Powered By Blogger

शनिवार, 12 मार्च 2011

होली मनाएँ शालीनता से

होली का त्योहार हिन्दुओं का प्रमुख त्योहार है.होली के माध्यम से हम ग्रिष्म ऋतु के आगमन का स्वागत करते हैं. दुनिया में मनाए जाने वाले सभी त्योहरों में हमारे इस त्योहार को मनाने का ढंग बिल्कुल निराला है. होली की मस्ती में समाज के प्रत्येक वर्ग रंगो से सरवोर होकर गले मिलना, इस त्योहार का अनोखा अन्दाज है. यह सामाजिक समरसता का भाव दिखाता है. हम सभी भेद भाव भूल कर यानी गरिब,अमीर,बडा छोटा,एक दूसरे से गले मिल कर सहज हों जाते हैं. धार्मिक परम्पराओं के अनुसार होली से पूर्व होलिका पूजन एवं होलिका दहन भी उत्साह पूर्वक मनाया जाता है. इस लेख का मकसद होली का वर्णन कर्ना नहीं है. बल्कि होली के अवसर पर होने वली विसंगतियों की ओर पाठ्कों का ध्यान आकर्षित कर्ना है.ताकी हम इन् विसंगतियों को समझ कर सुधारने का प्रयास करें और होली का त्योहार खुशियों की यादगार सिद्ध हों, न की हमारे भविष्य के लिय अभिशप्त हों जाए
होलिका दहन के लिए एक ही मोहल्ले में अनेक स्थानों पर होली रखी जाती है. शायद यह हमारी घटी सहन शक्ति का परिणाम है की हम पचास साठ परिवारों के गुट में बन्ट कर होलिका दहन करते हैं. प्रत्येक होली में जलाने के लिए कम से कम पाँच कुन्तल लकडी की अवश्यकता होती है अब सहज ही अन्दाज लगाया जा सकता है, पूरे शहर में होलिका दहन के लिय कितनी लकडी की अवश्यकता होगी. इसी प्रकार पूरे देश में शायद मात्र होली के दिन हम हजारों टन लकडी स्वाहा कर देते हैं.लकडी पाने के लिए वनों की कटाई की जाती है, परिणाम स्वरूप जन्गलों का क्षेत्रफल नित्य प्रति घट ता जाता है,और पर्यावरण असन्तुलन बढ्ता है.साथ ही अनेक आवश्यक कार्यों के लिय लकडी की उपलब्धता कम होती है. वर्तमान में ग्लोबल वर्मिंग में वनों की कटाई का बहुत बडा योगदान है. यदि प्रत्येक कस्बे में एवं प्रत्येक मुहल्ले में सिर्फ एक ही होलिका दहन का कार्य क्रम मिलकर मनाएँ तो इस समस्या से कुछ हद तक निबता जा सकता है और त्योहार की खुशियों में कोई कमी भी नहीं अयेगी. मोहेल्ले में आपसी मे आपसी मेलजोल में भी वृद्धि होगी क्योंकी होली एक सामुहिक त्योहार है. होली तो मनायेंगे परन्तु पर्यावरण भी बचायेंगे
,होली के खास दिन पर हम सभी एक दूसरे को रंग बिरंगे पानी से भिगोते हैं और गुलाल आदि से चेहरों को रंग बिरंगा बना कर गले लग जाते हैं. परन्तु इसी मस्त भरे माहोल मे हम बिना सोचे समझे किचड, पेंट. प्रेस की स्याही जैसे अवान्छनिये रंगों का प्रयोग करते है. परिणाम स्वरूप अनेक लोग त्वचा रोगों के शिकार होते हैं और कभी कभी आन्खों के रोगों को आमन्त्रित कर लेते है.कुछ लोग दुश्मनी निकालने के लिए इस त्योहार पर तेजाब जैसे खतरनाक द्रव डाल कर अपनी इर्ष्या का बदला लेते है. यही कारण है आज होली का उत्साह दिन प्रतिदिन घट्ता जा रहा है.आज का युवा स्वास्थ्य एवं सौन्दर्य के प्रति अधिक सजग हों गया है,और वह होली खेलने से बचने लगा है.इस पवन पर्व पर यदि हम हल्के हानि रहित रंगों एवं हर्बल गुलाल के साथ शालीनता से मनाएँ तो त्योहार का आनन्द दुगना हों जयगा और बेपनाह पानी खर्च होने से बचत भी होगी.खुशियाँ तो मनायेंगे परन्तु किसी को हानि नही होने देंगे
.होली के इस पवन पर्व पर्व पर एक सबसे बादी त्रासदी है नहस करने की आदत. अनेक लोग इसे शराब पीने अथवा गाँजा चरस भंग आदि का नशा कर त्योहार का आनन्द उठने को ही होली मानते हैं. कभी कभी तो खाद्य पदार्थों में ढोके से नशिले पदार्थ मिलाकर अन्य लोगों को नशे में झुमते हे देख कर खुश होते है. हों सकता है जिसे नशा करने की आदत न हों तो उसका स्वास्थ्य ही बिगाद जाए. यदि इन्सान नशा करने को ही होली की खुशी मनता है तो यह सिर्फ उसका भ्रम है.और इस पवन पर्व का अपमान है. जब नशे में इन्सान अपने होशो हवास में ही नही रहा तो त्योहार का आनन्द कैसे मनायेगा और नशा कर्के आनन्द तो कभी भी मनाया जा सकता है फिर होली पर ही क्यों?होली का त्योहार नशा मुक्त हों कर मनायेंगे .
उपरोक्त सभी विसंगतिया इस प्रकार की हैं जो पूरे समाज को बदलने पर ही सम्भव है, परन्तु यदि हम स्वयं अपने को बदलने का प्रयास करेंगे तो धीरे धीरे बदलाव की लहर भी आएगी. त्योहार की पवित्रता, शालीनता बनी रह सकेगी. समाज के प्रति हमारा दायित्व भी पूरा हों सकेगा.

कोई टिप्पणी नहीं: