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गुरुवार, 7 जुलाई 2011

विचार मंथन (भाग दो )

p style="text-align: center">बच्चों के साथ व्यव्हार में संतुलन
बच्चे के विकास में अभिभावकों की मुख्य भूमिका होती है. अभिभावकों के असंगत दवाबों में पल बढ़ रहा बच्चा संकोची एवं दब्बू बन जाता है. तानाशाही व्यव्हार बच्चे को कुंठित करता है. इसी प्रकार गंभीर विषम परिस्थितियों में पलने बढ़ने वाले बच्चे क्रोधी स्वभाव के हो जाते हैं. दूसरी तरफ अधिक लाड़ प्यार में पलने वाला बच्चा जिद्दी,उद्दंडी,एवं दिशा हीन हो जाता है. अनुशासनात्मक सख्ती बच्चे में आत्मसम्मान का अभाव उत्पन्न करती है.और आत्म ग्लानी तक ले जा सकती है.अतः अभिभावकों के लिए आवश्यक है की बच्चों के पालन पोषण में उसे निर्मल,स्वतन्त्र,प्यार भरा एवं अनुशासन का संतुलन का वातावरण उपलब्ध कराएँ. ताकि आपका बच्चा योग्य एवं सम्मानीय नागरिक बन सके. (कम शब्दों में गंभीर विचार)

राजनैतिक पदों के लिए शैक्षिक योग्यता क्यों नहीं?
सरकारी पदों पर चपरासी से लेकर सचिव की भर्ती पर न्यूनतम अहर्ता नियत होती है.उस योग्यता के आधार पर ही नियुक्ति की जाती है. परन्तु विधायक, संसद यहाँ तक मंत्री और प्रधान मंत्री तक के लिय फॉर्म भरते समय न्यूनतम शैक्षिक योग्यता की आवश्यकता नहीं होती क्यों? जबकि किसी भी राजनैतिक पद पर रह कर जनता की सेवा करना कम महत्वपूर्ण कार्य नहीं है.एक मंत्री पूरे मंत्रालय को चलाता है जिसमे अनेको I .A .S .अधिकारी उसके अधीन कार्य करते हैं उन्हें नियंत्रित करने के लिय योग्यता क्यों आवश्यक नहीं?शायद इसी का परिणाम है की हमारे देश में लोकतंत्र के नाम पर लूटतंत्र विकसित हो गया है. लालची राजनेता जनता की परवाह किये बिना अफसरों के हाथों की कठपुतली बने रहते हैं.योग्य मंत्री मंत्रालय को जनता की उम्मीदों के अनुसार चला पाने में समर्थ हो सकता है और सरकारी तंत्र की कमजोरियों को पकड कर उन पर चोट कर सकता है.

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