Powered By Blogger

रविवार, 2 सितंबर 2012

सोशल मिडिया पर अंकुश कितना उचित?


  सोशल मिडिया पर अंकुश कितना उचित?
    

        एक समय था जब लोगों तक अपनी बात पहुँचाने का माध्यम समाचार पत्र या पत्रिका हुआ करते थे. जब सरकार द्वारा जनता तक अपना सन्देश पहुँचाने के लिए डंका या नगाडा बजा कर गली गली अपने आदेशों, संदेशों  या चेतावनी को प्रचारित किया जाता था.उसके पश्चात रेडियो ने यह स्थान ले लिया जो जनता को नियंत्रित करने अर्थात सरकार को शासन-व्यवस्था चलाने में सहायक बने. जब टी.वी.और फिल्मों का दौर आया तो प्रचार प्रसार का माध्यम और भी प्रभावकारी हो गया. परन्तु कंप्यूटर की खोज ने तो विचार क्रांति पैदा कर दी और पूरी दुनिया एक मंच पर एकत्र हो गयी. इलेक्ट्रोनिक मीडिया और सोशल मीडिया ने जनता को सरकार की हर गतिविधी की जानकारी उपलब्ध करनी शुरू कर दी. अन्ना और बाबा रामदेव के आन्दोलन को प्रचारित करने और जनता को आन्दोलन से जोड़ने में इलेक्ट्रोनिक और सोशल मिडिया की मुख्य भूमिका रही. पिछले वर्ष अनेक अफ़्रीकी और खड़ी के देशों की क्रांति का श्रेय भी इन्ही नवसृजित माध्यमों को ही जाता है. इसी प्रकार असम में हुई जातीय हिंसा की आग को मुंबई हैदराबाद या बंगलौर तक पहुँचाने में सोशल मिडिया का ही कारनामा दिखा. हमारे देश की सरकार तो पहले से ही जो जनता में भ्रष्टाचार के लिए फजीहत की शिकार होने के कारण सोशल मिडिया को मानती है.उसे अपना दुश्मन मानकर इस पर नियंत्रण करने के मूड में थी. वर्तमान घटना ने उसे एक बहाना दे दिया,अपने मिडिया पर नियंत्रण के प्रस्ताव को उचित मानने का , सोशल मिडिया के नकेल कसने का , अपने विरोधियों को चित्त करने का. उसकी पहले से ही मंशा रही है सभी प्रचार माध्यम सत्तारूढ़ पार्टी और सरकार के पक्ष में ही अपनी बात जनता के समक्ष रखे अर्थात सभी माध्यम स्वतन्त्र अभिव्यक्ति का जरिया न होकर सरकरी भोंपू बन जाएँ और सत्तारूढ़ पार्टी के नेता अपने हितों की साधने के लिए घोटाले करते रहें और उसकी सत्ता पर पकड़  भी बनी रहे. इस प्रकार  लोकतंत्र के सबसे सशक्त स्तंभ को अपनी मुट्ठी में कर ले,और जनता को लूटने के अवसर उसे मिलते रहें,चुनावों में उसकी जीत सुनिश्चित होती रहे.
  कोई भी नयी वैज्ञानिक खोज होती है तो उसके लाभ आम आदमी को मिलते है तो यही खोजे और तकनीकें अपने साथ कुछ नुकसान भी लेकर आती हैं.परन्तु उसके नुकसान से घबरा कर उन खोजों से मानवता को वंचित नहीं कर दिया जाता. विकास के रास्ते बंद नहीं कर दिए जाते बल्कि उसमे व्याप्त खामियों को दूर करने के प्रयास किये जाते हैं,समाधान खोजे जाते हैं, जिससे उस नयी खोज से मानवता के नुकसान को रोका जा सके.और उसके लाभ मानव जाति  को उपलब्ध हो सकें.
   बिजली का अन्वेषण होने के पश्चात अनेक लोग उसके झटके के शिकार हुए,अनेकों को जान से हाथ धोना पड़ा, तो अनेक लोग घायल हुए.परन्तु क्या बिजली का उपयोग बंद कर दिया गया? बल्कि जनता को उसको उपयोग करते समय सावधानियां बरतने के लिए शिक्षित किया गया.और आज विशाल के कारखानों का अस्तित्व बिजली पर ही निर्भर है.
  सड़क पर अनेक कार, बस, ट्रक और अन्य वाहन आये और सड़क दुर्घटनाओ ने नित लोगों के जान से हाथ धोना पड़ा,और आज भी अनेकों सड़क हादसे होते रहते हैं. तो क्या सडक बंद कर दी गयीं.यदि आवागमन को बाधित कर दिया जाये तो मानव विकास एक दम रुक जायेगा.अतः आवागमन को बाधित न कर,सड़क दुर्घटनाओं को रोकने के उपाय खोजे गए,और आज भी शोध  जारी है.
  इसी प्रकार से वायुयान हो या अंतरिक्ष यान अन्य अनेक नए अविष्कार सभी अनेक प्रकार की सुविधाओं के साथ साथ समस्याओं और खतरों  को भी लेकर आये, परन्तु सब समस्याओं के समाधान भी खोजे गए और मानव हित में उनका उपयोग किया गया.और आज मानव विकास का माध्यम बने.
   ठीक इसी प्रकार से लोकतंत्र में जनता की अभिव्यक्ति की आजादी को किसी  भी प्रकार से रोक देना उचित नहीं माना जा सकता.तो क्या सोशल मिडिया से होने वाले नुकसान को आंख मूँद कर बैठे देखा जा सकता है? इस विषय पर कुछ प्रश्न विचारणीय हैं
क्या अभिव्यक्ति की आजादी का अर्थ है
;
१,कोई भी किसी को गाली देने,व्यक्तिगत आक्षेप लगाने या उसका अपमान करने को स्वतन्त्र है.
२,प्रेस,या इलेक्ट्रोनिक मिडिया,सोशल मिडिया की आजादी का लाभ जनता में वैमनस्यता फैलाने के लिए किया जाय.
३,कोई विदेशी ताकत हमारे देश की एकता ,अखंडता,और सुरक्षा के साथ खिलवाड करे.
४,कोई भी व्यक्ति या समुदाय जनता में धार्मिक विद्वेष या जातीय नफरत,अफवाह फ़ैलाने को स्वतन्त्र हो जाय.देश की एकता अखंडता और सार्वभौमिकता पर चोट करता रहे

.
   परन्तु क्या  देश और समाज की सुरक्षा के नाम पर, जनता को व्यवस्थित करने के नाम पर सोशल मिडिया पर अंकुश लगाने की स्वीकृति दे दी जाय?

१,क्या सोशल मिडिया के दुरूपयोग को रोकने के लिए, इस पर लगाम लगाने के लिए, सरकार को सम्पूर्ण अधिकार देना उचित होगा?
२.क्या सोशल साइट्स के विरुद्ध बनाये गए नियम, सरकार को निरंकुश नहीं बना देंगे ?
३,क्या अभिव्यक्ति की आजादी पर अंकुश लगाकर देश में लोकतंत्र बाकी रह जायेगा.१९७५ की आपात स्थिति सरकार द्वारा प्रेस की आजादी पर लगाम लगा देने के कारण ही बनी थी.
४, सोशल मिडिया एक साधारण से साधारण व्यक्ति के लिए अपनी आवाज,अपनी मांग,अपने मान व्याप्त क्रोध को सरकार और दुनिया तक पहुँचाने का एक मात्र माध्यम है.लोकतांत्रिक देश में आम आदमी के मुहं पर ताला लगा देना उचित होगा.क्या उसकी अभिव्यक्ति की आजादी छीन लेने से आम आदमी कुंठाग्रस्त नहीं हो जायेगा.क्योंकि प्रेस और अन्य इलेक्ट्रोनिक मीडिया के द्वारा आम आदमी नहीं जुड सकता 

.
तो क्या हों समाधान?;

       तो फिर क्या समाधान हो,ताकि सरकार की निरंकुशता भी जनता को न सहनी पड़े और देश और समाज की सुरक्षा भी बनी रहे.
१ ,सरकार प्रत्येक आपत्ति जनक सामग्री की व्यख्या स्पष्ट करे और उनको लागू करने के लिए आवश्यक नियम बनाये.नियम और कानून पूर्णतयः पारदर्शी हों ताकि कोई भी सत्तानशीं व्यक्ति या अधिकारी उन्हें अपने हितों के अनुसार परिभाषित न कर सके, अपने  व्यक्तिगत द्वेष के लिए,या अपने हितों को साधने के लिए उन नियमों का उपयोग न कर सके.
२ ,प्रत्येक सोशल साईट चलाने वाले को जिम्मेदारी सौंपी जाये की वह अपने साइट्स पर आने वाली सामग्री की  निरंतर समीक्षा करे और आपत्ति जनक सामग्री को तुरंत हटाये तथा आपति जनक सामग्री डालने वाले पर अपना शिकंजा कसे.
३,कोई भी ऐसा सोफ्टवेयर विकसित  किया  जाय जो स्वतः सरकार द्वारा परिभाषित  आपतिजनक सामग्री को हटा दे अथवा चेतावनी दे दे.
४,जनता को उसकी जिम्मेदारी के प्रति जागरूक किया जाय और बताया जाए किस प्रकार की आपतिजनक सामग्री उसे जेल की सलाखों के पीछे पहुंचा जा सकती है.
५.एक निगरानी समिति बनायी जाये, जो सरकार द्वारा निश्चित की गयी आपत्ति जनक सामग्री की निरंतर समीक्षा कर सके और उसे प्रकाशित  करने वालो पर अंकुश लगा सके,उन्हें दण्डित करने के लिए आवश्यक उपाए कर सके.


