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गुरुवार, 9 मई 2013

विकास के लिए धार्मिक कट्टरवाद से मुक्त होना आवश्यक



 ‘‘किसी भी देश को विकास पथ पर निरंतर आगे बढ़ने के लिए धार्मिक कट्टरवाद से मुक्त होना अत्यन्त आवश्यक हो गया है। धार्मिक सहिष्णुता और इंसानियत धर्म के पालन से ही विकास संभव है।’
वैश्वीकृत विकास के वर्तमान स्वरूप को समझना होगा। यातायात एवं संचार साधनों के विकास के साथ ही गांव से शहर और शहर से मैट्रो शहर और इसी प्रकार पूरे विश्व के देश आपस में इस प्रकार जुड़ चुके हैं कि पूरा संसार एक संयुक्त गांव की भांति हो गया है। पूरे विश्व का विकास एक साथ हो रहा है और सब देश अन्य देशों पर निर्भर हो गये हैं। सभी देशों को अन्य देशों से व्यापारिक सम्बन्ध बनाये रखना आवश्यक हो गया है। बिना व्यापारिक सम्बन्धों के देश की जनता अपना सामान्य जीवन जीने से भी वंचित हो जाती है,उन्नति तो दूर की बात रह जाती है। भौतिकवादी वर्तमान युग में किसी एक देश के लिए सम्भव नहीं है कि वह अपने संसाधनों, वन संपदा, खनिज संपदा और कारखानों में उत्पादित वस्तुओं से अपनी जनता की सभी आवश्यकताओं की पूर्ति कर सके। कोई भी उत्पादक देश अपने उत्पादन को सिर्फ देश तक सीमित कर उत्पादन लाभ नहीं ले सकता। अतः जहाँ विकसित देश अपने उत्पादन बेचने के लिए अविकसित एवं विकासशील देशों में बाजार ढूंढने को मजबूर हैं तो गरीब एवं विकासशील देश की जनता को विभिन्न उत्पादक वस्तुओं के लिए विकसित देशों का सहारा लेना पड़ता है। विकसित देशों के पास पूंजी है परन्तु श्रम शक्ति की कमी है तो विकासशील देशों के पास पूंजी का अभाव है, बेरोजगारी है, अथाह श्रम शक्ति है। अतः सभी देशों को किसी न किसी रूप में एक-दूसरे पर निर्भर रहना होता है।
             उपरोक्त निर्भरता को इस प्रकार समझा जा सकता है। एक बाग में बहुत बड़ी मात्रा में सेब लगे हैं यदि वह स्थानीय बाजार में बेचे जायें तो स्थानीय खपत के पश्चात बहुत बड़ी मात्रा में सेब बच जाता है यदि उसे अन्य किसी शहर और फिर किसी अन्य देश को न भेजा जाये तो बाकी बचा सेब सड़ जायेगा और सेब उत्पादक को अपने उत्पाद का पूरा लाभ न मिलकर कम लाभ से सब्र करना पड़ेगा और शायद अगली फसल के उत्पादन की तैयारी भी कम उत्साह से करेगा । परन्तु यदि उसके सेबों को खरीदने के लिए अन्य शहरों एवं अन्य देशों से व्यापारी आते हैं, उसे बचे सेब की खेप के उचित दाम मिल जाते हैं और व्यापारी जिस देश से आते हैं उस देश की जनता को सेब का रसास्वादन करने को प्राप्त हो जाता है। इस प्रकार विश्व की जनता प्रत्येक देश के उत्पादन का उपभोग कर सकती है, यद्यपि वह वस्तु उसके देश में उत्पादित नहीं होती। और विश्व का प्रत्येक देश अन्य देशों से सम्बद्ध हो चुका है। अन्य देशों पर निर्भरता बढ़ गई है।
        इसी प्रकार यदि किसी देश के अन्य देशों से सम्बंध मधुर नहीं हैं तो उस देश से नवविकसित तकनीक एवं टैक्नीशियन प्राप्त नहीं कर सकता और कारखानों में उत्पादन पुरानी तकनीक से करते रहने को मजबूर होगा। यदि आपस में सबसे मधुर सम्बंध बने हुए हैं किसी देश से आवश्यकतानुसार श्रम शक्ति (इंजीनियर एवं विशेषज्ञ) आयात कर अपने देश की आवश्यकताएं पूर्ति कर सकता है। किसी देश के विकास के लिए पूरे विश्व से सहयोग सहभागिता, व्यापार सम्बंध आवश्यक हैं। धार्मिक कट्टरता विभिन्न देशों से सम्बंधों में मधुरता नहीं ला सकती।
