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शनिवार, 24 नवंबर 2012

प्रतिशोध की भावना का कारण----शोषण?


   शोषण और प्रतिशोध की भावना का चोली दामन का साथ है.अक्सर देखने में आता है की प्रत्येक सामाजिक शोषण के पीछे व्यक्तिगत दुश्मनी कम परंपरागत शोषण की भावना अधिक काम करती है. यदि प्रत्येक इंसान अपने स्तर पर ही बदले की भावना का सुख त्याग दे, तो अवश्य ही इंसान समाज में व्याप्त अनेक कुरीतियों,आडंबरों से मुक्त हो सकता है.कुछ ज्वलंत उदहारण प्रस्तुत हैं;
१,मेरी सास स्वयं कोई कार्य करना पसंद नहीं करती थी.वह तो सिर्फ बैठे बैठे मुझे आदेश देती थीमुझ से दिन भर कार्य करवाती थी,मुझ पर अनेक बंदिशें थोपती रहती थी. बात बात पर ताने मारकर मुझे आहत करती रहती थी.मेरे पति को मेरे विरुद्ध भडकाती रहती थी.आज मैं सास बन गयी हूँ,अब मेरा नंबर है,सास का रौब ज़माने का ,तो फिर क्यों न करूं अपनी बहु के साथ? अब यदि मैं सुधारवादी बन जाऊं तो क्या भड़ास निकलने के लिए किसी और जन्म की प्रतीक्षा करूं? यह तो सबका समय आता है, अपनी सास का बदला लेने का. मैं अपनी सास से नहीं उलझ सकती थी.अतः सास के द्वारा किये गए अत्याचारों का बदला लेने का समय आ गया है.

२, मेरे  बहनोई मुझे हर समय नीचा दिखने का प्रयास करता रहता था,वह मेरे से दोयम दर्जे का व्यव्हार करता था.जैसे मैं कोई उसका रिश्तेदार नहीं बल्कि नौकर चाकर हूँ.मैं अपने बहनोई के दामादपने से काफी आहत रहता था, अनेक बार रोते हुए बहन के घर से लौटता था.मेरी शादी में मेरी बहन को भी नहीं भेजा .मेरी शादी के समय बहन बहनोई की अनुपस्थिति सभी घर वालों को नागवार गुजर रही थी.अब मेरी भी शादी हो गयी है मेरे भी दो साले हैं,अब मैं भी एक परिवार का दामाद हो गया हूँ.अब आयेगा मजा चुन चुन का बदले लूँगा.अपने सालों को दिन में तारे न दिखा दिए तो मेरा  भी नाम -----नहीं

३,मेरे पिता तानाशाह पृकृति के रहे हैं.बात बात पर गुस्सा करना,रौब ग़ालिब करना और मुझे बार बार हडकाते रहना उन्हें बहुत भाता है.उनके इस असंगत व्यव्हार से मैं बचपन से आहत रहा हूँ.उनके व्यव्हार के विरुद्ध बोलने की मुझमे हिम्मत नहीं थी.अतः मन मसोस कर ,कडुवे घूँट पीकर रह जाता था.अब मेरा बेटा बड़ा होने लग रहा है.अब तो मेरा रौब चलेगा.अब मैं बोलूँगा और वह सुनेगा.अब मैं उसका बाप हूँ.यही तो समाज का नियम है.

