सोमवार, 11 अप्रैल 2011
यह शमा बुझनी नहीं चाहिए
शुक्रवार, 8 अप्रैल 2011
अन्ना हजारे का आन्दोलन या विचार क्रांति
मंगलवार, 5 अप्रैल 2011
अन्ना हजारे तुम जियो हजारो साल
रविवार, 3 अप्रैल 2011
लघु उद्योग और महा उद्योग
शनिवार, 2 अप्रैल 2011
*नारी उत्थान अभियान * April 2011
#दहेज़ की चिंता के वशीभूत होकर माता-पिता आज भी अपनी बेटी को उसकी योग्यता के अनुसार उच्च शिक्षादिलाने से कतराते हैं। क्योंकि अधिक शिक्षित लड़की के लिए उच्च शिक्षित वर्ग का लड़का चाहिए, जिसके लिएअधिक दहेज़ की आवश्यकता होगी।
#हिन्दू एवं मुस्लिम समाज में आज भी महिलाओं के साथ पक्षपातपूर्ण व्यव्हार किया जाता है,क्यों?
#नारी के उत्थान में सबसे बड़ी बाधा स्वयं नारी (सास-ननद,जेठानी-देवरानी,इत्यादि) ही बनी हुई है.जब महिलाही महिला के प्रति संवेदनशील नहीं होगी तो नारी उत्थान कैसे संभव होगा। उसे समानता का अधिकार कैसेमिलेगा?
#क्या हम दावे के साथ कह सकते हैं की महिला को आजादी के तरेसठ वर्ष पश्चात् समानता के अधिकार प्राप्त होगए हैं,नारी शोषण समाप्त हो चुका है,सही अर्थों में महिला को सम्मान मिलने लगा है। मेट्रो शहरों में चलने वालीपब्लिक ट्रांसपोर्ट में महिलाओं का सफ़र करना आज भी सुरक्षित हो पाया है?
#क्या महिला को आज भी खेलने की वस्तु या छेड़ने का सामान नहीं समझा जाता? उसे उपभोग की चीज मान करविज्ञापनों में प्रदर्शित नहीं किया जाता?प्रत्येक बड़ी कंपनी या छोटी सभी में आगंतुकों के आदर सत्कार के लिए रिसेप्निष्ट के तौर पर महिला को ही भरती किया जाता है क्यों ?एयर होस्टेस के पद पर महिला ही क्यों ?
--
गुरुवार, 31 मार्च 2011
इन्सानिअत का धेर्म -1-4 2011
२,जीवन में एक हज यात्रा कर लेने से जेन्नत का रास्ता मिल जाता है ,गंगा में स्नान करने अथवा राम का जप करने से पापों से यानि दुष्कर्मों से मुक्ति मिल जाती है । क्या इस प्रकार की धार्मिक मान्यतायं अपरोक्ष रूप से इन्सान की दुष्कर्मों के लिए प्रेरणा स्रोत नही बन जाती ?
३,मुस्लिम धेर्म में रमजान के माह में सयंमित भोजन धारण कर शरीर को नई ऊर्जा से स्फूर्त किया है साथ ही अलग अलग मौसम में भूखे प्यासे रहकर सहन शक्ति की वृधि होती है ।
४,किसी नदी में स्नान करने का अर्थ है ,प्रकृति की गोद में स्नान करना । जहाँ पर मानव शरीर एक साथ पांचों तत्त्व अर्थात अग्नि, प्रथ्वी, जल, वायु अवं आकाश के सम्पर्क में आता है । यदि प्रदूषित जल स्वास्थ्य का दुश्मन बन कर न खड़ा हो।
५,इतिहास गवाह है धार्मिक वर्चस्व के लिए बड़े बड़े युद्घ लेर्हे गए ,आज भी विश्व व्याप्त आतंकवाद के रूप में धार्मिक छद्म युद्घ जारी है।
६वेश्विकरन के इस युग में कोई भी देश अपने दम पर विकास की सीर्ही नहीं चढ़ सकता । अतः धार्मिकता के स्थान पर इन्सानिअत को महत्त्व देना समय की आवश्यकता बन गई ह
शुक्रवार, 25 मार्च 2011
गौरक्षा कैसे हो ?
धर्म ग्रंथो में गाय को माता के रूप में पूजने का एक उद्देश्य था . क्योंकी गाय के दूध,गोबर,मूत्र सभी मानव स्वास्थ्य के लिये लाभदायक हैं .सभी वस्तुये दवा में भी प्रयोग कि जाती हैं . अतः आम जनता को गाय के पूजने का कारण बताना, उनका उपयोग करने के लिये प्रेरित करना आवश्यक है. सिर्फ गाय को माता मानकर पूज लेने से कोई भला नहीं होने वाला. सिर्फ आस्था के नाम पर धन बटोरना जनता के साथ धोका है.
यदि वास्तव में गौरक्षक गौरक्षा के हितैषी हैं.,तो जहाँ हजारों गाय रोजाना मीट के लिय काट दी जाती हैं, ,उनके खिलाफ आंदोलन क्यो नही चलाये जाते.गलियों में घुमती गायो के कल्याण के लिय तथाकथित गौरक्षक क्या करते हैं .गायो के दूध से समाज को लाभ पहुँचाने के लिये गाय कि नस्ल को सुधारने के प्रयास क्यों नहीं किये जाते ,ताकी गाय पालकों के लिये गाय का दूध बेचना लाभप्रद हो सके और जनता को गाय के दूध का लाभ प्राप्त हो सके.
