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रविवार, 31 मई 2015

नाकारा विपक्ष देश का दुर्भाग्य

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       हमारे देश में पिछले अडसठ वर्ष की आजादी के दौरान अधिकतम शासन कांग्रेस का रहा है,अतः वर्त्तमान भा.ज.पा.के शासन काल में कांग्रेस की विपक्ष की भूमिका का सर्वाधिक महत्त्व है और उससे एक जिम्मेदार विपक्षी पार्टी की भूमिका निभाने की उम्मीद की जाती है. परन्तु गत चुनावों में हुई उसकी शर्मनाक हार ने उसे हताश और निराश कर दिया है. अपनी खोयी हुई साख को वापस पाने का अब उसे कोई रास्ता नहीं मिल रहा है.  जनता का विश्वास जीतने के लिए उसे भा.. पा. के शासन में कमियां  ढूँढने के लिए पसीना बहाना पड रहा है.भा.. पा. के एक वर्ष पूरे होने पर एक भ्रष्ट मुक्त और विकासोन्मुख शासन ने कांग्रेस समेत सभी विपक्षी पार्टियों की नींद उडा दी है.अब सभी विपक्षी पार्टियाँ जनता को अपने पक्ष में करने के लिए तर्क हीन बयानों पर उतर आयी हैं.कांग्रेस पार्टी ने भूमि अधिग्रहण बिल पर किसानों को भड़काना शुरू कर दिया है,जी. एस. टी. बिल को लेकर उसके विरोध में समस्त विपक्ष एक जुट हो गया है, ताकि देश का विकास अवरुद्ध हो और सरकार बदनाम हो.विपक्षी पार्टियों का उद्देश्य सरकार के प्रत्येक कार्य का विरोध करना रह गया है कार्य की गुणवत्ता या देश हित के लिए सोचना उनके लिए अप्रासंगिक हो गया है.इसी प्रकार जो सरकारी कर्मी भ्रष्ट गतिविधियों में संलग्न रहते है,या आम जन जिन्हें भा.jज.पा. के शासन के दौरान उनके व्यक्तिगत स्वार्थों की पूर्ती  होने की सम्भावना नहीं है, वे मोदी सरकार के प्रत्येक कदम को संदेह की दृष्टि से देखते हैं. उन्हें सरकार के किसी भी कार्य में अच्छाई नजर नहीं आती. दरअसल उन्हें अपना विकास चाहिए(अपनी तिजोरियां भरनी चाहिए)उन्हें देशहित  की बात करने वाला नहीं भाता. इसीलिए ऐसे लोग मोदी की आलोचना करके जनता में भ्रम पैदा करते रहते हैं.क्योंकि स्व हित के आगे देश हित की बातें उनके लिए कोई महत्त्व नहीं रखती.   
      2014 में हुए लोकसभा चुनावो के परिणामों से लगभग बौखला चुकी देश की सत्ता से दूर  हो चुकी विरोधी पार्टियाँ अपने व्यव्हार में संयम खो चुकी हैं. यद्यपि स्वस्थ्य लोकतंत्र के लिए मजबूत विपक्ष का होना आवश्यक होता है और विरोधी पक्ष का कार्य सरकार के कार्यों का विश्लेषण कर तथ्यों को जनता के समक्ष रखना होता है,और गलत कार्यों या जनता विरोधी कार्यों के लिए जनता को सजग करना होता है,सरकार को जनविरोधी कार्यों से रोकना होता है. परन्तु यदि विपक्ष अपनी जिम्मेदारियों को देश हित में न निभा कर, सिर्फ अपने स्वार्थ के लिए,अपनी पार्टी के हित के लिए जनता के समक्ष अनर्गल टिप्पड़िया प्रस्तुत करें,सिर्फ विरोध करने के लिए सरकार के प्रत्येक कार्य का विरोध करे और जनता  को गुमराह करे, तो इसे देश और लोकतंत्र के लिए स्वास्थ्यवर्द्धक नहीं कहा जा सकता. विरोधी पार्टिया सत्ता पक्ष के प्रत्येक कार्य का विरोध करना ही अपना कर्तव्य समझने लगें,तो यह देश का दुर्भाग्य ही है.इस प्रकार से देश विकास नहीं कर सकता.लोकतंत्र में जहाँ (जनता द्वारा चुनी गयी सरकार)सत्ताधारी पार्टी का कर्तव्य होता है की वह जनहित और देश हित में कार्य करे, तो विपक्ष की भूमिका उसके कार्यों की सकारात्मक समीक्षा करना होता है.उसके द्वारा उठाये  जा रहे गलत क़दमों से सरकार और जनता को सचेत करना होता है.    