४,जब मैंने मेडिकल कालेज के प्रथम वर्ष में प्रवेश लिया और कालेज जाना प्रारंभ किया.तो कालेज के सीनियर छात्रों ने मेरे साथ कालेज परिसर और होटल में अनेक बार दुर्व्यवहार किया  रेगिंग के नाम पर अनेक प्रकार से परेशान हैरान करते थे.उन्होंने कभी मुझे मुर्गा बना दिया,तो  कभी कीचड में दौड़ने को मजबूर किया,कभी कार्टून बना कर लड़कियों के समक्ष अपमानित किया.कालेज में प्रवेश के पश्चात तीन माह आतंक के साये में कटे.मेरे लिए आतंकी शिविर बन गया था मेरा होस्टल प्रवास.मेरे एक साथी ने तो अमानवीय अत्याचारों से क्षुब्द हो कर आत्महत्या कर ली थी.आज मैं द्वितीय वर्ष का छात्र हो गया हूँ,और मेरे जूनियर कालेज आने वाले हैं,अब मैं भी दिखा दूंगा मैंने क्या क्या सहा था? पिछले वर्ष बल्कि उससे भी अधिक  रुलाउंगा अपने जूनियरों को.मेरे दुःख भरे दिन गए, अब तो बलि का बकरा बनेगा आने वाला नया बैच.जहाँ तक सरकारी कानूनों की बात है अब वह कैसे रोक लेगा जब मैं जुनियर था तब कानून कहाँ था? जब कहाँ थे शासन, प्रशासन?

५, आज जब मैं आफिस पहुंचा तो देखा बॉस का मूड खराब है,उन्होंने मुझे बिना किसी कारण डाटा-धमकाया.शायद अपने घर की किसी परेशानी से दुखी होने के कारण उन्होंने मेरा पूरा दिन खराब कर दिया.मेरा किसी काम में मन नहीं लग रहा था. फिर मैंने भी अपनी भड़ास अपने स्टाफ़ पर निकाल दी,मैंने भी अपने सभी जूनियर स्टाफ को बारी बारी हडका दिया,इस प्रकार से अपने बॉस का बदला अपने स्टाफ से लिया.

६,किसी परिवार में किसी व्यक्ति की हत्या हो जाती है तो बदले में हत्यारे के परिवार के किसी भी सदस्य की हत्या करके मन में उठ रही  प्रतिशोध की ज्वाला को शांत किया जाता है, और यह सिलसिला अंतहीन समय तक जारी रहता है.दोनों परिवार की दुश्मनी परमपरागत दुश्मनी का रूप ले लेती है. इस प्रकार अनेक अपराधों का कारण भी प्रतिशोध होता है.

   शायद उपरोक्त उदाहरणों को पढकर  मेरे विचारों से आप भी सहमत होंगे, की समाज में अत्याचार,दुर्व्यवहार मुख्यतः प्रतिक्रियाओं का न रुकने वाला सिलसिला होता है.यदि मानव हित में हम नियम बना लें की यदि कोई व्यव्हार हमें नापसंद है,तो वह व्यव्हार किसी के साथ न दोहराएँ.तो वास्तव में समाज में अत्याचारों अनाचारों और शोषण का ग्राफ बहुत नीचे आ सकता है.हम तनाव मुक्त शांति युक्त जीवन जी सकते हैं.(SA-73C)
   सत्य शील अग्रवाल, शास्त्री नगर मेरठ 

