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सोमवार, 29 जून 2015

क्या वर्तमान दौर में भी तनाव मुक्त जीवन जी पाना संभव है?




        वर्तमान भौतिकवादी युग में जहाँ हर स्तर पर गला काट प्रतिस्पर्द्धा हो रही है.प्रत्येक व्यक्ति कम से कम समय में अधिक से अधिक सुख सुविधाएँ जुटा  लेना चाहता है,समाज में अपने स्तर को निरंतर ऊंचाइयों पर देखना चाहता है,जो उसे दुनिया की चूहा दौड़ में शामिल होने को मजबूर करता है और इन्सान निरंतर तनाव का शिकार हो रहा है. स्वस्थ्य और सकारात्मक विचारों का स्थान ईर्ष्या, द्वेष, क्रोध, लालच, धोकाधडी, हिंसा जैसी दुर्भावनाओं ने ले लिया है जो स्वयं हमें सर्वाधिक नुकसान पहुंचा रहे हैं,और समाज को छिन्न भिन्न करके रख दिया है. तनाव के कारण अनेक मानसिक रोगों के साथ साथ शरीरिक रोग भी अपना बसेरा डालते जा रहे हैं,जिनमे मुख्य तौर पर मधुमेह, केंसर, उच्च रक्तचाप, थाइरोइड जैसे गंभीर रोग  भी  शामिल हैं.  खान पान, जल वायु सभी कुछ प्रदूषित हो चुका है, रहन सहन में कृत्रिमता आ गयी है,जिसने अनेक प्रकार की शारीरिक व्याधियों को जन्म दिया है.हर समय तनाव में रहने के कारण मानसिक स्वास्थ्य बिगड़ता जा रहा है.आज दुनिया में हर तीसरा व्यक्ति डिप्रेशन अर्थात अवसाद का शिकार हो चुका है.इसके अतिरिक्त भी शरीर में अनेक प्रकार की मानसिक बीमारियाँ बढती जा रही है.बढ़ते भौतिक वाद ने आम व्यक्ति को असुरक्षित कर दिया है उसे हर वक्त चिंता रहती है की आज जो काम वह कर रहा है उसका भविष्य क्या होगा?क्या यह कार्य उसे भविष्य में भी इतने ही साधन प्रदान करता रहेगा जो आज दे रहा है? कब उसका जीवन स्तर वर्तमान जीवन स्तर से नीचे आ जायेगा? यह प्रश्न भी तीन चौथाई लोगों के असंतोष का कारण बनता जा रहा है.नित्य समाज में अनेक प्रकार के संघर्ष को देखना पड़ता है.रिश्ते नातेदार भी एक दूसरे के लिए संवेदनहीन होते जा रहे हैं, हर तरफ षड्यंत्र की बू आने लगी है.सब एक दूसरे को नीचा दिखने तो तत्पर हो रहे हैं.अपनी उन्नति के लिए किसी भी हद तक जाने को तैयार हैं.ऐसे वातावरण में कोई भी अपने मन को शांत कैसे रख सकता है.
     आज हम भौतिक सुख सुविधाएँ जुटा कर ख़ुशी ढूँढने का प्रयास करते हैं.क्या भौतिक वस्तुओं से प्राप्त ख़ुशी स्थायी होती है.सभी भौतिक वस्तुओं से हमें जो ख़ुशी प्राप्त होती है वह क्षणिक होती है.मेरा कहने का तात्पर्य है मान लीजिये आपने घर में नया टी वी लिया है जो बिलकुल नयी तकनिकी के अनुसार तैयार किया हुआ है निश्चित ही घर में ख़ुशी का माहौल बनेगा, या नयी कार खरीद लेते हैं तो अवश्य ही कुछ दिनों तक हमें अत्यंत ख़ुशी का अहसास होगा, तत्पश्चात यह ख़ुशी सामान्य व्यव्हार में आ जाएगी और हमारा उत्साह भी समाप्त हो जायेगा. इसी प्रकार से अन्य खुशियाँ भी समय के साथ विलुप्त हो जाती हैं.कभी कभी तो सारी खुशिया प्राप्त करके भी हमें बोरियत होने लगती है.यही वजह है सर्व साधन संपन्न व्यक्ति भी अवसाद का शिकार होते रहते हैं यदि भौतिक सुखो से ख़ुशी प्राप्त होती तो धनाड्य व्यक्ति कभी आत्महत्या नहीं करते और गरीब लोग कभी खुश नहीं रह पाते.गरीब लोग भी समय समय पर प्रसन्नता परिलक्षित करते हैं कुछ गरीब तो अपनी स्थिति से पूर्णतयः संतुष्ट देखे जा सकते हैं.इससे सिद्ध होता है विलासिता पूर्ण जीवन या भौतिक वस्तुएं ख़ुशी का स्थायी माध्यम नहीं हैं.असली ख़ुशी हमारे अंतर्मन में होती है, यदि हम अपने मन में सकारात्मक विचारों को पनपने का अवसर दे और निगेटिव विचारों को मन में न आने दें या मन में बैठे निगेटिव विचारों को निकल पायें, तो हम हर हाल में खुश रह सकते हैं और अपने सभी कार्य पूरी शक्ति से अधिक सक्षमता के साथ कर सकते हैं.
