गुरुवार, 28 जुलाई 2011
समलैंगिक संबंधों को दंडनीय अपराध घोषित करना उचित नहीं.
जहाँ तक कानूनी दंड के प्रावधान का प्रश्न है,किसी भी अपराधिक गतिविधि के लिए कानूनी हस्तक्षेप आवश्यक होता है, परन्तु सामाजिक संबंधों को लेकर बनाय गए कानून बिना सामाजिक सहयोग के प्रभावहीन हो जाते हैं दहेज़ प्रथा के विरुद्ध बनाय गए कानून,किस प्रकार अपना कोई प्रभाव नहीं दिखा पाए ,सर्व विदित है. कारण है सामाजिक जागरूकता का अभाव. परन्तु तुच्छ स्वार्थ वाले व्यक्ति अपना बदला लेने की नियत से दहेज़ कानूनों का दुरूपयोग अवश्य करने लगे.जिस दिन सामाजिक चेतना आ जाएगी दहेज़ प्रथा स्वतः ही समाप्त हो जाएगी.जिस दिन समाज दहेज़ को नकारने लगेगा किसी कानून के बिना भी दहेज़ का उन्मूलन संभव हो जायेगा.
समलैंगिक सम्बन्धों को लेकर सामाजिक मान्यता न होने के बावजूद सामाजिक नियंत्रण द्वारा रोक पाना संभव भी नहीं है. क्या समाज प्रत्येक पुरुष को पुरुष से संपर्क बनाने से रोक पायेगा,स्त्री को स्त्री से मिलने से पर पाबन्दी लगा सकेगा क्या ऐसी कोई बंदिश तर्क संगत है.या किसी भी सम्बन्ध को संशय के दायरे में रखना उचित होगा.
विषम लिंगी संबंधों को लेकर अनेक सामाजिक नियंत्रण होने के बावजूद बलात्कार या अवैध सम्बन्ध जैसे अपराध नित्य प्रकाश में आते रहते हैं, समलिंगी व्यक्तियों को किस प्रकार से संपर्क बनाने से रोक सकेंगे,और जब संपर्क को नियंत्रित नहीं कर सकते तो समलिंगी संबंधों को कैसे नियंत्रित किया जा सकेगा.और जिस पर सामजिक नियंत्रण(गतिविधियों पर)ही संभव नहीं है ,कानूनी शिकंजा कितना कारगर हो सकेगा .कुछ लोग किसी पर भी बेबुनियाद आरोप लगाकर आपने तुच्छ स्वार्थ सिद्ध करने में कामयाब होते रहेंगें .उनको कानून का दुरूपयोग करने का अवसर अवश्य मिलता रहेगा .
सभी पहलुओं पर विचार करने के बाद समलैंगिक विवाह या समलैंगिक संबंधों को दंडनीय अपराध बना देना उचित प्रतीत नहीं होता. आपसी सहमती से कोई भी समलैगिक सम्बन्ध बनाय तो बनाय परन्तु जबरन संबंधों को बनाना पहले से ही दंडनीय अपराध है..अर्थात इस सन्दर्भ में अनेक कानून पहले से ही मौजूद हैं.इस असामाजिक कार्य को रोकने के लिए देश के शिक्षाविदों , बुद्धिजीवियों को युवा पीढ़ी को उचित मार्ग दर्शन कराने के प्रयास करने चाहिए.
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मंगलवार, 19 जुलाई 2011
विचार मंथन (भाग चार )
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शनिवार, 9 जुलाई 2011
विचार मंथन (भाग ३)
किसी भी व्यक्ति को जन्म से पूर्व धर्म चुनने की स्वतंत्रता नहीं होती. उससे नहीं पूछा जाता की वह कौन से देश और कौन से धर्म के समाज मैं जन्म लेना चाहता है. परन्तु प्रत्येक धर्म अपने जातकों को उसके नियम और आस्थाओं को मानने के लिए बाध्य करता है. पर क्यों?उसे तर्क संगत तरीके से अपने धर्म की विशेषताओं से प्रभावित क्यों नहीं किया जाता?उसे अपनी इच्छा अनुसार धर्म चुनने क्यों नहीं दिया जाता ? प्रत्येक धर्म का अनुयायी अपने धर्म को श्रेष्ठ एवं अन्य धर्म को मिथ्या साबित करता है. जबकि सबका उद्देश्य उस अज्ञात शक्ति तक पहुंचना है, जिसे विश्व का निर्माता माना गया है.
