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गुरुवार, 18 जून 2015

विज्ञापन नियामक (रेगुलेटर अथौरिटी)बनाने की आवश्यकता




       
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गत कुछ दिनों से सुर्खियाँ बनी खबर ने आम जन को हिला कर रख दिया है.खबर थी मेग्गी नूडल्स के नमूने की जाँच फेल होने से सम्बंधित, जिसमे पाया गया की इसमें उपस्थित कुछ अवयव इन्सान की सेहत के लिए खतरनाक है.मेगी नूडल्स में एम्.एस.जी.और लेड नामक तत्व मानक मात्रा से अधिक पाए गए हैं.एम्.एस.जी.नामक रसायन(जो उत्पाद का स्वाद बढ़ने के लिए मिलाया जाता है) विशेष तौर पर बढ़ते बच्चो के स्वास्थ्य के लिए हानिकारक है, उनकी हड्डियों की बढ़त पर नकारात्मक प्रभाव डालता है,चिकित्सकों के अनुसार अस्थमा और गाउट के मरीजों के लिए अमान्य है और लेड किडनी सम्बंधित बीमारियों को पैदा कर सकता है.ये तत्व स्वास्थ्य मापदंडों के अनुसार कही अधिक मात्रा में पाए गये हैं. अब जो खाद्य पदार्थ स्वास्थ्य के लिए खतरनाक है उसे स्वास्थ्य के लिए लाभदायक बताकर विज्ञापनों द्वारा जनता को भ्रमित किया जाय, तो यह जनता के साथ अन्याय है,उसके जीवन से खिलवाड़ है. मेग्गी की खबर सुर्ख़ियों में आने के पश्चात् मेग्गी का का विज्ञापन करने वाले सितारों एवं अन्य उत्तरदायी विज्ञापन एजेंसियों को भी  लक्षित किया गया है, उन्हें नोटिस भेजे गए हैं.क्या विज्ञापन करने वालों सितारों के पास उत्पाद की गुणवत्ता नापने का कोई साधन होता है या उन्हें कोई उत्पाद सम्बंधित तकनिकी ज्ञान होता है,उन्हें तो सिर्फ कम्पनी (विज्ञापन दाता) द्वारा  उपलब्ध करायी गयी जानकारी को जनता के समक्ष रखना होता है. 
     विज्ञापन जगत में सिर्फ मेग्गी के उत्पाद ही एक मात्र गुणवत्ता और स्वास्थ्य से खिलवाड़ नहीं कर रहे, बल्कि अन्य अनेक कम्पनियों के उत्पाद भी इसी श्रेणी में आते है,जिनके विज्ञापन से जनता को भ्रमित किया जा रहा है और अनेक प्रकार की बीमारियों को निमंत्रित किया जा रहा है.पहले भी अनेक उत्पादों पर प्रश्न चिन्ह खड़े होते रहे हैं.क्योंकि वर्तमान में मेग्गी के सेम्पल लिए गए और लेब में फेल हो गए,इसलिए मीडिया में चर्चा का विषय बन गए.सरकार का ध्यान भी इस ओर गया है और प्रयास किये जा रहे हैं की सभी  खाद्य पदार्थों विशेष तौर पर पैक्ड खाद्य पदार्थ को स्वास्थ्य की दृष्टि से कैसे नियंत्रित किया जाय ताकि जनता के स्वास्थ्य के साथ कोई खिलवाड़ न कर सके. 
      उपरोक्त विसंगतियों को देखते हुए अब आवश्यकता का अहसास हो रहा है की सिर्फ विज्ञापन से सम्बंधित नियम या कानून बना देने भर से काम नहीं चलने वाला, देश में विज्ञापन एजेंसीस को रेगुलेट करने के लिए एक रेगुलेटर अथौरिटी की व्यवस्था होनी चाहिए. जिससे विज्ञापन पास होने के पश्चात् ही उन्हें प्रकाशित या प्रसारित किया जा सकें. इस रेगुलेटर अथौरिटी द्वारा इलेक्ट्रोनिक एवं प्रिंट मीडिया में समान रूप से नियमों का कडाई से पालन कराया जाना चाहिए.विज्ञापन में विद्यमान सन्देश की सत्यता को प्रमाणित किये बिना किसी को भी प्रसारित,या प्रचारित,विज्ञापित करने की अनुमति नहीं मिलनी चाहिए.रेगुलेटर से पास होने के पश्चात् भी यदि कोई गड़बड़ी पाई जाती है,तो इसकी गुणवत्ता(क्वालिटी कंट्रोल) की जिम्मेदारी सिर्फ उत्पादक पर नियत की जाय और दोषी पाए जाने पर सजा की व्यवस्था की जाय.