1,पराधीन ख़ुशी;-
             हमें लगता है जब हमारे परिजन अर्थात बेटा बेटी, माता पिता या भाई बहन खुश होंगे तो हम भी खुश हो जायेंगे.यानि की हमारी ख़ुशी परिवार के अन्य सदस्यों पर निर्भर हो जाती है. हम वही कार्य करने का प्रयास करते हैं जिससे हमारे प्रियजन खुश हो जाएँ,महिला बढ़िया भोजन इसलिए बनती है ताकि सब खुश होकर उसकी तारीफ करेंगे और वह खुश हो जाएगी,बच्चे इसलिए पढाई करते हैं जिससे उसके बड़े उनसे खुश रहे वे उन्हें डाटें नहीं. परिवार का मुखिया अधिक से अधिक धन एकत्र कर परिवार के लिए सुविधाएँ जुटाने का प्रयास करता ताकि परिवार के सभी सदस्य खुश रहें, तो वह भी खुश होगा.अर्थात हम जो कार्य करते हैं वह परिवार के सदस्यों को खुश देखने के लिए,कोई भी कार्य अपनी ख़ुशी के लिए नहीं करते यदि आपके कार्य से परिवार के लोग संतुष्ट नहीं होते तो आप भी दुखी हो जाते हैं और आपकी कार्य क्षमता घट जाती है,आपका उत्साह ठंडा हो जाता है
2, सुख और दुःख में तटस्थ जीवन,
                             अक्सर हम भौतिक सुख और दुखों से सुख और दुःख का अनुभव करते हैं.यदि कोई अपना परिजन या मित्र विपदा में होता है बीमार होता है तो हम अपना मानसिक संतुलन iखो बैठते हैं.अर्थात अत्यंत दुखी हो जाते हैं जो हमारे शरीर की ऊर्जा को नष्ट कर देता है हम कमजोर पड़ जाते हैं. कभीi कभी तो  इतनी हिम्मत भी नहीं रहती की उस बीमार या आपदा ग्रस्त व्यक्ति की आवश्यकता के अनुसार उसकी सहायता कर सकें, उसे उचित चिकित्सा दिला सकें.हमारा उसके प्रति लगाव तो उचित है परन्तु यदि हम स्वयं भी उसकी स्थिति तो देख कर विचलित हो जाते हैं, आत्म नियंत्रण खो बैठते हैं, तो हमारी मनः स्थिति उसके लिए हानिकारक हो सकती है. अतः दुखी होना स्वाभाविक है परन्तु अपने मन को विचलित कर देना हानिकारक हो सकता है.हमारे अन्दर ऊर्जा बनी रहेगी तो हम विपदा ग्रस्त मित्र या परिजन की सहायता कर पाएंगे और उसे स्वास्थ्य लाभ के अवसर आसानी से दे सकेंगे. अतः सुख और दुःख को अस्थायी मान कर मन को स्थिर रखने का प्रयास करना चाहिए, सुख में अत्यधिक खुश होना और दुःख में अपना मानसिक संतुलन खो देना या विचलित हो जाना स्वयं के लिए,परिवार के लिए और समाज के लिए भी हानिकारक है.किसी भी विपदा का सामना धैर्यता और साहस से ही किया जा सकता है और विपदा के समय साहस और धैर्यता जुटाने  लिए शरीर को शक्ति की आवश्यकता होती है.यह भी समझना आवश्यक  है की किसी भी विपदा से निकलने के लिए हम अपनी शक्ति से ही यथा संभव निकलने की चेष्टा कर सकते है.यदि परिस्थितियों पर हमारा कोई नियंत्रण नहीं है तो उसके लिए परेशान  होने से कोई हित होने वाला नहीं है.शांत मन से ही समस्या का समाधान खोजा जा सकता है,मन को स्थिर रख कर ही हम परिस्थितियों पर नियंत्रण रखने का प्रयास कर सकते हैं, जिसके लिए शारीरिक और मानसिक ऊर्जा की आवश्यकता होती है.
