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बुधवार, 13 जून 2012

खरीदारी की समझदारी

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हमारी सभी भौतिक आवश्यकताएं हमारे अथवा हमारे प्रियजनों द्वारा अर्जित धन से पूरी होती हैं .धन का अर्जन करना कोई आसान कार्य नहीं होता .सतत परिश्रम द्वारा ही हम अपनी एवं अपने परिवार की जरूरतों को पूरा करते हैं .अब यदि परिश्रम से कमाए धन को व्यय करने में भी संयम एवं समझदारी से काम लें तो शायद अपने धन का अधिक सदुपयोग कर सकते हैं .समान खर्चे में अधिक सेवाएं और अधिक वस्तुएं प्राप्त कर सकते हैं .प्रस्तुत लेख में विश्लेषण करने का प्रयास किया गया है की ,खर्च करते समय क्या रणनीति अपनाई जाय ताकि हमें अपने धन का अधिक से अधिक मूल्य प्राप्त हो सके .और अपनी या अपने परिजन की गाढ़ी कमाई को बेकार जाने से रोक सकें .

समाज में आए स्तर के अनुसार तीन भागों में विभाजित किया गया है उन्हें अपनी खरीदारी के निर्णय अपनी आए सीमा के अंतर्गत लेने पड़ते हैं ,चतुर्थ वर्ग में खरीदार की आए नहीं बल्कि उसका आवश्यकतानुसार निर्णय महत्वपूर्ण होता है .
प्रथम भाग ;- इस श्रेणी में उच्चतम आए वर्ग के उपभोक्ताओं को रखा गया है . यह वर्ग खरीदारी करते समय सिर्फ उच्चतम क्वालिटी को ध्यान में रख कर खरीदारी करता है ,अर्थात अपनी पसंद और उच्च गुणवत्ता खरीदारी का उद्देश्य होता है .वस्तु या सेवा की उच्चतम कीमत उन्हें वस्तु की उच्च क्वालिटी का आभास कराती है .
द्वितीय वर्ग ;-इस वर्ग में हमने मध्यम आए वर्ग के उपभोक्ताओं को रखा है .इस वर्ग के व्यक्ति खरीदारी करते समय वस्तु या सेवाओं की गुणवत्ता और मूल्य दोनों का समान रूप से विश्लेषण कर ही अपना निर्णय लेते हैं .हर पहलु से जाँच परख करने के कारण अपने धन का सदुपयोग कर पाने में सर्वाधिक सफल रहते हैं .
तृतीय वर्ग ; -अल्प आए वर्ग अथवा निम्न आए वर्ग खरीदारी करते समय सिर्फ वस्तु की कीमत पर ध्यान देते हैं .इस वर्ग के लोग सिर्फ कम से कम खर्च में अधिक से अधिक वस्तु प्राप्त करने की इच्छा रखते हैं .इसी कारण निम्न गुणवत्ता की वस्तु खरीद लेना महंगा भी पड़ जाता है क्योंकि निम्नतम गुणवत्ता की वस्तुएं कम टिकाऊ होती हैं , और उन वस्तुओं में बहुत बड़ा भाग प्रयोग करने लायक ही नहीं होता .
चतुर्थ वर्ग ;-इस वर्ग के अंतर्गत की खरीदारी अथवा व्यय सभी आए वर्ग के व्यक्तियों द्वारा करनी पड़ती है .यह खरीदारी परिस्थितियों की विवशता के कारण करनी पड़ती है अनेक बार मान सम्मान अथवा शारीरिक -मानसिक रुग्णता में मजबूरी वश करनी होती है ,और बाजार मूल्य से कहीं अधिक खर्च कर अपनी आवश्यकता पूर्ण करनी पड़ती है ,कभी कभी अपनी आर्थिक सामर्थ्य से भी अधिक व्यय करना पड़ता है .वस्तु की कीमत से अधिक उसकी आवश्यकता पर ध्यान देना होता है .जैसे बीमारी की आकस्मिकता ,किसी प्रिय बच्चे की जिद पूर्ण करने की मजबूरी ,किसी आगंतुक या अतिथि के साथ खरीद करते समय ,कुछ दुर्लभ परिस्थितियों में जैसे देर रात के समय आटो न मिलने की स्थिति , दुर्घटना हो जाने पर अपने प्रियजन की जन बचाने की स्थिति में ,किसी शुभ अवसर पर अपनी चिर प्रतीक्षित अभिलाषा पूर्ण करने की स्थिति ,यात्रा के समय आने वाले अनेक दुर्लभ पलों में इत्यादि .
कैसे हो समझदारी से खरीदारी ;-
प्रथम वर्ग ;इस वर्ग के पास धन की कोई सीमा नहीं होती अतः उनकी खरीदारी का लक्ष्य सिर्फ उच्चतम क्वालिटी या अपनी पसंद होता है .उच्चतम मूल्य की वस्तु खरीदना उन्हें गौरव प्रदान करता है . उनकी इसी सोच का व्यापारी ,दुकानदार या सेवा प्रदाता लाभ उठाते हैं .वे क्वालिटी में 10% प्रतिशत की बढ़ोतरी कर कीमत दो गुनी या उससे भी अधिक कर देते हैं .इस वर्ग के सौभाग्यशाली उपभोक्ता यदि अपनी समझदारी से कीमत एवं गुणवत्ता का ध्यान कर अपनी खरीदारी करें तो कुछ पैसा व्यापारी की जेब में जाने से रोककर अपने अधीनस्थ गरीब व्यक्ति का जीवन स्तर सुधारने का प्रयास कर सकते हैं .या फिर किसी अनाथ व्यक्ति के भरण पोषण की जिम्मेदारी निभाकर सामाजिक प्रतिष्ठा बढा सकते हैं और आत्मसंतोष का सुख प्राप्त कर सकते हैं .
द्वितीय वर्ग ;-इस वर्ग के अंतर्गत आने वाले खरीदार काफी समझदारी से अपनी सीमित आए को खर्च करते हैं ,ताकि अपनी आए और व्यय में संतुलन बनाये रख सकें साथ ही वस्तु भी गुणवत्ता वाली प्राप्त कर सकें .कभी कभी गुणवत्ता की जानकारी के अभाव में नुकसान उठाना पड़ता है .उदाहरण के तौर पर मार्केट में आलू 14/ kilo और 10/ kilo दो भाव में उपलब्ध है ,यदि 10/ kilo आलू लेने पर उसमें 300gram आलू ख़राब निकाल जाता है अर्थात सिर्फ 700gram आलू उपयोग में आ पाता है और आलू सस्ता खरीदना महंगा पड़ता है .उसकी छंटाई में श्रम एवं समय अलग से व्यय करना पड़ा .इसी प्रकार कोई कपडा खरीद कर अनेक वर्षों तक चलता है परन्तु अधिक दिन पहनने के कारण उससे मन खीजने लगता है ,महंगा होने के कारण शीघ्र बदलना भी संभव नहीं होता ,यदि कम टिकाऊ परन्तु सस्ता कपडा लिया जाय तो उसी कीमत में दो या तीन जोड़ी कपडे खरीदना संभव होगा और नित्य बदल बदल कर कपडे पहनना संभव हो सकेगा
इसी प्रकार फेशन बदलने के कारण महंगा कपडा खरीदना नुकसानदेह सिद्ध हो सकता है .
तिर्तीय वर्ग ;इस वर्ग में आने वाले खरीदार आर्थिक रूप से अत्यंत सीमित दाएरे में रहकर अपनी आवश्यकताओं की पूर्ती करते हैं .अतः वे गुणवत्ता पर अधिक ध्यान नहीं देते .उन्हें सिर्फ सस्ते संसाधन जुटा लेने की तमन्ना रहती है . वस्तु की मात्रा भी कम से कम खरीदनी पड़ती है ,ताकि कम खर्च से सभी आवश्यक वस्तुएं खरीद सकें .कम मात्रा में वस्तु खरीदने से उन्हें अपेक्षाकृत अधिक कीमत चुकानी पड़ती है
और उन्हें आर्थिक हानि उठानी पड़ती है .सस्ती वस्तु अनेक बार इतनी घटिया क्वालिटी की होती है उसे बार बार खरीदना पड़ता है ,या क्वालिटी ख़राब होने के कारण कम उपयोगी हो पाता है .जैसे कम मूल्य वाला दूध मिलावटी हो सकता है ,सब्जियों में गली सड़ी अधिक मात्रा में हो सकती हैं .अतः खरीदारी करते समय सिर्फ मूल्य देख कर लेना महंगा पड़ जाता है .अपने धन का पूरा मूल्य वसूल हो सके यह देखना भी आवश्यक है .ताकि आपकी परिश्रम से अर्जित की गयी आए का भरपूर सदुपयोग हो सके यदि आवश्यक हो तो किसी अनुभवी मित्र से सलाह लेना उचित हो सकता है .सीमित आए होने के बावजूद यदि प्रत्येक वस्तु को मासिक खपत के आधार पर लेने की आदत डालें तो तो बड़ी मात्रा में वस्तु लेने के कारण सस्ती पड़ सकेगी .इस कार्य के लिए एक एक कर वस्तुओं का संग्रह करने की योजना बनाये. धीरे धीरे आपके मासिक खर्च का चक्र बन जायेगा और आपके अपने बजट में ही अतिरिक्त वस्तुएं खरीद पाने का लाभ उठा सकेंगे.
चतुर्थ वर्ग ;इस वर्ग के अंतर्गत खरीदारी करने में अत्यधिक समझदारी का परिचय देना होता है . क्योंकि निर्णय लेने के लिए अधिक समय नहीं होता अतः आवश्यक वस्तु या सेवा प्राप्त करने के लिए अपने बजट से अधिक खर्च करना पड़ता है .यह जानते हुए की अमुक वस्तु या सेवा महँगी होने के साथ साथ अपनी क्षमता से अधिक है फिर भी समय की जटिलता को देखते हुए ,कठिन परिस्थितियों के कारण अपनी सीमायें तोड़ कर व्यय करने को विवश होना पड़ता है .ऐसे दुर्लभ अवसरों पर कीमतों का विश्लेषण करना या उचित अनुचित देखना ठीक नहीं होता ,मध्यम आए वर्ग एवं अल्प आए वर्ग के लिए संतुलित निर्णय लेना समझदारी होगी
उपरोक्त विश्लेषण से निष्कर्ष निकलता है की प्रत्येक वर्ग के खरीदार को समय की नजाकत ,कीमत ,परिमाण एवं गुणवत्ता में संतुलन बना कर खरीदारी करनी चाहिए ,क्योंकि समझदारी से की गयी खरीदरी आपकी अपरोक्ष रूप से आए बढा देती है आपका धन अधिक मूल्यवान साबित होता है

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कुछ महत्वपूर्ण बातें;
१,अपने परिवार की कुल आये में से कम से कम १०% प्रति माह बचाना भी आवश्यक है ताकि आकस्मिक आने वाले खर्चो से निबटा जा सके ,जैसे बीमारी या अन्य कोई आकस्मिक खर्च.जो व्यक्ति अपने बजट में बचत को महत्त्व देते है उन्हें जीवन में आर्थिक कठिनाईयों का सामना करने में कम कष्ट होते हैं.
२,हमारे घर का बजट कितना भी बड़ा न हो, घर के बजट अर्थात अपनी आर्थिक सामर्थ्य एवं प्रत्येक खर्चे की वरीयता निश्चित कर खरीदारी करना समझदारी का कदम है.किसी वस्तु या सुविधा पर खर्च करना अधिक आवश्यक है और किस पर नहीं. साथ ही, किस वस्तु पर हम कितना व्यय करने की क्षमता रखते है,इसका विश्लेषण करना भी आवश्यक होता है.
३,अपने घर के बजट का एक अंश, दान के लिए भी रखना उचित होगा,यह अंश दो से पांच प्रतिशत तक अपनी इच्छा के आधार पर रखा जा सकता है. परन्तु दान किसी सुपात्र यानि ऐसे व्यक्ति को दिया जाय जिसे वास्तव में उसकी अपनी मूल आवश्कताओं की पूर्ती के लिए आवश्यक हो.