आस्था को सिर्फ आस्था तक ही सिमित क्यों नहीं किया जा सकता. प्रत्येक व्यक्ति को अपनी आस्था या विश्वास को मानने का अधिकार क्यों नहीं है?उसे अपने तर्क के आधार पर किसी धर्म को मानने की छूट क्यों नहीं दी जाती ?
क्या मुझे वेद पुराण जैसे धर्म ग्रंथों की बातों पर इसलिए विश्वास करना चाहिय क्योंकि मैं हिन्दू परिवार में पैदा हुए हूँ?
क्या मुझे कुरान एवं उसकी आयतों में इसलिए आस्था रखनी चाहिए क्योंकि मेरे जन्म दाता मुस्लिम हैं? और मुझे सच्चा मुस्लमान साबित होना होगा?
मुझे बाइबिल के दिशा निर्देशों का पालन करना चाहिय क्योंकि मैं ईसाई हूँ या ईसाई परिवार में जन्म लिया है ,और मेरे माता पिता ईसाई धर्म के अनुयायी हैं?
अधिकतर धर्माधिकारी तर्क की धारणा सामने आते ही आग बबूला हो जाते हैं, वे सहन नहीं कर पाते. मानवता की सच्ची सेवा ,धर्म को लागू करने में नहीं , इनसानियत को लागू करने में होनी चाहिए. वही विश्व कल्याण का रास्ता प्रशस्त कर सकता है.
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गुरुवार, 7 जुलाई 2011
विचार मंथन (भाग दो )
बच्चे के विकास में अभिभावकों की मुख्य भूमिका होती है. अभिभावकों के असंगत दवाबों में पल बढ़ रहा बच्चा संकोची एवं दब्बू बन जाता है. तानाशाही व्यव्हार बच्चे को कुंठित करता है. इसी प्रकार गंभीर विषम परिस्थितियों में पलने बढ़ने वाले बच्चे क्रोधी स्वभाव के हो जाते हैं. दूसरी तरफ अधिक लाड़ प्यार में पलने वाला बच्चा जिद्दी,उद्दंडी,एवं दिशा हीन हो जाता है. अनुशासनात्मक सख्ती बच्चे में आत्मसम्मान का अभाव उत्पन्न करती है.और आत्म ग्लानी तक ले जा सकती है.अतः अभिभावकों के लिए आवश्यक है की बच्चों के पालन पोषण में उसे निर्मल,स्वतन्त्र,प्यार भरा एवं अनुशासन का संतुलन का वातावरण उपलब्ध कराएँ. ताकि आपका बच्चा योग्य एवं सम्मानीय नागरिक बन सके. (कम शब्दों में गंभीर विचार)
राजनैतिक पदों के लिए शैक्षिक योग्यता क्यों नहीं?
सरकारी पदों पर चपरासी से लेकर सचिव की भर्ती पर न्यूनतम अहर्ता नियत होती है.उस योग्यता के आधार पर ही नियुक्ति की जाती है. परन्तु विधायक, संसद यहाँ तक मंत्री और प्रधान मंत्री तक के लिय फॉर्म भरते समय न्यूनतम शैक्षिक योग्यता की आवश्यकता नहीं होती क्यों? जबकि किसी भी राजनैतिक पद पर रह कर जनता की सेवा करना कम महत्वपूर्ण कार्य नहीं है.एक मंत्री पूरे मंत्रालय को चलाता है जिसमे अनेको I .A .S .अधिकारी उसके अधीन कार्य करते हैं उन्हें नियंत्रित करने के लिय योग्यता क्यों आवश्यक नहीं?शायद इसी का परिणाम है की हमारे देश में लोकतंत्र के नाम पर लूटतंत्र विकसित हो गया है. लालची राजनेता जनता की परवाह किये बिना अफसरों के हाथों की कठपुतली बने रहते हैं.योग्य मंत्री मंत्रालय को जनता की उम्मीदों के अनुसार चला पाने में समर्थ हो सकता है और सरकारी तंत्र की कमजोरियों को पकड कर उन पर चोट कर सकता है.