     उपरोक्त कथन का यही तात्पर्य है की हमें स्वास्थ्य एवं सुखी जीवन जीने के लिए आत्म नियंत्रण करना अत्यंत आवश्यक है.अपनी भावनाओं और आवेगों अर्थात क्रोध, इर्ष्या, द्वेष, साजिश, प्रतिद्वाद्विता इत्यादि पर विजय पानी होगी,ताकि हमारी कार्यक्षमता बनी रहे ,और तनाव ग्रस्त जीवन से मुक्ति मिल सके.(SA-166C)

सोमवार, 22 जून 2015

कितनी सुरक्षित है महिला ?





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     समस्त विश्व में हो रहे तेजी से विकास की दौड़ में शामिल होते हुए ,भारत में सैंकड़ों वर्षों से दबी कुचली महिला वर्ग    ने आत्म सम्मान पाने,और घरेलू शोषण से मुक्ति पाने का बीड़ा उठाया. महिला वर्ग ने शिक्षा प्राप्त कर ,विभिन्न क्षेत्रों में पुरुषों से कंधे से कन्धा मिलाकर चलना प्रारंभ किया. आज वह आर्थिक मोर्चे पर भी परिवार का सहयोग कर रही है ,उसने प्रत्येक कार्य क्षेत्र में अपनी पैठ बनायीं है.और अपने को बेहतर साबित किया है .परन्तु वह आज भी अपनी सुरक्षा को ले कर आश्वस्त नहीं हो पा रही है.उसके प्रति नित्य होने वाले अपराध उसकी उन्नति में बाधक बन रहे हैं , कभी वह कार्यालय से आते हुए बलात्कार की शिकार होती है , तो कभी सड़क पर चलते ,लोकल बस या ट्रेन में सफ़र करते ,लिफ्ट में सवारी करते .यहाँ तक की ऑफिस या कारखाने में ही बलात्कार , छींटा कशी , छेड़ खानी की शिकार होती रहती है .वह कभी अपने ही घर में पुरुष वर्ग के शोषण की शिकार होती थी ,आज शहर या गाँव के सुनसान क्षेत्रों में बदनीयती की शिकार होती है ..2006 में एकत्र किये गए आंकड़ों (इंटरनेट से प्राप्त ) के अनुसार,हमारे देश में , मात्र एक वर्ष में करीब बीस हजार केस बलात्कार और करीब छतीस हजार छेड़खानी के केस प्रकाश में आए ,करीब इतने ही केस ऐसे होंगे जो दर्ज हुए ही नहीं यानि जिनकी शिकायत दर्ज ही नहीं की गयी .उपरोक्त आंकड़ों में प्रतिवर्ष बढ़ोतरी ही हो रही है. ये आंकड़े समस्या की भायवहता को उजागर करते हैं आए दिन होने वाली महिलाओं के साथ अप्रिय घटनाओं की जिम्मेदार शासन व् प्रशासन को माना जाता है .कुछ हद तक प्रशासन को जिम्मेदार मानना उचित भी है. यह भी सत्य है , की ,आज हमारा पुलिस तंत्र संवेदनहीन एवं भ्रष्ट आचरणों का शिकार है.वह नागरिकों के लिए सहयोगी कम, प्रताड़ना का पर्याय अधिक बना हुआ है. जिस कारण वह अपने दायित्व को निभा पाने में नाकामयाब रहता है, उसकी उदासीनता और कर्तव्य के प्रति लापरवाही अपराधी के लिए अपराध करने का प्रेरणा स्रोत बन गयी है ,वह भय मुक्त हो गया है.  और अन्य अपराधिक गतिविधियों के साथ, महिलाओं के साथ भी दुर्व्यवहार की घटनाएँ बढ़ रही हैं. परन्तु आम आदमी की मानसिकता में बदलाव लाना भी आवश्यक है,उसमे जागरूकता लानी होगी,ताकि वह नारी को सिर्फ उपभोग का सामान समझना छोड़, उसे भी अपनी भांति एक इन्सान मान कर उसका सम्मान करना सीखे .उसकी इच्छाओं एवं भावनाओं की कद्र करना सीखे ..कभी भी किसी महिला के साथ हो रहे अत्याचार ,दुर्वयवहार की अनदेखी न कर ,पुरजोर विरोध करे ,.अपराधी के इरादों को पस्त करे .महिला की रक्षा करने में अपना सहयोग प्रदान करे .