शुक्रवार, 9 नवंबर 2012

संवेदन हीन होता हमारा समाज

           मानव सभ्यता अपने उद्भव काल के पश्चात् उन्नति के चरमोत्कर्ष पर पहुँच गयी है .उसकी विकास की गति भी तीव्रतम हो गयी है .आज मानव द्वारा किये जाने वाले श्रम -साध्य कार्य मशीनों से कराया जाना संभव हो गया है .दूसरी तरफ उसके मानसिक कार्यों को अधिक तीव्रता से करने के लिए कम्पूटर आ चुका है .विकास के इस उच्च पड़ाव पर जहाँ मानव को अनेक सुख सुविधाएँ प्राप्त हुई हैं .तो अनेको समस्याओं को भी बल मिला है .जैसे बढती बेरोजगारी ,घटते रोजगार के अवसर ,बढती भौतिकवादी मानसिकता ,गलाकाट प्रतिस्पर्द्धा ,प्रत्येक स्तर पर बढ़ रहे प्रदूषण के कारण व्याधियों का बढ़ता ग्राफ ,अमीर गरीब के मध्य बढती खाई ,साथ ही समाज में निरंतर बढ़ रही मानवता के प्रति सम्वेदनहीनता . विकास की भागम भाग में मनाविये संवेदनाएं ,भावनाए विलुप्त होती जा रही हैं ,जो एक भयानक और भावी कष्टकारी जीवन की ओर संकेत कर रही है .यदि मानव समाज से सहानुभूति ,संवेदनाएं ,भावनाए निकाल दी जाएँ तो मानव समाज और अन्य वन्य जीवों में कोई अंतर नहीं रह जायेगा .आज मानव स्वयं एक रोबोट की भांति होता जा रहा है . जिसमे कार्य करने की तो अदभुत क्षमता होती है ,परन्तु भावनाओं से उसका कोई लेना देना नहीं होता .अतः मानव सभ्यता को बचाने के लिए मनाविये संवेदनहीनता के कारणों पर चिंतन करना आवश्यक हो गया है .कहीं ऐसा न हो भौतिक उन्नति करते करते हम सामजिक पतन को न्योता दे दें .जो हमारी भौतिक उपलब्धियों को निरर्थक कर दे . मानव समाज में बढ़ रही संवेदन हीनता के कारणों को समझने का प्रयास इस लेख के मध्यम से किया जा रहा है .---------
 वर्तमान में इन्सान इतना व्यस्त हो गया है यदि यात्रा करते समय ट्रेन ,बस या किसी अन्य वाहन से कोई दुर्घटनाग्रस्त दिखाई देता है तो उस घायल व्यक्ति या व्यक्तियों को आवश्यक सहायता देने या चिकित्सालय तक ले जाने का समय हमारे पास नहीं होता .अनेको बार दुर्घटनाग्रस्त व्यक्ति की समय पर इलाज न मिल पाने के कारण मौत हो जाती है .जो हमारी संवेदन हीनता का प्रतीक है .
      अपने स्वार्थ के कारण (आर्थिक स्वार्थ )समाज के साथ साथ अपने परिजनों के प्रति भी संवेदन हीन होते जा रहे हैं .प्रथम श्रेणी के रिश्तो अर्थात भाई भाई ,भाई बहन ,पिता पुत्र में भी अपनापन समाप्त होता जा रहा है .वह अपने जीवन स्तर के आधार पर ही रिश्तेदारों या परिजनों से सम्बन्ध रखना चाहता है .इस प्रकार से परिवारों में बिखराव आ रहा है . इस दुनिया में व्यक्ति अकेला होता जा रहा है , और मानसिक रूप से असुरक्षित हो गया है .क्योंकि प्रत्येक ख़ुशी भी बिना परिजनों के अधूरी होती है .और दुःख में परिजनों से ही मानसिक शक्ति प्राप्त होती है .शायद भौतिक सुखों की प्राप्ति पर ध्यान केन्द्रित करते करते हम मानसिक असंतोष को न्योता दे रहे हैं .
