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रविवार, 20 फ़रवरी 2011

महिला सशक्ति करण

जैसे जैसे शिक्षा का प्रसार हो रहा है,हमारे देश की बेटियां,महिलाएं पढ़ लिख कर आगे बढ़ रही हैं.। अब महिलाओं ने हर क्षेत्र में अपनी उपस्तिथि दर्ज करायी है.कामकाजी महिलाएं परिवार को आर्थिक सहयोग दे रही हैं। अब वे मुख्यमंत्री,प्रधानमंत्री,राष्ट्रपति जैसे महत्वपूर्ण पदों को सुशोभित कर रही हैं.इंजिनीअर डॉक्टर जैसे क्षेत्रों में तो पहले से ही महिलाऐं आती रही हैं। अब पुलिस विभाग, मिलिट्री जैसे पुरुष प्रधान विभागों में भी अपनी पैठ बना लीहै.अब महिलाऐं ट्रक,कार वायुयान व ट्रेन भी चला रही हैं। सरकार ने भी उनके शोषण रोकने और उनकोविकासोन्मुख बनाने के लिय अनेक कानून बना कर महिला कल्याण का मार्ग प्रशस्त किया है।

परन्तु उपरोक्त विकास अभी भी शैशव अवस्था में है.और कुछ प्रतिशत महिलाऐं ही आगे आ पाई हैं। पिछड़े क्षेत्रोएवं देहातों में अब भी स्तिथि दयनीय बनी हुयी है.और उससे भी दयनीय है हमारी पारंपरिक सोच.जब तक हमसभी अपनी सोच में बदलाव नहीं लायेंगे महिलाओ का समग्र विकास असंभव है।

आयिए देखें कुछ तथ्य;

कन्या भ्रूण हत्या आज भी हो रही हैं,वर्ना महिला, पुरुष अनुपात में महिलाओं की संख्या क्यों घट रही है?

हमारे परिवारों में बेटियों को उच्च शिक्षा से अभी भी क्यों वंचित किया जा रहा है?

बढती दहेज़ प्रथा (अनेक कानून होने के बावजूद) नारी समाज का खुले आम अपमान नहीं है?

दहेज प्रथा गैर कानूनी है अतः सोदे बाजी अंदरखाने होती परन्तु शादी का खर्च तो अब भी लड़की वाला ही उठाता हैजिस पर कोई कानूनी बंदिश भी नहीं है. परन्तु लड़की वाला ही क्यों खर्च करे?

बेटी की कमाई का प्रयोग आज भी माता पिता के लिय वर्जित है क्यों ?.

आज भी बेटी अपने माता पिता को शारीरिक अथवा आर्थिक सहयोग के लिए पति एवं ससुराल वालों पर निर्भर है क्यों ?

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