          कुछ समय पूर्व  महिलाओं के प्रति बढ़ रहे अपराधों को ध्यान में रखते हुए हरियाणा पुलिस के डिप्टी कमिश्नर ने पंजाब शॉप्स एंड कमर्शियल एस्टैब्लिशमेंट एक्ट 1958 के अंतर्गत सभी वाणिज्यिक संस्थानों के नियोजकों को निर्देश जारी किया है, की वे बिना श्रम विभाग की अनुमति के किसी महिला कर्मी को रात्रि आठ बजे के उपरांत न रोकें.यह उचित भी है बीमार होने से अच्छा है उसे बचने के उपायों पर ध्यान दिया जाये .कुछ इस आदेश का विरोध करने वाले लोगों का कहना उचित नहीं लगता की प्रशासन ने अपनी अक्षमता को छुपाने के लिए इस प्रकार का फरमान सुनाया है .देश के प्रत्येक नागरिक को भी अपने कर्तव्य निभाने चाहिए ,सिर्फ शासन ,प्रशासन या पुलिस तंत्र पर जिम्मेदारी छोड़ कर स्वछंदता अपनाना उचित नहीं माना जा सकता .दूसरी तरफ प्रशासन को भी त्वरित तौर पर और निष्पक्षता के साथ अपने कर्तव्यों का निर्वहन करना चाहिए ,पीड़ित व्यक्ति के साथ सहानुभूति का व्यव्हार होना चाहिए . अपराधी में खौफ पैदा होना चाहिए ,ताकि वह किसी भी प्रकार के अपराध करने से पहले सौ बार सोचे किसी भी शासन या प्रशासन के लिए यह संभव नहीं है की वह शहर या देहात के चप्पे चप्पे पर अपनी निगाह बनाये रख सके और अपराधों पर अंकुश लगा सके .अपने देश के पुरुषों की मानसिकता को समझते हुए नारी वर्ग को भी अपने आचार , व्यव्हार, तथा पहनावे में शालीनता बनाये रखना चाहिए . उसे निर्जन स्थानों पर जाने से बचना चाहिए . सब कुछ कानून के या पुलिस तंत्र के भरोसे छोड़ देना उचित नहीं है . आखिर उसकी इज्जत का सवाल है .पहले महिला की इज्जत तार तार होती है , फिर प्रशासन पर आरोप लगते हैं और उसकी कार्यवाही शुरू होती है .परन्तु उसकी इज्जत को कदापि नहीं लौटा सकता .अतः अपनी सुरक्षा का दायित्व सर्वप्रथम स्वयं नारी का है.
निम्न लिखित उपाय यदि कोई महिला अपना ले तो काफी हद तक अपनी सुरक्षा स्वयं कर सकती है
1,अपने वस्त्राचरण पर ध्यान दे,उत्तेजक एवं तन दिखाऊ वस्त्रों से परहेज करे कम से कम सार्वजानिक स्थलों पर.
2,आत्म रक्षा के उपायों के रूप में जुडो कराते ka अभ्यास करे .जो उसका आत्म विश्वास भी बढ़ाएगा ,और शरारती तत्वों में खौफ भी पैदा करेगा
3,प्रत्येक महिला को अपने घर से बाहर निकालने से पूर्व अपने पर्स में पीसी हुई मिर्ची,या स्प्रे  रखनी चाहिए जो आपदा की स्तिथि में उसके काम आ सकें .
4.अपने साथ होने वाले किसी भी दुर्व्यवहार की जानकारी अपने परिजनों एवं पुलिस को अवश्य दें ताकि अवांछनीय लोगों के हौसले न बढ़ें, और दोषी को उपयुक्त सजा मिल सके
5.
जहाँ तक संभव हो निर्जन स्थानों पर अकेले न जाएँ , तथा रात्रि के समय कहीं भी अकेले जाने से बचें
    इस प्रकार यदि प्रशासन के साथ महिलाएं भी सहयोग करें तो अवश्य ही शर्मनाक स्तिथियों से बचने में सफलता मिलेगी .महिलाएं स्वतन्त्र होकर अपने कार्यों को आगे बढा सकेंगी.और समाज के विकास में अपना योगदान दे सकेंगी <script src="https://www.gstatic.com/xads/publisher_badge/contributor_badge.js" data-width="88" data-height="31" data-theme="light" data-pub-name="Your Site Name" data-pub-id="ca-pub-00000000000"></script>
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