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शुक्रवार, 9 सितंबर 2011

हमारी शिक्षा पद्धति की खामियां


पिछली अर्धशताब्दी के अन्तराल में शिक्षा के प्रचार प्रसार में आशातीत उन्नति हुई है. इलेक्ट्रोनिक मीडिया अर्थात टी.वी. एवं इंटरनेट के विकास ने शिक्षा जगत को पंख लगा दिए हैं.परन्तु हमारी शिक्षा पद्धति, शिक्षा के मुख्य उद्देश्य से कहीं भटक गयी है.शिक्षा का अर्थ सिर्फ रोजगार पा लेने की क्षमता विकसित करा देना अथवा किसी विषय में पारंगत हो जाना ही नहीं है,शिक्षा का का उद्देश्य मात्र देश दुनिया की जानकारी प्राप्त कर लेना भर नहीं है या भाषा का विद्वान् हो जाना नहीं है.शिक्षा का मकसद सभ्य समाज का निर्माण करना बच्चों का चरित्र निर्माण करना भी है, और उन्हें स्वास्थ्य जीवन व्यतीत करने के लिए राह दिखाना भी होता है.जो हमारे पाठ्यक्रमों में लुप्त प्राय रहता है. हमारी शिक्षा पद्धति में कुछ कमियां निम्न प्रकार है;
, हमारी शिक्षा संस्थाओं के पाठ्यक्रमों में विज्ञानं,गडित, एवं भाषा जैसे अनेक विषय शामिल रहते हैं. परन्तु बच्चों को जीवन भर स्वास्थ्य रहने की जानकारी देने का अभाव रहता है,उन्हें नैतिक ज्ञान जैसे महत्वपूर्ण विषय से अन्भिग्य रक्खा जाता है.जो उनके चरित्र निर्माण में सहायक हो सके
,बच्चे को उसकी रूचि के अनुसार भविष्य निर्माण के अवसर नहीं दिए जाते , अक्सर अभिभावकों द्वारा थोपे गए उद्देश्यों के लिए उसे जूझना पड़ता है,विद्यार्थी की सफलता के लिए उसकी रूचि ,उसकी क्षमताओं का आंकलन कर शिक्षा के विषय चुनना अवशयक है जो सिर्फ मनोवैज्ञानिक की सलाह द्वारा ही संभव है.
,आधुनिक चकाचोंध के युग में टी.वी. जैसे इलेक्ट्रोनिक माधयमों से प्रेरित हो कर आज का किशोर अपने सपनों की दुनिया में विचारने लगता है,वह उच्च जीवन शैली से प्रभावित होकर जीने लगता है.परन्तु स्वप्न पूरे होने पर अवसाद ग्रस्त या कुंठित होने लगता है. अतः उसे जीवन की हकीकत,उसकी अपनी क्षमता,उसकी अपनी परिस्थति से अवगत कराना आवश्यक है,ताकि वह अपने सपने अपनी योग्यतानुसार बुने और उन्हें पूर्ण करने के लिए आवश्यक प्रयास करे. ताकि वह अपने जीवन में सफलता पा सके की निराशा. उचित मार्गदर्शन उसके भविष्य को संवार सकता है.
,आज का शिक्षक वर्ग अपने समाज सेवा के मूल कर्तव्य से भटक गया है ,उसे ट्यूशन द्वारा धन अर्जन करना ही अपने जीवन का उद्देश्य दिखाई देता है.
,अनेकों अवांछनीय तत्व एवं नक़ल माफिया सक्रीय हो गए हैं जो विद्यार्थियों को नक़ल करने से लेकर नकली डिग्रियां उपलब्ध कराने के समाज विरोधी कार्य में संलंग्न है और हमारी शिक्षा प्रणाली का मजाक उड़ा रहे हैं. .सख्त एवं पारदर्शी परीक्षा व्यवस्था द्वारा ही उन्हें हतोत्साहित किया जा सकता है.और विद्यार्थी की योग्यता का लाभ देश को मिल सकता है
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मंगलवार, 6 सितंबर 2011

