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शुक्रवार, 16 सितंबर 2011

भ्रष्टाचार के तीन स्रोत

भ्रष्टाचार पर अंकुश लगाने की बात करने से पूर्व भ्रष्टाचार की उत्पत्ति के कारण अथवा भ्रष्टाचार के स्रोतों का अध्ययन करना भी आवश्यक है. ताकि उन स्रोतों पर कुठाराघात किया जा सके और देश को भ्रष्टाचार मुक्त किया जा सके. सरकारी कामकाज में पारदर्शिता लाकर ही इस बुराई से लड़ना संभव होगा.भ्रष्टाचार के निम्नलिखित तीन मुख्य स्रोत हैं .
प्रथम;सरकारी कर्मी,सरकारी अधिकारी अपने अधिकारों का दुरूपयोग करते हुए, उसे मिली निर्णय शक्तियों का प्रदर्शन करते हुए, आपके सही काम को भी गलत सिद्ध करने की धमकी देता है, और उसके बदले में रिश्वत की मांग करता है,या फिर आपके काम को अनावश्यक रूप से देर करने बात करता है ,जल्दी काम करवाने के लिए सेवा पानी की जरूरत बताता है.इस प्रकार के भ्रष्टाचार में सरकारी खाजने को कोई हानि तो नहीं पहुँचती परन्तु आपकी जेब पर डाका पड़ता है और सही काम के लिए घूस देना आपके लिए कुछ ज्यादा ही कष्ट दायक होता है.क्योंकि आपको कानून सम्मत काम के लिए भी जेब ढीली करने की मजबूरी जो है.
द्वितीय ;इस स्रोत द्वारा आपकी जेब पर तो डाका डाला ही जाता है,परन्तु सरकारी राजकोष को भी क्षति पहुंचाईजाती है,अर्थात या राजस्व को आने से रोका जाता है या फिर राजस्व को आवश्यकता से अधिक खर्च कर राजकोष को नुकसान पहुँचाया जाता है.लाभान्वित होते हैं आप या सरकारी कर्मी.इस प्रकार के भ्रष्टाचार में सरकारी अधिकारी,सत्ताधारी नेता राजकोष को चूना लगाकर अपने खजाने भरते हैं.जनता की गाढ़ी कमाई से प्राप्त टेक्स को चंद लोग चाट कर जाते हैं.और जनता को विकास के नाम पर मिलता है सिर्फ आश्वासन .भ्रष्टाचार के इस स्रोत को विशालतम स्रोत कहा जा सकता है जिसके द्वारा हजारों करोड़ का फटका लगता है .जैसे किसी टैक्स की बसूली करते समय ताक्स्दाता को लाभ पहुँचाना,किसी अपराध में दंड की राशी को घटा दें या फिर ख़त्म कर देना,किसी प्रकार की खरीदारी ,किसी कार्य करने की निविदा जारी करते समय सेवा प्रदाता या बिक्रेता को लाभ पहुंचा कर अपना लाभ प्राप्त करना इत्यादि मुख्य स्रोत है.
तृतीय ;इस स्रोत से जनित भ्रष्टाचार का कारण सरकारी कर्मचारी नहीं बल्कि जनता स्वयं जिम्मेवार होती है.जब कोई व्यक्ति सरकारी कार्यालय में जाकर अपनी आवश्यकतानुसार कार्य कराने ,या अपने पक्ष में गैर कानूनी कार्यों को कराने के लिए सरकारी कर्मी को लालच देता है,उससे सौदेबाजी करता है,कभी कभी अपनी ताकत की धमकी देता है यहाँ तक की जान से मारने की चेतावनी भी दे देता है. ऐसी परिस्थिति में अक्सर सरकारी कर्मी अपने लालच में नहीं अपनी सुरक्षा से चिंतित होते हुए भ्रष्टाचार को गले लगाता है.
सभी प्रकार के भ्रष्टाचार इन्ही स्रोतों से उत्पन्न होते है. अतः यदि भ्रष्टाचार को नियंत्रित करना है तो उपरोक्त माध्यमो को समझना होगा और उसी के अनुरूप पारदर्शिता को बढ़ाना होगा .

