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मंगलवार, 12 अगस्त 2014

व्यापारियों को अपने अधिकारों के लिए जागरूक होना होगा


      
आज के समय में एक व्यापारी आम तौर पर सर्वाधिक असुरक्षित एवं दयनीय जीवन जीता है. कुछ उच्च स्तरीय व्यापरियों को छोड़ कर सभी व्यापारी अनेक प्रकार के तनाव झेलते हुए अपनी जीविका चलाते हैं, अपने परिवार का भरण पोषण करते हैं. व्यापरी छोटा हो,व्यापारी बड़ा हो या व्यापारी थोक बिक्रेता हो अथवा उद्योग पति हो उसका व्यापारिक कार्य स्थल हमेशा खतरे में रहता है. उसे अपने दुकान या गोदाम में आगजनी, लूटमार,चोरी, या बलवा का खतरा हमेशा मंडराता रहता है, जिसके कारण उसका वर्षों की मेहनत से जमाया कारोबार कभी भी हाशिये पर आ सकता है,और उसकी जीवनभर कमाई  पूँजी नष्ट हो जाती है, जिसकी भरपाई उसके लिए असंभव ही हो जाती है, यदि किसी प्रकार से वह दोबारा अपने व्यापर को जमा भी लेता है तो इस अन्तराल(दोबारा व्यापार को पटरी पर लाने में) में हुए उसके व्यापार के घाटे की भरपाई नहीं कर सकता. और तो और अपहरण कर्ताओं के निशाने पर व्यापारी या उद्योगपति स्वयं या उसका परिवार ही होता है,जब वह अपने परिजन की जान बचाने के लिए जीवन भर की कमाई गुंडों की भेंट चढाने को मजबूर होता है.
   किसी भी देश की सरकार के खजाने की आमदनी  का मुख्य स्रोत, विशेषकर व्यापारी वर्ग ही होता है अर्थात देश या प्रदेश की सरकारें व्यापारी द्वारा दिए गए टेक्स के धन से चलती हैं.जब देश में सरकार विदेशी शासकों से चलती थी तो देश की जनता पर थोपा जाने वाला टेक्स उस देश की गुलामी का प्रतीक था और जनता की मजबूरी थी की वह शोषण का शिकार होती रहे और उसकी सुनवाई करने वाला कोई नहीं था.परन्तु आजाद देश में अब सरकार जनता की है जनता द्वारा  चुनी गयी है,और सरकार का कर्तव्य है कि वह जनता के हित में ,जनता के कल्याण के लिए कार्य करे और अपने कार्यों को अंजाम देने के लिए जनता से आर्थिक सहयोग के तौर पर टेक्स के रूप में धन प्राप्त करे और देश का विकास करे,जनता की समस्याओं का समाधान करे उसके सुखद वर्तमान और सुखद भविष्य के लिए योजनायें बनाये और उनका कार्यान्वयन करे.
     परन्तु के व्यापारी  से वसूले जाने वाला टेक्स का छोटा सा हिस्सा भी  व्यापारी के हित में प्रयोग नहीं होता.व्यापारी यदि टेक्स bबचाता है तो वह कर अपवंचक या टेक्स चोर कह कर अपमानित किया जाता है, यदि व्यापारी इमानदारी से टेक्स भरता है तो उसे भ्रष्ट नौकरशाही जीने नहीं देती उसके कार्यों में अडचने पैदा करती है.एक महत्त्व पूर्ण पहलू यह भी यह आज व्यापारी की मानसिकता बनती जा रही है, की उसके द्वारा सरकार को टेक्स दिए जाने का अर्थ है,अपनी गाढ़ी कमाई से भ्रष्ट नेताओं की तिजोरियां भरना, न की देश के विकास में योगदान देना और अपना भविष्य सुरक्षित करना. यही अनेक ऐसे कारण व्यापारी को टेक्स भरने की इच्छा से विमुख करते हैं,क्योंकि इमानदारी से टेक्स भरने के बाद उसके बदले में उसे कोई लाभ प्राप्त होने की उम्मीद नहीं होती,बल्कि सरकारी स्टाफ द्वारा शोषण किये जाने की सम्भावना बढ़ जाती है.इस प्रकार उसे हर स्तर पर टेक्स भुगतान करने के लिए हतोत्साहित किया जाता है.यदि सरकार द्वारा कर दाता को सम्मान और सुविधाएँ उपलब्ध करायी जाएँ तो सरकार के पास राजस्व अधिक पहुँचने की सम्भावना बढ़ जाएगीi .
   काफी लम्बे समय की आजादी के पश्चात् भी आज बहुत सारे कानून ब्रिटिश शासको द्वारा बनाये गए कानून के अनुसार ही क्रियान्वित हो रहे हैं,जिनमे गुलामी की भावना निहित है.देश की नौकरशाही आज भी स्वयं को शासक और जनता को शासित मानती है,जो उसकी कार्य प्रणाली से स्पष्ट रूप से परिलक्षित होता है. वे आज भी सामंतवादी युग से बाहर नहीं आ पा रहे हैं.यहाँ तक की नए कानूनों का फोर्मेट भी पुरानी शैली(ब्रिटिश शासन के समय की) पर आधारित होता है.सरकार की इस कार्य शैली का सबसे अधिक कुप्रभाव व्यापारी को झेलना पड़ रहा है.मजेदार बात तो यह है की व्यापारी भी अपने अधिकारों के लिए जागरूक नहीं है,वह इसे अपने जीवन की नियति मान कर संतुष्ट रहता है.उपरोक्त व्यापारिक खतरों की चपेट में आने के बाद बदतर स्थिति में जीने को मजबूर होता है.कोई उसके आंसू पोंछने वाला नसीब नहीं होता.और उसके कार्यक्षमता ख़त्म होने के पश्चात् भी परनिर्भरता उसकी मजबूरी बन जाती है.(यदि संतान संवेदन शील है तो अन्यथा.....).व्यापारियों की उदासीनता के कारण ही आज अनेक मजबूत व्यापरिक संगठन होते हुए भी व्यापारियों के मूल अधिकारों के लिए आवाज नहीं उठाते. कारण भी स्पष्ट है व्यापारी नेता अपनी नेता गिरी से अपना भविष्य सुरक्षित मानते हैं,वे स्वयं सभी स्वयं को सभी व्यापारिक खतरों से परे मानते हैं. अतः उन्हें आम व्यापारी की समस्याओं की चिंता करने से क्या फायदा. अतः अब प्रत्येक आम और खास व्यापरी को अपने अधिकारों के लिए जागरूक होना होगा और अपने संगठनों के नेताओं पर दबाब बनाना होगा, ताकि वे व्यापारी के भविष्य को सुरक्षित करने के लिए आवाज बुलंद करें.और सरकार को व्यापारियों के कल्याण के लिए आवश्यक कानून बनाने को मजबूर कर सकें.

(लेखन के माध्यम से व्यापारी भाइयों को उनके अधिकारों के प्रति जागरूक करने का मेरा  प्रयास
 जारी रहेगा,सभी पाठको से अनुरोध है वे इस विषय पर अपने सुझाव ईमेल--satyasheel129@gmail.com द्वारा अवश्य भेजें ताकि मैं इसे एक आन्दोलन का रूप दे सकूँ)