         आज हमारा भौतिक विकास इस स्तर तक पहुंच गया है कि इससे ऊपर विकास करने के लिए विश्व समुदाय को एक साथ मिलकर चलना होगा। कोई भी देश प्रत्येक वस्तु का उत्पादन नहीं कर सकता। सभी देशों की वन सम्पदा, खनिज सम्पदा, बौद्धिक सम्पदा भिन्न जलवायु के कारण अलग-अलग है। विकास के लिए सभी प्रकार के खनिजों, वनस्पतियों एवं बौद्धिक क्षमताओं की आवश्यकता होती है। इसके अतिरिक्त कल कारखानों के उत्पादन के आदान-प्रदान के लिए प्रत्येक देश को एक-दूसरे की आवश्यकता होती है जो आज के विकास का मुख्य स्रोत बने हुए हैं। कल कारखाने के विकास से ही हमारे जीवन में सुविधाएं उपलब्ध हो पाती हैं और हमारा जीवन स्तर ऊँचा होता है। एक कार निर्माता को कारखाना लगाने के लिए पहले भारी पूंजी जुटानी होती है वह अपने देश और विदेश से धन एकत्र करता है फिर उसकी उत्पादित कारों के लिए विश्व का बाजार चाहिये वरना उसका उत्पादन सीमित रह जायेगा और सीमित उत्पादन से कारखाने की लागत के खर्चे, उत्पादन में नियोजित श्रम एवं मशीनरी की मेंटीनेंस के खर्चे पूरे न हो पाने के कारण कारखाने को चलाते रहना असम्भव हो जायेगा। इसी प्रकार सभी कारखाने विश्व समुदाय के सहयोग से ही चल पाते हैं और वस्तुओं की कीमत हर इंसान की पकड़ में आ पाती है।
         कारखानों के अतिरिक्त आज एक और विकास की ओर मानव उत्सुकता से देख रहा है। वह है ब्रह्मांड की खोज उसकी सौर मंडल की जानकारी और यह अध्ययन किसी एक देश के बूते के बाहर है अनेकों गृहों पर अपने यान भेजना, उपग्रह भेजना काफी मंहगे और श्रम साध्य कार्य हैं। अतः अनेक देश एक साथ एक मिशन बनाकर अपने रिसर्च वर्क को अंजाम देते हैं। उसी प्रकार असाध्य रोगों से लड़ने के लिए शोध कार्य सभी देश आपसी सहयोग से मानव जाति के हित के लिए कार्य करते हैं।
              इतिहास उठाकर देखने से ज्ञात होता है पुराने समय में प्रायः अपने देश के अस्तित्व को बचाये रखने के लिए अपनी काफी ऊर्जा व्यय करनी पड़ती थी। यद्यपि रक्षा व्यय अब भी काफी होते हैं परन्तु किसी देश का अस्तित्व खतरे में नहीं रहता क्योंकि अंतर्राष्ट्रीय समुदाय किसी भी देश को अन्य देश पर कब्जा करने नहीं दे सकता है। अतः विश्व समुदाय से अलग हो देश का अस्तित्व भी खतरे में पड़ सकता है।
         यदि मानव सामाजिक प्राणी नहीं होता तो जिस विकास की मंजिल पर आज पहुंचा है, पहुंचना सम्भव था। तुम अकेले अथवा कुछ परिवार मिलाकर क्या कर सकते हो? अपने लिए कपड़े बना सकते हो उसको सिलने के लिए मशीन और बटन तैयार कर सकते हो, मशीन के लिए लोहे के कारखाने और खान से लोहा निकाल सकते हो।क्या तुम खेतीबाड़ी में सभी आवश्यक खाद्य पदार्थ अपने लिए पैदा कर सकते हो, जैसे गेहूं, विभिन्न मसाले, सब्जियां बहु प्रकार के फल पैदा कर पाओगे?  क्या कागज और पैन प्राप्त करने के लिए, जूता तैयार करने के लिए, सोना चांदी उत्पादन, विभिन्न दवाईयां प्राप्त करने के लिए स्वयं कारखाने लगाने के लिए सक्षम हो सकते हो?   टी.वी. फ्रिज, मोबाइल, स्कूटर, कार, मकान के लिए सीमेंट, ईंट, क्या-क्या तुम स्वयं तैयार कर सकते हो? यही कारण है अब एक शहर या गांव तक सीमित नहीं रह गया है, पूरे देश के लिए भी असम्भव हो गया है कि वह स्वयं सब कुछ तैयार कर जनता को विश्व स्तरीय जीवन स्तर दिला सके।
