रविवार, 29 जनवरी 2012
नारी स्वयं नारी के लिए संवेदनहीन क्यों?
ला संगठनों का निर्माण हुआ महिला समाज ने अपने शोषण के विरुद्ध आवाज उठाई , और समानता के अधिकार पाने के लिए संघर्ष प्रारंभ किया . यद्यपि महिलाओं की स्तिथि में बहुत कुछ परिवर्तन आया है ,पुरुष वर्ग की सोच बदली है .परन्तु मंजिल अभी काफी दूर प्रतीत होती है.अभी भी सामाजिक सोच में काफी बदलाव लाने की आवश्यकता है . शिक्षा के व्यापक प्रचार प्रसार के बावजूद आज भी महिलाओं की स्वयं की सोच में काफी परिवर्तन लाने की आवश्यकता है .उनकी निरंकुश सोच महिलाओं को सम्मान दिला पाने में बाधक बनी हुई है .नारी स्वयं नारी का सर्वाधिक अपमान एवं शोषण करते हुए दिखाई देती है .
कुछ ठोस प्रमाण नीचे प्रस्तुत हैं जो संकेत देते हैं की महिला अपने तुच्छ स्वार्थ के लिए अपने महिला समाज का कितना अहित करती रहती हैं ?
उदहारण संख्या एक
हमारे समाज में मान्यता है “पति परमेश्वर होता है ,अतः उसकी सभी गलत या सही बातों का समर्थन करना पत्नी का कर्त्तव्य है ” इस मान्यता को पोषित करने वाली महिला , जो ऑंखें मूँद कर अपने पति का समर्थन करती है .उसे यह नहीं पता की वह स्वयं अपने पैरों पर कुल्हाड़ी मार रही है . क्योंकि ऐसी महिलाएं अपरोक्ष रूप से पुरुष को चरित्रहीन बनाने एवं महिलाओं के शोषण का मार्ग प्रशस्त कर रही होती हैं .
बहु चर्चित सिने जगत से जुड़े शाईनी आहूजा कांड से सभी परिचित हैं .जिस पर अपनी पत्नी की अनुपस्थिति में अपनी नौकरानी के साथ बलात्कार करने का आरोप सिद्ध हो चुका है .और सात वर्ष की कारावास की सजा भी सुनाई जा चुकी है .उसकी ही पत्नी ने बिना ठोस जानकारी प्राप्त किये या तथ्यों का पता लगाय, अपने पति को सार्वजानिक रूप से अनेकों बार निर्दोष बताती रही बल्कि उसने इसे एक षड्यंत्र का परिणाम बताया .क्या उसे नौकरानी के रूप में एक महिला का दर्द नहीं समझ आया .बिना सच्चाई जाने महिला का विरोध एवं पति का समर्थन क्यों ?क्या यह अपने तुच्छ स्वार्थ के लिए पति के व्यभिचार पर पर्दा डालना उचित था ?क्या इस प्रकार से नारी समाज को शोषण से मुक्ति मिल सकेगी ?क्या पुरुष वर्ग अपनी सोच में बदलाव लाने को मजबूर हो पायेगा ?
उदाहरण संख्या दो ;
अनेक लोगों के दांपत्य जीवन में ऐसी स्तिथि बन जाती है की उनके संतान नहीं होती क्योंकि किसी कारण पति या पत्नी संतान सुख पाने में असमर्थ होते हैं. इसका कारण पति या पत्नी कोई भी हो सकता है. परन्तु हमारे समाज में दोषी सिर्फ महिला को ठहराया जाता है .परिवार की महिलाएं ही जैसे जिठानी ,सास या फिर ननद , उसे बाँझ कहकर अपमानित करती हैं .ये महिलाएं अपने घर की महिला सदस्य के साथ अन्याय एवं अमानवीय व्यव्हार करने में जरा भी नहीं हिचकिचाती .और तो और वे पोता या पोती की चाह में पुत्र वधु से पिंड छुड़ाने के अनेकों उपक्रम करती हैं .उस पर झूंठे आरोप लगाकर समस्त परिवार की नज़रों में गिराने का प्रयास करती हैं .यदि सास कुछ ज्यादा ही दुष्ट प्रकृति की हुई , तो उसकी हत्या करने की योजना बनाती है , या उसे आत्महत्या करने के लिए करने उकसाती है .ताकि वह अपने बेटे का दूसरा विवाह करा सके . यही है एक महिला की महिला के प्रति बर्बरता का व्यव्हार ..
अगर वह मानवीय आधार पर सोचकर समाधान निकलना चाहे तो अनाथ आश्रम से या किसी गरीब दंपत्ति से बच्चा गोद लेकर अपनी उदारता का परिचय दे सकती है .इस प्रकार से किसी गरीब का भी भला हो सकता है , और परिवार में बच्चे की किलकारियां भी गूंजने लगेंगी . साथ ही महिला सशक्तिकरण का मार्ग भी पुष्ट होगा, और मानवता की जीत .
उदाहरण संख्या तीन
परिवार में लड़का हो लड़की , माता या पिता के हाथ में नहीं होता .परन्तु यदि परिवार में पुत्री ने जन्म लिया है तो जन्म देने वाली मां को ही जिम्मेदार माना जाता है .अर्थात एक महिला ही दोषी मानी जाती है ..यदि किसी महिला के लगातार अनेक पुत्रियाँ हो जाती हैं तो उसका अपमान भी शुरू हो जाता है .एक प्रकार पुत्री के रूपमें महिला के आने पर एक मां के रूप में महिला को शिकार बनाया जाता है . मजेदार बात यह है ,उस मां के रूप में महिला का अपमान करने वालों में परिवार की महिलाएं यानि सास ,ननद ,जेठानी इत्यादि ही सबसे आगे होती हैं . यदि घर की वृद्ध महिला चाहे तो परिवार में आयी बेटी का स्वागत कर सकती है .एक महिला के आगमन पर जश्न मना सकती है .और पुरुष वर्ग को कड़ी चुनौती दे सकती है .जब एक महिला ही एक महिला के दुनिया में आगमन पर स्वागत नहीं कर सकती तो पुरुष वर्ग कैसे उसे सम्मान देगा?.
कन्या भ्रूण हत्या भी महिला समाज का खुला अपमान है ,जो बिना नारी (जन्म देने वाली मां )की सहमति के संभव नहीं है .भ्रूण हत्या में सर्वाधिक पीड़ित महिला ही होती है . अतः परिवार की सभी महिलाएं यदि भ्रूण हत्या के खिलाफ आवाज उठायें तो पुरुष वर्ग कुछ नहीं कर पायेगा . उसे पुत्री के रूप में संतान को स्वीकारना ही पड़ेगा . महिला के आगमन (बेटी ) का स्वागत सम्पूर्ण महिला वर्ग का सम्मान होगा .
उदाहरण संख्या चार ;
किसी परिवार में जब कोई उच्च शिक्षा प्राप्त बहु आती है तो परिवार की वृद्ध महिलाओं को अपने वर्चस्व के समाप्त होने का खतरा लगने लगता है , उन्हें अपने आत्मसम्मान को नुकसान पहुँचने की सम्भावना लगने लगती है . अतः परिवार की महिलाएं ही सर्वाधिक इर्ष्या , उस नवागत महिला से करने लगती हैं .और समय समय पर नीचा दिखाने के उपाए सोचने लगती हैं .उस नवआगंतुक महिला को अपना प्रतिद्वंदी मानकर उसके खिलाफ मोर्चा खोल देती हैं . उसकी प्रत्येक गतिविधि पर परम्पराओं की आड में अंकुश लगाकर अपना बर्चस्व कायम करने का प्रयास करती हैं .ऐसे माहौल में नारी समाज का उद्धार कैसे होगा ?कैसे महिला समाज को सम्मान एवं समानता का अधिकार प्राप्त हो सकेगा ?
यदि परिवार की सभी महिलाएं नवागत उच्च शिक्षा प्राप्त बहु का स्वागत करें ,उससे विचारों का आदान प्रदान करें ,समय समय पर उससे सुझाव लें , तो अवश्य ही अपना और अपने परिवार का और कालांतर में सम्पूर्ण नारी समाज के कल्याण का मार्ग प्रशस्त हो सकता है .शिक्षित महिला; महिला उत्थान अभियान मेंअधिक प्रभावीतरीके से योगदान दे सकती है .एवं समपूर्ण महिला समाज को शोषण मुक्त कर सकती है . अतः नवागंतुक शिक्षित महिला का स्वागत करना , नारी समाज के लिए हितकारी साबित हो सकता है .
उदहारण संख्या पांच ;
प्रत्येक वर्ष आठ मार्च को महिला दिवस मनाया जाता है ,परन्तु उसी दिन एक गुंडा सारे बाजार एक महिला के सीने में गोलियां दाग देता है ,उपस्थित भीड़ सम्पूर्ण नारी समाज एवं पुरुष समाज मौन खड़ा देखता रह जाता है .और हत्यारा बिना किसी विरोध के निकाल भाग जाता है .
