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शुक्रवार, 26 अगस्त 2011

भ्रष्टाचार किस हद तक



हमारे देश में आजादी के पश्चात् भ्रष्टाचार ने जो गति पकड़ी वह बढ़ते बढ़ते बेलगाम हो गयी है .आम जनता ने भ्रष्टाचार को शिष्टाचार या सुविधाशुल्क मान कर अपना लिया.भ्रष्टाचार रुपी गंगा का उद्गम स्थान मंत्री और प्रथम पंक्ति के नौकर शाह हैं उन्होंने सारी हदें पार कर बलगम भ्रष्टाचार में लिप्त हो गए .अब तो भ्रष्टाचारियों की खाल इतनी मोटी हो गयी है, की उन्हें कोई वार या कोई कानूनी शिकंजा प्रभावित नहीं कर पाता. जिससे सपष्ट है, की हमारे कानून भ्रष्टाचार को रोक पाने में सक्षम नहीं है. .
भारत के वर्तमान विकास में सरकारी सहयोग का योगदान नगण्य ही माना जायेगा . पिछली अर्द्ध शताब्दी में देश के विकास में देशवासियों की अपनी श्रमसाध्य्ता को ही श्रेय जाता है. सरकारी अमले ने प्रत्येक व्यापारी या उद्योगपति के कार्यों में व्यवधान ही पैदा किया है. सरकार से सहयोग मिलने की बात तो बेमानी है
अब तो भ्रष्टाचार की सीमा करोड़ों से उछल कर लाखों करोड़ तक पहुँच गयी है. जनता की गाढ़ी कमाई से प्राप्त राजस्व भ्रष्टाचार की भेंट चढ़ जाता है.अन्ना हजारे का आन्दोलन भी इसी भ्रष्टाचर रुपी राक्षस को ख़त्म करने के लिए किया जा रहा है यदि कानून में पारदर्शिता आ जाय तो भ्रष्टाचार की गुंजाईश भी कम हो जाएगी .जो मजबूत जन लोकपाल बिल से ही संभव है.अतः हमें श्री अन्ना हजरे के आन्दोलन में भागीदारी दे कर अपने कर्तव्य को निभाना होगा. इस में ही हमारा और पूरे देश का भला है.अन्ना जी समर्थन में उठे जन सैलाब ने स्पष्ट कर दिया है की भ्रष्टाचार को लेकर.जनता में कितना आक्रोश है.
अन्ना तुम संघर्ष करो देश तुम्हारे साथ है --


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