    जो विरोधी पक्ष के नेता चुनावों में भाजपा के सत्ता में आने पर देश को भयानक साम्प्रदायिकता के आगोश में खतरा बता रहे थे.और इस प्रकार भ्रम पैदा करके जनता से वोट लेने की साजिशें रच रहे थे. वहीँ अब विरोधी पक्ष के नेताओं को आज मोदी जी के हर कार्य में दिखावा और देश विरोधी कदम दिखाई देता है.कांग्रेसी मोदी की बढती लोकप्रियता से चिंतित हैं और अनाप शनाप बयानबाजी कर अपने शासनकाल को उचित ठहराते हैं. जिनके कार्यकाल में देश, अव्यवस्था और भ्रष्टाचार के दल दल में बुरी तरह से फंस गया था, वे ही मोदी के शासन में अनेक कमियां निकाल कर अपनी पीठ थपथपाने का असफल प्रयास कर रहे हैं. विरोधी पार्टियों के समय रहते चेत जाना चाहिए की अब देश की जनता को और अधिक नहीं बरगलाया जा सकता.और अपनी सोच को देश हित और जनता हित की ओर उन्मुख करना होगा.अन्यथा उन्हें राष्ट्रीय राजनैतिक पटल से विलुप्त होना पड़ेगा.
     कांग्रेस ने अपने लिये  गड्ढा स्वयं खोदा है 2011 मे अन्ना जी के नेतृत्व में देश को भ्रष्टाचार मुक्त बनाने के लिए सशक्त लोकपाल की मांग के समर्थन में आन्दोलन चलाया गया  था.इस आन्दोलन को समर्थन देकर कांग्रेस पार्टी को दोबारा सत्ता पर काबिज होने का अवसर मिल सकता था. पार्टी  के लिए सुनहरी अवसर था जनता का विश्वास जीतने का और भ्रष्टाचार के विरुद्ध अपनी संकल्प बद्धता दिखाने का.परन्तु सत्ता के मद में चूर कांग्रेसी सरकार ने  अन्ना  के आन्दोलन को अप्रासंगिक करना ही अपना उद्देश बना लिया और जनता की आवाज को नकार दिया. इसके परिणाम स्वरूप ही कांग्रेस को अप्रत्याशित शर्मनाक हार का सामना करना पड़ा.शायद वही गलती अब भी दोहरायी जा रही है देश के लिए हितकारी कार्यों,योजनाओं का विरोध करके.
        आज भी अनेक बार कांग्रेसी नेता देश में गत छः दशकों में हुए विकास को अपनी पार्टी की उपलब्धि मानते हैं.सच्चाई तो यह है की इस दौरान जो भी उन्नति हुई है वह हमारे देश  की जनता के द्वारा किये कड़े परिश्रम का ही परिणाम है, जिसमे सरकार का योगदान नगण्य ही रहा है.सरकार द्वारा विकास सिर्फ उस क्षेत्र का किया गया जिसमे नेताओं को भारी कमीशन मिलने की उम्मीद थी.उन्ही कारखानों, मिलों को फलने फूलने का मौका दिया गया जिन्होंने नेताओं और सरकारी कर्मियों की हर स्तर पर जेबें भरी.ईमानदार और परिश्रमी व्यवसायी,उद्योगपति,व्यापारियों  को हर स्तर पर हतोत्साहित किया गया, उनके काम में हर लेवल पर अड़ंगे लगाये गए,उन्हें परेशान किया गया. ईमानदार,कर्त्यव्य निष्ठ.परिश्रमी सरकारी कर्मियों को बार बार दण्डित किया गया. भ्रष्ट और नेताओं के लिए गलत कार्य करने वाले नौकरशाहों को पुरस्कार के रूप में पदोन्नत किया गया.अतः कांग्रेस शासन के दौरान जो भी उन्नति हुई है वह जनता के अपन दम पर हुई है सरकार का कभी भी अपेक्षित सहयोग प्राप्त नहीं हुआ.अन्यथा देश आज विकसित देशों की श्रेणी में खड़ा होता.i
       कांग्रेस समेत सभी विरोधी  पार्टियों को अब अपनी सोच बदलनी होगी.वह समय गया जब वे धर्म,जाति,फ्री गिफ्ट, जैसे अनर्गल मुद्दों पर चुनाव लड़ कर जीतते थे. आज देश की जनता पढ़ी लिखी और समझदार हो गयी है अब उसे धर्म या जाति के आधार पर,या झूंठे सब्जबाग दिखाकर बरगलाना असंभव हो गया है.अब जो पार्टी या नेता जनता के हित में सार्थक कदम उठाएगा,जनता की समस्याओं का निराकरण करेगा, उसे ही देश पर शासन का अवसर मिलेगा.अब देश को विकास की ओर ले जाने से कोई नहीं रोक सकता.


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मंगलवार, 26 मई 2015

विश्व तम्बाकू निषेध दिवस-31मई


 
       
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वैसे तो नशा कोई भी हो इन्सान के लिए हानिकारक ही होता है.नशा क्षणिक आनंद तो देता है, परन्तु अनेक प्रकार के भयानक रोगों को भी आमंत्रित करता है.नशे से शारीरिक स्वास्थ्य के साथ साथ परिवार की आर्थिक स्थिति भी प्रभावित होती है. पहले मादक द्रव्य को प्राप्त करने में अर्थात खरीदने में (हमारे देश में नशाखोरी रोकने के लिए लगने वाले भारी टैक्स के कारण सभी नशीले द्रव्य बहुत महंगे होते हैं),तत्पश्चात नशे से उत्पन्न रोगों के इलाज के लिए आवश्यक खर्च अच्छे अच्छे परिवारों को कंगाल बना देता है. नशा करने से नशा करने वाले व्यक्ति की कार्य क्षमता भी प्रभावित होने लगती है, जिससे रोजगार पर भी असर पड़ता है.नशे से तंत्रिका तंत्र कमजोर हो जाने के कारण मानसिक व्याधियां भी अपने पैर फैला सकती हैं.धूम्र पान करने वाला व्यक्ति न सिर्फ अपना नुकसान करता है, समाज को भी बहुत हानि  पहुंचाता है क्योंकि तम्बाकू के धुएं के संपर्क में आने वाला व्यक्ति भी समान रूप से प्रभावित होता है.

