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सोमवार, 28 फ़रवरी 2011

भारतीय संस्कृति

हमारे देश में तथाकथित राष्ट्रवादी,हिन्दू संस्कृति के रक्षक अपनी परम्पराओं और संस्कृति की रक्षा के लिए हाय तौबा मचाते हैं और पाश्चात्य संस्कृति के विरूद्ध जहर उगलते रहते हैं.पता नहीं तथाकथित हिन्दू राष्ट्रवादी अपनी संस्कृति को महिमामंडित कर क्यों पेश करना चाहते हैं। जिस संस्कृति में भाईचारा,एकता,कर्मठता,व्यावहारिकता का सदैव अभाव रहा है। जिस संस्कृति ने हमारे देश को हजारों वर्षों तक गुलाम रहने को मजबूर किया । पहले मुसलमान फिर अंग्रेज हमें अपनी दासता का शिकार बनाय रहे। फिर इस संस्कृति को बचाने की इतनी चिंता क्यों?आज आजाद देश के हमारे राजनेता,हमारे नौकरशाह अपने भ्रष्ट आचरणों से देश को खोकला करने पर तुले हुए हैं। क्या यही है हमारी संस्कृति? आज आम भारतीय बेईमान,कदाचारी हो चुका है,क्या यही है हमारी संस्कृति?
हम पाश्चात्य देशों की आलोचना उनके स्वछंद व्यव्हार को देखते हुए करते हैं.परन्तु उनके विशेष गुणों जैसे देश प्रेम, ईमानदारी,परिश्रम,कर्मठता को भूल जाते हैं। जिसके कारण आज वे विश्व के विकसित देश बने हुए हैं। सिर्फ उनके खुले पन के व्यव्हार के करण उनकी अच्छाइयों की उपेक्षा करना और उनका विरोध करना कितना तर्कसंगत है?क्या हमें अपने अतीत की गलतियों से सबक लेकर अपने व्यव्हार में परिवर्तन नहीं लाना चाहिय?
हमारे देश का युवा विश्व के सभी देशों से अधिक योग्य, बुद्धिमान ,महत्वकांक्षी,एवं परिश्रमी है.आवश्यकता है सिर्फ उचित मार्ग दर्शन की। दकियानूसी बातों में उलझाकर उनका उत्साह, उनकी प्रगति में अवरोध उत्पन्न कर कभी भी विकसित देशों की श्रेणी में नहीं आ सकते । आम नागरिक के व्यव्हार को नियंत्रित करने के लिए पर्याप्त कानून देश में मोजूद हैं और आवश्यकतानुसार बनाय जा सकते हैं। आवश्यकता है दृढ इच्छाशक्ति की, ईमानदारी की, उचित एवं व्यावहारिक दिशा निर्देशन की.