रविवार, 10 जून 2012

हमारे समाज में तर्कहीन मान्यताएं ---पार्ट -३


  पुनर्जन्म  की   मान्यता ;
punarjanm ki dastan 

सिर्फ  हमारे  देश  में  ही  नहीं  विश्व  भर  के  अनेकों  देशों  में  पुनर्जन्म  की  धारणा  चली  आ  रही  है .जबकि  चिकित्सा  विज्ञानं  के  शोधों  में  मानव  उत्पत्ति  के  लिए  जिम्मेदार  कारकों  का  पता  लगाया  जा  चुका  है  .शोधों  के  अनुसार  पुरुष  के   जननांग  से  उत्सर्जित  असंख्य   (करोड़ों  में ) शुक्राणुओं  में  कोई  एक  शुक्राणु  निषेचित  हो  कर  ही  मानव  का  उद्भव  होता  है  .यह  कैसे  संभव  है  करोड़ों  शुक्राणुओं  में  से  पुनर्जन्म  लेने  वाला  शुक्राणु  हि  निषेचित  होगा ?पुनर्जन्म  की  धारणा  को पुष्ट  करने  के  लिए   समय  समय  पर  अनेक  घटनाओ  का  विवरण  दिया  जाता  है  ,जिनका  तर्क  संगत  उत्तर  अभी    विज्ञानं  ढूंढ  नहीं  पाया  है  ,परन्तु  इसका  यह  अर्थ  नहीं  है  की  पुनर्जन्म  की  धारणा  को  सत्य  मान  लिया  जाय .
   कुछ  मान्यताओं  के  अनुसार  व्यक्ति  मारने  के  पश्चात्  आत्मा  के  रूप  में  अपना  अस्तित्व  बनाये  रखता   है  जिसे  विज्ञानं  नकार   चुका  है  .चिकत्सा  विज्ञानं  के  अनुसार  व्यक्ति  की  मृत्यु  के  पश्चात्  उसका   अस्तित्व  पूर्णतयः  ख़त्म  हो  जाता  है .
    पुनर्जन्म  की  घटनाएँ  एक  ही  भाषा  वाले  समाज  के  अंतर्गत  घटती  हैं ?हिंदी  बोलने  वाला  व्यक्ति  तमिल  भाषी  या  रूसी  भाषी  परिवार  में  जन्म   क्यों  नहीं  लेता .?ब्रिटेन   में  मारने  वाला  इन्सान  भारत  में  क्यों  नहीं  जन्म  लेता ? जो  स्वयम  सिद्ध  करता  है  पुनर्जन्म  की   धारणा  या  इसमें  विश्वास  तर्कहीन  एवं  कपोलकल्पित  है .
श्राद्धों  का  आयोजन ;
shraddh ka ayojan 
                                                हिन्दू  धर्म  में  भाद्रपद   माह  में  पंद्रह  दिन  श्राद्धों  के  रूप  में  मनाये  जाते  हैं . जिसे  अपने  पूर्वजों  की  मृत्यु  तिथि  के  अनुसार  आयोजित  किया  जाता  है  .मान्यता  अनुसार  यह  पर्व  अपने  पूर्वजों  की  दिवंगत  आत्मा  की  शांती  तथा  उनकी  वंदना  का  प्रतीक  है .परंपरा   के  अनुसार  श्राद्ध  के  दिन   अपने  पूर्वजों  को   याद  करते  हुए  उनकी  पसंदीदा  खान  पान  की  वस्तुएं  और  वस्त्र  पंडितों  को  दान  करते  हैं .धारणा  है  की  उनकी  पसंद  की   वस्तुएं  पंडितों  को  खिलने  से  वे  वस्तुएं  पुरखों  तक  पहुँच  जाती  हैं .और  उनकी  आत्मा  तृप्त  होती  है .
     आज  के  भौतिक  वादी  युग  में  अक्सर  देखा  गया  है  ,घर  में  मौजूद  जीवित  रहते  बुजुर्गों  की  पसंद - नापसंद  एवं  उनका  मान  सम्मान  करना  युवा  पीढ़ी  भूलती  जा   रही  है . और  कभी  कभी  तो  उन्हें  बीते  वर्ष  का  केलेंडर  मान  कर  उनकी  मौत  की  प्रतीक्षा  करते  देखा  जाता  है .परन्तु  मरणोपरांत  समाज  में  अपनी  प्रतिष्ठा  बनाये  रखने  के  लिए  तथाकथित  सजल  नेत्रों  से  श्रद्धा  पूर्वक  याद  करने  की  परंपरा  निभाई  जाती  है .इस  प्रकार  श्राद्ध  का  आयोजन  श्रद्धा  कम  ढोंग  प्रपंच  अधिक  प्रतीत  होता  है .जीते  जी  उन्हें  संतुष्ट  नहीं  कर  सके  तो  मननोपरांत  श्राद्ध  का  ढोंग  करने  का  क्या  औचित्य  है ? यदि  उनके  जीवन  कल  में  ही  उन्हें  श्रद्धा  भाव  तथा  सम्मान  दे  पायें  तो  इनका  वृद्ध  जीवन  सहज  हो  सकता  है . संतान  के  लिए  यही  सबसे  बड़ा  श्राद्ध   है .
        जो  व्यक्ति  अपने  पूर्वजों  के  प्रति  श्रद्धा  नत  है  तो  श्राद्ध  के  दिन  गरीबों  को  दान  देकर  उनका  स्मरण  किया  जा  सकता  है .इस  प्रकार  से  श्राद्ध  मानना  एक  अच्छी  और  सार्थक  परंपरा  हो  सकती  है .
गंगा -यमुना  में  स्नान  करना  मुक्ति  दायक   माना  जाता  है ;
river bath

        यों  तो  प्रत्येक  नदी  में  स्नान  को  महत्वपूर्ण  माना  गया  है ,परन्तु  गंगा  और  यमुना  में  स्नान  को  सभी  पापों  से  मुक्ति  के  साधन  माना  गया  है . गंगा  जल  के  महत्त्व  को  तो  वैज्ञानिकों  ने  भी  स्वीकार  किया  है .परन्तु  जिस  प्रकार  कल  कारखानों  का  कचरा  एवं  नालों  का  गन्दा  पानी  गंगा  में  डाला  जाता  है ,गंगा  जल  आज  पूर्णतयः  प्रदूषित  हो  चुका  है .इसी  प्रकार  से  यमुना  नदी  भी  गंदे  नाले  में  परिवर्तित  हो  चुकी  है  और  वर्तमान   में  इन  नदियों  में  नहा   कर  मुक्ति  की  आकांक्षा   करना   बिलकुल  अप्रासंगिक  हो  गया  है  चिकत्सा  शास्त्रियों  के  अनुसार  आज  इन  नदियों  में  नहाना  तो  दूर  छूना  भी  हानिकारक  हो  चुका  है .अतः  उसमें  नहाकर  मुक्ति  की  कल्पना  करना  कितना  तर्कसंगत  है ?
                 यदि  इन  नदियों  में  स्नान  कर  स्वास्थ्य  लाभ  लेना  है  तो  पहले  उन्हें  प्रदूषण  मुक्त  करना  होगा  .जब  नदियाँ  स्वयं  अभिशप्त  हो  चुकी  हैं  तो  किसी  को  मुक्ति  का  कारण  कैसे  बन  सकती  हैं .इस  प्राचीन  धरोहर  को  मानव  के  लिए  हितकारी  बनाने  के  लिए,  नदियों  को  प्रदूषण  मुक्त  करने  के  लिए  एक  आन्दोलन  करना  होगा .तत्पश्चात  ही  उपरोक्त  मान्यता  सार्थक  बन  सकती  है .
    

शनिवार, 2 जून 2012

हमारे समाज में तर्कहीन मान्यताएं -2

कन्यादान 


  हिन्दू पद्धति से विवाह की रस्मों के दौरान फेरों से पूर्व एक रस्म होती है,जिसे कन्यादान का नाम दिया जाता है .जिसका भावार्थ है, माता-पिता अपनी बेटी को उसके ससुराल वालों को दान कर देता है.क्या बेटी कोई वस्तु है या पालतू जानवर है जिसे बाप ,दान कर देता है ?क्या एक लड़की का वजूद एक हाड़ मांस के पुतले के रूप में ही है ? उसकी अपनी कोई भावना ,कोई इच्छा ,कोई चाहत नहीं होती ? वह स्वतंत्र रूप से अपने भविष्य के फैसले लेने की कोई अधिकारी नहीं है? इसी कारण उसे एक खूंटे से हटा कर किसी और खूंटे से बांधने की रस्म निभाई जाती है ,उसका मालिक बदल दिया जाता है .यही कारण है एक लड़की विवाहित होने तक पिता की धरोहर होती है उसके नियंत्रण में रहती है ,विवाह के पश्चात् पति और ससुराल वालों के नियंत्रण में आ जाती है,अंत में पुत्र के अधिकार क्षेत्र में आना पड़ता है . कन्यादान अप्रत्यक्ष रूप से शोषण का संकेत है,महिला समाज का अपमान है जो आज भी निर्बाध रूप से चल रहा है .सारे महिला संगठन भी चुप पड़े हैं क्यों ?
 भाग्य के भरोसे जीना ;

 धार्मिक व्यक्ति अक्सर भाग्यवादी बन जाते हैं,क्योंकि उनकी मान्यता है कोई अदृश्य शक्ति पूरे विश्व को संचालित कर रही है,उसकी बिना इच्छा के दुनिया में पत्ता भी नहीं हिल सकता .मानव जीवन में सुख दुःख एवं उपलब्धियां सब कुछ पहले से निर्धारित है .इन्सान सिर्फ एक कठपुतली है.जो भाग्य में लिखा है उतना ही उसे मिलेगा ,उसे अधिक कुछ नहीं .दूसरे अर्थों में जब सब कुछ निर्धारित है तो मनुष्य को कुछ करने की आवश्यकता ही नहीं है.परन्तु सोचने की आवश्यकता यह है , क्या भाग्य के भरोसे रहकर खेतों में अनाज उगाया जा सकता है ? क्या फेक्टरियों में बिना श्रम के उत्पादन संभव है ?क्या देश पर हमला करने वाले दुश्मन को बिना संघर्ष के भाग्य का भरोसे हाथ पर हाथ रख कर भगाना संभव है ?क्या वर्तमान विकास का स्वरूप भाग्य के भरोसे ही संभव हो पाया है ? बिना कुछ किये हुए कुछ भी संभव नहीं है तो भाग्य पर निर्भर रह कर निष्क्रिय हो जाना कितना उचित है?

 भूत प्रेत में विश्वास ;

  जहाँ सुख होता वहां दुःख भी होता है , जहाँ दिन होता है तो रात भी होती है अर्थात जहाँ सकारात्मकता होती है वहां नकारात्मकता भी होती है .जब मानव ने अदृश्य शक्ति की कल्पना , पालनहार , जन्मदाता ,दुःख हरता के रूप में ईश्वर की , तो एक संघारक ,पीड़ादायक ,डरावनी शक्ति के रूप में भूत प्रेत की कल्पना भी मन में विकसित हुई .इस प्रकार से दो प्रकार की शक्तियों की कल्पना हुई ,जिसमे एक शक्ति लाभकारी थी ,प्यार करने वाली थी (ईश्वर ) तो दूसरी दुष्टात्मा सभी मानव के विरुद्ध कार्य करने वाली शक्ति यानि भूत प्रेत .मानव सभ्यता के प्रारंभिक काल में ऐसी कल्पना का विकास कोई अस्वाभाविक भी नहीं था .इस प्रकार से मानव के सभी कष्टों का कारण भूत प्रेत को माना गया. मान्यता के अनुसार यदि कोई व्यक्ति अकाल मृत्यु या आकस्मिक दुर्घटना में मर जाता है तो आयु से पूर्व मौत हो जाने के कारण उसे मुक्ति नहीं मिलती और उसकी भटकती आत्मा जब तब परिजनों को परेशान करती रहती है.जब तक उसके उद्देश्य अथवा उसकी अधूरी रह गयी इच्छाएं पूर्ण नहीं हो जाती ,उसकी मुक्ति नहीं होती . यदि परिवार में कोई मानसिक रोगी होता है ,अचानक गंभीर रूप से बीमार हो जाता है ,परिवार में कोई दुर्घटना का शिकार हो जाता है, तो उसे भूत या प्रेत का शिकार मान लिया जाता है और उसका इलाज किसी तांत्रिक से कराया जाता है.जो अत्यंत अतार्किक ,क्रूर ,एवं कष्टदायक होता है.जो आधुनिक चिकित्सा विज्ञानं पर एक तमाचे के समान है.क्या वास्तव में तांत्रिक की झाड़ फूंक मरीज को ठीक करने में सफल है ?तांत्रिक इलाज नितांत धोखेबाजी और आडम्बर बाजी का प्रतीक है .जहाँ तक मृत व्यक्ति की आत्मा का प्रश्न है,जिस व्यक्ति के शरीर का अंत ही हो गया उसमे सोचने समझने की शक्ति तथा इच्छाओं की पूर्ती की अभिलाषा काल्पनिक एवं तर्कहीन मानसिकता है .यह भी कहा जा सकता है कुछ धूर्त किस्म के लोग अपनी दुकानदारी चलाने के लिए तंत्र मन्त्र के जल में भोली भली जनता को फुसलाते है और अपने स्वार्थ सिद्ध करते हैं .ये लोग कुतर्क करके जनता को भयभीत करते है.अशिक्षित जनता इनके भ्रमजाल में फंस जाती है. प्रत्येक जागरूक नागरिक को तंत्र -मन्त्र ,भूत -प्रेत के अन्धविश्वास में पड़ने से बचना चाहिए ,और अपने परिवार तथा परिजनों को रूढ़ीवाद से मुक्ति दिलानी चाहिए.किसी भी रोग,मानसिक रोग का इलाज चिकित्सा विज्ञानं के पास उपलब्ध है,अतः उचित दिशा का चयन करना ही पूरे समाज के हित में है .

