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शुक्रवार, 8 अप्रैल 2011

अन्ना हजारे का आन्दोलन या विचार क्रांति

अन्ना जी के आमरण अनशन के बाद जो देश भर में उनके समर्थन में जान सैलाब उम्ड़ा है वह जनता के आक्रोश एवं असन्तोष का प्रतीक है.देश का प्रत्येक नागरिक नेताओं के नित् नय खुलते घोटालों से खुद को ठगा स अनुभव कर रहा है,परन्तु उसे अवश्यकता थी एक ऐसे प्रतिनिधित्व की जो जनता को साथ लेकर चल सके,आन्दोलन की दिशा तय कर सके. सत्ता पर कबिज नेताओं की फौज इस प्रकार कुण्डली मारे बैठी है , उनके विरोध खडे होने वाले व्यक्ति की जुबान को येन केन प्रकारेण दबाते आए हैं परन्तु अन्ना हजारे एक एसी शक्सियत हैं जिनकी अवाज को नजर अन्दाज कर पाना आसान नही है.आपने पहले भी अपने गांव के विकास से लेकर सुचना अधिकार कानून लागू करने तक लम्बा संघर्ष किया है,और सफलता पूर्वक अपना उद्देश्य पूरा किया है. आज एक बार फिर अन्ना साहेब ने जन लोकपल बिल लाने के लिए आमरण अनशन प्रारम्भ कर जनता को आशा की किरण दिखायी है,जनता को दिशा दी है संघर्ष करने की. लोकतन्त्र में जनता ही देश की मालिक होती है अतः यदि मालिक ही निष्क्रिय रहेगा तो पहरेदार तो मलाई चाट्ते रहेंगे. आम आदमी यही सोचता रहेगा की मेरे करने से क्या हों जयगा, मेरे आगे बढ्ने से मेरा क्या भला होगा, सिर्फ संकीर्ण सोच की निशानी है.जब देश उन्नति करेगा तो लाभ सभी को मिलेगा. जीवन स्तर सभी का उठेगा. वर्तमान में नेताओं द्वारा विदेशों किया रहा जमा पैसा जनता की जागरुकता के अभाव की देन है. अब प्रत्येक नागरिक का कर्तव्य बनता है की हजारे साहेब द्वारा शुरु की विचार क्रान्ति एवं आन्दोलन की ज्वाला को बुझने न दें.जब तक की भ्रष्ट नेता जेलों में नहीं पहुँच जाते और देश को साफ सुथरी व्यवस्था नही मिल जाती. यह लडाई हम सबकी लडाई है,यह लडाई हम सबके भले की लडाई है. --

1 टिप्पणी:

s.p.singh ने कहा…

श्री सत्य शील जी वास्तव में हमारे देश में जनता को मीडिया जो परोस देता है जनता उसी को सच मान लेती है ? हाँ पहले प्रचार काम होता था प्रिंट मीडिया का असर कुछ देर में होता था घटना घट जाने के बाद अगले दिन समाचारों के द्वारा ही मालूम होता था चाहे वह अखबार हो या फिर रेडिओ हो -- लेकिन दूरदर्शन ( टी वी ) द्वारा सब कुछ लाइव दिखाया जाता है और १०० व्यक्तियों कि भीड़ को तकनीक के द्वारा हजारों लाखों में गिनती कर दी जाती है जिसको कोई झुठला नहीं सकता -- आपको तो अच्छी तरह से ज्ञात होगा ही कि वर्ष १९७४ में जब स्वर्गीय श्री जय प्रकाश नारायण जी ने इसी भ्रष्टाचार के विरुद्ध बिगुल बजाय था तो बिहार सहित पूरे देश में क्रांति कि लहर सी फ़ैल गई थी और क्षात्रों ने अपनी पढाई भी बीच में ही छोड़ दी थी यहाँ तक कि मेडिकल में पढने वालों ने भी कालेज छोड़ दिए थे और उसकी प्राणिति यह हुई कि १९७५ में देश को आपात काल सामना करना पड़ा था -- और उसके बाद १९७७ में चुनाव होने पर इतने बड़े स्तर पर सत्ता परिवर्तन को देख कर पूरा विश्व दांग रह गया था उस समय के परिवर्तन को देश में दूसरी आजादी कि संघ्या करार दिया गया था तथा उस आन्दोलन में से कुछ क्षात्र नेता बन कर भी उभरे थे और उन्हें भी देश के विभिन्न राज्यों में सत्ता का सुख भोगने का सुख प्राप्त हुआ था -- उस सत्ता कि कैसी कीमत वसूली गई क्या किसी से छुपा है आज भी कुछ नेता आय से अधिक संपत्ति के मुकद्दमे झेल रहें है यहाँ तक कि जेल भी काट चुके हैं -- वैसे भी लोकतंत्र में सत्ता परिवर्तन समय कि मांग है परन्तु श्री अण्णा हजारे कि विचार क्रांति का असर कितने दिन तक रहेगा यह तो समय ही बताएगा - क्या आप समझते है कि केवल सरकारी तंत्र /मंत्री /अधिकारी /बाबू/ चपरासी ही रिश्वत लेते है या भ्रष्टाचार को फैलाते हैं -- जोकि जन लोकपाल कानून बना कर समाप्त किया जायेगा ---- समाज में फैला भ्रष्टाचार रूपी कोढ़ कितना व्यापक है उसका सच तभी मालूम होगा जब आप किसी भी शहर (सरकारी स्कूल के अतिरिक्त ) में किसी बच्चे का दाखिला करा के दिखा दो --- दूसरी बात गरीब/मजदूर /दलित/अल्प-संख्यक का क्या भला होगा इस कथित कानून का कोई तो बताये इसका फायदा भी पूंजीपती वर्ग को ही मिलेगा ? हाँ हमें सरकार के विरुद्ध आन्दोलन का हक़ हासिल है क्योंकि हम सरकार को बनाते है चुनाव के द्वारा परन्तु जनता के द्वारा जो भ्रष्टाचार किया जाता है उस पर कौन अंकुश लगाएगा ---- कभी प्याज महँगी तो कभी आलू का रोना और तो और जब कोई विशेष त्यौहार आता है तो फल सब्जी क्यों महंगा होता है ? लगता है कुछ अधिक ही हो गया है इस लिए अब समाप्त करता हूँ - आपका धन्यवाद ---- एसपीसिंह