मैं एक ई.एन.टी सर्जन,डॉक्टर,और पूर्व स्वास्थ्य मंत्री के तौर पर कह सकता हूँ की तम्बाकू सिर्फ मौत देता है,इससे कम कुछ नहीं”  केन्द्रीय मंत्री डा.हर्ष वर्द्धन.

     तंबाकू के इसी दुष्परिणाम को समझते हुए विश्व स्वास्थ्य संगठन ने साल 1988 से 31 मई को विश्व तंबाकू निषेध दिवस के रूप में मनाने का निर्णय लिया. साल 2008 में विश्व स्वास्थ्य संगठन ने वैश्विक स्तर पर सभी तंबाकू विज्ञापनों, प्रमोशन आदि पर बैन लगाने का आह्वान किया.
    मादक द्रव्यों की सूची में अनेक पदार्थ शामिल हैं जैसे तम्बाकू,अफीम,चरस,गाँजा,कोकीन,बीडी सिगरेट,हेरोइन,शराब,एल.एस.डी.और नशा लाने वाली दवाएं, अधिक प्रचलन में है. इन सभी मादक द्रव्यों में तम्बाकू या तम्बाकू उत्पाद अपेक्षतया सस्ते होते हैं.इसीलिए इनका प्रचलन भी सर्वाधिक होता है.एक मजदूर,और भिखारी भी अपनी थकान मिटाने के लिए तम्बाकू या बीडी का उपयोग करता है,या सिर्फ तम्बाकू और चूने का प्रयोग करता है,और थोडा सक्षम व्यक्ति सिगरेट और सिगार के रूप में तम्बाकू उत्पादों का उपयोग करता है.     
       तम्बाकू का नशा दो प्रकार से किया जाता है चबा कर या फिर धुंआ बना कर.सिगरेट, बीडी और सिगार का प्रयोग धुएं के रूप में किया जाता है,जबकि पान मसाला, खैनी, गुटखा इत्यादि चबाकर प्रयोग किये जाने वाले तम्बाकू उत्पाद हैं.
       दुनिया में हर साल तंबाकू से जुड़ी बीमारियों से क़रीब 50 लाख लोगों की मौत होती है.जिनमे 9लाख भारतीय होते हैं. लेकिन इसके बावजूद लोग लगातार तंबाकू के आदी बनते जा रहे हैं.धूम्रपान के सेवन से कई दुष्‍‍परिणामों को झेलना पड़ सकता है. इनमें फेफड़े का कैंसर, मुंह का कैंसर, हृदय रोग, स्ट्रोक, अल्सर, दमा, डिप्रेशन आदि भयंकर बीमारियां भी हो सकती हैं.इतना ही नहीं महिलाओं में तंबाकू का सेवन गर्भपात या होने वाले बच्चे में विकार उत्पन्न कर सकता है.एक सर्वे के अनुसार यह पाया गया है,की सिगरेट और सिगार का सेवन करने वाले,नहीं सेवन करने वालों के मुकाबले  छः गुना अधिक मुख केंसर का शिकार बनते हैं,जबकि तम्बाकू को चबा कर सेवन करने वाले सामान्य से पचास गुना अधिक गाल और मसूढ़ों के केंसर से पीड़ित होते हैं.भारत वर्ष में सभी कैंसर पीड़ितों में चालीस प्रतिशत मुख केंसर के पीड़ित होते हैं, जबकि इंग्लेंड में यह सिर्फ चार  प्रतिशत है.
  इन सभी बीमारियों का कोई कारगर इलाज नहीं है,अतः तम्बाकू के सेवन को रोकना ही एक मात्र उपाय है.हर साल 31मई को तम्बाकू रहित दिवस मनाने का उद्देश्य है,की जनता का ध्यान तम्बाकू से होने वाले नुकसान की ओर खींचा जा सके,उसे सचेत किया जाय की वे तम्बाकू उत्पादों को सेवन करके अपने स्वास्थ्य के साथ कितना बड़ा खतरा मोल ले रहे है. तंबाकू एक ऐसा ही पदार्थ है जो विश्व में भर लाखों लोगों की खूबसूरत जिंदगी को ना सिर्फ बदसूरत बना देता है बल्कि उसे पूरी तरह खत्म ही कर देता है. इस सन्दर्भ में सभी देशों के शासकों का दायित्व है कि वे अपने देश की जनता को तम्बाकू उत्पादों के सेवन के खतरों  से नियमित रूप से अवगत कराएँ और;-
Ø  प्रत्येक तम्बाकू उत्पाद पर चेतावनी छापने की अनिवार्यता सुनिश्चित हो.
Ø  जो व्यक्ति तम्बाकू उत्पादों की लत छोड़ने के इच्छुक हैं उन्हें इस संकल्प में उनको यथा संभव सरकारी सहायता उपलब्ध करायी जाय.
Ø  सार्वजानिक स्थानों पर धूम्रपान करना सख्ती से निषेध लागू हो
Ø  किशोर बच्चों पर सख्त निगरानी रखी जाय जिससे वे इसकी लत के शिकार न हो सकें,जब उन्हें शुरुआत में ही रोक दिया जायेगा तो वे उसके आदि होने से बच सकते हैं.नशे की लत पड़ जाने से परिणाम गंभीर हो जाते हैं,जब वह छोड़ने के इच्छुक होते हुए,कमजोर इच्छा शक्ति के कारण मजबूर हो जाते हैं.और नशे से आजादी नहीं मिल पाती.
Ø  यदि संभव हो सके तो तम्बाकू उत्पादन को ही रोक दिया जाय,तम्बाकू से सम्बंधित उत्पादों में लगे व्यक्तियों को अन्य कार्यों में लगाया जाय.
Ø  तम्बाकू उत्पादों के विज्ञापन हर स्तर पर प्रतिबंधित किया जाएँ
Ø  तम्बाकू उत्पादों से होने वाले नुकसान से आम जन को जागरूक करने के लिए जनचेतना अभियान चलाया जाना चाहिए.
Ø  जागरूकता अभियान स्वयं से प्रारंभ कर मित्रो, रिश्तेदारों,सेवादारों और फिर समाज तक चलाया जाये तो अधिक प्रभावकारी हो सकता है.  