मंगलवार, 22 फ़रवरी 2011

डाकू और सुपर डाकू (सफेद पोश ) कटाक्ष

निकट भविष्य में डाकू जाति सिर्फ इतिहास के पन्नों तक सीमित रह जायगी.धीरे धीरे यह जाति विलुप्त हो रही है. क्योंकी आम जनता काफी जागरूक हो गयी है. प्रशासन दिन पर दिन हाई टेक होता जा रहा है. अतः उसका शिकंजा अधिक मजबूत होता जा रहा है. नामी गिरमी डाकू पर इनाम कि घोषणा से उसको उसके चमचों द्वारा ही उसे काळ का ग्रास बनना पडता है.नई प्रजाती अर्थात सुपर डाकू , डाकू से अधिक बुद्धिमान बेराहम शातिर होते है.वे अपने छाद्म वेश में सम्मान पूर्वक अर्थात साम्मानीय हो कर रहते है.आखिर कौन है ये सफेद पोश सुपर डाकू? आईये बात ही देते है , ये है हमारे देश के भ्रष्ट नेता,भ्रष्ट नौकर शाह , मिलावट खोर, मुनाफा खोर व्यापारी एवं विभिन्न जाल साज.आजकल इस प्रजाती में एक नयी शाखा खुल चुकी है,जिसमें अपार सम्मान,अपार धन दौलत एवं अएशो आराम के सभी साधन मौजूद होते है. और वह है,साधू संतों में घुसपेठ.अब सफेदपोश ,साधु ओं के वेश में आने लगे है.क्या कारण है आज लोग डाकू के स्थान पर सुपर डाकू बनना पसंद कर राहे है?
डाकुओं को बीहड़ जंगलो में खानाबदोष हो कर रहना पडता है. दिनचर्या जटिल होती है खाने पीने, रहने कि सुचारू एवं स्थायी व्यवस्था नहीं होती. पुलिस बल का खोफ प्रतिक्षण बना रहता है. परंतु सफेद पोश डाकू यांनी सुपर डाकू को सम्मान कि जिंदगी जीने का अवसर प्राप्त होता है,सारी सुख सुविधाये अक्सर जीवन भर बनी रहती है.
पोलीस द्वारा सताय जाने कि चिंता न के बराबर होती है.क्योंकी उपर तक उनका कमीशन पहुंच जाता है.नेता और नौकर शाहो के तो पुलिस विभाग मातहत होता है दुर्भाग्य वश यदि कोई धांधली पकड में आती है तो दौलत और पद के दवाब से केस को दाबा दिया जाता है. साबूत नष्ट कर दिये जाते है.अब यदि कोई बेचारा बिलकुल हि नसीब का खोटा होता है, मिडिया एवं सी बी आई के हत्थे चढ कर पश्चताप का महान अवसर पा लेता है.और कानून का शिकार हो जाता है.अन्यथा पूरा जीवन दुनिया कि सारी सुख सुविधाओं के साथ गुजरता है.
डाकू अक्सर सामने आकार वर करता है,अतः साधारण व्यक्ती भी उनसे बचाव के प्रयास कर लेता है. अपने को सुरक्षित कर लेता है.परंतु सुपर डाकू का वार अदृश्य होता है.अतः किसी को पता ही नहीं चलता किसने चाबूक चलाया ,कितनी बार चाबूक चलाया ,और उसे कितना गहरा घाव हुआ है. कभी कभी तो पीड़ित के आंसू भी वह स्वयं ही आकर पोंछ रहा होता है.उसकी सहायता कर पिडीत कि दृष्टी में मसीहा बन जाता है, है न कमाल का सुपर डाकू?
डाकू अक्सर अमीरों के यहाँ डाका डालता है.परन्तु सुपर डाकू बिना किसी पक्षपात किये सब पर बराबर और लगातार वार करता है.एक डाकू सिधान्तवादी होता है,उसके मन में गरीबों के लिय हमदर्दी होती है. अतः कभी कभी उनकी सहायता भी कर देता है. परन्तु सुपर डाकू यदि सहायता भी करता है,तो अपने अगले वार को पक्का करने के लिय जैसे कोई कसाई अपने बकरे को काटने से पूर्व उसकी भरपूर खिलाई कर तगड़ा करता है.अतः उनकी सहायता भी उनकी कुटिल चल का सुन्दर रूप होती है.
डाकू बेचारा एक सिमित इलाके तक अपनी गतिविधियाँ चला पाता है,परन्तु सुपर डाकू कि कार्य गत सीमाए अंतहीन होती हैं,अतः उनकी कमाई डाकुओं से कई गुना अधिक होती है. उसके लिय पूरा देश उनके शिकार का अखाडा होता है.
अक्सर डाकू अपनी संतान को अपने व्यवसाय में डालने से कतराता है,यदि गिरोह को सम्हालने और अपनी सुरक्षा का मामला अटकता है तो ही अपने बेटे को अपने व्यवसाय में डालेगा अन्यथा नहीं. परन्तु सुपर डाकू हमेशा अपनी संतान को जन्म से ही अपने धंधे कि जानकारी एवं प्रक्षिक्षण देता है, ताकि उसका भविष्य भी सुरक्षित एवं सम्मानजनक बन सके.
परन्तु क्यों फल फूल रहें हैं सुपर डाकू? यह भी एक ज्वलंत प्रश्न है.इसका मुख्य कारण भी स्वयं पीड़ित होने वाली जनता है.क्योंकि शासन एवं प्रशासन में व्याप्त भ्रष्टाचार के सामने वह नतमस्तक हो चुकी है. जिसे वह सुविधा शुल्क के रूप में स्वीकार कर चुकी है.मिलावट खोरों और मुनाफाखोरों को संरंक्षण देने के लिय उसने अपना हाजमा मजबूत कर लिया है. फिर जहरीली वस्तुएं खा कर चाँद लोग मर भी गए तो क्या? दुर्घटना में भी तो मौत हो जाती है.अपने क्षणिक लाभ के लिय अर्थात चाँद रुपयों ,शराब कि बोतल अथवा अन्य प्रलोभन पा कर अपना वोट भ्रष्ट नेताओं को बेच देते हैं.असामाजिक तत्वों,आतंकियों से मुकाबला न करने कि कसमें खाकर अपनी शांति कि तलाश में लगे रहते है.यह कटु सत्य है,सुपर डाकू हमने यानि आम जनता ने बनाय हैं और हम ही उन्हें पाल पोस रहे हैं क्यूंकि डाकू के वार से हम डरते हैं सुपर डाकू से नहीं.




