हमारे देश में लगभग आठ करोड़ से अधिक साठ वर्ष पार कर चुके बुजुर्ग लोग हैं.इनमे सिर्फ ग्यारह प्रतिशत बुजुर्ग सरकारी खजाने से पेंशन प्राप्त कर स्वावलंबी जीवन बिताते हैं । जो कभी सरकारी सेवा में कार्यरत थे। शेष वृद्धों में सिर्फ पांच प्रतिशत वृद्ध ही आर्थिक रूप से आत्म निर्भर हैं.बाकि सभी बुजुर्ग परिजनों पर निर्भर हो कर रहते हैं.जो कभी कभी असम्मान अवं विवशता का आभास कराता है।
कुछ आश्रित बुजुर्गों की संतान काफी साधन संपन्न होते हैं और लाखों रूपए प्रतिवर्ष आयेकर के रूप में सरकारी खजाने को देते हैं.यदि हमारी सरकार धनाभाव में सभी बुजुर्गों को पेंशन के रूप में भरणपोषण नहीं दे सकती .परन्तु जिनकी संतान आए कर के रूप सरकार को धन जमा करती हैं अर्थात जो संतान आयेकर दाता है,उन्हें प्रोत्साहन के रूप में आयेकर में छूट तो दे ही सकती है.जो बुजुर्गों को आत्मसम्मान लोटाने में सहायक हो सकता है.परिवार में उसकी अहमियत बनेगी संतान को बुजुर्ग का भार काम होगा .
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प्रारंभ अप्रैल 2016
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