सिर्फ गौशाला एवं गौरक्षा के नाम पर धार्मिक भावना को नक्दीकरण करना अन्याय है, धोखा है,जनता को भ्रमित करना है. जनता को गाय पूजने से लाभ होने वाला नही है.बल्की उसके दूध के सेवन से स्वास्थ्य लाभ मिल सकता है. अतः तथाकथित गौराक्षकों को नाटक बंद करना होगा और समाज के हित में कार्य करना होगा.
*
रविवार, 20 मार्च 2011
रेडियशन की चुनौती
आज अनेक देशों के पास एटम बमों का जखीरा भरा पड़ा है, कभी भी कोई सनकी उनका प्रयोग कर मानवता के साथ खिलवाड़ कर सकता है। इसके अतिरिक्त सभी देशों में एटोमिक पावर प्लांट चल रहें हैं। अतः जापान जैसी विपदा से कोई भी देश कभी भी जूझने को मजबूर हो सकता है। यद्यपि वैज्ञनिकों ने एटोमिक प्लांट कर्मियों के लिए रेडियशन से बचने और उनके खाद्य सामग्री को प्रदूषित होने से बचाने के उपाय कर रखे होंगे. परन्तु अब आवश्यकता है आम जनता के लिए रेडियशन मुक्त खाद्य पदार्थों की पेक्किंग की व्यवस्था की जाये ताकि भविष्य में कभी भी कोई जापान जैसी गंभीर स्तिथि आए तो जनता को असहज स्तिथि से न जूझना पड़े। और खाने पीने की व्यवस्था बनी रहे,दूध मुहे बच्चे काल के गाल में जाने से बच सकें। अन्य बचाव साधन भी पहले से उपलब्ध कराए जायं, और जनता को प्रशिक्षण देकर जागरूक किया जाये.
शनिवार, 19 मार्च 2011
सोचना तो पड़ेगा
*एक ही देश में धर्मनिरपेक्षता का उदाहरण है, हिन्दू विवाह अधिनियम और मुस्लिन पर्सनल ला . आखिर धर्म के नाम पर अलग अलग कानून क्यों ? मुस्लिम ला एवं शरियत कानून के अनुसार १५ वर्ष में मुस्लिम लड़की को व्यस्क माना जाता है.
*धर्म के ठेकेदार नहीं चाहते की जनता में शिक्षा का प्रचार प्रसार हो क्योंकि अशिक्षित जनता ही उनके धर्म का पालन आसानी से कर लेती है,और उनका वर्चस्व बना रहता है.
*हमारे धर्माधिकारी कहते हैं की हमारे धर्म शास्त्रों का अस्तित्व आदिकाल से है, जब इन्सान बोलना, लिखना, पढना भी नहीं जनता था फिर उपरोक्त कथन कितना सत्य है?.
*ज्ञात स्रोतों से सिद्ध हो चुका है, लोहे का अविष्कार तीन हजार वर्ष पूर्व हुआ था, तो क्या रामायण के समय में बिना लोहे के पुष्पक विमान बन गया था.और अन्य हथियार भी बिना लोहे के बनते थे? .महाभारत का युद्ध बिना लोहे के हथियरों से लड़ा गया होगा, क्या ऐसा संभव है?. इससे तो यही सिद्ध होता है रामायण एवं महाभारत की कथाएं काल्पनिक हैं.
*हम इस संसार को ईश्वर ,खुदा या गोड की रचना मानते हैं, परन्तु उस ईश्वर,खुदा,गोड का अस्तित्व कैसे हुआ, क्यों हुआ, क्या कम रहस्य्कारी है?
*आज के वैज्ञानिक युग में जब जनता को नियंत्रित करने के लिए पर्याप्त साधन उपलब्ध हैं तो धर्माधिकारियों को मानव जीवन में दखलंदाजी करना कितना तर्कसंगत है?
गुरुवार, 17 मार्च 2011
इन्सानिअत का महत्त्व क्यों
२,जीवन में एक हज यात्रा कर लेने से जन्नत का रास्ता मिल जाता है ,गंगा में स्नान करने अथवा राम का जप करने से पापों से यानि दुष्कर्मों से मुक्ति मिल जाती है । क्या इस प्रकार की धार्मिक मान्यताएं अपरोक्ष रूप से इन्सान की दुष्कर्मों के लिए प्रेरणा स्रोत नही बन जाती ?