    उपरोक्त उपायों को करने के लिए सत्ताधारी नेताओं की दृढ इच्छा शक्ति की आवश्यकता है .तत्पश्चात असम जैसी घटनाओं की पुनरावृति को जा सकता है.और देश को विदेशी चालों से सुरक्षित किया जा सकता है 
                 सत्य शील अग्रवाल,           


रविवार, 1 जुलाई 2012

नरेन्द्र मोदी संभावित भावी प्रधान मंत्री.


नरेन्द्र मोदी संभावित भावी प्रधान मंत्री.
     वर्तमान समय में जिस प्रकार से सत्तारूढ़ कांग्रेस नेतृत्व वाली यू.पी.ए सरकार भ्रष्टाचारों, घोटालों के चक्रव्यूह में घिर चुकी है,नित नए घोटाले जनता के समक्ष आ रहे है,देश की अर्थव्यवस्था रसातल में जा रही है,महंगाई जनता की कमर तोड़ रही है,रूपए का मूल्य निम्नतम स्तर पर आ चुका है,जनता का कांग्रेस सरकार के प्रति मोह भंग हो चुका है.ऐसे समय में जनता को किसी अच्छे  विकल्प की तलाश होगी, जो कांग्रेस से बहतर ,भ्रष्टाचार मुक्त शासन दे सके.क्योंकि देश में भारतीय जनता पार्टी ही मुख्य एवं सबसे बड़ी राष्ट्रिय विपक्ष पार्टी है.स्वाभाविक है सभी की आकांक्षाएं इसी पार्टी से बन रही हैं.२०१४ के आम चुनाव में भारतीय जनता पार्टी को सत्ता मिलने की सम्भावना बनती नजर आ रही है.जो पार्टी के सभी दिग्गज नेताओं के लिए कोतुहल पैदा कर रही है.लाल कृष्ण अडवाणी ,सुषमा स्वराज ,नितीश कुमार ,नितिन गडकरी जैसे अनेको नेता प्रधान मंत्री के सपने देखते रहे हैं. .हर बड़ा नेता स्वयं को प्रधान मंत्री की दौड़ में शामिल करने को उत्सुक है.प्रत्येक कद्दावर नेता अपने  भाग्य को चमकाने का अवसर समझ रहा है.बार बार ऐसे आशावादी नेताओं के मन में प्रश्न उठ रहा है,क्या वह प्रधान मंत्री की कुर्सी तक पहुँच पायेगा ?दशकों से राजनीती में अपनी  बिसात बिछाए बैठे बड़े बड़े नेता इस मौके को अपने  पक्ष में करने को उतावले हैं.
      प्रधान मंत्री पद की  इस दौड़ में गुजरात के वर्तमान मुख्य मंत्री का नाम प्रमुख रूप से उभर कर आ रहा है.कारण है, उनका गुजरात प्रदेश में अपने कामकाज,और कार्य शैली के कारण देश भर में उनकी बढती लोकप्रियता. उनके कार्यकाल में गुजरात प्रदेश को  देश के सर्वाधिक उन्नत प्रदेशों में गिना जाना. इसी लोकप्रियता के कारण वे भा.ज.पा.के प्रणेता बन गए हैं.परन्तु पार्टी के अन्य महत्वकांक्षी नेताओं को उनका नाम रास नहीं आ रहा,क्योंकि वे स्वयं अपने  नाम को प्रधान मंत्री के दावेदारों में शामिल करना चाहते हैं.इसलिय ये नेता नरन्द्र मोदी की उभरती छवि से परेशान हैं,हैरान हैं.और विरोधी पार्टियों के साथ उनको साम्प्रदायिक बता कर अपने लक्ष्य को साधना चाहते हैं.अब कुछ नेताओं ने उन्हें हठी,निरंकुश नेता बता कर प्रधानमंत्री पद के अयोग्य बताने का प्रयास कर रहे हैं.इस प्रकार नेताओं की आपसी लड़ाई ने महत्वपूर्ण मोड ले लिया है जो जनता के समक्ष अनेक ज्वलंत प्रश्न खड़े कर रहा है ;
१,क्या नरेन्द्र मोदी को साम्प्रदायिक नेता कहाँ उचित है?
२. क्या नरेन्द्र मोदी को विकास पुरुष के साथ साथ तानाशाह भी कहना चाहिए?
३,जिस प्रकार से मोदी जी ने अपने कार्यकाल में गुजरात को देश के अग्रणी राज्यों में ला खड़ा किया,क्या किसी साम्प्रदायिक नेता के लिए संभव था?
४,क्या मोदी जी में तथाकथित सहन शक्ति का अभाव उन्हें प्रधान मंत्री के अयोग्य ठहराता है?क्या देश को मनमोहन सिंह जैसा चुपचाप बैठे रहने वाला,असीमित धैर्य और सहन शक्ति वाला  प्रधान मंत्री चाहिए.जो देश को रसातल में जाता देखता रहे और कुछ न बोले?
५,क्या मोदी के गुजरात में मुस्लमान भयभीत जीवन जी रहे हैं,क्या उन्हें वहाँ पर नागरिक अधिकारों से वंचित किया जा चुका है ?क्या वे इस राज्य में उन्नति नहीं कर रहे हैं?क्या राज्य की उन्नति का लाभ उन्हें नहीं मिल रहा?
६, क्या गुजरात में २००२ में मोदी के शासन में हुए दंगों के कारण उनको सांप्रदायिक करार  देना उचित होगा? क्या गोधरा कांड की स्वाभाविक जन प्रतिक्रिया, गुजरात दंगों का कारण नहीं थी?
७,काग्रेस के शासन काल में १९८४ के सिक्ख विरोधी  दंगो का जिम्मेदार कौन था? इस प्रकार से क्या कांग्रेस साम्प्रदायिक पार्टी नहीं मानी जानी चाहिए?
८,१९९१ में जब बाबरी ढांचा गिराया गया तब केंद्र में किसकी सरकार थी? क्या तत्कालीन कांग्रेस सरकार की कोई जिम्मेदारी नहीं थी,फिर वह साम्प्रदायिक पार्टी क्यों नहीं?
९.आजादी के पैसंठ वर्षों में अधिक तर देश के शासन की बागडोर कांग्रेस के हाथों में रही फिर क्यों रह रह कर  देश में अनेक शहर साम्प्रदायिकता की आग में झुलसते रहे?
१०.क्या इस देश में हिंदू हित की बात करना साम्प्रदायिकता है और मुस्लिम तुष्टिकरण की बात करना धर्मनिरपेक्षता है?
       उपरोक्त सभी साक्ष्यों से स्पष्ट है की हमारे देश में यदि किसी  की छवि धूमिल करनी हो तो उसे साम्प्रदायिक करार दे दो.इसी षड्यंत्र के अंतर्गत मोदी साहेब के विरुद्ध माहौल तैयार किया जा रहा है.यदि उनके इरादे सफल होते है,तो देश का दुर्भाग्य होगा जो उसे एक योग्य, कर्मठ, ईमानदार, विकासशील, प्रधान मंत्री से वंचित कर देगा. (SA-72C)
   सत्य शील अग्रवाल,  532/6, शास्त्री नगर मेरठ 
         