गुरुवार, 11 जून 2015

मानसिक व्याधियां आधुनिकता की देन


मानव के विकास के साथ साथ इन्सान में भौतिक प्रतिस्पर्द्धा  गलाकाट स्तर तक पहुँच चुकी है.हर व्यक्ति जल्द से जल्द दुनिया की सभी सुविधाओं को जुटा लेना चाहता है,इसी प्राप्ति की महत्वाकांक्षा में वह अपने दिन रात का चैन गवांता जा रहा है.उसकी चूहा दौड़ उसे तनाव ग्रस्त कर रही है.अर्थात मानव विकास तनावग्रस्त जीवन का पर्याय बनता जा रहा है.शायद एक आम आदमी अपने सुख और ख़ुशी की तलाश में अपना जीवन लगा देता है. परन्तु शायद उसे वास्तविक  ख़ुशी फिर भी प्राप्त नहीं हो पाती. व्यक्ति जैसे जैसे साधन संपन्न होता जाता है, वह मानसिक व्याधियों का शिकार होने लगता है. भौतिक वस्तुओं में सुख की तलाश में उसे मिले अनेक मानसिक तनाव, उसे बीमार कर देते हैं.आज यह स्थिति इतनी भयानक रूप ले चुकी है,विश्व में हर तीसरा  व्यक्ति अवसाद का शिकार हो चुका है 
        विकास की आकांक्षा में इन्सान ने प्रकृति का बेतहाशा दोहन किया है और किया जा रहा है. जिसने प्रकृति का संतुलन तो बिगाड़ा ही है,हवा,पानी को  प्रदूषित कर मानव स्वास्थ्य के लिए कठिनाइयाँ पैदा कर दी हैं. मानसिक तनाव के मुख्य लक्षण जो अक्सर देखने को मिलते हैं वे हैं, बैचैनी, उदासी, चिडचिडापन, घबराहट, निराशा, नींद की कमी, भुलक्कड़पन, क्रोध,एवं किसी काम में मन न लगना इत्यादि, और जब ये लक्षण वीभत्स रूप में घर कर लेते हैं तो व्यक्ति की मनः स्थिति आत्महत्या करने तक पहुँच जाती है. यही हैं आधुनिकता और मानव विकास के दुष्परिणाम.
         मानसिक तनाव और मानसिक व्याधियों के पश्चात् उसे अनेक गंभीर शारीरिक व्याधियां घेर लेती हैं,जो आज आम होती जा रही है जैसे उच्च रक्तचाप, ह्रदय रोग, मधुमेह, थाइरोइड, पेट की बीमारियाँ, केंसर इत्यादि.जिनसे वह आजीवन छूटकारा नहीं ले पाता.अब उसकी i कमाई बीमारियों के इलाज पर खर्च होने लगती है, जीवन कष्टकारी हो जाता है,वह अलग से. कभी कभी तो बीमारियों से लड़ने में वह अपनी सारी जमा पूँजी गवां देता है और फिर भी जीवन को नहीं बचा  पाता.
          मानसिक तनाव व्यक्ति की कार्य क्षमता पर  भी बुरा प्रभाव डालता है,वह उत्साह हीन होने लगता है,उसमे आत्मविश्वास की कमी आने लगती है.किसी भी कार्य में अरुचि भी उसकी तनाव जनित उदासीनता ही होती है.

मानसिक तनाव से बचने के कुछ निम्न उपाय अपनाये जा सकते हैं,
ü   जहाँ तक संभव हो प्रतिस्पर्द्धा से बचने के प्रयास किये जाएँ.प्रतिस्पर्द्धा सिर्फ अपने से किया जाय अर्थात अपनी कार्य क्षमता को निरंतर बढाने के प्रयास किये जाने     चाहिए.
ü  न्यूनतम आवश्यकताओं की पूर्ती के पश्चात् आत्म संतोष बना लिया जाय, तो मानसिक तनाव का स्तर काफी कम किया जा सकता है.
ü  कभी भी दूसरे को नीचा दिखाने या किसी को गिराने की चाह में अपने जीवन के अमूल्य समय को नहीं गवाना चाहिए.किसी को गिराने में अपनी ख़ुशी ढूंढना सिर्फ भ्रम है.सिर्फ अपनी ख़ुशी और अपनी उन्नति के बारे में  iसोचना चाहिए.
ü   किसी व्यक्ति से इर्ष्या करना आपके मन की शांति को प्रभावित करता है.
ü  अपने को व्यस्त रखना भी मानसिक तनाव से बचने का उपाय है.
ü  नियमित व्यायाम और योग करना, मानसिक स्वास्थ्य के लिए लाभकारी होता है.
ü  अपने व्यस्त समय में भी स्वयं के लिए समय निकालना चाहिए,और जो आपको मानसिक ख़ुशी दे सके वह कार्य करना चाहिए.
ü  लम्बे समय तक भारी दबाव में कार्य करना, मानसिक स्वास्थ्य के लिए हानिकारक हो  सकता है.