            तंबाकू ना सिर्फ जिंदगी तबाह कर देता है बल्कि जिस अंदाज में यह जिंदगी को खत्म करता है वह बेहद दयनीय और दर्दनाक होता है अगर स्थिति पर जल्द से जल्द काबू नहीं पाया गया तो हो सकता है,  वाले कुछ सालों में तंबाकू से जुड़ी बीमारियां बढ़ें और इससे लोगों की और अधिक संख्या में मृत्यु हो. तंबाकू के खिलाफ लोगों के अंदर जागरुकता पैदा करने की जरूरत है. साथ ही अगर आपके अंदर भी तंबाकू खाने या सिगरेट पीने की आदत है और आप इस आदत को नहीं छोड़ पा रहे हैं तो जल्द से जल्द अपने डॉक्टर से सलाह लें.आज नशा छुड़ाने के लिए प्रभावी चिकित्सा उपलब्ध है.     

शुक्रवार, 22 मई 2015

अपराधी की सजा सात साल पीड़िता की सजा बयालिस वर्ष


     
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 अरुणा शानबाग अब एक ऐसा चर्चित नाम हो गया है जिस पर प्रत्येक राजनेता और मीडिया अपनी सहानूभूति प्रगट कर रहा है.कोई व्यक्ति कानूनी दांव पेंच को उसकी त्रासदी भरी जीवन यात्रा के लिए जिम्मेदार मानता है, तो कोई उसके लिए सहानुभूति प्रकट करते हुए,उसकी याद में उसके नाम पर बलात्कार के विरुद्ध संघर्ष करने वाले को इनाम देने की पेशकश कर रहा है. मीडिया उसके हालात पर आंसू बहाकर अपनी टीआरपी बढ़ा रहा है,परन्तु यह सब कुछ उसकी मृत्यु के उपरान्त. गत चार दशकों से अस्पताल के एक कमरे में जीवन और मौत के बीच झूलने वाली महिला को जीवित रहते कितने लोग जानते थे.कितने लोग उसके दुखद समय में उसके साथ थे. देश में अनेक सरकारें आयीं गयीं परन्तु किसी नेता या प्रशासक का ध्यान उस निरीह प्राणी पर नहीं गया

.  उसकी मौत के पश्चात् एक तरफ तो इच्छा मृत्यु पर विवाद ने फिर से जीवंत रूप ले लिया है, दूसरी ओर महिलाओं पर होने वाले अत्याचार के लिए सार्वजानिक तौर पर अश्रू धारा एक बार फिर बहने लगी है.कहीं न कहीं हमारी न्याय व्यवस्था पर भी असंतोष जाहिर हो रहा है,क्योंकि एक ओर तो अपराधी जो अरुणा की इस दर्दनाक हालात के लिए जिम्मेदार था मात्र सात  वर्ष की सजा काट कर सामान्य जिन्दगी जी रहा है, तो दूसरी ओर पीड़ित महिला बयालीस वर्ष तक त्रासदी पूर्ण जीवन जीने को मजबूर रही, उसे मौत भी भीख में नहीं मिली. 
दर्द नाक हादसे का संक्षिप्त विवरण;
      हल्दीपुर कर्नाटक की अरुण शानबाग मुम्बई के के.ई.एम्. अस्पताल में नर्स थी जिसके साथ २७ नवम्बर १९७३ को अस्पताल के ही सफाई कर्मी सोहन लाल बाल्मीकि ने बलात्कार किया और गला दबा कर हत्या की कोशिश की,गला दबने से दिमाग की किसी नस को नुकसान होने के कारण उसकी सोचने समझने की क्षमता नहीं रही और उसकी एक आँख भी बेकार हो गयी. अतः वह कोमा में चली गयी जिसे मेडिकल भाषा में Permanent Vegetative State(PSV) के नाम से जाना जाता है, और वह इसी अवस्था में गत बयालीस  वषों तक  जीवन और मौत के मध्य झूलती रही. इसी दौरान उसके माता पिता भी नहीं रहे सम्पूर्ण परिवार ने उससे नाता तोड़ लिया.अस्पताल में गत चार दशक(बयालीस वर्ष) तक उसके साथी(नर्स) स्टाफ ने उसकी अनुकरणीय सेवा की.अंत में १८ मई२०१५ को उसने इस बेरहम दुनिया को अलविदा किया.
     मेडम वीरानी ने सुप्रीम कोर्ट में एक याचिका दायर की कि वह अस्पताल प्रशासन को आदेश दे की उसे जो बल पूर्वक नली द्वारा भोजन दिया जा रहा है बंद किया जाय ताकि वह अपनी नारकीय जिन्दगी से निजात पा  सके. परिवार में उसके माता पिता नहीं रहे अन्य कोई परिजन उसकी देख भाल के लिए तैयार नहीं है, न ही कोई उससे से सम्बन्ध रखता है. उसके स्वस्थ्य होने के भी कोई आसार नहीं है.अतः उसे जीवन मुक्त किया जाय.परन्तु कोर्ट ने कानून में इच्छा मृत्यु का प्रावधान ने होने के कारण उसकी याचिका ख़ारिज कर दी.
उपरोक्त घटनाक्रम से अनेक प्रश्न मन में उठते हैं
1.      हमारी न्याय व्यवस्था और कानून में बुनियादी कमी है जिसके कारण अपराधी को उसके द्वारा किये गए अपराध की जघन्यता के अनुरूप सजा नहीं मिल पाती.
2.      जब देश के प्रत्येक नागरिक को सम्मान पूर्वक जीने का बुनियादी अधिकार है,तो उसको अपनी इच्छानुसार असहनीय परिस्थति में भी अपने जीवन को समाप्त करने का अधिकार क्यों नही है?
3.      क्या बेसहारा लम्बी बीमारी से ग्रस्त व्यक्ति के लिए विशेषकर जो किसी अपराधी की करतूत के कारण इस अवस्था तक पहुंचा हो,सरकार को विशेष सुविधाएँ उपलब्ध नहीं करायी जानी चाहिए.
4.      क्या अरुणा जैसे हादसों के शिकार व्यक्ति के सन्दर्भ में मीडिया द्वारा जनता को समय समय पर  अवगत नहीं कराते रहना चाहिए?ताकि आम जनता भी उसके कष्टों को कम करने में अपना सहयोग दे सके?   
उक्त घटना क्रम को देखते हुए गंभीरता से विचारणीय विषय है,क्या किसी ऐसे इन्सान को स्वेच्छिक रूप से मरने का अधिकार नहीं मिलना चाहिए है? जो
Ø  स्वस्थ्य जीवन जी पाने में असमर्थ है.लाइफ सपोर्ट सिस्टम पर जीवित है.
Ø  जो परिवार के साथ सामान्य रूप से जीवन जीने में समर्थ नहीं है.उसका जीवन परिवार के लिए बोझ बन चुका है.
Ø  जो अपनी लम्बी और त्रासद बीमारी से परेशान  हो चुका है और ठीक होने के कोई असर नहीं है.
Ø  जब एक इन्सान को सम्मान से जीने का अधिकार है तो सम्मान के साथ मरने अधिकार क्यों नहीं है?           