रविवार, 24 जून 2012

कितना फितरती है इन्सान

<अपने स्वार्थपूर्ति अथवा तथाकथित आत्मसम्मान की संतुष्टि के लिए , हम एक दुसरे का शोषण करते हैं ,रौब ज़माते हैं और अपनी शर्तें मनवाते हैं .इस प्रकार का व्यव्हार कर हम कौन सी सभ्यता और आधुनिकता का परिचय दे रहे हैं ?’जियो और जीने दो ’की धारणा को भूल गए हैं .इन्सान अपने भौतिक विकास को देख कर अभिभूत है .,परन्तु इसी भौतिक विकास ने समाज को नैतिक पतन की खाई में धकेल दिया है .यह कटु सत्य है बिना सामाजिक उत्थान के , बिना नैतिक मूल्यों के ,बिना इंसानियत का परचम लहराए सारी भौतिक उपलब्धियां औचित्यहीन हो जाती हैं . मानव विकास का मुख्य एवं मूल उद्देश्य मानव जीवन को सुविधा जनक एवं शांति दायक बनाना होता है .सामाजिक अशांति ,अत्याचार ,व्यभिचार ,के रहते मानव जाति सुखी नहीं हो सकती .बिना मानसिक शांति के सारी सुख सुविधाएँ अर्थहीन हो जाती हैं . आज प्रत्येक घर परिवार प्रतिद्वंद्विता एवं युद्ध का अखाडा बनता जा रहा है ,जहाँ अन्याय की पूजा हो रही है .पति पत्नी पर रौब गांठता है ,मर्दानगी दिखता है ,उससे अनेक कार्य बलपूर्वक करवाने का प्रयास करता है ,मौका मिलने पर अपमान करता है .परन्तु यदि किसी परिवार में पति शांति और न्याय का समर्थक है ,सबका सम्मान करने में विश्वास करता है ,तो पत्नी हावी होने लगती है ,बात बात पर ताने मारना एवं पति को लज्जित करने में अपनी शान समझने लगती है .शिक्षा के क्षेत्र में या कार्य क्षेत्र में अधिक सफल भाई बहन अपने से कम सफल या असफल ,कम शिक्षित भाई या बहन की उपेक्षा करने लगता है .उनका अपमान करने लगता है ,मजबूरी में फंसने पर उनका शोषण भी करता है .इसी प्रकार यदि परिवार का मुखिया तानाशाही प्रवृत्ति का है तो सभी परिजनों को अपनी उँगलियों पर नाचने का प्रयास करता है .परन्तु इसके विपरीत यदि मुखिया शांत पृकृति तथा न्याय प्रिय है तो परिवार का बेटा आर्थिक सक्षम होते ही अपने पिता को लज्जित करने से संकोंच नहीं करता ,और सभी परिजनों को अपने प्रभाव में लेना चाहता है . अपनी इच्छानुसार परिवार को चलाना चाहता है , अर्थात अपनी इच्छाएं पूरे परिवार के सदस्यों पर थोपना चाहता है आईये अब परिवार से निकाल कर गली मोहल्लों में झांक कर देखते हैं .यहाँ पर कुछ दबंग लोग पूरे समाज को मोहल्ले को अपने रौब में रखने की कोशिश में लगें हैं .ऐसे दबंग लोग अपनी गुंडई के बल पर अपने स्वार्थों की पूर्ती करते देखे जा सकते हैं .ये लोग पूरे समाज के लोगों का शोषण करने में लगे रहते हैं .यदि एक बाहुबली किसी कारण वश शांत हो जाता है तो कोई अन्य बाहुबली उसका स्थान ले लेता है .ऐसे दबंग लोग और उनका गिरोह पूरे समाज के लिए सिरदर्द बना रहता है. और तो और सभी देश अपने बर्चस्व के लिए एक दुसरे देश को अपनी धौंस में रखना चाहते हैं किसी पडोसी देश को उन्नति करते हुए नहीं देख सकते . जब कुछ बस नहीं चलता तो छापामार की लडाई शुरू कर दी जाती है जिसे आतंकवाद के रूप में जाना जाता है .और आज पूरा विश्व इस समस्या से प्रभावित है .प्रत्येक देश उन्नत से उन्नत हथियारों से लेस हो कर विश्व को धमका कर रखने को प्रयास रत है .अमेरिका जैसे देश तो पूरी दुनिया को अपने इशारों पर नाचना चाहता है बल्कि नाचता भी है.
  एक और अन्य वीभत्स रूप भी हमारे समाज में मौजूद है . आजादी के पश्चात् हजारों वर्षों से दबे कुचले अर्थात , दलितों को देश की मुख्य धारा में लाने के लिए ,उनके उत्थान के लिए संविधान में अनेकों कानूनी अधिकार प्रदान किये गए , आरक्षण की व्यवस्था कर शिक्षा एवं रोजगार के अवसर दिए गए ताकि आजाद देश में सम्मान पूर्वक जीने के अवसर मिल संकें . परन्तु आज वे दलित लोग ही समाज उच्च वर्ग पर अत्याचार करने लगे हैं . कानून भंग करने को उत्सुक रहते हैं और अपनी मनमानी करते हैं कानून द्वारा मिले संरक्षण का दुरूपयोग करते हैं.अपने मोहल्लों में स्थित व्यापारियों ,व्यवसायियों , कारोबारियों को अपने शोषण का शिकार बनाते रहते हैं .उनके प्रतिष्ठानों में चोरी ,कर आग लगा कर या रंगदारी वसूल कर उनको परेशान करते हैं ,उनकी आजीविका पर हमला करते हैं .क्या समाज ने ,स्वतंत्र भारत के कानून ने उन्हें शोषण मुक्त इसलिए किया था की अब वे अन्य लोगों का शोषण करने लगें ? और देखिये ,पिछले पचास वर्षों में नारी उत्थान के लिए कानून बना कर उनके कल्याण के लिए मार्ग प्रशस्त किया गया ,ताकि नारी वर्ग जो हजारों वर्षों से प्रताड़ित ,अपमानित ,शोषित जीवन जी रहा था ,उसे मुक्ति मिल सके .उसे पुरुषों के समान अधिकार प्राप्त हो सकें ,वह सम्मान पूर्वक जी सके .परन्तु नारी ने उसके पक्ष में बने कानूनों को हथियार के रूप में इस्तेमाल कर अपने तुच्छ स्वार्थों की पूर्ती करना शुरू कर दिया .अब वह पति एवं ससुराल पक्ष को शोषित करने लगी . आज वह आत्महत्या की धमकी देकर अपनी असंगत बातों को भी मनवाने का प्रयास करती है .किसी विवाहिता की असामयिक मौत हो जाने पर उसके मैके वाले दहेज़ हत्या के झूंठे आरोप लगाकर पूरे ससुराल पक्ष को जेल जाने को मजबूर कर देते हैं ,जिसके लिए जमानत भी कम से कम छः माह पश्चात् होती है .अक्सर पति को तो छः माह पश्चात् भी जमानत नहीं मिल पाती .और बाद में अदालत द्वारा केस झूंठा साबित होता है.मजबूरन आज ‘पति परिवार कल्याण संस्थानों’ के गठन होने लगे हैं .आज तो महिलाएं नारियां इतनी दबंग हो गयी हैं , की अपनी तुच्छ स्वार्थ पूर्ती के लिए अपने परिजन या ससुराल पक्ष के व्यक्तियों की हत्या भी कर देती हैं .कहने का आशय है उन्होंने भी अपराध की दुनिया में कदम रख दिया है, हजारों वर्षों से घर की दहलीज न लांघने वाली नारी अत्याचार का दामन थमने लगी है ,क्या उन्हें यही सब कुछ करने के लिए कानूनी संरक्षण दिया गया है. उपरोक्त विश्लेषण संकेत दे रहे हैं की इन्सान ने कितनी भी प्रगति कर ली हो उसकी मानसिकता में अभी भी शोषण, तानाशाही ,अन्याय करने की भावना पाषाण युग के समान बर्बर ही है. यही कारण है आज के उच्च विकसित समाज में हर क्षेत्र हर स्तर पर अन्याय व्याप्त है .जब एक व्यक्ति को ,एक समुदाय को शोषण मुक्त किया जाता है वही वर्ग या समुदाय नए शोषक के रूप में उभरने लगता है ,समाज का तिरस्कार करने लगता है .अतः हम सभी को आत्म मंथन कर इस प्रकार की बुराईयों से उबरना होगा तब हम एक शोषण मुक्त ,सभ्य समाज का निर्माण कर सकेंगे .विकास का सार्थक लाभ पूरे समाज को मिल सकेगा,जो मानव विकास का वास्तविक उद्देश्य है .

बुधवार, 13 जून 2012

खरीदारी की समझदारी

<script async src="//pagead2.googlesyndication.com/pagead/js/adsbygoogle.js"></script>
<!-- s.s.agrawal -->
<ins class="adsbygoogle"
     style="display:block"
     data-ad-client="ca-pub-1156871373620726"
     data-ad-slot="2252193298"
     data-ad-format="auto"></ins>
<script>
(adsbygoogle = window.adsbygoogle || []).push({});
</script>

 

हमारी सभी भौतिक आवश्यकताएं हमारे अथवा हमारे प्रियजनों द्वारा अर्जित धन से पूरी होती हैं .धन का अर्जन करना कोई आसान कार्य नहीं होता .सतत परिश्रम द्वारा ही हम अपनी एवं अपने परिवार की जरूरतों को पूरा करते हैं .अब यदि परिश्रम से कमाए धन को व्यय करने में भी संयम एवं समझदारी से काम लें तो शायद अपने धन का अधिक सदुपयोग कर सकते हैं .समान खर्चे में अधिक सेवाएं और अधिक वस्तुएं प्राप्त कर सकते हैं .प्रस्तुत लेख में विश्लेषण करने का प्रयास किया गया है की ,खर्च करते समय क्या रणनीति अपनाई जाय ताकि हमें अपने धन का अधिक से अधिक मूल्य प्राप्त हो सके .और अपनी या अपने परिजन की गाढ़ी कमाई को बेकार जाने से रोक सकें .

