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रविवार, 20 मई 2012


धार्मिक मान्यताओं का वैज्ञानिक महत्त्व
सैंकड़ो वर्ष पूर्व हमारे पूर्वजों ने अनेक प्रकार के नियम एवं मान्यताएं स्थापित कीं ,जिसे उन्होंने
धर्म का स्वरूप देकर मानव हित के लिए जनता को बहुत ही साधारण सी भाषा में समझा दिया .वर्तमान युग के सन्दर्भ में जब उन्हें वैज्ञानिक तर्क की कसौटी पर कसते हैं ,तो आश्चर्य होता है की इतने प्राचीन समय में भी हमारे पूर्वज कितने वैज्ञानिक रहे होंगे .
इस विषय पर विस्तार से चर्चा करने का प्रयास किया जा रहा है ;
1,तुलसी का महत्त्व ;-
हिन्दू धर्म में तुलसी का अत्यंत महत्त्व बताया गया है . रोज सवेरे उसको जल देना और पूजा
अर्चना करने का विधान है . प्रत्येक घर में उसका पौधा होना आवश्यक माना गया है . वैज्ञनिक शोधों में पाया गया है.की मानव शरीर के लिए तुलसी का पौधा अनेक प्रकार से स्वास्थ्यप्रद है . नित्य
उसके सानिध्यसे शुद्ध हवा शरीर को प्राप्त होती है .अनेक रोगों में भी इसके पत्ते , इसके बीज लाभकारी होते हैं .आयुर्वैदिक डॉक्टर तुलसा को जड़ी बूटी मानकर दवाओं में प्रयोग करते हैं .
2
,सूर्य नमस्कार ;

रोज सवेरे सूर्य देवता की पूजा ,अर्थात सूर्य नमस्कार के साथ जल विसर्जन करने को हमारे धर्म
ग्रंथों में महत्त्व पूर्ण बताया गया है .सूर्योदय के समय जो किरणे हमारे शरीर पर पड़ती हैं ,स्वास्थ्य के लिए लाभप्रद होती है .अतः हमारे पूर्वजों ने इन किरणों से मानव को स्वास्थ्य प्रदान करने के लिए सूर्य को देवता के रूप में प्रस्तुत किया और रोज सवेरे स्नानादि से निवृत हो कर सूर्योदय के समय में जल अर्पण का प्रावधान किया .इस प्रकार से होने वाले लाभ को वैज्ञनिक रूप से सही
पाया गया है .
3
,विभिन्न उपवासों की धार्मिक मान्यता ;-

यदि हम प्रत्येक उपवास अथवा उपवासों पर दृष्टि डालें तो सभी उपवासों का एक ही उद्देश्य
प्रतीत होता है,की मानव को शरीरिक रूप से स्वास्थ्य रखा जाय. सारी शारीरिक समस्याओं की जड़ पेट होता है अर्थात यदि पेट की पाचन क्रिया दुरुस्त है , तो शरीर व्याधि रहित रहता है .उसे ठीक रखने के लिए समय समय पर उपवास रखना सर्वोत्तम साधन है ,उपवास रोजे के रूप में हो या
फिर नवरात्री के रूप में .इन उपवासों से इन्सान की जीवनी शक्ति बढती है, सहन शक्ति का संचार होता है .नवरात्री वर्ष में दो बार पड़ते हैं ,और दोनों के समय मौसम के संधिकाल में पड़ता है
अर्थात उन दिनों मौसम बदल रहा होता , हम ग्रीष्म से शरद ऋतू में प्रवेश कर रहे होते हैं ,या शरद ऋतू से ग्रीष्म ऋतू में प्रवेश कर रहे होते है .जब मौसम का बदलाव होता है हमारी
पाचन क्रिया बिगड़ जाती है .अतः ऐसे समय में उपवास या व्रत रखना शरीर के स्वास्थ्य की रक्षा
करता है .अतः सभी उपवासों को चिकित्सा की दृष्टि से स्वास्थ्यप्रद पाया गया है .अतः मानव को स्वस्थ्य रखने के लिए उपवासों को धर्म से जोड़ा गया .
4,
मंदिरों -गुरुद्वारों में घंटों का महत्त्व ;-

मंदिरों -गुरुद्वारों आदि धार्मिक स्थलों पर घंटे बजाने का चलन है ,परन्तु बहुत कम लोग जानते हैं
की इसका भी एक वैज्ञानिक आधार भी है , जिसका स्वस्थ्य पर अनुकूल प्रभाव पड़ता है .घंटे बजने से
उत्पन्न ध्वनि तरंगें कीटाणुओं का नाश करती है ,और धार्मिक स्थल को वातावरण प्रदूषण रहित बनाती हैं .इस प्रकार शुद्ध यानि प्रदूषण रहित वातावरण में बैठ कर पूजा अर्चना करने से स्वस्थ्य
लाभ भी मिलता है .शायद हमारे पूर्वजों की सोच रही होगी मंदिर में पूजा अर्चना करने के लिए बीमार व्यक्ति भी आते है , जिनके रोगाणु अन्य भक्तों को नुकसान पहुंचा सकते हैं . अतः मंदिरों को संक्रमण रहित करने की युक्ति घंटे बजा कर निकली गयी होगी .
5,
गायत्री मन्त्रों का महत्त्व ;

गायत्री मन्त्रों का जाप सर्वाधिक महत्त्व पूर्ण जाप माना गया है ,इसीलिए अनेक विद्वानों ने
इसे अपनी उपासना का अंग बनाया है . जाप कोई भी हो सबका उद्देश्य मन को केंद्रीकृत कर
उसे अनेक बुराईयों से बचाना होता है ,और शारीरिक ऊर्जा का विकास होता है . शांति कुञ्ज हरिद्वार में स्थित ब्रह्म वर्चस्व में ,इस विषय पर शोध करने के पश्चात् पाया गया की गायत्री मन्त्र के
उच्चारण से उत्पन्न ध्वनि तरंगें अन्य किसी भी मंत्र के मुकाबले सर्वाधिक अनुकूल प्रभाव डालती हैं .अतः इस मन्त्र का वैज्ञानिक महत्त्व चमत्कारिक है .इसके लगातार उच्चारण करने से शारीरिक ऊर्जा के साथ साथ जप के स्थान पर भी ऊर्जा का संचार पाया गया और वातावरण में स्वच्छता ,
सकारात्मकता का प्रभाव पाया गया .इसीलिए जहाँ पर नियमित गायत्री मंत्रोच्चार होता है , वह
स्थान मन को शांती प्रदान करने वाला हो जाता है .इसी कारण देवालयों में जाकर मन को अलग ही प्रकार की सुखद अनुभूति होती है .