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सोमवार, 16 जनवरी 2012

रिटेल व्यापारियों का भविष्य ?

सदियों से वस्तु वितरण का कार्य छोटे एवं मझोले व्यापारियों द्वारा किया जाता रहा है .पूरी वितरण प्रणाली व्यापारी अपनी रोजी रोटी का साधन बना कर सम्हालते रहे हैं .पीढ़ियों से उनके वारिस इसी कार्य को अपनी जीविका का साधन बनाते रहे हैं .परन्तु आज स्तिथि बदल चुकी है ,छोटे व्यापारियों एवं उनके व्यापार पर निरंतर आघात हो रहे हैं ,उनके व्यापार को, निरंतर बढ़ रही बेरोजगारी के कारण बढती प्रतिद्वंद्विता ,नित्य उभरते जा रहे मल्टी नेशनल कम्पनियों के बर्चस्व ने बहुत नुकसान पहुँचाया है .दूसरी तरफ बढ़ते भौतिकवाद ने आम इन्सान की आवश्यकतायें बहुत बढा दी हैं ,अतः वर्तमान समय में छोटे व्यापार से परिवार की सभी आवश्यकताएं पूरी करना असंभव होता जा रहा है . यही कारण है नयी पीढ़ी परम्परागत (पैत्रिक ) व्यापार में रूचि नहीं ले रही .यदि कोई युवा मेधावी है तो अच्छी शैक्षिक डिग्री लेकर अच्छी हैसियत की नौकरियां ढूंढ लेता है .

आजकल सरकार भी विदेशी एवं बड़ी कम्पनियों को अनेको सुविधाएँ दे कर आमंत्रित कर रही है जिसके कारण मॉल संस्कृति विकसित होती जा रही है .धीरे धीरे यही मल्टी नेशनल एवं बड़ी कम्पनियां देर सवेर सारे रिटेल कारोबार को हजम कर जाएँगी .और छोटे एवं मझोले व्यापारी बेरोजगार हो जायेंगे .

तेजी से बदल रहे हालातों को भांपते हुए अनेक दूरदर्शी व्यापारियों ने पहले से ही अपनी संतान को अपने व्यापार में न लगा कर किसी अन्य कार्य से सम्बद्ध करने का इरादा बना लिया .और उनकी संतान ने अपनी रोजी के अन्य साधन ढूंढ लिए .अन्य व्यापारियों की नयी पीढ़ी भी अपनी कार्य क्षमता के अनुसार अन्य रोजगार तलाश लेंगे .परन्तु जिन व्यापारियों ने अपना पूरा जीवन अपने छोटे से व्यापार पर निर्भर कर दिया था और वर्तमान में जीवन के अंतिम पड़ाव पर आ चुके हैं ,क्या उनके लिए संभव होगा की वे अपने लिए अन्य कार्य की तलाश करें? .जिन्होंने जीवन भर अपने व्यापार के माध्यम से सरकार के राजकोष की पूर्ती की,क्योंकि बड़े उद्योगों एवं बड़े व्यापार के अभाव में राजस्व एकत्र करने का साधन छोटे छोटे व्यापारी और किसान ही थे ,आज वे व्यापारी ही बेरोजगार होने की दहलीज पर खड़े हैं .उनके पास कोई सरकारी पेंशन की व्यवस्था नहीं है ,(जो हमारे देश में सिर्फ सरकारी सेवा से निवृत कर्मियों को ही उपलब्द्ध है ).उनके भविष्य में भरण पोषण के लिए कोई सरकारी योजना भी नहीं है .यह आवश्यक नहीं होता , सब की संतान आर्थिक रूप से इतनी सक्षम हो की वे अपने बूढ़े माता पिता का भरण पोषण कर पायें ,या सक्षम होते हुए भी सभी पुत्र या पुत्री इतने वफादार हों की अपने माता पिता का भी ख्याल रखते हों और उनके भरण पोषण की जिम्मेदारी स्वयं उठाना चाहते हों .

क्या छोटे व्यापारी ने अपने व्यापार द्वारा जनता की सेवा कर कुछ गलत किया ?क्या छोटे व्यापारियों ने देश के विकास में में योगदान नहीं किया ?क्या उन्होंने अपने व्यापार से सरकारी राजकोष को भरने में अपनी भूमिका नहीं निभाई ? देश के नागरिक होने के नाते क्या उन्हें अपने निष्क्रिय कल में भरण पोषण का अधिकार नहीं है ?क्या हमारी सरकार की जिम्मेदारी सिर्फ सरकारी कर्मियों के बारे में सोचने तक ही है ?क्या सरकार का कर्त्तव्य नहीं है की बड़ी कम्पनियों या विदेशी निवेश को आमंत्रित करने से पहले बेरोजगार होने वाले व्यापारियों के कल्याण के बारे में भी कुछ सोचे ?

सबसे दुर्भाग्य की बात यह है ,देश में मौजूद अनगिनत व्यापारिक संगठन भी बड़े व्यापरियों के हित की बात तो सोचते हैं , अपने छोटे व्यापारी भाईयों के भविष्य के लिए आवाज बुलंद नहीं करते .व्यापरियों का प्रतिनिधित्व करने वाले संगठनों द्वारा अपने छोटे और मझोले सदस्यों के कल्याण के लिए कोई अजेंडा क्यों नहीं बनाते , कोई आन्दोलन क्यों नहीं चलाते?व्यापारी संगठन कम से कम अपने छोटे भाइयों के लिए मांग कर सकते हैं, की आने वाली विदेशी रिटेल कम्पनियों से टैक्स बसूल कर से बेरोजगार होने वाले कारोबारियों के कल्याण के लिए फंड एकत्र करे और व्यापारियों के हित में योजनायें बना कर उन पर खर्च करे .



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सत्य शील अग्रवाल
SATYA SHEEL AGRAWAL

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