धंधा चला सकता है.?.
#####बड़ी बड़ी फाइनेंस कम्पनियां अनेक प्रकार के लालच में जनता को फंसा कर विराट राशी डकार जाती हैं. सम्बंधित विभागों के अधिकारी जब जागते हैं तब तक जनता को भारी चूना लग चुका होता है. फिर दिखावे के लिए मालिकों को उठा कर बंद कर दिया जाता है अनेक वर्षो तक मुकदमा चलता है धीर धीरे सेटिंग हो जाती है सबूत नष्ट कर केस को कमजोर कर दिया जाता है. सब मामला रफा दफा हो जाता है. जनता के हाथ कुछ नहीं आता कुबेर फाइनेंस कम्पनी जैसी अनेको कम्पनियां इसका उदहारण है .
######सभी सरकारी विभागों में अफसर बाजार भाव से कई गुना अधिक भाव पर अपने विभाग के लिए सामान खरीदते है,ठेकेदार से कई गुना कीमत देकर कार्य करवाते हैं,बड़े बड़े अफसर मंत्री अपनी मौन स्वीकृति देते रहते हैं जब कभी मीडिया कोई प्रसंग उछाल देती है तो निचले अधिकारियों को बलि का बकरा बना कर आरोपित कर दिया जाता है बड़े अधिकारी साफ बच जाते हैं.
उपरोक्त सभी ऐसे उदाहरणहैं जो स्पष्ट बताते हैं की रिश्वत के लालच में अनेक अवैध कार्य शासन प्रशासन के संरक्षण में चलते रहते हैं जिनके भयंकर परिणाम जनता को भुगतने पड़ते हैं.सरकारी विभागों के अधिकारियों का कुछ नहीं बिगड़ता जबकि उनके लालच के कारण ही अवैध कार्य हो पाते है.सभी दुर्घटनाओ का असली जिम्मेदार भ्रष्टाचार है.

--

*सत्य शील अग्रवाल *

मंगलवार, 2 अगस्त 2011

विचार मंथन (भाग पांच)


देश का मालिक कौन ?
कभी सरकारी वेतन कर्मियों के वेतन तर्क संगत नहीं हुआ करते थे.अतः सरकारी कर्मियों को भ्रष्टाचार अपनाये बिना परिवार चलाना मुश्किल था अथवा कम वेतन दे कर सरकार ने भ्रष्ट तरीके अपनाने को प्रेरित किया. धीरे धीरे पूरा सिस्टम भ्रष्टाचार में डूबता चला गया और नेताओं की जेबें भरने लगीं .प्रत्येक सरकारी कर्मी की नियति बन गयी की बिना कुछ लिए उसे फाइल को हिलाना भी गवारा न रहा. परन्तु पिछले बीस वर्षों में सरकारी वेतन आयोग की सिफारिशों के चलते वर्तमान में सरकारी कर्मियों को वेतनमान मार्केट में प्रचलित वेतनमानों से कहीं अधिक कर दिए गए हैं. परन्तु तर्क संगत वेतनमान से भी अधिक वेतन मिलने के पश्चात् भी भ्रष्टाचार पर किसी प्रकार से अंकुश नहीं लगा. बल्कि घूस की दरें भी वेतनमान के अनुसार बढा दी गयीं. अब पांच सौ प्रतिदिन के हिसाब से वेतन पाने वाला कर्म चारी पचास रूपए रिश्वत कैसे ले सकता है,उसे भी कम से कम दो सौ या ढाई सौ से कम रिश्वत कैसे रास आ सकती है.इसी प्रकार अधिकारियों ने अपनी घूस की दरें बढा दीं .अर्थात वेतनमान तो जनता की गाढ़ी कमाई से गया ही, रिश्वत दरें बढ़ने से अपरोक्ष रूप से भार पड़ा सो अलग.जनता तो शोषित किये जाने के लिए ही है. शायद हमारे देश में नेताओं,पूंजीपतियों,सरकारी कर्मियों को ही जीने का अधिकार है. बाकी जनता तो लुटने के लिए है.
हमारी चुनाव प्रणाली दोष पूर्ण होने के कारण ,चुनावों में विजय मिलती है, या तो धनवानों को या फिर बाहुबलियों को जो दबंगई के बल पर चुनाव जीत जाते हैं .धन वाले उम्मीदवार धन के बल पर समाज के कमजोर वर्ग को आसानी से भ्रमित कर वोट प्राप्त कर लेते हैं.और चुनाव जीत जाते हैं यही कारण है कोई भी नेता आरक्षण व्यवस्था को हटाने की हिम्मत नहीं जुटा पाता.परिणाम स्वरूप मेधावी नागरिक जो उच्च जाति के होते हैं, को देश के विकास में योगदान का अवसर नहीं मिल पाता .अतः वे अधिकतर विदेशों को चले जाते हैं और देश के विकास अवरुद्ध हो जाता है.जनता को चुनाव का अधिकार होते हुए भी वह उसका सदुपयोग नहीं कर पाती .
जनता तो देश की मालिक है उसे सिर्फ प्रितिनिधियों को चुनने का अधिकार है,वोट देने का अधिकार है बस यहीं तक जनता देश की मालिक है.जनता अपनी मेहनत से विकास करेगी,पैदावार बढ़ाएगी,मिलों में उत्पादन बढ़ाएगी, तो लाभ सरकार में बैठे नेता या फिर सरकारीकर्मी चाटते रहेंगे,फिर जनता महंगाई से पिसती रहेगी . और अपने नसीब को कोसती रहेगी.वाह रे लोकतंत्र,वाह रे जनतंत्र, या बेईमानी तेरा सहारा.......देश का विकास होगा तो विकास होगा सरकारी कर्मियों का विकास होगा नेताओं का या फिर उद्योगपतियों का ,पूंजीपतियों का ----------.