शुक्रवार, 1 जून 2012

हमारे समाज में तर्कहीन मान्यताएं(FIRST)

हमारे समाज में अनेकों प्रकार की सामाजिक और धार्मिक मान्यताएं भरी पड़ी हैं .जिनमे से कुछ मान्यताएं बहुत ही लाभप्रद हैं परन्तु अनेक मान्यताएं या तो वर्तमान समय के अनुसार अप्रासंगिक हो चुकी हैं या पूर्णतयः अवैज्ञानिक एवं तर्कहीन हैं .आवश्यकता है प्रत्येक मान्यता को तर्क की कसौटी पर कसने की ,उनकी सत्यता की परख करने की .जो मान्यताएं बेबुनियाद हैं जिनसे किसी को लाभ नहीं होता बल्कि उसके कारण हमारा धन और समय बिना कारण व्यय होता है कभी कभी नुकसान भी उठाना पड़ता है ,ऐसी मान्यताओं को अपनाने या ढोने में कोई बुद्धिमत्ता नहीं है .इस लेख द्वारा कुछ उदाहरनो से तर्कहीन मान्यताओं पर विचार किया गया है .प्रत्येक जागरूक व्यक्ति को किसी भी मान्यता को अपनाने से पूर्व उसको तर्क शक्ति के आधार पर विश्लेषण करना चाहिए .इस प्रकार से हम अपना अमूल्य समय और अपनी गाढ़ी कमाई को बचा सकते हैं .समाज से दकियानूसी ,आडम्बर युक्त धारणाओं से मुक्त हो कर एक उन्नत समाज का निर्माण कर सकते हैं
.
. बिल्ली का रास्ता काटना अशुभ माना जाता है ;
अक्सर लोगों की धारणा है ,यदि किसी कार्य के लिए जाते समय बिल्ली रास्ता काट दे तो अशुभ संकेत होता है .कार्य बिगड़ जाने की आशंका होती है .अतः ऐसे समय अपनी यात्रा को स्थगित कर कुछ समय पश्चात् प्रारंभ करनी चाहिए ,इस प्रकार से अशुभ होने की शंका से बचा जा सकता है . मेरा अपना अनुभव है ,मैंने अनेकों बार बिल्ली के रास्ता काटने के बावजूद यात्रा करने पर भी कोई व्यवधान नहीं पाया ,और न कोई अशुभ समाचार मिला .अब तक ज्ञात इतिहास में अथवा किसी पौराणिक ग्रन्थ में इस आशंका को समर्थन नहीं मिला है .कोई वैज्ञानिक तर्क इस आशंका की पुष्टि नहीं करता ,फिर निर्मूल आशंका से भय क्यों ? मन में आशंका पल कर हम अपने लक्ष्य प्राप्ति से वंचित रह सकते हैं ,देर से पहुँचने पर ट्रेन छूट सकती है ,एयर फ्लाईट मिस हो सकती है .शायद इस देरी से नोकरी पाने का अवसर हाथ से चला जाय ,किस महत्त्व पूर्ण कार्य की सफलता संदिग्ध हो जाय .अतः अपनी यात्रा को बिल्ली के रास्ता काटने के कारण स्थगित करना भारी पड़ सकता है

 किसी कार्य को करने के प्रारंभ में छींक होना अशुभ माना जाता है ;
ऐसी मान्यता है , यदि कोई शुभ कार्य को निकालने वाला है और कोई छींक दे तो उसे अशुभ संकेत माना जाता है ,किसी संकट की आशंका व्यक्त की जाती है या जिस कार्य के लिए निकलने वाले हैं उसमें सफल होने की सम्भावना धूमिल हो जाती है . छींक से किसी कार्य के होने या न होने से कोई सम्बन्ध नहीं हो सकता . छींक आना एक शरीरिक प्रतिक्रिया है या नजला जुकाम भी एक कारण हो सकता है जिस पर छींकने वाले का कोई नियंत्रण नहीं होता ताकि वह उसे कुछ समय के लिए टाल सके .अतः इस घटना को अशुभ मान लेना औचित्य हीन है .इस पर विश्वास कर कार्य में विलम्ब से कार्य में हानि हो सकती है न की छींकने से . छींक पर विश्वास करने वाले या इसे अशुभ मानने वाले को तनाव युक्त कर उसके शुभ कार्य को ,उसके सुनहरे पलों को प्रभावित कर सकता है .छीकने वाले को अपना दुश्मन मान लेना उसे हिकारत की निगाह से देखना किसी भी प्रकार से तर्कसंगत नहीं है .अतः बिना सोचे परम्पराओं की लकीर पीटते जाना आधुनिक समाज के लिए अभिशाप है


 अखंड रामायण एवं देवी जागरण अपने इष्ट देव को खुश करने का माध्यम ;
रामायण का अखंड पाठ करते समय तुलसी दस द्वारा रचित राम चरित मानस के अनवरत काव्यपाठ का प्रचालन है .जिसमें करीब चौबीस घंटे का समय लगता है .इतनी शीघ्रता से काव्यपाठ करने पर शायद ही कोई उस काव्य का भावार्थ समझ पता हो .जिस काव्य पाठ को पाठक या श्रोता समझ ही नहीं पता हो उसे धार्मिक या नैतिक लाभ कैसे संभव हो सकता है ?देवी के जागरण में सम्पूर्ण रात्रि को देवी के भजनों द्वारा उसकी आराधना में समर्पित कर दिया जाता है .और पूरे मोहल्ले को जबरन पूरी भजन सुना सुना कर जगाया जाता है ,क्या देवी की उपासना अपने तक सीमित करते हुए की जाय तो देवी रुष्ट हो जाती हैं ?और अब तो भजन भी फ़िल्मी धुनों पर आधारित होते हैं ताकि फिल्मों में रूचि रखने वालों को भी फ़िल्मी आनंद का आभास होता रहे और जनता का मनोरंजन भी होता रहे .क्या पूरी रात काली करके ही देवी प्रसन्न होती हैं ?    

रविवार, 20 मई 2012


धार्मिक मान्यताओं का वैज्ञानिक महत्त्व
सैंकड़ो वर्ष पूर्व हमारे पूर्वजों ने अनेक प्रकार के नियम एवं मान्यताएं स्थापित कीं ,जिसे उन्होंने
धर्म का स्वरूप देकर मानव हित के लिए जनता को बहुत ही साधारण सी भाषा में समझा दिया .वर्तमान युग के सन्दर्भ में जब उन्हें वैज्ञानिक तर्क की कसौटी पर कसते हैं ,तो आश्चर्य होता है की इतने प्राचीन समय में भी हमारे पूर्वज कितने वैज्ञानिक रहे होंगे .
इस विषय पर विस्तार से चर्चा करने का प्रयास किया जा रहा है ;
1,तुलसी का महत्त्व ;-
हिन्दू धर्म में तुलसी का अत्यंत महत्त्व बताया गया है . रोज सवेरे उसको जल देना और पूजा
अर्चना करने का विधान है . प्रत्येक घर में उसका पौधा होना आवश्यक माना गया है . वैज्ञनिक शोधों में पाया गया है.की मानव शरीर के लिए तुलसी का पौधा अनेक प्रकार से स्वास्थ्यप्रद है . नित्य
उसके सानिध्यसे शुद्ध हवा शरीर को प्राप्त होती है .अनेक रोगों में भी इसके पत्ते , इसके बीज लाभकारी होते हैं .आयुर्वैदिक डॉक्टर तुलसा को जड़ी बूटी मानकर दवाओं में प्रयोग करते हैं .
2
,सूर्य नमस्कार ;

रोज सवेरे सूर्य देवता की पूजा ,अर्थात सूर्य नमस्कार के साथ जल विसर्जन करने को हमारे धर्म
ग्रंथों में महत्त्व पूर्ण बताया गया है .सूर्योदय के समय जो किरणे हमारे शरीर पर पड़ती हैं ,स्वास्थ्य के लिए लाभप्रद होती है .अतः हमारे पूर्वजों ने इन किरणों से मानव को स्वास्थ्य प्रदान करने के लिए सूर्य को देवता के रूप में प्रस्तुत किया और रोज सवेरे स्नानादि से निवृत हो कर सूर्योदय के समय में जल अर्पण का प्रावधान किया .इस प्रकार से होने वाले लाभ को वैज्ञनिक रूप से सही
पाया गया है .
3
,विभिन्न उपवासों की धार्मिक मान्यता ;-

यदि हम प्रत्येक उपवास अथवा उपवासों पर दृष्टि डालें तो सभी उपवासों का एक ही उद्देश्य
प्रतीत होता है,की मानव को शरीरिक रूप से स्वास्थ्य रखा जाय. सारी शारीरिक समस्याओं की जड़ पेट होता है अर्थात यदि पेट की पाचन क्रिया दुरुस्त है , तो शरीर व्याधि रहित रहता है .उसे ठीक रखने के लिए समय समय पर उपवास रखना सर्वोत्तम साधन है ,उपवास रोजे के रूप में हो या
फिर नवरात्री के रूप में .इन उपवासों से इन्सान की जीवनी शक्ति बढती है, सहन शक्ति का संचार होता है .नवरात्री वर्ष में दो बार पड़ते हैं ,और दोनों के समय मौसम के संधिकाल में पड़ता है
अर्थात उन दिनों मौसम बदल रहा होता , हम ग्रीष्म से शरद ऋतू में प्रवेश कर रहे होते हैं ,या शरद ऋतू से ग्रीष्म ऋतू में प्रवेश कर रहे होते है .जब मौसम का बदलाव होता है हमारी
पाचन क्रिया बिगड़ जाती है .अतः ऐसे समय में उपवास या व्रत रखना शरीर के स्वास्थ्य की रक्षा
करता है .अतः सभी उपवासों को चिकित्सा की दृष्टि से स्वास्थ्यप्रद पाया गया है .अतः मानव को स्वस्थ्य रखने के लिए उपवासों को धर्म से जोड़ा गया .
4,
मंदिरों -गुरुद्वारों में घंटों का महत्त्व ;-

मंदिरों -गुरुद्वारों आदि धार्मिक स्थलों पर घंटे बजाने का चलन है ,परन्तु बहुत कम लोग जानते हैं
की इसका भी एक वैज्ञानिक आधार भी है , जिसका स्वस्थ्य पर अनुकूल प्रभाव पड़ता है .घंटे बजने से
उत्पन्न ध्वनि तरंगें कीटाणुओं का नाश करती है ,और धार्मिक स्थल को वातावरण प्रदूषण रहित बनाती हैं .इस प्रकार शुद्ध यानि प्रदूषण रहित वातावरण में बैठ कर पूजा अर्चना करने से स्वस्थ्य
लाभ भी मिलता है .शायद हमारे पूर्वजों की सोच रही होगी मंदिर में पूजा अर्चना करने के लिए बीमार व्यक्ति भी आते है , जिनके रोगाणु अन्य भक्तों को नुकसान पहुंचा सकते हैं . अतः मंदिरों को संक्रमण रहित करने की युक्ति घंटे बजा कर निकली गयी होगी .
5,
गायत्री मन्त्रों का महत्त्व ;

गायत्री मन्त्रों का जाप सर्वाधिक महत्त्व पूर्ण जाप माना गया है ,इसीलिए अनेक विद्वानों ने
इसे अपनी उपासना का अंग बनाया है . जाप कोई भी हो सबका उद्देश्य मन को केंद्रीकृत कर
उसे अनेक बुराईयों से बचाना होता है ,और शारीरिक ऊर्जा का विकास होता है . शांति कुञ्ज हरिद्वार में स्थित ब्रह्म वर्चस्व में ,इस विषय पर शोध करने के पश्चात् पाया गया की गायत्री मन्त्र के
उच्चारण से उत्पन्न ध्वनि तरंगें अन्य किसी भी मंत्र के मुकाबले सर्वाधिक अनुकूल प्रभाव डालती हैं .अतः इस मन्त्र का वैज्ञानिक महत्त्व चमत्कारिक है .इसके लगातार उच्चारण करने से शारीरिक ऊर्जा के साथ साथ जप के स्थान पर भी ऊर्जा का संचार पाया गया और वातावरण में स्वच्छता ,
सकारात्मकता का प्रभाव पाया गया .इसीलिए जहाँ पर नियमित गायत्री मंत्रोच्चार होता है , वह
स्थान मन को शांती प्रदान करने वाला हो जाता है .इसी कारण देवालयों में जाकर मन को अलग ही प्रकार की सुखद अनुभूति होती है .