      समाज की प्रथम इकाई परिवार में पति और पत्नी परिवार रुपी गाड़ी के दो पहिये होते हैं .यदि दोनों पहिये आपस में सामंजस्य बना कर नहीं चल सकते , तो परिवार के अस्तित्व पर प्रश्न चिन्ह लगना स्वाभाविक है .परन्तु आज उनमे भी मानसिक लगाव का अभाव हो रहा है .उनमे आपसी संबंधों में स्वार्थ और दौलत का नशा झलकने लगा है .अतः तलाक की संख्या में निरंतर वृद्धि होती जा रही है .पत्नी को गंभीर बीमारी से ग्रस्त पा कर पति कही और घर बसा लेता है ,या पति की विपन्नता से तंग आ कर पत्नी धनवान प्रेमी के साथ भागने में नहीं हिचकिचाती
      .आज छोटे छोटे स्वार्थ के टकराव तलाक के कारण बन रहे हैं .जो कभी सिर्फ पाश्चात्य देशों में ही होता था .दूरदर्शन के धारावाहिकों में प्रदर्शित होने वाले , व्यभिचार और सांस्कृतिक मूल्यों की अवहेलना कहीं न कहीं हमारे समाज की वर्तमान स्थिति को परिलक्षित करते हैं .यह तो निश्चित है पारिवारिक सुख शांति के अभाव में सभी भौतिक उपलब्धियां महत्वहीन हैं .
           विकास के इस दौर में आ रही सामाजिक और आर्थिक असमानता के कारण प्रत्येक व्यक्ति के मन में इर्ष्या ने जन्म ले लिया भाई हो या बहन या कोई अन्य सम्बन्धी , मित्र ,पडोसी या जानकार, इर्ष्या के अनेक कारण हो सकते हैं ,जैसे रहन सहन या जीवन शैली में भारी अंतर ,पारिवारिक स्थिति में अंतर यानि किसी के पुत्र के रूप में संतान अधिक या कम होने का ,शिक्षा स्तर या पद में अंतर ,इत्यादि अर्थात इर्ष्या का कारण कोई भी,किसी भी प्रकार की आपसी तुलना हो सकती है.अब यदि कोई परिचित,रिश्तेदार या मित्र किसी बीमारी से ग्रस्त हो जाता है , दुर्घटना का शिकार हो जाता है ,अथवा किसी मुसीबत में फंस जाता है तो हम उससे सहानुभूति कम इर्श्या वश खुश अधिक होते हैं,.कभी कभी तो सोचते हैं अच्छा हुआ इसके साथ तो ऐसा ही होना चाहिए था,बड़ा घमंड था या बहुत अकड़ता फिरता था.जब इस प्रकार की मानसिकता हो गयी हो तो अपनापन का का अहसास कैसे हो पायेगा ? सबके मन में प्रतिद्वंद्विता और इर्ष्या ने घर बना लिया हैऔर सिर्फ अपनी उन्नति के लिए स्वार्थी हो चुके हैं. अपने आर्थिक हितों के लिए अपने प्रियतम व्यक्ति से भी दूर रहने में कोई झिझक नहीं रह गयी है.और अपने प्रिय व्यक्ति भी अपने अपने दुखों से कम उसके सुखों से दुखी अधिक होते हैं. परिवार और समाज का सुख समाप्त होता जा रहा है.इस प्रकार इर्ष्या ने हमें संवेदनहीन और रूखा बना दिया है .
