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विज्ञापन जगत में सिर्फ मेग्गी के उत्पाद ही एक मात्र गुणवत्ता और
स्वास्थ्य से खिलवाड़ नहीं कर रहे, बल्कि अन्य अनेक कम्पनियों के उत्पाद
भी इसी श्रेणी में आते है,जिनके विज्ञापन से जनता को भ्रमित
किया जा रहा है और अनेक प्रकार की बीमारियों को निमंत्रित किया जा रहा है.पहले भी
अनेक उत्पादों पर प्रश्न चिन्ह खड़े होते रहे हैं.क्योंकि वर्तमान में मेग्गी के
सेम्पल लिए गए और लेब में फेल हो गए,इसलिए मीडिया में चर्चा का विषय बन गए.सरकार का ध्यान भी इस ओर गया
है और प्रयास किये जा रहे हैं की सभी
खाद्य पदार्थों विशेष तौर पर पैक्ड खाद्य पदार्थ को स्वास्थ्य की दृष्टि से
कैसे नियंत्रित किया जाय ताकि जनता के स्वास्थ्य के साथ कोई खिलवाड़ न कर सके.
उपरोक्त विसंगतियों को देखते हुए अब आवश्यकता का अहसास हो रहा है की सिर्फ
विज्ञापन से सम्बंधित नियम या कानून बना देने भर से काम नहीं चलने वाला, देश में विज्ञापन एजेंसीस को रेगुलेट करने के लिए एक रेगुलेटर
अथौरिटी की व्यवस्था होनी चाहिए. जिससे विज्ञापन पास होने के पश्चात् ही उन्हें
प्रकाशित या प्रसारित किया जा सकें. इस रेगुलेटर अथौरिटी द्वारा इलेक्ट्रोनिक एवं
प्रिंट मीडिया में समान रूप से नियमों का कडाई से पालन कराया जाना चाहिए.विज्ञापन
में विद्यमान सन्देश की सत्यता को प्रमाणित किये बिना किसी को भी प्रसारित,या प्रचारित,विज्ञापित करने की अनुमति नहीं मिलनी
चाहिए.रेगुलेटर से पास होने के पश्चात् भी यदि कोई गड़बड़ी पाई जाती है,तो इसकी गुणवत्ता(क्वालिटी कंट्रोल) की जिम्मेदारी सिर्फ उत्पादक
पर नियत की जाय और दोषी पाए जाने पर सजा की व्यवस्था की जाय.
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