शोषण और प्रतिशोध की भावना का चोली दामन का साथ है.अक्सर देखने में आता है की प्रत्येक सामाजिक शोषण के पीछे व्यक्तिगत दुश्मनी कम परंपरागत शोषण की भावना अधिक काम करती है. यदि प्रत्येक इंसान अपने स्तर पर ही बदले की भावना का सुख त्याग दे, तो अवश्य ही इंसान समाज में व्याप्त अनेक कुरीतियों,आडंबरों से मुक्त हो सकता है.कुछ ज्वलंत उदहारण प्रस्तुत हैं;
१,मेरी सास स्वयं कोई कार्य करना पसंद नहीं करती थी.वह तो सिर्फ बैठे बैठे मुझे आदेश देती थी. मुझ से दिन भर कार्य करवाती थी,मुझ पर अनेक बंदिशें थोपती रहती थी. बात बात पर ताने मारकर मुझे आहत करती रहती थी.मेरे पति को मेरे विरुद्ध भडकाती रहती थी.आज मैं सास बन गयी हूँ,अब मेरा नंबर है,सास का रौब ज़माने का ,तो फिर क्यों न करूं अपनी बहु के साथ? अब यदि मैं सुधारवादी बन जाऊं तो क्या भड़ास निकलने के लिए किसी और जन्म की प्रतीक्षा करूं? यह तो सबका समय आता है, अपनी सास का बदला लेने का. मैं अपनी सास से नहीं उलझ सकती थी.अतः सास के द्वारा किये गए अत्याचारों का बदला लेने का समय आ गया है.
२, मेरे बहनोई मुझे हर समय नीचा दिखने का प्रयास करता रहता था,वह मेरे से दोयम दर्जे का व्यव्हार करता था.जैसे मैं कोई उसका रिश्तेदार नहीं बल्कि नौकर चाकर हूँ.मैं अपने बहनोई के दामादपने से काफी आहत रहता था, अनेक बार रोते हुए बहन के घर से लौटता था.मेरी शादी में मेरी बहन को भी नहीं भेजा .मेरी शादी के समय बहन बहनोई की अनुपस्थिति सभी घर वालों को नागवार गुजर रही थी.अब मेरी भी शादी हो गयी है मेरे भी दो साले हैं,अब मैं भी एक परिवार का दामाद हो गया हूँ.अब आयेगा मजा चुन चुन का बदले लूँगा.अपने सालों को दिन में तारे न दिखा दिए तो मेरा भी नाम -----नहीं
३,मेरे पिता तानाशाह पृकृति के रहे हैं.बात बात पर गुस्सा करना,रौब ग़ालिब करना और मुझे बार बार हडकाते रहना उन्हें बहुत भाता है.उनके इस असंगत व्यव्हार से मैं बचपन से आहत रहा हूँ.उनके व्यव्हार के विरुद्ध बोलने की मुझमे हिम्मत नहीं थी.अतः मन मसोस कर ,कडुवे घूँट पीकर रह जाता था.अब मेरा बेटा बड़ा होने लग रहा है.अब तो मेरा रौब चलेगा.अब मैं बोलूँगा और वह सुनेगा.अब मैं उसका बाप हूँ.यही तो समाज का नियम है.
४,जब मैंने मेडिकल कालेज के प्रथम वर्ष में प्रवेश लिया और कालेज जाना प्रारंभ किया.तो कालेज के सीनियर छात्रों ने मेरे साथ कालेज परिसर और होटल में अनेक बार दुर्व्यवहार किया रेगिंग के नाम पर अनेक प्रकार से परेशान हैरान करते थे.उन्होंने कभी मुझे मुर्गा बना दिया,तो कभी कीचड में दौड़ने को मजबूर किया,कभी कार्टून बना कर लड़कियों के समक्ष अपमानित किया.कालेज में प्रवेश के पश्चात तीन माह आतंक के साये में कटे.मेरे लिए आतंकी शिविर बन गया था मेरा होस्टल प्रवास.मेरे एक साथी ने तो अमानवीय अत्याचारों से क्षुब्द हो कर आत्महत्या कर ली थी.आज मैं द्वितीय वर्ष का छात्र हो गया हूँ,और मेरे जूनियर कालेज आने वाले हैं,अब मैं भी दिखा दूंगा मैंने क्या क्या सहा था? पिछले वर्ष बल्कि उससे भी अधिक रुलाउंगा अपने जूनियरों को.मेरे दुःख भरे दिन गए, अब तो बलि का बकरा बनेगा आने वाला नया बैच.जहाँ तक सरकारी कानूनों की बात है अब वह कैसे रोक लेगा जब मैं जुनियर था तब कानून कहाँ था? जब कहाँ थे शासन, प्रशासन?
५, आज जब मैं आफिस पहुंचा तो देखा बॉस का मूड खराब है,उन्होंने मुझे बिना किसी कारण डाटा-धमकाया.शायद अपने घर की किसी परेशानी से दुखी होने के कारण उन्होंने मेरा पूरा दिन खराब कर दिया.मेरा किसी काम में मन नहीं लग रहा था. फिर मैंने भी अपनी भड़ास अपने स्टाफ़ पर निकाल दी,मैंने भी अपने सभी जूनियर स्टाफ को बारी बारी हडका दिया,इस प्रकार से अपने बॉस का बदला अपने स्टाफ से लिया.
६,किसी परिवार में किसी व्यक्ति की हत्या हो जाती है तो बदले में हत्यारे के परिवार के किसी भी सदस्य की हत्या करके मन में उठ रही प्रतिशोध की ज्वाला को शांत किया जाता है, और यह सिलसिला अंतहीन समय तक जारी रहता है.दोनों परिवार की दुश्मनी परमपरागत दुश्मनी का रूप ले लेती है. इस प्रकार अनेक अपराधों का कारण भी प्रतिशोध होता है.
शायद उपरोक्त उदाहरणों को पढकर मेरे विचारों से आप भी सहमत होंगे, की समाज में अत्याचार,दुर्व्यवहार मुख्यतः प्रतिक्रियाओं का न रुकने वाला सिलसिला होता है.यदि मानव हित में हम नियम बना लें की यदि कोई व्यव्हार हमें नापसंद है,तो वह व्यव्हार किसी के साथ न दोहराएँ.तो वास्तव में समाज में अत्याचारों अनाचारों और शोषण का ग्राफ बहुत नीचे आ सकता है.हम तनाव मुक्त शांति युक्त जीवन जी सकते हैं.(SA-73C)
सत्य शील अग्रवाल, शास्त्री नगर मेरठ