घटना आठ मार्च 2011 की है . सम्पुर्ण विश्व महिला दिवस मना रहा था .और दिल्ली में राधा तंवर नाम की लड़की जो दिल्ली विश्व विद्यालय की छात्र थी, को एक गुंडा अपना लक्ष्य बनता है और सारे आम हत्या करके चला जाता है .उस छात्र का कुसूर यह था की वह अपने तथाकथित प्रेमी गुंडे से प्यार नहीं करती थी अर्थात उसका प्रेम प्रस्ताव उसे स्वीकार नहीं था .जब वह बार बार उसके द्वारा परेशान किये जाने की शिकार होती है तो उसने अपनी दिलेरी दिखाते हुए थप्पड़ जड़ दिया . बस उसी के प्रतिशोध में उसने उसकी हत्या कर दी . इससे स्पष्ट है आज भी किसी महिला को अपने जीवन साथी के रूप में लड़का पसंद या नापसंद करने का अधिकार नहीं है,किसी के प्रेम प्रस्ताव को ठुकराने का हक़ नहीं है .यही कारण था की उसकी दिलेरी (थप्पड़ मरना ) का जवाब मौत के रूप में मिला . पुलिस को सब कुछ मालूम होते हुए भी हत्यारे को पकड़ने में कै दिन लग गए . महिला समाज चुप चाप तमाशा देखता रहा.बल्कि अनेक महिलाओं ने छात्रा को ही चरित्रहीन होने का संदेह व्यक्त कर एक महिला का अपमान किया .
उदहारण संख्या छः ;
जब कोई दुष्कर्मी किसी महिला का बलात्कार करता है तो बलात्कारी को सजा मिले या न मिले वह दरिंदा पकड़ा जाये या न पकड़ा जाये ,परन्तु बलात्कार की शिकार ,महिला को अवमानना का शिकार होना तय है .उस पीडिता को सर्वाधिक अपमानित उसके अपने परिवार की एवं समाज की महिलाएं हि करती हैं . उसे चरित्रहीन का ख़िताब भी दे दिया जाता है . वह समाज के ताने सुन सुन कर आत्मग्लानी का अनुभव करती रहती है ,उसे अपना जीवन दूभर लगने लगता है .जबकि उसने कोई अपराध नहीं किया है.अपने परिवार की बदनामी के डर से पति सहित सम्पूर्ण महिला समाज ,बलात्कारी को दंड देने के लिए कानूनी प्रक्रिया का सहारा लेने से भी घबराते हैं .इसी कारण बलात्कार के आधे से अधिक केस अदालतों तक भी नहीं पहुँच पाते और बलाताकरी के हौसले बढ़ जाते हैं .इस प्रकार से पुरुषों को दुराचार करने को बढ़ावा मिलता है. क्यों महिला समाज , पीडिता के साथ सहानुभूति रखते हुए उसे कानूनी इंसाफ की लडाई के लिए तैयार करता ,उसे हिम्मत दिलाता ?
पीडिता यदि अविवाहित है तो उसे विवाह करने को कोई पुरुष आगे नहीं आता , क्योंकि उसे जूठन मनाता है .परन्तु किसी पुरुष को अपनी पड़ोसन , जो की शादी शुदा है अर्थात विवाहित महिला , से प्रेम की पींगे बढ़ाने में कोई हिचक नहीं होती, क्यों ?.क्या विवाहित प्रेमिका जूठन नहीं हुई? ऐसे दोहरे मापदंड क्यों ?
उदहारण संख्या सात ;
एक महिला दूसरी महिला के लिए कितनी संवेदनहीन होती है इसके अनेको उदाहरण विद्यमान हैं .अनेक युवतियां अपना विवाह न हो पाने की स्तिथि में अथवा अपनी मनपसंद का लड़का न मिलने पर किसी विवाहित युवक से प्रेम प्रसंग करती है और बात आगे बढ़ने पर उससे विवाह रचा लेती है .उसके क्रिया कलाप से सर्वाधिक नुकसान एक महिला का ही होता है .एक विवाहिता का परिवार बिखर जाता है उसके बच्चे अनाथ हो जाते हैं .जिसकी जिम्मेदार भी एक महिला ही होती है .फ़िल्मी हस्तियों के प्रसंग तो सबके सामने ही हैं .जहाँ अक्सर फ़िल्मी तारिकाएँ शादी शुदा व्यक्ति से ही विवाह करती देखी जा सकती हैं. ऐसी महिलाये सिर्फ अपना स्वार्थ देखती हैं जिसका लाभ पुरुष वर्ग उठता है .महिला समाज कोयदि समानता का अधिकार दिलाना है, तो अपने महत्वपूर्ण फैसले लेने से पहले सोचना चाहिए की उसके निर्णय से किसी अन्य महिला पर अत्याचार तो नहीं होगा ,उसका अहित तो नहीं हो रहा.
.उदहारण संख्या आठ ;
त्रियाचरित्र ,महिलाओं में व्याप्त ऐसा अवगुण है जो पूरे महिला समाज को संदेह के कठघरे में खड़ा करता है ,कुछ शातिर महिलाएं त्रियाचरित्र से पुरुषों को अपने माया जाल में फंसा लेती हैं और अपना स्वार्थ सिद्ध करती रहती हैं ,शायद अपनी इस आडम्बर बाजी की कला को अपनी योग्यता मानती हैं . परन्तु उनके इस प्रकार के व्यव्हार से पूरे महिला समाज का कितना अहित होता है उन्हें शायद आभास भी नहीं होता .उनके इस नाटकीय व्यव्हार से पूरे महिला समाज के प्रति अविश्वास की दीवार खड़ी हो जाती है . जिसका खामियाजा एक मानसिक रूप से पीड़ित महिला को भुगतना पड़ता है . परिश्रमी ,कर्मठ ,सत्चरित्र परन्तु मानसिक व्याधियों की शिकार महिलाएं अपने पतियों एवं उनके परिवार द्वारा शोषित होती रहती हैं .क्योंकि पूरा परिवार उसके क्रियाकलाप को मानसिक विकार का प्रभाव न मान कर उस की त्रियाचरित्र वाली आदतों को मानता रहता है .इसी भ्रम जाल में फंस कर कभी कभी बीमारी इतनी बढ़ जाती है की वह मौत का शिकार हो जाती है .
अतः प्रत्येक महिला को अपने व्यव्हार में पारदर्शिता लाने की आवश्यकता है. साथ ही पूरे नारी समाज को तर्क संगत एवं न्यायपूर्ण व्यव्हार के लिए प्रेरित करना चाहिए,तब ही नारी सशक्तिकरण अभियान को सफलता मिल सकेगी .
उदहारण संख्या नौ;
हमारे समाज में महिलाएं परम्पराओं के निभाने में विशेष रूचि रखती हैं .परम्पराओं के नाम पर न्याय ,अन्याय , शोषण ,मानवता सब कुछ भूल जाती हैं .परंपरा के नाम पर प्रत्येक महिला अपनी सास द्वारा किये गए ,दुर्व्यवहार ,असंगत व्यव्हार को ही अपनी पुत्र वधु पर थोप देती है .शायद उसके मन में दबी भड़ास को निकालने का यह उचित अवसर मानती है .और शोषण का सिलसिला जारी रहता है .इसी प्रकार ननद द्वारा किये जा रहे असंगत व्यव्हार को अपने मायेके में जाकर अपनी भावज पर लागू करती है और आत्म संतुष्टि का अहसास करती है.परन्तु . उसका जीना हराम करदेती है . यदि इन असंगत परम्पराओं को तोड़ कर नारी समाज बाहर नहीं आयेगा ,अपने व्यव्हार में मानवता को प्रमुखता नहीं देगा तो नारी उत्थान कैसे संभव हो पायेगा ?
उदहारण संख्या दस ;
परिवार में वृद्ध महिलाओं की रूचि नारी समाज को शोषण मुक्त करने में नहीं होती . वे चाहती हैं की परिवार में उनका बर्चस्व बना रहे .यही वजह है नवविवाहित दुल्हन को सास द्वारा सख्त निर्देश जारी किये जाते हैं , की महिलाओं की बातें सिर्फ महिलाओं तक ही सिमित रहनी चाहिए . किसी भी रूप में परिवार के पुरुषों तक घरेलु घटनाक्रम की जानकारी नहीं पहुंचनी चाहिए जब भी बात बतानी है उसे घर की सबसे बड़ीमहिला अर्थात सास ही बताएगी .क्योंकि वे भी जानती हैं की बहुत सी तर्कहीन बातों को पुरुष वर्ग सहन नहीं करेगा और उसकी प्रतिक्रिया से महिला के बर्चस्व पर आघात हो सकता है.नवागंतुक महिला के शोषण की योजना घर की बड़ी महिला द्वारा ही रची जाती है .यदि यह सही मान भी लिया जाय की घर की बड़ी महिला को अपना अधिपत्य ज़माने का पूर्ण अधिकार है , परन्तु तर्क हीन बातों से मुक्त होना भी आवश्यक है . ताकि कोई भी महिला शोषण का शिकार न हो पाए . महिलाओं में आपसी एक जुटता रहेगी , तो पुरुष वर्ग से अपने संघर्ष को जल्द मुकाम मिल सकेगा . महिला वर्ग को शोषण से मुक्ति एवं समानता का अधिकार ,सम्मान का अधिकार मिल पायेगा.
अंत में मेरा कहने का तात्पर्य यह है की, नारी स्वयं नारी वर्ग के लिए सोचना शुरू कर दे, तो महिलाओं को शीघ्र ही अपना आत्म सम्मान मिल सकेगा.
