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रविवार, 6 मार्च 2016

व्यवसायी एवं व्यापारी को भी चाहिए आर्थिक सुरक्षा कवच (द्वितीय भाग)


       अनेकों बार करोड़ पति निजी व्यवसायी या व्यापारी, उद्योगपति विषम परिस्थितियों में दिवालिया की स्थिति तक पहुँच जाते हैं,उस समय उनके लिए अपने भरण पोषण के लिए आर्थिक व्यवस्था कर पाना असंभव हो जाता है,कोई भी उसकी सहायता के लिए सामने नहीं आता,सरकार से भी किसी प्रकार की मदद नहीं मिल पाती और वह  अपना शेष जीवन अभावों और अपमान के साथ जीने को मजबूर हो जाता है.जो व्यक्ति इस विपदा को सहन नहीं कर पाते वे,तनाव के कारण अनेक रोगों से ग्रस्त हो जाते हैं,और कभी कभी समय से पूर्व ही काल का ग्रास बन जाते हैं.
     अनेक बार निजी व्यवसायी किसी दुर्घटना का शिकार हो जाता है वह अपंग हो जाता है,या किसी गंभीर बीमारी के शिकार हो जाता है और महीनो तक सामान्य स्थिति में नहीं आ पाता ताकि वह अपने कारोबार या व्यवसाय को संभाल सके, यदि उसके पास कोई अपना अन्य विकल्प भी नहीं है.ऐसे व्यक्ति के लिए स्वयम का और परिवार का भरण पोषण करना असंभव हो जाता है.
      जब व्यापारी ,उद्योगपति अथवा व्यवसायी वृद्ध अवस्था में पहुँच जाता है तो सभी के पास विकल्प(उत्तराधिकारी) मौजूद नही होते,ऐसी स्थिति में उसे अपना कारोबार समेटना पड़ता है अथवा कर्मियों के सहारे काम चलाना पड़ता है, जो उसे कष्टदायक स्थिति तक ले सकता है और आर्थिक संकट से जूझने को मजबूर कर देता है, उनका जीवन भर का मान सम्मान धूमिल हो जाता है.वे अपने जीवन के निम्नतम स्तर पर जीवन बसर करने को मजबूर हो जाते है.यह भी आवशयक नहीं है की प्रत्येक कारोबारी के पास इतनी धनराशी हो जिसके ब्याज से वह अपने शेष जीवन व्यतीत कर सके. निरंतर बढती महंगाई बड़ी से बड़ी जमा पूँजी को महत्वहीन कर देती है.
  अनेक कारोबारियों के सामने जब विकट स्थिति हो जाती है, जब उसका कारोबार तो बहुत अच्छा होता है परन्तु वृद्धावस्था में उसकी संतान उसके कारोबार में मददगार नहीं होती, वह अपने जीवन के सर्वोच्च लक्ष्य पर पहुँच चुकी  होती है,कुछ युवा विदेश में जाकर बस जाते हैं.अतः कारोबार को समेटना उसकी मजबूरी हो जाती है.यह भी आवश्यक नहीं है सबकी संताने अपने परिवार की जिम्मेदारी को समझते हों.और परिवार को यथा संभव योगदान देते हों.
     कुछ पेशेवर कारोबारी ऐसे होते है जो अपने कारोबार को सीधे सीधे अपनी संतान को नहीं सौंप सकते और संतान उसके समान योग्यता प्राप्त नहीं कर पाती,जैसे डॉक्टर,इंजिनियर,वकील इत्यादि.और वह पारंपरिक व्यवसाय से हट कर किसी अन्य व्यवसाय में भी इतने सफल नहीं हो पाते,जिससे वह अपने वृद्ध माता पिता को आर्थिक योगदान कर सके.ऐसी स्थिति में कारोबारी के लिए अपना  शेष जीवन सम्मान सहित निकलना असंभव हो जाता है.
      सभी माता पिता इतने भाग्यशाली नहीं होते जब उनके पुत्र या पुत्री मेंधावी,परिश्रमी,बफादार,चरित्रवान और जिम्मेदार हों. गलत रास्तों पर निकल चुकी संतान के माता पिता के लिए तो अपने द्वारा कमाए धन की रक्षा कर पाना भी मुश्किल हो जाता है और भविष्य पूर्णतयः अंधकार मय दिखाई देने लगता है.जब संतान अपना भरण पोषण के योग्य भी नहीं हो पाती तो माता पिता के लिए क्या कर सकेगी.
उपरोक्त कारोबारियों की समस्याओं के समाधान के लिए कुछ सुझाव नीचे प्रस्तुत हैं;