३,मुस्लिम धेर्म में रमजान के माह में सयंमित भोजन धारण कर शरीर को नई ऊर्जा से स्फूर्त किया है साथ ही अलग अलग मौसम में भूखे प्यासे रहकर सहन शक्ति की वृद्धि होती है ।
४,किसी नदी में स्नान करने का अर्थ है ,प्रकृति की गोद में स्नान करना । जहाँ पर मानव शरीर एक साथ पांचों तत्त्व अर्थात अग्नि, प्रथ्वी, जल, वायु अवं आकाश के सम्पर्क में आता है । यदि प्रदूषित जल स्वास्थ्य का दुश्मन बन कर न खड़ा हो।
५,इतिहास गवाह है धार्मिक वर्चस्व के लिए बड़े बड़े युद्घ लड़े गए ,आज भी विश्व व्यापी आतंकवाद के रूप में धार्मिक छद्म युद्घ जारी है।
६वेश्विकरन के इस युग में कोई भी देश अपने दम पर विकास की सीढ़ी नहीं चढ़ सकता । अतः धार्मिकता के स्थान पर इन्सानिअत को महत्त्व देना समय की आवश्यकता बन गई है।
मंगलवार, 15 मार्च 2011
इन्सनिअत ही सब धर्मों का सार है.
हैं परन्तु धर्मो द्वारा बताये गए आदर्शों को अपने व्यव्हार में नहीं अपनाते। सभी धर्मों के मूल तत्व इन्सनिअत को भूल जाते हैं,और अवांछनीय व्यव्हार को अपना लेते हैं।
यदि हम किसी धर्म का अनुसरण न भी करें और इन्सनिअत को अपना लें ,इन्सनिअत को अपने दैनिक व्यव्हार में ले आए तो न सिर्फ अपने समाज,अपने देश, विश्व में सुख सम्रद्धि एवं विकास की लहर पैदा कर सकते हैं.
शनिवार, 12 मार्च 2011
होली मनाएँ शालीनता से
होलिका दहन के लिए एक ही मोहल्ले में अनेक स्थानों पर होली रखी जाती है. शायद यह हमारी घटी सहन शक्ति का परिणाम है की हम पचास साठ परिवारों के गुट में बन्ट कर होलिका दहन करते हैं. प्रत्येक होली में जलाने के लिए कम से कम पाँच कुन्तल लकडी की अवश्यकता होती है अब सहज ही अन्दाज लगाया जा सकता है, पूरे शहर में होलिका दहन के लिय कितनी लकडी की अवश्यकता होगी. इसी प्रकार पूरे देश में शायद मात्र होली के दिन हम हजारों टन लकडी स्वाहा कर देते हैं.लकडी पाने के लिए वनों की कटाई की जाती है, परिणाम स्वरूप जन्गलों का क्षेत्रफल नित्य प्रति घट ता जाता है,और पर्यावरण असन्तुलन बढ्ता है.साथ ही अनेक आवश्यक कार्यों के लिय लकडी की उपलब्धता कम होती है. वर्तमान में ग्लोबल वर्मिंग में वनों की कटाई का बहुत बडा योगदान है. यदि प्रत्येक कस्बे में एवं प्रत्येक मुहल्ले में सिर्फ एक ही होलिका दहन का कार्य क्रम मिलकर मनाएँ तो इस समस्या से कुछ हद तक निबता जा सकता है और त्योहार की खुशियों में कोई कमी भी नहीं अयेगी. मोहेल्ले में आपसी मे आपसी मेलजोल में भी वृद्धि होगी क्योंकी होली एक सामुहिक त्योहार है. होली तो मनायेंगे परन्तु पर्यावरण भी बचायेंगे
,होली के खास दिन पर हम सभी एक दूसरे को रंग बिरंगे पानी से भिगोते हैं और गुलाल आदि से चेहरों को रंग बिरंगा बना कर गले लग जाते हैं. परन्तु इसी मस्त भरे माहोल मे हम बिना सोचे समझे किचड, पेंट. प्रेस की स्याही जैसे अवान्छनिये रंगों का प्रयोग करते है. परिणाम स्वरूप अनेक लोग त्वचा रोगों के शिकार होते हैं और कभी कभी आन्खों के रोगों को आमन्त्रित कर लेते है.कुछ लोग दुश्मनी निकालने के लिए इस त्योहार पर तेजाब जैसे खतरनाक द्रव डाल कर अपनी इर्ष्या का बदला लेते है. यही कारण है आज होली का उत्साह दिन प्रतिदिन घट्ता जा रहा है.आज का युवा स्वास्थ्य एवं सौन्दर्य के प्रति अधिक सजग हों गया है,और वह होली खेलने से बचने लगा है.इस पवन पर्व पर यदि हम हल्के हानि रहित रंगों एवं हर्बल गुलाल के साथ शालीनता से मनाएँ तो त्योहार का आनन्द दुगना हों जयगा और बेपनाह पानी खर्च होने से बचत भी होगी.खुशियाँ तो मनायेंगे परन्तु किसी को हानि नही होने देंगे
.होली के इस पवन पर्व पर्व पर एक सबसे बादी त्रासदी है नहस करने की आदत. अनेक लोग इसे शराब पीने अथवा गाँजा चरस भंग आदि का नशा कर त्योहार का आनन्द उठने को ही होली मानते हैं. कभी कभी तो खाद्य पदार्थों में ढोके से नशिले पदार्थ मिलाकर अन्य लोगों को नशे में झुमते हे देख कर खुश होते है. हों सकता है जिसे नशा करने की आदत न हों तो उसका स्वास्थ्य ही बिगाद जाए. यदि इन्सान नशा करने को ही होली की खुशी मनता है तो यह सिर्फ उसका भ्रम है.और इस पवन पर्व का अपमान है. जब नशे में इन्सान अपने होशो हवास में ही नही रहा तो त्योहार का आनन्द कैसे मनायेगा और नशा कर्के आनन्द तो कभी भी मनाया जा सकता है फिर होली पर ही क्यों?होली का त्योहार नशा मुक्त हों कर मनायेंगे .