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शनिवार, 21 जनवरी 2012
भ्रष्टाचार क्यों बन गया शिष्टाचार ( नेताओं की सोची समझी साजिश का परिणाम)
सैंकड़ों वर्षों के संघर्ष के पश्चात् हमारे देश को विदेशी दस्ता से मुक्ति मिली और स्वदेशी नेताओं ने सत्ता की बागडोर अपने हाथ में संभाली.आजादी के पश्चात् जब संविधान तैयार किया गया तो देश में गणतंत्र की घोषणा की गयी अर्थात जनता की सरकार, जनता द्वारा चुनी गयी सरकार, ,जनता के हितों के लिए कार्य करेगी.प्रत्येक पांच वर्ष पश्चात् जनता अपनी राय से नयी सरकार चुनेगी. अतः तत्कालीन सरकार को अपने भविष्य की चिंता सताने लगी. तत्कालीन सत्तारूढ़ पार्टी सदैव के लिए सत्ता में बने रहने के उपाय सोचने लगी,जिसमे चुनावों को जीतने के लिए भी धन की व्यवस्था करना आवश्यक था. साथ ही सत्ता में न रह पाने की स्तिथि में अपनी संतान और अगली पीढ़ी के लिए धन कुबेर भी एकत्र करना था. इन्ही सब कारणों के चलते सत्तारूढ़ पार्टी ने कानूनों की इस प्रकार संरचना की ताकि नेताओं की जेबें भरने के प्रयाप्त अवसर प्राप्त होते रहें. बहुसंख्यक अशिक्षित जनता को लुभावने नारे देते हुए जटिल एवं अव्यवहारिक कानून का निर्माण किया गया. उन्होंने ऐसी व्यवस्था का निर्माण किया जिसमें बेईमान नौकर शाह पारितोषिक और नेताओं का आशीर्वाद प्राप्त करते रहें, इमानदार कर्मी हतोत्साहित किये जाते रहें ताकि नेताओं को अपना कमीशन आसानी से प्राप्त होता रहे.कुछ समय पूर्व स्विस बैंक में जमा भारतीयों की जमा राशी विश्व में सर्वाधिक बताई गयी है. और साथ ही उजागर किया है की 1456 अरब डालर अर्थात करीब साठ हजार अरब रुपये स्विस बैंक में भारतीयों का काला धन जमा है. इन जमा कर्ताओं में बड़े बड़े उद्योगपति,बड़े बड़े नौकर शाह, फ़िल्मी एक्टर,क्रिकेटर,के साथ बड़े बड़े नेता शामिल हैं अब क्योंकि सभी राजनेता इस पवित्र कार्य में संलिप्त हैं, इसीलिए विदेशों में जमा धन की जानकारी मिलने के पश्चात् भी सत्तारूढ़ या विपक्षी पार्टी का कोई भी नेता धन वापस लाने में रूचि नहीं दिखा रहा.हमाम में सब नंगे हैं तो कैसे उजागर हों सबके नाम और कैसे वापस आए काला धन वापस.
एक मोटे अनुमान के अनुसार विदेशों में कुल जमा धन देश पर कुल कर्ज का तेरह गुना है ,अर्थात यदि उस राशी को वापस लाया जा सके तो अपना देश कर्ज मुक्त तो हो ही जायेगा ,बाकी धनराशी का ब्याज ही हमारी पूरी अर्थव्यवस्था को चला पाने में सक्षम होगा और सरकार को कोई टेक्स लगाने की आवश्यकता नहीं रह जाएगी. इस बकाया राशी को दूसरे शब्दों में भी आंका जा सकता है,यथा यह राशी देश की आधी आबादी को लखपति बनाने में सक्षम है.
यहाँ पर अब मैं आपको बताने का प्रयास करूंगा इस भ्रष्टाचार एवं काले धन को पैदा करने के लिए हमारे नेताओं ने किस प्रकार षणयंत्र रच कर देश को लूटा. उन्होंने अपने हितों की रक्षा के लिए भ्रष्टाचार को किस प्रकार पुष्पित पल्लवित किया .किसी ने ठीक ही कहा है ----:अगर जनता सही रस्ते पर जाये तो उसे गलत रस्ते पर ले जाना नेता का काम है
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स्वतंत्र देश के नेताओं द्वारा रचा गया षणयंत्र का खुलासा
आए कर की उच्चतम दरें;---हमारे नेताओं ने अपने स्वार्थ के लिए किस प्रकार भ्रष्टाचार को आमंत्रित किया और प्रत्येक व्यक्ति को उस भ्रष्टाचार में भागीदार बनाया,उसका सबसे बड़ा उदाहरण है, पचास से सत्तर के दशक तक आए कर की उच्चतम दरें, अर्थात उच्चतम स्लेब , नब्बे प्रतिशत तक रखा गया था. इतनी ऊँची दर रखने के पीछे लोकतान्त्रिक सरकार द्वारा चंद लोगों के हाथ में धन संग्रह को रोकने का उद्देश्य बताया गया.और कहा गया सरकार चाहती है,जनता को संसाधनों का बटवारा समान रूप से एवं न्यायपूर्वक हो. आम व्यक्तियों के लिए देखने में मन लुभावन उद्देश्य प्रतीत होता है,परन्तु वास्तविकता कुछ और ही थी. कोई भी उद्योगपति,व्यापारी,कारोबारी तमाम प्रकार के जोखिम लेकर एवं दिनरात एक कर कमाने का प्रयास करता है,और जब वह किसी प्रकार कमा लेता है तो नब्बे प्रतिशत आयेकर के रूप में सरकार की झोली में डाल दे ,तो कमाने के प्रति उसकी इच्छा कितनी बाकी रह जाएगी.क्या यह टैक्स वह सहन कर पायेगा. जाहिर है वह ऐसे उपाय ढूँढेगा जिससे कम से कम आयेकर देकर अपनी मेहनत की कमाई को बचा सके. यही हमारे नेताओं का उद्देश्य था आयेकर पूरा न देने की स्थिति में सरकारी प्रतारणा से बचने के लिए आयेकर अधिकारियों और नेताओं की पूजा करना आवश्यक हो जायेगा.इस प्रकार प्रत्येक कारोबारी को करापवंचन करने को मजबूर किया गया ,फ़िलहाल वही आयेकर की अधिकतम दर तीस प्रतिशत कर दी गयी है.क्यों? क्योंकि अब उनकी योजना की आधार शिला रखी जा चुकी थी..
अन्य अनेक प्रकार के भारी टैक्स ;---आयेकर की भांति ,कस्टम ड्यूटी, एक्साईस ड्यूटी ,बिक्री कर, सभी टैक्स की दरें बहुत ही ऊँची रखी गयीं जो सर्वथा अव्यवहारिक थीं,असंगत थीं. व्यापारी के पास कर अपवंचना के उपाय सोचने के अतिरिक्त कोई चारा नहीं था.कस्टम ड्यूटी दो सौ प्रतिशत और कभी कभी इससे भी अधिक रखी गयी थीं. जिसके कारण तस्करी को बढ़ावा मिला और बड़े बड़े तस्कर खड़े हो गए जो नेताओं के आशीर्वाद से फलते फूलते रहे. इसी प्रकार एक्साईस ड्यूटी व्यापारी के कुल लाभ से भी अधिक वसूली जाती थी और उद्योगपति को कर बचाने के लिए नए नए उपाय बताये जाते थे.जो नेताओं और नौकरशाहों की जेबें भरने में सहायक होते थे. बिक्री कर विशेष तौर पर छोटे दुकानदार को परेशान करने का हथियार रहा है.छोटा दुकानदार अक्सर बिना ब्रांड का स्थानीय निर्मित समान बेचता है जिस पर टैक्स देने की जिम्मेवारी दुकानदार पर होती है और प्रतिद्वंदिता के कारण ग्राहक से टैक्स वसूल पाना संभव नहीं होता. अतः उसे काले धंधे को मजबूर होना पड़ता है और बिक्री कर विभाग के अधिकारियों की जेबे भर कर अपनी जान बचानी पड़ती है.बिक्री कर की दरें भी बारह प्रतिशत या इससे भी अधिक हुआ करती थीं .जो फिलहाल घट कर पांच प्रतिशत तक सिमित रह गयी हैं.परन्तु सरकारी विभागों को इतना खून मुंह लग चुका है, यदि कोई व्यापारी आज सब काम कानूनी तरीके से करे तो भी उसके खाते पास नहीं हो सकते .अधिकारी अपनी कलम की ताकत का प्रयोग कर व्यापारी को परेशान करते हैं. व्यवस्था को इस प्रकार से बिगाड़ा गया, की व्यापारी, उद्योगपति,कारोबारी अपने कार्यों को गैर कानूनी तरीके से करें और नेताओं की जेबें भरते रहें .( अगले ब्लॉग में पढ़ें--किस प्रकार से इन्स्पेक्टर राज चलाया गया,कानूनों को जटिल बना कर आम आदमी के लिए मुसीबतें खड़ी की गयीं एवं सरकारी कर्मियों के वेतन अप्रयाप्त रख कर उन्हें भ्रष्टाचार की गलियों में जाने को प्रेरित किया गया ) सत्य शील अग्रवाल
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सोमवार, 16 जनवरी 2012
रिटेल व्यापारियों का भविष्य ?
