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मंगलवार, 26 अप्रैल 2011

भ्रष्टाचार बनाम सुविधाशुल्क

जैसे ही हमारा देश आजाद हुआ, भ्रष्टाचार भी आजादी पूर्वक अपने पंख फ़ैलाने लगा और धीरे धीरे भ्रष्टाचार ने शिष्टाचार का रूप ले लिया.पता ही न चला कब इस भ्रष्टाचार रुपी शिष्टाचार ने सुविधा शुल्क का रूप ले लिया.और इसे सामाजिक मान्यता मिल गयी. जिसे सरकारी कार्यालयों में अपना काम कराना होता , उन्होंने घूस को सुविधा शुल्क मान कर देना शुरू कर दिया ,तो लेने वाले अधिकारी अपने अधिकार समझ कर घूस लेने लगे. बेचारे दोनों मजबूर थे , घूस देने वाला भी और घूस लेने वाला भी. क्योंकि देने वाले की मजबूरी थी अपने काम को शीघ्र करवाने की , अपने कार्य को अपनी इच्छानुसार कराने की, उसकी मजबूरी थी अपने गलत कार्यों से सजा से बचने की. इसी प्रकार लेने वाले की मजबूरी होती है अपने बच्चों को अच्छे से पालने की, अपने बच्चों को, परिवार को दुनिया की अधिकाधिक सुविधाएँ उपलब्ध कराने की , उसकी मजबूरी होती है अपनी नौकरी बचाने की , उसकी मजबूरी है अफसरों की निगाहों में ऊँचा उठकर अपने भविष्य को सुरक्षित करने की अथवा अपना प्रोमोशन करवाने की, यदि वह घूस नहीं लेगा,तो अफसर को बड़ी रकम दे कर कैसे खुश कर पायेगा, और फिर वह भी तो नौकरी पाने के लिए, पोस्टिंग कराने के लिए मोटी रकम बड़े अधिकारीयों को दे कर आया था. वह खर्च बसूल करना उसकी मजबूरी है.अब क्योंकि की अफसरों तक उसका अंश पहुँचता है तो खौफ कैसा.मिल बाँट कर खाने वे हमेशा सुरक्षित जो रहते हैं.यदि दुर्भाग्यवश किसी सिरफिरे ने घूस लेते हुए पकड़ भी लिया तो भी घूस दे कर छूटने की पूरी सुविधा भी तो है.परन्तु यह भी एक विचारणीय प्रश्न है की अधिकतर लोग भ्रष्टाचार के जाल में मजबूरी में फंसे हुए हैं, यदि उन्हें नौकरी करनी है अपने परिवार पालने हैं तो भ्रष्टाचार से हाथ मिला कर चलना पड़ेगा.
भ्रष्टाचार अब कोई समस्या नहीं रह गयी है, अपरोक्ष रूप से ही सही जनता ने, नौकरशाहों ने और स्वयं सरकार ने इसको मान्यता दे दी है. प्रत्येक कार्य के लिए उचित दर निर्धारित की जा चुकी है और कोई विवादित विषय नहीं रह गया है. परन्तु एक और जिन्ह ने जन्म ले लिया है जिससे सब डर गए हैं, वह जिन्ह जो पूरे के पूरे सरकारी राजस्व को डकारने के लिए मुंह बाये खड़ा है. अर्थात नित खुल रहे मन्त्रीयों द्वारा प्रायोजित घोटाले.पहले जो घोटाले करोड़ों के होते थे धीरे धीरे बढ़ कर हजारों करोड़ तक पहुँच गए हैं,अब तो यह रेकोर्ड भी तोडा जा चुका है घोटालों की रकम लाखों करोड़ हो चुकी है. जिसके सामने सभी पूर्ववर्ती घोटाले बौने लगने लगे है. इन बड़े घोटालेबाजों का पेट इतना बड़ा हो गया है पूरे राजस्व के संग्रह को कुछ ही झटकों में डकारने में समर्थ हैं. आम आदमी की समस्या को हल करने की , उसको समर्थवान बनाने की न तो पहले किसी को चिंता थी और न अब है. अब तो जो देश का विकास होता है उसका लाभ धनवानों को या घोटाले बाजों को ही होता है, वह और अमीर होता जाता है ,गरीब व्यक्ति और भी गरीब होता जा रहा है.भ्रष्टाचार बनाम सुविधा शुल्क ने घोटाले बाज देशों की श्रेणी में सम्मानजनक स्थान प्राप्त कर लिया है.जय भ्रष्टाचार. जय शिष्टाचार जय हिंद

शनिवार, 23 अप्रैल 2011

विश्व में आर्थिक असमानता क्यों ?