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सोमवार, 4 जुलाई 2011
विचार मंथन (भाग एक)
उपरोक्त स्तिथि तो तब है जब चालीस प्रतिशत बच्चे आज भी पढने जाते ही नहीं. सिर्फ पंद्रह प्रतिशत बच्चे ही हाई स्कूल तक पहुँच पाते हैं और सात प्रतिशत किशोर ही स्नातक बन पाते हैं .उच्च शिक्षा पाने वाले युवकों का प्रतिशत तो और भी कम hoga
शुक्रवार, 24 जून 2011
पूजा की आवश्यकता क्यों ?
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गुरुवार, 23 जून 2011
YOUR CHILDREN YOUR RESPONSIBILITY:
Do you think every child brings his individuality and his future written for him or in other words,is it his inborn quality?
Do you think you don’t have enough time to give your children right direction?
Do you consider yourself incapable of teaching your children and showing right path to them?
Do you think because of your limited resources, you cannot arrange proper education to your children at the times of need?
Whether earning money is more important for your child than his education in view of family’s
ruined financial status ?
All the aforesaid reasons as thought by you, indicate that at some point or the other, you were
running away from the responsibilities towards your child. Even if the circumstances are very
difficult, it is your duty to give proper education to your child and build his character. To develop
your child as a good citizen, responsible to the society, to the country and to your family, is your
duty.
Here ‘child’ word has been used because; a child’s character can only be built during childhood
and teenage. A grown up child would be capable of bringing change into your character instead
of you changing him.
मंगलवार, 21 जून 2011
आज भी आरक्षण आवश्यक क्यों?
हमारे देश के नेता लोग वास्तव में आरक्षण समस्या का समाधान चाहते ही नहीं हैं. इसी कारण आरक्षण के मूल मकसद (पिछड़ी जातियों को मुख्य धारा में जोड़ने का )को पूरा नहीं कर पाए,क्योंकि यदि आरक्षण का मूल उद्देश्य पूरा हो जाता तो नेताओं का अपना वोट बैंक बिखर जाता. यदि इनमे ईमानदारी से उद्देश्य की पूति की इच्छा होती और पिछड़े वर्गों के सच्चे हितेषी होते तो आरक्षण व्यवस्था लागू होने दस वर्षों बाद नवीनीकरण करते समय अरक्षित वर्ग के संपन्न वर्ग (क्रीमी लायर) को आरक्षण से अलग कर देते ताकि समाज के शेष परिवार आरक्षण का लाभ ले पाते. अगर यह प्रावधान कर दिया होता, तो पिछड़ी जातियों को आज आरक्षण की आवश्यकता ही नहीं रहती .साथ ही सामाजिक समरसता के लिए आरक्षण का आधार जाति न होकर गरीबी होता. समस्त वर्ग के गरीबों के लिए अलग आरक्षण की व्यवस्था होती ताकि देश कोई भी मेधावी छात्र देश के सेवाओं से वंचित न रहता योग्य एवं मेधावी छात्र ही देश के विकास में योगदान दे सकते हैं.और राष्ट्र को विश्व का सिरमोर बना सकते है.
नेताओं की राजनैतिक महत्वाकांक्षाओं ने समाज के पिछड़े वर्ग के योग्य युवाओं के साथ साथ अग्रिम वर्ग के युवाओं के साथ अन्याय किया है और देश के समुचित विकास को अवरुद्ध किया है.
