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रविवार, 2 सितंबर 2012

सोशल मिडिया पर अंकुश कितना उचित?


  सोशल मिडिया पर अंकुश कितना उचित?
    

        एक समय था जब लोगों तक अपनी बात पहुँचाने का माध्यम समाचार पत्र या पत्रिका हुआ करते थे. जब सरकार द्वारा जनता तक अपना सन्देश पहुँचाने के लिए डंका या नगाडा बजा कर गली गली अपने आदेशों, संदेशों  या चेतावनी को प्रचारित किया जाता था.उसके पश्चात रेडियो ने यह स्थान ले लिया जो जनता को नियंत्रित करने अर्थात सरकार को शासन-व्यवस्था चलाने में सहायक बने. जब टी.वी.और फिल्मों का दौर आया तो प्रचार प्रसार का माध्यम और भी प्रभावकारी हो गया. परन्तु कंप्यूटर की खोज ने तो विचार क्रांति पैदा कर दी और पूरी दुनिया एक मंच पर एकत्र हो गयी. इलेक्ट्रोनिक मीडिया और सोशल मीडिया ने जनता को सरकार की हर गतिविधी की जानकारी उपलब्ध करनी शुरू कर दी. अन्ना और बाबा रामदेव के आन्दोलन को प्रचारित करने और जनता को आन्दोलन से जोड़ने में इलेक्ट्रोनिक और सोशल मिडिया की मुख्य भूमिका रही. पिछले वर्ष अनेक अफ़्रीकी और खड़ी के देशों की क्रांति का श्रेय भी इन्ही नवसृजित माध्यमों को ही जाता है. इसी प्रकार असम में हुई जातीय हिंसा की आग को मुंबई हैदराबाद या बंगलौर तक पहुँचाने में सोशल मिडिया का ही कारनामा दिखा. हमारे देश की सरकार तो पहले से ही जो जनता में भ्रष्टाचार के लिए फजीहत की शिकार होने के कारण सोशल मिडिया को मानती है.उसे अपना दुश्मन मानकर इस पर नियंत्रण करने के मूड में थी. वर्तमान घटना ने उसे एक बहाना दे दिया,अपने मिडिया पर नियंत्रण के प्रस्ताव को उचित मानने का , सोशल मिडिया के नकेल कसने का , अपने विरोधियों को चित्त करने का. उसकी पहले से ही मंशा रही है सभी प्रचार माध्यम सत्तारूढ़ पार्टी और सरकार के पक्ष में ही अपनी बात जनता के समक्ष रखे अर्थात सभी माध्यम स्वतन्त्र अभिव्यक्ति का जरिया न होकर सरकरी भोंपू बन जाएँ और सत्तारूढ़ पार्टी के नेता अपने हितों की साधने के लिए घोटाले करते रहें और उसकी सत्ता पर पकड़  भी बनी रहे. इस प्रकार  लोकतंत्र के सबसे सशक्त स्तंभ को अपनी मुट्ठी में कर ले,और जनता को लूटने के अवसर उसे मिलते रहें,चुनावों में उसकी जीत सुनिश्चित होती रहे.
  कोई भी नयी वैज्ञानिक खोज होती है तो उसके लाभ आम आदमी को मिलते है तो यही खोजे और तकनीकें अपने साथ कुछ नुकसान भी लेकर आती हैं.परन्तु उसके नुकसान से घबरा कर उन खोजों से मानवता को वंचित नहीं कर दिया जाता. विकास के रास्ते बंद नहीं कर दिए जाते बल्कि उसमे व्याप्त खामियों को दूर करने के प्रयास किये जाते हैं,समाधान खोजे जाते हैं, जिससे उस नयी खोज से मानवता के नुकसान को रोका जा सके.और उसके लाभ मानव जाति  को उपलब्ध हो सकें.
   बिजली का अन्वेषण होने के पश्चात अनेक लोग उसके झटके के शिकार हुए,अनेकों को जान से हाथ धोना पड़ा, तो अनेक लोग घायल हुए.परन्तु क्या बिजली का उपयोग बंद कर दिया गया? बल्कि जनता को उसको उपयोग करते समय सावधानियां बरतने के लिए शिक्षित किया गया.और आज विशाल के कारखानों का अस्तित्व बिजली पर ही निर्भर है.
  सड़क पर अनेक कार, बस, ट्रक और अन्य वाहन आये और सड़क दुर्घटनाओ ने नित लोगों के जान से हाथ धोना पड़ा,और आज भी अनेकों सड़क हादसे होते रहते हैं. तो क्या सडक बंद कर दी गयीं.यदि आवागमन को बाधित कर दिया जाये तो मानव विकास एक दम रुक जायेगा.अतः आवागमन को बाधित न कर,सड़क दुर्घटनाओं को रोकने के उपाय खोजे गए,और आज भी शोध  जारी है.
  इसी प्रकार से वायुयान हो या अंतरिक्ष यान अन्य अनेक नए अविष्कार सभी अनेक प्रकार की सुविधाओं के साथ साथ समस्याओं और खतरों  को भी लेकर आये, परन्तु सब समस्याओं के समाधान भी खोजे गए और मानव हित में उनका उपयोग किया गया.और आज मानव विकास का माध्यम बने.
   ठीक इसी प्रकार से लोकतंत्र में जनता की अभिव्यक्ति की आजादी को किसी  भी प्रकार से रोक देना उचित नहीं माना जा सकता.तो क्या सोशल मिडिया से होने वाले नुकसान को आंख मूँद कर बैठे देखा जा सकता है? इस विषय पर कुछ प्रश्न विचारणीय हैं
क्या अभिव्यक्ति की आजादी का अर्थ है
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१,कोई भी किसी को गाली देने,व्यक्तिगत आक्षेप लगाने या उसका अपमान करने को स्वतन्त्र है.
२,प्रेस,या इलेक्ट्रोनिक मिडिया,सोशल मिडिया की आजादी का लाभ जनता में वैमनस्यता फैलाने के लिए किया जाय.
३,कोई विदेशी ताकत हमारे देश की एकता ,अखंडता,और सुरक्षा के साथ खिलवाड करे.
४,कोई भी व्यक्ति या समुदाय जनता में धार्मिक विद्वेष या जातीय नफरत,अफवाह फ़ैलाने को स्वतन्त्र हो जाय.देश की एकता अखंडता और सार्वभौमिकता पर चोट करता रहे

