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शनिवार, 21 जनवरी 2012

भ्रष्टाचार क्यों बन गया शिष्टाचार ( नेताओं की सोची समझी साजिश का परिणाम)

(प्रथम भाग)
सैंकड़ों वर्षों के संघर्ष के पश्चात् हमारे देश को विदेशी दस्ता से मुक्ति मिली और स्वदेशी नेताओं ने सत्ता की बागडोर अपने हाथ में संभाली.आजादी के पश्चात् जब संविधान तैयार किया गया तो देश में गणतंत्र की घोषणा की गयी अर्थात जनता की सरकार, जनता द्वारा चुनी गयी सरकार, ,जनता के हितों के लिए कार्य करेगी.प्रत्येक पांच वर्ष पश्चात् जनता अपनी राय से नयी सरकार चुनेगी. अतः तत्कालीन सरकार को अपने भविष्य की चिंता सताने लगी. तत्कालीन सत्तारूढ़ पार्टी सदैव के लिए सत्ता में बने रहने के उपाय सोचने लगी,जिसमे चुनावों को जीतने के लिए भी धन की व्यवस्था करना आवश्यक था. साथ ही सत्ता में न रह पाने की स्तिथि में अपनी संतान और अगली पीढ़ी के लिए धन कुबेर भी एकत्र करना था. इन्ही सब कारणों के चलते सत्तारूढ़ पार्टी ने कानूनों की इस प्रकार संरचना की ताकि नेताओं की जेबें भरने के प्रयाप्त अवसर प्राप्त होते रहें. बहुसंख्यक अशिक्षित जनता को लुभावने नारे देते हुए जटिल एवं अव्यवहारिक कानून का निर्माण किया गया. उन्होंने ऐसी व्यवस्था का निर्माण किया जिसमें बेईमान नौकर शाह पारितोषिक और नेताओं का आशीर्वाद प्राप्त करते रहें, इमानदार कर्मी हतोत्साहित किये जाते रहें ताकि नेताओं को अपना कमीशन आसानी से प्राप्त होता रहे.कुछ समय पूर्व स्विस बैंक में जमा भारतीयों की जमा राशी विश्व में सर्वाधिक बताई गयी है. और साथ ही उजागर किया है की 1456 अरब डालर अर्थात करीब साठ हजार अरब रुपये स्विस बैंक में भारतीयों का काला धन जमा है. इन जमा कर्ताओं में बड़े बड़े उद्योगपति,बड़े बड़े नौकर शाह, फ़िल्मी एक्टर,क्रिकेटर,के साथ बड़े बड़े नेता शामिल हैं अब क्योंकि सभी राजनेता इस पवित्र कार्य में संलिप्त हैं, इसीलिए विदेशों में जमा धन की जानकारी मिलने के पश्चात् भी सत्तारूढ़ या विपक्षी पार्टी का कोई भी नेता धन वापस लाने में रूचि नहीं दिखा रहा.हमाम में सब नंगे हैं तो कैसे उजागर हों सबके नाम और कैसे वापस आए काला धन वापस.
एक मोटे अनुमान के अनुसार विदेशों में कुल जमा धन देश पर कुल कर्ज का तेरह गुना है ,अर्थात यदि उस राशी को वापस लाया जा सके तो अपना देश कर्ज मुक्त तो हो ही जायेगा ,बाकी धनराशी का ब्याज ही हमारी पूरी अर्थव्यवस्था को चला पाने में सक्षम होगा और सरकार को कोई टेक्स लगाने की आवश्यकता नहीं रह जाएगी. इस बकाया राशी को दूसरे शब्दों में भी आंका जा सकता है,यथा यह राशी देश की आधी आबादी को लखपति बनाने में सक्षम है.
यहाँ पर अब मैं आपको बताने का प्रयास करूंगा इस भ्रष्टाचार एवं काले धन को पैदा करने के लिए हमारे नेताओं ने किस प्रकार षणयंत्र रच कर देश को लूटा. उन्होंने अपने हितों की रक्षा के लिए भ्रष्टाचार को किस प्रकार पुष्पित पल्लवित किया .किसी ने ठीक ही कहा है ----:अगर जनता सही रस्ते पर जाये तो उसे गलत रस्ते पर ले जाना नेता का काम है
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स्वतंत्र देश के नेताओं द्वारा रचा गया षणयंत्र का खुलासा


