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शनिवार, 24 दिसंबर 2011

तंत्र मंत्र के रूप में अपराध

आए दिन समाचार पत्रों में पढने को मिलता है ,बस्ती का कोई बालक कई दिनों से लापता है,किसी बालक की बलि चढ़ा दी गयी है,अथवा तंत्र मन्त्र की आड में व्यभिचार किया गया.उपरोक्त सभी अपराध तांत्रिकों द्वारा आयोजित किये गए होते हैं,अथवा उनके द्वारा प्रोत्साहित किये जाने का परिणाम होते हैं. इस प्रकार के कारनामों,अपराधों के लिए जितना हमारा शासन, प्रशासन एवं देश का लचीला कानून दोषी है उससे भी अधिक हमारे समाज की गली सड़ी मानसिकता,दकियानूसी सोच जिम्मेदार है
पिछड़े क्षेत्रों,,देहाती क्षेत्रों विशेष कर जहाँ शिक्षा का प्रचार प्रसार सिमित अवस्था में है,परिवार में किसी मानसिक रोगी का उपचार कराना हो ,किसी विपदा का निवारण करना हो ,किसी लम्बी बीमारी का इलाज न हो पा रहा हो ,व्यापार में घाटा हो रहा हो इत्यादि सभी कष्टों का इलाज तांत्रिकों के यहाँ ढूंढा जाता है.इनका अन्धविश्वास ही तांत्रिकों को प्रोत्साहित करता है,और अपराधों का जन्म होता है,जो हमारे समाज के लिए कोढ़ साबित हो रहे हैं.
कुछ तांत्रिक किसी महिला को पुत्र प्राप्ति के लिए किसी अन्य महिला के पुत्र को बलि चढाने के लिए उकसाते हैं,जो हत्या के अपराध के रूप में सामने आता है,किसी बालक पर भूत का साया बता कर उसे रोग मुक्त करने के लिए झाड़ फूंक का विकल्प सुझाते हैं,और सभी परिजनों के सामने अनेक प्रकार के अत्याचार करते हैं यथा कभी उन पर आग से सुर्ख लाल सलाखें दागी जाती हैं.कभी छोटे छोटे बच्चों को सिर्फ चेहरे को छोड़ कर समस्त शरीर को जमीन में गाड दिया जाता है,और कभी कभी मरीज को काँटों पर चलने को मजबूर किया जाता है.अनेक बार मानसिक रूप से पीड़ित महिला को विभिन्न प्रकार से प्रताड़ित किया जाता है.उपरोक्त सभी कर्म कंडों में कहीं न कहीं परिजनों की सहमती रहती है और उनकी उपस्थिति में ही मरीज अथवा पीड़ित व्यक्ति चीखता चिल्लाता है परन्तु परिजन अन्धविश्वास के वशीभूत हो कर अपने प्रिय को तड़पता देखते रहते हैं,कडुवे घूँट पीते रहते हैं.कितना दर्दनाक मंजर होता है,जब कोई तांत्रिक सबके सामने उनके प्रियजन को आघात करता है और सब मूक दर्शक बन कर देखते रहते हैं. .
तंत्र मन्त्र,भूत प्रेत ,पड़िया पंडित,तांत्रिकों पर विश्वास करना हमारे तथाकथित विकसित एवं सभ्य समाज पर कलंक है. वर्तमान समय में सभी रोगों की उन्नत चिकत्सा सुविधाओं के होते हुए भी जनता का अवैज्ञानिक उपचारों की तरफ भागना गुलामी का प्रतीक हैं.हमारे देश में धार्मिक कर्म कंडों के लिए मिली स्वतंत्रता का लाभ उठाते हुए तांत्रिक अपनी दुकानदारी चलाते हैं और अपराधों,व्यभिचारों को बढ़ावा देते हैं. जब कोई बड़ा अपराध होता है तो स्थानीय प्रशासन तांत्रिकों की पकड़ धकड़ करता है,उसके बाद फिर सब कुछ सामान्य हो जाता है.अतः तांत्रिकों का वर्चस्व समाप्त करने के लिए जहाँ जनता को जागरूक होना आवश्यक है वहीँ प्रशासन को सभी तंत्र मन्त्र के कर्म कांडों को प्रतिबंधित कर सख्ती से पेश आना चाहिए..

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सत्य शील अग्रवाल

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