प्रारंभ अप्रैल 2016
- आज भी ऐसे लालची माता पिता विद्यमान हैं जो अपनी बेटी को जानवरों की भांति किसी बूढ़े, अपंग ,अथवा अयोग्य वर से विवाह कर देते हैं, अथवा बेच देते हैं।
- पुरुष के विधुर होने पर उसको दोबारा विवाह रचाने में कोई आपत्ति नहीं होती ,परन्तु नारी के विधवा होने पर आज भी पिछड़े इलाकों में लट्ठ के बल पर ब्रह्मचर्य का पालन कराया जाता है।
- शादी के पश्चात् सिर्फ नारी को ही अपना स
- जरा सोचिये पुरुष यदि अमानुषिक कार्य करे तो भी सम्मानीय व्यक्ति जैसे सामाजिक नेता, पंडित, पुरोहित इत्यदि बना रहता है,परन्तु यदि स्त्री का कोई कार्य संदेह के घेरे में आ जाये तो उसको निकम्मी ,पतित जैसे अलंकारों से विभूषित कर अपमानित किया जाता है।
- रनेम बदलने को मजबूर किया जाता है।
- सिर्फ महिला को ही श्रृंगार करने की मजबूरी क्यों? श्रृंगार के नाम पर कान छिदवाना, नाक बिंधवाना नारी के लिए ही आवश्यक क्यों? कुंडल,टोप्स, पायल, चूडियाँ, बिछुए सुहाग की निशानी हैं अथवा पुरुष की गुलामी का प्रतीक?
- आज भी नारी का आभूषण प्रेम क्या गुलामी मानसिकता की निशानी नहीं है?शादी शुदा नारी की पहचान सिंदूर एवं बिछुए जैसे प्रतीक चिन्ह होते हैं,परन्तु पुरुष के शादी शुदा होने की पहचान क्या है ? जो यह बता सके की वह भी एक खूंटे से बन्ध चुका है, अर्थात विवाहित है।
- सिर्फ महिला ही विवाह के पश्चात् 'कुमारी' से ' श्रीमती ' हो जाती है पुरुष 'श्री' ही रहता है .
2 टिप्पणियां:
आदरणीय सत्य शील जी,
अवश्य ही कई मामलों में नारी जाति के साथ पुरुष समाज ज्यादती कर रहा है.गाँव में यह बेड़ियाँ अधिक है इसीलिए लोग गाँव से शहर की और पलायन कर रहे हैं. श्रृंगार की कुछ बातों पर मै सहमत नहीं हूँ श्रृंगार तो नारी का सहज स्वभाव है और हाँ आखिर में लिखा कुमारी और श्रीमती के लिए तो मेरे पास जवाब नहीं है. धन्यवाद.
KRIPAYA APNE VICHARON SE AVGAT KARATE RAHEN.DHANYVAD
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