बुधवार, 20 मई 2015

नारी स्वयं नारी के लिए संवेदनहीन क्यों ?


     
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यह तो सभी जानते हैं हमारे देश में महिला समाज को सदियों से प्रताड़ित किया जाता रहा है उसे सदैव पुरुष के हाथों की कठपुतली बनाया गया.उसे अपने पैरों की जूती समझा गया.उसके अस्तित्व को पुरुष वर्ग की सेवा के लिए माना गया . परन्तु आधुनिक परिवर्तन के युग में समाज के शिक्षित होने के कारण महिला समाज में भी अपने अधिकारों के प्रति जागरूकता का संचार हुआ और महिला समाज को उठाने ,उसके शोषण को रोकने एवं समानता के अधिकार को पाने के लिए अनेक आन्दोलन चलाये गए अनेक महिला संगठनों का निर्माण हुआ महिला समाज ने अपने शोषण के विरुद्ध आवाज उठाई , और समानता के अधिकार पाने के लिए संघर्ष प्रारंभ किया . यद्यपि महिलाओं की स्तिथि में बहुत कुछ परिवर्तन आया है ,पुरुष वर्ग की सोच बदली है .परन्तु मंजिल अभी काफी दूर प्रतीत होती है.अभी भी सामाजिक सोच में काफी बदलाव लाने की आवश्यकता है.शिक्षा के व्यापक प्रचार प्रसार के बावजूद आज भी महिलाओं की स्वयं की सोच में काफी परिवर्तन लाने की आवश्यकता है .उनकी निरंकुश सोच महिलाओं को सम्मान दिला पाने में बाधक बनी हुई है .नारी स्वयं नारी का सर्वाधिक अपमान एवं शोषण करते हुए दिखाई देती है .
कुछ ठोस प्रमाण नीचे प्रस्तुत हैं जो संकेत देते हैं की महिला अपने तुच्छ स्वार्थ के लिए अपने महिला समाज का कितना अहित करती रहती हैं ?
उदाहरण संख्या एक
      हमारे समाज में मान्यता है पति परमेश्वर होता है ,अतः उसकी सभी गलत या सही बातों का समर्थन करना पत्नी का कर्त्तव्य है  इस मान्यता को पोषित करने वाली महिला , जो ऑंखें मूँद कर अपने पति का समर्थन करती है .उसे यह नहीं पता की वह स्वयं अपने पैरों पर कुल्हाड़ी मार रही है . क्योंकि ऐसी महिलाएं अपरोक्ष रूप से पुरुष को चरित्रहीन बनाने एवं महिलाओं के शोषण का मार्ग प्रशस्त कर रही होती हैं .बहु चर्चित सिने जगत से जुड़े शाईनी आहूजा कांड से सभी परिचित हैं .जिस पर अपनी पत्नी की अनुपस्थिति में अपनी नौकरानी के साथ बलात्कार करने का आरोप सिद्ध हो चुका है .और सात वर्ष की कारावास की सजा भी सुनाई जा चुकी है .उसकी ही पत्नी ने बिना ठोस जानकारी प्राप्त किये या तथ्यों का पता लगायअपने पति को सार्वजानिक रूप से अनेकों बार निर्दोष बताती रही बल्कि उसने इसे एक षड्यंत्र का परिणाम बताया .क्या उसे नौकरानी के रूप में एक महिला का दर्द नहीं समझ आया .बिना सच्चाई जाने महिला का विरोध एवं पति का समर्थन क्यों?क्या यह अपने तुच्छ स्वार्थ के लिए पति के व्यभिचार पर पर्दा डालना उचित था ?क्या इस प्रकार से नारी समाज को शोषण से मुक्ति मिल सकेगी?क्या पुरुष वर्ग अपनी सोच में बदलाव लाने को मजबूर हो पायेगा ?

