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रविवार, 5 दिसंबर 2010

जरा सोचिये [संख्या ४] (भारतीय नारी )


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प्रारंभ अप्रैल 2016

  • प्राचीन काल से नारी को हमारे यहाँ बलात्कारी को सजा मिले या न मिले परन्तु पीडिता को समाज अवश्य दण्डित करता है यह निश्चित है।
  • सिर्फ भोग विलास की सामग्री एवं सेविका के रूप में देखा गया है।

  • पिछड़े इलाकों में नारी को कसरत करने, उच्च स्तरीय शिक्षा प्राप्त करने और कला कौशल सीखने से आज भी वंचित रखा जाता है।

  • वेश्यालयों में सुशोभित अनेक ऐसी मजबूर स्त्रियाँ मोजूद होती हैं जो निखटटू एवं निकम्मे पतियों की पत्नियाँ हैं, जो माता पिता द्वारा अपात्रो को व्याह देने का परिणाम है।

  • नारी को परदे में रख कर निर्बल बनाया गया और फिर अबला की उपाधि दे दी गयी।

  • किसी महिला के सन्तान न होने की स्तिथी में समाज की स्त्रियाँ उसे ही अपमानित करती है, भले ही उसके गर्भस्थ न होने के लिए जिम्मेदार पुरुष ही क्यों न हो।

  • किसी महिला के संतान हीन होने पर उसको बाँझ का ख़िताब देकर अपशकुनी करार दिया जाता है,उसे किसी शुभ कार्य में शामिल होने भी वंचित कर दिया जाता है.उसको अपमानित करने में नारी ही सर्वाधिक जिम्मेदार होती हैं.

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