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*SATYA SHEEL AGRAWAL*
शुक्रवार, 17 जून 2011
दूषित मानसिकता
बाबा रामदेव के साथ भी ऐसा ही अनर्गल प्रचार किया गया है. उनके लिए प्रचारित किया गया की उन्होंने अल्प समय में विशाल मिलकियत खड़ी कर ली ,उनके लिए प्रचारित किया गया की वे तो व्यापारी हैं,फैक्ट्री के मालिक हैं,या फिर कहा गया वे रजनीति में आना चाहते हैं,आदि,आदि.
अब सोचने की बात यह है क्या बाबा रामदेव ने अपनी मिलकियत असंवेंधानिक तरीके से खड़ी की है ,यदि नहीं, तो उन्हें भी जायदाद बनाने का पूरा अधिकार है,फिर किसी को आपत्ति क्यों?भारत का कोई भी नागरिक व्यापार करने को स्वतन्त्र है तो फिर योगी को यह अधिकार क्यों नहीं?यदि उन्होंने काला धन एकत्र किया है और कालाधन विदेशी बैंकों में जमा किया है तो अवश्य ही वे भ्रष्टाचार के दोषी होंगे .यदि वे काला धन जमा करने वाले होते तो वे काले धन के खिलाफ आवाज ही क्यों उठाते?शीशे के मकान में रहने वाला कोई दूसरे के शीशे के मकान पर पत्थर मारता है क्या?
यदि बाबा रामदेव राजनीति में आना भी चाहते है तो गलत क्या है? क्या एक राष्ट्र भक्त एवं इमानदार व्यक्ति को राजनीति में आने का हक़ नहीं है.ऐतराज तो इसलिए है की, वर्तमान नेताओं की चांदी काटने पर अंकुश लग सकता है या उनके काले कारनामे का चिटठा खुल सकता है.विरोध का कारण भी यही है अपने भ्रष्ट कारनामों को दबाने के लिए उनकी मजबूरी है वे जनता को गुमराह करें और अपने हित साधन करें .अब यह जनता के ऊपर है वह सत्य का साथ दे और देश को दल दल से निकालने का उपाय करे
शुक्रवार, 10 जून 2011
जरा सोचिये
२,जीवन में एक हज यात्रा कर लेने से जन्नत का रास्ता मिल जाता है ,गंगा में स्नान करने अथवा राम का जप करने से पापों से यानि दुष्कर्मों से मुक्ति मिल जाती है । क्या इस प्रकार की धार्मिक मान्यताएं अपरोक्ष रूप से इन्सान की दुष्कर्मों के लिए प्रेरणा स्रोत नही बन जाती ?
३,मुस्लिम धेर्म में रमजान के माह में सयंमित भोजन धारण कर शरीर को नई ऊर्जा से स्फूर्त किया जाता है साथ ही अलग अलग मौसम में भूखे प्यासे रहकर सहन शक्ति की वृद्धि होती है ।
४,किसी नदी में स्नान करने का अर्थ है ,प्रकृति की गोद में स्नान करना । जहाँ पर मानव शरीर एक साथ पांचों तत्त्व अर्थात अग्नि, प्रथ्वी, जल, वायु अवं आकाश के सम्पर्क में आता है । यदि प्रदूषित जल स्वास्थ्य का दुश्मन बन कर न खड़ा हो।
५,इतिहास गवाह है धार्मिक वर्चस्व के लिए बड़े बड़े युद्घ लड़े गए ,आज भी विश्व व्याप्त आतंकवाद के रूप में धार्मिक छद्म युद्घ जारी है।
६वैश्विकरन के इस युग में कोई भी देश अपने दम पर विकास की सीढ़ी नहीं चढ़ सकता । अतः धार्मिकता के स्थान पर .इस स्रष्टि का जन्म कैसे हुआ , कब हुआ क्यों हुआ ,आज भी रहस्य के अंधेरे में है। यदि यह मान लिया जाय की स्राष्टिकर्ता ईश्वर है तो ईश्वर की उत्पत्ति भी अबूझ पहेली है ।
२.भारतीय समाज में विवाह के अवसर पर प्रचलित 'कन्यादान 'महिलाओं के अपमान का प्रतीक है क्या बेटी कोई वस्तु या कोई पालतू जानवर है जिसे दान करने की रस्म निभाई जाती है।
३ धेर्म के ठेकेदारों ने पुरूष प्रधान समाज की रचना कर महिलाओं को दोयम दर्जे का स्थान प्रदान किया ।जिसकी इच्छाएँ ,भावनाएं ,खुशियाँ पुरुषों को संतुष्ट करने तक सीमित कर दी गई ।
४.अध्यात्मवाद इन्सान को भाग्यवादी बना कर निष्क्रिय कर देता है .क्या भाग्य के भरोसे रह कर खेतों में अनाज पैदा किया जा सकता है ? बिना श्रम के कारखानों में उत्पादन किया जा सकता है? बिना युद्घ किए देश पर आक्रमण करने वाला भाग्य के भरोसे रहकर भाग सकता है?
