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शनिवार, 18 फ़रवरी 2012

चुनाव में धनबल और बाहुबल का प्रयोग

लोकतंत्र और राजतन्त्र में मुख्य अंतर होता है ,राजतन्त्र में राजा को पदच्युत करने के लिए जनता को हिंसा का सहारा लेना पड़ता है ,जिसमें राजकीय सेना और आम जनता में जंग होती है यदि सेना जनता को दबाने में विफल रहती है तो राजा को सत्ता छोड़ने के लिए विवश होना पड़ता है उसे गिरफ्तार कर लिया जाता है या मार डाला जाता है , जनता का नया नेता सत्ता को संभाल लेता. गिरफ्तार किये गए राजा का भविष्य भी सुरक्षित नहीं होता , उस पर अनेकों इल्जाम लगाकर उसे मार डाला जाता है .परन्तु लोकतंत्र में जनता अपने शासक को वोट द्वारा बदल सकती है अर्थात बिना खून खराबे के ,बिना किसी प्रकार की हिंसा के सरकर बदल जाती है .पुराना शासक अथवा पदाधिकारी पूर्ण सम्मान के साथ शेष जीवन व्यतीत करता है यही लोकतंत्र की विशेषता है .
यह तो सत्य है स्वतन्त्र भारत में चुनावो के माध्यम से सत्ता परिवर्तन होते आए हैं .परन्तु यह देश का दुर्भाग्य है की सत्ता की बागडोर सँभालने वाले नेता समाज की सेवा या जनतंत्र की भलाई करने के मकसद से नही आए ,बल्कि उन्होंने राजनिति को कमाई का माध्यम बनाया . उसे
व्यापार या व्यवसाय के तौर पर ही अपनाया . देश में राजनीति देश सेवा करना नहीं , बल्कि धन कमाने का साधन बना रहा . और हो भी क्यों न ? राजनिति से अच्छा व्यवसाय कोई है भी नहीं जहाँ करोड़ या दो करोड़ खर्च कर सैंकड़ो करोड़ कमाए जा सकते हैं .अतः उन्होंने देश के विकास के स्थान पर अपने विकास पर दृष्टि बनाय रखी. परिणाम स्वरूप कमाई के वैध और अवैध दोनों तरीके अपनाये ,भ्रष्टाचार को फलने फूलने का पूर्ण अवसर प्रदान किया .नेताओं की इसी आकांक्षा ने उनको चुनावो में येन केन प्रकारेण सत्ता तक पहुँचने की कशमकश में बदल दिया .चुनाव आयोग के अनेको प्रकार से अंकुश लगाये जाने के पश्चात् भी ,चुनाव जीतने के लिए उन्होंने जनता को अनेक प्रलोभन दिए ,कभी सिलाई मशीन ,कभी साईकिल ,तो कंही लैपटॉप देने का लालच दिया गया ,नोटों का वितरण कर और शराब पीने की खुली छूट देकर ,जनता को दावत देकर,झूंठे वयेदे कर वोटर को अपने पक्ष में वोट डालने को प्रेरित किया.देश में आज भी ऐसे गरीबों की व्यापक संख्या है जिन्हें दो समय की रोटी जुटाना भी टेढ़ी खीर होता है अतः मतदान का मूल्य समझना उनके लिए कोई अर्थ नहीं रखता .यदि वोट देने से उन्हें कुछ समय की रोटी की व्यवस्था हो जाती है ,शराब पीने का मौका मिल जाता है,हलवा पूरी खाने को मिल जाते हैं ,तो उनके लिए सौभाग्य का अवसर होता है.इस प्रकार से नेता वोट खरीद लेते है. .जो मतदान का प्रासंगिकता ही ख़त्म कर देते हैं .
सत्तारूढ़ पार्टी चुनाव आयोग के अनेकों अंकुश लगाये जाने के बावजूद सरकारी मशीनरी का दुरूपयोग करती है ,यहाँ तक की क्षेत्रों के परिसीमन के समय भी सत्तारूढ़ पार्टी अपने हितों को ध्यान में रखते हुए जातीय समीकरणों के आधार पर सुनिश्चित करती रहती हैं .आवश्यकता पड़ने पर स्थानीय बाहुबलियों का सहारा लिया जाता रहा है ,जो जनता को धमका कर पार्टी विशेष के पक्ष में वोट डालने को विवश करते हैं ,देहाती क्षेत्रों में तो खुले आम बाहुबल का प्रयोग जाता है .
वोटर को बूथ तक जाते समय उसका पीछा किया जाता है
.उसका वोट स्वयं डालने तक की हिमाकत की जाती है .यही कारण है दबंगों,अपराधियों की चुनावों के अवसर पर चांदी हो जाती है .धीरे धीरे ये अपराधी पार्टियों तक अपनी पकड़ बना लेते हैं और स्वयं चुनावों में खड़े होकर,चुनाव लड़ने और जीतने लगते हैं .और अपराधी प्रवृति के लोग जन प्रतिनिधि बन जाते हैं ,जनता के माननीय हो जाते हैं .जो प्रशासन इन अपराधियों के लिए सिरदर्द होता था ,वही प्रशासन अब उनकी सेवा में प्रस्तुत रहता है .प्रशासन के वे अधिकारी ही उनकी रक्षा को तत्पर रहते हैं.उनकी मिजाज पुरसी करते हैं .उन्हें खुश रखने का प्रयास करते हैं . ताकि उनकी नौकरी में कोई व्यवधान न आए.आज आधे से अधिक जनप्रतिनिधि अपराधी प्रवृति के ही लोग नेता बने हुए हैं .आज दबंग होना , अपराधी होना चुनाव जीतने की विशेष योग्यता बन चुकी है .
इस प्रकार से धनबल एवं बहुबल का प्रयोग हमारे देश के लोकतंत्र के अस्तित्व पर ग्रहण लगा रहा है .

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