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शनिवार, 6 जून 2015

संघर्ष ही जीवन है

        जीवन पशु रूप में हो या कीट पतंगों के रूप में,या फिर मानव के रूप में. जीवन एक यात्रा के समान है. क्योंकि प्रत्येक जीवन के बाद अंत भी निश्चित है, अतः जीव कुछ समय की यात्रा पर ही आता है और चला जाता है.मानव सभी जीवों में एक सर्वोत्कृष्ट जीव है .जो अपनी बुद्धि को विकसित भी कर सकता है . अतः उसने अपनी बुद्धिमत्ता का उपयोग करते हुए सोचा ,यदि पृथ्वी पर सिर्फ मानव जाति का ही राज हो जाये तो उसे नित अन्य जीवों के डर से मुक्ति मिल जाएगी और मानव स्वतन्त्र रूप से निर्भय हो कर जीवन निर्वाह कर सकेगा.अपनी आकांक्षा के अनुरूप उसने धीरे धीरे सभी जीवों पर विजय प्राप्त कर ली या उनको अपने वश में कर लिया ,अब वह सभी जीवों का उपयोग, मानव जाति के हित में करने लगा.जो जीव उपयोगी नहीं था, उसे समाप्त कर दिया.इस प्रकार पूरी दुनिया पर मानव जाति का एकाधिकार हो गया. 
        परन्तु संघर्ष अब भी समाप्त नहीं हुआ ,सिर्फ उसके संघर्ष की परिभाषाएं बदल गयीं.अब उसका संघर्ष अधिक से अधिक सुविधाएँ जुटाने के लिए शुरू हो गया.ज्यों ज्यों सुख सुविधाएँ बढती गयीं.इन्सान की महत्वाकांक्षाएं भी बढती गयीं ,जिनका कोई अंत दिखाई नहीं देता.मानव उन्नति की प्रेरणा भी इसी महत्वाकांक्षा से मिलती है.अधिक से अधिक सुख सुविधाएँ जुटाने की लालसा प्रतिस्पर्द्धा उत्पन्न करती है.और यह प्रतिस्पर्द्धा जहाँ इन्सान को कार्य में गुणवत्ता लाने को प्रेरित करती है वहीँ कार्य आशा अनुरूप न हो पाने पर मानसिक अशांति भी पैदा करती है.और यही मानसिक तनाव अनेकों शारीरिक समस्याओं को उत्पन्न करता है.अब प्रतिस्पर्द्धा ने मानव के लिए जीवन संघर्ष का रूप ले लिया, इस प्रतिस्पर्द्धा में योग्यता के होते हुए भी सब लोग सफल नहीं हो पाते. परन्तु अप्रत्याशित सफलता प्राप्त व्यक्ति अपनी संघर्ष की कहानी को ऐसे प्रस्तुत करता है जैसे वही  एक मात्र परिश्रमी, बुद्धिमान, संघर्षशील व्यक्ति रहा हो. वह कुछ ज्यादा ही बुद्धिमान और परिश्रम करने वाला व्यक्ति है.जबकि ऐसे अनेकों व्यक्ति मिल जायेंगे जिन्होंने उससे भी अधिक परिश्रम एवं संघर्ष किया परन्तु वांछित सफलता के शिखर पर नहीं पहुँच पाए,नसीब ने उनका साथ नहीं दिया और उनकी संघर्ष की कहानी का अंत हो गया.क्या असफल या कम सफल व्यक्ति का संघर्ष एक संघर्ष नहीं था? 
     उदाहरण स्वरूप देखें -दो देशों के युद्ध में अनेकों जवान शहीद हो जाते हैं और अनेक जवान घायल हो जाते हैं,परन्तु युद्ध जीतने के पश्चात् सिर्फ शेष बचे जवान ही जश्न मानते हैं.जबकि युद्ध जीतने में शहीद एवं घायल जवानो का भी योगदान कम नहीं था .इसी प्रकार प्रत्येक सफल व्यक्ति के पीछे अनेक कुर्बानियां छिपी होती है. किसी नयी खोज के लिए अनेक प्रयोग किये जाते हैं जिसमे अनेको जीवन समाप्त हो जाते हैं, तब कही कोई उपलब्धि हासिल होती है परन्तु खोजकर्ता वही माना जाता है, जिसने उसमे सफलता प्राप्त की. ठीक इसी प्रकार प्रत्येक सफल व्यक्ति के पीछे अनेक असफल् व्यक्तियों का श्रम छिपा होता हैं.अनेक अन्य व्यक्ति एक सफल व्यक्ति की सफलता के लिए अप्रत्यक्ष रूप से योगदान कर रहे होते हैं.