५.कर्म ही पूजा है पूजा कोई कर्म नहीं.
6.यह मान्यता सिद्ध हो चुकी है ,धर्म का अस्तित्व जब तक है ,जब तक किसी देश की जनता गरीब और अशिक्षित है .समृद्धि के साथ ही इश्वेरीय सत्ता भी समाप्त हो जायगी .
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सोमवार, 6 जून 2011
लिव इन रिलेशन शिप
गुरुवार, 2 जून 2011
बाबा रामदेव की जय हो
देश का नेता कैसा हो,बाबा रामदेव जैसा हो.
देश का सपूत कैसा हो ,अन्ना हजारे जैसा हो.
बाबा रामदेव ने जनता को उसकी शक्ति का अहसास करा दिया है,की लोकतंत्र में जनता की शक्ति क्या होती है?.चार चार केन्द्रिय मंत्रियों द्वारा बाबा की अगवानी के लिए एअरपोर्ट पर उन्हें मनाने के लिए पहुंचना अभूतपूर्व घटना है.सरकार ने बाबा रामदेव के आगे घुटने नहीं टेके हैं उसने उनके समर्थन में उठते जनसैलाब के सामने घुटे टेके हैं.
इस वक्त सरकार के लिए एक तरफ कुआँ है तो दूसरी तरफ खाई है .यदि वह जनता की मांग का समर्थन करती है और काला धन बाहर लाती है, भ्रष्टाचार ख़त्म करने का पुख्ता इंतजाम करती है, तो सरकार में बैठे अनेकों नेता बेनकाब हो सकते हैं शायद कुछ को जेल की हवा भी खानी पड़े. और यदि जनसैलाब की मांगों को दबाते हैं,अनदेखी करते हैं, तो उनका जनाधार खिसक जाने के पूरे चांस हैं . यही दुविधा सरकार को मजबूर कर रही है, किसी प्रकार बाबा रामदेव को अनशन करने से रोका जाय. अब समय आ गया है जब जनता को चाहिए , अन्नाहजारे एवं रामदेव जैसे नेताओं को तन मन धन से सहयोग करे और उनके आन्दोलन को किसी भी बाधा से बचाय रखे .
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मंगलवार, 31 मई 2011
आस्था और तर्क
पृथ्वी गोल है सब जानते हैं,पृथ्वी सूर्य की परिक्रमा करती है विश्व मान्य तथ्य है,सौर मंडल में ग्रहों के अस्तित्व और संख्या के बारे में कोई मतभेद नहीं है.आर्कीमिडिज का सिद्धांत,गलीलियो के सिद्धांत से पूरा विश्व सहमत है अर्थात विभिन्न वैज्ञानिक सिद्धांत पूरे विश्व में मान्य हैं चाहे वह सिद्धांत दुनिया के किसी भी हिस्से में प्रतिपादित किया गया हो . फिर ईश्वर जैसे सर्वाधिक महत्वपूर्ण विषय के बारे में इतनी सारी धारणाएं, मान्यताएं क्यों?सबके धर्म ग्रन्थ प्रथक प्रथक क्यों? सभी के सिद्धांत,धारणाएं अलगअलग क्यों?सभी धर्म अपने धर्म ग्रन्थ,अपनी आस्था को ही सत्य एवं सर्वश्रेष्ठ एवं अन्य आस्थाओं को मिथ्या क्यों सिद्ध करना चाहते हैं?क्यों मुस्लिम धर्म न मानने वाला काफ़िर हो जाता है,हिन्दू धर्म का पालन न करने वाला नास्तिक कहलाता है?क्यों कोई भी संत,महात्मा तर्क वितर्क में असफल होने पर तर्क-करता की क्लास लेने पर उतारू हो जाता है?और उसे पहले तपस्या करने और ,विश्वास करने की घुट्टी पिलाता है, और फिर आकर तर्क वितर्क करने के लिय कहता है.