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रविवार, 20 फ़रवरी 2011

महिला सशक्ति करण

जैसे जैसे शिक्षा का प्रसार हो रहा है,हमारे देश की बेटियां,महिलाएं पढ़ लिख कर आगे बढ़ रही हैं.। अब महिलाओं ने हर क्षेत्र में अपनी उपस्तिथि दर्ज करायी है.कामकाजी महिलाएं परिवार को आर्थिक सहयोग दे रही हैं। अब वे मुख्यमंत्री,प्रधानमंत्री,राष्ट्रपति जैसे महत्वपूर्ण पदों को सुशोभित कर रही हैं.इंजिनीअर डॉक्टर जैसे क्षेत्रों में तो पहले से ही महिलाऐं आती रही हैं। अब पुलिस विभाग, मिलिट्री जैसे पुरुष प्रधान विभागों में भी अपनी पैठ बना लीहै.अब महिलाऐं ट्रक,कार वायुयान व ट्रेन भी चला रही हैं। सरकार ने भी उनके शोषण रोकने और उनकोविकासोन्मुख बनाने के लिय अनेक कानून बना कर महिला कल्याण का मार्ग प्रशस्त किया है।

परन्तु उपरोक्त विकास अभी भी शैशव अवस्था में है.और कुछ प्रतिशत महिलाऐं ही आगे आ पाई हैं। पिछड़े क्षेत्रोएवं देहातों में अब भी स्तिथि दयनीय बनी हुयी है.और उससे भी दयनीय है हमारी पारंपरिक सोच.जब तक हमसभी अपनी सोच में बदलाव नहीं लायेंगे महिलाओ का समग्र विकास असंभव है।

आयिए देखें कुछ तथ्य;

कन्या भ्रूण हत्या आज भी हो रही हैं,वर्ना महिला, पुरुष अनुपात में महिलाओं की संख्या क्यों घट रही है?

हमारे परिवारों में बेटियों को उच्च शिक्षा से अभी भी क्यों वंचित किया जा रहा है?

बढती दहेज़ प्रथा (अनेक कानून होने के बावजूद) नारी समाज का खुले आम अपमान नहीं है?

दहेज प्रथा गैर कानूनी है अतः सोदे बाजी अंदरखाने होती परन्तु शादी का खर्च तो अब भी लड़की वाला ही उठाता हैजिस पर कोई कानूनी बंदिश भी नहीं है. परन्तु लड़की वाला ही क्यों खर्च करे?

बेटी की कमाई का प्रयोग आज भी माता पिता के लिय वर्जित है क्यों ?.

आज भी बेटी अपने माता पिता को शारीरिक अथवा आर्थिक सहयोग के लिए पति एवं ससुराल वालों पर निर्भर है क्यों ?

गुरुवार, 10 फ़रवरी 2011

मानवता और धर्म (१० फरवरी )

हमारे देश में प्रत्येक नागरिक को अपने धर्म अपने विचारों को प्रसारित एवं प्रचारित करने की पूरी स्वतंत्रता है,विभिन्न धर्मों के व्यापक प्रचार एवं प्रसार के बावजूद इमानदारी,सच्चाई,शालीनता,अहिंसा,सहिष्णुता,जैसे गुणों का सर्वथा अभाव है। जिसने अपने देश में अराजकता ,अत्याचार,चोरी,डकैती,हत्या जैसे अपराधों का ग्राफ बढा दिया है.दिन प्रतिदिन नैतिक पतन हो रहा है.उसका कारण यह है की हम धर्म को तो अपनाते
हैं परन्तु धर्मो द्वारा बताये गए आदर्शों को अपने व्यव्हार में नहीं अपनाते। सभी धर्मों के मूल तत्व इन्सनिअत को भूल जाते हैं,और अवांछनीय व्यव्हार को अपना लेते हैं।
यदि हम किसी धर्म का अनुसरण न भी करें और इन्सनिअत को अपना लें ,इन्सनिअत को अपने दैनिक व्यव्हार में ले आए तो न सिर्फ अपने समाज,अपने देश, बल्कि पूरे विश्व में सुख समृधि एवं विकास की लहर पैदा कर सकते हैं.