समाज में आए स्तर के अनुसार तीन भागों में विभाजित किया गया है उन्हें अपनी खरीदारी के निर्णय अपनी आए सीमा के अंतर्गत लेने पड़ते हैं ,चतुर्थ वर्ग में खरीदार की आए नहीं बल्कि उसका आवश्यकतानुसार निर्णय महत्वपूर्ण होता है .
प्रथम भाग ;- इस श्रेणी में उच्चतम आए वर्ग के उपभोक्ताओं को रखा गया है . यह वर्ग खरीदारी करते समय सिर्फ उच्चतम क्वालिटी को ध्यान में रख कर खरीदारी करता है ,अर्थात अपनी पसंद और उच्च गुणवत्ता खरीदारी का उद्देश्य होता है .वस्तु या सेवा की उच्चतम कीमत उन्हें वस्तु की उच्च क्वालिटी का आभास कराती है .
द्वितीय वर्ग ;-इस वर्ग में हमने मध्यम आए वर्ग के उपभोक्ताओं को रखा है .इस वर्ग के व्यक्ति खरीदारी करते समय वस्तु या सेवाओं की गुणवत्ता और मूल्य दोनों का समान रूप से विश्लेषण कर ही अपना निर्णय लेते हैं .हर पहलु से जाँच परख करने के कारण अपने धन का सदुपयोग कर पाने में सर्वाधिक सफल रहते हैं .
तृतीय वर्ग ; -अल्प आए वर्ग अथवा निम्न आए वर्ग खरीदारी करते समय सिर्फ वस्तु की कीमत पर ध्यान देते हैं .इस वर्ग के लोग सिर्फ कम से कम खर्च में अधिक से अधिक वस्तु प्राप्त करने की इच्छा रखते हैं .इसी कारण निम्न गुणवत्ता की वस्तु खरीद लेना महंगा भी पड़ जाता है क्योंकि निम्नतम गुणवत्ता की वस्तुएं कम टिकाऊ होती हैं , और उन वस्तुओं में बहुत बड़ा भाग प्रयोग करने लायक ही नहीं होता .
चतुर्थ वर्ग ;-इस वर्ग के अंतर्गत की खरीदारी अथवा व्यय सभी आए वर्ग के व्यक्तियों द्वारा करनी पड़ती है .यह खरीदारी परिस्थितियों की विवशता के कारण करनी पड़ती है अनेक बार मान सम्मान अथवा शारीरिक -मानसिक रुग्णता में मजबूरी वश करनी होती है ,और बाजार मूल्य से कहीं अधिक खर्च कर अपनी आवश्यकता पूर्ण करनी पड़ती है ,कभी कभी अपनी आर्थिक सामर्थ्य से भी अधिक व्यय करना पड़ता है .वस्तु की कीमत से अधिक उसकी आवश्यकता पर ध्यान देना होता है .जैसे बीमारी की आकस्मिकता ,किसी प्रिय बच्चे की जिद पूर्ण करने की मजबूरी ,किसी आगंतुक या अतिथि के साथ खरीद करते समय ,कुछ दुर्लभ परिस्थितियों में जैसे देर रात के समय आटो न मिलने की स्थिति , दुर्घटना हो जाने पर अपने प्रियजन की जन बचाने की स्थिति में ,किसी शुभ अवसर पर अपनी चिर प्रतीक्षित अभिलाषा पूर्ण करने की स्थिति ,यात्रा के समय आने वाले अनेक दुर्लभ पलों में इत्यादि .
कैसे हो समझदारी से खरीदारी ;-
प्रथम वर्ग ;इस वर्ग के पास धन की कोई सीमा नहीं होती अतः उनकी खरीदारी का लक्ष्य सिर्फ उच्चतम क्वालिटी या अपनी पसंद होता है .उच्चतम मूल्य की वस्तु खरीदना उन्हें गौरव प्रदान करता है . उनकी इसी सोच का व्यापारी ,दुकानदार या सेवा प्रदाता लाभ उठाते हैं .वे क्वालिटी में 10% प्रतिशत की बढ़ोतरी कर कीमत दो गुनी या उससे भी अधिक कर देते हैं .इस वर्ग के सौभाग्यशाली उपभोक्ता यदि अपनी समझदारी से कीमत एवं गुणवत्ता का ध्यान कर अपनी खरीदारी करें तो कुछ पैसा व्यापारी की जेब में जाने से रोककर अपने अधीनस्थ गरीब व्यक्ति का जीवन स्तर सुधारने का प्रयास कर सकते हैं .या फिर किसी अनाथ व्यक्ति के भरण पोषण की जिम्मेदारी निभाकर सामाजिक प्रतिष्ठा बढा सकते हैं और आत्मसंतोष का सुख प्राप्त कर सकते हैं .
द्वितीय वर्ग ;-इस वर्ग के अंतर्गत आने वाले खरीदार काफी समझदारी से अपनी सीमित आए को खर्च करते हैं ,ताकि अपनी आए और व्यय में संतुलन बनाये रख सकें साथ ही वस्तु भी गुणवत्ता वाली प्राप्त कर सकें .कभी कभी गुणवत्ता की जानकारी के अभाव में नुकसान उठाना पड़ता है .उदाहरण के तौर पर मार्केट में आलू 14/ kilo और 10/ kilo दो भाव में उपलब्ध है ,यदि 10/ kilo आलू लेने पर उसमें 300gram आलू ख़राब निकाल जाता है अर्थात सिर्फ 700gram आलू उपयोग में आ पाता है और आलू सस्ता खरीदना महंगा पड़ता है .उसकी छंटाई में श्रम एवं समय अलग से व्यय करना पड़ा .इसी प्रकार कोई कपडा खरीद कर अनेक वर्षों तक चलता है परन्तु अधिक दिन पहनने के कारण उससे मन खीजने लगता है ,महंगा होने के कारण शीघ्र बदलना भी संभव नहीं होता ,यदि कम टिकाऊ परन्तु सस्ता कपडा लिया जाय तो उसी कीमत में दो या तीन जोड़ी कपडे खरीदना संभव होगा और नित्य बदल बदल कर कपडे पहनना संभव हो सकेगा
इसी प्रकार फेशन बदलने के कारण महंगा कपडा खरीदना नुकसानदेह सिद्ध हो सकता है .
तिर्तीय वर्ग ;इस वर्ग में आने वाले खरीदार आर्थिक रूप से अत्यंत सीमित दाएरे में रहकर अपनी आवश्यकताओं की पूर्ती करते हैं .अतः वे गुणवत्ता पर अधिक ध्यान नहीं देते .उन्हें सिर्फ सस्ते संसाधन जुटा लेने की तमन्ना रहती है . वस्तु की मात्रा भी कम से कम खरीदनी पड़ती है ,ताकि कम खर्च से सभी आवश्यक वस्तुएं खरीद सकें .कम मात्रा में वस्तु खरीदने से उन्हें अपेक्षाकृत अधिक कीमत चुकानी पड़ती है
और उन्हें आर्थिक हानि उठानी पड़ती है .सस्ती वस्तु अनेक बार इतनी घटिया क्वालिटी की होती है उसे बार बार खरीदना पड़ता है ,या क्वालिटी ख़राब होने के कारण कम उपयोगी हो पाता है .जैसे कम मूल्य वाला दूध मिलावटी हो सकता है ,सब्जियों में गली सड़ी अधिक मात्रा में हो सकती हैं .अतः खरीदारी करते समय सिर्फ मूल्य देख कर लेना महंगा पड़ जाता है .अपने धन का पूरा मूल्य वसूल हो सके यह देखना भी आवश्यक है .ताकि आपकी परिश्रम से अर्जित की गयी आए का भरपूर सदुपयोग हो सके यदि आवश्यक हो तो किसी अनुभवी मित्र से सलाह लेना उचित हो सकता है .सीमित आए होने के बावजूद यदि प्रत्येक वस्तु को मासिक खपत के आधार पर लेने की आदत डालें तो तो बड़ी मात्रा में वस्तु लेने के कारण सस्ती पड़ सकेगी .इस कार्य के लिए एक एक कर वस्तुओं का संग्रह करने की योजना बनाये. धीरे धीरे आपके मासिक खर्च का चक्र बन जायेगा और आपके अपने बजट में ही अतिरिक्त वस्तुएं खरीद पाने का लाभ उठा सकेंगे.
चतुर्थ वर्ग ;इस वर्ग के अंतर्गत खरीदारी करने में अत्यधिक समझदारी का परिचय देना होता है . क्योंकि निर्णय लेने के लिए अधिक समय नहीं होता अतः आवश्यक वस्तु या सेवा प्राप्त करने के लिए अपने बजट से अधिक खर्च करना पड़ता है .यह जानते हुए की अमुक वस्तु या सेवा महँगी होने के साथ साथ अपनी क्षमता से अधिक है फिर भी समय की जटिलता को देखते हुए ,कठिन परिस्थितियों के कारण अपनी सीमायें तोड़ कर व्यय करने को विवश होना पड़ता है .ऐसे दुर्लभ अवसरों पर कीमतों का विश्लेषण करना या उचित अनुचित देखना ठीक नहीं होता ,मध्यम आए वर्ग एवं अल्प आए वर्ग के लिए संतुलित निर्णय लेना समझदारी होगी
उपरोक्त विश्लेषण से निष्कर्ष निकलता है की प्रत्येक वर्ग के खरीदार को समय की नजाकत ,कीमत ,परिमाण एवं गुणवत्ता में संतुलन बना कर खरीदारी करनी चाहिए ,क्योंकि समझदारी से की गयी खरीदरी आपकी अपरोक्ष रूप से आए बढा देती है आपका धन अधिक मूल्यवान साबित होता है