उपरोक्त सभी विसंगतिया इस प्रकार की हैं जो पूरे समाज को बदलने पर ही सम्भव है, परन्तु यदि हम स्वयं अपने को बदलने का प्रयास करेंगे तो धीरे धीरे बदलाव की लहर भी आएगी. त्योहार की पवित्रता, शालीनता बनी रह सकेगी. समाज के प्रति हमारा दायित्व भी पूरा हों सकेगा.
मंगलवार, 8 मार्च 2011
अतिक्रमण की समस्या
यदि निर्माण करते समय ही समर्थ अधिकारी उसकी वैधता की जाँच कर ले तो अवैध निर्माण कैसे हो सकता है?
दुकानदारों को अपना सामान फैला कर जाम के लिय जिम्मवार को दण्डित करने के लिए उसकी फोटोग्रफी कर उपयुक्त जुरमाना वसूला जाये। ठेले वाले जाम लगाते मिलें तो ड्यूटी पर तैनात पुलिस वाले को दंड दिया जाय। क्योंकि बिना उसकी सहमति के ठेले वाले जाम की स्तिथि पैदा नहीं कर सकते।
मकान या दुकान निर्माणकर्ता से निर्माण कार्य की सूचना सक्षम अधिकारी को विधिवत रूप से दी जनि आवश्यक कर दी जानी चाहिए। और निर्माता से शपथ पत्र लिया जाय की वह पास किय गए नक़्शे के अनुसार ही निर्माण कार्य करेगा।
इस प्रकार शहर को जाम मुक्त रखने में काफी हद तक सफलता मिल सकती है.
सोमवार, 7 मार्च 2011
भारतीय समाज और महिला
हमारे देश में स्तिथि अभी भी प्रथक है,यद्यपि कानूनी रूप से महिला एवं पुरुषो को समान
अधिकार मिल गए हैं. परन्तु सामाजिक ताने बाने में आज भी नारी का स्थान दोयम दर्जे का है.हमारा समाज अपनी परम्पराओ को ताड़ने को तय्यार नहीं है.जो कुछ बदलाव आ भी रहा है उसकी गति बहुत धीमी है.शिक्षित पुरुष भी अपने स्वार्थ के कारण अपनी सोच को बदलने में रूचि नहीं लेता, उसे अपनी प्राथमिकता को छोड़ना आत्मघाती प्रतीत होता है.यही कारण है की महिला आरक्षण विधेयक कोई पार्टी पास नहीं कर पाई.आज भी मां बाप अपनी पुत्री का कन्यादान कर संतोष अनुभव करते हैं.जो इस बात क अहसास दिलाता है की विवाह दो प्राणियों का मिलन नहीं है,अथवा साथ साथ रहने का वादा नहीं है, एक दूसरे का पूरक बनने का संकल्प नहीं है,बल्कि लड़की का संरक्षक बदलना मात्र है.क्योकि लड़की का अपना स्वतन्त्र अस्तित्व नहीं है.उसको एक रखवाला चाहिय .
उसकी अपनी कोई भावना इच्छा कोई मायने नहीं रखती . उसे जिस खूंटे बांध दिया जाय उसकी सेवा करना ही उसकी नियति बन जाती है.विवाह पश्चात् वरपक्ष द्वारा भी कहा जाता है की आपकी बेटी अब हमारी जिम्मेदारी हो गयी. आपके अधिकार समाप्त हो गए.अब मां बाप को अपनी बेटी को अपने दुःख दर्द में शामिल करने के लिय वर पक्ष से याचना करनी पड़ती है. उनकी इच्छा होगी तो अग्ग्या मिलेगी वर्ना बेटी खून के आसूँ पीकर ससुराल वालों की सेवा करती रहेगी.
इसी प्रकार पति अपनी पत्नी से अपेक्षा करता है की वह उसके माता पिता की सेवा में कोई कसर न छोड़े, परन्तु स्वयं उसके माता पिता (सास ससुर) से अभद्र व्यव्हार भी करे तो चलेगा, अर्थात पत्नी को अपने माता पिता का अपमान भी बर्दाश्त करना पड़ता है. यानि लड़के के माता पिता सर्वोपरि है और लड़की के माता पिता दोयम दर्जे के हैं क्योकि उन्होंने लड़की को जन्म दिया था.आखिर यह दोगला व्योव्हार क्यों? क्या आज भी समाज नारी को दोयम दर्जा ही देना चाहता है .माता पिता लड़के के हों या लड़की के बराबर का सम्मान मिलना चाहिय. यही कारण है की परिवार में पुत्री होने पर परिजन निराश होते है,और लड़का होने पर उत्साहित. जब तक लड़का लड़की को संतान समझ कर समान व्यव्हार समाज नहीं देगा नारी उथान संभव नहीं है.