पृथ्वी पर समय के साथ सिर्फ मानव ही ऐसा जीव है जो अपनी बुद्धि के बल पर विकास कर सका, और दुनिया के हर क्षेत्र पर अपना अधिपत्य जमा लिया. विकास यात्रा में वह लौह युग से चल कर जेट युग और फिर कंप्यूटर युग में प्रवेश कर गया.अफ़सोस यह है की आज भी अनेक देशों के करोडो लोग ऐसे हैं जिन्हें जीवन की सभी आवश्यकताओं की पूर्ती के लिए साधन उपलब्ध नहीं हैं. कुछ लोगों को तो दो वक्त की रोटी भी नसीब नहीं हो पाती, जबकि एक वर्ग ऐसा भी है जो आवश्यकताओं से अधिक साधनों से संपन्न है.इसी प्रकार विश्व में अनेक देश कहीं अधिक संपन्न है जो अपने नागरिकों की सभी आवश्यकताओं को पूरा कर पाने में सक्षम हैं.और कुछ देश बहुत गरीब हैं.जहाँ हर वर्ष भूख से अनेकों जानें चली जाती हैं.
उन देशों के प्रत्येक नागरिकों का जीवन स्तर एवं देश का बुनियादी ढांचा अन्य गरीब या अविकसित देशों के मुकाबले जमीन असमान के अंतर लिए हुए है.ये देश विकसित दशों की श्रेणी में आते हैं और अन्य देशों को गरीब मुल्क कहा जाता है.
आखिर विकसित देशों और अविकसित देशों में ऐसा क्या है जो इतना बड़ा अंत दिखाई देता है, क्यों कुछ देश पहले विकसित हो गए और अन्य देश अपने नागरिकों के लिय भोजन की व्यवस्था भी नहीं कर पाए . इतनी बड़ी खाई (असमानता) का कारण क्या है. क्या गरीब मुल्कों के पास प्राकृतिक संसाधनों का अभाव है ?क्या गरीब मुल्कों के लोग महनत नहीं करना चाहते?क्या गरीब मुल्क में बुद्धिमान लोग पैदा नहीं होते. आखिर क्यों विकसित देशों के मुकाबले में विकसित नहीं हो पाए.क्या वे अनुसन्धान कर पाने में अक्षम हैं? क्या उन देशों की बढती आबादी देश को विकसित होने में रूकावट बन रही है? क्या उन देशों की जलवायु या प्राकृतिक वातावरण उन्हें पनपने नहीं देता?
उपरोक्त सभी प्रश्नों का उत्तर सिर्फ न है. मानवीय विकास में असमानता क्यों? कारण है जो विकसित देश हैं वे या तो धनवानों द्वारा बसाये गए वे मुल्क हैं, जो स्थानीय जाति को नष्ट कर स्वयं काबिज हो गए, दूसरे वे देश हैं जिन्होंने सैंकड़ों वर्षों तक विश्व के अनेक देशो को गुलाम बनाकर रखा और उनकी धन दौलत से अपने देशों को मालामाल कर दिया अर्थात गुलाम देशों के वाशिंदों द्वारा की गयी कमाई ने इन देशों को आमिर बना दिया.वर्तमान सन्दर्भ में जब विश्व में लगभग सभी देश स्वतन्त्र हो गए हैं तो भी विकसित देश अनेक अड़ंगे लगा कर उनको विकसित होने से रोकते हैं या वे अपनी धन दौलत का रोब जमा कर कुछ विकास शील देशो को उभरने से रोकते रहते है, दो विकास शील देशों को आपस में लडवा कर अपना उल्लू सीशा करते हैं..अब कई देश, अपने दम पर विकास की ओर धीरे धीरे लौटने लगे हैं और अब ऐसा लगता है की विश्व में समानता परचम शीघ्र ही लहराएगा.परन्तु विश्व में असामनता का मुख्य कारण कुछ देशों द्वारा अपनाये जा रहे अमानवीय कार्य हैं.जो मानवता के अभिशाप बने हुए हैं.विकसित देशों को मानवता के दायरे में सोच कर पूरी मानव सभ्यता के कल्याण के लिए कार्य करना चाहिए.