सदियों से वस्तु वितरण का कार्य छोटे एवं मझोले व्यापारियों द्वारा किया जाता रहा है .पूरी वितरण प्रणाली व्यापारी अपनी रोजी रोटी का साधन बना कर सम्हालते रहे हैं .पीढ़ियों से उनके वारिस इसी कार्य को अपनी जीविका का साधन बनाते रहे हैं .परन्तु आज स्तिथि बदल चुकी है ,छोटे व्यापारियों एवं उनके व्यापार पर निरंतर आघात हो रहे हैं ,उनके व्यापार को, निरंतर बढ़ रही बेरोजगारी के कारण बढती प्रतिद्वंद्विता ,नित्य उभरते जा रहे मल्टी नेशनल कम्पनियों के बर्चस्व ने बहुत नुकसान पहुँचाया है .दूसरी तरफ बढ़ते भौतिकवाद ने आम इन्सान की आवश्यकतायें बहुत बढा दी हैं ,अतः वर्तमान समय में छोटे व्यापार से परिवार की सभी आवश्यकताएं पूरी करना असंभव होता जा रहा है . यही कारण है नयी पीढ़ी परम्परागत (पैत्रिक ) व्यापार में रूचि नहीं ले रही .यदि कोई युवा मेधावी है तो अच्छी शैक्षिक डिग्री लेकर अच्छी हैसियत की नौकरियां ढूंढ लेता है .
आजकल सरकार भी विदेशी एवं बड़ी कम्पनियों को अनेको सुविधाएँ दे कर आमंत्रित कर रही है जिसके कारण मॉल संस्कृति विकसित होती जा रही है .धीरे धीरे यही मल्टी नेशनल एवं बड़ी कम्पनियां देर सवेर सारे रिटेल कारोबार को हजम कर जाएँगी .और छोटे एवं मझोले व्यापारी बेरोजगार हो जायेंगे .
तेजी से बदल रहे हालातों को भांपते हुए अनेक दूरदर्शी व्यापारियों ने पहले से ही अपनी संतान को अपने व्यापार में न लगा कर किसी अन्य कार्य से सम्बद्ध करने का इरादा बना लिया .और उनकी संतान ने अपनी रोजी के अन्य साधन ढूंढ लिए .अन्य व्यापारियों की नयी पीढ़ी भी अपनी कार्य क्षमता के अनुसार अन्य रोजगार तलाश लेंगे .परन्तु जिन व्यापारियों ने अपना पूरा जीवन अपने छोटे से व्यापार पर निर्भर कर दिया था और वर्तमान में जीवन के अंतिम पड़ाव पर आ चुके हैं ,क्या उनके लिए संभव होगा की वे अपने लिए अन्य कार्य की तलाश करें? .जिन्होंने जीवन भर अपने व्यापार के माध्यम से सरकार के राजकोष की पूर्ती की,क्योंकि बड़े उद्योगों एवं बड़े व्यापार के अभाव में राजस्व एकत्र करने का साधन छोटे छोटे व्यापारी और किसान ही थे ,आज वे व्यापारी ही बेरोजगार होने की दहलीज पर खड़े हैं .उनके पास कोई सरकारी पेंशन की व्यवस्था नहीं है ,(जो हमारे देश में सिर्फ सरकारी सेवा से निवृत कर्मियों को ही उपलब्द्ध है ).उनके भविष्य में भरण पोषण के लिए कोई सरकारी योजना भी नहीं है .यह आवश्यक नहीं होता , सब की संतान आर्थिक रूप से इतनी सक्षम हो की वे अपने बूढ़े माता पिता का भरण पोषण कर पायें ,या सक्षम होते हुए भी सभी पुत्र या पुत्री इतने वफादार हों की अपने माता पिता का भी ख्याल रखते हों और उनके भरण पोषण की जिम्मेदारी स्वयं उठाना चाहते हों .
क्या छोटे व्यापारी ने अपने व्यापार द्वारा जनता की सेवा कर कुछ गलत किया ?क्या छोटे व्यापारियों ने देश के विकास में में योगदान नहीं किया ?क्या उन्होंने अपने व्यापार से सरकारी राजकोष को भरने में अपनी भूमिका नहीं निभाई ? देश के नागरिक होने के नाते क्या उन्हें अपने निष्क्रिय कल में भरण पोषण का अधिकार नहीं है ?क्या हमारी सरकार की जिम्मेदारी सिर्फ सरकारी कर्मियों के बारे में सोचने तक ही है ?क्या सरकार का कर्त्तव्य नहीं है की बड़ी कम्पनियों या विदेशी निवेश को आमंत्रित करने से पहले बेरोजगार होने वाले व्यापारियों के कल्याण के बारे में भी कुछ सोचे ?
सबसे दुर्भाग्य की बात यह है ,देश में मौजूद अनगिनत व्यापारिक संगठन भी बड़े व्यापरियों के हित की बात तो सोचते हैं , अपने छोटे व्यापारी भाईयों के भविष्य के लिए आवाज बुलंद नहीं करते .व्यापरियों का प्रतिनिधित्व करने वाले संगठनों द्वारा अपने छोटे और मझोले सदस्यों के कल्याण के लिए कोई अजेंडा क्यों नहीं बनाते , कोई आन्दोलन क्यों नहीं चलाते?व्यापारी संगठन कम से कम अपने छोटे भाइयों के लिए मांग कर सकते हैं, की आने वाली विदेशी रिटेल कम्पनियों से टैक्स बसूल कर से बेरोजगार होने वाले कारोबारियों के कल्याण के लिए फंड एकत्र करे और व्यापारियों के हित में योजनायें बना कर उन पर खर्च करे .
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सत्य शील अग्रवाल
शनिवार, 31 दिसंबर 2011
पाश्चात्य देशों का अनुसरण कितना उचित?
WITH BEST WISHES OF NEW YEAR 2012 TO ALL MY FRIENDS, NEARS, DEARS
हमारे देश का युवा वर्ग पश्चिमी देशों की चमक दमक से इतना अधिक प्रभावित है,की उसे वहां की प्रत्येक जीवन चर्या को अपनाना ही विकास का,उन्नति का द्योतक लगने लगा है.उन देशों का खान पान,रहन सहन,फैशन को बिना उचित अनुचित का विचार किये ही अपना लेना,अपना उद्देश्य बना लिया है.उन देशों का अनुसरण करना ही आधुनिकता की निशानी माना जाने लगा है. उन देशों के खान पान,रहन सहन आदि को ,उन देशों की प्राकृतिक स्तिथि ,सामाजिक संरचना,इतिहास के बारे में जाने बिना,अपनाते जाना भारतीय परिवेश के लिए घातक सिद्ध हो रहा है.
पश्चिमी देशों की जलवायु हाड़ कंपा देने वाली ठंडी होने के कारण रम व्हिस्की अर्थात अल्कोहलिक पदार्थों का सेवन करना वहां के निवासियों की आवश्यकता है,यह कोई शौक या फैशन नहीं है,परन्तु जब भारत जैसे गर्म देशों में आधुनिकता के नाम पर शराब का सेवन किया जाता है तो शारीरिक एवं आर्थिक दृष्टि से हानि कारक है,क्योंकि शराब हमारे देश में मजबूरी नहीं बल्कि शौक है, फैशन है,आधुनिक दिखने का ढकोसला है
इसी प्रकार पश्चिमी देश जिन्हें विकसित देश भी माना जाता है,उनकी सामाजिक संरचना हमारे देश से बिलकुल भिन्न है.वहां पर हमारे देश की भांति अपनी संतान को उसकी पढाई लिखी,उसके रोजगार ,उसके शादी -विवाह तक अपना सहयोग देते है,जिसके कारण उसका बच्चा करीब पच्चीस वर्ष तक माता पिता एवं परिवार का प्यार दुलार प्राप्त करता है.युवा बालक भावनात्मक रूप से अपने माता पिता से अधिक सम्बद्ध रहता है, जबकि पश्चिमी देशों में अनेक बार युवाओं को यह भी पता नहीं होता की उसकी माता कौन है और उसका पिता कौन है?उसकी माँ ने अपने जीवन में कितनी शादियाँ की थीं, और बाप ने कितनी बार मां बदली थीं.दूसरी बात माता पिता अपने बच्चे की जिम्मेवारी सिर्फ दस बारह वर्ष तक ही उठाते हैं, तत्पश्चात
बच्चा या तो स्वयं अपना खर्च उठता है या फिर सरकारी योगदान से उसका भरण पोषण होता है पढाई लिखाई करता है, होटल आदि में पढाई लिखाई की व्यवस्था होती है. अतः वहां पर संतान का माता पिता के प्रति ,या माता-पिता का बच्चे के प्रति संवेदनात्मक रिश्ता समाप्त प्रायः हो जाता है यदि भारतीय युवा भी पश्चिमी देशों की नक़ल कर अपने बुजुर्गों की उपेक्षा करता है तो यह न तो उसके स्वयं के लिए जिसे कल बुजुर्गों की श्रेणी में भी आना है,और न ही वर्तमान बुजुर्गों के हित में है,क्योंकि विकसित देशों की सरकारें इतनी सक्षम हैं की वे अपने देश के सभी बुजुर्गों का भरण पोषण राजकोष से कर सकती हैं.जबकि हमारे देश की सरकार अपेक्षाकृत गरीब है, जो देश की विशाल जनसँख्या के कारण, सबका खर्च वहनकर पाने में सक्षम नहीं है. अतः उसे परिवार पर निर्भर रहना भारतीय सन्दर्भ में मजबूरी है.
