निकट भविष्य में डाकू जाति सिर्फ इतिहास के पन्नों तक सीमित रह जायगी.धीरे धीरे यह जाति विलुप्त हो रही है. क्योंकी आम जनता काफी जागरूक हो गयी है. प्रशासन दिन पर दिन हाई टेक होता जा रहा है. अतः उसका शिकंजा अधिक मजबूत होता जा रहा है. नामी गिरमी डाकू पर इनाम कि घोषणा से उसको उसके चमचों द्वारा ही उसे काळ का ग्रास बनना पडता है.नई प्रजाती अर्थात सुपर डाकू , डाकू से अधिक बुद्धिमान बेराहम शातिर होते है.वे अपने छाद्म वेश में सम्मान पूर्वक अर्थात साम्मानीय हो कर रहते है.आखिर कौन है ये सफेद पोश सुपर डाकू? आईये बात ही देते है , ये है हमारे देश के भ्रष्ट नेता,भ्रष्ट नौकर शाह , मिलावट खोर, मुनाफा खोर व्यापारी एवं विभिन्न जाल साज.आजकल इस प्रजाती में एक नयी शाखा खुल चुकी है,जिसमें अपार सम्मान,अपार धन दौलत एवं अएशो आराम के सभी साधन मौजूद होते है. और वह है,साधू संतों में घुसपेठ.अब सफेदपोश ,साधु ओं के वेश में आने लगे है.क्या कारण है आज लोग डाकू के स्थान पर सुपर डाकू बनना पसंद कर राहे है?
डाकुओं को बीहड़ जंगलो में खानाबदोष हो कर रहना पडता है. दिनचर्या जटिल होती है खाने पीने, रहने कि सुचारू एवं स्थायी व्यवस्था नहीं होती. पुलिस बल का खोफ प्रतिक्षण बना रहता है. परंतु सफेद पोश डाकू यांनी सुपर डाकू को सम्मान कि जिंदगी जीने का अवसर प्राप्त होता है,सारी सुख सुविधाये अक्सर जीवन भर बनी रहती है.
पोलीस द्वारा सताय जाने कि चिंता न के बराबर होती है.क्योंकी उपर तक उनका कमीशन पहुंच जाता है.नेता और नौकर शाहो के तो पुलिस विभाग मातहत होता है दुर्भाग्य वश यदि कोई धांधली पकड में आती है तो दौलत और पद के दवाब से केस को दाबा दिया जाता है. साबूत नष्ट कर दिये जाते है.अब यदि कोई बेचारा बिलकुल हि नसीब का खोटा होता है, मिडिया एवं सी बी आई के हत्थे चढ कर पश्चताप का महान अवसर पा लेता है.और कानून का शिकार हो जाता है.अन्यथा पूरा जीवन दुनिया कि सारी सुख सुविधाओं के साथ गुजरता है.
डाकू अक्सर सामने आकार वर करता है,अतः साधारण व्यक्ती भी उनसे बचाव के प्रयास कर लेता है. अपने को सुरक्षित कर लेता है.परंतु सुपर डाकू का वार अदृश्य होता है.अतः किसी को पता ही नहीं चलता किसने चाबूक चलाया ,कितनी बार चाबूक चलाया ,और उसे कितना गहरा घाव हुआ है. कभी कभी तो पीड़ित के आंसू भी वह स्वयं ही आकर पोंछ रहा होता है.उसकी सहायता कर पिडीत कि दृष्टी में मसीहा बन जाता है, है न कमाल का सुपर डाकू?
डाकू अक्सर अमीरों के यहाँ डाका डालता है.परन्तु सुपर डाकू बिना किसी पक्षपात किये सब पर बराबर और लगातार वार करता है.एक डाकू सिधान्तवादी होता है,उसके मन में गरीबों के लिय हमदर्दी होती है. अतः कभी कभी उनकी सहायता भी कर देता है. परन्तु सुपर डाकू यदि सहायता भी करता है,तो अपने अगले वार को पक्का करने के लिय जैसे कोई कसाई अपने बकरे को काटने से पूर्व उसकी भरपूर खिलाई कर तगड़ा करता है.अतः उनकी सहायता भी उनकी कुटिल चल का सुन्दर रूप होती है.
डाकू बेचारा एक सिमित इलाके तक अपनी गतिविधियाँ चला पाता है,परन्तु सुपर डाकू कि कार्य गत सीमाए अंतहीन होती हैं,अतः उनकी कमाई डाकुओं से कई गुना अधिक होती है. उसके लिय पूरा देश उनके शिकार का अखाडा होता है.
अक्सर डाकू अपनी संतान को अपने व्यवसाय में डालने से कतराता है,यदि गिरोह को सम्हालने और अपनी सुरक्षा का मामला अटकता है तो ही अपने बेटे को अपने व्यवसाय में डालेगा अन्यथा नहीं. परन्तु सुपर डाकू हमेशा अपनी संतान को जन्म से ही अपने धंधे कि जानकारी एवं प्रक्षिक्षण देता है, ताकि उसका भविष्य भी सुरक्षित एवं सम्मानजनक बन सके.
परन्तु क्यों फल फूल रहें हैं सुपर डाकू? यह भी एक ज्वलंत प्रश्न है.इसका मुख्य कारण भी स्वयं पीड़ित होने वाली जनता है.क्योंकि शासन एवं प्रशासन में व्याप्त भ्रष्टाचार के सामने वह नतमस्तक हो चुकी है. जिसे वह सुविधा शुल्क के रूप में स्वीकार कर चुकी है.मिलावट खोरों और मुनाफाखोरों को संरंक्षण देने के लिय उसने अपना हाजमा मजबूत कर लिया है. फिर जहरीली वस्तुएं खा कर चाँद लोग मर भी गए तो क्या? दुर्घटना में भी तो मौत हो जाती है.अपने क्षणिक लाभ के लिय अर्थात चाँद रुपयों ,शराब कि बोतल अथवा अन्य प्रलोभन पा कर अपना वोट भ्रष्ट नेताओं को बेच देते हैं.असामाजिक तत्वों,आतंकियों से मुकाबला न करने कि कसमें खाकर अपनी शांति कि तलाश में लगे रहते है.यह कटु सत्य है,सुपर डाकू हमने यानि आम जनता ने बनाय हैं और हम ही उन्हें पाल पोस रहे हैं क्यूंकि डाकू के वार से हम डरते हैं सुपर डाकू से नहीं.
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