रविवार, 17 अप्रैल 2011

हर शाख पर उल्लू बैठा है.

हर शाख पर उल्लू बैठा है. देश को गुलामी से निजात मिलने के पश्चात् हमारे नेताओं का इतना अधिक नैतिक पतन हो गया है, की अब हमारा देश दुनिया में घोटालों का देश के नाम से प्रसिद्द हो रहा है. जनता का आक्रोश उभर कर आया, श्री अन्ना.जी के आमरण अनशन के रूप में.और फिर अपार जान समूह अन्ना जी के समर्थन में भ्रष्टाचार की लड़ाई के लिए उठ खड़ा हुआ. अन्ना जी ने देश को एक दिशा प्रदान कर उम्मीद की किरण दिखाई है. उन्होंने बताया किस प्रकार देश व्यापी भ्रष्टाचार से मुक्ति मिल सकती है. देश को कैसे न्यायप्रिय,इमानदार शासन, प्रशासन उपलब्ध कराया जा सकता है. आज देश का प्रत्येक नागरिक नित ने खुल रहे करोडो रुपयों के घोटालों से सकते में है, व्यथित हैं,निराश है.परन्तु हमारे नेता हमारे नौकर शाह जनता से बेखबर अपनी तिजोरियां भरने में व्यस्त हैं. वे व्यस्त हैं अपने दश की अपार सम्पदा को विदेशी बैंकों में जमा कराने में, अपनी आगे आने वाली सात पीढ़ियों का भविष्य सुरक्षित करने में. परन्तु क्या सिर्फ नौकरशाहों एवं राजनेताओं को ही भ्रष्ट कहना उचित होगा ?आम जनता भी अनैतिकता के गर्त में डूब चुकी है. आज स्थिति यह बन गयी है जहाँ जिसका जिस प्रकार भी दांव लगता है छोड़ना नहीं चाहता .प्रत्येक व्यक्ति धन का उपासक बन चुका है,अब उसके लिए चाहे हिंसा का सहारा लेना पड़े या फिर किसी का शोषण करना पड़े ,सब कुछ जायज हो चुका है. देश के लिए, समाज के लिए, कानून पालन के लिय कोई भी सोचने को तैयार नहीं है. एक फैक्ट्री मालिक हो या दुकानदार, नकली,मिलावटी वस्तुएं बनाने एवं बचने से नहीं हिचकता,फिर चाहे मिलावट की वस्तु या नकली वस्तु के कारण किसी की जान भी चली जाय तो क्या? एक मिस्त्री किसी भी उपकरण की रिपेयर करता है,तो मजदूरी के अतिरिक्त झूंठे बिल द्वारा ग्राहक की जेब काटना अपने व्यवसाय का हिस्सा मानता है, एक डॉक्टर अपनी आमदनी के लालच में मरीज को अनावश्यक पथोलोजी टेस्ट की सलाह देकर कमीशन बटोरता है,या फिर मरीज को बेवजह ओप्रशन की टेबल तक ले जाता है.,एक वकील अपनी ऊंची फीस पाने के लिए बेगुनाह को सजा दिला कर गर्व का अनुभव करता है,छोटे से छोटे से स्तर का व्यक्ति भी सरकारी कार्यालयों में अपना काम जल्दी कराने के लिए सरकारी कर्मचारी को लालच देता है,उसे घूस देने की पेशकश करता है ,मतदाता अपने मत की कीमत वसूल कर किसी को भी चुनाव जीता देता है. कुल मिला कर भ्रष्टाचार,लूट,चोरी,अनैतिकता हर जगह पर मोजूद है. सिर्फ नेताओं एवं भ्रष्ट नौकरशाहों को सुधारने से ही काम चलने वाला नहीं है.आवश्यकता है,सुधार ऊपर से लेकर निचले स्तर तक हो, आम आदमी की मानसिकता में बदलाव हो,उसे अपने व्यवसाय में इन्सनिअत को जोड़ना होगा,उसे देश के कानून, देश के सम्मान की रक्षा करनी होगी. बिजली चोरी,मुफ्त रेल यात्रा टैक्स अपवंचन जैसे नैतिक अपराधों से स्वयं को मुक्त करना होगा. तब ही देश खुशहाल एवं विकसित देशों की श्रेणी में आ सकेगा.

