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गुरुवार, 27 अक्तूबर 2011

व्यंग--OCT2011


एक बुजुर्ग;क्या जमाना आ गया है,नव युवाओ के बदन पर कपडे,घटते जा रहे हैं. फैशन के नाम पर अश्लीलता बढती जा रही है सब बेशर्म होते जा रहे हैं.
नवयुवक;अंकल क्या इन्सान कपडे पहन कर पैदा होता है, अब यदि कोई प्राकृतिक अवस्था में रहना चाहता है तो गलत क्या हुआ?
बुजुर्ग; परन्तु बेटा समाज की भी अपनी मर्यादा होती है, अतः समाज में रहने के लिए बदन को ढकना ही चाहिए.
नवयुवक;अंकल ,मुझे तो याद नहीं आता कभी किसी लड़के या लड़की को बिना कपडे पहने घूमते देखा हो .फिर आप ऐसा क्यों कह रहे हैं?मुझे तो ऐसा लगता है हमारी सोच में ही कुछ खोट है. हमारे आत्म संयम में ही कमी है. आत्मनियंत्रण के अभाव में हम नई पीढ़ी को दोष देते हैं. उसके पहनावे पर ऊँगली उठाते हैं. कभी किसी कुत्ते,बिल्ली,गाय भैंस के निर्वस्त्र घुमने में हमें कोई अश्लीलता नहीं दिखाई देती , क्यों? फिर जैन मुनि भी निर्वस्त्र रहते हैं?परन्तु उनके शिष्यों कोई आपत्ति नहीं होती.
बुजुर्ग; बेटा तुम्हारी सोच सही दिशा में जा रही है. धन्य हो तुम्हारा आधुनिकतावाद.


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*SATYA SHEEL AGRAWAL*
(blogger)*

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