अतीत में नारी के प्रति अन्याय, अत्याचार के गवाह सती प्रथा, विधवा विवाह निषेध,बाल विवाह,पर्दा प्रथा जैसी प्रथाओं का अंत होने बावजूद नारी शोषण आज भी जारी है.दहेज़ हत्यायं,बलात्कार, घरेलु हिंसा आज भी नित्य समाचार पत्रों की सुर्खियाँ बन रही है.
महिला आयोग द्वारा किये जा रहे प्रयास एवं कानूनी योगदान प्रभावकारी साबित नहीं हो पाए है.आज भी समाज में नारी को भोगया समझने की मानसिकता से मुक्ति नहीं मिल पाई है. प्रत्येक नारी को स्वयं शिक्षित, आत्म निर्भर हो कर, अपने अधिकार पुरुष से छिनने होंगे. दुर्व्यवहार बलात्कार जैसे घिनोने अपराधों से लड़ने के लिए अपने अंदर शक्ति उत्पन्न कर,जैसे कराते आदि सीख कर, डटकर मुकाबला करना होगा, तब ही नारी को उचित सम्मान मिल सकेगा.
गुरुवार, 3 मार्च 2011
गंगा का महत्त्व
हिंदू धर्म के अनुसार गंगा में स्नान करने से सभी पाप धुल जाते हैं, अर्थात कुछ भी गलत कार्य करिए, यानि हत्या मारकाट ,प्रतारणा आदी और फिर गंगा में स्नान कर लो सारे गुनाह माफ़? कैसी ही यह आस्था जो अपराधों को अपरोक्ष रूप से आमंत्रित करती है?
धर्म के दो आयामी रूप विचित्र स्थिति पैदा करते है.गंगा की पवित्रता का तार्किक कारण न समझ कर धार्मिक अंधविश्वास में लिप्त रहते हैं.पवित्र गंगा हमारे पूर्वजों की धरोहर है इसको स्वच्छ बनाय rakhna हमारा कर्तव्य है.
सोमवार, 28 फ़रवरी 2011
भारतीय संस्कृति
हम पाश्चात्य देशों की आलोचना उनके स्वछंद व्यव्हार को देखते हुए करते हैं.परन्तु उनके विशेष गुणों जैसे देश प्रेम, ईमानदारी,परिश्रम,कर्मठता को भूल जाते हैं। जिसके कारण आज वे विश्व के विकसित देश बने हुए हैं। सिर्फ उनके खुले पन के व्यव्हार के करण उनकी अच्छाइयों की उपेक्षा करना और उनका विरोध करना कितना तर्कसंगत है?क्या हमें अपने अतीत की गलतियों से सबक लेकर अपने व्यव्हार में परिवर्तन नहीं लाना चाहिय?
हमारे देश का युवा विश्व के सभी देशों से अधिक योग्य, बुद्धिमान ,महत्वकांक्षी,एवं परिश्रमी है.आवश्यकता है सिर्फ उचित मार्ग दर्शन की। दकियानूसी बातों में उलझाकर उनका उत्साह, उनकी प्रगति में अवरोध उत्पन्न कर कभी भी विकसित देशों की श्रेणी में नहीं आ सकते । आम नागरिक के व्यव्हार को नियंत्रित करने के लिए पर्याप्त कानून देश में मोजूद हैं और आवश्यकतानुसार बनाय जा सकते हैं। आवश्यकता है दृढ इच्छाशक्ति की, ईमानदारी की, उचित एवं व्यावहारिक दिशा निर्देशन की.
मंगलवार, 22 फ़रवरी 2011
डाकू और सुपर डाकू (सफेद पोश ) कटाक्ष
डाकुओं को बीहड़ जंगलो में खानाबदोष हो कर रहना पडता है. दिनचर्या जटिल होती है खाने पीने, रहने कि सुचारू एवं स्थायी व्यवस्था नहीं होती. पुलिस बल का खोफ प्रतिक्षण बना रहता है. परंतु सफेद पोश डाकू यांनी सुपर डाकू को सम्मान कि जिंदगी जीने का अवसर प्राप्त होता है,सारी सुख सुविधाये अक्सर जीवन भर बनी रहती है.
पोलीस द्वारा सताय जाने कि चिंता न के बराबर होती है.क्योंकी उपर तक उनका कमीशन पहुंच जाता है.नेता और नौकर शाहो के तो पुलिस विभाग मातहत होता है दुर्भाग्य वश यदि कोई धांधली पकड में आती है तो दौलत और पद के दवाब से केस को दाबा दिया जाता है. साबूत नष्ट कर दिये जाते है.अब यदि कोई बेचारा बिलकुल हि नसीब का खोटा होता है, मिडिया एवं सी बी आई के हत्थे चढ कर पश्चताप का महान अवसर पा लेता है.और कानून का शिकार हो जाता है.अन्यथा पूरा जीवन दुनिया कि सारी सुख सुविधाओं के साथ गुजरता है.