पश्चिमी देशों के इतिहास पर नजर डालें तो हम देखते हैं,इन देशों ने सैकड़ों वर्षों तक एशियाई देशों को अपना गुलाम बनाय रखा है.अतः उन्होंने एशियाई देशों की धन सम्पदा को लूट खसोट कर अपने देशों को संपन्न कर लिया और आज विकसित देशों की श्रेणी में आ गए, अर्थात उनका जीवन संघर्ष लगभग समाप्त हो चुका है.जबकि भारत जैसे एशियाई देश अपने विकास के लिए संघर्ष रत हैं, गुलामी ने उन्हें उपलब्ध संसाधनों का अपने विकास के लिए उपयोग नहीं करने दिया. यही कारण है, ,की अपार प्राकृतिक सम्पदा के होते हुए भी की हमारे देश की सरकार इतनी सक्षम नहीं हैं कि अपने देश के सभी नागरिको की न्यूनतम आवश्यकताओं की पूर्ती अपने खजाने से कर पाये.
पश्चिमी देशों की कठोर जलवायु के कारण वहां की जनसँख्या एशियाई देशों के मुकाबले कम ही रहती है. सिमित जनसँख्या के कारण भी उन देशों की सरकारें अपने सभी नागरिकों का ध्यान रख पाने में सक्षम रहती हैं.हमारे देश की विस्फोटक जनसँख्या भी देश के शीघ्र विकास में रोड़ा बनती है.यद्यपि युवा श्रमशक्ति की यदि सदुपयोग हो तो विकास शीघ्रता से किया जा सकता है. अतः हमें पश्चिमी देशों की नक़ल करते समय उन दशों की स्तिथि,एवं उनकी सामाजिक संरचना का भी आंकलन करना आवश्यक है.
उनकी सभ्यता में इंसानियत एवं आत्मीयता का सर्वथा अभाव है,सिर्फ सम्पन्नता ही देखने को मिलती है,जबकि हमरे देश में प्यार,मान सम्मान,मानवीयता आज भी बाकी है,जिसका मूल्य सिर्फ यहाँ का निवासी ही समझ सकता है.संपन्न देशो के नागरिक अपनी मानसिक शांति प्राप्त करने के लिए भारत आते हैं.जो उनकी मानसिक स्तिथि का द्योतक है.
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सत्य शील अग्रवाल
शनिवार, 24 दिसंबर 2011
तंत्र मंत्र के रूप में अपराध
पिछड़े क्षेत्रों,,देहाती क्षेत्रों विशेष कर जहाँ शिक्षा का प्रचार प्रसार सिमित अवस्था में है,परिवार में किसी मानसिक रोगी का उपचार कराना हो ,किसी विपदा का निवारण करना हो ,किसी लम्बी बीमारी का इलाज न हो पा रहा हो ,व्यापार में घाटा हो रहा हो इत्यादि सभी कष्टों का इलाज तांत्रिकों के यहाँ ढूंढा जाता है.इनका अन्धविश्वास ही तांत्रिकों को प्रोत्साहित करता है,और अपराधों का जन्म होता है,जो हमारे समाज के लिए कोढ़ साबित हो रहे हैं.
कुछ तांत्रिक किसी महिला को पुत्र प्राप्ति के लिए किसी अन्य महिला के पुत्र को बलि चढाने के लिए उकसाते हैं,जो हत्या के अपराध के रूप में सामने आता है,किसी बालक पर भूत का साया बता कर उसे रोग मुक्त करने के लिए झाड़ फूंक का विकल्प सुझाते हैं,और सभी परिजनों के सामने अनेक प्रकार के अत्याचार करते हैं यथा कभी उन पर आग से सुर्ख लाल सलाखें दागी जाती हैं.कभी छोटे छोटे बच्चों को सिर्फ चेहरे को छोड़ कर समस्त शरीर को जमीन में गाड दिया जाता है,और कभी कभी मरीज को काँटों पर चलने को मजबूर किया जाता है.अनेक बार मानसिक रूप से पीड़ित महिला को विभिन्न प्रकार से प्रताड़ित किया जाता है.उपरोक्त सभी कर्म कंडों में कहीं न कहीं परिजनों की सहमती रहती है और उनकी उपस्थिति में ही मरीज अथवा पीड़ित व्यक्ति चीखता चिल्लाता है परन्तु परिजन अन्धविश्वास के वशीभूत हो कर अपने प्रिय को तड़पता देखते रहते हैं,कडुवे घूँट पीते रहते हैं.कितना दर्दनाक मंजर होता है,जब कोई तांत्रिक सबके सामने उनके प्रियजन को आघात करता है और सब मूक दर्शक बन कर देखते रहते हैं. .
तंत्र मन्त्र,भूत प्रेत ,पड़िया पंडित,तांत्रिकों पर विश्वास करना हमारे तथाकथित विकसित एवं सभ्य समाज पर कलंक है. वर्तमान समय में सभी रोगों की उन्नत चिकत्सा सुविधाओं के होते हुए भी जनता का अवैज्ञानिक उपचारों की तरफ भागना गुलामी का प्रतीक हैं.हमारे देश में धार्मिक कर्म कंडों के लिए मिली स्वतंत्रता का लाभ उठाते हुए तांत्रिक अपनी दुकानदारी चलाते हैं और अपराधों,व्यभिचारों को बढ़ावा देते हैं. जब कोई बड़ा अपराध होता है तो स्थानीय प्रशासन तांत्रिकों की पकड़ धकड़ करता है,उसके बाद फिर सब कुछ सामान्य हो जाता है.अतः तांत्रिकों का वर्चस्व समाप्त करने के लिए जहाँ जनता को जागरूक होना आवश्यक है वहीँ प्रशासन को सभी तंत्र मन्त्र के कर्म कांडों को प्रतिबंधित कर सख्ती से पेश आना चाहिए..
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सत्य शील अग्रवाल
शुक्रवार, 16 दिसंबर 2011
महिलाओं को दायित्व भी समान रूप से सौंपे जाएँ
#बेटियों को माता या पिता का अंतिम संस्कार की इजाजत, आज भी समाज नहीं देता यहाँ तक यदि मृतक के कोई पुत्र नहीं है तो भी बेटी को अंतिम संस्कार नहीं करने दिया जाता.क्यों? क्योंकि वह एक लड़की है ,एक महिला है.
#सरकारी कानूनों के अनुसार माता पिता की जायदाद पर बेटे और बेटियों को बराबर अधिकार मिला हुआ है,परन्तु माता पिता के भरण पोषण, सेवा सुश्रुसा की जिम्मेदारी,कानूनी या सामाजिक रूप से बेटी और दामाद की क्यों नहीं है?
#आज भी माता पिता,दादी बाबा के पैर छूने का अधिकार सिर्फ बेटे एवं पोते का होता है, बेटी और नातिन को क्यों नहीं?क्या वे उनकी संतान नहीं?यदि हम दकियानूसी एवं पारंपरिक सोच में फंसे रहेंगे तो महिला को समानता का अधिक्र कैसे उपलब्ध होगा?
#भावनात्मक रूप से बेटियों को मां से अधिक लगाव होता है. यही कारण है है जिस घर में बेटियां होती हैं,मां की आयु कम से कम दस वर्ष बढ़ जाती है.क्योंकि विवाह होने तक वे मां को उसके गृह कार्यों में काफी योगदान करती हैं.फिर भी बेटी के पैदा होने पर सबसे अधिक आत्मग्लानी का शिकार मां ही होती है जैसे उसने कोई अपराध किया हो. मां को एक महिला होने के नाते एक महिला का स्वागत नहीं करना चाहिए?बेटी के पैदा होने पर समाज के सामने सबसे पहले उसे ही खड़े होना चाहिए.समाज से उसके लिए संघर्ष करना चाहिए.
#महिलाओं को अपने दायित्व को समझते हुए दुनिया में निरंतर हो रहे बदलावों को समझने की इच्छा भी रखनी चाहिए यह सिर्फ पुरुषों तक ही क्यों सिमित रहे.वैसे भी जब तक महिलाये अनजान एवं नादान बनी रहेंगी शोषण भी होता ही रहेगा.
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शनिवार, 3 दिसंबर 2011
राज्यों का विभाजन क्यों ?
यह तो सभी जानते हैं, चुनावों से ठीक पहले इस प्रकार से अचानक विभाजन का विधेयक पास कराकर ,गेंद केंद्र के पाले में डालना महज मायावती का चुनावी स्टंट है.अन्यथा पिछले पांच वर्षों से ऐसी योजना क्यों नहीं बनायीं गयी.पश्चिमी उत्तर प्रदेश वासियों की राज्य विभाजन की मांग कोई नयी नहीं है.अब सभी पार्टियों की राजनैतिक मजबूरी बन गयी है की वे मायावती के प्रस्ताव का विरोध करें.उसके अवगुण गिनाएं. जबकि वास्तविकता कुछ और ही है. देश का सबसे बड़ा राज्य होने के कारण उत्तर प्रदेश की जनता के साथ न्याय नहीं हो पाया. प्रदेश का समुचित विकास नहीं हो सका, प्रशासनिक अक्षमता के कारण प्रदेश को देश के सर्वाधिक पिछड़े राज्यों में गिना जाता है. प्रदेश को जातिगत राजनीति ने जकड रखा है,अतः विकास को कभी भी महत्वपूर्ण नहीं माना गया.