       सम्वेदनहीनता के कारण मानव द्वारा मानव का ही शोषण किया जा रहा है , जैसे बाल मजदूरी द्वारा , महिला के साथ दुर्व्यवहार ,उच्च वर्ग द्वारा निम्न वर्ग का शोषण ,पुत्र के पिता का उसकी पत्नी के पिता का शोषण ,(बेटे के बाप द्वारा बेटी के बाप का शोषण )धर्म के नाम पर आतंक द्वारा मानव जाति का शोषण इत्यादि ,घटते जीवन मूल्यों के प्रतीक हैं . नए से नए हथियारों के उत्पादन कर बड़े बड़े भंडार बनाये जा रहे हैं . एक देश दूसरे देश का शोषण करने के उपाए ढूंढता है ,हथियारों के बल पर अपने स्वार्थ सिद्ध करता है ,उन्नति और विकास के नाम पर मानव अपनी कब्र स्वयं खोद रहा है .
          हमारे देश के सन्दर्भ में ;
 विकसित देशों की तर्ज पर हमारे देश के लोग भी सम्वेदनहीन होते जा रहे हैं ,स्वयं को तटस्थ (reserve)करते जा रहे हैं
        क्या हमारे देश की शासन व्यवस्था विकसित देशों की भांति कर्तव्य परायण है ?जहाँ पर प्रत्येक दुर्घटनाग्रस्त व्यक्ति की जिम्मेदारी स्वयं प्रशासन सम्भालता है .उसको सही समय पर सही इलाज कराने को तत्पर रहता है.
          जहाँ पर कानून और न्याय की सेवाएं कम से कम समय में बिना किसी पक्षपात के उपलब्ध होती हैं .जहाँ आम आदमी कानून की अवहेलना करने या अपराध करने का साहस नहीं जुटा पता .
           जहाँ सरकारी हो या निजी अस्पताल मरीज के इलाज के लिए प्रशासन स्तर पर पूर्ण जिम्मेदारी उठाते हैं उसे तीमार दारों   की या सिफारिश की आवश्यकता नहीं होती ,निजी अस्पताल मरीज के साथ लूटने की मंशा से बिल नहीं बनाते .
        क्योंकि हमारे नौकर शाही तंत्र भ्रष्ट है कोई भी व्यक्ति अपने कार्य के प्रति ईमानदार नहीं है हर क्षेत्र में दबाव या शक्ति प्रदर्शन आवश्यक होता है . यदि कोई व्यक्क्ति समाज से कट कर अपने धन संग्रह में लिप्त रहता है तो जहाँ विदेशों में उसको भले ही अपने लोगों की कमी न खले , परन्तु अपने देश के नागरिक के लिए अभिशाप बन जाता है .हम अभी ऐसे विकसित देश की व्यवस्था नहीं बना पाए हैं जहाँ व्यक्ति अपने आप में पूर्णतयःआत्मनिर्भर हो गया है ,उसकी संवेदनहीनता उसे अधिक परेशान नहीं करती . क्योंकि वह अपने कर्तव्यों को ठीक प्रकार से निर्वहन करता है . अतः हमारे देश के लिए संवेदन हीनता के व्यव्हार हमें शीघ्र ही ले डूबेगा .जहाँ व्यक्ति असुरक्षित हो उसे संगठित होकर रहना ही उसके हित में है. अतः इन्सान को विकास की आधुनिक भागदौड के साथ साथ भावनाओं और संवेदनाओं की रक्षा करने के उपाए भी करने होंगे तन मन धन से अपने संबंधो को सींचना होगा .सभी भौतिक उपलब्धियों का उद्देश्य मानव कल्याण और सुख शांती को बनाना होगा मानव जाति का भविष्य जब ही सुखद हो सकता है जब हम आत्मीयता ,मेल जोल , भाई चारा ,और संवेदनाओं को साथ लेकर चलें.(SA-G4-79)
 सत्य शील अग्रवाल,शास्त्री नगर मेरठ