डाकू अक्सर सामने आकार वर करता है,अतः साधारण व्यक्ती भी उनसे बचाव के प्रयास कर लेता है. अपने को सुरक्षित कर लेता है.परंतु सुपर डाकू का वार अदृश्य होता है.अतः किसी को पता ही नहीं चलता किसने चाबूक चलाया ,कितनी बार चाबूक चलाया ,और उसे कितना गहरा घाव हुआ है. कभी कभी तो पीड़ित के आंसू भी वह स्वयं ही आकर पोंछ रहा होता है.उसकी सहायता कर पिडीत कि दृष्टी में मसीहा बन जाता है, है न कमाल का सुपर डाकू?
डाकू अक्सर अमीरों के यहाँ डाका डालता है.परन्तु सुपर डाकू बिना किसी पक्षपात किये सब पर बराबर और लगातार वार करता है.एक डाकू सिधान्तवादी होता है,उसके मन में गरीबों के लिय हमदर्दी होती है. अतः कभी कभी उनकी सहायता भी कर देता है. परन्तु सुपर डाकू यदि सहायता भी करता है,तो अपने अगले वार को पक्का करने के लिय जैसे कोई कसाई अपने बकरे को काटने से पूर्व उसकी भरपूर खिलाई कर तगड़ा करता है.अतः उनकी सहायता भी उनकी कुटिल चल का सुन्दर रूप होती है.
डाकू बेचारा एक सिमित इलाके तक अपनी गतिविधियाँ चला पाता है,परन्तु सुपर डाकू कि कार्य गत सीमाए अंतहीन होती हैं,अतः उनकी कमाई डाकुओं से कई गुना अधिक होती है. उसके लिय पूरा देश उनके शिकार का अखाडा होता है.
अक्सर डाकू अपनी संतान को अपने व्यवसाय में डालने से कतराता है,यदि गिरोह को सम्हालने और अपनी सुरक्षा का मामला अटकता है तो ही अपने बेटे को अपने व्यवसाय में डालेगा अन्यथा नहीं. परन्तु सुपर डाकू हमेशा अपनी संतान को जन्म से ही अपने धंधे कि जानकारी एवं प्रक्षिक्षण देता है, ताकि उसका भविष्य भी सुरक्षित एवं सम्मानजनक बन सके.
परन्तु क्यों फल फूल रहें हैं सुपर डाकू? यह भी एक ज्वलंत प्रश्न है.इसका मुख्य कारण भी स्वयं पीड़ित होने वाली जनता है.क्योंकि शासन एवं प्रशासन में व्याप्त भ्रष्टाचार के सामने वह नतमस्तक हो चुकी है. जिसे वह सुविधा शुल्क के रूप में स्वीकार कर चुकी है.मिलावट खोरों और मुनाफाखोरों को संरंक्षण देने के लिय उसने अपना हाजमा मजबूत कर लिया है. फिर जहरीली वस्तुएं खा कर चाँद लोग मर भी गए तो क्या? दुर्घटना में भी तो मौत हो जाती है.अपने क्षणिक लाभ के लिय अर्थात चाँद रुपयों ,शराब कि बोतल अथवा अन्य प्रलोभन पा कर अपना वोट भ्रष्ट नेताओं को बेच देते हैं.असामाजिक तत्वों,आतंकियों से मुकाबला न करने कि कसमें खाकर अपनी शांति कि तलाश में लगे रहते है.यह कटु सत्य है,सुपर डाकू हमने यानि आम जनता ने बनाय हैं और हम ही उन्हें पाल पोस रहे हैं क्यूंकि डाकू के वार से हम डरते हैं सुपर डाकू से नहीं.
--
रविवार, 20 फ़रवरी 2011
महिला सशक्ति करण
परन्तु उपरोक्त विकास अभी भी शैशव अवस्था में है.और कुछ प्रतिशत महिलाऐं ही आगे आ पाई हैं। पिछड़े क्षेत्रोएवं देहातों में अब भी स्तिथि दयनीय बनी हुयी है.और उससे भी दयनीय है हमारी पारंपरिक सोच.जब तक हमसभी अपनी सोच में बदलाव नहीं लायेंगे महिलाओ का समग्र विकास असंभव है।
आयिए देखें कुछ तथ्य;
कन्या भ्रूण हत्या आज भी हो रही हैं,वर्ना महिला, पुरुष अनुपात में महिलाओं की संख्या क्यों घट रही है?
हमारे परिवारों में बेटियों को उच्च शिक्षा से अभी भी क्यों वंचित किया जा रहा है?
बढती दहेज़ प्रथा (अनेक कानून होने के बावजूद) नारी समाज का खुले आम अपमान नहीं है?
दहेज प्रथा गैर कानूनी है अतः सोदे बाजी अंदरखाने होती परन्तु शादी का खर्च तो अब भी लड़की वाला ही उठाता हैजिस पर कोई कानूनी बंदिश भी नहीं है. परन्तु लड़की वाला ही क्यों खर्च करे?
बेटी की कमाई का प्रयोग आज भी माता पिता के लिय वर्जित है क्यों ?.
आज भी बेटी अपने माता पिता को शारीरिक अथवा आर्थिक सहयोग के लिए पति एवं ससुराल वालों पर निर्भर है क्यों ?