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*SATYA SHEEL AGRAWAL*
(blogger)*

सोमवार, 12 सितंबर 2011

त्रिस्तरीय भ्रष्टाचार

आज श्री अन्ना हजारे और उनके सहयोगी दल अर्थात अन्ना टीम ने देश व्यापी आन्दोलन द्वारा भ्रष्टाचार के विरुद्ध,मुहीम चलायी है. देश का जन जन आकंठ डूबे भ्रष्टाचार से ग्रस्त है,आंदोलित है.भ्रष्टाचार पर बहस ,भ्रष्टाचार पर घर घर चर्चा,देश की समस्याओं का मुख्य मुद्दा बन गया है.
देश में व्याप्त भ्रष्टाचार को मुख्यतः तीन श्रेणियों में विभाजित किया जा सकता है. सर्व प्रथम सर्वोच्च स्तरीय भ्रष्टाचार जो विधायकों,सांसदों,मंत्रियों के स्तर पर किया जाता है. जहाँ सत्ता पर आसीन मंत्री किसी उद्योगपति,व्यापारी,कारोबारी से अथवा उनके समूह से अपनी पार्टी के लिए चंदा लेने के नाम पर मोटी रकम एंठ्ता है. ताकि स्वयं को तथा पार्टी के उम्मीदवारों को चुनावों में विजय दिलाने में मदद मिल सके. और वसूली गयी मोटी रकम के बदले में चंदा प्रदाता को अपने उत्पाद के मूल्य बढ़ने का अवसर दिया जाता है.जो अंततः जनता की जेब पर भारी पड़ता है. इसी स्तर पर अपनी ताकत का लाभ उठाते हुए घूस लेकर लाइसेंस जारी करना,विभिन्न सरकारी योजनाओं के कार्यों के कार्यान्वयन के लिए ठेकेदारों,सेवा प्रदाता एजेंसियों को लाभ पहुँचाना शामिल है. क्योंकि स्वयं मंत्री एवं नेता विभिन्न प्रकार से कमीशन लेते रहते है.,सरकरी नौकरशाहों पर नियंत्रण नहीं कर पाते. और जब बड़े बड़े अफसरों से स्थानान्तरण के नाम पर मोटी रकम वसूली जाती है,विभिन्न पदों की कमाई के अनुसर कीमत तय की जाती है तो बड़े बड़े अफसर बेलगाम एवं बेधड़क हो जाते हैं. अब तो सत्ता पक्ष के लोग अपहरण कर्ताओं,डकैतों भूमाफियाओं,खनन माफियाओं,नकली मॉल के निर्माताओं से मिल कर भी अपनी तिजोरियां भरने लगे हैं.
भ्रष्टाचार की द्वितीय श्रेणी में बड़े बड़े नौकर शाह ,जिनका सीधा सम्बन्ध मंत्रालयों से होता है, आते हैं.जो अपने मातहत अफसरों से ट्रांसफर ,प्रोमोशन जैसे अनेक कार्यों के लिए अपने अधिकारों की कीमत वसूल करते हैं.साथ ही उसका कुछ अंश अपने मंत्रियों को पहुंचा कर अपना भविष्य सुरक्षित कर लेते हैं.विभिन्न सरकारी योजनाओ के कार्यान्वयन के लिए आंवटित धनराशी का बड़ा हिस्सा स्वयं हड़पने के उपाय सोचता रहते हैं,ताकि सत्तापक्ष से लेकर नीचे का स्टाफ नोटों की बरसात का लाभ उठता रहे.
तृतीय श्रेणी के भ्रष्टाचार में जनता का सीधे सीधे दोहन किया जाता है. जनता की जेब से भ्रष्टाचार के रूप में वसूली गयी रकम पंक्तिबद्ध तरीके से ऊपर तक पहुँचती है. जनता इस श्रेणी के भ्रष्टाचार से सर्वाधिक त्रस्त होती है,जब उसे सरकरी विभाग में किसी भी कार्य को कराने के लिए घूस देनी पड़ती है. अर्थात ऑफिस में किसी फाइल को ढूंढ निकालने की कीमत,फाइल को अग्रसारित करने की कीमत ,बिल जमा करने के लिए अतिरिक्त राशी,लाइसेंस बनवाने,नवीकरण कराने,समयानुसार कराने के लिए घूस, अपना धन राजकोष से वापस लेने के लिए कमीशन,किसी प्रकार का सरकारी प्रमाण पत्र जारी कराने की कीमत, कोई सरकारी आदेश अपने पक्ष में कराने की कीमत, इत्यादि इत्यादि अर्थात प्रत्येक स्तर पर जनता को अपना काम कराने के लिए पैसे देने पड़ते हैं.सम्वेदन हीनता की हद तो जब हो जाती है जब किसी गंभीर रोगी को अस्पताल में भर्ती कराने की कीमत देनी पड़ती है,या फिर दुर्घटना में मारे गए अपने प्रिय जन का पोस्ट मार्टम शीघ्र कराने के लिए कीमत चुकानी पड़ती है.जनता को चाहते हुए भी रिश्वत देने की मजबूरी बन जाती है.
यदि हजारे साहेब उपरोक्त पंक्ति में व्याप्त भ्रष्टाचार पर ही अंकुश लगा पाने में सफल हो पाए तो देश के हालत काफी सुधर सकते हैं,तत्पश्चात नीचे के अफसरों की रिश्वत लेते हुए रूह कंपेगी.