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   परन्तु क्या  देश और समाज की सुरक्षा के नाम पर, जनता को व्यवस्थित करने के नाम पर सोशल मिडिया पर अंकुश लगाने की स्वीकृति दे दी जाय?

१,क्या सोशल मिडिया के दुरूपयोग को रोकने के लिए, इस पर लगाम लगाने के लिए, सरकार को सम्पूर्ण अधिकार देना उचित होगा?
२.क्या सोशल साइट्स के विरुद्ध बनाये गए नियम, सरकार को निरंकुश नहीं बना देंगे ?
३,क्या अभिव्यक्ति की आजादी पर अंकुश लगाकर देश में लोकतंत्र बाकी रह जायेगा.१९७५ की आपात स्थिति सरकार द्वारा प्रेस की आजादी पर लगाम लगा देने के कारण ही बनी थी.
४, सोशल मिडिया एक साधारण से साधारण व्यक्ति के लिए अपनी आवाज,अपनी मांग,अपने मान व्याप्त क्रोध को सरकार और दुनिया तक पहुँचाने का एक मात्र माध्यम है.लोकतांत्रिक देश में आम आदमी के मुहं पर ताला लगा देना उचित होगा.क्या उसकी अभिव्यक्ति की आजादी छीन लेने से आम आदमी कुंठाग्रस्त नहीं हो जायेगा.क्योंकि प्रेस और अन्य इलेक्ट्रोनिक मीडिया के द्वारा आम आदमी नहीं जुड सकता 

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तो क्या हों समाधान?;

       तो फिर क्या समाधान हो,ताकि सरकार की निरंकुशता भी जनता को न सहनी पड़े और देश और समाज की सुरक्षा भी बनी रहे.
१ ,सरकार प्रत्येक आपत्ति जनक सामग्री की व्यख्या स्पष्ट करे और उनको लागू करने के लिए आवश्यक नियम बनाये.नियम और कानून पूर्णतयः पारदर्शी हों ताकि कोई भी सत्तानशीं व्यक्ति या अधिकारी उन्हें अपने हितों के अनुसार परिभाषित न कर सके, अपने  व्यक्तिगत द्वेष के लिए,या अपने हितों को साधने के लिए उन नियमों का उपयोग न कर सके.
२ ,प्रत्येक सोशल साईट चलाने वाले को जिम्मेदारी सौंपी जाये की वह अपने साइट्स पर आने वाली सामग्री की  निरंतर समीक्षा करे और आपत्ति जनक सामग्री को तुरंत हटाये तथा आपति जनक सामग्री डालने वाले पर अपना शिकंजा कसे.
३,कोई भी ऐसा सोफ्टवेयर विकसित  किया  जाय जो स्वतः सरकार द्वारा परिभाषित  आपतिजनक सामग्री को हटा दे अथवा चेतावनी दे दे.
४,जनता को उसकी जिम्मेदारी के प्रति जागरूक किया जाय और बताया जाए किस प्रकार की आपतिजनक सामग्री उसे जेल की सलाखों के पीछे पहुंचा जा सकती है.
५.एक निगरानी समिति बनायी जाये, जो सरकार द्वारा निश्चित की गयी आपत्ति जनक सामग्री की निरंतर समीक्षा कर सके और उसे प्रकाशित  करने वालो पर अंकुश लगा सके,उन्हें दण्डित करने के लिए आवश्यक उपाए कर सके.


    उपरोक्त उपायों को करने के लिए सत्ताधारी नेताओं की दृढ इच्छा शक्ति की आवश्यकता है .तत्पश्चात असम जैसी घटनाओं की पुनरावृति को जा सकता है.और देश को विदेशी चालों से सुरक्षित किया जा सकता है 
                 सत्य शील अग्रवाल,           


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