ईश्वर की आस्था के अनुसार ,ईश्वर की बिना इच्छा के पत्ता भी नहीं हिल सकता तो फिर संसार व्यापी अत्याचार,व्यभिचार, हिंसा, हत्या का तांडव क्यों? धार्मिक आस्था के अनुसार मनुष्य का जन्म बड़े भाग्य से मिलता है, वर्तमान में जनसँख्या विस्फित को क्या कहा जाय? शायद अब सभी जीव सौभाग्यशाली हो रहे हैं?
मनुष्य के वर्तमान दुखों का कारण पूर्वजन्मों के दुष्कर्मों का परिणाम बताया जाता है. जब इन्सान को पता ही नहीं की उसने पूर्व जन्म में क्या गलत किया था? तो फिर सजा कैसी. यह कैसी अदालत है जो मुलजिम को उसके अपराध की जानकारी दिए बिना ही सजा दे देती है? फिर दुष्कर्मी को मनुष्य योनी में जन्म कैसे मिल गया?
मनुष्य में विद्यमान आत्मा को परमात्मा का अंश माना जाता है तो फिर वह दुष्कर्मी कैसे हो गयी? परमात्मा के अंश को जीवन चक्र में फंसने के क्या मकसद हो सकता है?
इस प्रकार के अनगिनत प्रश्न हैं जो धार्मिक आस्थाओं पर प्रश्न चिन्ह लगते हैं . इस सौर मंडल, सौर गंगा के अस्तित्व, विश्व के अस्तित्व के प्रश्न पर अभी विज्ञानं किसी नतीजे पर नहीं पहुँच सका है, इसीलिए अलग अलग आस्थाएँ अपनी जड़ें जमाये बैठी हैं.
सभी धर्मों का मूल मकसद है दुनिया में सुख शांति, अहिंसा, सभ्यता एवं इंसानियत का परचम लहराना.अतः धर्म कोई भी अपनाया जाय परन्तु उसके असली मकसद यानि इंसानियत को अपनाये बिना धार्मिक होने का कोई लाभ नहीं है. फिर धर्म के लिए हिंसा का सहारा लेना धर्म की मूल धारणा से विचलित होना है.
मेरी पुस्तक "बागड़ी बाबा और इन्सनिअत का धर्म" पढेंगे तो अवश्य ही आप मेरी धारणा पर विश्वास करेंगे
गुरुवार, 26 मई 2011
क्यों बन जाता है समस्या हमारा बुढ़ापा
अतः अपने शेष जीवन को शांति पूर्वक बिताने के लिए नई पीढ़ी एवं नए परिवेश के साथ सामंजस्य बैठना आवश्यक है।
भारतीय बुजुर्ग की प्रमुख समस्याएँ ;
१.शरीरअशक्त हो जाना।
२.जीवन साथी से बिछुड़ जाने का गम अर्थात एकाकी पन।
३.धनाभाव के रहते गंभीर बीमारी का इलाज असंभव ।
४ .अनेको बार शरीर विकलांग हो जाना जैसे अंधापन,बहरापन,या हड्डियों की विकृति हो जाना अदि ।
५.अकेले रह रहे बुजुर्ग दम्पति की सुरक्षा की समस्या ।
६ .संतान सम्बन्धी समस्याओं से तनाव ग्रस्त हो जाना ।
७ .मौत का भय सताना ।
८ .नई पीढ़ी से सामंजस्य न बैठा पाना ।
९ .आधुनिक युग के परिवर्तनों को सहन न कर पाना।
शनिवार, 21 मई 2011
साधू और संत समाज
वर्त्तमान में, साधू संतों की लम्बी फौज में अधिकांश ढोंगी एवं नाटकबाज सिद्ध हो रहे हैं,जो दुनिया को ,कुटिलता का आवरण ओढ़ कर ठग रहे हैं. नित्य हो रहे पर्दाफाश के कारण योग्य एवं समाजसेवी साधू संत भी संदेह के घेरे में आ रहे है.उनके लिए स्थिति असहज होती जा रही है.