गुरुवार, 15 मार्च 2012

समाजवादी पार्टी की सत्ता वापसी

यह तो कटु सत्य है आज प्रत्येक राजनैतिक दल में दबंगों ,अपराधियों का बोलबाला है . परन्तु समाजवादी पार्टी की कार्यशैली भी कुछ दबंगई को परिलक्षित करती रही है .मुलायम सिंह जी के पिछले शासन कालों के दौरान गुंडा गर्दी ,अपराधों एवं अपहरणों की बहुतायत रही है .पत्रकारों पर खुले आम हमले , एवं दुर्व्यवहार आज भी तानाशाही शासन की याद करा देता है . उत्तरखंड के आन्दोलन को जिस प्रकार से कुचला गया ,लोकतंत्र भी लजाता दिखा .मुलायम जी की मुस्लिम परस्त नीतियाँ उनकी धर्मनिरपेक्षता की पहचान बनी हुई है .इतना सब कुछ होने के पश्चात् भी पूर्ण बहुमत से सत्ता में वापस लौटना उनका सौभाग्य ही कहा जा सकता है ,जो प्रदेश के लिए भी सौभाग्य बन सकता है यदि समाजवादी पार्टी अपने पिछली कार्य शैली में आमूल चूल परिवर्तन ला सके .नवोदित मुख्य मंत्री श्री अखिलेश जी युवा हैं शिक्षित हैं ,ऊर्जावान हैं ,और पार्टी की अपराधिक छवि को सुधारने को संकल्प बद्ध भी .यदि उन्होंने उन्हें अल्पायु में प्राप्त सुनहरी अवसर का सदुपयोग किया तो वे एक सुखद भविष्य का निर्माण कर सकेंगे .प्रदेश की जनता ने इसी उम्मीद से उनमे अपना विश्वास जाता कर स्पष्ट बहुमत से सत्ता सौंपी है .जो उनको दृढ़ता पूर्वक अपने निर्णय लेने में सुविधाजनक होगा .गठबंधन की सरकारें चाहते हुए भी कुछ नहीं कर पातीं .
किसी के भी मन में यह पार्ष्ण कौंधना स्वाभाविक है आखिर समाज वादी पार्टी में जनता का विश्वास क्यों जगा .क्यों उन्हें स्पष्ट बहुमत दे कर सत्तारूढ़ कर दिया .इस चुनावी घटना क्रम का विश्लेषण किया जाय तो ज्ञात होता है की अनेक कारण समाजवादी पार्टी के पक्ष में बने जो उसे सत्ता तक ले गए .
1.प्रदेश में किसी भी राष्ट्रिय पार्टी का जनाधार का न होना .अर्थात कांग्रेस एवं भारतीय जनता पार्टी की साख बहुत नीचे आ जाना .क्योंकि कांग्रेस पार्टी की छवि केंद्र में भ्रष्टाचार और घोटालों के कारण काफी ख़राब हो चुकी है ,भा .ज .पा ने बाबु सिंह कुशवाहा को ऐन चुनाव के अवसर पर पार्टी में लेकर अपनी छवि धूमिल कर ली .इसी कारण उसका जनाधार पहले से भी नीचे आ गया .
2.जनता बहुजन समाज पार्टी से नाराज थी .क्योंकि मायावती जी ने अपने कार्य कल में या तो घोटाले कराय या फिर जनता की गाढ़ी कमाई को पार्कों में मूर्तियाँ लगाने में खर्च कर डाला .उनके कार्यकाल में प्रदेश विकास की समुचित रह नहीं पकड़ पाया बल्कि उसकी गणना देश के सबसे पिछड़े प्रदेशों में होने लगी .
3.जब तीन बड़े दलों के विरुद्ध मतदान करना था तो जनता के समक्ष समाजवादी पार्टी का ही विकल्प रहा गया .जिसने समाजवादी पार्टी के सितारे को चमकाया .
4.इस बार प्रदेश में नए मतदाता बने युवाओं के लिए युवा वर्ग का प्रतिनिधित्व करने वाले तीन नेता मैदान में थे ,कांग्रेस से राहुल गाँधी ,राष्ट्रिय लोक दल से जयंत चौधरी ,एवं समाजवादी पार्टी से अखिलेश यादव परन्तु अखिलेश जी ही युवाओं की पहली पसंद बन पाए.उन्हें अखिलेश के व्यक्तित्व में अपना भविष्य दिखाई दिया और समाज वादी पार्टी के लिए मतदान किया .
5. समाजवादी पार्टी के घोषणा पत्र में युवा बेरोजगारों को बेरोजगार भत्ता देने का वायदा किया गया ,और हाई स्कूल एवं इंटर पास युवाओं को लैपटॉप एवं टेबलेट देने का वायेदा किया गया ,जिसने युवा वर्ग को अपने पाले में खींचने का कम किया .
6.मुस्लिम वर्ग ने कांग्रेस द्वारा उछाले गए आरक्षण के मुद्दे को चालाकी भरा वायेदा मन कर नकार दिया .क्योंकि आजादी के पश्चात् अधिकतम समय केंद्र में कांग्रेस के पास ही सत्ता रही है , इतने लम्बे समय में मुस्लिमों को आरक्षण देने याद नहीं आयी.परन्तु अब चुनावों की बेला पर अपनी डूबती नैय्या को बचाने के लिए मुस्लिमों से अचानक हमदर्दी उन्पन्न हो गयी . मुस्लमान पहले से ही सनाज्वादी पार्टी को पसंद करते रहे हैं .इस बार उन्होंने कुछ अधिक ही मतदान कर पार्टी को बहुमत दिला दिया
जैसा की अखलेश जी अपने बयानों में कहते आए हैं की वे गुंडा गर्दी पर पूर्णतयः लगाम लगा कर प्रदेश का विकास करेंगे और शांती व्यवस्था कायम करेंगे .ताकि उत्तर प्रदेश उत्तम प्रदेश बन सके .परन्तु उन्हें अपने संकल्प को क्रियान्वित कर पाना आसान भी नहीं है .जिस प्रकार प्रदेश की राजनीति में गलाकाट प्रतिस्पर्द्धा है ,अखिलेश जैसे नवयुवक के लिए कम चुनौती वाला नहीं होगा .क्योंकि हमारा समाज आयु को एवं राजनैतिक परिवेश अनुभव को अधिक महत्त्व जाता है .जो अखलेश जी के पास नहीं है , फिर भी उनके उत्साह को देखते हुए उम्मीद की जा सकती है , वे अपने सभी बुजुर्ग साथियों ,नौकर शाहों का सहयोग प्राप्त कर अपने लक्ष्य को प्राप्त कर सकेंगे . प्रदेश में सुराज्य स्थापित कर विकास की ओर ले जायेंगे .

शुक्रवार, 9 मार्च 2012

भारत का मध्यम आए वर्ग

आज पूरे विश्व की निगाहें भारत के मध्यम आए वर्ग द्वारा निर्मित विशाल बाजार पर टिकी हुई है .दुनिया का प्रत्येक विकसित देश हमारे देश से सम्बन्ध सुधार कर अपने व्यापार को नए आयाम देने को उत्सुक है . ताकि उस देश की औद्योगिक इकाइयों में निर्मित उत्पाद को खपाया जा सके .भारत की कुल जनसँख्या का तीस प्रतिशत अर्थात 36 करोड़ व्यक्ति मध्यम आए वर्ग के अंतर्गत आते हैं .यह वर्ग जहाँ विदेशों में आकर्षण का केंद्र है वहीँ इसकी देश के निर्माण में विशेष भूमिका है .यदि यह कहा जाय यह वर्ग हमारे देश का गौरव है तो कोई अतिश्योक्ति नहीं होगी .इस लेख के माध्यम से मैंने इस वर्ग के व्यक्तियों की मनः स्थिति ,सामाजिक स्थिति एवं आर्थिक स्थिति का आंकलन करने का प्रयास किया है .
मध्यम आए वर्ग से मेरा अभिप्राय एक ऐसे वर्ग से है जो आर्थिक रूप से इतना तो सक्षम है की अपने दैनिक आवश्यकताओं की पूर्ती आसानी से कर पाता है .उसे अपनी न्यूनतम आवश्यकताओं के लिए संघर्ष नहीं करना पड़ता परन्तु उच्च श्रेणी की सुविधाए प्राप्त करने में सक्षम नहीं है या यह भी कहा जा सकता है विलसिता पूर्ण जीवन व्यतीत करने के लिए उसके पास पर्याप्त धन नहीं होता .
यदि अपवादों को नजरअंदाज कर दिया जाये तो यह वर्ग सर्वाधिक सर्वगुण संपन्न है .स्वच्छ चरित्र न्यायप्रियता , बुद्धिमत्ता , महनत कश एवं महत्वकांक्षी होना इस वर्ग की विशेषता है .इस वर्ग की विस्तृत विशेषताओं का क्रमवार विश्लेषण प्रस्तुत है .
स्वच्छ चरित्र ;- चरित्र के प्रति निष्ठावान रहने के लिए इस वर्ग के समाज में विशेष ध्यान रखा जाता है .सब लोग एक दूसरे की गतिविधियों पर निगाहें बनाए रखते हैं .इसी कारण प्रत्येक व्यक्ति अपने सम्मान को बनाये रखने के लिए अपने व्यव्हार को संयमित रखता है ,अवांछनीय कार्यों को करने से परहेज करता है .यदि कोई असामाजिक कार्य करता भी है तो समाज की नजरों से बचे रहने के प्रयास करता है ताकि समाज की निगाहों में उसको अपमानित न होना पड़े .मांसाहारी , नशाखोरी ,जुआखोरी, वैश्यावृति जैसी सामाजिक बुराइयों के विरुद्ध इसी वर्ग से आवाज उठती है .स्वयं भी इन बुराइयों से दूर रहने के प्रयास करते हैं . इस वर्ग के लिए चरित्रवान होना सर्वाधिक महत्ब्पूर्ण है .
न्याय प्रियता ;- इस समाज में सबसे अधिक न्याय की बातें होती हैं . अन्याय के विरुद्ध सर्वाधिक संघर्ष इसी वर्ग के लोगों द्वारा किया जाता है .सर्वाधिक जागरूक ,क्रियाशील ,नागरिक इसी वर्ग के सदस्य होते हैं .न्याय प्रियता ही उन्हें चरित्रवान बनने को प्रेरित करती है .
बुद्धि मत्ता ;- बुद्धि और विद्वता में यह वर्ग पूरे समाज में सर्वोपरि है . देश के सर्वोच्च पदों पर इसी वर्ग के नागरिक अपने अथक प्रयास द्वारा सुशोभित करते हैं .पुश्तैनी जायदाद पर जीवन बसर करने वाले लोगों को छोड़ कर ,अक्सर उनकी विद्वता ही उनकी धन अर्जन का माध्यम बनती है .अतः शिक्षा के माध्यम से आजीविका चलाने का प्रयास करते है चाहे व्यापार हो ,या उत्पादन इकाई हो ,अन्य कोई कारोबार हो , कोई व्यवसाय हो ,या फिर नौकरी सफलता पूर्वक आगे भी बढ़ते देखे जा सकते हैं |
मेहनत कश ;-आगे बढ़ने की महत्वाकांक्षा के कारण जुझारू पृकृति के होते हैं | क्योंकि चरित्रवान होने के कारण अर्थात बुराइयों से दूर रहने के कारण ,शारीरिक और मानसिक श्रम में किसी प्रकार पीछे नहीं रहते | जीविकोपार्जन के लिए सर्वाधिक समय यही वर्ग व्यय करता है | उच्च वर्ग तक पहुँचने की महत्वाकांक्षा उन्हें जीवन भर तनावग्रस्त बनाये रखती है, और सदैव असंतुष्ट बने रहते हैं| सर्वाधिक प्रतिस्पर्द्धा यही वर्ग चुनौती के रूप में स्वीकार करता है|
असुरक्षा का भाव ;-यह वर्ग अपने को सर्वाधिक असुरक्षित अनुभव करता है .कारण यह है की निम्न वर्ग के पास खोने को कुछ नहीं होता अतः यदि सार्थक प्रयास करें तो मध्यम वर्ग तक पहुँच सकता है ,दूसरी तरफ उच्च वर्ग इतना सामर्थ्य होता है की उसे कुछ भी खोने का गम नहीं हो सकता अतः अपने भविष्य के प्रति चिंतित होने की आवश्यकता नहीं होती .मध्यम वर्ग हमेशा उच्च श्रेणी में पहुँचने के सपने देखता है परन्तु साथ ही अपने वर्तमान स्तर को बनाये रखने के लिए चिंतित रहता है .अतः मध्यम वर्ग हमेशा असुरक्षित अनुभव करता रहता है.
उच्च वर्ग की नक़ल ;-मध्यम वर्ग की विशेषता है की वह अपनी महत्वाकांक्षा के कारण उच्च वर्ग की अर्थात सर्व साधन संपन्न व्यक्तियों की नक़ल करना उसे भाता है | शायद वह अपने को उच्च वर्गीय दिखाना चाहता है ,इस प्रकार नक़ल करके वह गौरव का अनुभव करता है और अपने समाज पर प्रभाव डाल कर अपने को सम्मानित अनुभव करता है |.इसी नक़ल के कारण वह अपने yahan आयोजित विवाह समारोह या सांस्कृतिक आयोजनों में अपनी सामर्थ्य से कहीं अधिक खर्च कर देता है ,यही फिजूल खर्च उसे भविष्य में अनेकों परेशानियों का कारण बनता है |
धार्मिक आस्था ;-मध्यम आए वर्ग समाज का धार्मिक कार्यों में सर्वाधिक योगदान रहता है . धार्मिक अनुयायी सर्वाधिक इसी वर्ग से होते हैं | .परन्तु अप्रासंगिक परम्पराओं को तोड़ने की ललक ,तर्क हीन मान्यताओं के विरुद्ध संघर्ष करने की इच्छा भी इसी वर्ग में पाई जाती है | .और पाश्चात्य संस्कृति को अपनाने की चाह में अपनी सांस्कृतिक धरोहर को छोड़ देने की प्रवृति भी इसी वर्ग पाई जाती है . सीमित साधनों के बावजूद, उन्नत एवं आधुनिक दिखने की इच्छा ,निरंतर बनी रहती है .
पीढ़ी दर पीढ़ी अंतर सर्वाधिक ;- मध्यम आए वर्ग को ,विभिन्न स्तरों जैसे उच्च मध्यम आए वर्ग ,अल्प मध्यम आए वर्ग ,निम्न मध्यम आए वर्ग में विभाजित किया जा सकता है | जो अल्प आए वर्ग एवं उच्च आए वर्ग के मध्य का लम्बा सफ़र है | मध्यम आए वर्ग निरंतर विकासोन्मुख रहते हुए अपने आए वर्ग की उन्नत श्रेणी में बढ़ता रहता है | .अतः अक्सर नई पीढ़ी पुरानी पीढ़ी से अधिक आए वर्ग श्रेणी में उन्नत करती रहती है | और वह पुरानी पीढ़ी के मुकाबले अधिक सुख सुविधाओं के साथ जीवन व्यतीत करना चाहता है ,परन्तु परिवार के
साथ रह रहे युवकों की इच्छाओं पर घर के बुजुर्ग कुठाराघात करते हैं ,परिणाम स्वरूप नयी पीढ़ी से टकराव
के कारण संयुक्त परिवार का विघटन हो जाता है |नयी पीढ़ी को पुरानी पीढ़ी का कोप भजन बनना पड़ता है .अतः एक तरफ यह स्थिति युवा पीढ़ी के लिए संघर्ष का कारण बनती है तो दूसरी तरफ पुरानी पीढ़ी के लिए कष्टकारी भी होता है |
उपरोक्त विश्लेषण से स्पष्ट है देश का मध्यम वर्ग ही देश की संस्कृति का प्रतिनिधित्व करता है ,वही देश के विकास को गति देता है एवं देश की आत्मा होता है |