 उदाहरण संख्या दो ;
       अनेक लोगों के दांपत्य जीवन में ऐसी स्तिथि बन जाती है की उनके संतान नहीं होती क्योंकि किसी कारण पति या पत्नी संतान सुख पाने में असमर्थ होते हैंइसका कारण पति या पत्नी कोई भी हो सकता हैपरन्तु हमारे समाज में दोषी सिर्फ महिला को ठहराया जाता है .परिवार की महिलाएं ही जैसे जिठानी ,सास या फिर ननद , उसे बाँझ कहकर अपमानित करती हैं .ये महिलाएं अपने घर की महिला सदस्य के साथ अन्याय एवं अमानवीय व्यव्हार करने में जरा भी नहीं हिचकिचाती .और तो और वे पोता या पोती की चाह में पुत्र वधु से पिंड छुड़ाने के अनेकों उपक्रम करती हैं .उस पर झूंठे आरोप लगाकर समस्त परिवार की नज़रों में गिराने का प्रयास करती हैं .यदि सास कुछ ज्यादा ही दुष्ट प्रकृति की हुई तो उसकी हत्या करने की योजना बनाती है , या उसे आत्महत्या करने के लिए करने उकसाती है .ताकि वह अपने बेटे का दूसरा विवाह करा सक, यही है एक महिला की महिला के प्रति बर्बरता का व्यव्हार. अगर वह मानवीय आधार पर सोचकर समाधान निकलना चाहे तो अनाथ आश्रम से या किसी गरीब दंपत्ति से बच्चा गोद लेकर अपनी उदारता का परिचय दे सकती है .इस प्रकार से किसी गरीब का भी भला हो सकता है और परिवार में बच्चे की किलकारियां भी गूंजने लगेंगी साथ ही महिला सशक्तिकरण का मार्ग भी पुष्ट होगाऔर मानवता की जीत .
उदाहरण संख्या तीन
परिवार में लड़का हो लड़की , माता या पिता के हाथ में नहीं होता .परन्तु यदि परिवार में पुत्री ने जन्म लिया है तो जन्म देने वाली मां को ही जिम्मेदार माना जाता है .अर्थात एक महिला ही दोषी मानी जाती है ..यदि किसी महिला के लगातार अनेक पुत्रियाँ हो जाती हैं तो उसका अपमान भी शुरू हो जाता है .एक प्रकार पुत्री के रूपमें महिला के आने पर एक मां के रूप में महिला को शिकार बनाया जाता है . मजेदार बात यह है ,उस मां के रूप में महिला का अपमान करने वालों में परिवार की महिलाएं यानि सास ,ननद ,जेठानी इत्यादि ही सबसे आगे होती हैं यदि घर की वृद्ध महिला चाहे तो परिवार में आयी बेटी का स्वागत कर सकती है .एक महिला के आगमन पर जश्न मना सकती है .और पुरुष वर्ग को कड़ी चुनौती दे सकती है .जब एक महिला ही एक महिला के दुनिया में आगमन पर स्वागत नहीं कर सकती तो पुरुष वर्ग कैसे उसे सम्मान देगा?.
कन्या भ्रूण हत्या भी महिला समाज का खुला अपमान है ,जो बिना नारी (जन्म देने वाली मां )की सहमति के संभव नहीं है .भ्रूण हत्या में सर्वाधिक पीड़ित महिला ही होती है . अतः परिवार की सभी महिलाएं यदि भ्रूण हत्या के खिलाफ आवाज उठायें तो पुरुष वर्ग कुछ नहीं कर पायेगा उसे पुत्री के रूप में संतान को स्वीकारना ही पड़ेगा . महिला के आगमन (बेटी ) का स्वागत सम्पूर्ण महिला वर्ग का सम्मान होगा .