भुत-प्रेत का अस्तित्व सिर्फ वहम है, हमारा मानसिक विकार है, जब हम मानसिक रूप से कमजोर होते हैं, उनका काल्पनिक अस्तित्व हमें परेशान करने लगता है.
अब समय आ गया है की , हम अपनी परम्पराओं, रीती रिवाजों, मान्यताओं का गहन विश्लेषण करें, और तार्किक कसौटी पर खरा उतरने पर ही उन्हें अपनाएं, उनको मान्यता दें. क्योंकि आज प्रत्येक व्यक्ति तर्कपूर्ण सोच पाने में सक्षम है.
यदि हम अपने व्यव्हार में शालीनता एवं इन्सनिअत ला सकें तो धर्म के अनुसरण की आवश्यकता नहीं है. सभी धर्मों की स्थापना इन्सान को समाज में मानवता के दायरे में रखने के लिय हुई है.
हम आज के भौतिक युग में सुविधाओं के सैलाब को तो शीघ्र अपना लेना चाहते हैं, परन्तु जीवन शैली में आ रहे परिवर्तन को हजम नहीं कर पाते.सामजिक परिवर्तनों को देख कर दुखी होते हैं .जब विकास के लाभ उठाने को तैयार है हैं तो कुछ अनैच्छिक परिवर्तनों को भी सहन करने की आदत डालनी चाहिए.
बुधवार, 18 मई 2011
कुछ अनसुलझे प्रश्न
* हम इस संसार में पैदा होते, बढ़ते हैं, जवान होते हैं. फिर वृद्ध हो जाते हैं, अंत में मौत को प्राप्त होते हैं उसके बाद सब कुछ ख़त्म. प्रत्येक जीव के साथ यही होता है, परन्तु क्यों? कोई जीव क्यों पैदा होता है और क्यों मर जाता है? यानि मिटटी से उत्पन्न हो कर मिटटी में ही मिल जाता है.
**प्रत्येक जीव पैदा होता है तो मौत भी निश्चित है. परन्तु कोई भी जीव कभी भी मरना नहीं चाहता. यह भी एक विडंबना है.
***प्रत्येक जीव सूक्ष्म रूप में उत्पन्न होकर स्वतः अपने निश्चित आकार तक विकसित होता है. क्यों और कैसे समझ परे है.
****प्रथ्वी पर मौजूद खनिज भंडार जैसे लोहा,सोना,चांदी,ताम्बा, खानों में कैसे आया और क्यों? कोई तर्क संगत उत्तर उपलब्ध नहीं है.
*****पूरे ब्रह्मांड में जीवधारियों के उपयुक्त वातावरण सिर्फ पृथ्वी पर ही मौजूद होना रहस्य का विषय है. मौसम का स्वतः संतुलन आवश्यकतानुसार गर्मी, सर्दी, बरसात सिर्फ पृथ्वी पर ही है
******ब्रह्माण्ड में मौजूद तमाम गृह-उपगृह कैसे अस्तित्व में आए, आज तक कोई नहीं बता पाया.
*******हमारे सभी धर्मों में ईश्वर की कल्पना की गयी है, परन्तु यह सोच पाने में सफलता नहीं मिल पाई की उस तथाकथित ईश्वरीय शक्ति का उद्भव कैसे हुआ और क्यों?
सोमवार, 16 मई 2011
परिवार में पिता और पुत्र संबंधों का महत्त्व
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