.
कुछ महत्वपूर्ण बातें;
१,अपने परिवार की कुल आये में से कम से कम १०% प्रति माह बचाना भी आवश्यक है ताकि आकस्मिक आने वाले खर्चो से निबटा जा सके ,जैसे बीमारी या अन्य कोई आकस्मिक खर्च.जो व्यक्ति अपने बजट में बचत को महत्त्व देते है उन्हें जीवन में आर्थिक कठिनाईयों का सामना करने में कम कष्ट होते हैं.
२,हमारे घर का बजट कितना भी बड़ा न हो, घर के बजट अर्थात अपनी आर्थिक सामर्थ्य एवं प्रत्येक खर्चे की वरीयता निश्चित कर खरीदारी करना समझदारी का कदम है.किसी वस्तु या सुविधा पर खर्च करना अधिक आवश्यक है और किस पर नहीं. साथ ही, किस वस्तु पर हम कितना व्यय करने की क्षमता रखते है,इसका विश्लेषण करना भी आवश्यक होता है.
३,अपने घर के बजट का एक अंश, दान के लिए भी रखना उचित होगा,यह अंश दो से पांच प्रतिशत तक अपनी इच्छा के आधार पर रखा जा सकता है. परन्तु दान किसी सुपात्र यानि ऐसे व्यक्ति को दिया जाय जिसे वास्तव में उसकी अपनी मूल आवश्कताओं की पूर्ती के लिए आवश्यक हो.

रविवार, 10 जून 2012

हमारे समाज में तर्कहीन मान्यताएं ---पार्ट -३


  पुनर्जन्म  की   मान्यता ;
punarjanm ki dastan 

सिर्फ  हमारे  देश  में  ही  नहीं  विश्व  भर  के  अनेकों  देशों  में  पुनर्जन्म  की  धारणा  चली  आ  रही  है .जबकि  चिकित्सा  विज्ञानं  के  शोधों  में  मानव  उत्पत्ति  के  लिए  जिम्मेदार  कारकों  का  पता  लगाया  जा  चुका  है  .शोधों  के  अनुसार  पुरुष  के   जननांग  से  उत्सर्जित  असंख्य   (करोड़ों  में ) शुक्राणुओं  में  कोई  एक  शुक्राणु  निषेचित  हो  कर  ही  मानव  का  उद्भव  होता  है  .यह  कैसे  संभव  है  करोड़ों  शुक्राणुओं  में  से  पुनर्जन्म  लेने  वाला  शुक्राणु  हि  निषेचित  होगा ?पुनर्जन्म  की  धारणा  को पुष्ट  करने  के  लिए   समय  समय  पर  अनेक  घटनाओ  का  विवरण  दिया  जाता  है  ,जिनका  तर्क  संगत  उत्तर  अभी    विज्ञानं  ढूंढ  नहीं  पाया  है  ,परन्तु  इसका  यह  अर्थ  नहीं  है  की  पुनर्जन्म  की  धारणा  को  सत्य  मान  लिया  जाय .
   कुछ  मान्यताओं  के  अनुसार  व्यक्ति  मारने  के  पश्चात्  आत्मा  के  रूप  में  अपना  अस्तित्व  बनाये  रखता   है  जिसे  विज्ञानं  नकार   चुका  है  .चिकत्सा  विज्ञानं  के  अनुसार  व्यक्ति  की  मृत्यु  के  पश्चात्  उसका   अस्तित्व  पूर्णतयः  ख़त्म  हो  जाता  है .
    पुनर्जन्म  की  घटनाएँ  एक  ही  भाषा  वाले  समाज  के  अंतर्गत  घटती  हैं ?हिंदी  बोलने  वाला  व्यक्ति  तमिल  भाषी  या  रूसी  भाषी  परिवार  में  जन्म   क्यों  नहीं  लेता .?ब्रिटेन   में  मारने  वाला  इन्सान  भारत  में  क्यों  नहीं  जन्म  लेता ? जो  स्वयम  सिद्ध  करता  है  पुनर्जन्म  की   धारणा  या  इसमें  विश्वास  तर्कहीन  एवं  कपोलकल्पित  है .
श्राद्धों  का  आयोजन ;
shraddh ka ayojan 
                                                हिन्दू  धर्म  में  भाद्रपद   माह  में  पंद्रह  दिन  श्राद्धों  के  रूप  में  मनाये  जाते  हैं . जिसे  अपने  पूर्वजों  की  मृत्यु  तिथि  के  अनुसार  आयोजित  किया  जाता  है  .मान्यता  अनुसार  यह  पर्व  अपने  पूर्वजों  की  दिवंगत  आत्मा  की  शांती  तथा  उनकी  वंदना  का  प्रतीक  है .परंपरा   के  अनुसार  श्राद्ध  के  दिन   अपने  पूर्वजों  को   याद  करते  हुए  उनकी  पसंदीदा  खान  पान  की  वस्तुएं  और  वस्त्र  पंडितों  को  दान  करते  हैं .धारणा  है  की  उनकी  पसंद  की   वस्तुएं  पंडितों  को  खिलने  से  वे  वस्तुएं  पुरखों  तक  पहुँच  जाती  हैं .और  उनकी  आत्मा  तृप्त  होती  है .
     आज  के  भौतिक  वादी  युग  में  अक्सर  देखा  गया  है  ,घर  में  मौजूद  जीवित  रहते  बुजुर्गों  की  पसंद - नापसंद  एवं  उनका  मान  सम्मान  करना  युवा  पीढ़ी  भूलती  जा   रही  है . और  कभी  कभी  तो  उन्हें  बीते  वर्ष  का  केलेंडर  मान  कर  उनकी  मौत  की  प्रतीक्षा  करते  देखा  जाता  है .परन्तु  मरणोपरांत  समाज  में  अपनी  प्रतिष्ठा  बनाये  रखने  के  लिए  तथाकथित  सजल  नेत्रों  से  श्रद्धा  पूर्वक  याद  करने  की  परंपरा  निभाई  जाती  है .इस  प्रकार  श्राद्ध  का  आयोजन  श्रद्धा  कम  ढोंग  प्रपंच  अधिक  प्रतीत  होता  है .जीते  जी  उन्हें  संतुष्ट  नहीं  कर  सके  तो  मननोपरांत  श्राद्ध  का  ढोंग  करने  का  क्या  औचित्य  है ? यदि  उनके  जीवन  कल  में  ही  उन्हें  श्रद्धा  भाव  तथा  सम्मान  दे  पायें  तो  इनका  वृद्ध  जीवन  सहज  हो  सकता  है . संतान  के  लिए  यही  सबसे  बड़ा  श्राद्ध   है .
        जो  व्यक्ति  अपने  पूर्वजों  के  प्रति  श्रद्धा  नत  है  तो  श्राद्ध  के  दिन  गरीबों  को  दान  देकर  उनका  स्मरण  किया  जा  सकता  है .इस  प्रकार  से  श्राद्ध  मानना  एक  अच्छी  और  सार्थक  परंपरा  हो  सकती  है .
गंगा -यमुना  में  स्नान  करना  मुक्ति  दायक   माना  जाता  है ;
river bath

        यों  तो  प्रत्येक  नदी  में  स्नान  को  महत्वपूर्ण  माना  गया  है ,परन्तु  गंगा  और  यमुना  में  स्नान  को  सभी  पापों  से  मुक्ति  के  साधन  माना  गया  है . गंगा  जल  के  महत्त्व  को  तो  वैज्ञानिकों  ने  भी  स्वीकार  किया  है .परन्तु  जिस  प्रकार  कल  कारखानों  का  कचरा  एवं  नालों  का  गन्दा  पानी  गंगा  में  डाला  जाता  है ,गंगा  जल  आज  पूर्णतयः  प्रदूषित  हो  चुका  है .इसी  प्रकार  से  यमुना  नदी  भी  गंदे  नाले  में  परिवर्तित  हो  चुकी  है  और  वर्तमान   में  इन  नदियों  में  नहा   कर  मुक्ति  की  आकांक्षा   करना   बिलकुल  अप्रासंगिक  हो  गया  है  चिकत्सा  शास्त्रियों  के  अनुसार  आज  इन  नदियों  में  नहाना  तो  दूर  छूना  भी  हानिकारक  हो  चुका  है .अतः  उसमें  नहाकर  मुक्ति  की  कल्पना  करना  कितना  तर्कसंगत  है ?
                 यदि  इन  नदियों  में  स्नान  कर  स्वास्थ्य  लाभ  लेना  है  तो  पहले  उन्हें  प्रदूषण  मुक्त  करना  होगा  .जब  नदियाँ  स्वयं  अभिशप्त  हो  चुकी  हैं  तो  किसी  को  मुक्ति  का  कारण  कैसे  बन  सकती  हैं .इस  प्राचीन  धरोहर  को  मानव  के  लिए  हितकारी  बनाने  के  लिए,  नदियों  को  प्रदूषण  मुक्त  करने  के  लिए  एक  आन्दोलन  करना  होगा .तत्पश्चात  ही  उपरोक्त  मान्यता  सार्थक  बन  सकती  है .
    