गुरुवार, 1 नवंबर 2012

कैसे बने मधुर सास-बहू सम्बन्ध

   किसी भी संयुक्त परिवार में सास एवं बहु अधिकतम समय एक दूसरे के साथ व्यतीत करती हैं,क्योंकि दोनों पर ही घर के कामकाज की जिम्मेदारी होती है. घर में अशांति का मुख्य कारण भी सास एवं बहू के कटु सम्बन्ध होते हैं. इनके मध्य विवादों के कारण अनेक परंपरागत प्रथाएं तो होती ही हैं,अनेकों बार घर की बुजुर्ग महिला यानि सास का अपरिपक्व व्यव्हार भी विवादों का कारण बनता है. सास का आत्मसम्मान उसे तनावयुक्त बना देता है.वह बहू के आगमन को अपने प्रतिद्वंद्वी के आगमन के रूप में देखती है, और उसके आगमन से उसे अपना बर्चस्व घटता हुआ दीखता है. इसी भय की प्रतिक्रिया स्वरूप सास अपनी बहु को नीचा दिखने के उपाय सोचती रहती है. अपने वर्चस्व को बनाये रखने के लिए घर के सारे श्रम साध्य कार्य बहू को सौंप देती है, और अपने आदेशों का पालन करने के लिए दबाव बनाती है.अपना रौब ज़माने के लिए उस पर तानाकशी का सहारा लेती है, उसको अपने प्रभाव में बनाये रखने के लिए अपने बेटे के मन में उसके प्रति जहर भरती रहती है ताकि बहु उसकी कृपा पर निर्भर हो जाये, साथ ही बेटे के मन में अपनी माँ की अहमियत बनी रहे. ऐसे दोगले व्यव्हार के कारण बहु सास के प्रति बागी हो जाती है.और परिवार में तनाव बढ़ने लगता है.दूसरी तरफ दूसरे घर से आने वाली बहु भी अपने अस्तित्व के लिए संघर्ष कर रही होती है.वह भी चाहती है की उसकी बातों का भी परिवार में महत्त्व हो,उसकी इच्छाओं की भी कद्र हो, परिवार के निर्णयों में उसका भी दखल हो.वह भी कहीं न कहीं अपना बर्चस्व बनाने की आकांक्षा रखती है.मुख्तया बर्चस्व की लड़ाई ही सास बहु के बीच टकराव पैदा करती है सास बहु के सम्बन्ध मधुर बने रहने के लिए सास के व्यव्हार में उदारता, धैर्यता,और त्याग का भाव होना आवश्यक है.अपने सभी प्रियजनों को माएके छोड़ कर आयी बहू को प्यार भरा व्यव्हार ही नए परिवार के साथ जोड़ सकता है, उसे अपनेपन का अहसास करा सकता है.और उसके मन में सम्मान और सहयोग की भावना उत्पन्न कर सकता है.बहु को सिर्फ काम करने वाली मशीन न समझ कर परिवार का सम्माननीय सदस्य माना जाये,उसके विचारों ,भावनाओं को महत्त्व दिया जाये,उससे परिवार के विशेष फैसलों में सलाह ली जाय,तो परिवार की सुख शांति बनी रह सकती है.यदि सास घर के सारे काम बहू को न सौंप कर स्वयं भी उसके हर कार्य में सहयोग करती रहे तो उसका स्वयं का स्वास्थ्य भी बना रहेगा और परिवार का वातावरण भी मधुर बना रहेगा. क्योंकि शरीर को स्वास्थ्य रखने के लिए इसे सक्रिय रखना आवश्यक है, निष्क्रिय शरीर जल्द बीमारियों का घर बन जाता है.तो फिर क्यों न काम काज में सक्रिय रह कर अपने शरीर को स्वस्थ्य रखा जाय और परिवार में मधुर वातावरण भी बना रहे.सास का शालीन,धैर्य व् उदारता पूर्ण व्यव्हार,और परिजनों के प्रति त्याग की भावना हो तो अवश्य ही परिवार में सुख और शांति का वास होगा.बहू को अपनी पुत्री के समान प्यार देकर ही सास अपने भविष्य को सुरक्षित कर सकती है. सास को यह नहीं भूलना चाहिए की वह भी कभी बहू बन कर ही इस परिवार में आयी थी .जो बातें उसे बहु के रूप में अपनी सास की बुरी लगती थीं ,असहनीय लगती थीं,वे बातें अपनी बहू के साथ न दोहराय. कुछ बातें तुम्हारी भी ससुराल वालों ने सहन की होंगी अतः अब तुम्हारी बारी है अपना बड़प्पन दिखने की. छोटी छोटी गलतियों पर उसका अपमान न कर क्षमा करने की प्रवृति होनी चाहिए. जिस प्रकार सास की जिम्मेदारी बड़े होने के नाते बनती है, उसी प्रकार युवा,ऊर्जावान बहू को अपने ससुराल वालों का मन जीतने की आकांक्षा होनी चाहिए. उसे यह भली प्रकार से समझना चाहिए ससुराल में किसी परिजन से (बच्चो को छोड़ कर )उसका खून का रिश्ता नहीं होता, अतः सभी परिजनों के कामकाज में सहयोग देकर ,उनके साथ शालीनता का व्यव्हार कर.