सोमवार, 11 अप्रैल 2011

यह शमा बुझनी नहीं चाहिए

यह हमारे देश वासियों का सौभाग्य है,की बहुत समय पश्चात् देश को निःस्वार्थ सेवक के रूप में अन्ना हजारे का सहयोग मिला.उनके आमरण अनशन के आन्दोलन को जिस तीव्रता से देश को करोडो लोगों का समर्थन मिला,उतनी ही तीव्रता से सरकार डोलने लगी. परिणाम स्वरूप जन लोक पाल बिल लाने की घोषणा करनी पड़ी. अन्ना जी की सभी मांगों को मानने को विवश होना पड़ा.परन्तु अभी हमें बहुत अधिक खुश नहीं होना चाहिए हमें सावधान होना होगा,वर्तमान कुटिल नेताओं की चालों से. हमें सावधान रहना होगा, रणनीति निर्माताओं के झूठे मनलुभावन वायदों से.हमें सतर्क रहना होगा घोटालेबाजों के दांव पेंचों से .क्योंकि अपने आर्थिक हितों को कोई भी आसानी से छोड़ना नहीं चाहेगा. कोई नेता,मंत्री स्वयं अपने पैरों पर कुल्हाड़ी क्यों मारना चाहेगा,जो वे ऐसे कानून बना लें जिससे उन्हें जेल की हवा खानी पड़े. अतः उन पर दवाब बनाय रखना पड़ेगा. आज जिस शमा को अन्नाजी ने जलाया है उसे लगातार संघर्ष के द्वारा जलाय रखना होगा .इसके साथ ही अपने समाज में व्याप्त अनैनिकता,हिंसा अत्याचार बलात्कार जैसे भ्रष्ट आचरणों को निकल फैंकना होगा .तब ही भ्रष्ट तंत्र से छुटकारा मिल पायेगा. और एक सभ्य प्रगतिशील समाज का उदय हो पायेगा.मानवता की रक्षा हो सकेगी