       यदि देश की आजादी के लिए श्रेय का हक़दार सिर्फ गाँधी जी को माना जाता है तो आजादी के अन्य आन्दोलनकारियों एवं शहीदों के प्रति अन्याय होगा .देश को मिली आजादी सैंकड़ो लोगों के द्वारा उठाये गए कष्टों और कुर्बानियों का परिणाम था .अतः देश की आजादी के लिए सिर्फ और सिर्फ गाँधी जी को  ही  महिमा मंडित करना न्यायपूर्ण नहीं हो सकता. यह आम धारणा होती है की जो व्यक्ति अधिक धनवान है या अधिक धन अर्जित कर रहा है उसको ही महिमा मंडित किये जाने का एक मात्र अधिकारी माना जाता है.भले ही उसने अनैतिक रूप से धन एकत्र किया हो,या अनैतिक कार्यों द्वारा धन अर्जित कर रहा हो.उसके संघर्ष को ही संघर्ष का नाम दिया जाता है और अनेकों लोगों के लिए प्रेरणा का स्रोत माना जाता है. यदि परिश्रम को ही महिमा मंडित करने का पात्र माना जाये तो एक रिक्शा वाला ,मजदूर,या राज-मिस्त्री भी जीवन पर्यंत कठिन परिश्रम करते हैं परन्तु फिर भी जीवन भर अभावो में जीने को मजबूर होते हैं.क्या उनके परिश्रम और परिवार को पालने के प्रति उनका समर्पण और संघर्ष कम है? उन्हें उनके संघर्ष के लिए मान सम्मान इसलिए नहीं मिलता क्योंकि उन्हें जीवन की ऊँचाइयाँ नहीं मिल पायीं.या शायद उन्होंने सफलता के लिए अनैतिक मार्ग का सहारा नहीं लिया.अक्सर जिस जीवन संघर्ष की महिमा का बखान किया जाता है वह सिर्फ अधिक धन अर्जन से सम्बंधित होता है, जब कि यह संघर्ष तो एक स्वाभाविक क्रिया है,कोई विशेष बात नहीं है ,प्रत्येक व्यक्ति अपनी क्षमतानुसार अधिक सुविधा संपन्न होने के लिए संघर्ष करता ही है.
       जीवन में सबसे बड़ा संघर्ष अपने शारीरिक विकारों से किया गया संघर्ष है,जिसमे अनेकों बार जीवन और मृत्यु के बीच अंतर समझना भी मुश्किल हो जाता है,शारीरिक विकलांगता एक ऐसे संघर्ष पूर्ण जीवन का नाम है,जिसमें साहसिक प्रेरणा ही उसके यातना पूर्ण जीवन को सहज बना सकती है.  कुछ तो इतने साहसी होते है ,जो परिवार और समाज के सहयोग से सामान्य जन से भी अधिक सफलता प्राप्त कर लेते है, और समाज के सामने साहसी एवं संघर्ष शील होने का उदाहरण प्रस्तुत करते है.
      दूसरे स्थान पर संघर्ष शील ऐसे व्यक्तियों को माना जा सकता है जो अपने जीविकोपार्जन के लिए अनेकों प्रकार के जोखिम उठाने को तत्पर रहते है .जैसे खानों में कार्य करने वाले, केमिकल फेक्टरियों में काम करने वाले या इसी प्रकार प्रदुषण जनित योजनाओं पर काम करने वाले , जहाँ शरीरिक विकलांगता या मृत्यु का खतरा बना रहता है ,कुछ ऐसी भी परिस्थितियां भी हो सकती है जहाँ इन्सान अप्राकृतिक स्थितियों में कार्य करता है ,जहाँ साँस लेने की भी समस्या हो अथवा प्राकृतिक शारीरिक आवेगों य शारीरिक आवश्यकताओं से वंचित रहना पड़ता हो जैसे भूख ,प्यास,मूत्र,शौच इत्यादि. ऐसी परिस्थितियां अनेक मानसिक एवं शारीरिक रोगों को भी आमंत्रित करती हैं.इन संघर्ष पूर्ण स्थितियों में रह कर भी यदि कोई उन्नति कर पाता है तो क्या उसका संघर्ष एवं श्रम सामान्य स्थितियों में श्रम करने वालों अधिक महत्वपूर्ण नहीं माना जाना चाहिए. अतः स्वस्थ्य परिस्थितयों में रहकर किया गया संघर्ष किसी का भी उत्थान अधिक कर सकता है,अनैतिक रूप से ,या भ्रष्ट तरीके से कोई भी धनवान हो सकता है. परन्तु उसकी सफलता को अनुकरणीय नहीं माना जा सकता.बिना मानसिक या शारीरिक हानि से किये गए श्रम से हुई उन्नति एक सामान्य प्रक्रिया है.परन्तु यदि किसी व्यक्ति ने समाज के लिए ,देश के लिए अथवा अपने कुटुंब के पीड़ितों के लिए श्रम किया है उनके हित के लिए अपना सुख चैन गवांया या अपने प्राणों को खतरे ,में डाला है तो उसका संघर्ष अवश्य ही अनुकरणीय है. ऐसे व्यक्ति प्रशंसा के पात्र  माने जाने चाहिए,वास्तव में ऐसे व्यक्ति समाज के स्तम्भ होते हैं,सम्माननीय और स्मरणीय होते हैं.
          निष्कर्ष के रूप में यह माना जा सकता है , अपने लिए नहीं बल्कि पूरे समाज हित ,देश हित के लिए संघर्षरत व्यक्ति , जिससे सबकी उन्नति प्रशस्त होती है पूर्ण रूप से सम्मान का पात्र है. मानव हित में किये गए कार्य से ही अपार आत्म संतोष प्राप्त हो सकता है और अपने जीवन की सार्थकता भी सुनिश्चित हो सकती है. 