शनिवार, 5 फ़रवरी 2011

अरब देशों के क्रांति कारी आन्दोलन

टुनीशियासे प्रारंभ होकर क्रांति की ज्वाला मिस्र , यमन,जोर्डन,लेबनान,जैसे अनेक अरब देशों में फैल चुकी है, इन देशों की सत्ता तानाशाहों के हाथों में है। लोकतंत्र की इस क्रांति ने विश्व के सभी निरंकुश शासकों की नींद उड़ा दी है जिसमे चीन जैसे बड़े देश की घबराहट जग जाहिर है।
आधुनिक युग में प्रत्येक देश की जनता अपने देश में प्रजातंत्र का शासन चाहती है, जिसमें प्रत्येक धर्म,प्रत्येक समुदाय,एवं प्रत्येक व्यक्ति की भावनाओं,आशाओं,आकाँक्षाओं ,विचारों को महत्त्व मिले.विश्व के प्रत्येक लोकतान्त्रिक देश का कर्त्तव्य है सभी क्रांति कारी देशों को अपने देश में लोकतान्त्रिक व्यवस्था लागू कर पाने में पूरा पूरा सहयोग करे।
यदि सयून्क्त राष्ट्र संघ एक नियम बना कर निश्चित कर दे ,की उसकी सदस्यता पाने के लिए देश का लोकतान्त्रिक होना आवश्यक हो अन्यथा मान्यता न दी जायगी .और गैर लोकतान्त्रिक देशों से कोई भी देश आर्थिक सम्बन्ध नहीं रखेगा, तो अवश्य ही पूरे विश्व की जनता को निरंकुश शासकों से मुक्ति मिल सकती है.जिन देशों में लोकतान्त्रिक व्यवस्था कायम है, उन देशों में कोई भी व्यक्ति या कोई समूह निरंकुश शासन लाने की जुर्रत न कर सकेगा .लोकतान्त्रिक व्यवस्था को छिन्न भिन्न करने का साहस नहीं कर सकेगा
विकसित देशों को अपना स्वार्थ त्याग कर पूरे विश्व की जनता के हित में सोचना होगा और आन्दोलन ग्रस्त देशो में लोकतंत्र शासन लाने के लिय सार्थक प्रयास करने होंगे ताकि पूरा विश्व मानवीय मूल्यों का साक्षी बन सके

बुधवार, 2 फ़रवरी 2011

धर्म के नाम पर सब चलता है

धर्म के नाम पर हमारी सरकार और फिर जनता भी कुछ ज्यादा ही सहिष्णु है. यही कारण है शिव तेरस पर , जब कावण लाने की होड़ लगती है,तीन चार दिन के लिए अनेक मुख्य मार्ग आम ट्रेफिक के लिए बंद कर दिए जाते हैं,नमाज जुम्मे की हो या फिर ईद की यदि मस्जिद में जगह कम है तो आप सड़क पर भी नमाज अदा कर सकते हैं,और ट्रेफिक जाम करने के लिय पोलिस है ही।

धर्म की रक्षा के नाम पर आम सभ्य एवं शालीन व्यक्ति भी परधर्मी (दूसरे धर्म का अनुयायी) के साथ हिंसक व्यव्हार एवं हत्या करने से भी परहेज नहीं करता, जो बाद में धार्मिक दंगे का रूप ले लेता है।


धर्म के नाम पर विभिन्न आयोजनों को पूर्ण करने में जितनी उर्जा ,धन और समय हम खर्च करते हैं,यदि उसे उत्पादक कार्यों में लगा पायें तो हम अपना,अपने समाज का, अपने देश का विकास तीव्रता से कर सकते हैं।
हमारे देश मे धेर्म के नाम पर सब् कुछःसंभव है। आप मैन रोड पर, चोराहे पर, सरकारी खाली पडी जमीन पर,कही भी मन्दिर कि स्थापना कर सकते हैं,मजार बना सकते हैं,देवी देवता की मूर्ति लगा सकते है,दलितो के मसीह कि मूर्ति खड़ी कर सकते है।देश कोई ताकत ऐसी नही है जो आपके धार्मिक कार्य मे बाधा डाल सके।


कैसा लगता है जब आपको आपके बुजुर्गों से सैर सपाटे पर जाने की इजाजत नहीं मिलती परन्तु धार्मिक तीर्थ स्थानों जैसे वैष्णो देवी, शाकुम्भरी देवी,या अमृतसर का स्वर्ण मंदिर या फिर कलियर का मेला पर जाने की इच्छा व्यक्त करते ही ख़ुशी से इजाजत मिल जाती है और इस बहाने से आपकी पर्यटन की इच्छा भी पूर्ण हो जाती है।


धर्म के नाम पर ,धार्मिक आयोजनों के नाम पर चंदा बसूलने वाले अनेक मिथ्या लोग अपनी रोजी रोटी मजे से चलाते हैं। प्रत्येक व्यक्ति धर्म के नाम पर मांगने वाले को मना करने में धर्म संकट में फसने लगता है. और मना नहीं कर पाता .