शनिवार, 18 फ़रवरी 2012

चुनाव में धनबल और बाहुबल का प्रयोग

लोकतंत्र और राजतन्त्र में मुख्य अंतर होता है ,राजतन्त्र में राजा को पदच्युत करने के लिए जनता को हिंसा का सहारा लेना पड़ता है ,जिसमें राजकीय सेना और आम जनता में जंग होती है यदि सेना जनता को दबाने में विफल रहती है तो राजा को सत्ता छोड़ने के लिए विवश होना पड़ता है उसे गिरफ्तार कर लिया जाता है या मार डाला जाता है , जनता का नया नेता सत्ता को संभाल लेता. गिरफ्तार किये गए राजा का भविष्य भी सुरक्षित नहीं होता , उस पर अनेकों इल्जाम लगाकर उसे मार डाला जाता है .परन्तु लोकतंत्र में जनता अपने शासक को वोट द्वारा बदल सकती है अर्थात बिना खून खराबे के ,बिना किसी प्रकार की हिंसा के सरकर बदल जाती है .पुराना शासक अथवा पदाधिकारी पूर्ण सम्मान के साथ शेष जीवन व्यतीत करता है यही लोकतंत्र की विशेषता है .
यह तो सत्य है स्वतन्त्र भारत में चुनावो के माध्यम से सत्ता परिवर्तन होते आए हैं .परन्तु यह देश का दुर्भाग्य है की सत्ता की बागडोर सँभालने वाले नेता समाज की सेवा या जनतंत्र की भलाई करने के मकसद से नही आए ,बल्कि उन्होंने राजनिति को कमाई का माध्यम बनाया . उसे
व्यापार या व्यवसाय के तौर पर ही अपनाया . देश में राजनीति देश सेवा करना नहीं , बल्कि धन कमाने का साधन बना रहा . और हो भी क्यों न ? राजनिति से अच्छा व्यवसाय कोई है भी नहीं जहाँ करोड़ या दो करोड़ खर्च कर सैंकड़ो करोड़ कमाए जा सकते हैं .अतः उन्होंने देश के विकास के स्थान पर अपने विकास पर दृष्टि बनाय रखी. परिणाम स्वरूप कमाई के वैध और अवैध दोनों तरीके अपनाये ,भ्रष्टाचार को फलने फूलने का पूर्ण अवसर प्रदान किया .नेताओं की इसी आकांक्षा ने उनको चुनावो में येन केन प्रकारेण सत्ता तक पहुँचने की कशमकश में बदल दिया .चुनाव आयोग के अनेको प्रकार से अंकुश लगाये जाने के पश्चात् भी ,चुनाव जीतने के लिए उन्होंने जनता को अनेक प्रलोभन दिए ,कभी सिलाई मशीन ,कभी साईकिल ,तो कंही लैपटॉप देने का लालच दिया गया ,नोटों का वितरण कर और शराब पीने की खुली छूट देकर ,जनता को दावत देकर,झूंठे वयेदे कर वोटर को अपने पक्ष में वोट डालने को प्रेरित किया.देश में आज भी ऐसे गरीबों की व्यापक संख्या है जिन्हें दो समय की रोटी जुटाना भी टेढ़ी खीर होता है अतः मतदान का मूल्य समझना उनके लिए कोई अर्थ नहीं रखता .यदि वोट देने से उन्हें कुछ समय की रोटी की व्यवस्था हो जाती है ,शराब पीने का मौका मिल जाता है,हलवा पूरी खाने को मिल जाते हैं ,तो उनके लिए सौभाग्य का अवसर होता है.इस प्रकार से नेता वोट खरीद लेते है. .जो मतदान का प्रासंगिकता ही ख़त्म कर देते हैं .
सत्तारूढ़ पार्टी चुनाव आयोग के अनेकों अंकुश लगाये जाने के बावजूद सरकारी मशीनरी का दुरूपयोग करती है ,यहाँ तक की क्षेत्रों के परिसीमन के समय भी सत्तारूढ़ पार्टी अपने हितों को ध्यान में रखते हुए जातीय समीकरणों के आधार पर सुनिश्चित करती रहती हैं .आवश्यकता पड़ने पर स्थानीय बाहुबलियों का सहारा लिया जाता रहा है ,जो जनता को धमका कर पार्टी विशेष के पक्ष में वोट डालने को विवश करते हैं ,देहाती क्षेत्रों में तो खुले आम बाहुबल का प्रयोग जाता है .
वोटर को बूथ तक जाते समय उसका पीछा किया जाता है
.उसका वोट स्वयं डालने तक की हिमाकत की जाती है .यही कारण है दबंगों,अपराधियों की चुनावों के अवसर पर चांदी हो जाती है .धीरे धीरे ये अपराधी पार्टियों तक अपनी पकड़ बना लेते हैं और स्वयं चुनावों में खड़े होकर,चुनाव लड़ने और जीतने लगते हैं .और अपराधी प्रवृति के लोग जन प्रतिनिधि बन जाते हैं ,जनता के माननीय हो जाते हैं .जो प्रशासन इन अपराधियों के लिए सिरदर्द होता था ,वही प्रशासन अब उनकी सेवा में प्रस्तुत रहता है .प्रशासन के वे अधिकारी ही उनकी रक्षा को तत्पर रहते हैं.उनकी मिजाज पुरसी करते हैं .उन्हें खुश रखने का प्रयास करते हैं . ताकि उनकी नौकरी में कोई व्यवधान न आए.आज आधे से अधिक जनप्रतिनिधि अपराधी प्रवृति के ही लोग नेता बने हुए हैं .आज दबंग होना , अपराधी होना चुनाव जीतने की विशेष योग्यता बन चुकी है .
इस प्रकार से धनबल एवं बहुबल का प्रयोग हमारे देश के लोकतंत्र के अस्तित्व पर ग्रहण लगा रहा है .

मंगलवार, 7 फ़रवरी 2012

आवश्यकता है चुनाव प्रणाली में सुधार की

आवश्यकता है चुनाव प्रणाली में सुधार की
गत कुछ दिनों से भ्रष्टाचार के विरोध में पूरे देश में आन्दोलन देखने को मिले ,जो जनता में व्याप्त आक्रोश को प्रदर्शित करते हैं .हमारे देश की सरकार ने लोकपाल बिल को किस प्रकार चालाकी से पास नहीं होने दिया ,जनता के साथ धोखाधडी है.परन्तु क्या यह संभव है,जो सांसद करोड़ों रुपये खर्च कर चुनाव जीता हो ,स्वयं ही कानून बना कर(अवैध ) कमाई के दरवाजे पर ताला लगा दे. जबतक सांसद बिना कुछ खर्च किये या मामूली खर्च कर जन प्रतिनिधि नहीं बनेंगे तब तक भ्रष्टाचार के विरुद्ध कानून बनाने की कोई सोच भी नहीं सकता अर्थात कोई सम्भावना नहीं है .
यद्यपि चुनाव आयुक्त टी .एन .शेशन ने निष्पक्ष एवं कानून के अनुसार ही खर्च हो इसके लिए काफी कुछ सुधार किये और वर्तमान चुनाव आयोग भी निरंतर प्रयासरत रहता है की चुनावों में नियमानुसार ही खर्च हो एवं चुनाव में निष्पक्षता बनी रहे . कम खर्च या बिना खर्च के संसद चुन कर आ सके इसके लिए चुनाव प्रक्रिया में आमूलचूल परिवर्तन लाना आवश्यक है ताकि चुनाव में होने वाले खर्च को न्यूनतम स्तर पर लाया जा सके .और एक आम व्यक्ति जिसके पास पर्याप्त धन नहीं है, परन्तु देश सेवा की भावना का जज्बा है, ईमानदार है ,स्वच्छ छवि वाला है,- भी चुनाव लड़ने का साहस कर सके और चुनाव जीत सके जब समाज सेवा की भावना लिए नेता सांसद बनेंगे तो भ्रष्टाचार पर लगाम लगाने के लिए ईमानदारी से मजबूत लोकपाल बिल ला सकेंगे ,सदन में बिल पास करा सकेंगे .सामाजिक समरसता लाने के लिए अन्य कानून भी बना सकेंगे .अर्थात देश को व्यापारी नेता नहीं बल्कि समाज सेवक नेताओं की आवश्यकता है,उसके लिए हमें चुनाव प्रणाली में परिवर्तन लाने होंगे.
चुनाव प्रणाली में सुधार के लिए ,सर्व प्रथम आवश्यकता है,चुनाव जीतने के लिए कुल मतदाता का बहुमत उम्मीदवार के पक्ष में होना चाहिए .सिर्फ तीस प्रतिशत वोटों से जीतने वाला सही मायने में जनता का प्रतिनिधित्व नहीं करता वह जनता की भावनाओं के अनुसार कार्य नहीं कर सकता. अक्सर देखा गया है की, किसी किसी क्षेत्र में मात्र पचास या पचपन प्रतिशत ही मतदान होता है.अनेक उम्मीदवारों में मत का विभाजन हो जाने के कारण
सर्वाधिक मत पाने वाले को विजयी घोषित कर दिया जाता है जबकि उसे क्षेत्र के कुल मतदाताओं का पच्चीस या तीस प्रतिशत मतदाताओ का समर्थन ही मिला होता है. कभी कभी तो इससे भी कम मतों को पाने वाला भी क्षेत्र का प्रतिनिधि बन जाता है.कम मतदान की
स्तिथि से निपटने के लिए में प्रत्येक मतदाता से वरीयता के अनुसार दो उम्मीदवारों के लिए
मत लेना होगा ताकि प्रथम वरीयता के मत कुल मतदाता के आधे से अधिक मत न मिलने की स्तिथि में, दूसरी वरीयता की गणनाकर जीत हार का निर्णय लिया जा सके दूसरी वरीयता में प्राप्त वोटों को आधे वोट के रूप में कुल गणना में शामिल किया जाय .इस प्रकार यदि उम्मीदवार के पास बहुमत का आंकड़ा प्राप्त हो जाता है तो उसे विजयी घोषित कर दिया जाय. यदि फिर भी किसी उम्मीदवार को बहुमत न प्राप्त हो पाय तो चुनाव स्थगित कर, दोबारा चुनाव प्रक्रिया को दोहराया जाय .