रविवार, 31 मई 2015

नाकारा विपक्ष देश का दुर्भाग्य

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       हमारे देश में पिछले अडसठ वर्ष की आजादी के दौरान अधिकतम शासन कांग्रेस का रहा है,अतः वर्त्तमान भा.ज.पा.के शासन काल में कांग्रेस की विपक्ष की भूमिका का सर्वाधिक महत्त्व है और उससे एक जिम्मेदार विपक्षी पार्टी की भूमिका निभाने की उम्मीद की जाती है. परन्तु गत चुनावों में हुई उसकी शर्मनाक हार ने उसे हताश और निराश कर दिया है. अपनी खोयी हुई साख को वापस पाने का अब उसे कोई रास्ता नहीं मिल रहा है.  जनता का विश्वास जीतने के लिए उसे भा.. पा. के शासन में कमियां  ढूँढने के लिए पसीना बहाना पड रहा है.भा.. पा. के एक वर्ष पूरे होने पर एक भ्रष्ट मुक्त और विकासोन्मुख शासन ने कांग्रेस समेत सभी विपक्षी पार्टियों की नींद उडा दी है.अब सभी विपक्षी पार्टियाँ जनता को अपने पक्ष में करने के लिए तर्क हीन बयानों पर उतर आयी हैं.कांग्रेस पार्टी ने भूमि अधिग्रहण बिल पर किसानों को भड़काना शुरू कर दिया है,जी. एस. टी. बिल को लेकर उसके विरोध में समस्त विपक्ष एक जुट हो गया है, ताकि देश का विकास अवरुद्ध हो और सरकार बदनाम हो.विपक्षी पार्टियों का उद्देश्य सरकार के प्रत्येक कार्य का विरोध करना रह गया है कार्य की गुणवत्ता या देश हित के लिए सोचना उनके लिए अप्रासंगिक हो गया है.इसी प्रकार जो सरकारी कर्मी भ्रष्ट गतिविधियों में संलग्न रहते है,या आम जन जिन्हें भा.jज.पा. के शासन के दौरान उनके व्यक्तिगत स्वार्थों की पूर्ती  होने की सम्भावना नहीं है, वे मोदी सरकार के प्रत्येक कदम को संदेह की दृष्टि से देखते हैं. उन्हें सरकार के किसी भी कार्य में अच्छाई नजर नहीं आती. दरअसल उन्हें अपना विकास चाहिए(अपनी तिजोरियां भरनी चाहिए)उन्हें देशहित  की बात करने वाला नहीं भाता. इसीलिए ऐसे लोग मोदी की आलोचना करके जनता में भ्रम पैदा करते रहते हैं.क्योंकि स्व हित के आगे देश हित की बातें उनके लिए कोई महत्त्व नहीं रखती.   
      2014 में हुए लोकसभा चुनावो के परिणामों से लगभग बौखला चुकी देश की सत्ता से दूर  हो चुकी विरोधी पार्टियाँ अपने व्यव्हार में संयम खो चुकी हैं. यद्यपि स्वस्थ्य लोकतंत्र के लिए मजबूत विपक्ष का होना आवश्यक होता है और विरोधी पक्ष का कार्य सरकार के कार्यों का विश्लेषण कर तथ्यों को जनता के समक्ष रखना होता है,और गलत कार्यों या जनता विरोधी कार्यों के लिए जनता को सजग करना होता है,सरकार को जनविरोधी कार्यों से रोकना होता है. परन्तु यदि विपक्ष अपनी जिम्मेदारियों को देश हित में न निभा कर, सिर्फ अपने स्वार्थ के लिए,अपनी पार्टी के हित के लिए जनता के समक्ष अनर्गल टिप्पड़िया प्रस्तुत करें,सिर्फ विरोध करने के लिए सरकार के प्रत्येक कार्य का विरोध करे और जनता  को गुमराह करे, तो इसे देश और लोकतंत्र के लिए स्वास्थ्यवर्द्धक नहीं कहा जा सकता. विरोधी पार्टिया सत्ता पक्ष के प्रत्येक कार्य का विरोध करना ही अपना कर्तव्य समझने लगें,तो यह देश का दुर्भाग्य ही है.इस प्रकार से देश विकास नहीं कर सकता.लोकतंत्र में जहाँ (जनता द्वारा चुनी गयी सरकार)सत्ताधारी पार्टी का कर्तव्य होता है की वह जनहित और देश हित में कार्य करे, तो विपक्ष की भूमिका उसके कार्यों की सकारात्मक समीक्षा करना होता है.उसके द्वारा उठाये  जा रहे गलत क़दमों से सरकार और जनता को सचेत करना होता है.    

    जो विरोधी पक्ष के नेता चुनावों में भाजपा के सत्ता में आने पर देश को भयानक साम्प्रदायिकता के आगोश में खतरा बता रहे थे.और इस प्रकार भ्रम पैदा करके जनता से वोट लेने की साजिशें रच रहे थे. वहीँ अब विरोधी पक्ष के नेताओं को आज मोदी जी के हर कार्य में दिखावा और देश विरोधी कदम दिखाई देता है.कांग्रेसी मोदी की बढती लोकप्रियता से चिंतित हैं और अनाप शनाप बयानबाजी कर अपने शासनकाल को उचित ठहराते हैं. जिनके कार्यकाल में देश, अव्यवस्था और भ्रष्टाचार के दल दल में बुरी तरह से फंस गया था, वे ही मोदी के शासन में अनेक कमियां निकाल कर अपनी पीठ थपथपाने का असफल प्रयास कर रहे हैं. विरोधी पार्टियों के समय रहते चेत जाना चाहिए की अब देश की जनता को और अधिक नहीं बरगलाया जा सकता.और अपनी सोच को देश हित और जनता हित की ओर उन्मुख करना होगा.अन्यथा उन्हें राष्ट्रीय राजनैतिक पटल से विलुप्त होना पड़ेगा.
     कांग्रेस ने अपने लिये  गड्ढा स्वयं खोदा है 2011 मे अन्ना जी के नेतृत्व में देश को भ्रष्टाचार मुक्त बनाने के लिए सशक्त लोकपाल की मांग के समर्थन में आन्दोलन चलाया गया  था.इस आन्दोलन को समर्थन देकर कांग्रेस पार्टी को दोबारा सत्ता पर काबिज होने का अवसर मिल सकता था. पार्टी  के लिए सुनहरी अवसर था जनता का विश्वास जीतने का और भ्रष्टाचार के विरुद्ध अपनी संकल्प बद्धता दिखाने का.परन्तु सत्ता के मद में चूर कांग्रेसी सरकार ने  अन्ना  के आन्दोलन को अप्रासंगिक करना ही अपना उद्देश बना लिया और जनता की आवाज को नकार दिया. इसके परिणाम स्वरूप ही कांग्रेस को अप्रत्याशित शर्मनाक हार का सामना करना पड़ा.शायद वही गलती अब भी दोहरायी जा रही है देश के लिए हितकारी कार्यों,योजनाओं का विरोध करके.
        आज भी अनेक बार कांग्रेसी नेता देश में गत छः दशकों में हुए विकास को अपनी पार्टी की उपलब्धि मानते हैं.सच्चाई तो यह है की इस दौरान जो भी उन्नति हुई है वह हमारे देश  की जनता के द्वारा किये कड़े परिश्रम का ही परिणाम है, जिसमे सरकार का योगदान नगण्य ही रहा है.सरकार द्वारा विकास सिर्फ उस क्षेत्र का किया गया जिसमे नेताओं को भारी कमीशन मिलने की उम्मीद थी.उन्ही कारखानों, मिलों को फलने फूलने का मौका दिया गया जिन्होंने नेताओं और सरकारी कर्मियों की हर स्तर पर जेबें भरी.ईमानदार और परिश्रमी व्यवसायी,उद्योगपति,व्यापारियों  को हर स्तर पर हतोत्साहित किया गया, उनके काम में हर लेवल पर अड़ंगे लगाये गए,उन्हें परेशान किया गया. ईमानदार,कर्त्यव्य निष्ठ.परिश्रमी सरकारी कर्मियों को बार बार दण्डित किया गया. भ्रष्ट और नेताओं के लिए गलत कार्य करने वाले नौकरशाहों को पुरस्कार के रूप में पदोन्नत किया गया.अतः कांग्रेस शासन के दौरान जो भी उन्नति हुई है वह जनता के अपन दम पर हुई है सरकार का कभी भी अपेक्षित सहयोग प्राप्त नहीं हुआ.अन्यथा देश आज विकसित देशों की श्रेणी में खड़ा होता.i
       कांग्रेस समेत सभी विरोधी  पार्टियों को अब अपनी सोच बदलनी होगी.वह समय गया जब वे धर्म,जाति,फ्री गिफ्ट, जैसे अनर्गल मुद्दों पर चुनाव लड़ कर जीतते थे. आज देश की जनता पढ़ी लिखी और समझदार हो गयी है अब उसे धर्म या जाति के आधार पर,या झूंठे सब्जबाग दिखाकर बरगलाना असंभव हो गया है.अब जो पार्टी या नेता जनता के हित में सार्थक कदम उठाएगा,जनता की समस्याओं का निराकरण करेगा, उसे ही देश पर शासन का अवसर मिलेगा.अब देश को विकास की ओर ले जाने से कोई नहीं रोक सकता.