छोटे राज्यों के पक्षकारों का विचार अधिक वजन दार लगता है क्योंकि यह तो निश्चित है छोटे राज्य होने पर शासन की पकड़ मजबूत हो जाती है,उच्च प्रशासनिक अफसरों के लिए नियंत्रण करना आसान होता है. गत कुछ वर्षों पूर्व नए उभरे राज्य हरियाणा,उत्तराखंड जैसे राज्य विकास का पर्याय बन गए हैं जिससे साबित होता है छोटे राज्य अपेक्षाकृत अधिक तेजी से विकास कर सकते हैं. छोटे राज्यों का विरोध करने वालों की दलील प्रशासनिक खर्चों की बढ़ोतरी,जनता को मिलने वाले न्याय,एवं तीव्र विकास के आगे बेमाने हैं. अच्छी गुणवत्ता के शासन के लिए जनता अतिरिक्त खर्च का बोझ सहन कर लेगी. साथ ही छोटे राज्यों की मांग करना कोई देशद्रोह नहीं है,जिसको हेय दृष्टि से देखा जाय. प्रत्येक व्यक्ति को अपने क्षेत्र के विकास की मांग करने का पूर्ण अधिकार है.
स्वतंत्रता के पश्चात् जब राज्यों का गठन किया गया था तो विभाजन का मुख्य आधार भाषा को रखा गया. परन्तु बड़े राज्यों की विकास में अनेक बाधाएं आयी. और क्षेत्रीय जनता की मांग को स्वीकार कर अनेक बार नए राज्यों का गठन किया गया. परन्तु अब पिछड़े और बड़े राज्यों का विभाजन किया जाना प्रासंगिक हो चुका है,वही विकास के लिए पहली सीढ़ी बन सकता है.सभी राज्यों का पुनर्गठन किया जाय तो देश के सभी क्षेत्रों का विकास समान तौर पर हो सकेगा.
परन्तु यह तथ्य भी कम रोचक नहीं है आखिर देश को कितने राज्यों में विभाजित करना होगा. इस प्रकार के विभाजन की मांग कब तक न्याय संगत होंगी. अतः इस विवाद को निपटने के लिए देश व्यापी कुछ नियम बनाय जाने चाहिए. जिसके अंतर्गत देश के प्रत्येक राज्य के गठन से पूर्व न्यूनतम एवं अधिकतम क्षेत्रफल की सीमा तय करनी होगी,इसी प्रकार प्रत्येक राज्य के लिए पूरे देश की आबादी के प्रतिशत के आधार पर निम्नतम एवं अधिकतम जनसँख्या की सीमा निश्चित करनी होगी. इस प्रकार की सीमाएं बांधकर इस विवाद को हमेशा के लिए समाप्त किया जा सकता है. परन्तु इन नियमो को बनाने एवं लागू करने के सभी राजनैतिक पार्टियों को वोट की राजनीति से हटकर दृढ इच्छाशक्ति का परिचय देना होगा.
सत्य शील अग्रवाल
मंगलवार, 29 नवंबर 2011
कितने भाग्यशाली हैं आज के किशोर
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सत्य शील अग्रवाल
गुरुवार, 24 नवंबर 2011
व्यंग (भाग छः)
शनिवार, 19 नवंबर 2011
व्यंग (पांच)
पत्रकार;यही मुख्य अंतर होता है,लोकतंत्र और राजतन्त्र में. हमारे यहाँ प्रत्येक उच्च पदाधिकारी जीवन पर्यंत ससम्मान रहता है. सरकार की तरफ से सारी सुविधाएँ उपलब्ध करायी जाती हैं.
नागरिक;परन्तु हमारे यहाँ तो लोकतंत्र,ठोकतंत्र बन चुका है. जनता की आवाज को सत्ताधारी नेता कुचल देना चाहते हैं, अपने को राजा और जनता को अपना गुलाम मानते हैं.जनता की आवाज बुलंद करने वालों को हैरान,परेशान करते हैं.
पत्रकार;सत्ता का नशा ही कुछ ऐसा होता है.
नागरिक;जहाँ जनता का राज नहीं होता वहां भी यदि जनता जब सड़कों पर आ जाती है,तो तानाशाह का अंत भी कितना भयानक होता है,फिर लोकतंत्र में यदि कोई नेता मनमानी करता है तो अपने पैरों पर स्वयं कुल्हाड़ी मारता है.कपिल सिब्बल,मनीष तिवारी,दिग्विजय सिंह जैसे नेताओं को लीबिया से सबक लेना चाहिए. जनता की ताकत को झुठलाना नहीं चाहिए.
पत्रकार;ये नेता अपना मानसिक संतुलन खो चुके हैं,उन्हें मतिभ्रम हो गया है. शायद सत्ता में आकर वे जनता को बेवकूफ और स्वयं को महाविद्वान समझने लगे हैं.
नागरिक;सो तो है.
सोमवार, 14 नवंबर 2011
मराठी बनाम उत्तर भारतीय
आधुनिक वैश्वीकरण के युग में पूरे विश्व को एक गाँव के रूप में परिवर्तित किया जा रहा है,समस्त विश्व के देश आपसी सहयोग द्वारा श्रमशक्ति एवं तकनिकी का आदान प्रदान कर रहे हैं.ऐसे समय में यदि हम भाषावाद एवं क्षेत्रवाद जैसे मुद्दों में उलझे रहेंगे तो देश को पीछे धकेलने का ही काम करेंगे, जो पूर्णतया अप्रासंगिक है.जब विश्व के सभी देशों के नागरिक एक दूसरे देश में जाकर रोजगार कर सकते हैं,नौकरी कर सकते हैं,तो अपने देश के नागरिक अपने देश में ही पराये क्यों?क्या महाराष्ट्र के लोग शेष देश में रोजगार नहीं करते ,नौकरी नहीं करते?या फिर महाराष्ट्र के लोगों को देश के अन्य हिस्सों में जाने की आवश्यकता नही पड़ती?
यह बात सही है की "किसी भी क्षेत्र की जनता का वहां के उपलब्ध संसाधनों पर पहला अधिकार होता है".परन्तु जब यही अधिकार अन्याय का कारण बनने लगे तो देश एवं समाज के लिए घातक हो जाता है.अतः यह तो उचित है की किसी व्यक्ति को सरकारी या गैरसरकारी नौकरी देते समय या रोजगार के अन्य अवसर उपलब्ध कराते समय क्षेत्रवासियों को वरीयता दी जाय.उन्हें प्रतिस्पर्द्धा में कामयाब होने के लिए आवश्यक साधन उपलब्ध कराएँ जाएँ. परन्तु गुणवत्ता के आधार पर पक्षपात किया जाना सर्वथा विकास के विरुद्ध है. गुणवत्ता में कहीं कोई समझौता नहीं होना चाहिए. बैसाखी के सहारे से कभी क्षेत्र का विकास संभव नहीं है.
भाषा एवं क्षेत्र के आधार पर पक्षपात करना,अपमान करना अपने क्षेत्र को द्वेषभाव एवं अशांति के गर्त में डालना है.देश के प्रत्येक हिस्से से योग्य व्यक्तियों को अपने यहाँ आमंत्रित करना ,उन्हें हर प्रकार की सुविधाएँ देकर प्रोत्साहित करना, वर्तमान युग की मांग है.क्षेत्र के विकास के लिए आवश्यक है. क्षेत्र के समुचित विकास द्वारा ही क्षेत्रीय नेताओं का भविष्य भी सुरक्षित बन सकेगा.
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शनिवार, 12 नवंबर 2011
व्यंग ( भाग चार)
बंता;संता,तुम वाकई नादान हो ,क्या आप अपने खजाने को चोराहे पर रख कर ,कमजोर पहरेदार बैठाकर उसकी सुरक्षा की खैर मना सकते हैं? हमरे यहाँ तो लुटेरों को भी संरक्षण मिलता है फिर खजाना क्यों न लूटेगा?हमारे देश का वर्तमान कानून उसको रोक पाने में सक्षम नहीं है इसीलिए घोटाले पर घोटाले होते चले जाते हैं.
संता; आपके कहने का तात्पर्य है की जन्लोकपाल बिल इतना मजबूत कानून देगा जो किसी को भी भ्रष्ट आचरण नहीं करने देगा.
बंता; हाँ,साथ ही भ्रष्टाचार में लिप्त पाए गए व्यक्ति को सख्त से सख्त सजा भी मिलेगी जिससे से कोई भ्रष्ट आचरण करने से पहले दस बार सोचेगा.इस प्रकार जनता के साथ न्याय हो सकेगा .
संता ;फिर सत्ताधारी नेताओं को क्या आपत्ति है,मजबूत लोकपाल बिल लाने में और उसको पास कराने में?
बंता ;यह तो स्पष्ट है,वे भ्रष्टाचार में लिप्त हैं और भयभीत हैं कहीं उनके द्वारा बनाया कानून ही उन्हें जेल की सलाखों के पीछे न पहुंचा दे .
रविवार, 6 नवंबर 2011
व्यंग(तृतीय)
अध्यापक ; हाँ,हाँ , उत्तर भारत में काफी लोग शुद्ध शाकाहारी हैं. और वह भी बहुत बड़ी संख्या में.
तर्क शास्त्री;अच्छा बताओ शुद्ध शाकाहारी किसे कहते हो ?
अध्यापक ; साधारण सी बात है,जो व्यक्ति पेड़ पौधों से प्राप्त फल फूल,इत्यादि का सेवन करता है उनसे बने व्यंजनों को ग्रहण करता है,मास मछली का उपयोग नहीं करता
.
तर्क शास्त्री; अच्छा बताओ कौन सा शाकाहारी ऐसा है जो दूध,दही,सिरका, शहद का सेवन न करता हो?