शुक्रवार, 8 अप्रैल 2011

अन्ना हजारे का आन्दोलन या विचार क्रांति

अन्ना जी के आमरण अनशन के बाद जो देश भर में उनके समर्थन में जान सैलाब उम्ड़ा है वह जनता के आक्रोश एवं असन्तोष का प्रतीक है.देश का प्रत्येक नागरिक नेताओं के नित् नय खुलते घोटालों से खुद को ठगा स अनुभव कर रहा है,परन्तु उसे अवश्यकता थी एक ऐसे प्रतिनिधित्व की जो जनता को साथ लेकर चल सके,आन्दोलन की दिशा तय कर सके. सत्ता पर कबिज नेताओं की फौज इस प्रकार कुण्डली मारे बैठी है , उनके विरोध खडे होने वाले व्यक्ति की जुबान को येन केन प्रकारेण दबाते आए हैं परन्तु अन्ना हजारे एक एसी शक्सियत हैं जिनकी अवाज को नजर अन्दाज कर पाना आसान नही है.आपने पहले भी अपने गांव के विकास से लेकर सुचना अधिकार कानून लागू करने तक लम्बा संघर्ष किया है,और सफलता पूर्वक अपना उद्देश्य पूरा किया है. आज एक बार फिर अन्ना साहेब ने जन लोकपल बिल लाने के लिए आमरण अनशन प्रारम्भ कर जनता को आशा की किरण दिखायी है,जनता को दिशा दी है संघर्ष करने की. लोकतन्त्र में जनता ही देश की मालिक होती है अतः यदि मालिक ही निष्क्रिय रहेगा तो पहरेदार तो मलाई चाट्ते रहेंगे. आम आदमी यही सोचता रहेगा की मेरे करने से क्या हों जयगा, मेरे आगे बढ्ने से मेरा क्या भला होगा, सिर्फ संकीर्ण सोच की निशानी है.जब देश उन्नति करेगा तो लाभ सभी को मिलेगा. जीवन स्तर सभी का उठेगा. वर्तमान में नेताओं द्वारा विदेशों किया रहा जमा पैसा जनता की जागरुकता के अभाव की देन है. अब प्रत्येक नागरिक का कर्तव्य बनता है की हजारे साहेब द्वारा शुरु की विचार क्रान्ति एवं आन्दोलन की ज्वाला को बुझने न दें.जब तक की भ्रष्ट नेता जेलों में नहीं पहुँच जाते और देश को साफ सुथरी व्यवस्था नही मिल जाती. यह लडाई हम सबकी लडाई है,यह लडाई हम सबके भले की लडाई है. --

मंगलवार, 5 अप्रैल 2011

अन्ना हजारे तुम जियो हजारो साल

अन्ना हजारे के आमरण अनशन एवं उनके नेक कार्य के समर्थन मे उठने वाले जन सैलाब् से आभास होने लगा है,देश की एक सौ इक्कीस करोड जनता के दिन बहुरने वाले हैं। शीघ्र ही जनता को भ्रष्ट नेता एवं भ्रष्ट तन्त्र से निजात मिलने की संभावना बन गयी है। अब तो हमे अपनी सोच मे बदलाव लाना होगा जैसे हमारी धारणा बन गयी है नैतिक पतन की पराकाष्ठा के युग मे वही व्यक्ति ईमान दार है जिसे बेइमानी का अवसर प्राप्त नही हुआ ।आज भी देश मे अनेकों ईमानदार, देश भक्त लोग मौजूद् है जो सिर्फ़ अपना नही सबका कल्याण चाहते हैं, सबके लिये लड्ते लड्ते अपनी जान देने से भी पीछे नही हटते ।हमारे अन्ना जी के प्रयास ,उनका संघर्ष, उनकी कार्य शैली एक ज्वलन्त उदहारण के रूप मे हमारे सामने है।जो समाज की दिशा बदलने में सक्षम हैं. --

रविवार, 3 अप्रैल 2011

लघु उद्योग और महा उद्योग

               स्वतंत्रता प्राप्ति के पश्चात् हमारे देश में गाँधी जी के सिधान्तों से प्रभावित हो कर ,कुटीर उद्योग अवं छोटे उद्योग तथा मझोले उद्योगों को विकसित करने का बीड़ा उठाया गया.विदेशी माल के आयात को प्रतिबंधित कर दिया गया.ताकि देसी उत्पादन देसी मार्केट में बिक सके और कुटी उद्योग पनप सके.परन्तु तेजी से बढती मशीनीकरण की प्रोद्योगिकी के कारण,हमारे देश के उत्पादन की गुणवत्ता एवं कीमत के अनुसार अंतर्राष्ट्रीय मंच पर निर्यात में पिछड़ने लगा. धीरे धीरे हमारी अर्थ व्यवस्था उन्नति के स्थान पर अवनति करने लगी और विदेशी कर्ज का बोझ बढ़ने लगा. १९९० में यह हालत हो गयी की देश की तेल उत्पादित वस्तुओं की आपूर्ति के लिए रिजर्व बैंक को टनों सोना गिरवी रखना पड़ा. जो किसी भी देश और सरकार के लिय शर्मनाक स्तिथि थी.इस स्तिथि ने हमारे रणनीतिकारों को अपनी ओद्योगिक निति पर पुनर्विचार करने के लिय मजबूर कर दिया और उदारीकरण की निति की घोषणा करनी पड़ी. इस उदारीकरण ने जहाँ विश्व के बड़े बड़े कारखानों को अपने देश में लगाने के लिए आमंत्रित किया, दूसरी और देश को रोजगार के अवसर प्राप्त हुए. और देश के उत्पादों को निर्यात करने के मौके मिले,विदेशी मुद्रा भंडार में बढ़ोतरी होनी प्रारम्भ हो सकी. देश के परंपरागत उद्योगों को उच्च गुणवत्ता बनाये रखने के लिय प्रतिस्पर्धा का वातावरण बन पाया. उदारीकरण नीति के अंतर्गत श्रम कानूनों को अंतर्राष्ट्रीय स्तर के अनुसार संशोधन किया गया. बड़े कारखानों ने जहाँ कुटी उदुओगों को नुकसान पहुँचाया, दूसरी ओर बेरोजगारों को रोजगार के अवसर उपलब्ध कराय.साथ ही उच्च वेतनमान देकर आम व्यक्ति को उच्च जीवन शैली अपनाने को प्रेरित किया. आम आदमी को उच्च गुणवत्ता वाली वस्तुएं उपलब्ध हो सकीं तस्करी को विराम लग सका वर्तमान में आधुनिक विकास ने कुटीर उद्योगों एवं लघु उद्योग का सिद्धांत अप्रासंगिक कर दिया है.
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शनिवार, 2 अप्रैल 2011