शनिवार, 2 जून 2012

हमारे समाज में तर्कहीन मान्यताएं -2

कन्यादान 


  हिन्दू पद्धति से विवाह की रस्मों के दौरान फेरों से पूर्व एक रस्म होती है,जिसे कन्यादान का नाम दिया जाता है .जिसका भावार्थ है, माता-पिता अपनी बेटी को उसके ससुराल वालों को दान कर देता है.क्या बेटी कोई वस्तु है या पालतू जानवर है जिसे बाप ,दान कर देता है ?क्या एक लड़की का वजूद एक हाड़ मांस के पुतले के रूप में ही है ? उसकी अपनी कोई भावना ,कोई इच्छा ,कोई चाहत नहीं होती ? वह स्वतंत्र रूप से अपने भविष्य के फैसले लेने की कोई अधिकारी नहीं है? इसी कारण उसे एक खूंटे से हटा कर किसी और खूंटे से बांधने की रस्म निभाई जाती है ,उसका मालिक बदल दिया जाता है .यही कारण है एक लड़की विवाहित होने तक पिता की धरोहर होती है उसके नियंत्रण में रहती है ,विवाह के पश्चात् पति और ससुराल वालों के नियंत्रण में आ जाती है,अंत में पुत्र के अधिकार क्षेत्र में आना पड़ता है . कन्यादान अप्रत्यक्ष रूप से शोषण का संकेत है,महिला समाज का अपमान है जो आज भी निर्बाध रूप से चल रहा है .सारे महिला संगठन भी चुप पड़े हैं क्यों ?
 भाग्य के भरोसे जीना ;

 धार्मिक व्यक्ति अक्सर भाग्यवादी बन जाते हैं,क्योंकि उनकी मान्यता है कोई अदृश्य शक्ति पूरे विश्व को संचालित कर रही है,उसकी बिना इच्छा के दुनिया में पत्ता भी नहीं हिल सकता .मानव जीवन में सुख दुःख एवं उपलब्धियां सब कुछ पहले से निर्धारित है .इन्सान सिर्फ एक कठपुतली है.जो भाग्य में लिखा है उतना ही उसे मिलेगा ,उसे अधिक कुछ नहीं .दूसरे अर्थों में जब सब कुछ निर्धारित है तो मनुष्य को कुछ करने की आवश्यकता ही नहीं है.परन्तु सोचने की आवश्यकता यह है , क्या भाग्य के भरोसे रहकर खेतों में अनाज उगाया जा सकता है ? क्या फेक्टरियों में बिना श्रम के उत्पादन संभव है ?क्या देश पर हमला करने वाले दुश्मन को बिना संघर्ष के भाग्य का भरोसे हाथ पर हाथ रख कर भगाना संभव है ?क्या वर्तमान विकास का स्वरूप भाग्य के भरोसे ही संभव हो पाया है ? बिना कुछ किये हुए कुछ भी संभव नहीं है तो भाग्य पर निर्भर रह कर निष्क्रिय हो जाना कितना उचित है?

 भूत प्रेत में विश्वास ;

  जहाँ सुख होता वहां दुःख भी होता है , जहाँ दिन होता है तो रात भी होती है अर्थात जहाँ सकारात्मकता होती है वहां नकारात्मकता भी होती है .जब मानव ने अदृश्य शक्ति की कल्पना , पालनहार , जन्मदाता ,दुःख हरता के रूप में ईश्वर की , तो एक संघारक ,पीड़ादायक ,डरावनी शक्ति के रूप में भूत प्रेत की कल्पना भी मन में विकसित हुई .इस प्रकार से दो प्रकार की शक्तियों की कल्पना हुई ,जिसमे एक शक्ति लाभकारी थी ,प्यार करने वाली थी (ईश्वर ) तो दूसरी दुष्टात्मा सभी मानव के विरुद्ध कार्य करने वाली शक्ति यानि भूत प्रेत .मानव सभ्यता के प्रारंभिक काल में ऐसी कल्पना का विकास कोई अस्वाभाविक भी नहीं था .इस प्रकार से मानव के सभी कष्टों का कारण भूत प्रेत को माना गया. मान्यता के अनुसार यदि कोई व्यक्ति अकाल मृत्यु या आकस्मिक दुर्घटना में मर जाता है तो आयु से पूर्व मौत हो जाने के कारण उसे मुक्ति नहीं मिलती और उसकी भटकती आत्मा जब तब परिजनों को परेशान करती रहती है.जब तक उसके उद्देश्य अथवा उसकी अधूरी रह गयी इच्छाएं पूर्ण नहीं हो जाती ,उसकी मुक्ति नहीं होती . यदि परिवार में कोई मानसिक रोगी होता है ,अचानक गंभीर रूप से बीमार हो जाता है ,परिवार में कोई दुर्घटना का शिकार हो जाता है, तो उसे भूत या प्रेत का शिकार मान लिया जाता है और उसका इलाज किसी तांत्रिक से कराया जाता है.जो अत्यंत अतार्किक ,क्रूर ,एवं कष्टदायक होता है.जो आधुनिक चिकित्सा विज्ञानं पर एक तमाचे के समान है.क्या वास्तव में तांत्रिक की झाड़ फूंक मरीज को ठीक करने में सफल है ?तांत्रिक इलाज नितांत धोखेबाजी और आडम्बर बाजी का प्रतीक है .जहाँ तक मृत व्यक्ति की आत्मा का प्रश्न है,जिस व्यक्ति के शरीर का अंत ही हो गया उसमे सोचने समझने की शक्ति तथा इच्छाओं की पूर्ती की अभिलाषा काल्पनिक एवं तर्कहीन मानसिकता है .यह भी कहा जा सकता है कुछ धूर्त किस्म के लोग अपनी दुकानदारी चलाने के लिए तंत्र मन्त्र के जल में भोली भली जनता को फुसलाते है और अपने स्वार्थ सिद्ध करते हैं .ये लोग कुतर्क करके जनता को भयभीत करते है.अशिक्षित जनता इनके भ्रमजाल में फंस जाती है. प्रत्येक जागरूक नागरिक को तंत्र -मन्त्र ,भूत -प्रेत के अन्धविश्वास में पड़ने से बचना चाहिए ,और अपने परिवार तथा परिजनों को रूढ़ीवाद से मुक्ति दिलानी चाहिए.किसी भी रोग,मानसिक रोग का इलाज चिकित्सा विज्ञानं के पास उपलब्ध है,अतः उचित दिशा का चयन करना ही पूरे समाज के हित में है .

शुक्रवार, 1 जून 2012

हमारे समाज में तर्कहीन मान्यताएं(FIRST)