    व्यवसायी से प्राप्त सभी प्रकार के टेक्स के रूप में राजस्व को उसके खाते में दर्ज किया जाय और इस कुल जमा की राशी के अनुपात में उसे उसके आपात काल में कुछ सहायता देने का प्रावधान किया जाय,और वृद्धावस्था में जब तक उसके खाते में जमा कुल धनराशी के ब्याज के बराबर उसे पेंशन की सुविधा दी जाय,इस प्रकार से वह सुरक्षित जीवन जी सकेगा,साथ ही अपने कार्यकाल में अधिक से अधिक टेक्स देने का प्रयास करेगा ताकि उसका भविष्य सुरक्षित हो जाय. इस प्रकार से सरकार को अतिरिक्त राजस्व भी प्राप्त होने की सम्भावना बनेगी, आम कारोबारी कर अपवंचन की सोच छोड़ सकेगा.
     कुछ ऐसे छोटे कारोबारी,व्यापारी भी होते हैं जिन पर टेक्स अदा करने की जिम्मेदारी नहीं होती,वे सिर्फ(उत्तर प्रदेश) श्रम विभाग में पंजीकृत होते हैं, और प्रति वर्ष पंजीयन शुल्क देते हैं,ऐसे छोटे कारोबारी को उसके द्वारा दिए गए पंजीयन शुल्क में से कुछ अंश बीमा कम्पनी को देकर उनका बीमा कर दिया जाय,और बीमा धारी को आकस्मिक म्रत्यु पर मिलने वाले लाभ के अतिरिक्त बीमा पालिसी के परिक्पक्व होने पर बीमा राशी और बोनस बीमाधारी को न दे कर उसके साठ वर्ष की आयु पहुँचने तक राशी बीमा कम्पनी के पास बनी रहे.और उसे पर ब्याज की राशी को जोड़ती रहे. साठ की आयु होने पर उसकी कुल राशी पर उसे आजीवन ब्याज उपलब्ध कराया जाय. उसके मरणोपरांत उसके उत्तराधिकारी को शेष राशी दे दी जाय. इस प्रकार से उसका  शेष जीवन अपेक्षाकृत अधिक सुविधाजनक हो सकेगा        
      जिनकी संतान उसके बुढ़ापे में उसकी पूरी जिम्मेदारी निभाती है,उनकी शारीरिक,मानसिक एवं आर्थिक आवश्यकताओं को यथा शक्ति पूर्ण करती हैं. परन्तु माता पिता के लिए उस पर निर्भर रहना उसके आत्मसम्मान को ठेस पहुंचाता है और उसे अपना अस्तित्व परिवार पर बोझ का अहसास कराता है.जो कभी अपने कारोबार का बॉस था और परिवार उसकी अर्जित आय से चलता था परन्तु अंत में उसे निर्भर होने को मजबूर करता है.यदि संतान को उसकी अपने माता पिता के भरण पोषण के बदले में उसके द्वारा की जा रही आय में से घर के बुजुर्ग पर किये गए खर्च को आय कर मुक्त कर दिया जाय. ताकि परिवार  के बुजुर्ग अपने को किसी की दया का पात्र बनने का अहसास न हो सके.और संतान उत्साह के साथ उसे आर्थिक योगदान कर सके.
      वर्तमान में सभी बैंकों में वरिष्ठ नागरिको को उनकी मियादी जमा राशी पर आधा प्रतिशत ब्याज अतिरिक्त दिया जाता है.यदि यह अतिरिक्त ब्याज आधे से बढ़कर दो प्रतिशत कर दिया जाय तो बुजुर्गो को कुछ राहत मिल सकती है,परिवार के अन्य सदस्य भी उस बुजुर्ग के नाम से ऍफ़,डी कर अतिरिक्त ब्याज से बुजुर्ग की आवश्यकताओं को पूर्ण कर सकेंगे.बेंको द्वारा दिया गया अतिरिक्त ब्याज को केंद्र सरकार वहन  करे ताकि बेंकों के हितों को नुकसान न हो.
      व्यवसायी सरकारी विभाग में जहाँ भी पंजीकृत हो उसे चिकित्सा बीमा सरकार द्वारा उपलब्ध कराया जाय ताकि उसे कार्यकारी दिवसों और वृद्धावस्था में चिकित्सा सम्बन्धी समस्या न आये.और खुश हाल जीवन जी सके,उसके बीमार होने पर सरकारी राजस्व की हानि भी तो होती है.
      जो कारोबारी साठ की आयु पार करने के बाद भी कार्य रत हैं उनके द्वारा अर्जित आय पर न्यूनतम स्लेब के अनुसार टैक्स लिया जाय,इस प्रकार  से उसका परिवार में मान सम्मान बढेगा.उसे संतान द्वारा अपदस्थ किये जाने की संभावना बहुत कम हो जाएगी,और उसे कार्य रत रहने के लिए परिजनों का विशेष सहयोग मिलेगा और उसका बुढ़ापा अच्छी देखभाल के साथ व्यतीत होगा.
   सभी व्यापारिक,एवं व्यासायिक संगठनों को इस विषय पर गंभीरता से सोचना चाहिए,जो कारोबारी दुर्भाग्य वश किसी अनहोनी का शिकार हो जाते हैं, वे भी आपके अपने हैं. अतः उनसे एकदम नाता तोड़ देना भी ठीक नहीं है और हादसे किसी के साथ भी हो सकते हैं.अतः संगठनों के अधिकारी निजी स्वार्थ और राजनीती से अलग सोचते हुए अपने समूह के सदस्यों के हितों को साधने के लिए वित्तमंत्रालय और श्रम मंत्रालयों से संपर्क बनाये और उनसे कारोबारी के हितों को मनवाने में दबाव बनायें.उन पर दबाव बनाने के लिए  व्यापक स्तर पर आंदोलनों  का सहारा लें  ताकि राजनैतिक पार्टियाँ अपने चुनवा घोषणा पत्र  में कारोबारियों के कल्याण की योजनायें पेश कर सकें और सत्ता में आने पर यथा संभव प्रयास कर सकें. निजी कारोबारी के उत्थान से ही देश का उत्थान संभव है.(SA-178C)