राष्ट्र निर्माण में फिल्मों का योगदान

कहा जाता है कल्पना विकास की पहली सीढ़ी है फिल्मों ने आम व्यक्ति को कल्पना के संसार तक पहुँचाया .उच्च गुणवत्ता जीवन शैली के लिए प्रोत्साहित किया. परिणाम स्वरूप आज प्रत्येक व्यक्ति अपने कार्य को फ़िल्मी स्टाइल में करने का प्रयास करता है. यहाँ तक कभी कभी नकारात्मक प्रभाव भी सामने आते हैं,जब चोरी डकैती भी फ़िल्मी शैली में करते हुए दिखाई पड़ती है. फिल्मों ने और अब मीडियाने और टी.वी भौतिवाद को हवा दी है, साथ ही आम जन को स्वास्थ्य के प्रति जागरूक भी किया है. अधिक धनार्जन के लिए कठोर परिश्रम,अनुशासन,सहनशीलता,दूरदर्शिता जैसे गुणों का विकास भी किया है. कहते हैं जब किसी ने जिराफ देखा ही नहीं उसे पाने की इच्छा कैसे करेगा . यही कल्पना रुपी जिराफ फिल्मों एवं टी.वी ने दिखा कर राष्ट्र निर्माण में सहयोग किया है.किसी समाज को उठाने के लिए उसमें भूख पैदा करनी पड़ती है जब भूख जागेगी तो स्वतः समाज आगे बढ़ने लगता है यही काम हमारी हिंदी फिल्मो ने किया है.हिंदी फिल्मो ने पूरे देश को हिंदी भाषा का ज्ञान करा कर एकता का परचम लहराया है.
     आज सामाजिक जागरूकता एवं सामाजिक उत्थान का कार्य इलेक्ट्रोनिक मीडिया कर रहा है.भ्रष्टाचार के विरुद्ध अन्ना हजारे की आवाज जन जन तक पहुँचाने में मीडिया की मुख्य भूमिका रही इसी कारण उनका आन्दोलन सफल हो पाया.

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सोमवार, 29 अगस्त 2011

अन्ना जी और गाँधी जी.


अन्ना जी के भ्रष्टाचार के विरुद्ध आन्दोलन की सफलता के पश्चात्, एक बहस छिड़ गयी है की क्या अन्नाजी को गाँधी जी के समकक्ष रखना उचित होगा.अन्ना जी की तुलना गाँधी जी से करना न्याय संगत है क्या? क्या अन्ना जी का कद गाँधी जी से भी बड़ा हो गया है?
मैं अपने विचार से अन्ना जी के कद को गाँधी जी कद से बड़ा मानता हूँ और अपने विचार के समर्थन में अपने निम्न लिखित तर्क प्रस्तुत करता हूँ. ताकि प्रत्येक विचार शील व्यक्ति मेरी बात को समर्थन दे सके
गाँधी जी के स्वतंत्रता आन्दोलन के समय अनेक स्वतंत्रता सेनानी आन्दोलन का नेतृत्व कर रहे थे. अर्थात नेता जी सुभाष चन्द्र बोस ,स्वामी विवेकानंद,लाला लाजपत राय,बाबा साहेब अम्बेडकर,जवाहर लाल नेहरु जैसे अनेको नमी गिरामी नेता स्वतंत्रता आन्दोलन को चला रहे थे. परन्तु वर्तमान आन्दोलन के मात्र एक ही सूत्रधार हैं,श्री अन्ना हजारे, जो अपनी टीम के सदस्यों के साहसिक सहयोग के साथ आगे बढ़ रहे थे.अन्य कोई पार्टी,कोई नेता इस आन्दोलन को नहीं चला रहा था. स्वामी रामदेव के आन्दोलन को अवश्य सहयोगी नेतृत्व कहा जा सकता है परन्तु रणनीतिकारों के अभाव में वे प्रभावशाली नेतृत्व नहीं कर पाए.
गाँधी जी सुविधा संपन्न पारिवारिक प्रष्ट भूमि से आए थे, अतः शिक्षा प्राप्त करने का पर्याप्त अवसर मिला,जो आन्दोलन को चलाने के लिए महत्वपूर्ण मार्ग दर्शन उपलब्ध कराता है.परन्तु श्री अन्ना हजारे एक बेहद गरीब एवं पिछड़े माहौल से आए थे, इसी कारण शिक्षा भी ग्रहण नहीं कर पाए मात्र प्राइमरी शिक्षा तक अध्ययन कर सके. फिर भी इतने बड़े आन्दोलन का नेतृत्व कर पाने में सफल हुए.
अन्ना जी की लोकप्रियता को गाँधी जी की लोकप्रियता से किसी भी प्रकार से कम नहीं आंका जा सकता. उनका देश के लिए संघर्ष रत जीवन, जो करीब चालीस वर्ष है कम नहीं माना जा सकता. जिसमे उन्होंने जनता को अनेकों समस्याओं से निजात दिलाई है.राष्ट्रिय स्तर पर यह उनकी पहली सफलता है. इनकी लड़ाई को आजादी की लड़ाई से कम नहीं माना जा सकता बल्कि यह संघर्ष अधिक जटिल संघर्ष है. क्योंकि विदेशी सरकार से लड़ना आसान होता बनिस्वत अपनी सरकार के अर्थात अपनों से लड़ना अधिक चुनौती पूर्ण होता है.
अन्ना जी का आन्दोलन गाँधी दर्शन पर आधारित था ,अतः यदि अन्ना जी को गाँधी जी का अनुयायी कहने में कोई परहेज नहीं होना चाहिए उनके सिद्धांतों के कारण ही आन्दोलन को अहिंसक तरीका अपना कर सफल बनाया जा सका. परन्तु गाँधी जी के सिद्धांतों पर चल कर यदि कोई व्यक्ति गाँधी जी के कद से ऊपर कद बना लेता तो यह स्वयं गाँधी जी के सम्मान से कम नहीं है.
सत्य शील अग्रवाल

