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शुक्रवार, 24 जून 2011

पूजा की आवश्यकता क्यों ?

यह लेख का मकसद किसी की धार्मिक आस्था को ठेस पहुचाना नहीं है.यह तो सिर्फ एक विचार मंथन है इसको निष्पक्ष होकर ही पढ़ा जाना चाहिए
वर्तमान युग में ईश्वर के अस्तित्व पर उठते प्रश्नों को यदि दर किनार कर दिया जाय और इस संसार को किसी अज्ञात, अदृश्य शक्ति की रचना मन लिया जाय,तो भी यह प्रश्न कम महत्वपूर्ण नहीं है की उस अज्ञात शक्ति की पूजा,अर्चना क्यों की जाय? आखिर पूजा करने क्या लाभ है?क्या ईश्वर की आराधना इसलिय करनी चाहिए ताकि उसकी कृपादृष्टि बनी रहे?क्या ईश्वर चापलूसी चाहते हैं?क्या सर्वशक्तिमान ईश्वर भी खुशामद का भूखा हो सकता है?
इस विषय पर सभी धर्माधिकारियों की राय अलग अलग होगी. कोई कहेगा पूजा सिर्फ आत्म नियंत्रण के लिए की जाती है.कोई कहेगा इश्वर, अल्लाह का शुक्रिया अदा करना हमारा फर्ज है हमें उसका शुक्रगुजार होने चाहिय जिसने हमें मानव रूप दिया,कुछ लोग कहेंगे ईश्वर ही हमें सब सुविधाएँ उपलब्ध कराता है अतः उससे ही हमें अभीष्ट वस्तु की मांग करनी चाहिए, कोई कहेगा ईश्वर की आराधना से हम प्रत्येक विपत्ति में भी सुरक्षित रह सकते हैं,कुछ का कहना होगा यह हमें नम्रता एवं आत्म संयम के लिए प्रेरित करता है अर्थात सभी के विचार अलग अलग मिलेंगे परन्तु पूजा या धार्मिक अनुष्ठान सब के लिए आवश्यक होता है.
यदि गलत एवं अनैतिक व्यव्हार करने वाला पूजा के माध्यम से सुखी जीवन पाने का हक़दार बन जाता है तो क्या यह उचित है?क्या पूजा आराधना,प्रेयर ,नमाज स्वर्ग या नरक पहुँचने का रास्ता है? अर्थात इमानदार,परिश्रमी.अहिंसक, कर्तव्यनिष्ठ व्यक्ति बिना पूजा के स्वर्ग का अधिकारी नहीं होता?
क्या पूजा के माध्यम से एक डकैत,अत्याचारी,हत्यारा,अनाचारी अपने सभी गुनाह माफ़ करा लेने की हसरत नहीं पाले रहता? क्या पूजा के माध्यम से मुक्ति पाने का विश्वास, इन्सान को दुष्कर्मों की ओर धकेलने में मददगार नहीं हो होता?
        जैसे की मान्यता है, सर्वशक्तिमान ईश्वर की इच्छा के बिना यदि कुछ भी संभव नहीं होता, तो इसका अर्थ यही हुआ ईश्वर की इच्छा अपने गुण गान कराने एवं पूजा अर्चना कराने की होती है.
ईश्वर के अस्तित्व की कल्पना करना और उसकी पूजा आराधना करना दोनों अलग अलग विषय हैं, और दोनों का आपस में कोई तालमेल नहीं लगता. शायद ईश्वर के प्रकोप से बचने के लिए ,अपने को मुसीबतों के भंवर से निकालने के लिए पूजा का प्रावधान रखा गया हो . और अपने मन को शांत करने का विकल्प ढूँढा गया हो. क्योंकि इन्सान का स्वभाव बालक स्वभाव है,उसे किसी न किसी का संरक्षण अवश्य चाहिए ताकि अपने दुःख दर्द उसे सौंप कर मानसिक त्रासदी से उबार सके ..
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3 टिप्‍पणियां:

dr.manoj rastogi ने कहा…

पूजा सिर्फ आत्म नियंत्रण के लिए की जाती है.

Rahul Priyadarshi ने कहा…

ज्ञान,भाव एवं क्रिया इन तीनों के समुचित क्रियान्यवन से की गई पूजा ही सार्थक होती है,किसी लोभ अथवा मोहवश किया गया प्रक्रम अनुष्ठान होता है,वो पूजा है ही नही.पूजा आत्मानुशासन एवं आस्था के संचयन हेतु अत्यंत आवश्यक है.

Unknown ने कहा…

dhanyvad doctor saheb,thanks rahul jifor your comments