उदाहरण संख्या चार ;
  किसी परिवार में जब कोई उच्च शिक्षा प्राप्त बहू  आती है तो परिवार की वृद्ध महिलाओं को अपने वर्चस्व के समाप्त होने का खतरा लगने लगता है , उन्हें अपने आत्मसम्मान को नुकसान पहुँचने की सम्भावना लगने लगती है अतः परिवार की महिलाएं ही सर्वाधिक इर्ष्या उस नवागत महिला से करने लगती हैं .और समय समय पर नीचा दिखाने के उपाए सोचने लगती हैं .उस नवआगंतुक महिला को अपना प्रतिद्वंदी मानकर उसके खिलाफ मोर्चा खोल देती हैं . उसकी प्रत्येक गतिविधि पर परम्पराओं की आड में अंकुश लगाकर अपना बर्चस्व कायम करने का प्रयास करती हैं .ऐसे माहौल में नारी समाज का उद्धार कैसे होगा ?कैसे महिला समाज को सम्मान एवं समानता का अधिकार प्राप्त हो सकेगा ?
     यदि परिवार की सभी महिलाएं नवागत उच्च शिक्षा प्राप्त बहु का स्वागत करें ,उससे विचारों का आदान प्रदान करें ,समय समय पर उससे सुझाव लें , तो अवश्य ही अपना और अपने परिवार का और कालांतर में सम्पूर्ण नारी समाज के कल्याण का मार्ग प्रशस्त हो सकता है .शिक्षित महिलामहिला उत्थान अभियान मेंअधिक प्रभावीतरीके से योगदान दे सकती है .एवं समपूर्ण महिला समाज को शोषण मुक्त कर सकती है . अतः नवागंतुक शिक्षित महिला का स्वागत करना नारी समाज के लिए हितकारी साबित हो सकता है .
उदाहरण संख्या पांच ;
    प्रत्येक वर्ष आठ मार्च को महिला दिवस मनाया जाता है ,परन्तु उसी दिन एक गुंडा सारे बाजार एक महिला के सीने में गोलियां दाग देता है ,उपस्थित भीड़ सम्पूर्ण नारी समाज एवं पुरुष समाज मौन खड़ा देखता रह जाता है .और हत्यारा बिना किसी विरोध के निकाल भाग जाता है .
घटना आठ मार्च 2011 की है सम्पुर्ण विश्व महिला दिवस मना रहा था .और दिल्ली में राधा तंवर नाम की लड़की जो दिल्ली विश्व विद्यालय की छात्र थीको एक गुंडा अपना लक्ष्य बनता है और सारे आम हत्या करके चला जाता है .उस छात्र का कुसूर यह था की वह अपने तथाकथित प्रेमी गुंडे से प्यार नहीं करती थी अर्थात उसका प्रेम प्रस्ताव उसे स्वीकार नहीं था .जब वह बार बार उसके द्वारा परेशान किये जाने की शिकार होती है तो उसने अपनी दिलेरी दिखाते हुए थप्पड़ जड़ दिया . बस उसी के प्रतिशोध में उसने उसकी हत्या कर दी इससे स्पष्ट है आज भी किसी महिला को अपने जीवन साथी के रूप में लड़का पसंद या नापसंद करने का अधिकार नहीं है,किसी के प्रेम प्रस्ताव को ठुकराने का हक़ नहीं है .यही कारण था की उसकी दिलेरी (थप्पड़ मरना ) का जवाब मौत के रूप में मिला . पुलिस को सब कुछ मालूम होते हुए भी हत्यारे को पकड़ने में कै दिन लग गए महिला समाज चुप चाप तमाशा देखता रहा.बल्कि अनेक महिलाओं ने छात्रा को ही चरित्रहीन होने का संदेह व्यक्त कर एक महिला का अपमान किया .