अध्यापक ;तुम्हें मालूम होना चाहिए जिनके नाम तुमने लिए हैं सभी शाकाहारी भोजन माने जाते हैं
तर्क शास्त्री; आप ही तो पढ़ाते हो दूध से दही,गन्ने के रस से सिरका अनेक बेक्टीरिया के कारण बनता है.अर्थात अनेक बेक्टीरिया उनमे विद्यमान होते हैं.और फिर दूध कौन से पेड़ से निकलता है, .शहद भी मधुमखियों द्वारा एकत्र किया हुआ उनका भोजन होता है,.फिर दूध दही शहद शाकाहारी में कैसे हो गए?
अध्यापक; तर्कशास्त्री जी ,बस करिए आप से कभी कोई जीता है.हम हार गए आप जीते..
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बुधवार, 2 नवंबर 2011
व्यंग (भाग दो)
राजेश ;इसी समाज की यह भी खासियत है ,किसी भी पुरुष के लिए उसकी पत्नी (पत्नी के रूप में नारी) उसका चरित्र प्रमाण पत्र भी होती है.
मोहन लाल;परन्तु वह कैसे ?
राजेश; बिना पत्नी के पुरुष को मकान किराये पर नहीं मिलता,परिवार में विवाह के पश्चात् किसी भी पुरुष का सम्मान बढ़ जाता हैउसकी विश्वसनीयता बढ़ जाती है .बिना पत्नी के पुरुष को किसी परिवार बेरोकटोक प्रवेश की अनुमति नहीं मिलती. अकेला पुरुष (पत्नी के बिना)समाज में संदेह के घेरे में रहता है. यहाँ तक की पत्नी के साथ जाने वाले व्यक्ति को पुलिस वाला भी आसानी (बिना ठोस सबूत के )हाथ नहीं डालता
मोहन लाल; बात तो पाते की है.
राजेश ; अब बताइए सम्माननीय नारी है या आप ? .
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*SATYA SHEEL AGRAWAL*
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गुरुवार, 27 अक्टूबर 2011
व्यंग--OCT2011
एक बुजुर्ग;क्या जमाना आ गया है,नव युवाओ के बदन पर कपडे,घटते जा रहे हैं. फैशन के नाम पर अश्लीलता बढती जा रही है सब बेशर्म होते जा रहे हैं.
नवयुवक;अंकल क्या इन्सान कपडे पहन कर पैदा होता है, अब यदि कोई प्राकृतिक अवस्था में रहना चाहता है तो गलत क्या हुआ?
बुजुर्ग; परन्तु बेटा समाज की भी अपनी मर्यादा होती है, अतः समाज में रहने के लिए बदन को ढकना ही चाहिए.
नवयुवक;अंकल ,मुझे तो याद नहीं आता कभी किसी लड़के या लड़की को बिना कपडे पहने घूमते देखा हो .फिर आप ऐसा क्यों कह रहे हैं?मुझे तो ऐसा लगता है हमारी सोच में ही कुछ खोट है. हमारे आत्म संयम में ही कमी है. आत्मनियंत्रण के अभाव में हम नई पीढ़ी को दोष देते हैं. उसके पहनावे पर ऊँगली उठाते हैं. कभी किसी कुत्ते,बिल्ली,गाय भैंस के निर्वस्त्र घुमने में हमें कोई अश्लीलता नहीं दिखाई देती , क्यों? फिर जैन मुनि भी निर्वस्त्र रहते हैं?परन्तु उनके शिष्यों कोई आपत्ति नहीं होती.
बुजुर्ग; बेटा तुम्हारी सोच सही दिशा में जा रही है. धन्य हो तुम्हारा आधुनिकतावाद.
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*SATYA SHEEL AGRAWAL*
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शुक्रवार, 21 अक्टूबर 2011
विकसित देश और मानवता .
आज विश्व में जो भी अविकसित देश हैं ,या गरीब देश हैं , उनके पिछड़े पन के लिए विकसित देश अपनी जिम्मेदारी से नहीं बच सकते .विश्व में कुल उत्पादन के अस्सी प्रतिशत का उपभोग विकसित देशों द्वारा कियां जाता है ,जो विश्व की जनसँख्या का सिर्फ बीस प्रतिशत आबादी का प्रतिनिधित्व करते हैं .विश्व की शेष अस्सी प्रतिशत आबादी मात्र बीस प्रतिशत उत्पादन का उपभोग कर पाती है .
जो आज विकसित देश हैं अधिकांश ने ,वर्तमान के अविकसित देशों को गुलाम BANAKAR सैंकड़ों वर्ष शासन किया ओर इन देशों की धन सम्पदा को लूट कर अपने देश को समृद्ध कर लिया जो आज विकसित देशों की श्रेणी में गिने जाते हैं .तथाकथित विकसित देश आज भी गरीब देशों को आपस में लड़ा कर अपने हथियार बेचते हैं एवं अपने आर्थिक हितों का पोषण करते हैं .साथ ही गरीब देशों को विकसित देशों की श्रेणी में आने से रोकते हैं .
बिना किसी वजह के इराक को कुचल डालना ,अफगानिस्तान पर कब्ज़ा कर लेना विकसित देशों के प्रतिनिधि अमेरिका की चल थी , जो खड़ी के देशों में अपना दवाब बनाये रखना ओर अपनी भौतिक आवश्यकताओं की पूर्ती की कवायद थी .
आज भारत ओर चीन की उन्नति विकसित देशों की आँखों में चुभ रही है .क्योंकि वे कभी पूरी मानवता के हित में न सोच कर सिर्फ अपने देश के लिए सोचते हैं जो सरासर मानवता के प्रति अपराध है..
बुधवार, 12 अक्टूबर 2011
लिव इन रेलाशन्शिप
लिव इन रेलाशन्शिप को दो प्रकार से देखा जा सकता है ,
प्रथम ; जब युवक युवती बिना विवाह किये साथ साथ रहने लगते हैं ,और अपना परिवार बढ़ाते हैं एवं घ्राहस्थी की जिम्मेदारियों को निभाते हैं .
द्वितीय ; जब अपने जीवन के अंतिम पड़ाव में कोई स्त्री या पुरुष अपने जीवन साथी से बिछुड़ जाता है ,तो अपने शेष जीवन को किसी के साथ निभने के लिए विपरीत लिंगी के साथ बिना विवाह किये साथ रहने का निश्चय करते हैं .ऐसे युगल अपनी सामाजिक जिम्मेदारियों से पहले ही मुक्त हो चुके होते हैं .अतः कोई सामाजिक या कानूनी आक्षेप नहीं आता . उनकी लिव इन रेलाशंशैप शारीरिक आकर्षण के कारण या शारीरिक संबंधों के लिए नहीं होती .उनका मकसद सिर्फ आपसी सहयोग करना होता है .इस प्रकार के सम्न्धों की कानूनी मान्यता के न होते हुए भी सामाजिक रूप से अनैतिक नहीं माना जाता .बल्कि ऐसे संबंधों के कारण बुजुर्ग के चेहरे पर संतोष के भाव देख कर परिवार और समाज को ख़ुशी का अनुभव होता है .
प्रस्तुत लेख में हमारा मुख्य उद्देश्य युवावस्था में ’ लिव इन रेलाशन्शिप’ है .जब एक युवक एवं युवती एक दूसरे को पसंद करते हैं और बिना कानूनी या सामाजिक प्रक्रिया अपनाये साथ साथ रहने लगते हैं .आधुनिक युग में जब महिलाएं शिक्षित एवं आर्थिक रूप से आत्मनिर्भर हो गयी हैं , लिव इन रेलाशन्शिप का चलन बढ़ने लगा है . परिवार नियोजन सम्बन्धी सुविधाएँ हो जाने के कारण महिलाएं अधिक निर्भय हो गयी हैं ,उन्हें किसी प्रकार की स्वच्छंदता से कोई सामाजिक प्रताड़ना का भय नहीं रह गया है .आज विवाह पूर्व एवं विवाहेत्तर संबंधों से सामाजिक बंधन घटते जा रहे हैं .जिसने हमारी संस्कृति पर करारी चोट की है . इसी प्रकार के अवैध संबधों का नया संस्करण है ,”लिव इन रेलाशन्शिप .”इस नए संस्करण में युवक युवती एक दूसरे पर पूर्णतया समर्पित हैं ,गृहस्थी की सभी जिम्मदारियां भी निभाते हैं ,परन्तु सामाजिक या कानूनी बंधन में बंधने से कतराते हैं ,क्यों ?आधुनिक चलन की आड में आधुनिकता कम धोखेबाजी की संभावना अधिक रहती है .आखिर सब कुछ समर्पण के पश्चात् बंधन से परहेज क्यों ? कहीं कोई पार्टनर अपने गलत इरादे तो नहीं पाले हुए है ?हो सकता है कोई युवक किसी युवती के साथ आधुनिकता का झांसा देकर साथ रहे ,सम्बन्ध बनाये और फिर कभी भी छोड़ कर किसी अन्य युवती के साथ रहने लगे ऐसी अवस्था में युवती एवं उसके बच्चों को कोई कानूनी एवं सामाजिक संरक्षण प्राप्त नहीं होता . इसी प्रकार इस सम्भावना से भी इंकार नहीं किया जा सकता कोई चालक युवती किसी धनवान या हाई प्रोफाईल युवक को अपने प्रेमजाल में फंसकर लिव इन रेलाशन्शिप में कुछ समय बिताने के पश्चात् उसका समस्त धन -दौलत लूटकर ले जाय या अवैध संबंधों की दुहाई देते हुए लड़के के सम्मान को चोट पहुंचाए ,उसे ब्लेकमेल करे ,अनेक आरोप लगा कर कानूनी प्रक्रिया में घसीटे और उसका जीवन कलुषित कर दे .