हमारे समाज में अनेकों प्रकार की सामाजिक और धार्मिक मान्यताएं भरी पड़ी हैं .जिनमे से कुछ मान्यताएं बहुत ही लाभप्रद हैं परन्तु अनेक मान्यताएं या तो वर्तमान समय के अनुसार अप्रासंगिक हो चुकी हैं या पूर्णतयः अवैज्ञानिक एवं तर्कहीन हैं .आवश्यकता है प्रत्येक मान्यता को तर्क की कसौटी पर कसने की ,उनकी सत्यता की परख करने की .जो मान्यताएं बेबुनियाद हैं जिनसे किसी को लाभ नहीं होता बल्कि उसके कारण हमारा धन और समय बिना कारण व्यय होता है कभी कभी नुकसान भी उठाना पड़ता है ,ऐसी मान्यताओं को अपनाने या ढोने में कोई बुद्धिमत्ता नहीं है .इस लेख द्वारा कुछ उदाहरनो से तर्कहीन मान्यताओं पर विचार किया गया है .प्रत्येक जागरूक व्यक्ति को किसी भी मान्यता को अपनाने से पूर्व उसको तर्क शक्ति के आधार पर विश्लेषण करना चाहिए .इस प्रकार से हम अपना अमूल्य समय और अपनी गाढ़ी कमाई को बचा सकते हैं .समाज से दकियानूसी ,आडम्बर युक्त धारणाओं से मुक्त हो कर एक उन्नत समाज का निर्माण कर सकते हैं
.
. बिल्ली का रास्ता काटना अशुभ माना जाता है ;
अक्सर लोगों की धारणा है ,यदि किसी कार्य के लिए जाते समय बिल्ली रास्ता काट दे तो अशुभ संकेत होता है .कार्य बिगड़ जाने की आशंका होती है .अतः ऐसे समय अपनी यात्रा को स्थगित कर कुछ समय पश्चात् प्रारंभ करनी चाहिए ,इस प्रकार से अशुभ होने की शंका से बचा जा सकता है . मेरा अपना अनुभव है ,मैंने अनेकों बार बिल्ली के रास्ता काटने के बावजूद यात्रा करने पर भी कोई व्यवधान नहीं पाया ,और न कोई अशुभ समाचार मिला .अब तक ज्ञात इतिहास में अथवा किसी पौराणिक ग्रन्थ में इस आशंका को समर्थन नहीं मिला है .कोई वैज्ञानिक तर्क इस आशंका की पुष्टि नहीं करता ,फिर निर्मूल आशंका से भय क्यों ? मन में आशंका पल कर हम अपने लक्ष्य प्राप्ति से वंचित रह सकते हैं ,देर से पहुँचने पर ट्रेन छूट सकती है ,एयर फ्लाईट मिस हो सकती है .शायद इस देरी से नोकरी पाने का अवसर हाथ से चला जाय ,किस महत्त्व पूर्ण कार्य की सफलता संदिग्ध हो जाय .अतः अपनी यात्रा को बिल्ली के रास्ता काटने के कारण स्थगित करना भारी पड़ सकता है

 किसी कार्य को करने के प्रारंभ में छींक होना अशुभ माना जाता है ;
ऐसी मान्यता है , यदि कोई शुभ कार्य को निकालने वाला है और कोई छींक दे तो उसे अशुभ संकेत माना जाता है ,किसी संकट की आशंका व्यक्त की जाती है या जिस कार्य के लिए निकलने वाले हैं उसमें सफल होने की सम्भावना धूमिल हो जाती है . छींक से किसी कार्य के होने या न होने से कोई सम्बन्ध नहीं हो सकता . छींक आना एक शरीरिक प्रतिक्रिया है या नजला जुकाम भी एक कारण हो सकता है जिस पर छींकने वाले का कोई नियंत्रण नहीं होता ताकि वह उसे कुछ समय के लिए टाल सके .अतः इस घटना को अशुभ मान लेना औचित्य हीन है .इस पर विश्वास कर कार्य में विलम्ब से कार्य में हानि हो सकती है न की छींकने से . छींक पर विश्वास करने वाले या इसे अशुभ मानने वाले को तनाव युक्त कर उसके शुभ कार्य को ,उसके सुनहरे पलों को प्रभावित कर सकता है .छीकने वाले को अपना दुश्मन मान लेना उसे हिकारत की निगाह से देखना किसी भी प्रकार से तर्कसंगत नहीं है .अतः बिना सोचे परम्पराओं की लकीर पीटते जाना आधुनिक समाज के लिए अभिशाप है


 अखंड रामायण एवं देवी जागरण अपने इष्ट देव को खुश करने का माध्यम ;
रामायण का अखंड पाठ करते समय तुलसी दस द्वारा रचित राम चरित मानस के अनवरत काव्यपाठ का प्रचालन है .जिसमें करीब चौबीस घंटे का समय लगता है .इतनी शीघ्रता से काव्यपाठ करने पर शायद ही कोई उस काव्य का भावार्थ समझ पता हो .जिस काव्य पाठ को पाठक या श्रोता समझ ही नहीं पता हो उसे धार्मिक या नैतिक लाभ कैसे संभव हो सकता है ?देवी के जागरण में सम्पूर्ण रात्रि को देवी के भजनों द्वारा उसकी आराधना में समर्पित कर दिया जाता है .और पूरे मोहल्ले को जबरन पूरी भजन सुना सुना कर जगाया जाता है ,क्या देवी की उपासना अपने तक सीमित करते हुए की जाय तो देवी रुष्ट हो जाती हैं ?और अब तो भजन भी फ़िल्मी धुनों पर आधारित होते हैं ताकि फिल्मों में रूचि रखने वालों को भी फ़िल्मी आनंद का आभास होता रहे और जनता का मनोरंजन भी होता रहे .क्या पूरी रात काली करके ही देवी प्रसन्न होती हैं ?    

रविवार, 20 मई 2012


धार्मिक मान्यताओं का वैज्ञानिक महत्त्व
सैंकड़ो वर्ष पूर्व हमारे पूर्वजों ने अनेक प्रकार के नियम एवं मान्यताएं स्थापित कीं ,जिसे उन्होंने
धर्म का स्वरूप देकर मानव हित के लिए जनता को बहुत ही साधारण सी भाषा में समझा दिया .वर्तमान युग के सन्दर्भ में जब उन्हें वैज्ञानिक तर्क की कसौटी पर कसते हैं ,तो आश्चर्य होता है की इतने प्राचीन समय में भी हमारे पूर्वज कितने वैज्ञानिक रहे होंगे .
इस विषय पर विस्तार से चर्चा करने का प्रयास किया जा रहा है ;
1,तुलसी का महत्त्व ;-
हिन्दू धर्म में तुलसी का अत्यंत महत्त्व बताया गया है . रोज सवेरे उसको जल देना और पूजा
अर्चना करने का विधान है . प्रत्येक घर में उसका पौधा होना आवश्यक माना गया है . वैज्ञनिक शोधों में पाया गया है.की मानव शरीर के लिए तुलसी का पौधा अनेक प्रकार से स्वास्थ्यप्रद है . नित्य
उसके सानिध्यसे शुद्ध हवा शरीर को प्राप्त होती है .अनेक रोगों में भी इसके पत्ते , इसके बीज लाभकारी होते हैं .आयुर्वैदिक डॉक्टर तुलसा को जड़ी बूटी मानकर दवाओं में प्रयोग करते हैं .
2
,सूर्य नमस्कार ;

रोज सवेरे सूर्य देवता की पूजा ,अर्थात सूर्य नमस्कार के साथ जल विसर्जन करने को हमारे धर्म
ग्रंथों में महत्त्व पूर्ण बताया गया है .सूर्योदय के समय जो किरणे हमारे शरीर पर पड़ती हैं ,स्वास्थ्य के लिए लाभप्रद होती है .अतः हमारे पूर्वजों ने इन किरणों से मानव को स्वास्थ्य प्रदान करने के लिए सूर्य को देवता के रूप में प्रस्तुत किया और रोज सवेरे स्नानादि से निवृत हो कर सूर्योदय के समय में जल अर्पण का प्रावधान किया .इस प्रकार से होने वाले लाभ को वैज्ञनिक रूप से सही
पाया गया है .
3
,विभिन्न उपवासों की धार्मिक मान्यता ;-

यदि हम प्रत्येक उपवास अथवा उपवासों पर दृष्टि डालें तो सभी उपवासों का एक ही उद्देश्य
प्रतीत होता है,की मानव को शरीरिक रूप से स्वास्थ्य रखा जाय. सारी शारीरिक समस्याओं की जड़ पेट होता है अर्थात यदि पेट की पाचन क्रिया दुरुस्त है , तो शरीर व्याधि रहित रहता है .उसे ठीक रखने के लिए समय समय पर उपवास रखना सर्वोत्तम साधन है ,उपवास रोजे के रूप में हो या
फिर नवरात्री के रूप में .इन उपवासों से इन्सान की जीवनी शक्ति बढती है, सहन शक्ति का संचार होता है .नवरात्री वर्ष में दो बार पड़ते हैं ,और दोनों के समय मौसम के संधिकाल में पड़ता है
अर्थात उन दिनों मौसम बदल रहा होता , हम ग्रीष्म से शरद ऋतू में प्रवेश कर रहे होते हैं ,या शरद ऋतू से ग्रीष्म ऋतू में प्रवेश कर रहे होते है .जब मौसम का बदलाव होता है हमारी
पाचन क्रिया बिगड़ जाती है .अतः ऐसे समय में उपवास या व्रत रखना शरीर के स्वास्थ्य की रक्षा
करता है .अतः सभी उपवासों को चिकित्सा की दृष्टि से स्वास्थ्यप्रद पाया गया है .अतः मानव को स्वस्थ्य रखने के लिए उपवासों को धर्म से जोड़ा गया .
4,
मंदिरों -गुरुद्वारों में घंटों का महत्त्व ;-