आए कर की उच्चतम दरें;---हमारे नेताओं ने अपने स्वार्थ के लिए किस प्रकार भ्रष्टाचार को आमंत्रित किया और प्रत्येक व्यक्ति को उस भ्रष्टाचार में भागीदार बनाया,उसका सबसे बड़ा उदाहरण है, पचास से सत्तर के दशक तक आए कर की उच्चतम दरें, अर्थात उच्चतम स्लेब , नब्बे प्रतिशत तक रखा गया था. इतनी ऊँची दर रखने के पीछे लोकतान्त्रिक सरकार द्वारा चंद लोगों के हाथ में धन संग्रह को रोकने का उद्देश्य बताया गया.और कहा गया सरकार चाहती है,जनता को संसाधनों का बटवारा समान रूप से एवं न्यायपूर्वक हो. आम व्यक्तियों के लिए देखने में मन लुभावन उद्देश्य प्रतीत होता है,परन्तु वास्तविकता कुछ और ही थी. कोई भी उद्योगपति,व्यापारी,कारोबारी तमाम प्रकार के जोखिम लेकर एवं दिनरात एक कर कमाने का प्रयास करता है,और जब वह किसी प्रकार कमा लेता है तो नब्बे प्रतिशत आयेकर के रूप में सरकार की झोली में डाल दे ,तो कमाने के प्रति उसकी इच्छा कितनी बाकी रह जाएगी.क्या यह टैक्स वह सहन कर पायेगा. जाहिर है वह ऐसे उपाय ढूँढेगा जिससे कम से कम आयेकर देकर अपनी मेहनत की कमाई को बचा सके. यही हमारे नेताओं का उद्देश्य था आयेकर पूरा न देने की स्थिति में सरकारी प्रतारणा से बचने के लिए आयेकर अधिकारियों और नेताओं की पूजा करना आवश्यक हो जायेगा.इस प्रकार प्रत्येक कारोबारी को करापवंचन करने को मजबूर किया गया ,फ़िलहाल वही आयेकर की अधिकतम दर तीस प्रतिशत कर दी गयी है.क्यों? क्योंकि अब उनकी योजना की आधार शिला रखी जा चुकी थी..

अन्य अनेक प्रकार के भारी टैक्स ;---आयेकर की भांति ,कस्टम ड्यूटी, एक्साईस ड्यूटी ,बिक्री कर, सभी टैक्स की दरें बहुत ही ऊँची रखी गयीं जो सर्वथा अव्यवहारिक थीं,असंगत थीं. व्यापारी के पास कर अपवंचना के उपाय सोचने के अतिरिक्त कोई चारा नहीं था.कस्टम ड्यूटी दो सौ प्रतिशत और कभी कभी इससे भी अधिक रखी गयी थीं. जिसके कारण तस्करी को बढ़ावा मिला और बड़े बड़े तस्कर खड़े हो गए जो नेताओं के आशीर्वाद से फलते फूलते रहे. इसी प्रकार एक्साईस ड्यूटी व्यापारी के कुल लाभ से भी अधिक वसूली जाती थी और उद्योगपति को कर बचाने के लिए नए नए उपाय बताये जाते थे.जो नेताओं और नौकरशाहों की जेबें भरने में सहायक होते थे. बिक्री कर विशेष तौर पर छोटे दुकानदार को परेशान करने का हथियार रहा है.छोटा दुकानदार अक्सर बिना ब्रांड का स्थानीय निर्मित समान बेचता है जिस पर टैक्स देने की जिम्मेवारी दुकानदार पर होती है और प्रतिद्वंदिता के कारण ग्राहक से टैक्स वसूल पाना संभव नहीं होता. अतः उसे काले धंधे को मजबूर होना पड़ता है और बिक्री कर विभाग के अधिकारियों की जेबे भर कर अपनी जान बचानी पड़ती है.बिक्री कर की दरें भी बारह प्रतिशत या इससे भी अधिक हुआ करती थीं .जो फिलहाल घट कर पांच प्रतिशत तक सिमित रह गयी हैं.परन्तु सरकारी विभागों को इतना खून मुंह लग चुका है, यदि कोई व्यापारी आज सब काम कानूनी तरीके से करे तो भी उसके खाते पास नहीं हो सकते .अधिकारी अपनी कलम की ताकत का प्रयोग कर व्यापारी को परेशान करते हैं. व्यवस्था को इस प्रकार से बिगाड़ा गया, की व्यापारी, उद्योगपति,कारोबारी अपने कार्यों को गैर कानूनी तरीके से करें और नेताओं की जेबें भरते रहें .( अगले ब्लॉग में पढ़ें--किस प्रकार से इन्स्पेक्टर राज चलाया गया,कानूनों को जटिल बना कर आम आदमी के लिए मुसीबतें खड़ी की गयीं एवं सरकारी कर्मियों के वेतन अप्रयाप्त रख कर उन्हें भ्रष्टाचार की गलियों में जाने को प्रेरित किया गया ) सत्य शील अग्रवाल


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