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मंगलवार, 26 मई 2015

विश्व तम्बाकू निषेध दिवस-31मई


 
       
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वैसे तो नशा कोई भी हो इन्सान के लिए हानिकारक ही होता है.नशा क्षणिक आनंद तो देता है, परन्तु अनेक प्रकार के भयानक रोगों को भी आमंत्रित करता है.नशे से शारीरिक स्वास्थ्य के साथ साथ परिवार की आर्थिक स्थिति भी प्रभावित होती है. पहले मादक द्रव्य को प्राप्त करने में अर्थात खरीदने में (हमारे देश में नशाखोरी रोकने के लिए लगने वाले भारी टैक्स के कारण सभी नशीले द्रव्य बहुत महंगे होते हैं),तत्पश्चात नशे से उत्पन्न रोगों के इलाज के लिए आवश्यक खर्च अच्छे अच्छे परिवारों को कंगाल बना देता है. नशा करने से नशा करने वाले व्यक्ति की कार्य क्षमता भी प्रभावित होने लगती है, जिससे रोजगार पर भी असर पड़ता है.नशे से तंत्रिका तंत्र कमजोर हो जाने के कारण मानसिक व्याधियां भी अपने पैर फैला सकती हैं.धूम्र पान करने वाला व्यक्ति न सिर्फ अपना नुकसान करता है, समाज को भी बहुत हानि  पहुंचाता है क्योंकि तम्बाकू के धुएं के संपर्क में आने वाला व्यक्ति भी समान रूप से प्रभावित होता है.

मैं एक ई.एन.टी सर्जन,डॉक्टर,और पूर्व स्वास्थ्य मंत्री के तौर पर कह सकता हूँ की तम्बाकू सिर्फ मौत देता है,इससे कम कुछ नहीं”  केन्द्रीय मंत्री डा.हर्ष वर्द्धन.