उन्हें प्यार और सम्मान देकर ही उनके मन में और परिवार में अपनी जगह बनायीं जा सकती है.पुत्र वधु का कर्तव्य है की वह अपने सास ससुर को माता पिता की भांति स्नेह और सम्मान दे, उनके प्रत्येक कार्य में सहयोग दे. यदि उनके व्यव्हार तानाशाह पूर्ण और अमानवीय नहीं है तो उन्हें पूजनीय मानना चाहिए. उन्हें स्नेह और सम्मान देकर वह अपने पति के दिल को जीत सकती है. एक पत्नी के लिए उसका प्यार उसका पति होता है अतः उसके(पति के) प्यारे यानि उसके माता पिता भी तो पत्नी के प्यारे ही हुए.
 यदि बहु अपने सास ससुर के साथ कुछ निम्न लिखित बातों को अपनाएं तो अवश्य ही वे सबके दिल जीतने में कामयाब हो सकती हैं.
 १,बुजुर्गों के जन्म दिन,विवाह वर्षगाँठ आदि पर उनकी पसंद के फूल अथवा उनकी प्रिय वस्तु भेंट करें जैसे उनके मन पसंद गानों की सी.डी या डी.वी डी.या फिर उनकी पसंदीदा कोई किताब आदि. ऐसे अवसरों पर उन्हें केंडिल डिनर पर ले जाएँ अथवा घर पर उनकी मन पसंद डिश तैयार करें. उनके चहरे पर आने वाली मुस्कान एवं संतोष आपको गौरवान्वित करेगी.और उनके दिलों में आपके लिए प्यार व् स्नेह बढ़ेगा.
 २,थोडा समय निकाल कर परिवार के बुजुर्गों के साथ बैठकर समय व्यतीत करें,उनकी भावनाओं को समझें उनकी शारीरिक एवं मानसिक समस्याओं को सुनें, उनकी पुरानी यादों को शेयर करें. इस प्रकार से उनके मन का बोझ हल्का होगा. 
३,अपने बच्चों से अपने दादा दादी के साथ समय देने का आग्रह करें.बच्चों को उनके ज्ञान का लाभ मिलेगा, वहीँ बुजुर्ग को परिवार में अपना महत्त्व दिखाई देगा. साथ ही बच्चों की अटपटी हरकतों ,शरारतों से उनका मनोरंजन भी होगा .
 ४,अपने कार्यों एवं व्यव्हार द्वारा उनका दिल जीत कर उनके अनुभवों का लाभ उठा सकती है और परिवार को खुशियों से भर सकती हैं.कठिन परिस्थितियों में भी बुजुर्गों का अनुभव और उनकी सलाह सहायक सिद्ध हो सकते हैं. 
५,जब कभी बुजुर्ग तानाशाही और दखलंदाजी वाली प्रवृति रखते हैं तो विषेश संयम एवं धैर्य का परिचय देना होता है. ऐसे बुजुर्गों के साथ बहस न करें,किसी भी टकराव की स्थिति से बचें और जो भी संभव हो अधिकतम अपने कर्तव्यों का पालन करती रहें. मन को व्यथित करे बिना उनके स्वभाव को उसी प्रकार अपनाने का प्रयास कर अपना व्यक्तिगत पारिवारिक जीवन कलुषित होने से बचाएं. अवांछनीय सन्दर्भों में दूरी बनाने का प्रयास करें. 
जिस प्रकार से बहू के लिए कुछ व्यव्हार परिवार के लिए लाभप्रद हो सकते हैं उसी प्रकार सास के लिए कुछ व्यव्हार परिवार की शांति बनाये रख सकते हैं.जो निम्न प्रकार से हैं.
१, बहु की तानाकशी करने से बचें, कोई त्रुटी नजर आने पर उसे प्यार से समझाएं यदि वह आपकी सलाह को उपयुक्त नहीं मानती तो दोबारा उसे न दोहराएँ.
 २,पोती-पोतों को प्यार दें, उनकी परवरिश में यथा संभव बहू को सहयोग करें.
 ३,घर के कामकाज में अपनी सामर्थ्य के अनुसार सहयोग करें. अपनी उपस्थिति उनके लिए लाभदायक सिद्ध करें. 
४.बहू के माएके वालों का पूर्ण सम्मान करें,प्यार दें,समय समय पर बहू को माएके वालों से मिलने के अवसर प्रदान करें. उसके माएके वालों का अपमान कभी न करें.उनका अपमान का अर्थ है बहू के मन में अपने प्रति कडुवाहट पैदा करना,अपने प्रति सम्मान को कम करना.
५,बहू के माएके से यदि कोई उपहार आता है तो उसे नतमस्तक होकर अपनाएं,उसमें त्रुटियाँ निकाल कर बहू का अपमान न करें.
 उपरोक्त छोटी छोटी बातों का ध्यान रखा जाय तो परिवार का वातावरण सहज, सुखद, एवं शांतिपूर्ण बन सकता है.परिजनों में आपसी प्रेम एवं सहयोग बना रह सकता है.