गुरुवार, 10 फ़रवरी 2011
मानवता और धर्म (१० फरवरी )
हैं परन्तु धर्मो द्वारा बताये गए आदर्शों को अपने व्यव्हार में नहीं अपनाते। सभी धर्मों के मूल तत्व इन्सनिअत को भूल जाते हैं,और अवांछनीय व्यव्हार को अपना लेते हैं।
यदि हम किसी धर्म का अनुसरण न भी करें और इन्सनिअत को अपना लें ,इन्सनिअत को अपने दैनिक व्यव्हार में ले आए तो न सिर्फ अपने समाज,अपने देश, बल्कि पूरे विश्व में सुख समृधि एवं विकास की लहर पैदा कर सकते हैं.
शनिवार, 5 फ़रवरी 2011
अरब देशों के क्रांति कारी आन्दोलन
आधुनिक युग में प्रत्येक देश की जनता अपने देश में प्रजातंत्र का शासन चाहती है, जिसमें प्रत्येक धर्म,प्रत्येक समुदाय,एवं प्रत्येक व्यक्ति की भावनाओं,आशाओं,आकाँक्षाओं ,विचारों को महत्त्व मिले.विश्व के प्रत्येक लोकतान्त्रिक देश का कर्त्तव्य है सभी क्रांति कारी देशों को अपने देश में लोकतान्त्रिक व्यवस्था लागू कर पाने में पूरा पूरा सहयोग करे।
यदि सयून्क्त राष्ट्र संघ एक नियम बना कर निश्चित कर दे ,की उसकी सदस्यता पाने के लिए देश का लोकतान्त्रिक होना आवश्यक हो अन्यथा मान्यता न दी जायगी .और गैर लोकतान्त्रिक देशों से कोई भी देश आर्थिक सम्बन्ध नहीं रखेगा, तो अवश्य ही पूरे विश्व की जनता को निरंकुश शासकों से मुक्ति मिल सकती है.जिन देशों में लोकतान्त्रिक व्यवस्था कायम है, उन देशों में कोई भी व्यक्ति या कोई समूह निरंकुश शासन लाने की जुर्रत न कर सकेगा .लोकतान्त्रिक व्यवस्था को छिन्न भिन्न करने का साहस नहीं कर सकेगा
विकसित देशों को अपना स्वार्थ त्याग कर पूरे विश्व की जनता के हित में सोचना होगा और आन्दोलन ग्रस्त देशो में लोकतंत्र शासन लाने के लिय सार्थक प्रयास करने होंगे ताकि पूरा विश्व मानवीय मूल्यों का साक्षी बन सके
बुधवार, 2 फ़रवरी 2011
धर्म के नाम पर सब चलता है
धर्म के नाम पर हमारी सरकार और फिर जनता भी कुछ ज्यादा ही सहिष्णु है. यही कारण है शिव तेरस पर , जब कावण लाने की होड़ लगती है,तीन चार दिन के लिए अनेक मुख्य मार्ग आम ट्रेफिक के लिए बंद कर दिए जाते हैं,नमाज जुम्मे की हो या फिर ईद की यदि मस्जिद में जगह कम है तो आप सड़क पर भी नमाज अदा कर सकते हैं,और ट्रेफिक जाम करने के लिय पोलिस है ही।
धर्म की रक्षा के नाम पर आम सभ्य एवं शालीन व्यक्ति भी परधर्मी (दूसरे धर्म का अनुयायी) के साथ हिंसक व्यव्हार एवं हत्या करने से भी परहेज नहीं करता, जो बाद में धार्मिक दंगे का रूप ले लेता है।
धर्म के नाम पर विभिन्न आयोजनों को पूर्ण करने में जितनी उर्जा ,धन और समय हम खर्च करते हैं,यदि उसे उत्पादक कार्यों में लगा पायें तो हम अपना,अपने समाज का, अपने देश का विकास तीव्रता से कर सकते हैं।
हमारे देश मे धेर्म के नाम पर सब् कुछःसंभव है। आप मैन रोड पर, चोराहे पर, सरकारी खाली पडी जमीन पर,कही भी मन्दिर कि स्थापना कर सकते हैं,मजार बना सकते हैं,देवी देवता की मूर्ति लगा सकते है,दलितो के मसीह कि मूर्ति खड़ी कर सकते है।देश कोई ताकत ऐसी नही है जो आपके धार्मिक कार्य मे बाधा डाल सके।
कैसा लगता है जब आपको आपके बुजुर्गों से सैर सपाटे पर जाने की इजाजत नहीं मिलती परन्तु धार्मिक तीर्थ स्थानों जैसे वैष्णो देवी, शाकुम्भरी देवी,या अमृतसर का स्वर्ण मंदिर या फिर कलियर का मेला पर जाने की इच्छा व्यक्त करते ही ख़ुशी से इजाजत मिल जाती है और इस बहाने से आपकी पर्यटन की इच्छा भी पूर्ण हो जाती है।
धर्म के नाम पर ,धार्मिक आयोजनों के नाम पर चंदा बसूलने वाले अनेक मिथ्या लोग अपनी रोजी रोटी मजे से चलाते हैं। प्रत्येक व्यक्ति धर्म के नाम पर मांगने वाले को मना करने में धर्म संकट में फसने लगता है. और मना नहीं कर पाता .