     तंबाकू के इसी दुष्परिणाम को समझते हुए विश्व स्वास्थ्य संगठन ने साल 1988 से 31 मई को विश्व तंबाकू निषेध दिवस के रूप में मनाने का निर्णय लिया. साल 2008 में विश्व स्वास्थ्य संगठन ने वैश्विक स्तर पर सभी तंबाकू विज्ञापनों, प्रमोशन आदि पर बैन लगाने का आह्वान किया.
    मादक द्रव्यों की सूची में अनेक पदार्थ शामिल हैं जैसे तम्बाकू,अफीम,चरस,गाँजा,कोकीन,बीडी सिगरेट,हेरोइन,शराब,एल.एस.डी.और नशा लाने वाली दवाएं, अधिक प्रचलन में है. इन सभी मादक द्रव्यों में तम्बाकू या तम्बाकू उत्पाद अपेक्षतया सस्ते होते हैं.इसीलिए इनका प्रचलन भी सर्वाधिक होता है.एक मजदूर,और भिखारी भी अपनी थकान मिटाने के लिए तम्बाकू या बीडी का उपयोग करता है,या सिर्फ तम्बाकू और चूने का प्रयोग करता है,और थोडा सक्षम व्यक्ति सिगरेट और सिगार के रूप में तम्बाकू उत्पादों का उपयोग करता है.     
       तम्बाकू का नशा दो प्रकार से किया जाता है चबा कर या फिर धुंआ बना कर.सिगरेट, बीडी और सिगार का प्रयोग धुएं के रूप में किया जाता है,जबकि पान मसाला, खैनी, गुटखा इत्यादि चबाकर प्रयोग किये जाने वाले तम्बाकू उत्पाद हैं.
       दुनिया में हर साल तंबाकू से जुड़ी बीमारियों से क़रीब 50 लाख लोगों की मौत होती है.जिनमे 9लाख भारतीय होते हैं. लेकिन इसके बावजूद लोग लगातार तंबाकू के आदी बनते जा रहे हैं.धूम्रपान के सेवन से कई दुष्‍‍परिणामों को झेलना पड़ सकता है. इनमें फेफड़े का कैंसर, मुंह का कैंसर, हृदय रोग, स्ट्रोक, अल्सर, दमा, डिप्रेशन आदि भयंकर बीमारियां भी हो सकती हैं.इतना ही नहीं महिलाओं में तंबाकू का सेवन गर्भपात या होने वाले बच्चे में विकार उत्पन्न कर सकता है.एक सर्वे के अनुसार यह पाया गया है,की सिगरेट और सिगार का सेवन करने वाले,नहीं सेवन करने वालों के मुकाबले  छः गुना अधिक मुख केंसर का शिकार बनते हैं,जबकि तम्बाकू को चबा कर सेवन करने वाले सामान्य से पचास गुना अधिक गाल और मसूढ़ों के केंसर से पीड़ित होते हैं.भारत वर्ष में सभी कैंसर पीड़ितों में चालीस प्रतिशत मुख केंसर के पीड़ित होते हैं, जबकि इंग्लेंड में यह सिर्फ चार  प्रतिशत है.
  इन सभी बीमारियों का कोई कारगर इलाज नहीं है,अतः तम्बाकू के सेवन को रोकना ही एक मात्र उपाय है.हर साल 31मई को तम्बाकू रहित दिवस मनाने का उद्देश्य है,की जनता का ध्यान तम्बाकू से होने वाले नुकसान की ओर खींचा जा सके,उसे सचेत किया जाय की वे तम्बाकू उत्पादों को सेवन करके अपने स्वास्थ्य के साथ कितना बड़ा खतरा मोल ले रहे है. तंबाकू एक ऐसा ही पदार्थ है जो विश्व में भर लाखों लोगों की खूबसूरत जिंदगी को ना सिर्फ बदसूरत बना देता है बल्कि उसे पूरी तरह खत्म ही कर देता है. इस सन्दर्भ में सभी देशों के शासकों का दायित्व है कि वे अपने देश की जनता को तम्बाकू उत्पादों के सेवन के खतरों  से नियमित रूप से अवगत कराएँ और;-
Ø  प्रत्येक तम्बाकू उत्पाद पर चेतावनी छापने की अनिवार्यता सुनिश्चित हो.
Ø  जो व्यक्ति तम्बाकू उत्पादों की लत छोड़ने के इच्छुक हैं उन्हें इस संकल्प में उनको यथा संभव सरकारी सहायता उपलब्ध करायी जाय.
Ø  सार्वजानिक स्थानों पर धूम्रपान करना सख्ती से निषेध लागू हो
Ø  किशोर बच्चों पर सख्त निगरानी रखी जाय जिससे वे इसकी लत के शिकार न हो सकें,जब उन्हें शुरुआत में ही रोक दिया जायेगा तो वे उसके आदि होने से बच सकते हैं.नशे की लत पड़ जाने से परिणाम गंभीर हो जाते हैं,जब वह छोड़ने के इच्छुक होते हुए,कमजोर इच्छा शक्ति के कारण मजबूर हो जाते हैं.और नशे से आजादी नहीं मिल पाती.
Ø  यदि संभव हो सके तो तम्बाकू उत्पादन को ही रोक दिया जाय,तम्बाकू से सम्बंधित उत्पादों में लगे व्यक्तियों को अन्य कार्यों में लगाया जाय.
Ø  तम्बाकू उत्पादों के विज्ञापन हर स्तर पर प्रतिबंधित किया जाएँ
Ø  तम्बाकू उत्पादों से होने वाले नुकसान से आम जन को जागरूक करने के लिए जनचेतना अभियान चलाया जाना चाहिए.
Ø  जागरूकता अभियान स्वयं से प्रारंभ कर मित्रो, रिश्तेदारों,सेवादारों और फिर समाज तक चलाया जाये तो अधिक प्रभावकारी हो सकता है.  


            तंबाकू ना सिर्फ जिंदगी तबाह कर देता है बल्कि जिस अंदाज में यह जिंदगी को खत्म करता है वह बेहद दयनीय और दर्दनाक होता है अगर स्थिति पर जल्द से जल्द काबू नहीं पाया गया तो हो सकता है,  वाले कुछ सालों में तंबाकू से जुड़ी बीमारियां बढ़ें और इससे लोगों की और अधिक संख्या में मृत्यु हो. तंबाकू के खिलाफ लोगों के अंदर जागरुकता पैदा करने की जरूरत है. साथ ही अगर आपके अंदर भी तंबाकू खाने या सिगरेट पीने की आदत है और आप इस आदत को नहीं छोड़ पा रहे हैं तो जल्द से जल्द अपने डॉक्टर से सलाह लें.आज नशा छुड़ाने के लिए प्रभावी चिकित्सा उपलब्ध है.     