        इसी वजह से भारतीय नेताओं ने, विशेषज्ञों ने विश्व उद्यमियों के लिए भारत में उदारता के द्वार खोले और आर्थिक उन्नति के लिए स्वयं को विश्व समुदाय के साथ जोड़ा जिसने सवतंत्र प्रतिस्पर्द्धा को जन्म दिया। जनता को रोजगार के अवसर प्राप्त हुए और विश्व स्तरीय वस्तुओं का उपयोग करने का मौका मिला, साथ ही देश के कारखानों, बागानों, खेत खलिहानों के लिए विश्व का बाजार मिला ताकि उन्हें उचित कीमत मिल सके और अधिक उत्पादन के अवसर मिल सकें।
      उपरोक्त उदाहरणों से वस्तु स्थिति स्पष्ट हो गयी होगी कि क्यों विश्व सहयोग चाहिये?कोई भी समाज अथवा देश विकास के पथ पर आगे बढ़ना चाहता है तो धार्मिक उदारता को गले लगाना होगा। सभी धर्मों का सम्मान ही विश्व के अन्य धर्म प्रेमियों को जोड़ सकता है। किसी से व्यापार सम्बन्ध बनाने के लिए जातिवाद, कट्टरवाद काम नहीं आ सकता। स्वतन्त्र प्रतिस्पर्द्धा के लिए सभी धर्मों को आमन्त्रित करना होगा। उनकी धार्मिक भावनाओं का ध्यान रखना होगा। उन्हें अपने देश में खुलेपन, दूरदर्शिता का वातावरण प्रदान करना होगा। कोई भी देश अपनी शर्तों पर दूसरे देश से स्वछन्द व्यवहार नहीं कर सकता।  आज विश्व में विकसित देशों के अनेक उदाहरण मौजूद हैं, जो ‘सर्वधर्म सम्भाव’ का उदाहरण बनकर विकसित हुए हैं। अमेरिका, ब्रिटेन अन्य यूरोपीय देश सभी निष्पक्ष न्याय एवं व्यवहार में विश्वास करते हैं। स्वयं ईसाई होते हुए भी सभी अन्य धर्मानुयायी वहाँ निवास करते हैं जिन्होंने वहाँ के विकास में महत्वपूर्ण योगदान दिया है। अमेरिका में अनेक उच्च श्रेणी के वैज्ञानिक, डॉक्टर, इंजीनियर, राजनीतिज्ञ भारतीय मूल के हिन्दू या मुसलमान हैं। खाड़ी के देशों का उदाहरण सबके सामने हैं, जिस देश ने धार्मिक उदारता दिखाई विकसित श्रेणी के देशों में खड़ा हो गया जैसे कुवैत, यूएसई, ओमान, बहरीन, कतर इत्यादि सभी मुस्लिम देश हैं परन्तु अपनी उदारता के कारण सर्वसाधन सम्पन्न हो गये। जबकि ईरान, ईराक, अफगानिस्तान, पाकिस्तान, सउदी अरब अपनी कट्टरता को न छोड़ पाने के कारण आज भी विकसित नहीं हैं। जबकि ईरान, इराक, सउदी अरब के पास अकूत तेल सम्पदा है। अफगानिस्तान के पास प्राकृतिक सम्पदा की कोई कमी नहीं है परन्तु कट्टरता के कारण अशांत क्षेत्र है और अविकसित है। अतः धार्मिक उदारता ही विकास की सीढ़ी पर चढ़ने का मौका दे सकती है। क्योंकि विश्व में अब राजतन्त्र के दिन लद चुके हैं। धीरे-धीरे सभी देश लोकतंत्र की ओर बढ़ रहे हैं। लोकतन्त्र अर्थात जनता के वोट पर आधारित सरकारी तंत्र।
            अतः यह आवश्यक हो जाता है कि जनता के प्रत्येक वर्ग, प्रत्येक धर्म का सम्मान किया जाये। प्रत्येक देश के लिए धर्मनिरपेक्ष होना आवश्यक होता जा रहा है। देश के कोने-कोने में शांति और विकास की लहर लाने के लिएधार्मिक उदारता मुख्य मार्ग है।(SA-105D)
-     सत्य शील अग्रवाल,   शास्त्री नगर मेरठ