शनिवार, 29 जनवरी 2011
शायद हमारे भी कुछ कर्तब्य होते हैं
मेरे नवीनतम लेख अब वेबसाइट WWW.JARASOCHIYE.COM पर भी उपलब्ध हैं,साईट पर आपका स्वागत है.-----------FROM APRIL 2016
बुधवार, 26 जनवरी 2011
जरा सोचिये (नारी उत्थान अभियान )
- वर्तमान युग में हम को कितने भी विकसित एवं शिक्षित समाज का हिस्सा मानते हो परन्तु हमारी मानसिकता अभी भी महिलाओं के प्रति पख्श पात पूर्ण है आखिर नारी को समानता का दर्जा देने में झिझक क्यों?
- भारतीय समाज में कामकाजी महिलाओं की स्तिथि भी सुखद नहीं है क्योंकि कामकाजी महिलाओं को अपने कामकाज के अतिरिक्त घरेलू कार्यों के लिय भी पूरी मशक्कत करनी पड़ती है। क्योंकि पुरुष प्रधान समाज होने के कारण पुरुष घरेलु कार्यों को करने से परहेज करता है।
- संसार में जितने भी जीव जंतु हैं उनमें सिर्फ मानव जाति की मादा (नारी) बच्चों की देख रेख के अतिरिक्त (जो अन्य जीव भी करते हैं) पूरे परिवार एवं पति की स्वास्थ्य सम्बन्धी आवश्यकताओं के साथ साथ अन्य सभी घरलू कार्यों में भी सहयोग करती है।
- नारी समाज के उत्थान से तात्पर्य है सामाजिक पक्षपात से मुक्ति। नारी उत्थान का अर्थ यह कदापि नहीं है की समाज नारी प्रधान हो जय और नारी समाज पुरुषों का शोषण करने लगे,या प्रताड़ित करने लगे.नारी समाज के उत्थान का तात्पर्य है उसे उसके प्रति निरंकुशता,क्रूरता,अमानवीय व्यव्हार से मुक्ति मिले.लिंग भेद से छुटकारा मिले।
- यह कटु सत्य है नारी कल्याण के लिय बनाय गए कानूनों का दुरूपयोग भी हो रहा है,जो पुरुषों के शोषण का कारण बन रहा है.शायद हमारे कानूनों में कुछ कमियां रह गयी है,जिनका लाभ निम्न मानसिकता वाले लोग लाभ उठाते हैं
सोमवार, 24 जनवरी 2011
जरा सोचिये (भौतिक वाद और इन्सनिअत)
मेरे नवीनतम लेखों को पढने के लिए विजिट करें WWW.JARASOCHIYE.COM प्रारंभ अप्रैल २०१६
१ डॉक्टर अपना मेडिकल कोर्स पूर्ण कर उपाधि लेते समय मानवता के प्रति कर्तव्य निभाने की शपथ लेता है.परन्तु जब वह अपना व्यवसाय करता है तो अपनी भौतिक अवश्यक्ताओ के वशीभूत हो कर अपनी शपथ भूल जाता है.और मरीजों से अपनी योग्यता की पूरी कीमत वसूलता है.और मानवीय मूल्यों को नकार देता है.२ कुछ दुकान दार उद्यमी, व्यापारी खाद्य पदार्थों दवाइयों में मिलावट कर अथवा नकली माल उत्पादित कर जनता के जीवन से खिलवाड़ करते हैं. धन पिपासा ने उन्हें इन्सान से जानवर बनने को मजबूर कर दिया है.
३ शिक्षको को समाज के निर्माण करता के रूप में जाना जाता है,इसलिय उनके व्यवसाय को सम्मान की दृष्टि से देखा जाता है.परन्तु बच्चों के भविष्य निर्माण के जिम्मेवार स्कूल कालेज के प्रबंधक अभिभावकों से असीमित धनराशी वसूल कर शोषण करते हैं.और अपनी तिजोरियां भरते हैं.शिक्षक भी पढाई में उचित ध्यान न देकर ट्यूशन द्वारा कमाई करना अपना अधिकार समझते हैं. और शिक्षा को दौलतमंदों की बपोती बना कर रख दिया है.गरीब परन्तु मेधावी छात्र उच्च गुणवत्ता वाली शिक्षा से वंचित रह जाता है
४ राजनैतिक नेता जो देश के कर्णधार हैं, जिन पर जनता के कल्याण की जिम्मेदारी होती है,अपने आर्थिक लाभ के बिना कुछ भी करने को तय्यार नहीं होते. और अब तो धन लोलुपता की कोई सीमा भी नहीं रह गयी है.
५ बड़े बड़े पदों पर विराजमान अधिकारी धन के लिय देश की गुप्त जानकारियां भी बेच देने में संकोच नहीं करते.
६। न्याय की सीट पर बठे महानुभाव भी अनियमित आचरण के शक के दायरे में आने लगे हैं.
आम सरकारी कर्मी जिसका वेतनमान आम जनता की आमदनी से कही अधिक है फिर भी अतिरिक्त आमदनी पर नजर बनाय रहते हैं.
७. आम पुलिस कर्मी स्वयं को सुपरमेन समझता है अतः अधिक से अधिक भौतिक सुविधायं जुटाने के लिय आम आदमी की खाल का सौदा करता रहता है.
यही है हमारे देश की महानता