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शुक्रवार, 1 जून 2012

हमारे समाज में तर्कहीन मान्यताएं(FIRST)

हमारे समाज में अनेकों प्रकार की सामाजिक और धार्मिक मान्यताएं भरी पड़ी हैं .जिनमे से कुछ मान्यताएं बहुत ही लाभप्रद हैं परन्तु अनेक मान्यताएं या तो वर्तमान समय के अनुसार अप्रासंगिक हो चुकी हैं या पूर्णतयः अवैज्ञानिक एवं तर्कहीन हैं .आवश्यकता है प्रत्येक मान्यता को तर्क की कसौटी पर कसने की ,उनकी सत्यता की परख करने की .जो मान्यताएं बेबुनियाद हैं जिनसे किसी को लाभ नहीं होता बल्कि उसके कारण हमारा धन और समय बिना कारण व्यय होता है कभी कभी नुकसान भी उठाना पड़ता है ,ऐसी मान्यताओं को अपनाने या ढोने में कोई बुद्धिमत्ता नहीं है .इस लेख द्वारा कुछ उदाहरनो से तर्कहीन मान्यताओं पर विचार किया गया है .प्रत्येक जागरूक व्यक्ति को किसी भी मान्यता को अपनाने से पूर्व उसको तर्क शक्ति के आधार पर विश्लेषण करना चाहिए .इस प्रकार से हम अपना अमूल्य समय और अपनी गाढ़ी कमाई को बचा सकते हैं .समाज से दकियानूसी ,आडम्बर युक्त धारणाओं से मुक्त हो कर एक उन्नत समाज का निर्माण कर सकते हैं
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. बिल्ली का रास्ता काटना अशुभ माना जाता है ;
अक्सर लोगों की धारणा है ,यदि किसी कार्य के लिए जाते समय बिल्ली रास्ता काट दे तो अशुभ संकेत होता है .कार्य बिगड़ जाने की आशंका होती है .अतः ऐसे समय अपनी यात्रा को स्थगित कर कुछ समय पश्चात् प्रारंभ करनी चाहिए ,इस प्रकार से अशुभ होने की शंका से बचा जा सकता है . मेरा अपना अनुभव है ,मैंने अनेकों बार बिल्ली के रास्ता काटने के बावजूद यात्रा करने पर भी कोई व्यवधान नहीं पाया ,और न कोई अशुभ समाचार मिला .अब तक ज्ञात इतिहास में अथवा किसी पौराणिक ग्रन्थ में इस आशंका को समर्थन नहीं मिला है .कोई वैज्ञानिक तर्क इस आशंका की पुष्टि नहीं करता ,फिर निर्मूल आशंका से भय क्यों ? मन में आशंका पल कर हम अपने लक्ष्य प्राप्ति से वंचित रह सकते हैं ,देर से पहुँचने पर ट्रेन छूट सकती है ,एयर फ्लाईट मिस हो सकती है .शायद इस देरी से नोकरी पाने का अवसर हाथ से चला जाय ,किस महत्त्व पूर्ण कार्य की सफलता संदिग्ध हो जाय .अतः अपनी यात्रा को बिल्ली के रास्ता काटने के कारण स्थगित करना भारी पड़ सकता है

 किसी कार्य को करने के प्रारंभ में छींक होना अशुभ माना जाता है ;
ऐसी मान्यता है , यदि कोई शुभ कार्य को निकालने वाला है और कोई छींक दे तो उसे अशुभ संकेत माना जाता है ,किसी संकट की आशंका व्यक्त की जाती है या जिस कार्य के लिए निकलने वाले हैं उसमें सफल होने की सम्भावना धूमिल हो जाती है . छींक से किसी कार्य के होने या न होने से कोई सम्बन्ध नहीं हो सकता . छींक आना एक शरीरिक प्रतिक्रिया है या नजला जुकाम भी एक कारण हो सकता है जिस पर छींकने वाले का कोई नियंत्रण नहीं होता ताकि वह उसे कुछ समय के लिए टाल सके .अतः इस घटना को अशुभ मान लेना औचित्य हीन है .इस पर विश्वास कर कार्य में विलम्ब से कार्य में हानि हो सकती है न की छींकने से . छींक पर विश्वास करने वाले या इसे अशुभ मानने वाले को तनाव युक्त कर उसके शुभ कार्य को ,उसके सुनहरे पलों को प्रभावित कर सकता है .छीकने वाले को अपना दुश्मन मान लेना उसे हिकारत की निगाह से देखना किसी भी प्रकार से तर्कसंगत नहीं है .अतः बिना सोचे परम्पराओं की लकीर पीटते जाना आधुनिक समाज के लिए अभिशाप है


 अखंड रामायण एवं देवी जागरण अपने इष्ट देव को खुश करने का माध्यम ;
रामायण का अखंड पाठ करते समय तुलसी दस द्वारा रचित राम चरित मानस के अनवरत काव्यपाठ का प्रचालन है .जिसमें करीब चौबीस घंटे का समय लगता है .इतनी शीघ्रता से काव्यपाठ करने पर शायद ही कोई उस काव्य का भावार्थ समझ पता हो .जिस काव्य पाठ को पाठक या श्रोता समझ ही नहीं पता हो उसे धार्मिक या नैतिक लाभ कैसे संभव हो सकता है ?देवी के जागरण में सम्पूर्ण रात्रि को देवी के भजनों द्वारा उसकी आराधना में समर्पित कर दिया जाता है .और पूरे मोहल्ले को जबरन पूरी भजन सुना सुना कर जगाया जाता है ,क्या देवी की उपासना अपने तक सीमित करते हुए की जाय तो देवी रुष्ट हो जाती हैं ?और अब तो भजन भी फ़िल्मी धुनों पर आधारित होते हैं ताकि फिल्मों में रूचि रखने वालों को भी फ़िल्मी आनंद का आभास होता रहे और जनता का मनोरंजन भी होता रहे .क्या पूरी रात काली करके ही देवी प्रसन्न होती हैं ?    

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