शुक्रवार, 22 मई 2015

अपराधी की सजा सात साल पीड़िता की सजा बयालिस वर्ष


     
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 अरुणा शानबाग अब एक ऐसा चर्चित नाम हो गया है जिस पर प्रत्येक राजनेता और मीडिया अपनी सहानूभूति प्रगट कर रहा है.कोई व्यक्ति कानूनी दांव पेंच को उसकी त्रासदी भरी जीवन यात्रा के लिए जिम्मेदार मानता है, तो कोई उसके लिए सहानुभूति प्रकट करते हुए,उसकी याद में उसके नाम पर बलात्कार के विरुद्ध संघर्ष करने वाले को इनाम देने की पेशकश कर रहा है. मीडिया उसके हालात पर आंसू बहाकर अपनी टीआरपी बढ़ा रहा है,परन्तु यह सब कुछ उसकी मृत्यु के उपरान्त. गत चार दशकों से अस्पताल के एक कमरे में जीवन और मौत के बीच झूलने वाली महिला को जीवित रहते कितने लोग जानते थे.कितने लोग उसके दुखद समय में उसके साथ थे. देश में अनेक सरकारें आयीं गयीं परन्तु किसी नेता या प्रशासक का ध्यान उस निरीह प्राणी पर नहीं गया

.  उसकी मौत के पश्चात् एक तरफ तो इच्छा मृत्यु पर विवाद ने फिर से जीवंत रूप ले लिया है, दूसरी ओर महिलाओं पर होने वाले अत्याचार के लिए सार्वजानिक तौर पर अश्रू धारा एक बार फिर बहने लगी है.कहीं न कहीं हमारी न्याय व्यवस्था पर भी असंतोष जाहिर हो रहा है,क्योंकि एक ओर तो अपराधी जो अरुणा की इस दर्दनाक हालात के लिए जिम्मेदार था मात्र सात  वर्ष की सजा काट कर सामान्य जिन्दगी जी रहा है, तो दूसरी ओर पीड़ित महिला बयालीस वर्ष तक त्रासदी पूर्ण जीवन जीने को मजबूर रही, उसे मौत भी भीख में नहीं मिली. 
दर्द नाक हादसे का संक्षिप्त विवरण;
      हल्दीपुर कर्नाटक की अरुण शानबाग मुम्बई के के.ई.एम्. अस्पताल में नर्स थी जिसके साथ २७ नवम्बर १९७३ को अस्पताल के ही सफाई कर्मी सोहन लाल बाल्मीकि ने बलात्कार किया और गला दबा कर हत्या की कोशिश की,गला दबने से दिमाग की किसी नस को नुकसान होने के कारण उसकी सोचने समझने की क्षमता नहीं रही और उसकी एक आँख भी बेकार हो गयी. अतः वह कोमा में चली गयी जिसे मेडिकल भाषा में Permanent Vegetative State(PSV) के नाम से जाना जाता है, और वह इसी अवस्था में गत बयालीस  वषों तक  जीवन और मौत के मध्य झूलती रही. इसी दौरान उसके माता पिता भी नहीं रहे सम्पूर्ण परिवार ने उससे नाता तोड़ लिया.अस्पताल में गत चार दशक(बयालीस वर्ष) तक उसके साथी(नर्स) स्टाफ ने उसकी अनुकरणीय सेवा की.अंत में १८ मई२०१५ को उसने इस बेरहम दुनिया को अलविदा किया.
     मेडम वीरानी ने सुप्रीम कोर्ट में एक याचिका दायर की कि वह अस्पताल प्रशासन को आदेश दे की उसे जो बल पूर्वक नली द्वारा भोजन दिया जा रहा है बंद किया जाय ताकि वह अपनी नारकीय जिन्दगी से निजात पा  सके. परिवार में उसके माता पिता नहीं रहे अन्य कोई परिजन उसकी देख भाल के लिए तैयार नहीं है, न ही कोई उससे से सम्बन्ध रखता है. उसके स्वस्थ्य होने के भी कोई आसार नहीं है.अतः उसे जीवन मुक्त किया जाय.परन्तु कोर्ट ने कानून में इच्छा मृत्यु का प्रावधान ने होने के कारण उसकी याचिका ख़ारिज कर दी.
उपरोक्त घटनाक्रम से अनेक प्रश्न मन में उठते हैं
1.      हमारी न्याय व्यवस्था और कानून में बुनियादी कमी है जिसके कारण अपराधी को उसके द्वारा किये गए अपराध की जघन्यता के अनुरूप सजा नहीं मिल पाती.
2.      जब देश के प्रत्येक नागरिक को सम्मान पूर्वक जीने का बुनियादी अधिकार है,तो उसको अपनी इच्छानुसार असहनीय परिस्थति में भी अपने जीवन को समाप्त करने का अधिकार क्यों नही है?
3.      क्या बेसहारा लम्बी बीमारी से ग्रस्त व्यक्ति के लिए विशेषकर जो किसी अपराधी की करतूत के कारण इस अवस्था तक पहुंचा हो,सरकार को विशेष सुविधाएँ उपलब्ध नहीं करायी जानी चाहिए.
4.      क्या अरुणा जैसे हादसों के शिकार व्यक्ति के सन्दर्भ में मीडिया द्वारा जनता को समय समय पर  अवगत नहीं कराते रहना चाहिए?ताकि आम जनता भी उसके कष्टों को कम करने में अपना सहयोग दे सके?   
उक्त घटना क्रम को देखते हुए गंभीरता से विचारणीय विषय है,क्या किसी ऐसे इन्सान को स्वेच्छिक रूप से मरने का अधिकार नहीं मिलना चाहिए है? जो
Ø  स्वस्थ्य जीवन जी पाने में असमर्थ है.लाइफ सपोर्ट सिस्टम पर जीवित है.
Ø  जो परिवार के साथ सामान्य रूप से जीवन जीने में समर्थ नहीं है.उसका जीवन परिवार के लिए बोझ बन चुका है.
Ø  जो अपनी लम्बी और त्रासद बीमारी से परेशान  हो चुका है और ठीक होने के कोई असर नहीं है.
Ø  जब एक इन्सान को सम्मान से जीने का अधिकार है तो सम्मान के साथ मरने अधिकार क्यों नहीं है?