कहने का तात्पर्य यह है लिव इन रेलाशन्शिप के अवैध चलन में काफी खतरे मौजूद हैं .यह भी विचारणीय विषय है की जब दोनों एक दूसरे पर समर्पित हैं तो कानूनी या सामाजिक बंधनों को अपनाने से परहेज क्यों ?क्या यह उनकी ईमानदारी ,बफदारी के ऊपर प्रश्न चिन्ह नहीं है ? संभव है किसी युगल के रिश्ते को अपनाने में सामाजिक अड़चन हो तो भी कोर्ट मेरिज कर कानूनी संरक्षण तो प्राप्त किया जा सकता है .इस प्रकार से दोनों पार्टनर को अपने सुरक्षित भवष्य की सुनिश्चितता तो प्राप्त होती है . यदि उन्हें सम्भावना लगती है की वे आजीवन साथ नहीं रह पाएंगे तो भी तलाक का विकल्प मौजूद रहेगा .
बेनामी रिश्ते देश की संस्कृति पर आघात करते हैं ,देश में सामाजिक विकृतियाँ उत्पन्न करते हैं .सामाजिक ताने बने को छिन्न भिन्न करते हैं .ऐसी स्तिथि में परिवार का अस्तित्व लग - भाग समाप्त हो जाता है . किसी असहज स्तिथि में उसे कानूनी या सामाजिक संरक्षण नहीं मिल पाता . यदि समाज बेनामी रिश्तों को मान्यता देने लगे तो मानव सभ्यता और जंगलराज में कोई अंतर नहीं रह जायेगा .
मानव समाज को निरंतर विकास करते रहने के लिए , समाज को सभ्यता के दायरे में रखने के लिए कानूनी नियंत्रण आवश्यक है .अतः प्रत्येक सम्बन्ध को विधिवत मान्यता देना आवश्यक है .प्रत्येक इन्सान के सुरक्षित भविष्य की गारंटी है . मानवीय विकास के लिए आवश्यक भी है . जब हमें अधिकार ,सुविधाएँ ,संसाधन चाहिए तो कर्त्तव्य एवं बंधन भी निभाने पड़ेंगे .
यदि “लिव इन रेलाशन्शिप ”को मान्यता दे दी जाय तो सामाजिक अपराध को छूट दे देने के समान होगा , जो स्वास्थ्य एवं सभ्य समाज के लिए उचित नहीं हो सकता .
Satya sheel agrawal
रविवार, 9 अक्टूबर 2011
insaniyat aur dharm-----इंसानियत का धर्म
हैं परन्तु धर्मो द्वारा बताये गए आदर्शों को अपने व्यव्हार में नहीं अपनाते। सभी धर्मों के मूल तत्व इन्सनिअत को भूल जाते हैं,और अवांछनीय व्यव्हार को अपना लेते हैं।
यदि हम किसी धर्म का अनुसरण न भी करें और इन्सनिअत को अपना लें ,इन्सनिअत को अपने दैनिक व्यव्हार में ले आए तो न सिर्फ अपने समाज,अपने देश, बल्कि पूरे विश्व में सुख समृधि एवं विकास की लहर पैदा कर सकते हैं.
गुरुवार, 6 अक्टूबर 2011
भ्रष्टाचार बिन सब सून (व्यंग)
पूरा देश श्री अन्ना हजारे जी के नेतृत्व में भ्रष्टाचार के विरोध में खड़ा हो चुका है.जिससे स्पष्ट है आज देश का प्रत्येक नागरिक भ्रष्टाचार रुपी राक्षस से त्रस्त हो चुका है.आजादी के पश्चात् भ्रष्टाचार को समाप्त करने के अनेक प्रयास हुए,परन्तु सभी प्रयास कागजी शेर साबित हुए. भ्रष्टाचार सुरसा की भांति बढ़ता ही चला गया .आज भ्रष्टाचार की जड़ें इतनी गहरी हो चुकी हैं की भ्रष्टाचार के बिना सोचना भी हास्यास्पद लगता है.हमें कल्पना करना भी मुश्किल लगता है .कुछ व्यंगात्मक कल्पनाएँ प्रस्तुत हैं.; यदि हम कल्पना करें की देश के सभी सरकारी कार्यालयों में भ्रष्टाचार ख़त्म हो चुका है .कैसी स्तिथि होगी सरकारी कार्यालयों की . आज प्रत्येक सरकारी कर्मी रुपी इंजन रिश्वत रुपी इंधन से चलता है .परन्तु जब भ्रष्टाचार द्वारा आमदनी का स्रोत समाप्त हो चुका होगा तो सरकारी कर्मी काम ही क्यों करेगा? जब कर्मी की कार्यालय में उपस्थिति दर्ज हो गयी तो उसका वेतन पक्का हो गया .वह काम करे या न करे नौकरी से तो निकाला नहीं जा सकता ,अधिक से अधिक उसका स्थानांतरण किया जा सकता है.उसकी भी उसे चिंता क्यों होगी जब कोई भी पोस्ट मलाईदार होगी ही नहीं. उसे तो वेतन मात्र से काम चलाना है वो तो कहीं भी चला लेगा.ऐसी निष्क्रियता की स्तिथि में आपके सरकारी कार्य कैसे निपट पाएंगे ?भ्रष्टाचार हटाने के पश्चात् यदि हम सरकारी कर्मी की कार्य के प्रति उदासीनता,निष्क्रियता,लापरवाही को नियंत्रित नहीं कर पाते हैं तो जनता को क्या भुगतना पड़ेगा ? कुछ व्यंगात्मक कल्पनाएँ प्रस्तुत हैं.;
अब जरा सोचिये भ्रष्टाचार के बिना पूरी व्यवस्था पंगु नहीं हो जाएगी?, आखिर देश का विकास कैसे हो पायेगा? सोचना होगा भ्रष्टाचार के विरुद्ध अभियान आत्मघाती तो न हो जायेगा? आखिर भ्रष्टाचार के बिन सब सून लगेगा. अतः भ्रष्टाचार को बनाये रखिये इसको हटाने की गलती न करें, अनर्थ हो जायेगा..मेरा प्रस्ताव मानने के लिए धन्यवाद . -- *SATYA SHEEL AGRAWAL* |
शनिवार, 1 अक्टूबर 2011
ओर भी रूप हैं भ्रष्टाचार के
1. उचित मार्ग अर्थात नैतिकता और आदर्शों पर चलने वाले व्यक्ति को साधारणतया हम मूर्ख कहते है, अव्यवहारिक कहते हैं,कभी कभी बेचारा भी कहते हैं.
2. कोई भी सरकारी या गैरसरकारी कर्मचारी अपने कार्य के प्रति उदासीन रहता है ,जनता की समस्या को सुनने,समझने समाधान करने में कोई रूचि नहीं रखता.
3. दुकानदार नकली वस्तुओं को असली बता कर बेचता है,और अप्रत्याशित कमाई करता है.
4. उत्पादक नकली वस्तुओं या मिलावटी वस्तुओं का निर्माण करता है,उन्हें असली ब्रांड नाम से पैक करता है.
5. कोई भी जब दहेज़ की मांग पूरी न होने पर बहू को प्रताड़ित करता है उसके साथ हिंसक व्यव्हार करता है.
6. जब कोई व्यक्ति किसी महिला के साथ छेड़खानी करता है, तानाकशी करता है.या दुर्व्यवहार करता है.
7. ऑफिस में,व्यवसाय में,कारोबार में कार्यरत मातहत महिला की विवशता का लाभ उठाते हुए उसका शारीरिक या मानसिक शोषण किया जाता है.
8. समाज में किसी के भी साथ अन्याय,दुराचार,अत्याचार किया जाता है.
9. चापलूसी कर कोई नौकरी हड़पना,या फिर अपने प्रोमोशन का मार्ग प्रशस्त करना भी भ्रष्टाचार का ही एक रूप है.
10. यदि कोई व्यक्ति योग्य है ,सक्षमहै ,कर्मठ है,बफादार है अर्थात सर्वगुन्संपन्न है परन्तु चापलूस नहीं है, इस कारण उसे प्रताड़ित किया जाना,दण्डित करना,अपमानित करना भी क्या भ्रष्टाचार का हिस्सा नहीं है?
11. अपने छोटे से लाभ की खातिर किसी दलाल,कमीशन एजेंट,व्यापारी द्वारा ग्राहक को दिग्भ्रमित करना और ग्राहक की बड़ी पूँजी को दांव पर लगा देना क्या भ्रष्टाचार का ही रूप नहीं है?
12. डाक्टर,इंजीनयर ,मिस्त्री,अपने लाभ के लिए अनाप शनाप बिल बना कर ग्राहक के साथ अन्याय करते हैं.
13. असंयमित आहार विहार अथवा असंतुलित खान पान द्वारा विभिन्न बिमारियों को आमंत्रित कर लेना भी भ्रष्टाचार का ही रूप है स्वयं अपने साथ अन्याय है .मदिरा पान,बीडी सिगरेट व अन्य नशीले पदार्थों का सेवन अपने शरीर पर अत्याचार है, भ्रष्टाचार है.
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*SATYA SHEEL AGRAWAL*