उदाहरण संख्या छः ;
     जब कोई दुष्कर्मी किसी महिला का बलात्कार करता है तो बलात्कारी को सजा मिले या न मिले वह दरिंदा पकड़ा जाये या न पकड़ा जाये ,परन्तु बलात्कार की शिकार ,महिला को अवमानना का शिकार होना तय है .उस पीडिता को सर्वाधिक अपमानित उसके अपने परिवार की एवं समाज की महिलाएं हि करती हैं . उसे चरित्रहीन का ख़िताब भी दे दिया जाता है वह समाज के ताने सुन सुन कर आत्मग्लानी का अनुभव करती रहती है ,उसे अपना जीवन दूभर लगने लगता है .जबकि उसने कोई अपराध नहीं किया है.अपने परिवार की बदनामी के डर से पति सहित सम्पूर्ण महिला समाज ,बलात्कारी को दंड देने के लिए कानूनी प्रक्रिया का सहारा लेने से भी घबराते हैं .इसी कारण बलात्कार के आधे से अधिक केस अदालतों तक भी नहीं पहुँच पाते और बलाताकरी के हौसले बढ़ जाते हैं .इस प्रकार से पुरुषों को दुराचार करने को बढ़ावा मिलता हैक्यों महिला समाज पीडिता के साथ सहानुभूति रखते हुए उसे कानूनी इंसाफ की लडाई के लिए तैयार करता ,उसे हिम्मत दिलाता ?पीडिता यदि अविवाहित है तो उसे विवाह करने को कोई पुरुष आगे नहीं आता , क्योंकि उसे जूठन मनाता है .परन्तु किसी पुरुष को अपनी पड़ोसन जो की शादी शुदा है अर्थात विवाहित महिला , से प्रेम की पींगे बढ़ाने में कोई हिचक नहीं होतीक्यों ?.क्या विवाहित प्रेमिका जूठन नहीं हुईऐसे दोहरे मापदंड क्यों ?
उदाहरण संख्या सात ;
     एक महिला दूसरी महिला के लिए कितनी संवेदनहीन होती है इसके अनेको उदाहरण विद्यमान हैं .अनेक युवतियां अपना विवाह न हो पाने की स्तिथि में अथवा अपनी मनपसंद का लड़का न मिलने पर किसी विवाहित युवक से प्रेम प्रसंग करती है और बात आगे बढ़ने पर उससे विवाह रचा लेती है .उसके क्रिया कलाप से सर्वाधिक नुकसान एक महिला का ही होता है .एक विवाहिता का परिवार बिखर जाता है उसके बच्चे अनाथ हो जाते हैं .जिसकी जिम्मेदार भी एक महिला ही होती है .फ़िल्मी हस्तियों के प्रसंग तो सबके सामने ही हैं .जहाँ अक्सर फ़िल्मी तारिकाएँ शादी शुदा व्यक्ति से ही विवाह करती देखी जा सकती हैंऐसी महिलाये सिर्फ अपना स्वार्थ देखती हैं जिसका लाभ पुरुष वर्ग उठता है .महिला समाज कोयदि समानता का अधिकार दिलाना हैतो अपने महत्वपूर्ण फैसले लेने से पहले सोचना चाहिए की उसके निर्णय से किसी अन्य महिला पर अत्याचार तो नहीं होगा ,उसका अहित तो नहीं हो रहा.
उदाहरण संख्या आठ ;
      त्रियाचरित्र ,महिलाओं में व्याप्त ऐसा अवगुण है जो पूरे महिला समाज को संदेह के कठघरे में खड़ा करता है ,कुछ शातिर महिलाएं त्रियाचरित्र से पुरुषों को अपने माया जाल में फंसा लेती हैं और अपना स्वार्थ सिद्ध करती रहती हैं ,शायद अपनी इस आडम्बर बाजी की कला को अपनी योग्यता मानती हैं परन्तु उनके इस प्रकार के व्यव्हार से पूरे महिला समाज का कितना अहित होता है उन्हें शायद आभास भी नहीं होता .उनके इस नाटकीय व्यव्हार से पूरे महिला समाज के प्रति अविश्वास की दीवार खड़ी हो जाती है . जिसका खामियाजा एक मानसिक रूप से पीड़ित महिला को भुगतना पड़ता है . परिश्रमी ,कर्मठ ,सत्चरित्र परन्तु मानसिक व्याधियों की शिकार महिलाएं अपने पतियों एवं उनके परिवार द्वारा शोषित होती रहती हैं .क्योंकि पूरा परिवार उसके क्रियाकलाप को मानसिक विकार का प्रभाव न मान कर उस की त्रियाचरित्र वाली आदतों को मानता रहता है .इसी भ्रम जाल में फंस कर कभी कभी बीमारी इतनी बढ़ जाती है की वह मौत का शिकार हो जाती है .
अतः प्रत्येक महिला को अपने व्यव्हार में पारदर्शिता लाने की आवश्यकता हैसाथ ही पूरे नारी समाज को तर्क संगत एवं न्यायपूर्ण व्यव्हार के लिए प्रेरित करना चाहिए,तब ही नारी सशक्तिकरण अभियान को सफलता मिल सकेगी .
उदाहरण संख्या नौ;
    हमारे समाज में महिलाएं परम्पराओं के निभाने में विशेष रूचि रखती हैं .परम्पराओं के नाम पर न्याय ,अन्याय , शोषण ,मानवता सब कुछ भूल जाती हैं .परंपरा के नाम पर प्रत्येक महिला अपनी सास द्वारा किये गए ,दुर्व्यवहार ,असंगत व्यव्हार को ही अपनी पुत्र वधु पर थोप देती है .शायद उसके मन में दबी भड़ास को निकालने का यह उचित अवसर मानती है .और शोषण का सिलसिला जारी रहता है .इसी प्रकार ननद द्वारा किये जा रहे असंगत व्यव्हार को अपने मायेके में जाकर अपनी भावज पर लागू करती है और आत्म संतुष्टि का अहसास करती है.परन्तु . उसका जीना हराम करदेती है . यदि इन असंगत परम्पराओं को तोड़ कर नारी समाज बाहर नहीं आयेगा ,अपने व्यव्हार में मानवता को प्रमुखता नहीं देगा तो नारी उत्थान कैसे संभव हो पायेगा ?
उदाहरण संख्या दस ;
     परिवार में वृद्ध महिलाओं की रूचि नारी समाज को शोषण मुक्त करने में नहीं होती वे चाहती हैं की परिवार में उनका बर्चस्व बना रहे .यही वजह है नवविवाहित दुल्हन को सास द्वारा सख्त निर्देश जारी किये जाते हैं की महिलाओं की बातें सिर्फ महिलाओं तक ही सिमित रहनी चाहिए किसी भी रूप में परिवार के पुरुषों तक घरेलु घटनाक्रम की जानकारी नहीं पहुंचनी चाहिए जब भी बात बतानी है उसे घर की सबसे बड़ीमहिला अर्थात सास ही बताएगी .क्योंकि वे भी जानती हैं की बहुत सी तर्कहीन बातों को पुरुष वर्ग सहन नहीं करेगा और उसकी प्रतिक्रिया से महिला के बर्चस्व पर आघात हो सकता है.नवागंतुक महिला के शोषण की योजना घर की बड़ी महिला द्वारा ही रची जाती है .यदि यह सही मान भी लिया जाय की घर की बड़ी महिला को अपना अधिपत्य ज़माने का पूर्ण अधिकार है परन्तु तर्क हीन बातों से मुक्त होना भी आवश्यक है ताकि कोई भी महिला शोषण का शिकार न हो पाए महिलाओं में आपसी एक जुटता रहेगी तो पुरुष वर्ग से अपने संघर्ष को जल्द मुकाम मिल सकेगा महिला वर्ग को शोषण से मुक्ति एवं समानता का अधिकार ,सम्मान का अधिकार मिल पायेगा.
        अंत में मेरा कहने का तात्पर्य यह है कीनारी स्वयं नारी वर्ग के लिए सोचना शुरू कर देतो महिलाओं को शीघ्र ही अपना आत्म सम्मान मिल सकेगा.<script src="https://www.gstatic.com/xads/publisher_badge/contributor_badge.js" data-width="88" data-height="31" data-theme="light" data-pub-name="Your Site Name" data-pub-id="ca-pub-00000000000"></script>



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