*नारी उत्थान अभियान * April 2011

#प्रत्येक जीव की भांति मानव भी दो अवस्थाओं में पैदा होता है। अर्थात नर एवं मादा। परन्तु सभी जीवों को छोड़कर सिर्फ मानव समाज ही महिलाओं के साथ पक्षपातपूर्ण व्यव्हार करता है। उसे दोयम दर्जे का स्थान देता है।आखिर क्यों?क्योंकिनारी पुरुष के मुकाबले कम बलवान है, माना कुछ हद तक वह कम शक्तिशाली है, परन्तुमातृत्व शक्ति का वरदान जो उसे मिला हुआ है क्या वह पुरुष के पास है?फिर उसे क्यों समय समय पर अपमानितकिया जाता है, उसे प्रताड़ित किया जाता है, उसे अबला माना जाता है?

#दहेज़ की चिंता के वशीभूत होकर माता-पिता आज भी अपनी बेटी को उसकी योग्यता के अनुसार उच्च शिक्षादिलाने से कतराते हैं। क्योंकि अधिक शिक्षित लड़की के लिए उच्च शिक्षित वर्ग का लड़का चाहिए, जिसके लिएअधिक दहेज़ की आवश्यकता होगी।

#हिन्दू एवं मुस्लिम समाज में आज भी महिलाओं के साथ पक्षपातपूर्ण व्यव्हार किया जाता है,क्यों?

#नारी के उत्थान में सबसे बड़ी बाधा स्वयं नारी (सास-ननद,जेठानी-देवरानी,इत्यादि) ही बनी हुई है.जब महिलाही महिला के प्रति संवेदनशील नहीं होगी तो नारी उत्थान कैसे संभव होगा। उसे समानता का अधिकार कैसेमिलेगा?

#क्या हम दावे के साथ कह सकते हैं की महिला को आजादी के तरेसठ वर्ष पश्चात् समानता के अधिकार प्राप्त होगए हैं,नारी शोषण समाप्त हो चुका है,सही अर्थों में महिला को सम्मान मिलने लगा है। मेट्रो शहरों में चलने वालीपब्लिक ट्रांसपोर्ट में महिलाओं का सफ़र करना आज भी सुरक्षित हो पाया है?

#क्या महिला को आज भी खेलने की वस्तु या छेड़ने का सामान नहीं समझा जाता? उसे उपभोग की चीज मान करविज्ञापनों में प्रदर्शित नहीं किया जाता?प्रत्येक बड़ी कंपनी या छोटी सभी में आगंतुकों के आदर सत्कार के लिए रिसेप्निष्ट के तौर पर महिला को ही भरती किया जाता है क्यों ?एयर होस्टेस के पद पर महिला ही क्यों ?
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