शुक्रवार, 26 अगस्त 2011

भ्रष्टाचार किस हद तक



हमारे देश में आजादी के पश्चात् भ्रष्टाचार ने जो गति पकड़ी वह बढ़ते बढ़ते बेलगाम हो गयी है .आम जनता ने भ्रष्टाचार को शिष्टाचार या सुविधाशुल्क मान कर अपना लिया.भ्रष्टाचार रुपी गंगा का उद्गम स्थान मंत्री और प्रथम पंक्ति के नौकर शाह हैं उन्होंने सारी हदें पार कर बलगम भ्रष्टाचार में लिप्त हो गए .अब तो भ्रष्टाचारियों की खाल इतनी मोटी हो गयी है, की उन्हें कोई वार या कोई कानूनी शिकंजा प्रभावित नहीं कर पाता. जिससे सपष्ट है, की हमारे कानून भ्रष्टाचार को रोक पाने में सक्षम नहीं है. .
भारत के वर्तमान विकास में सरकारी सहयोग का योगदान नगण्य ही माना जायेगा . पिछली अर्द्ध शताब्दी में देश के विकास में देशवासियों की अपनी श्रमसाध्य्ता को ही श्रेय जाता है. सरकारी अमले ने प्रत्येक व्यापारी या उद्योगपति के कार्यों में व्यवधान ही पैदा किया है. सरकार से सहयोग मिलने की बात तो बेमानी है
अब तो भ्रष्टाचार की सीमा करोड़ों से उछल कर लाखों करोड़ तक पहुँच गयी है. जनता की गाढ़ी कमाई से प्राप्त राजस्व भ्रष्टाचार की भेंट चढ़ जाता है.अन्ना हजारे का आन्दोलन भी इसी भ्रष्टाचर रुपी राक्षस को ख़त्म करने के लिए किया जा रहा है यदि कानून में पारदर्शिता आ जाय तो भ्रष्टाचार की गुंजाईश भी कम हो जाएगी .जो मजबूत जन लोकपाल बिल से ही संभव है.अतः हमें श्री अन्ना हजरे के आन्दोलन में भागीदारी दे कर अपने कर्तव्य को निभाना होगा. इस में ही हमारा और पूरे देश का भला है.अन्ना जी समर्थन में उठे जन सैलाब ने स्पष्ट कर दिया है की भ्रष्टाचार को लेकर.जनता में कितना आक्रोश है.
अन्ना तुम संघर्ष करो देश तुम्हारे साथ है --