शुक्रवार, 9 सितंबर 2011

हमारी शिक्षा पद्धति की खामियां


पिछली अर्धशताब्दी के अन्तराल में शिक्षा के प्रचार प्रसार में आशातीत उन्नति हुई है. इलेक्ट्रोनिक मीडिया अर्थात टी.वी. एवं इंटरनेट के विकास ने शिक्षा जगत को पंख लगा दिए हैं.परन्तु हमारी शिक्षा पद्धति, शिक्षा के मुख्य उद्देश्य से कहीं भटक गयी है.शिक्षा का अर्थ सिर्फ रोजगार पा लेने की क्षमता विकसित करा देना अथवा किसी विषय में पारंगत हो जाना ही नहीं है,शिक्षा का का उद्देश्य मात्र देश दुनिया की जानकारी प्राप्त कर लेना भर नहीं है या भाषा का विद्वान् हो जाना नहीं है.शिक्षा का मकसद सभ्य समाज का निर्माण करना बच्चों का चरित्र निर्माण करना भी है, और उन्हें स्वास्थ्य जीवन व्यतीत करने के लिए राह दिखाना भी होता है.जो हमारे पाठ्यक्रमों में लुप्त प्राय रहता है. हमारी शिक्षा पद्धति में कुछ कमियां निम्न प्रकार है;
, हमारी शिक्षा संस्थाओं के पाठ्यक्रमों में विज्ञानं,गडित, एवं भाषा जैसे अनेक विषय शामिल रहते हैं. परन्तु बच्चों को जीवन भर स्वास्थ्य रहने की जानकारी देने का अभाव रहता है,उन्हें नैतिक ज्ञान जैसे महत्वपूर्ण विषय से अन्भिग्य रक्खा जाता है.जो उनके चरित्र निर्माण में सहायक हो सके
,बच्चे को उसकी रूचि के अनुसार भविष्य निर्माण के अवसर नहीं दिए जाते , अक्सर अभिभावकों द्वारा थोपे गए उद्देश्यों के लिए उसे जूझना पड़ता है,विद्यार्थी की सफलता के लिए उसकी रूचि ,उसकी क्षमताओं का आंकलन कर शिक्षा के विषय चुनना अवशयक है जो सिर्फ मनोवैज्ञानिक की सलाह द्वारा ही संभव है.
,आधुनिक चकाचोंध के युग में टी.वी. जैसे इलेक्ट्रोनिक माधयमों से प्रेरित हो कर आज का किशोर अपने सपनों की दुनिया में विचारने लगता है,वह उच्च जीवन शैली से प्रभावित होकर जीने लगता है.परन्तु स्वप्न पूरे होने पर अवसाद ग्रस्त या कुंठित होने लगता है. अतः उसे जीवन की हकीकत,उसकी अपनी क्षमता,उसकी अपनी परिस्थति से अवगत कराना आवश्यक है,ताकि वह अपने सपने अपनी योग्यतानुसार बुने और उन्हें पूर्ण करने के लिए आवश्यक प्रयास करे. ताकि वह अपने जीवन में सफलता पा सके की निराशा. उचित मार्गदर्शन उसके भविष्य को संवार सकता है.
,आज का शिक्षक वर्ग अपने समाज सेवा के मूल कर्तव्य से भटक गया है ,उसे ट्यूशन द्वारा धन अर्जन करना ही अपने जीवन का उद्देश्य दिखाई देता है.
,अनेकों अवांछनीय तत्व एवं नक़ल माफिया सक्रीय हो गए हैं जो विद्यार्थियों को नक़ल करने से लेकर नकली डिग्रियां उपलब्ध कराने के समाज विरोधी कार्य में संलंग्न है और हमारी शिक्षा प्रणाली का मजाक उड़ा रहे हैं. .सख्त एवं पारदर्शी परीक्षा व्यवस्था द्वारा ही उन्हें हतोत्साहित किया जा सकता है.और विद्यार्थी की योग्यता का लाभ देश को मिल सकता है
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