मंदिरों -गुरुद्वारों आदि धार्मिक स्थलों पर घंटे बजाने का चलन है ,परन्तु बहुत कम लोग जानते हैं
की इसका भी एक वैज्ञानिक आधार भी है , जिसका स्वस्थ्य पर अनुकूल प्रभाव पड़ता है .घंटे बजने से
उत्पन्न ध्वनि तरंगें कीटाणुओं का नाश करती है ,और धार्मिक स्थल को वातावरण प्रदूषण रहित बनाती हैं .इस प्रकार शुद्ध यानि प्रदूषण रहित वातावरण में बैठ कर पूजा अर्चना करने से स्वस्थ्य
लाभ भी मिलता है .शायद हमारे पूर्वजों की सोच रही होगी मंदिर में पूजा अर्चना करने के लिए बीमार व्यक्ति भी आते है , जिनके रोगाणु अन्य भक्तों को नुकसान पहुंचा सकते हैं . अतः मंदिरों को संक्रमण रहित करने की युक्ति घंटे बजा कर निकली गयी होगी .
5,
गायत्री मन्त्रों का महत्त्व ;

गायत्री मन्त्रों का जाप सर्वाधिक महत्त्व पूर्ण जाप माना गया है ,इसीलिए अनेक विद्वानों ने
इसे अपनी उपासना का अंग बनाया है . जाप कोई भी हो सबका उद्देश्य मन को केंद्रीकृत कर
उसे अनेक बुराईयों से बचाना होता है ,और शारीरिक ऊर्जा का विकास होता है . शांति कुञ्ज हरिद्वार में स्थित ब्रह्म वर्चस्व में ,इस विषय पर शोध करने के पश्चात् पाया गया की गायत्री मन्त्र के
उच्चारण से उत्पन्न ध्वनि तरंगें अन्य किसी भी मंत्र के मुकाबले सर्वाधिक अनुकूल प्रभाव डालती हैं .अतः इस मन्त्र का वैज्ञानिक महत्त्व चमत्कारिक है .इसके लगातार उच्चारण करने से शारीरिक ऊर्जा के साथ साथ जप के स्थान पर भी ऊर्जा का संचार पाया गया और वातावरण में स्वच्छता ,
सकारात्मकता का प्रभाव पाया गया .इसीलिए जहाँ पर नियमित गायत्री मंत्रोच्चार होता है , वह
स्थान मन को शांती प्रदान करने वाला हो जाता है .इसी कारण देवालयों में जाकर मन को अलग ही प्रकार की सुखद अनुभूति होती है .

गुरुवार, 15 मार्च 2012

समाजवादी पार्टी की सत्ता वापसी

यह तो कटु सत्य है आज प्रत्येक राजनैतिक दल में दबंगों ,अपराधियों का बोलबाला है . परन्तु समाजवादी पार्टी की कार्यशैली भी कुछ दबंगई को परिलक्षित करती रही है .मुलायम सिंह जी के पिछले शासन कालों के दौरान गुंडा गर्दी ,अपराधों एवं अपहरणों की बहुतायत रही है .पत्रकारों पर खुले आम हमले , एवं दुर्व्यवहार आज भी तानाशाही शासन की याद करा देता है . उत्तरखंड के आन्दोलन को जिस प्रकार से कुचला गया ,लोकतंत्र भी लजाता दिखा .मुलायम जी की मुस्लिम परस्त नीतियाँ उनकी धर्मनिरपेक्षता की पहचान बनी हुई है .इतना सब कुछ होने के पश्चात् भी पूर्ण बहुमत से सत्ता में वापस लौटना उनका सौभाग्य ही कहा जा सकता है ,जो प्रदेश के लिए भी सौभाग्य बन सकता है यदि समाजवादी पार्टी अपने पिछली कार्य शैली में आमूल चूल परिवर्तन ला सके .नवोदित मुख्य मंत्री श्री अखिलेश जी युवा हैं शिक्षित हैं ,ऊर्जावान हैं ,और पार्टी की अपराधिक छवि को सुधारने को संकल्प बद्ध भी .यदि उन्होंने उन्हें अल्पायु में प्राप्त सुनहरी अवसर का सदुपयोग किया तो वे एक सुखद भविष्य का निर्माण कर सकेंगे .प्रदेश की जनता ने इसी उम्मीद से उनमे अपना विश्वास जाता कर स्पष्ट बहुमत से सत्ता सौंपी है .जो उनको दृढ़ता पूर्वक अपने निर्णय लेने में सुविधाजनक होगा .गठबंधन की सरकारें चाहते हुए भी कुछ नहीं कर पातीं .
किसी के भी मन में यह पार्ष्ण कौंधना स्वाभाविक है आखिर समाज वादी पार्टी में जनता का विश्वास क्यों जगा .क्यों उन्हें स्पष्ट बहुमत दे कर सत्तारूढ़ कर दिया .इस चुनावी घटना क्रम का विश्लेषण किया जाय तो ज्ञात होता है की अनेक कारण समाजवादी पार्टी के पक्ष में बने जो उसे सत्ता तक ले गए .
1.प्रदेश में किसी भी राष्ट्रिय पार्टी का जनाधार का न होना .अर्थात कांग्रेस एवं भारतीय जनता पार्टी की साख बहुत नीचे आ जाना .क्योंकि कांग्रेस पार्टी की छवि केंद्र में भ्रष्टाचार और घोटालों के कारण काफी ख़राब हो चुकी है ,भा .ज .पा ने बाबु सिंह कुशवाहा को ऐन चुनाव के अवसर पर पार्टी में लेकर अपनी छवि धूमिल कर ली .इसी कारण उसका जनाधार पहले से भी नीचे आ गया .
2.जनता बहुजन समाज पार्टी से नाराज थी .क्योंकि मायावती जी ने अपने कार्य कल में या तो घोटाले कराय या फिर जनता की गाढ़ी कमाई को पार्कों में मूर्तियाँ लगाने में खर्च कर डाला .उनके कार्यकाल में प्रदेश विकास की समुचित रह नहीं पकड़ पाया बल्कि उसकी गणना देश के सबसे पिछड़े प्रदेशों में होने लगी .
3.जब तीन बड़े दलों के विरुद्ध मतदान करना था तो जनता के समक्ष समाजवादी पार्टी का ही विकल्प रहा गया .जिसने समाजवादी पार्टी के सितारे को चमकाया .
4.इस बार प्रदेश में नए मतदाता बने युवाओं के लिए युवा वर्ग का प्रतिनिधित्व करने वाले तीन नेता मैदान में थे ,कांग्रेस से राहुल गाँधी ,राष्ट्रिय लोक दल से जयंत चौधरी ,एवं समाजवादी पार्टी से अखिलेश यादव परन्तु अखिलेश जी ही युवाओं की पहली पसंद बन पाए.उन्हें अखिलेश के व्यक्तित्व में अपना भविष्य दिखाई दिया और समाज वादी पार्टी के लिए मतदान किया .
5. समाजवादी पार्टी के घोषणा पत्र में युवा बेरोजगारों को बेरोजगार भत्ता देने का वायदा किया गया ,और हाई स्कूल एवं इंटर पास युवाओं को लैपटॉप एवं टेबलेट देने का वायेदा किया गया ,जिसने युवा वर्ग को अपने पाले में खींचने का कम किया .
6.मुस्लिम वर्ग ने कांग्रेस द्वारा उछाले गए आरक्षण के मुद्दे को चालाकी भरा वायेदा मन कर नकार दिया .क्योंकि आजादी के पश्चात् अधिकतम समय केंद्र में कांग्रेस के पास ही सत्ता रही है , इतने लम्बे समय में मुस्लिमों को आरक्षण देने याद नहीं आयी.परन्तु अब चुनावों की बेला पर अपनी डूबती नैय्या को बचाने के लिए मुस्लिमों से अचानक हमदर्दी उन्पन्न हो गयी . मुस्लमान पहले से ही सनाज्वादी पार्टी को पसंद करते रहे हैं .इस बार उन्होंने कुछ अधिक ही मतदान कर पार्टी को बहुमत दिला दिया
जैसा की अखलेश जी अपने बयानों में कहते आए हैं की वे गुंडा गर्दी पर पूर्णतयः लगाम लगा कर प्रदेश का विकास करेंगे और शांती व्यवस्था कायम करेंगे .ताकि उत्तर प्रदेश उत्तम प्रदेश बन सके .परन्तु उन्हें अपने संकल्प को क्रियान्वित कर पाना आसान भी नहीं है .जिस प्रकार प्रदेश की राजनीति में गलाकाट प्रतिस्पर्द्धा है ,अखिलेश जैसे नवयुवक के लिए कम चुनौती वाला नहीं होगा .क्योंकि हमारा समाज आयु को एवं राजनैतिक परिवेश अनुभव को अधिक महत्त्व जाता है .जो अखलेश जी के पास नहीं है , फिर भी उनके उत्साह को देखते हुए उम्मीद की जा सकती है , वे अपने सभी बुजुर्ग साथियों ,नौकर शाहों का सहयोग प्राप्त कर अपने लक्ष्य को प्राप्त कर सकेंगे . प्रदेश में सुराज्य स्थापित कर विकास की ओर ले जायेंगे .