राईट टू रिकाल (प्रतिनिधि को वापस बुलाने का अधिकार );
राईट टू रिकाल जितना महत्वपूर्ण प्रस्ताव लगता है ,जन प्रतिनिधियों की नकेल कसने के लिए कारगर हो सकता है , उतना ही इस पर अमल करना जटिल भी है .इस मुद्दे पर नियम बना कर उसे लागू करना कष्टसाध्य भी है .मैं कुछ सुझाव अपनी तरफ से रखना चाहता हूँ शायद कानून निर्माताओं को पसंद आए और संशोधनों के साथ कानून को जनहित में बना सकें ;-
सबसे पहले एक सांसद के रिकाल के लिए अपना प्रस्ताव प्रस्तुत करता हूँ .सांसद के क्षेत्र के अंतर्गत आने वाले विधायकों का बहुमत आधार पर आवेदन चुनाव आयोग को दिया जाय ,तत्पश्चात आयोग के आग्रह पर अगली प्रक्रिया के रूप में सभी विधायक अपने क्षेत्रों की जनता अर्थात मतदाताओं में से पांच प्रतिशत मतदाताओं के हस्ताक्षर जुटाएं और चुनाव आयोग के समक्ष प्रस्तुत करें , परन्तु हस्ताक्षरों की शुचिता की पूर्ण जिम्मेवारी हस्ताक्षर लेने वाले विधायकों की होगी .हस्ताक्षर जाली पाए जाने पर चुनाव आयोग को उनके विरुद्ध सम्वैधानिक कदम उठाने का अधिकार हो.यदि चुनाव आयोग को मिले हस्ताक्षरों से वह संतुष्ट होता है,तो वह क्षेत्र की जनता से जनमत प्राप्त करे .यदि जनमत वर्त्तमान सांसद के विरुद्ध जाता है, तो उसके कार्यकाल को तुरंत निरस्त कर दिया जाय और .उस क्षेत्र में दोबारा चुनाव कराकर नया जनप्रतिनिधि चुन लिया जाय .
सांसद की भांति यही प्रक्रिया विधायकों के रिकाल के लिए अपनाई जा सकती है अंतर सिर्फ यह होगा की विधायकों के स्थान पर बहुमत में सभासद चुनाव आयोग के समक्ष अविश्वास प्रस्ताव रखेंगे और हस्ताक्षर संग्रह का कार्य करेंगे .बाकी सारी प्रक्रिया सांसद
के लिए अपनाई गयी प्रक्रिया के अनुसार ही हो .
सभासद को रिकाल करने के लिए उस सभासद के क्षेत्र के स्थानीय लोग पांच प्रतिशत मतदाताओं के हस्ताक्षर संगृहीत करेंगे,परन्तु उस अभियान को चलाने से पूर्व उन्हें स्थानीय चुनाव अधिकारी से अनुमति लेनी होगी ताकि वह अपना पर्यवेक्षक नियुक्त कर सके , हस्ताक्षरों की सत्यता पर निगरानी रख सके और संरक्षण में हस्ताक्षर अभियान चलाया जा सके शेष प्रक्रिया पूर्व की भांति ही हो .और उसके रिकाल होने पर नए सभासद का चुनाव किया जाय .

राईट टू रिजेक्ट (किसी को भी वोट न देने का अधिकार )
राईट टू रिजेक्ट अर्थात कोई भी उम्मीदवार पसंद न होने पर सभी को “NO VOTE” कह कर नकारने का अधिकार.अर्थात “कोई पसंद नहीं” कहने का अधिकार ,
ACT1969 के अंतर्गत SECTION49(O) जनता को अधिकार देता है की यदि कोई मतदाता किसी भी उम्मीदवार को पसंद नहीं करता तो उसे “I VOTE NOBODY” कहने का अधिकार है.प्रचार के अभाव में ,जिसकी जानकारी आम जनता को नहीं है और चुनाव आयोग ने भी मतदाता के इस अधिकार के प्रति उसे जागरूक करने का प्रयास नहीं किया. उसके लिए वर्तमान नियमों के अनुसार मतदान अधिकारी से फॉर्म 17A की मांग करनी होती है और उस फॉर्म को भर कर देना होता है . (यह फॉर्म अक्सर मतदान केन्द्रों पर उपलब्ध भी नहीं होता ) जो एक समय लेने वाला कार्य हो जाता है.मतदान के कार्य में विलम्ब भी होता है लम्बी प्रक्रिया होने के कारण मतदान कर्मी मतदाता को उसके अधिकार के उपयोग के लिए सहयोग देने से बचते हैं ,साथ ही मतदाता भी आम तौर पर इतनी लम्बी प्रक्रिया से गुजरना नहीं चाहता .इसलिए अक्सर ऐसे मतदाता जिन्हें कोई उम्मीदवार पसंद नहीं है , वोट डालने ही नहीं जाते. कानून सिर्फ किताबों में ही पड़ा रह जाता है.
यदि मतदाता को उसके इस अधिकार के उपयोग के लिए मतदान पत्र या वोटिंग मशीन में NO VOTE का विकल्प दे दिया जाय तो आम नागरिक को SECTION 49(O) का उपयोग करने का मौका मिल सकता है जो उसके लिए सुविधा जनक होगा और कानून को व्यावहारिक रूप दिया जा सकेगा.उदासीन मतदाताओं को अपना आक्रोश व्यक्त करने का अवसर मिल सकेगा . दलों को भी प्रेरणा मिलेगी की भ्रष्ट एवं अपराधी छवि वाले उम्मीदरों को खड़ा न करें .
यदि किसी चुनाव के अंतर्गत पच्चीस प्रतिशत से अधिक NO VOTE पड़ते हैं तो चुनाव प्रक्रिया दोबारा अपनाई जानी चाहिय ताकि अच्छे उम्मीदवार चुनाव संग्राम में आ सकें .साफ व् स्वच्छ छवि वाले उम्मीदवार जनप्रतिनिधि बन सकें और जनता के हित में कार्यों को अंजाम दे सकें

रविवार, 29 जनवरी 2012

नारी स्वयं नारी के लिए संवेदनहीन क्यों?

यह तो सभी जानते हैं हमारे देश में महिला समाज को सदियों से प्रताड़ित किया जाता रहा है . उसे सदैव पुरुष के हाथों की कठपुतली बनाया गया.उसे अपने पैरों की जूती समझा गया.उसके अस्तित्व को पुरुष वर्ग की सेवा के लिए माना गया . परन्तु आधुनिक परिवर्तन के युग में समाज के शिक्षित होने के कारण महिला समाज में भी अपने अधिकारों के प्रति जागरूकता का संचार हुआ और महिला समाज को उठाने ,उसके शोषण को रोकने एवं समानता के अधिकार को पाने के लिए अनेक आन्दोलन चलाये गए अनेक महि
ला संगठनों का निर्माण हुआ महिला समाज ने अपने शोषण के विरुद्ध आवाज उठाई , और समानता के अधिकार पाने के लिए संघर्ष प्रारंभ किया . यद्यपि महिलाओं की स्तिथि में बहुत कुछ परिवर्तन आया है ,पुरुष वर्ग की सोच बदली है .परन्तु मंजिल अभी काफी दूर प्रतीत होती है.अभी भी सामाजिक सोच में काफी बदलाव लाने की आवश्यकता है . शिक्षा के व्यापक प्रचार प्रसार के बावजूद आज भी महिलाओं की स्वयं की सोच में काफी परिवर्तन लाने की आवश्यकता है .उनकी निरंकुश सोच महिलाओं को सम्मान दिला पाने में बाधक बनी हुई है .नारी स्वयं नारी का सर्वाधिक अपमान एवं शोषण करते हुए दिखाई देती है .
कुछ ठोस प्रमाण नीचे प्रस्तुत हैं जो संकेत देते हैं की महिला अपने तुच्छ स्वार्थ के लिए अपने महिला समाज का कितना अहित करती रहती हैं ?
उदहारण संख्या एक
हमारे समाज में मान्यता है “पति परमेश्वर होता है ,अतः उसकी सभी गलत या सही बातों का समर्थन करना पत्नी का कर्त्तव्य है ” इस मान्यता को पोषित करने वाली महिला , जो ऑंखें मूँद कर अपने पति का समर्थन करती है .उसे यह नहीं पता की वह स्वयं अपने पैरों पर कुल्हाड़ी मार रही है . क्योंकि ऐसी महिलाएं अपरोक्ष रूप से पुरुष को चरित्रहीन बनाने एवं महिलाओं के शोषण का मार्ग प्रशस्त कर रही होती हैं .
बहु चर्चित सिने जगत से जुड़े शाईनी आहूजा कांड से सभी परिचित हैं .जिस पर अपनी पत्नी की अनुपस्थिति में अपनी नौकरानी के साथ बलात्कार करने का आरोप सिद्ध हो चुका है .और सात वर्ष की कारावास की सजा भी सुनाई जा चुकी है .उसकी ही पत्नी ने बिना ठोस जानकारी प्राप्त किये या तथ्यों का पता लगाय, अपने पति को सार्वजानिक रूप से अनेकों बार निर्दोष बताती रही बल्कि उसने इसे एक षड्यंत्र का परिणाम बताया .क्या उसे नौकरानी के रूप में एक महिला का दर्द नहीं समझ आया .बिना सच्चाई जाने महिला का विरोध एवं पति का समर्थन क्यों ?क्या यह अपने तुच्छ स्वार्थ के लिए पति के व्यभिचार पर पर्दा डालना उचित था ?क्या इस प्रकार से नारी समाज को शोषण से मुक्ति मिल सकेगी ?क्या पुरुष वर्ग अपनी सोच में बदलाव लाने को मजबूर हो पायेगा ?
उदाहरण संख्या दो ;
अनेक लोगों के दांपत्य जीवन में ऐसी स्तिथि बन जाती है की उनके संतान नहीं होती क्योंकि किसी कारण पति या पत्नी संतान सुख पाने में असमर्थ होते हैं. इसका कारण पति या पत्नी कोई भी हो सकता है. परन्तु हमारे समाज में दोषी सिर्फ महिला को ठहराया जाता है .परिवार की महिलाएं ही जैसे जिठानी ,सास या फिर ननद , उसे बाँझ कहकर अपमानित करती हैं .ये महिलाएं अपने घर की महिला सदस्य के साथ अन्याय एवं अमानवीय व्यव्हार करने में जरा भी नहीं हिचकिचाती .और तो और वे पोता या पोती की चाह में पुत्र वधु से पिंड छुड़ाने के अनेकों उपक्रम करती हैं .उस पर झूंठे आरोप लगाकर समस्त परिवार की नज़रों में गिराने का प्रयास करती हैं .यदि सास कुछ ज्यादा ही दुष्ट प्रकृति की हुई , तो उसकी हत्या करने की योजना बनाती है , या उसे आत्महत्या करने के लिए करने उकसाती है .ताकि वह अपने बेटे का दूसरा विवाह करा सके . यही है एक महिला की महिला के प्रति बर्बरता का व्यव्हार ..
अगर वह मानवीय आधार पर सोचकर समाधान निकलना चाहे तो अनाथ आश्रम से या किसी गरीब दंपत्ति से बच्चा गोद लेकर अपनी उदारता का परिचय दे सकती है .इस प्रकार से किसी गरीब का भी भला हो सकता है , और परिवार में बच्चे की किलकारियां भी गूंजने लगेंगी . साथ ही महिला सशक्तिकरण का मार्ग भी पुष्ट होगा, और मानवता की जीत .
उदाहरण संख्या तीन
परिवार में लड़का हो लड़की , माता या पिता के हाथ में नहीं होता .परन्तु यदि परिवार में पुत्री ने जन्म लिया है तो जन्म देने वाली मां को ही जिम्मेदार माना जाता है .अर्थात एक महिला ही दोषी मानी जाती है ..यदि किसी महिला के लगातार अनेक पुत्रियाँ हो जाती हैं तो उसका अपमान भी शुरू हो जाता है .एक प्रकार पुत्री के रूपमें महिला के आने पर एक मां के रूप में महिला को शिकार बनाया जाता है . मजेदार बात यह है ,उस मां के रूप में महिला का अपमान करने वालों में परिवार की महिलाएं यानि सास ,ननद ,जेठानी इत्यादि ही सबसे आगे होती हैं . यदि घर की वृद्ध महिला चाहे तो परिवार में आयी बेटी का स्वागत कर सकती है .एक महिला के आगमन पर जश्न मना सकती है .और पुरुष वर्ग को कड़ी चुनौती दे सकती है .जब एक महिला ही एक महिला के दुनिया में आगमन पर स्वागत नहीं कर सकती तो पुरुष वर्ग कैसे उसे सम्मान देगा?.
कन्या भ्रूण हत्या भी महिला समाज का खुला अपमान है ,जो बिना नारी (जन्म देने वाली मां )की सहमति के संभव नहीं है .भ्रूण हत्या में सर्वाधिक पीड़ित महिला ही होती है . अतः परिवार की सभी महिलाएं यदि भ्रूण हत्या के खिलाफ आवाज उठायें तो पुरुष वर्ग कुछ नहीं कर पायेगा . उसे पुत्री के रूप में संतान को स्वीकारना ही पड़ेगा . महिला के आगमन (बेटी ) का स्वागत सम्पूर्ण महिला वर्ग का सम्मान होगा .
उदाहरण संख्या चार ;
किसी परिवार में जब कोई उच्च शिक्षा प्राप्त बहु आती है तो परिवार की वृद्ध महिलाओं को अपने वर्चस्व के समाप्त होने का खतरा लगने लगता है , उन्हें अपने आत्मसम्मान को नुकसान पहुँचने की सम्भावना लगने लगती है . अतः परिवार की महिलाएं ही सर्वाधिक इर्ष्या , उस नवागत महिला से करने लगती हैं .और समय समय पर नीचा दिखाने के उपाए सोचने लगती हैं .उस नवआगंतुक महिला को अपना प्रतिद्वंदी मानकर उसके खिलाफ मोर्चा खोल देती हैं . उसकी प्रत्येक गतिविधि पर परम्पराओं की आड में अंकुश लगाकर अपना बर्चस्व कायम करने का प्रयास करती हैं .ऐसे माहौल में नारी समाज का उद्धार कैसे होगा ?कैसे महिला समाज को सम्मान एवं समानता का अधिकार प्राप्त हो सकेगा ?
यदि परिवार की सभी महिलाएं नवागत उच्च शिक्षा प्राप्त बहु का स्वागत करें ,उससे विचारों का आदान प्रदान करें ,समय समय पर उससे सुझाव लें , तो अवश्य ही अपना और अपने परिवार का और कालांतर में सम्पूर्ण नारी समाज के कल्याण का मार्ग प्रशस्त हो सकता है .शिक्षित महिला; महिला उत्थान अभियान मेंअधिक प्रभावीतरीके से योगदान दे सकती है .एवं समपूर्ण महिला समाज को शोषण मुक्त कर सकती है . अतः नवागंतुक शिक्षित महिला का स्वागत करना , नारी समाज के लिए हितकारी साबित हो सकता है .
उदहारण संख्या पांच ;
प्रत्येक वर्ष आठ मार्च को महिला दिवस मनाया जाता है ,परन्तु उसी दिन एक गुंडा सारे बाजार एक महिला के सीने में गोलियां दाग देता है ,उपस्थित भीड़ सम्पूर्ण नारी समाज एवं पुरुष समाज मौन खड़ा देखता रह जाता है .और हत्यारा बिना किसी विरोध के निकाल भाग जाता है .
घटना आठ मार्च 2011 की है . सम्पुर्ण विश्व महिला दिवस मना रहा था .और दिल्ली में राधा तंवर नाम की लड़की जो दिल्ली विश्व विद्यालय की छात्र थी, को एक गुंडा अपना लक्ष्य बनता है और सारे आम हत्या करके चला जाता है .उस छात्र का कुसूर यह था की वह अपने तथाकथित प्रेमी गुंडे से प्यार नहीं करती थी अर्थात उसका प्रेम प्रस्ताव उसे स्वीकार नहीं था .जब वह बार बार उसके द्वारा परेशान किये जाने की शिकार होती है तो उसने अपनी दिलेरी दिखाते हुए थप्पड़ जड़ दिया . बस उसी के प्रतिशोध में उसने उसकी हत्या कर दी . इससे स्पष्ट है आज भी किसी महिला को अपने जीवन साथी के रूप में लड़का पसंद या नापसंद करने का अधिकार नहीं है,किसी के प्रेम प्रस्ताव को ठुकराने का हक़ नहीं है .यही कारण था की उसकी दिलेरी (थप्पड़ मरना ) का जवाब मौत के रूप में मिला . पुलिस को सब कुछ मालूम होते हुए भी हत्यारे को पकड़ने में कै दिन लग गए . महिला समाज चुप चाप तमाशा देखता रहा.बल्कि अनेक महिलाओं ने छात्रा को ही चरित्रहीन होने का संदेह व्यक्त कर एक महिला का अपमान किया .
उदहारण संख्या छः ;
जब कोई दुष्कर्मी किसी महिला का बलात्कार करता है तो बलात्कारी को सजा मिले या न मिले वह दरिंदा पकड़ा जाये या न पकड़ा जाये ,परन्तु बलात्कार की शिकार ,महिला को अवमानना का शिकार होना तय है .उस पीडिता को सर्वाधिक अपमानित उसके अपने परिवार की एवं समाज की महिलाएं हि करती हैं . उसे चरित्रहीन का ख़िताब भी दे दिया जाता है . वह समाज के ताने सुन सुन कर आत्मग्लानी का अनुभव करती रहती है ,उसे अपना जीवन दूभर लगने लगता है .जबकि उसने कोई अपराध नहीं किया है.अपने परिवार की बदनामी के डर से पति सहित सम्पूर्ण महिला समाज ,बलात्कारी को दंड देने के लिए कानूनी प्रक्रिया का सहारा लेने से भी घबराते हैं .इसी कारण बलात्कार के आधे से अधिक केस अदालतों तक भी नहीं पहुँच पाते और बलाताकरी के हौसले बढ़ जाते हैं .इस प्रकार से पुरुषों को दुराचार करने को बढ़ावा मिलता है. क्यों महिला समाज , पीडिता के साथ सहानुभूति रखते हुए उसे कानूनी इंसाफ की लडाई के लिए तैयार करता ,उसे हिम्मत दिलाता ?
पीडिता यदि अविवाहित है तो उसे विवाह करने को कोई पुरुष आगे नहीं आता , क्योंकि उसे जूठन मनाता है .परन्तु किसी पुरुष को अपनी पड़ोसन , जो की शादी शुदा है अर्थात विवाहित महिला , से प्रेम की पींगे बढ़ाने में कोई हिचक नहीं होती, क्यों ?.क्या विवाहित प्रेमिका जूठन नहीं हुई? ऐसे दोहरे मापदंड क्यों ?
उदहारण संख्या सात ;
एक महिला दूसरी महिला के लिए कितनी संवेदनहीन होती है इसके अनेको उदाहरण विद्यमान हैं .अनेक युवतियां अपना विवाह न हो पाने की स्तिथि में अथवा अपनी मनपसंद का लड़का न मिलने पर किसी विवाहित युवक से प्रेम प्रसंग करती है और बात आगे बढ़ने पर उससे विवाह रचा लेती है .उसके क्रिया कलाप से सर्वाधिक नुकसान एक महिला का ही होता है .एक विवाहिता का परिवार बिखर जाता है उसके बच्चे अनाथ हो जाते हैं .जिसकी जिम्मेदार भी एक महिला ही होती है .फ़िल्मी हस्तियों के प्रसंग तो सबके सामने ही हैं .जहाँ अक्सर फ़िल्मी तारिकाएँ शादी शुदा व्यक्ति से ही विवाह करती देखी जा सकती हैं. ऐसी महिलाये सिर्फ अपना स्वार्थ देखती हैं जिसका लाभ पुरुष वर्ग उठता है .महिला समाज कोयदि समानता का अधिकार दिलाना है, तो अपने महत्वपूर्ण फैसले लेने से पहले सोचना चाहिए की उसके निर्णय से किसी अन्य महिला पर अत्याचार तो नहीं होगा ,उसका अहित तो नहीं हो रहा.
.उदहारण संख्या आठ ;
त्रियाचरित्र ,महिलाओं में व्याप्त ऐसा अवगुण है जो पूरे महिला समाज को संदेह के कठघरे में खड़ा करता है ,कुछ शातिर महिलाएं त्रियाचरित्र से पुरुषों को अपने माया जाल में फंसा लेती हैं और अपना स्वार्थ सिद्ध करती रहती हैं ,शायद अपनी इस आडम्बर बाजी की कला को अपनी योग्यता मानती हैं . परन्तु उनके इस प्रकार के व्यव्हार से पूरे महिला समाज का कितना अहित होता है उन्हें शायद आभास भी नहीं होता .उनके इस नाटकीय व्यव्हार से पूरे महिला समाज के प्रति अविश्वास की दीवार खड़ी हो जाती है . जिसका खामियाजा एक मानसिक रूप से पीड़ित महिला को भुगतना पड़ता है . परिश्रमी ,कर्मठ ,सत्चरित्र परन्तु मानसिक व्याधियों की शिकार महिलाएं अपने पतियों एवं उनके परिवार द्वारा शोषित होती रहती हैं .क्योंकि पूरा परिवार उसके क्रियाकलाप को मानसिक विकार का प्रभाव न मान कर उस की त्रियाचरित्र वाली आदतों को मानता रहता है .इसी भ्रम जाल में फंस कर कभी कभी बीमारी इतनी बढ़ जाती है की वह मौत का शिकार हो जाती है .
अतः प्रत्येक महिला को अपने व्यव्हार में पारदर्शिता लाने की आवश्यकता है. साथ ही पूरे नारी समाज को तर्क संगत एवं न्यायपूर्ण व्यव्हार के लिए प्रेरित करना चाहिए,तब ही नारी सशक्तिकरण अभियान को सफलता मिल सकेगी .
उदहारण संख्या नौ;
हमारे समाज में महिलाएं परम्पराओं के निभाने में विशेष रूचि रखती हैं .परम्पराओं के नाम पर न्याय ,अन्याय , शोषण ,मानवता सब कुछ भूल जाती हैं .परंपरा के नाम पर प्रत्येक महिला अपनी सास द्वारा किये गए ,दुर्व्यवहार ,असंगत व्यव्हार को ही अपनी पुत्र वधु पर थोप देती है .शायद उसके मन में दबी भड़ास को निकालने का यह उचित अवसर मानती है .और शोषण का सिलसिला जारी रहता है .इसी प्रकार ननद द्वारा किये जा रहे असंगत व्यव्हार को अपने मायेके में जाकर अपनी भावज पर लागू करती है और आत्म संतुष्टि का अहसास करती है.परन्तु . उसका जीना हराम करदेती है . यदि इन असंगत परम्पराओं को तोड़ कर नारी समाज बाहर नहीं आयेगा ,अपने व्यव्हार में मानवता को प्रमुखता नहीं देगा तो नारी उत्थान कैसे संभव हो पायेगा ?
उदहारण संख्या दस ;
परिवार में वृद्ध महिलाओं की रूचि नारी समाज को शोषण मुक्त करने में नहीं होती . वे चाहती हैं की परिवार में उनका बर्चस्व बना रहे .यही वजह है नवविवाहित दुल्हन को सास द्वारा सख्त निर्देश जारी किये जाते हैं , की महिलाओं की बातें सिर्फ महिलाओं तक ही सिमित रहनी चाहिए . किसी भी रूप में परिवार के पुरुषों तक घरेलु घटनाक्रम की जानकारी नहीं पहुंचनी चाहिए जब भी बात बतानी है उसे घर की सबसे बड़ीमहिला अर्थात सास ही बताएगी .क्योंकि वे भी जानती हैं की बहुत सी तर्कहीन बातों को पुरुष वर्ग सहन नहीं करेगा और उसकी प्रतिक्रिया से महिला के बर्चस्व पर आघात हो सकता है.नवागंतुक महिला के शोषण की योजना घर की बड़ी महिला द्वारा ही रची जाती है .यदि यह सही मान भी लिया जाय की घर की बड़ी महिला को अपना अधिपत्य ज़माने का पूर्ण अधिकार है , परन्तु तर्क हीन बातों से मुक्त होना भी आवश्यक है . ताकि कोई भी महिला शोषण का शिकार न हो पाए . महिलाओं में आपसी एक जुटता रहेगी , तो पुरुष वर्ग से अपने संघर्ष को जल्द मुकाम मिल सकेगा . महिला वर्ग को शोषण से मुक्ति एवं समानता का अधिकार ,सम्मान का अधिकार मिल पायेगा.
अंत में मेरा कहने का तात्पर्य यह है की, नारी स्वयं नारी वर्ग के लिए सोचना शुरू कर दे, तो महिलाओं को शीघ्र ही अपना आत्म सम्मान मिल सकेगा.



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शनिवार, 21 जनवरी 2012

भ्रष्टाचार क्यों बन गया शिष्टाचार ( नेताओं की सोची समझी साजिश का परिणाम)

(प्रथम भाग)
सैंकड़ों वर्षों के संघर्ष के पश्चात् हमारे देश को विदेशी दस्ता से मुक्ति मिली और स्वदेशी नेताओं ने सत्ता की बागडोर अपने हाथ में संभाली.आजादी के पश्चात् जब संविधान तैयार किया गया तो देश में गणतंत्र की घोषणा की गयी अर्थात जनता की सरकार, जनता द्वारा चुनी गयी सरकार, ,जनता के हितों के लिए कार्य करेगी.प्रत्येक पांच वर्ष पश्चात् जनता अपनी राय से नयी सरकार चुनेगी. अतः तत्कालीन सरकार को अपने भविष्य की चिंता सताने लगी. तत्कालीन सत्तारूढ़ पार्टी सदैव के लिए सत्ता में बने रहने के उपाय सोचने लगी,जिसमे चुनावों को जीतने के लिए भी धन की व्यवस्था करना आवश्यक था. साथ ही सत्ता में न रह पाने की स्तिथि में अपनी संतान और अगली पीढ़ी के लिए धन कुबेर भी एकत्र करना था. इन्ही सब कारणों के चलते सत्तारूढ़ पार्टी ने कानूनों की इस प्रकार संरचना की ताकि नेताओं की जेबें भरने के प्रयाप्त अवसर प्राप्त होते रहें. बहुसंख्यक अशिक्षित जनता को लुभावने नारे देते हुए जटिल एवं अव्यवहारिक कानून का निर्माण किया गया. उन्होंने ऐसी व्यवस्था का निर्माण किया जिसमें बेईमान नौकर शाह पारितोषिक और नेताओं का आशीर्वाद प्राप्त करते रहें, इमानदार कर्मी हतोत्साहित किये जाते रहें ताकि नेताओं को अपना कमीशन आसानी से प्राप्त होता रहे.कुछ समय पूर्व स्विस बैंक में जमा भारतीयों की जमा राशी विश्व में सर्वाधिक बताई गयी है. और साथ ही उजागर किया है की 1456 अरब डालर अर्थात करीब साठ हजार अरब रुपये स्विस बैंक में भारतीयों का काला धन जमा है. इन जमा कर्ताओं में बड़े बड़े उद्योगपति,बड़े बड़े नौकर शाह, फ़िल्मी एक्टर,क्रिकेटर,के साथ बड़े बड़े नेता शामिल हैं अब क्योंकि सभी राजनेता इस पवित्र कार्य में संलिप्त हैं, इसीलिए विदेशों में जमा धन की जानकारी मिलने के पश्चात् भी सत्तारूढ़ या विपक्षी पार्टी का कोई भी नेता धन वापस लाने में रूचि नहीं दिखा रहा.हमाम में सब नंगे हैं तो कैसे उजागर हों सबके नाम और कैसे वापस आए काला धन वापस.
एक मोटे अनुमान के अनुसार विदेशों में कुल जमा धन देश पर कुल कर्ज का तेरह गुना है ,अर्थात यदि उस राशी को वापस लाया जा सके तो अपना देश कर्ज मुक्त तो हो ही जायेगा ,बाकी धनराशी का ब्याज ही हमारी पूरी अर्थव्यवस्था को चला पाने में सक्षम होगा और सरकार को कोई टेक्स लगाने की आवश्यकता नहीं रह जाएगी. इस बकाया राशी को दूसरे शब्दों में भी आंका जा सकता है,यथा यह राशी देश की आधी आबादी को लखपति बनाने में सक्षम है.
यहाँ पर अब मैं आपको बताने का प्रयास करूंगा इस भ्रष्टाचार एवं काले धन को पैदा करने के लिए हमारे नेताओं ने किस प्रकार षणयंत्र रच कर देश को लूटा. उन्होंने अपने हितों की रक्षा के लिए भ्रष्टाचार को किस प्रकार पुष्पित पल्लवित किया .किसी ने ठीक ही कहा है ----:अगर जनता सही रस्ते पर जाये तो उसे गलत रस्ते पर ले जाना नेता का काम है
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स्वतंत्र देश के नेताओं द्वारा रचा गया षणयंत्र का खुलासा


आए कर की उच्चतम दरें;---हमारे नेताओं ने अपने स्वार्थ के लिए किस प्रकार भ्रष्टाचार को आमंत्रित किया और प्रत्येक व्यक्ति को उस भ्रष्टाचार में भागीदार बनाया,उसका सबसे बड़ा उदाहरण है, पचास से सत्तर के दशक तक आए कर की उच्चतम दरें, अर्थात उच्चतम स्लेब , नब्बे प्रतिशत तक रखा गया था. इतनी ऊँची दर रखने के पीछे लोकतान्त्रिक सरकार द्वारा चंद लोगों के हाथ में धन संग्रह को रोकने का उद्देश्य बताया गया.और कहा गया सरकार चाहती है,जनता को संसाधनों का बटवारा समान रूप से एवं न्यायपूर्वक हो. आम व्यक्तियों के लिए देखने में मन लुभावन उद्देश्य प्रतीत होता है,परन्तु वास्तविकता कुछ और ही थी. कोई भी उद्योगपति,व्यापारी,कारोबारी तमाम प्रकार के जोखिम लेकर एवं दिनरात एक कर कमाने का प्रयास करता है,और जब वह किसी प्रकार कमा लेता है तो नब्बे प्रतिशत आयेकर के रूप में सरकार की झोली में डाल दे ,तो कमाने के प्रति उसकी इच्छा कितनी बाकी रह जाएगी.क्या यह टैक्स वह सहन कर पायेगा. जाहिर है वह ऐसे उपाय ढूँढेगा जिससे कम से कम आयेकर देकर अपनी मेहनत की कमाई को बचा सके. यही हमारे नेताओं का उद्देश्य था आयेकर पूरा न देने की स्थिति में सरकारी प्रतारणा से बचने के लिए आयेकर अधिकारियों और नेताओं की पूजा करना आवश्यक हो जायेगा.इस प्रकार प्रत्येक कारोबारी को करापवंचन करने को मजबूर किया गया ,फ़िलहाल वही आयेकर की अधिकतम दर तीस प्रतिशत कर दी गयी है.क्यों? क्योंकि अब उनकी योजना की आधार शिला रखी जा चुकी थी..

अन्य अनेक प्रकार के भारी टैक्स ;---आयेकर की भांति ,कस्टम ड्यूटी, एक्साईस ड्यूटी ,बिक्री कर, सभी टैक्स की दरें बहुत ही ऊँची रखी गयीं जो सर्वथा अव्यवहारिक थीं,असंगत थीं. व्यापारी के पास कर अपवंचना के उपाय सोचने के अतिरिक्त कोई चारा नहीं था.कस्टम ड्यूटी दो सौ प्रतिशत और कभी कभी इससे भी अधिक रखी गयी थीं. जिसके कारण तस्करी को बढ़ावा मिला और बड़े बड़े तस्कर खड़े हो गए जो नेताओं के आशीर्वाद से फलते फूलते रहे. इसी प्रकार एक्साईस ड्यूटी व्यापारी के कुल लाभ से भी अधिक वसूली जाती थी और उद्योगपति को कर बचाने के लिए नए नए उपाय बताये जाते थे.जो नेताओं और नौकरशाहों की जेबें भरने में सहायक होते थे. बिक्री कर विशेष तौर पर छोटे दुकानदार को परेशान करने का हथियार रहा है.छोटा दुकानदार अक्सर बिना ब्रांड का स्थानीय निर्मित समान बेचता है जिस पर टैक्स देने की जिम्मेवारी दुकानदार पर होती है और प्रतिद्वंदिता के कारण ग्राहक से टैक्स वसूल पाना संभव नहीं होता. अतः उसे काले धंधे को मजबूर होना पड़ता है और बिक्री कर विभाग के अधिकारियों की जेबे भर कर अपनी जान बचानी पड़ती है.बिक्री कर की दरें भी बारह प्रतिशत या इससे भी अधिक हुआ करती थीं .जो फिलहाल घट कर पांच प्रतिशत तक सिमित रह गयी हैं.परन्तु सरकारी विभागों को इतना खून मुंह लग चुका है, यदि कोई व्यापारी आज सब काम कानूनी तरीके से करे तो भी उसके खाते पास नहीं हो सकते .अधिकारी अपनी कलम की ताकत का प्रयोग कर व्यापारी को परेशान करते हैं. व्यवस्था को इस प्रकार से बिगाड़ा गया, की व्यापारी, उद्योगपति,कारोबारी अपने कार्यों को गैर कानूनी तरीके से करें और नेताओं की जेबें भरते रहें .( अगले ब्लॉग में पढ़ें--किस प्रकार से इन्स्पेक्टर राज चलाया गया,कानूनों को जटिल बना कर आम आदमी के लिए मुसीबतें खड़ी की गयीं एवं सरकारी कर्मियों के वेतन अप्रयाप्त रख कर उन्हें भ्रष्टाचार की गलियों में जाने को प्रेरित किया गया ) सत्य शील अग्रवाल


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सोमवार, 16 जनवरी 2012

रिटेल व्यापारियों का भविष्य ?

सदियों से वस्तु वितरण का कार्य छोटे एवं मझोले व्यापारियों द्वारा किया जाता रहा है .पूरी वितरण प्रणाली व्यापारी अपनी रोजी रोटी का साधन बना कर सम्हालते रहे हैं .पीढ़ियों से उनके वारिस इसी कार्य को अपनी जीविका का साधन बनाते रहे हैं .परन्तु आज स्तिथि बदल चुकी है ,छोटे व्यापारियों एवं उनके व्यापार पर निरंतर आघात हो रहे हैं ,उनके व्यापार को, निरंतर बढ़ रही बेरोजगारी के कारण बढती प्रतिद्वंद्विता ,नित्य उभरते जा रहे मल्टी नेशनल कम्पनियों के बर्चस्व ने बहुत नुकसान पहुँचाया है .दूसरी तरफ बढ़ते भौतिकवाद ने आम इन्सान की आवश्यकतायें बहुत बढा दी हैं ,अतः वर्तमान समय में छोटे व्यापार से परिवार की सभी आवश्यकताएं पूरी करना असंभव होता जा रहा है . यही कारण है नयी पीढ़ी परम्परागत (पैत्रिक ) व्यापार में रूचि नहीं ले रही .यदि कोई युवा मेधावी है तो अच्छी शैक्षिक डिग्री लेकर अच्छी हैसियत की नौकरियां ढूंढ लेता है .

आजकल सरकार भी विदेशी एवं बड़ी कम्पनियों को अनेको सुविधाएँ दे कर आमंत्रित कर रही है जिसके कारण मॉल संस्कृति विकसित होती जा रही है .धीरे धीरे यही मल्टी नेशनल एवं बड़ी कम्पनियां देर सवेर सारे रिटेल कारोबार को हजम कर जाएँगी .और छोटे एवं मझोले व्यापारी बेरोजगार हो जायेंगे .

तेजी से बदल रहे हालातों को भांपते हुए अनेक दूरदर्शी व्यापारियों ने पहले से ही अपनी संतान को अपने व्यापार में न लगा कर किसी अन्य कार्य से सम्बद्ध करने का इरादा बना लिया .और उनकी संतान ने अपनी रोजी के अन्य साधन ढूंढ लिए .अन्य व्यापारियों की नयी पीढ़ी भी अपनी कार्य क्षमता के अनुसार अन्य रोजगार तलाश लेंगे .परन्तु जिन व्यापारियों ने अपना पूरा जीवन अपने छोटे से व्यापार पर निर्भर कर दिया था और वर्तमान में जीवन के अंतिम पड़ाव पर आ चुके हैं ,क्या उनके लिए संभव होगा की वे अपने लिए अन्य कार्य की तलाश करें? .जिन्होंने जीवन भर अपने व्यापार के माध्यम से सरकार के राजकोष की पूर्ती की,क्योंकि बड़े उद्योगों एवं बड़े व्यापार के अभाव में राजस्व एकत्र करने का साधन छोटे छोटे व्यापारी और किसान ही थे ,आज वे व्यापारी ही बेरोजगार होने की दहलीज पर खड़े हैं .उनके पास कोई सरकारी पेंशन की व्यवस्था नहीं है ,(जो हमारे देश में सिर्फ सरकारी सेवा से निवृत कर्मियों को ही उपलब्द्ध है ).उनके भविष्य में भरण पोषण के लिए कोई सरकारी योजना भी नहीं है .यह आवश्यक नहीं होता , सब की संतान आर्थिक रूप से इतनी सक्षम हो की वे अपने बूढ़े माता पिता का भरण पोषण कर पायें ,या सक्षम होते हुए भी सभी पुत्र या पुत्री इतने वफादार हों की अपने माता पिता का भी ख्याल रखते हों और उनके भरण पोषण की जिम्मेदारी स्वयं उठाना चाहते हों .

क्या छोटे व्यापारी ने अपने व्यापार द्वारा जनता की सेवा कर कुछ गलत किया ?क्या छोटे व्यापारियों ने देश के विकास में में योगदान नहीं किया ?क्या उन्होंने अपने व्यापार से सरकारी राजकोष को भरने में अपनी भूमिका नहीं निभाई ? देश के नागरिक होने के नाते क्या उन्हें अपने निष्क्रिय कल में भरण पोषण का अधिकार नहीं है ?क्या हमारी सरकार की जिम्मेदारी सिर्फ सरकारी कर्मियों के बारे में सोचने तक ही है ?क्या सरकार का कर्त्तव्य नहीं है की बड़ी कम्पनियों या विदेशी निवेश को आमंत्रित करने से पहले बेरोजगार होने वाले व्यापारियों के कल्याण के बारे में भी कुछ सोचे ?

सबसे दुर्भाग्य की बात यह है ,देश में मौजूद अनगिनत व्यापारिक संगठन भी बड़े व्यापरियों के हित की बात तो सोचते हैं , अपने छोटे व्यापारी भाईयों के भविष्य के लिए आवाज बुलंद नहीं करते .व्यापरियों का प्रतिनिधित्व करने वाले संगठनों द्वारा अपने छोटे और मझोले सदस्यों के कल्याण के लिए कोई अजेंडा क्यों नहीं बनाते , कोई आन्दोलन क्यों नहीं चलाते?व्यापारी संगठन कम से कम अपने छोटे भाइयों के लिए मांग कर सकते हैं, की आने वाली विदेशी रिटेल कम्पनियों से टैक्स बसूल कर से बेरोजगार होने वाले कारोबारियों के कल्याण के लिए फंड एकत्र करे और व्यापारियों के हित में योजनायें बना कर उन पर खर्च करे .



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सत्य शील अग्रवाल
SATYA SHEEL AGRAWAL